Published on Feb 24, 2020 Updated 0 Hours ago

प्रभावशाली अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस के लिए भारत को न सिर्फ़ सैन्य उपकरणों बल्कि समुद्र में अपनी क्षमता भी बढ़ानी होगी. तभी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत आने वाली चुनौतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाएगा.

भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग और भारत की समुद्री जागरुकता

इस साल की शुरुआत में रायसीना डायलॉग के दौरान अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मैट पोटिंगर ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के विस्तार का एलान करते हुए कहा कि अब इसमें अफ्रीकी महाद्वीप का पूर्वी तट भी शामिल है. भारत के हितों जैसे ऊर्जा सुरक्षा में खाड़ी देशों का महत्व, प्रवासी कामकाजी लोगों के लिहाज से पैसे आने का प्रमुख स्रोत, समान विचारधारा वाले साझेदारों जैसे जापान के साथ योजनाबद्ध जोड़ने वाली परियोजनाओं को देखते हुए अमेरिकी सोच में ये बदलाव देर से ही सही उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर के रणनीतिक महत्व को मान्यता देता है.

अमेरिका हिंद महासागर में भारत का उदय क्षेत्रीय आर्थिक शक्ति के तौर पर चाहता है जिससे कि पश्चिमी प्रशांत महासागर में तैनात अमेरिकी फ़ौज पर कम दबाव हो और वो भारत के साथ मिलकर बोझ उठाए

इससे भी बढ़कर भारत की सोच के साथ अपनी सोच को जोड़ने का अमेरिकी फ़ैसला इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिकी रणनीति में भारत की अहमियत को बताता है. हालांकि, रणनीतिक साझेदार के तौर पर अमेरिका की तरफ़ से भारत को लुभाने की कोशिश शीत युद्ध के बाद से ही चल रही है. लेकिन इंडो-पैसिफिक के मामले में ये फ़िलहाल शुरुआती दौर में है. भौगोलिक-राजनीतिक तौर पर हिंद महासागर को पूर्वी चीन सागर से जोड़ने की कड़ी में चीन के मुक़ाबले में भारत को खड़ा करने की कोशिश ने समुद्री आयाम ले लिया है. इसी रणनीति के तहत अमेरिका हिंद महासागर में भारत का उदय क्षेत्रीय आर्थिक शक्ति के तौर पर चाहता है जिससे कि पश्चिमी प्रशांत महासागर में तैनात अमेरिकी फ़ौज पर कम दबाव हो और वो भारत के साथ मिलकर बोझ उठाए.

भारत-अमेरिकी रक्षा व्यापार

हिंद महासागर में भारत की भूमिका में बदलाव का अमेरिकी मक़सद भारत की समुद्री क्षमता बढ़ाने पर है. मिसाल के तौर पर, अमेरिकी ने समुद्री सर्विलांस एयरक्राफ्ट बोइंग P-81 के निर्यात को मंज़ूरी देने में तेज़ी दिखाई. भारत के पास 8 P-81 एयरक्राफ्ट मौजूद हैं और 2020-21 में 4 और मिलने वाले हैं. इन जहाज़ों का बेड़ा मैग्नेटिक एनोमली डिटेक्टर (MAD) से लैस है ताकि सतह पर चलने वाले जहाज़ों का पता लगाया जा सके. इससे भी बढ़कर, भारत के रक्षा मंत्रालय की डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल की तरफ़ से 6 और बोइंग P-81 विमानों की ख़रीद की मंज़ूरी से पहले ही भारत अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा लंबी-दूरी का सर्विलांस और एंटी सबमरीन एयरक्राफ्ट ऑपरेटर है.

समुद्री निगरानी क्षमता बढ़ने से भारत ने वाकई ज़्यादा मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस की मांग की है. ख़ास बात ये है कि इसकी वजह से भारत की भूमिका क्षेत्रीय शक्ति की हो गई है. इसका पता इससे लगाया जा सकता है कि भारत ने इंफॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर- हिंद महासागर क्षेत्र का उद्घाटन किया है. इसका मक़सद साझेदार देशों और अन्य के साथ संपर्क बनाए रखना है ताकि समुद्री डोमेन जागरुकता व्यापक रूप से विकसित हो और काम के जहाजों के बारे में जानकारी साझा की जा सके. इन सभी बातों की वजह से दलील दी जा सकती है कि नौसेना के क्षेत्र में भारत-अमेरिकी रक्षा व्यापार के ज़ोर का मतलब अमेरिका की उस सोच का निर्यात है जिससे कि भारत हिंद महासागर में मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस की तरफ़ बढ़े.

