Author : Prateek Tripathi

Published on Sep 04, 2023 Updated 0 Hours ago

GPAI के अध्यक्ष के रूप में भारत को AI क्रांति में सबसे आगे रहने और AI तकनीक़ के सुरक्षित एवं न्यायसंगत विकास में सक्रिय भूमिका निभाने को सुनिश्चित करने की ज़रूरत है.  

भारत को मिली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर ग्लोबल पार्टनरशिप की अध्यक्षता की कमान!

नवंबर 2022 में भारत ने ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GPAI) के अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी संभाली. भारत को ये भूमिका G20 की अध्यक्षता संभालने के कुछ समय के बाद मिली. GPAI और G20 के नेतृत्व ने भारत को उभरती तकनीक़ के मोर्चे की अगुवाई करने का एक अभूतपूर्व अवसर मुहैया कराया है. भारत के पास वर्तमान में इन दोनों संगठनों के साझा टैलेंट एवं संसाधनों का पूल है और एक समन्वित एवं केंद्रित ढंग से उनका उपयोग करना समझदारी होगी.

GPAI की बनावट और ढांचा

GPAI की शुरुआत 15 सदस्यों के साथ जून 2020 में हुई थी. फिलहाल इसमें 29 सदस्य हैं जिनमें अन्य देशों के साथ अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (UK), यूरोपियन यूनियन (EU), भारत, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्राज़ील और अर्जेंटीना शामिल हैं. ये एक मल्टी स्टेकहोल्डर पहल है जिसका मक़सद “AI से जुड़ी प्राथमिकताओं पर नवीनतम रिसर्च और व्यावहारिक गतिविधियों का समर्थन करके AI को लेकर थ्योरी और प्रैक्टिस के बीच अंतर को भरने के लिए मूल्यों को साझा करने वाले विज्ञान, उद्योग, सिविल सोसायटी, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और सरकारों से जुड़े अग्रणी विशेषज्ञों को एक साथ लाना है.” इसका अस्तित्व मानवाधिकार, समावेशन, विविधता, इनोवेशन और आर्थिक विकास के सिद्धांतों पर आधारित AI के जवाबदेह विकास को प्रोत्साहन देने के लिए आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) की सिफारिशों से हुआ.

GPAI की व्यवस्था GPAI काउंसिल के द्वारा देखी जाती है जो GPAI को सामरिक दिशा मुहैया कराती है और इसके सभी बड़े फैसलों के लिए ज़िम्मेदार है जिनमें सदस्यता और हिस्सेदारी शामिल हैं. इसका काम-काज मल्टी स्टेकहोल्डर एक्सपर्ट्स ग्रुप (MEG) प्लेनरी के दौरान सालाना पेश किया जाता है जहां विज्ञान, उद्योग, सिविल सोसायटी, ट्रेड यूनियन, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और सरकारों से जुड़े 100-150 विशेषज्ञ भविष्य के सहयोग के लिए नतीजों और प्रोजेक्ट की चर्चा करते हैं. पेरिस और मॉन्ट्रियल में GPAI के दो विशेषज्ञता से जुड़े केंद्र भी हैं जो GPAI के वर्किंग ग्रुप का समर्थन करते हैं और सालाना MEG प्लेनरी आयोजित करते हैं. GPAI के चार वर्किंग ग्रुप हैं जो जवाबदेह AI, डेटा गवर्नेंस, फ्यूचर ऑफ वर्क और कमर्शियलाइज़ेशन एवं इनोवेशन की थीम पर केंद्रित हैं.

GPAI की व्यवस्था GPAI काउंसिल के द्वारा देखी जाती है जो GPAI को सामरिक दिशा मुहैया कराती है और इसके सभी बड़े फैसलों के लिए ज़िम्मेदार है जिनमें सदस्यता और हिस्सेदारी शामिल हैं.

दिसंबर 2023 में GPAI के सालाना शिखर सम्मेलन से पहले भारत GPAI के आउटपुट को लेकर जागरूकता बढ़ाने और GPAI के वर्किंग ग्रुप और सदस्य देशों के बीच जानकारी को साझा करने में बढ़ोतरी के लिए वर्किंग ग्रुप की कई बैठकों की मेज़बानी करने की योजना बना रहा है. इसके लिए विशेषज्ञों को उनके द्वारा किए जा रहे काम को पेश करने के लिए एक मंच मुहैया कराया जा रहा है.  इस तरह की पहली बैठक का आयोजन 1 जून 2023 को हुआ.

AI तकनीक़ में भारत की प्रगति और उपलब्धियां

AI तकनीक़ हाल के वर्षों में परिदृश्य में आई है. उम्मीद की जा रही है कि AI टेक्नोलॉजी 2025 तक भारत की GDP में 400-500 अरब अमेरिकी डॉलर जोड़ेगी. ये भी अनुमान है कि अगले दशक के दौरान ये वैश्विक GDP में 7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का इज़ाफ़ा करेगी. इन बदलावों को देखते हुए भारत ने इस प्रौद्योगिकी के महत्व को शुरुआत में ही समझ लिया और इसको बढ़ावा देने एवं विकसित करने के लिए भारत ने कई पहल की हैं.

