Author : Manish Vaid

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 01, 2024 Updated 7 Hours ago

भारत और चीन के बीच मुकाबले के लिए श्रीलंका एक केंद्र बिंदु बन गया है, विशेष रूप से ऊर्जा परिवर्तन क्षेत्र में 

श्रीलंका में ऊर्जा के मुद्दे पर भारत और चीन की राहें अलग-अलग!

वैश्विक कूटनीति की लगातार बदलती लहरों के नीचे श्रीलंका चीन के सामरिक विस्तारवाद और भारत के साथ सांस्कृतिक संबंध, विशेष रूप से सतत विकास और नवीकरणीय ऊर्जा की परियोजनाओं में, के लिए एक सम्मोहक नैरेटिव के मंच के रूप में उभर रहा है. चीन की कंपनी साइनोपेक के द्वारा विदेशी धरती पर पूरी तरह से अपने स्वामित्व वाली पहली रिफाइनरी बनाने का अग्रणी प्रयास केवल चीन की ऊर्जा पहुंच का विस्तार नहीं है बल्कि पारंपरिक रूप से भारत का प्रभाव क्षेत्र माने जाने वाले देश में एक सोची-समझी शुरुआत है. 

फिर भी इस भू-राजनीतिक उठापटक के केंद्र में सामूहिक, समुदाय केंद्रित प्रयासों के माध्यम से क्षेत्रीय सामंजस्य और विकास को आगे बढ़ाने का भारत का स्थायी स्वभाव है. भारत की परोपकारी ऊर्जा कूटनीति के ख़िलाफ़ ऊर्जा क्षेत्र में चीन के आक्रामक कदम की तुलना दोनों देशों के द्वारा श्रीलंका में अलग-अलग राह पर चलने की स्पष्ट तस्वीर पेश करती है. 

भारत की परोपकारी ऊर्जा कूटनीति के ख़िलाफ़ ऊर्जा क्षेत्र में चीन के आक्रामक कदम की तुलना दोनों देशों के द्वारा श्रीलंका में अलग-अलग राह पर चलने की स्पष्ट तस्वीर पेश करती है. 

श्रीलंका में ऊर्जा कूटनीति को लेकर भारत का दृष्टिकोण सहयोग और लोगों पर केंद्रित पहल के ज़रिए क्षेत्रीय स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने की उसकी पुरानी नीति का प्रमाण है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा राजनीति के अक्सर प्रतिस्पर्धी और सामरिक स्वभाव के उलट श्रीलंका के ऊर्जा क्षेत्र में भारत की भागीदारी इस द्वीपीय देश के आर्थिक पुनरुत्थान को लेकर प्रतिबद्धता में गहराई से जुड़ी है. श्रीलंका की चार-सूत्रीय रणनीति के तहत, विशेष रूप से हालिया आर्थिक संकट के बाद, ऊर्जा सुरक्षा की योजना में भारत से ईंधन आयात की सुविधा के लिए एक क्रेडिट लाइन के साथ त्रिंकोमाली टैंक फार्म के लिए तेज़ी से आधुनिकीकरण प्रक्रिया शामिल है.   

हरित सद्भावना को बढ़ावा

डेल्फ्ट, नैनातिवू और अनालाईतिवू द्वीपों में हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों जैसी पहल के ज़रिए भारत और श्रीलंका ने ऊर्जा के क्षेत्र में श्रीलंका की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के मक़सद से एक मज़बूत साझेदारी बनाई है. 11 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान से भारत के द्वारा शुरू की गई ये परियोजनाएं न केवल वित्तीय बोझ डाले बिना भारत के समर्थन को रेखांकित करती हैं बल्कि क्षेत्रीय सहयोग के उसके व्यापक दृष्टिकोण का संकेत भी देती हैं. ध्यान देने की बात है कि बिजली प्लांट के निर्माण का ठेका विशेष रूप से भारतीय आपूर्तिकर्ताओं के लिए एक प्रतिस्पर्धी बोली की प्रक्रिया के माध्यम से भारत की कंपनी यू सोलर क्लीन एनर्जी सोल्यूशंस को दिया गया था. ये आपसी लाभ और विशेषज्ञता का आदान-प्रदान सुनिश्चित करता है. तीनों परियोजनाओं से 2,230 किलोवॉट स्वच्छ उर्जा का उत्पादन होगा. पिछले दिनों राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के दिल्ली दौरे के बाद श्रीलंका ने जाफ़ना के नज़दीक इन बिजली परियोजनाओं के लिए ठेका जारी करने में चीन की तुलना में भारत को प्राथमिकता दी. ये सामरिक फैसला इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक गतिशीलता में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है. 

