हाल के वर्षों में भारत और नॉर्डिक देशों ने आपसी विश्वास, टिकाऊ दोस्ती और साझा प्रगति की भावना के साथ बहुआयामी सामरिक सहयोग के रास्ते में क़दम बढ़ाए हैं. नॉर्डिक देशों में डेनमार्क, नॉर्वे, स्वीडन, आइसलैंड और फ़िनलैंड शामिल हैं. दोनों ही पक्ष आपस में मज़बूत लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों के साथ-साथ बहुलतावाद और संस्थागत आधार साझा करते हैं. लिहाज़ा इन्हें क़ुदरती तौर पर भागीदार समझा जाता है. नॉर्डिक देश बेहतरीन नवाचार, हरित टेक्नोलॉजी, स्वच्छ ऊर्जा, जलवायु सक्रियतावाद और ऊर्जा के क्षेत्र में विविधताओं के धनी हैं. दूसरी ओर भारत तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ रही आर्थिक महाशक्ति है. यहां टिकाऊ आधार वाली प्रभावशाली आर्थिक वृद्धि का दौर जारी है. खनिज संसाधनों की भरमार है. उपमहाद्वीप जैसे विस्तृत आयाम वाला लंबा-चौड़ा बाज़ार है. आले दर्जे और संसाधन संपन्न प्रतिभाशाली युवाओं की विशाल आबादी है और नवाचार का प्रेरित करने वाला इकोसिस्टम मौजूद है. भारत और नॉर्डिक देशों की गहरी नज़दीकियों को ध्यान में रखते हुए ये कहा जा सकता है कि द्विपक्षीय संबंधों को नई और सामरिक ऊंचाइयों तक ले जाने में रिश्तों में इस तरह की गर्मजोशी बेहद ज़रूरी है. ऐसी क़वायद कई मोर्चों पर मददगार साबित हो सकती है. इनसे ख़ासतौर से कोविड-19 महामारी के बाद उभरती भूसामरिक चुनौतियों, गठजोड़ निर्माण में तेज़ी से बदलते भूराजनीतिक दरारों, अफ़ग़ानिस्तान को लेकर हालिया सुरक्षा चिंताओं और यूक्रेन संकट के चलते सामने आ रहे सुरक्षा और मानवतावादी संकटों से पार पाने में मदद मिल सकती है.
भारत और नॉर्डिक देशों की गहरी नज़दीकियों को ध्यान में रखते हुए ये कहा जा सकता है कि द्विपक्षीय संबंधों को नई और सामरिक ऊंचाइयों तक ले जाने में रिश्तों में इस तरह की गर्मजोशी बेहद ज़रूरी है. ऐसी क़वायद कई मोर्चों पर मददगार साबित हो सकती है.
मई 2022 में भारत-नॉर्डिक दूसरे शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नॉर्डिक देशों के उनके समकक्षों के बीच आमने-सामने बैठकर बातचीत हुई. इन बैठकों से मौजूदा समय में जारी सहयोगकारी वार्ताओं को और मज़बूती देने के लिए माकूल रफ़्तार मिलती है. शिखर सम्मेलन से तमाम नेताओं को भागीदारी में और गहराई लाने के लिए दृष्टिकोण और रोडमैप तैयार करने में मदद मिली. इससे दोनों पक्षों की पारस्परिक ज़रूरतें पूरी हो सकेंगी.
“मेक इन इंडिया”, “डिजिटल इंडिया”, “स्टार्ट अप इंडिया” और स्वच्छ गंगा अभियान जैसे भारत के प्रमुख कार्यक्रम नॉर्डिक देशों को भारत में निवेश करने और सक्रिय रूप से हिस्सा लेने के ज़बरदस्त मौक़े उपलब्ध कराते हैं. भारत की आर्कटिक नीति के तहत उस इलाक़े में सामरिक रूप से मौजूदगी बनाने का मज़बूत इरादा दिखाई देता है. इस मक़सद को बढ़ावा देने के लिए भारत और नॉर्डिक देशों के बीच क़रीबी रिश्ते बेहद कारगर हो सकते हैं. साथ ही इस क़वायद से यूरोपीय संघ (EU) के साथ सामरिक रिश्तों को मज़बूत बनाने में भी मदद मिलेगी. ग़ौरतलब है कि यूरोपीय संघ के साथ रिश्ते पहले से ही रफ़्तार पकड़ने लगे हैं.
