Published on Aug 26, 2023 Updated 0 Hours ago

म्यांमार में अस्थिरता ने भारत-म्यांमार सीमा पर मानव तस्करी के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाया है और आईटी श्रमिकों को इसका शिकार बनाया जा रहा है 

भारत-म्यांमार सीमाः बढ़ती मानव तस्करी की चिंताएं

फरवरी 2021 में सैन्य तख्त़ापलट के बाद म्यांमार में राजनीतिक उथल-पुथल ने भारत और म्यांमार के बीच मानव तस्करी के लिए एक जटिल और अनिश्चित स्थिति पैदा कर दी है. भारत म्यांमार के साथ 1,642 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. म्यांमार के भीतर अस्थिरता, अशांति और सत्ता संघर्षों ने आपराधिक सिंडिकेट्स को जन्म दिया है जो कमज़ोर व्यक्तियों का शोषण करते हैं और अवैध गतिविधियों द्वारा लाभान्वित होते हैं. जैसा कि विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने कहा, म्यांमार में 400 से अधिक भारतीय पुरुष धोखाधड़ी वाली आईटी नौकरियों में फंसे पड़े है.  

तख़्तापलट के बाद मानव तस्करी में बढ़ते रुझानों में से एक थाईलैंड में नकली आईटी व्यवसायों में बेहतर वेतन की गारंटी के साथ बेहतर नौकरी या रोज़गार का वादा है, जो लोगों को काफी आकर्षित करता है.

इस मुद्दे को भारतीय विदेश मंत्री, डॉ एस.जयशंकर ने अपने म्यांमार समकक्ष एच.ई. थान स्वे के साथ 16 जुलाई को बैंकॉक में मेकॉन्ग गंगा सहयोग (एमजीसी) सभा की बैठक के बाद हाल ही में एक ट्वीट कर इसे उजागर किया गया था. जयशंकर ने मानव और मादक पदार्थों की तस्करी के बारे में चिंताओं पर ज़ोर देते हुए, तस्करी के शिकार पीड़ितों की शीघ्र वापसी सुनिश्चित करने के लिए संबंधित पक्षों के बीच मज़बूत सहयोग का आह्वान किया गया. 

इस चिंता को समझने के लिए, तख़्तापलट के बाद भारत-म्यांमार सीमा पर बिगड़ती मानव तस्करी की स्थिति और इस बढ़ते खतरे का मुकाबला करने में अधिकारियों के सामने आने वाली चुनौतियों की जांच किये जाने की आवश्यकता है. 

रोज़गार घोटाला

तख़्तापलट के बाद मानव तस्करी में बढ़ते रुझानों में से एक थाईलैंड में नकली आईटी व्यवसायों में बेहतर वेतन की गारंटी के साथ बेहतर नौकरी या रोज़गार का वादा है, जो लोगों को काफी आकर्षित करता है. रिपोर्टों के अनुसार, सिंडिकेट्स के तौर-तरीकों में आईटी-कुशल युवाओं को थाईलैंड में आकर्षक डेटा एंट्री करियर के वादे के साथ-साथ, लुभावना वेतन दिये जाने का लालच शामिल है, जिसमें मासिक वेतन 5,000 अमेरिकी डॉलर से 8,000 अमेरिकी डॉलर तक है. इन आकर्षक नौकरी के अवसरों का विज्ञापन सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर और दुबई और भारत में स्थित भर्ती एजेंटों के माध्यम से दिया जाता है. 

भारतीय राजनयिकों को म्यांमार से बचाए गए लोगों को मानव तस्करी रैकेट के पीड़ितों के रूप में पहचानने के लिए संबंधित अधिकारियों को राज़ी करने के चुनौतीपूर्ण कार्य का सामना करना पड़ रहा है. इस प्रक्रिया के लिये बहुत ज़्यादा समय और सारी स्थिती को डॉक्युमेंट करने के प्रयास शामिल हैं.