इस साझेदारी को एक ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप (JWG) आसान बना रहा है जिसकी स्थापना और अधिक बातचीत एवं जानकारी के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए की गई थी. नवीकरणीय ऊर्जा में भारत की विशेषज्ञता व्यापक आर्थिक साझेदारी के लक्ष्यों के अनुरूप श्रीलंका में क्षमता निर्माण के प्रयासों का समर्थन करने में मददगार रही है. पिछले दिनों JWG की एक बैठक में भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों और लोगों पर केंद्रित कार्यक्रमों का प्रदर्शन किया जबकि श्रीलंका ने 2030 तक 70 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा को हासिल करने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य की रूप-रेखा पेश की. हितों का ये मेल-जोल श्रीलंका के नवीकरणीय ऊर्जा परिदृश्य में भारतीय निवेश के लिए फायदेमंद आधार पेश करता है. 

पिछले दिनों राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के दिल्ली दौरे के बाद श्रीलंका ने जाफ़ना के नज़दीक इन बिजली परियोजनाओं के लिए ठेका जारी करने में चीन की तुलना में भारत को प्राथमिकता दी. ये सामरिक फैसला इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक गतिशीलता में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है. 

इसके अलावा भारत से श्रीलंका तक क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण के लिए दलील आपसी विकास की भावना के साथ मेल खाती है जो इस क्षेत्र में भारत के दृष्टिकोण का प्रतीक है. जैसे-जैसे दोनों देश नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अपने प्रयासों में सामंजस्य ला रहे हैं, वो न केवल द्विपक्षीय संबंध को मज़बूत कर रहे हैं बल्कि इस क्षेत्र में सतत विकास और ऊर्जा सुरक्षा के व्यापक उद्देश्यों में भी योगदान कर रहे हैं. 

सामरिक विस्तार बनाम स्थायी समर्थन 

भारत जहां श्रीलंका को अपना समर्थन जारी रखे हुए है, वहीं वो इस क्षेत्र में शक्ति के संतुलन को लेकर भी सचेत है, विशेष रूप से चीन के बढ़ते ऊर्जा निवेश के मामले में. पिछले दिनों श्रीलंका में साइनोपेक की तेल रिफाइनरी परियोजना को मंज़ूरी एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है जो 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर के साथ श्रीलंका में चीन का अभी तक का सबसे ज़्यादा विदेशी निवेश है. 

हालांकि भारत की प्रतिक्रिया सीधे मुकाबले वाली नहीं है बल्कि उसने एक सतर्क दृष्टिकोण अपनाया है जिसके माध्यम से वो सुनिश्चत करना चाहता है कि उसकी ऊर्जा विकास की परियोजनाएं इस द्वीप के आर्थिक विकास में मददगार बनें और ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करे जिस पर भारत-श्रीलंका आर्थिक साझेदारी विज़न में ज़ोर दिया गया है. ऊर्जा सहयोग द्विपक्षीय साझेदारी में आधार के रूप में है और दोनों देश महत्वपूर्ण परियोजनाओं की पहचान कर रहे हैं जो एक-दूसरे के साथ नज़दीकी का फायदा उठाएंगी. इनमें हरित ऊर्जा की पहल, बाइ-डाइरेक्शनल इलेक्ट्रिसिटी व्यापार की शुरुआत, मल्टी-प्रोडक्ट पाइपलाइन का विकास और तटवर्ती धारा के प्रतिकूल परियोजनाओं (ऑफशोर अपस्ट्रीम प्रोजेक्ट) का पता लगाना शामिल है. इस तरह के सहयोग से भरे प्रयास प्रतिस्पर्धी रवैये की तुलना में एक सतत और आपसी फायदेमंद ऊर्जा भविष्य को लेकर प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं.

