Published on Aug 28, 2023 Updated 0 Hours ago

सरकार द्वारा शैक्षिक प्रौद्योगिकी पर खर्च की जा रही मौजूदा संसाधनों का सुनिश्चित करने के लिए, नीति आयोग शैक्षिक टेक्नोलॉजी खरीद में परिणामों पर आधारित वित्तीय प्रणाली को शुरू करने में एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण की पहल कर रही है.

भारत को अब शिक्षा क्षेत्र में ‘अधिक खर्च’ से ‘बेहतर खर्च’ की ओर बढ़ना चाहिए.

परिणामों पर आधारित वित्तीय प्रणाली को समझने की कोशिश

परिणामों पर आधारित वित्तीय प्रणाली (आरबीएफ) संबंधी पद्धति को लेकर अंतरराष्ट्रीय विकास मंच इस पर काफी ध्यान केंद्रित रख रहा है. भारत की वित्त मंत्री, निर्मला सीतारमण, ने वर्ष 2023-24 के वित्तीय बजट में “प्रतिस्पर्धी विकास आवश्यकताओं के लिए सीमित संसाधनों को आवंटन में” रखे जाने वाली, विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में आवश्यकता पर चर्चा की. आरबीएफ, जिसे नवाचारी वित्त, सफलता के लिए भुगतान, या परिणाम-मूलक भुगतान के नाम से भी जाना जाता है, एक छतरी अथवा आभासी शब्द है जो किसी भी हस्तक्षेप को जानकारी देता है. जो पहले से तय किये गये या एकमत हुए परिणाम प्राप्त करने के बाद, जांच में सही पाये जाने पर व्यक्तियों या संस्थानों को पुरस्कार प्रदान करता है. सामान्य तौर पर आरबीएफ में सामाजिक प्रभाव बॉन्ड्स (एसआईबी), विकास प्रभाव बॉन्ड्स (डीआईबी), शर्त-आधारित नकद राशि संचयन (सीसीटी), और परिणाम-संबंधित ब्याज दर ऋण शामिल है. एक कॉन्सेप्ट के तौर पर भारत के लिए, यह कोई नई धारणा नहीं है. विगत 2015 में, स्वच्छ भारत मिशन एक बड़े पैमाने पर परिणाम आधारित कार्यक्रम था, जिसमें राज्यों को उनके द्वारा निर्धारित की गई निर्देशिकाओं के चारों प्रमुख मानकों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहन भी तय किए गए, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों में खुले शौच मुक्त वातावरण की कमी और बेहतर कचरा प्रबंधन को व्यवस्थित करने का काम शामिल था. इसके अलावा शिक्षा क्षेत्र में, वित्तीय सहयोग प्रदान करने की ये पद्धति, शर्तिया तौर पर अर्थ (वित्त) का बेहतर मूल्य प्रदान करने की क्षमता रखती है. 

भारत की वित्त मंत्री, निर्मला सीतारमण, ने वर्ष 2023-24 के वित्तीय बजट में “प्रतिस्पर्धी विकास आवश्यकताओं के लिए सीमित संसाधनों को आवंटन में” रखे जाने वाली, विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में आवश्यकता पर चर्चा की.

एक-एक रुपए का इस्तेमाल शिक्षा के लिये हो 

हालांकि पैंडेमिक/महामारी के दौरान, दूरस्थ शिक्षा मुख्य धारा में आ गयी थी, और ऑफ़लाइन शिक्षा का पारंपरिक विचार अब भी व्यापक रूप से महत्वपूर्ण है. ब्लेंडेड लर्निंग – ऑफ़लाइन और ऑनलाइन शिक्षा का एक मिश्रण है – जो छात्रों के बीच पैंडेमिक/महामारी के कारण हुई शिक्षा की हानि को पूरा करने के लिए एक आदर्श दिशा प्रदान करता है. इसलिए, शिक्षा क्षेत्र में डिजिटल मॉडल्स पर एक स्पष्ट दबाव सा बनता दिख रहा है, चाहे वो एक राष्ट्रीय डिजिटल शिक्षा संरचना (एनडीईएआर) की स्थापना हो या हाल ही में घोषित बजट में बच्चों के लिए राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय की स्थापना के आसपास की कोशिशें. ब्लेंडेड-लर्निंग दृष्टिकोण ने डिवाइस और ऑनलाइन उपकरणों के उपयोग को प्रोत्साहित किया है जिससे शिक्षा के पैमाने के और भी फायदेमंद होने की संभावनाओं को काफी बल मिलता है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर, वे अपने इर्द गिर्द  के ब्रिक एंड मोर्टार क्लासरूम आदि पर भी ध्यान रखते हैं, जहां बच्चे सीखने के लिए मौजूद रहते हैं. 