मज़बूत भरोसा और लचीलापन
दोनों पक्षों की ओर से नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करने पर मज़बूत प्रतिबद्धता दिखाई गई है. ख़ासतौर से कोविड-19 प्रकरण के बाद बहुपक्षीय संस्थानों द्वारा बढ़चढ़कर और कारगर रूप से कामकाज करने की हिमायत की गई है. इसके साथ ही समावेशी विचारों, पारदर्शिता और वैश्विक प्रशासन में जवाबदेही की भावना को बढ़ाकर उभरती भू-राजनीतिक चुनौतियों के और ज़्यादा प्रभावी निपटारे की पहल भी सामने आई है. ये तमाम उपाय सही दिशा में उठाए गए क़दम हैं. दोनों पक्षों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) को ज़्यादा समावेशी, जवाबदेह, पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए उसमें सुधार लाने की दिशा में एकजुट होकर काम करने का मज़बूत इरादा ज़ाहिर किया है. भारत और नॉर्डिक देशों के बीच मज़बूत भरोसे, आत्मविश्वास और बढ़ती भागीदारियों का लचीलापन बेहद अहम है. दरअसल, अमेरिका के अलावा भारत ही वो इकलौता देश है जिसके साथ शिखर सम्मेलन के स्तर पर नॉर्डिक देशों का विशेष क़रार है. फ़िलहाल वॉल्वो, एरिक्सन, IKEA, टेट्रा पाक, Kone, एल्स्ट्रॉम, वार्टसिला और नोकिया जैसी नॉर्डिक देशों की अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाज़ार के विशाल आधार का फ़ायदा उठाने के लिए पूरी तरह से सक्रिय हैं. इस तरह ये तमाम कंपनियां भारत के आर्थिक विकास, तकनीकी भागीदारी और रोज़गार निर्माण में अपना योगदान दे रही हैं.
नॉर्डिक देशों की स्मार्ट सिटी परियोजना और भारत की महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी परियोजना के बीच गहरा तालमेल साझा आर्थिक तरक़्क़ी के स्तर को ऊंचा उठाने के लिहाज़ से बेजोड़ हैं. इसी तरह से पिछले कुछ वर्षों से नॉर्डिक देशों में भारत का निवेश भी बढ़ा है.
नॉर्डिक देशों की स्मार्ट सिटी परियोजना और भारत की महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी परियोजना के बीच गहरा तालमेल साझा आर्थिक तरक़्क़ी के स्तर को ऊंचा उठाने के लिहाज़ से बेजोड़ हैं. इसी तरह से पिछले कुछ वर्षों से नॉर्डिक देशों में भारत का निवेश भी बढ़ा है. फ़िलहाल 70 से ज़्यादा भारतीय कंपनियां स्वीडन में कारोबार कर रही हैं. डेनमार्क, फ़िनलैंड और नॉर्वे में भी भारतीय कंपनियां नई ऊंचाइयां छू रही हैं. इन तमाम देशों में ख़ासतौर से सूचना प्रौद्योगिकी, ऑटोमोबाइल और दवाओं के क्षेत्र में भारतीय कंपनियां अपनी मौजूदगी का एहसास करा रही हैं. कारोबार और निवेश के मोर्चे पर ऐसे दोतरफ़ा रिश्ते बढ़ती भागीदारी को रणनीतिक ऊंचाइयां देने में बेहद अहम भूमिका निभा रहे हैं. नॉर्डिक देश भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते के दायरे में भारत के साथ जुड़ावों को और गहरा करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. निकट भविष्य में इस क़वायद के कामयाबी के साथ पूरा हो जाने की उम्मीद है. इससे साझा आर्थिक तरक़्क़ी को बढ़ावा मिलने की संभावना है.