भारत दुनिया में हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है जबकि अमेरिका दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक. उदाहरण के तौर पर भारत 24 लॉकहीड मार्टिन-सिकोर्स्की MH-60R नौसेना हेलीकॉप्टर ख़रीदने वाला है. इस ख़रीदारी के बाद भारतीय नौसेना की एंटी सबमरीन और एंटी सरफेस युद्ध और सर्विलांस क्षमता में बढ़ोतरी हो जाएगी

इसके अलावा भारत की मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस बढ़ाने की एक वजह दुनिया में भारत का महत्व भी है. भारत दुनिया में हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है जबकि अमेरिका दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक. उदाहरण के तौर पर भारत 24 लॉकहीड मार्टिन-सिकोर्स्की MH-60R नौसेना हेलीकॉप्टर ख़रीदने वाला है. इस ख़रीदारी के बाद भारतीय नौसेना की एंटी सबमरीन और एंटी सरफेस युद्ध और सर्विलांस क्षमता में बढ़ोतरी हो जाएगी. इसी तरह अटकलें हैं कि भारत पहला बिना समझौते वाला साझेदार होगा जिसे MTCR कैटेगरी-1 मानवरहित एरियल सिस्टम की पेशकश की जाएगी. 2019 के आख़िर में रिपोर्ट थी कि भारतीय नौसेना ने 10 सी गार्जियन ड्रोन ख़रीदने में दिलचस्पी दिखाई थी. ये ड्रोन प्रीडेटर B का समुद्री वैरिएंट है जिसमें रेथियन सी वूई मल्टीमोड मैरिटाइम रडार फिट है जो बड़े इलाक़े में इंटेलिजेंस और सर्विलांस मुहैया कराएगा.

लेकिन अमेरिका से खुल्लमखुल्ला आयातित ये हथियार हिंद महासागर की चुनौतियों को नज़रअंदाज़ करते हैं. मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस को नज़रअंदाज़ करता है.

हिंद महासागर में अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस की अहमियत

वैश्विक रूप से मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस काफ़ी हद तक सतह आधारित है. मौजूदा स्वरूप में मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस नई विश्व व्यवस्था में समुद्री ख़तरे से निपटने में पूरी तरह सक्षम नहीं है. इसके अलावा सुरक्षा का टैग दूसरे साझेदारों जैसे अर्थव्यवस्थाओं, पर्यावरण नियामकों और आपदा प्रबंधन एजेंसियों की हिस्सेदारी को लेकर कई गुना रुकावटें लेकर आती हैं.

हिंद महासागर क्षेत्र के पानी में सोनार सैन्य और असैन्य खोजबीन के काम के लिए बेहतरीन नतीजे नहीं देता. इसकी वजह से सोनार का प्रदर्शन 60 से 70 प्रतिशत तक कम हो जाता है. इसकी वजह से हमारे समुद्र में आयातित उपकरणों की प्रभावी तैनाती के लिए भारी-भरकम कोशिश की ज़रूरत होती है.

इन कोशिशों में अंडरवाटर चैनल मॉडलिंग, एम्बियेंट नॉइज़ मॉडलिंग और सिमुलेशन शामिल हैं. इस तरह की कोशिशें पर काफ़ी खर्च होता है. विकासशील देश जिनके लिए सामाजिक-आर्थिक ज़रूरतें पहली तरजीह होती हैं, वो इस तरह के लंबे समय के रिसर्च और डेवलपमेंट कार्यक्रमों पर भारी-भरकम खर्च नहीं कर पाते हैं. इसकी गैर-मौजूदगी में सिर्फ़ सैन्य उपकरणों पर खर्च से कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं होता है और ये सिर्फ़ चुनावी फ़ायदे की चीज़ बनकर रह जाती है. इससे भी बढ़कर हिंद महासागर का क्षेत्र अपनी अस्थिरता और भौगोलिक-राजनीतिक तौर पर कई हिस्सों में बंटे होने की वजह से न सिर्फ़ दुश्मन देशों बल्कि आतंकी संगठनों से भी सुरक्षा के लिए ख़तरा है.