बढ़ती एड-टेक या शिक्षा के तकनीक़ीकरण की पारिस्थितियों के संदर्भ में, हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि, सरकारी स्कूलों में ऐसे बड़े पैमाने वाली शिक्षा प्रौद्योगिकी पहलू स्थायी परिणाम प्रदान करें और प्रत्येक रुपए के खर्च पर वास्तविक लाभ प्राप्त हो सके. पारंपरिक रूप से, सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्रोग्रामों ने हार्डवेयर के डिप्लॉयमेंट, सॉफ़्टवेयर की स्थापना, और शिक्षकों की ट्रेनिंग से जुड़ी  गतिविधियों को पूरा करने पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया है. इसे इस ढांचे के माध्यम से प्राप्त किया गया है, जिसमें बनायी गई हार्डवेयर को शामिल कर, सॉफ़्टवेयर स्थापित किया गया है. और इस पूरी व्यवस्था के ज़रिये जो प्रभाव और लाभ होता, जो छात्रों के सीखने और शिक्षा संबंधी बेहतर परिणाम से जुड़ा है, उसपर कम ध्यान दिया गया है. 

2014 में, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के निर्देशन में किए गए एक विश्लेषण प्रक्रिया के तहत, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और चंडीगढ़, असम, मेघालय, मिज़ोरम, और सिक्किम में 2004 की योजना ‘आईसीटी@स्कूल्स’ के अंतर्गत एक झीनी छवि उजागर हुई. इसमे यह दिखलाया गया कि निरीक्षण के समय हालांकि 70-80 प्रतिशत कंप्यूटर काम कर रहे थे, परंतु इसके बावजूद, कुछ राज्यों में आईसीटी पाठ्यक्रम और सहायक बुनियादी ढांचे जैसे कि बिजली, इंटरनेट और प्रोजेक्टर के सही उपलब्धता न होने के कारण आईसीटी संसाधनों का जितना उपयोग किया जा सकता था उतना नहीं हो पाया है, और ये कई हद तक सीमित हुआ है या समस्याग्रस्त. 

शिक्षा में आईसीटी पर करदाताओं के पैसे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा का शिक्षा के परिणामों पर बहुत ही सीमित प्रभाव पैदा करना जारी है. उपरोक्त सीमाओं के तहत, राजस्थान सरकार ने “मिशन बुनियाद” नामक परियोजना शुरू की, जिसका उद्देश्य राज्य के सबसे सुदूर कोनों तक पहुंचने वाले स्कूलों में डिजिटल शिक्षा की संभावनाओं को सफल बनाना है. सरकार की इच्छा है कि वे पहुंच और उपयोग के आसपास के संचालनिक चुनौतियों को सुधारें ताकि मौजूदा आईसीटी की बुनियादी संरचना का प्रयोग करके शिक्षा परिणामों को सुधारने पर स्पष्ट ध्यान दिया जा सके. इसका उद्देश्य राज्य में शिक्षा स्तर में सुधार के लिए मददकारी व्यक्तिगत अनुकूलित शिक्षा (पीएएल) सामग्री प्रदान करना है. 

राजस्थान सरकार ने “मिशन बुनियाद” नामक परियोजना शुरू की, जिसका उद्देश्य राज्य के सबसे सुदूर कोनों तक पहुंचने वाले स्कूलों में डिजिटल शिक्षा की संभावनाओं को सफल बनाना है.