भारत और नॉर्डिक देशों के बीच नवाचार और स्वच्छ तकनीक के क्षेत्र में बढ़ा सहयोग लगातार रफ़्तार पकड़ रहा है. इससे भारत की समृद्ध प्रतिभाओं के आधार और डिजिटलाइज़ेशन अभियान को नवाचार और हरित तकनीकी हस्तांतरण के क्षेत्र में नॉर्डिक देशों की अगुवाई के साथ जोड़ना मुमकिन हो सका है. “नई सोच, नए तरीक़ों और टिकाऊ समाधानों” के हिसाब से “फ़ूड प्रॉसेसिंग और कृषि, स्वास्थ्य परियोजनाओं और जीव विज्ञान जैसे क्षेत्रों में नए अवसरों की पहचान” की दिशा में निवेश के स्तर को ऊंचा उठाने की साझा क़वायद को प्राथमिकता पर रखा गया है.
नवीकरणीय ऊर्जा की खोज और दोहन की दिशा में भारत पुरज़ोर तरीक़े से आगे बढ़ रहा है. इससे वैज्ञानिक गठजोड़ों और निवेश में मज़बूती लाने के मक़सद से आपसी हितों का आदर्श जुड़ाव सुनिश्चित होता है. भारत और नॉर्डिक देश पेरिस समझौते के प्रावधानों का पालन करने के प्रति मज़बूती से प्रतिबद्ध हैं. दोनों ही पक्ष जलवायु के मोर्चे पर तेज़ रफ़्तार क़वायदों की वक़ालत करते हैं.
ऊर्जा सहयोग और जलवायु सक्रियता के दोहरे मसलों पर भारत और नॉर्डिक देशों के रिश्ते हरित टेक्नोलॉजी को निरंतर उन्नत बनाने की दिशा में तालमेल बनाकर चलने से जुड़े हैं. इससे जलवायु के मोर्चे पर न्याय सुनिश्चित होता है और नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा मिलता है. नवीकरणीय ऊर्जा की खोज और दोहन की दिशा में भारत पुरज़ोर तरीक़े से आगे बढ़ रहा है. इससे वैज्ञानिक गठजोड़ों और निवेश में मज़बूती लाने के मक़सद से आपसी हितों का आदर्श जुड़ाव सुनिश्चित होता है. भारत और नॉर्डिक देश पेरिस समझौते के प्रावधानों का पालन करने के प्रति मज़बूती से प्रतिबद्ध हैं. दोनों ही पक्ष जलवायु के मोर्चे पर तेज़ रफ़्तार क़वायदों की वक़ालत करते हैं. ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके मान्य सीमाओं तक लाने जैसी कोशिशें नई विश्व व्यवस्था को आकार देने में दृष्टिकोण और नई दिशा मुहैया कराते हैं. इसके साथ ही भारत और फ़्रांस की अगुवाई वाले अंतरराष्ट्रीय सौर गठजोड़ को नॉर्डिक देशों का विशेष समर्थन हासिल है. स्वीडन पहले से ही इस गठजोड़ का सदस्य है और नॉर्वे ने भी हाल ही में इसमें शामिल होने का फ़ैसला किया है. इन तमाम घटनाक्रमों का जलवायु के मोर्चे पर कार्रवाइयों और स्वच्छ ऊर्जा सहयोग के भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ना तय है. वैश्विक मंच पर मुंह बाए खड़ी चुनौतियों के प्रभावी निपटारे के लिए एक नई ठोस विश्व व्यवस्था तैयार करने की दिशा में भारत और नॉर्डिक देश मिलजुलकर कार्य कर रहे हैं.