ऐसी हालत में प्रभावशाली अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस के लिए भारत को न सिर्फ़ सैन्य उपकरणों बल्कि समुद्र में अपनी क्षमता भी बढ़ानी होगी. तभी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत आने वाली चुनौतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाएगा.

असरदार अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस ढांचे के लिए संसाधन और प्रयासों पर ज़ोर देने की ज़रूरत है ताकि लंबे समय की रिसर्च एंड डेवलपमेंट पहल शुरू की जा सके. उदाहरण के तौर पर अमेरिका नौसैनिक हथियारों के आयात के साथ समुद्र में क्षमता बढ़ाने का भरोसा सेल कॉन्ट्रैक्ट में शामिल होना चाहिए. निश्चित तौर पर इसमें डाटा और ट्रांसफर की गई तकनीक की सुरक्षा भी शामिल होगी जैसा कि हाल ही में हुए अमेरिका-भारत औद्योगिक सुरक्षा एनेक्स में हुआ था.

सुरक्षा के लिहाज़ से समुद्री जागरुकता हमारे अंडरवाटर और ज़मीनी ख़तरे से बचाव करने में मददगार साबित होता है. पृथ्वी की समुद्री हलचल मानवता की बेहतरी के लिहाज़ से बेहद अहम है. इस तरह की हलचलों की निगरानी से विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं के असर को कम करने में मदद मिल सकती है.

समुद्री क्षेत्र में व्यावसायिक गतिविधियों के लिए भी संसाधनों की मौजूदगी की सटीक जानकारी की ज़रूरत होती है जिससे कि उसका प्रभावी आर्थिक फ़ायदा उठाया जा सके. दूसरी तरफ़ नियामकों को भी संसाधनों के बारे में सही जानकारी होनी चाहिए ताकि वो टिकाऊ योजना बना सकें. समुद्र में बढ़ती व्यावसायिक और सैन्य गतिविधियों की वजह से पर्यावरण पर अच्छा-ख़ासा असर पड़ता है. ऐसे में पर्यावरण संरक्षण की किसी भी पहल के लिए नुक़सान का सटीक अनुमान होना ज़रूरी है. वैज्ञानिकों और रिसर्च करने वालों को साथ-साथ समुद्र के बारे में हमारी जानकारी को बढ़ाना होगा और अंडरवाटर डोमेन के अलग-अलग आयामों तक पहुंचना होगा.

अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस के बारे में व्यापक दृष्टिकोण बताता है कि सभी साझेदारों को समुद्र के भीतर की गतिविधियों की जानकारी होनी चाहिए, इन गतिविधियों को समझ सकें और उसके हिसाब से असरदार तरीक़े से किसी भी हालत में जवाब के लिए तैयार रहें.

अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस को हॉरिज़ोंटल और वर्टिकल रूप में समझने की ज़रूरत है. हॉरिज़ोंटल रूप में तकनीकी, बुनियादी, क्षमता की उपलब्धता है. वर्टिकल रूप में एक व्यापक अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस स्थापित करने का सोपान है. पहला स्तर ख़तरों, संसाधनों और गतिविधियों को समझने के लिए अंडरवाटर डोमेन होगा. दूसरा स्तर जो डाटा हासिल हुए हैं उसके हिसाब से सुरक्षा रणनीति बनाना, संरक्षण और संसाधनों का इस्तेमाल होगा. अगला स्तर राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर नियामक ढांचा बनाना और निगरानी करना है.

असरदार अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस हिंद महासागर क्षेत्र में चुनौतियों और अवसरों को संभालने में सुरक्षित और टिकाऊ विकास मॉडल को बढ़ावा देता है. इसके साथ-साथ भारतीय प्रधानमंत्री की तरफ़ की प्रस्तावित ‘सिक्युरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन’ (SAGAR) विज़न को भी सुनिश्चित करता है. ये सभी तीन मोर्चों यानी नीति, तकनीक और मानव संसाधन विकास में कोशिशों से ही हो पाएगा.

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Authors

Arnab Das

Arnab Das

Dr. Arnab Das a formal naval officer is the Founder &amp: Director of the Maritime Research Centre (MRC). He conceived the proposed UDA framework and ...

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Kashish Parpiani

Kashish Parpiani

Kashish Parpiani was Fellow at ORFs Mumbai centre. His interests include US-India bilateral ties US grand strategy and US foreign policy in the Indo-Pacific.

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