एक तरफ जहां ऐसे ही ऐसे पोस्ट-फैक्टो हस्तक्षेप की राज्यों में निश्चित रूप से आवश्यकता होती है, इससे संबंधित कुछ ज्वलंत सवाल भी हैं:

  • शिक्षा प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों को विशाल संख्या में कैसे डिज़ाइन किया जा सकता है जिनमें मुख्य हितधारकों (सेवा प्रदाताओं, सरकारी अधिकारियों, शिक्षकों, आदि) की जवाबदेही को कार्यक्रम के मौलिक तत्वों के साथ जोड़ा जा सके, जिससे शुरुआत में ही आईसीटी संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सके और जिसके फलस्वरूप शिक्षा परिणामों में भी सुधार हो सके?
  • वर्तमान शिक्षा प्रौद्योगिकी वित्तीय मॉडलों में कौशल को किस प्रकार से सम्मिलित किया जा सकता है ताकि उनसे बेहतर शिक्षा परिणाम प्राप्त किए जा सकें?

इन दो विशाल पैमाने वाले प्रश्नों के संगम पर आरबीएफ के इस विशिष्ट वित्तीय दृष्टिकोण का पता चलता है. यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफ़ोर्ड के गवर्नमेंट आउटकम्स लैब के अनुसार, वैश्विक रूप से आठ क्षेत्रों में 276 ऐसे उपकरणों की खरीद के आदेश दिये गये हैं, जिनके ज़रिए भारत शिक्षा, स्वास्थ्य, और कौशल में लगातार तरक्की कर रहा है. 

नीति आयोग एक जवाबदेही-मूलक शिक्षा टेक्नोलॉजी की खरीद का परीक्षण कर रही है 

नीति आयोग सार्वजनिक स्कूलों में शिक्षा प्रौद्योगिकी की ज़िम्मेदार खरीद के संबंध में नए नज़रिए का निरीक्षण कर रही है. डेल फाउंडेशन और जीडीआई सहयोगियों के सहयोग से, यह दक्षिण-पश्चिम यूपी के चार आकांक्षी  जिलों – बलरामपुर, फतेहपुर, चंदौली और सोनभद्र के 280 सार्वजनिक स्कूलों में चयनित सेवा प्रदाता कॉन्वेजीनियस द्वारा एक परिणामों पर आधारित वित्तीय सेवा PIL यानी  पर्सनलाईज़्ड  एडाप्टिव लर्निंग(पीएएल) कार्यक्रम का डिज़ाइन और क्रियान्वयन में मुख्य भूमिका निभा रहा है. हालांकि, साक्ष्य तैयार करने के उद्देश्य से, भारत में पहले ही डेवलपमेंट इंपैक्ट  बॉन्ड (डीआईबी) के रूप में आरबीएफ उपकरणों का परीक्षण किया जा चुका है, ताकि इसे शीघ्र ही मुख्यधारा में लाया जा सके. भारत में इस दिशा में यह पहल पहली बार हुआ है, जहाँ एक सरकारी निकाय “परिणाम वितरक” है. कई मायनों में यह कार्यक्रम वास्तविक रूप में बच्चों की शिक्षा परिणाम में सुधार के लिए, शिक्षा टेक्नोलॉजी सेवा प्रदाताओं के भुगतान के एक हिस्से को लिंक करने या जोड़ने का एक तरीका है, जिसे स्वतंत्र तृतीय-पक्ष मूल्यांकनकर्ता केंद्र फॉर साइंस ऑफ़ स्टूडेंट लर्निंग द्वारा सत्यापित किया जाएगा. यह “परिणाम खरीदने” का एक क्लासिकल उदाहरण है, ‘इनपुट’ खरीदने की जगह पर. कई तरीकों से अपनी तरह का सबसे पहला अनूठा, ये कार्यक्रम, भारत में शैक्षिक प्रौद्योगिकी की खरीद को, एक नया रूप देने का लक्ष्य रखता है, जिसकी मदद से शिक्षा-प्रोद्योगिकी सेवा प्रदाताओं के कुछ हिस्सों को बच्चों के वास्तविक शिक्षा परिणामों में सुधार के साथ जोड़ा जा सके, जिन्हे सेंटर फॉर साइंस ऑफ स्टूडेंट लर्निंग – जो कि एक थर्ड पार्टी मूल्यांकनकर्ता है, द्वारा सत्यापित करवाया जाएगा. यह “इनपुट की खरीद” के अपेक्षा में “परिणामों की खरीद” का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. 