लोकतांत्रिक मूल्य और बहुलतावादी समाज
भारत-नॉर्डिक सामरिक भागीदारी की एक बेजोड़ मिसाल सामुद्रिक सहयोग के क्षेत्र में दी जा रही तवज्जो है. साझा आर्थिक प्रगति, रोज़गार निर्माण, पोषण और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के मक़सद से ब्लू इकॉनोमी में निवेश बढ़ता जा रहा है. इसे सकारात्मक दिशा में उठाए गए क़दम के तौर पर देखा जा रहा है. भारत और नॉर्डिक क्षेत्र के देश विशाल महासागरों से घिरे हैं. ऐसे में नॉर्डिक देशों के साथ सामुद्रिक सहयोग को गहरा करने पर भारत के ज़ोर से पारस्परिक विशेषज्ञता के आदान-प्रदान के बेइंतहा मौक़े मिलेंगे. इनसे सामुद्रिक सुरक्षा और व्यापार पहलों को बढ़ावा देने, महासागरीय उद्योगों में निवेश को प्रोत्साहित करने और दोनों पक्षों के फ़ायदे के लिए सामान्य महासागरीय विरासतों को साझा करने में भी मदद मिलेगी. मई 2022 में भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन के बाद साझा बयान जारी किया गया. बयान के मुताबिक प्रधानमंत्रियों ने “समुद्र तटवर्ती, समुद्री और गहरे समंदर में पवन ऊर्जा से जुड़े क्षेत्रों के अलावा भारत और नॉर्डिक देशों में टिकाऊ महासागरीय उद्योगों में कारोबारी सहयोग और निवेश को प्रेरित करने की संभावनाओं” पर विचार-विमर्श किया. ये विदेश नीति के क्षेत्र में भारत के सामरिक दृष्टिकोण के अभिन्न घटक हैं. इसके तहत सामुद्रिक दायरों में विस्तार और पहले से ज़्यादा सक्रियता का इरादा जताया गया है. दरअसल, नॉर्डिक देशों के साथ और अधिक सामुद्रिक सहयोग से भारत की आर्कटिक नीति में मज़बूती लाने का अवसर भी मिलता है. इस नीति के तहत टिकाऊ विकास, स्वच्छ तकनीक के हस्तांतरण, नवाचार और वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए प्राकृतिक संसाधनों के बेहतरीन और किफ़ायती इस्तेमाल का रणनीतिक दृष्टिकोण पेश किया गया है. इस संदर्भ में जहाज़रानी उद्योग के स्वरूप को निम्न कार्बन वाले भविष्य के हिसाब से बदलने को लेकर दोनों पक्षों की बढ़ती दिलचस्पी सही दिशा में उठाया गया क़दम है.
. दरअसल, नॉर्डिक देशों के साथ और अधिक सामुद्रिक सहयोग से भारत की आर्कटिक नीति में मज़बूती लाने का अवसर भी मिलता है. इस नीति के तहत टिकाऊ विकास, स्वच्छ तकनीक के हस्तांतरण, नवाचार और वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए प्राकृतिक संसाधनों के बेहतरीन और किफ़ायती इस्तेमाल का रणनीतिक दृष्टिकोण पेश किया गया है.
कुल मिलाकर भारत-नॉर्डिक सामरिक संबंध लोकतांत्रिक मूल्यों, संस्थागत जुड़ावों, जनता से जनता के बीच संपर्क, बहुलतावादी समाज, सुरक्षा और व्यापार के क्षेत्र में टिकाऊ सहयोग के साथ-साथ नवाचार और जलवायु के मोर्चे पर न्याय से जुड़े मज़बूत बुनियादों पर आधारित हैं. भारत और नॉर्डिक देशों के बीच भागीदारी के ऊंचे स्तर की दुनिया भर में पहचान बढ़ती जा रही है. 21वीं सदी के वैश्विक दर्जे के उभार में अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था को मज़बूती देने वाली ताक़त के तौर पर इस भागीदारी की धाक जमती जा रही है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.