“ये रंगरूट” या कामगार (ज्य़ादातर भारतीय राज्य तमिलनाडु से आते हैं) जिनको, बाद में वीज़ा-ऑन-अराइवल सुविधा की मदद से थाईलैंड ले जाया जाता है. पहुंचने पर, उन्हें टाक प्रांत में माई सोट ले जाया जाता है. रात को अंधेरे की आड़ में, उन्हें अवैध रूप से मोई नदी पार करवा कर, म्यावड्डी में प्रवेश कराया जाता है. एक बार इस दूरदराज़ इलाके के सीमावर्ती राज्य में पहुंच जाने के पश्चात, उन्हें फिर सिंडिकेट्स द्वारा स्थापित सुविधाओं के भीतर स्कैमर्स के रूप में काम करने के लिए विवश  किया जाता है. 

सौभाग्य से, बंदी बनाए गए लोगों की एक बड़ी तादाद अपने देश के लोगों के साथ संपर्क बनाए रखने और लगातार बातचीत करने में कामयाब रही है, और अधिकारी उनके संपर्क में हैं. बचाये गए पीड़ितों को उचित भोजन, नींद या स्वच्छता की स्थिति प्रदान नहीं किए जाने के बारे में परेशान करनेवाली काफी कष्टप्रद कहानियां सामने आ रही है. अत्यधिक काम के बोझ के साथ ही तय लक्ष्यों को पूरा नहीं करने के लिए उन्हें कड़ी सज़ा दी जा रही है. 

भारतीय अधिकारियों के सामने चुनौतियां

भारत सरकार, विशेष रूप से विदेश मंत्रालय को, मानव तस्करी के मुद्दों को हल करने में बहुआयामी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. म्यावड्डी क्षेत्र, जहाँ तस्करी के हालात सबसे बदतर हैं, वो म्यांमार के कायिन प्रांत के भीतर स्थित है जो थाईलैंड के साथ सीमा साझा करती है. इस दूरदराज़ के क्षेत्र में, म्यांमार की सैन्य सरकार का प्रभाव सीमित करते हुए, सशस्त्र मिलिशिया यानी नागरिक सेना समूह का प्रभावशाली नियंत्रण है. जिस वजह से, नई दिल्ली को फंसे हुए भारतीयों को बचाने के अपने प्रयासों में कई जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. 

लंबे समय से चल रहे इस राजनीतिक संकट के कारण म्यांमार के अधिकारियों से मिलने वाले अपेक्षित सहयोग की कमी इस मुद्दे से निपटने के लिये जिस सहयोग की ज़रूरत थी उसे बाधित करती है. इसके अतिरिक्त, सीमा के साथ विशाल और कठिन भू-भाग में होने वाली गश्त और इस इलाके को पर्याप्त रूप से सुरक्षित करने में चुनौतियां पैदा करती है. 

वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता तस्करी के शिकार लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित और त्वरित उपायों में बाधा डालती है. इस संबंध में, तस्करी से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए भारत और म्यांमार की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय का होना बेहद ज़रूरी है.

इन कठिन चुनौतियों के बावजूद, भारतीय अधिकारी, बैंकॉक और यांगून में  पीड़ितों को बचाने और उन्हें भारत वापस लाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है. अब तक विभिन्न एजेंसियों और कानून प्रवर्तन निकायों के सहयोग के परिणामस्वरूप 292 व्यक्तियों को सफलतापूर्वक प्रत्यावर्तन प्रयासों के माध्यम से भारत वापस लाया गया है. हालांकि, कई लोग अभी भी फंसे हुए हैं. 