श्रीलंका में साइनोपेक का वेंचर, विशेष रूप से हंबनटोटा पोर्ट में रिफाइनरी की योजना के साथ, ऊर्जा के क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करने की चीन की वैश्विक रणनीति का संकेत देता है. साइनोपेक 1,60,000 बैरल प्रति दिन (bpd) के अकेले प्लांट या 1,00,000 bpd के दो चरणबद्ध प्लांट के बीच विकल्पों पर विचार कर रही है. इन दोनों ही क्षमता के प्लांट का उद्देश्य गैसोलीन और डीज़ल ईंधन का उत्पादन है. 

भारत-श्रीलंका मल्टी-प्रोडक्ट पाइपलाइन प्रोजेक्ट का लक्ष्य दोनों दक्षिण एशियाई देशों के बीच ऊर्जा कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है. प्रस्तावित पाइपलाइन भारत के नागापट्टीनम को श्रीलंका के त्रिंकोमाली टैंक फार्म और कोलंबो से जोड़ेगी.

14 जुलाई 2023 को साइनोपेक एनर्जी लंका (प्राइवेट) लिमिटेड और बोर्ड ऑफ इन्वेस्टमेंट ऑफ श्रीलंका (BOI) ने पूरे श्रीलंका में फ्यूल स्टेशन की स्थापना और उसके संचालन के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ साइनोपेक ईंधन के आयात, भंडारण और बिक्री को संभालेगी. इस परियोजना के तहत 150 निजी स्वामित्व वाले ईंधन आउटलेट, जो फिलहाल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन के मैनेजमेंट के तहत है, को अपने नियंत्रण में लेना और 50 नए फ्यूल स्टेशन खोलना शामिल है. 

श्रीलंका बोर्ड ऑफ इन्वेस्टमेंट एक्ट नंबर 17 के तहत संचालित ये समझौता 20 साल का है और साइनोपेक एनर्जी लंका इस पर नज़र रख रही है. ये अधिनियम श्रीलंका में आर्थिक विकास और ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए BOI को अनुमति देता है कि वो निवेशकों को प्रोत्साहन और रियायत की पेशकश करे. इनमें टैक्स हॉलीडे, ड्यूटी में छूट और दूसरे फायदे शामिल हैं. 

वैसे तो इस कदम ने भारत के लिए सामरिक परिणामों को लेकर चिंताएं पैदा की हैं लेकिन भारत ने कनेक्टिविटी और पाइपलाइन प्रोजेक्ट के ज़रिए श्रीलंका के साथ संबंधों को मज़बूत करने पर ध्यान देने का फैसला किया है. भारत-श्रीलंका मल्टी-प्रोडक्ट पाइपलाइन प्रोजेक्ट का लक्ष्य दोनों दक्षिण एशियाई देशों के बीच ऊर्जा कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है. प्रस्तावित पाइपलाइन भारत के नागापट्टीनम को श्रीलंका के त्रिंकोमाली टैंक फार्म और कोलंबो से जोड़ेगी. ये पाइपलाइन इस तरह से डिज़ाइन की गई है कि दोनों देशों के बीच गैसोलीन और डीज़ल ईंधन समेत कई पेट्रोलियम उत्पादों को ले जाएगी. इस पाइपलाइन परियोजना को लेकर व्यवहारिकता के अध्ययन (फीज़िबिलिटी स्टडी) की योजना बनाई गई है. इस अध्ययन में तकनीकी समीक्षा, मांग का विश्लेषण, वित्तीय मूल्यांकन और बिज़नेस मॉडल की समीक्षा शामिल है. 

अपने दक्षिणी क्षेत्र से श्रीलंका तक एक मल्टी-प्रोडक्ट पेट्रोलियम पाइपलाइन के निर्माण में भारत का सहयोग श्रीलंका की ऊर्जा सुरक्षा को सहारा देने के लिए एक सामरिक पहल है. ये रणनीति चीन के असर का मुकाबला करने को लेकर नहीं है बल्कि विकास के एक वैकल्पिक मॉडल की पेशकश करने के बारे में है जो श्रीलंका के लोगों के कल्याण को प्राथमिकता देता है.   

श्रीलंका में भारत की बढ़ती ऊर्जा भूमिका 

ध्यान देने की बात है कि इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) की सहायक कंपनी लंका IOC ने 211 रिटेल आउटलेट और त्रिंकोमाली ऑयल टैंक फार्म के विकास में एक महत्वपूर्ण हिस्से के साथ श्रीलंका में भारत की ऊर्जा उपस्थिति को मज़बूत से स्थापित किया है. 