कई मायनों में यह कार्यक्रम वास्तविक रूप में बच्चों की शिक्षा परिणाम में सुधार के लिए, शिक्षा टेक्नोलॉजी सेवा प्रदाताओं के भुगतान के एक हिस्से को लिंक करने या जोड़ने का एक तरीका है, जिसे स्वतंत्र तृतीय-पक्ष मूल्यांकनकर्ता केंद्र फॉर साइंस ऑफ़ स्टूडेंट लर्निंग द्वारा सत्यापित किया जाएगा.

पारंपरिक खरीद की प्रथा भारत में, स्कूलों में आईसीटी हार्डवेयर की खरीद को तेज़ करने के लिए है ताकि, छात्रों द्वारा इसके इस्तेमाल से शिक्षण की गुणवत्ता को सुधारा जा सके, परंतु, शिक्षा स्तर में सुधार के इच्छित परिणाम शायद ही दिखाए जाते हैं, और वास्तविकता में, शायद ही ये परिणाम प्राप्त होते है. और उपकरणों की गुणवत्ता और सामग्री की गुणवत्ता  पर कम ध्यान देते हुए,अक्सर तकनीक़ी और वित्तीय मानदंडों को पूरा करने वाले सबसे कम मूल्य वाले हार्डवेयर (L1 बिड) का चयन किया जाता है जो और उपकरणों की गुणवत्ता और सामग्री की गुणवत्ता पर कम ध्यान देता है. 

इस खरीद प्रथा की पुन:कल्पना करते समय, नीति आयोग ने 2022 में सरकारों के भीतर अद्वितीय शिक्षा प्रौद्योगिकी खरीद के लिए एक क्रांतिकारी कदम उठाया है. इन जिलों ने एक उपयुक्त एडटेक प्रदाता को सम्मिलित करने के लिए एक प्रस्तावना (RFP) जारी की, जिसमें स्पष्ट रूप से दो साल में शिक्षा स्तर में सुधार का लक्षित परिणाम और प्रदाताओं के भुगतान के 50 प्रतिशत को इन शिक्षा सुधार लक्ष्यों से जोड़ा जाने का लक्ष्य तय किया गया. सेवा प्रदाताओं की भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया था – हार्डवेयर, सॉफ़्टवेयर, और फ़ील्ड सपोर्ट. साथ ही, गुणवत्ता और लागत आधारित चयन के रूप में, (तकनीक़ी मानदंडों को 80 प्रतिशत वजनी से तकनीक़ी मानदंड और लागत मानदंड को 20 प्रतिशत) बिडिंग प्रक्रिया, सामग्री और सॉफ़्टवेयर की गुणवत्ता पर राज्य पाठ्यक्रम के पेडागोजिकल सम्मिलन, डेटा और विश्लेषण की उपलब्धता के साथ, सेवा प्रदाता का अनुभव, काफी मज़बूत था. 