एक प्रमुख चिंता का विषय नौकरशाही और प्रशासनिक देरी भी बनी हुई है. इस प्रक्रिया में आमतौर पर बचाए गए पीड़ित पहले थाईलैंड में प्रवेश करते हैं. थाईलैंड पहुंचने पर, चूंकि इनके पास म्यांमार में घुसने के लिए उचित यात्रा दस्तावेज़ नहीं होते हैं, और थाईलैंड में उनकी वापसी को भी कानूनी रूप से मान्यता नहीं है, इस कारण थाई सशस्त्र बलों द्वारा उन्हें अवैध प्रवेश के आरोप में हिरासत में ले लिया जाता है. नतीजतन, भारतीय राजनयिकों को म्यांमार से बचाए गए लोगों को मानव तस्करी रैकेट के पीड़ितों के रूप में पहचानने के लिए संबंधित अधिकारियों को राज़ी करने के चुनौतीपूर्ण कार्य का सामना करना पड़ रहा है. इस प्रक्रिया के लिये बहुत ज़्यादा समय और सारी स्थिती को डॉक्युमेंट करने के प्रयास शामिल हैं. 

विचार-विमर्श के बिंदु

सीमा नियंत्रण एजेंसियों के बीच सहयोग बढ़ाना और भारत और म्यांमार के बीच प्रत्यक्ष संचार चैनल स्थापित करना, मानव तस्करी का मुकाबला करने और सीमा पार और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक मज़बूत रणनीति के तौर पर प्रभावकारी सिद्ध हो सकता है. तस्करी के शिकार व्यक्तियों के बचाव, उनसे किये जाने वाली वसूली और प्रत्यावर्तन पर द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए 2019 में भारत और म्यांमार के बीच समझौता करने (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए जाने का यही मुख्य कारण था. हालांकि, नागरिक सरकार के अपदस्थ किये जाने के बाद, यह समझना मुश्किल हो गया था कि, क्या सैन्य सरकार समझौता ज्ञापन और उसके भीतर निर्धारित खंडों का सम्मान करेगी, जिसमें किसी भी देश में तस्करों और संगठित अपराध सिंडिकेट की त्वरित जांच और मुकदमा सुनिश्चित करना शामिल है, और मानव तस्करी को रोकने के प्रयास करने के लिए कार्य समूहों/कार्य बलों की स्थापना भी शामिल है. 

तस्करी से निपटने के लिए कानूनी ढांचे का मज़बूतीकरण भी सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है. जबकि, एक तरफ दोनों देशों ने ऐसे कानून बनाए हैं जो तस्करी को अपराध घोषित करते हैं, और पीड़ितों की रक्षा करते हैं और मानव तस्करी से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों की पुष्टि भी करते हैं. वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता तस्करी के शिकार लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित और त्वरित उपायों में बाधा डालती है. इस संबंध में, तस्करी से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए भारत और म्यांमार की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय का होना बेहद ज़रूरी है. संयुक्त अभियान और खुफिया जानकारी साझा करने से तस्करों को रोकने और पीड़ितों को बचाने में मदद मिल सकती है.

इसके अतिरिक्त, तस्करी के जोख़िम के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना, और संभावित पीड़ितों को शोषण के संकेतों के बारे में शिक्षित करना इस मुद्दे से निपटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. फर्ज़ी आईटी नौकरियों से संबंधित सुझाव के प्रकाशन में देरी की बात की गई थी और इस प्रकार, भविष्य में इस तरह की लापरवाही से बचे जाने की ज़रूरत पर बल दिया गया है. नागरिकों का शिकार करने से तस्करी नेटवर्क के प्रसार की रोकथाम के लिए विश्वसनीय जानकारी का प्रसार महत्वपूर्ण है. बचाव प्रयासों के साथ-साथ, पीड़ितों को पुनर्वास और सहायता प्रदान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है ताकि वे समाज में फिर से शामिल हो सकें और ऐसे दर्दनाक अनुभवों के बाद अपने जीवन का पुनर्निर्माण कर सकें. इस संबंध में उचित मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन और उपचार आवश्यक होगा. 

इस जटिल मुद्दे को हल करने के लिए पीड़ितों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने और मानवाधिकारों के इस गंभीर उल्लंघन से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ-साथ भारत और म्यांमार दोनों के तरफ से ठोस प्रयास किये जाने की आवश्यकता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.