दुनिया के सबसे बेहतरीन प्राकृतिक बंदरगाह में से एक के भीतर स्थित त्रिंकोमाली उत्तर-पूर्व हिंद महासागर में एक संभावित नौसैनिक गढ़ है. 1930 के आसपास टैंक फार्म की स्थापना ब्रिटिश बेड़े के इस्तेमाल के लिए की गई थी और इसमें लगभग 100 विशाल तेल टैंक हैं. क्षेत्रीय दबदबे के लिए भारत ने त्रिंकोमाली के सामरिक महत्व को स्वीकार किया है. 50 साल के लीज़ पर 14 टैंक IOC ने लिया है जबकि IOC और श्रीलंका की सीलोन पेट्रोलियम के साझा स्वामित्व वाली एक नई कंपनी (जिसमें IOC की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत है) ने 61 टैंक हासिल किया है. भारत की सक्रिय भागीदारी इस क्षेत्र में उसकी सामरिक दूरदर्शिता को रेखांकित करती है. 

रणनीतिक पैंतरेबाज़ी और सतत सहयोग के एक गतिशील नैरेटिव में जहां चीन की आक्रामक छलांग महत्वपूर्ण निवेश का प्रतीक है वहीं भारत का दृष्टिकोण समुदाय केंद्रित प्रयासों के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने पर ज़ोर देता है.

क्षेत्रीय ऊर्जा कनेक्टिविटी और सहयोग को बढ़ाने की तरफ एक महत्वपूर्ण छलांग के तहत श्रीलंका की सरकार ने मार्च 2024 में एक दूरदर्शी प्रस्ताव की घोषणा की. इस महत्वाकांक्षी पहल के तहत 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से एक बाइ-डाइरेक्शनल (दोनों दिशाओं) समुद्री इलेक्ट्रिसिटी केबल का निर्माण किया जाएगा. योजना के तहत श्रीलंका के अनुराधापुरा शहर को भारत के चेन्नई से जोड़ा जाएगा. इसके लिए पहले 130 किमी ज़मीनी ट्रांसमिशन लाइन होगी जिसके बाद श्रीलंका के मन्नार के तिरुकेतिश्वरम में एक समुद्री केबल होगी. 

भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक बढ़त

वैसे तो श्रीलंका की ईंधन आपूर्ति को मज़बूत करने और तटवर्ती धारा के प्रतिकूल (ऑफशोर अपस्ट्रीम) हाइड्रोकार्बन का लाभ उठाने के लिए दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं लेकिन श्रीलंका के नवीकरणीय ऊर्जा परिदृश्य में भारत की सामरिक भागीदारी एक स्थिर भविष्य को बढ़ावा देने की उसकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है. ये 2030 तक 70 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा हासिल करने के श्रीलंका के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ मेल खाती है.  

इस सहयोग का विस्तार किसी एक प्रोजेक्ट के आगे तक है. उदाहरण के लिए ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस और इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) जैसी वैश्विक पहल तक ये सहयोग फैला है. ये गठजोड़ केवल साझेदारी से बढ़कर है; ये भारत की भू-राजनीतिक दूरदर्शिता और भू-आर्थिक समझदारी का प्रतिनिधित्व करते हैं. इन गठजोड़ों का नेतृत्व करके भारत न केवल अपना असर बढ़ाने और मज़बूत द्विपक्षीय संबंध तैयार करने का काम कर रहा है बल्कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र को एक हरित, अधिक एकीकृत अर्थव्यवस्था की तरफ भी ले जा रहा है. बायो-फ्यूल को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ने और ISA के उद्देश्यों में योगदान देने के मामले में दोनों देशों के बीच तालमेल एक रणनीतिक कदम है जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करता है और इस क्षेत्र के ऊर्जा परिवर्तन में एक प्रमुख किरदार के रूप में भारत की भूमिका के बारे में बताता है.  

रणनीतिक पैंतरेबाज़ी और सतत सहयोग के एक गतिशील नैरेटिव में जहां चीन की आक्रामक छलांग महत्वपूर्ण निवेश का प्रतीक है वहीं भारत का दृष्टिकोण समुदाय केंद्रित प्रयासों के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने पर ज़ोर देता है. इसका न केवल इन देशों के लिए भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक असर है बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए. 


मनीष वैद ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में जूनियर फेलो हैं. 

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