नीति आयोग द्वारा चलाए जा रहे इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का उद्देश्य भारत के शिक्षा प्रौद्योगिकी इकोसिस्टम में एक नवाचार परिणामों से जुड़े खरीद प्राधिकरण मॉडल की एक ब्लूप्रिंट स्थापित करना है और परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रयासों के बजाय परिणाम पूरे करने के वित्तीय मदद करना है. छात्रों के विभिन्न पहलुओं के आवश्यक अंशों की ट्रैकिंग के साथ ही एड-टेक लैब के उपयोग की दृष्टि से, अब परिणामों को प्रमुखता देने का बोझ प्रबंधक पर सबसे ज़्यादा है. यह मॉडल प्रबंधक को छात्रों के शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए प्रोएक्टिव कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसमें ज़िले, ब्लॉक, और स्कूल स्तरों पर डेटा द्वारा प्रोत्साहित समीक्षाओं के माध्यम से अधिकारियों को शामिल करना, शिक्षकों को तकनीक़ी और शैक्षिक पहलुओं पर नियमित प्रशिक्षण प्रदान करना और आईसीटी बुनाई को एक उपयोगी स्थिति में बनाए रखना शामिल है. यह नज़रिया, इन प्रबंधकों की प्रासंगिक शिक्षा की दिशा में ही सिर्फ़ सुधान नहीं करती है, बल्कि छात्रों के शिक्षा स्तर में सुधार की ओर सुई को बदलने में मदद करती है, जैसे कि काफी कम इस्तेमाल में आने वाले लैब की स्थापना की जगह छात्रों के सीखने के बेहतर परिणामों पर आधारित सुधार पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करना. 

भारत में आरबीएफ अब भी एक प्रारंभिक चरण में है और सफलता की कहानियों के पर्याप्त प्रमाण की कमी, जवाबदेही तंत्रों की कमी, विकृत प्रोत्साहन, विनियामक चुनौतियों, प्रभाव को मापने और, संरचना में जटिलता, आदि के चुनौतियों का समाधान अब भी मौजूद है.

आगे की राह 

शिक्षा प्रौद्योगिकी और बड़ी पैमाने पर आईसीटी पहलुओं की संभावना के प्रति आशावाद यहाँ रहने के लिए है, और हालांकि नए संसाधनों और सुधारों की आवश्यकता को छूट नहीं दी जा सकती है, लेकिन सरकार द्वारा मौजूदा शिक्षा प्रौद्योगिकी पहलुओं पर खर्च किए जाने वाले हर रुपये का, बच्चों के शिक्षा स्तर में सुधार जैसा विश्वासकारी परिणाम निकलता है. जैसा कि 2030 का लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र के स्थायी विकास लक्ष्य (SDGs) को प्राप्त करने के रूप में सामने आता है और इन लक्ष्यों के प्रति भविष्य में आवंटन अपर्याप्त रहता है, तो रिजल्ट्स बेस्ड फाइनेंसिंग के माध्यम से पारंपरिक सार्वजनिक वित्तीय और खरीद प्रथाओं का दोबारा अवलोकन करने से, निश्चित रूप से इनपुट से रिज़ल्ट या परिणाम की दिशा में  पहुँचा जा सकता है. 

भारत में आरबीएफ अब भी एक प्रारंभिक चरण में है और सफलता की कहानियों के पर्याप्त प्रमाण की कमी, जवाबदेही तंत्रों की कमी, विकृत प्रोत्साहन, विनियामक चुनौतियों, प्रभाव को मापने और, संरचना में जटिलता, आदि के चुनौतियों का समाधान अब भी मौजूद है. हालांकि, आरबीएफ जैसे उपकरण को निश्चित रूप से सभी विकास परिणाम प्राप्त करने की चुनौतियों के लिए कारगर उपाय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, यदि उचित तरीके से डिज़ाइन किया जाए तो यह एक ज़िम्मेदार प्रणाली बनाने और सबसे अच्छी मूल्य की गारंटी देने का उद्देश्य रखता है. नीति आयोग जो कि सरकार को परिणामों के रूप में कार्य करने का प्रमुख होने की दिशा में नेतृत्व प्रदान करती है, उसकी मदद से आयोजित इस कार्यक्रम की सफलता ने नई वित्तीय दृष्टिकोणों में विश्वास स्थापित की है, जो शिक्षा प्रौद्योगिकी (शिक्षा-टेक) से परे हैं, और माप के प्रभाव और सफलता की प्रदर्शन के माध्यम से भविष्य की समान पहलों के लिए अतिरिक्त सरकारी और निजी निवेशों को आकर्षित कर सकती है.

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