AI को आगे बढ़ाने में नीति आयोग प्राथमिक संस्थान है. 2018 में नीति आयोग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए राष्ट्रीय रणनीति जारी की जिसमें उन पांच क्षेत्रों पर ध्यान दिया गया जिनके बारे में उम्मीद की गई कि वो AI के द्वारा सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने से सबसे ज़्यादा फायदे में रहेंगे. ये पांच क्षेत्र हैं- हेल्थकेयर, कृषि, शिक्षा, स्मार्ट सिटी एवं इंफ्रास्ट्रक्चर और स्मार्ट मोबिलिटी एवं परिवहन. नीति आयोग जवाबदेह AI के लिए एक रूप-रेखा (फ्रेम वर्क) पर भी काम कर रहा है जिसके लिए उसने 2022 में एक डिस्कशन पेपर जारी किया था. इस पेपर में ठोस उदाहरण के तौर पर फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके AI के रेगुलेशन पर ध्यान दिया गया है.

AI को आगे बढ़ाने में नीति आयोग प्राथमिक संस्थान है. 2018 में नीति आयोग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए राष्ट्रीय रणनीति जारी की जिसमें उन पांच क्षेत्रों पर ध्यान दिया गया जिनके बारे में उम्मीद की गई कि वो AI के द्वारा सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने से सबसे ज़्यादा फायदे में रहेंगे.[/pullquote]

सरकार ने “सामाजिक प्रभाव के लिए इन्क्लूज़न (समावेशन), इनोवेशन और अडॉप्शन (अपनाना) को बढ़ावा देने के उद्देश्य से परिवर्तनकारी तकनीकों का फायदा उठाने के लिए” AI पर नेशनल प्रोग्राम को एक मुख्य कार्यक्रम के तौर पर शुरू किया. सरकार ने राष्ट्रीय AI पोर्टल को भी शुरू किया जो कि देश में AI आधारित पहल के लिए एक भंडार घर (रिपॉज़िटरी) है. इसके साथ-साथ नेशनल डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क पॉलिसी भी शुरू की गई जिसका उद्देश्य ये सुनिश्चित करना है कि सरकार और प्राइवेट संस्थानों से हासिल गैर-व्यक्तिगत और गुप्त डेटा रिसर्च और इनोवेशन इकोसिस्टम के लिए सुरक्षित ढंग से उपलब्ध हों. ये कदम तीन AI सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (COE) और INDIAai पहल के तहत इंडिया डेटासेट प्रोग्राम के नाम से सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध सबसे बड़े डेटासेट प्रोग्राम के लॉन्च की पिछले दिनों की घोषणा के साथ उठाए गए.

प्राइवेट सेक्टर भी AI के विकास और रेगुलेशन में सक्रिय भूमिका अदा कर रहा है. मिसाल के तौर पर, नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज़ ने जून 2023 में जेनरेटिव AI के लिए अपनी गाइडलाइन जारी की जिसका मक़सद जेनरेटिव AI के विकास से जुड़े ज़िम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देना और उपलब्ध कराना है.

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की AI इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में भारत AI आधारित सामानों और सेवाओं का उत्पादन करने वाले स्टार्टअप्स के द्वारा हासिल फंडिंग के मामले में पांचवें स्थान पर है. तालिका 1 में उनमें से कुछ प्रमुख स्टार्टअप्स के बारे में बताया गया है.

तालिका 1: बड़े AI स्टार्टअप्स

नाम फंडिंग लोकेशन
वरसे 1.79 अरब अमेरिकी डॉलर बेंगलुरु
ओला इलेक्ट्रिक 866 मिलियन अमेरिकी डॉलर बेंगलुरु
फ्रैक्टल 685 मिलियन अमेरिकी डॉलर मुंबई
यूनिफोर 658 मिलियन अमेरिकी डॉलर चेन्नई

स्रोत: लेखक के द्वारा इकट्ठा डेटा

GPAI के अध्यक्ष के रूप में भारत की भूमिका

GPAI के अध्यक्ष के रूप में AI के जवाबदेह एवं समावेशी विकास और दुनिया भर में इसे अपनाने में भारत को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है. भारत के पास खुद को एक AI सुपरपावर के तौर पर स्थापित करने का सुनहरा मौका भी है. ऐसे में उसे कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देने की ज़रूरत है:

श्रम बाज़ार पर AI का असर

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कहा है कि AI और मशीन लर्निंग जैसी तकनीकों को विकसित करने का विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर महत्वपूर्ण असर पड़ेगा. इसकी मुख्य वजह ये है कि AI ऑटोमेशन कम विकसित अर्थव्यवस्थाओं के बढ़ रहे लेबर फोर्स की मदद करने के बदले संभावित रूप से उसकी जगह ले सकता है और इस तरह अभूतपूर्व ढंग से श्रम बाज़ार में बदलाव होने की संभावना है. इस तरह विकसित अर्थव्यवस्थाओं में AI ऑटोमेशन की स्थापना कम विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तरफ निवेश ले जा सकता है जो विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच की दूरी को और बढ़ाएगा.

ग्लोबल साउथ से ज़्यादा सदस्यों को शामिल करने की दिलचस्पी जताने और 2022 के टोक्यो समिट के दौरान अर्जेंटीना एवं सेनेगल जैसे नए सदस्यों का स्वागत करने के बावजूद GPAI ने इस दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.

वैसे तो फ्यूचर ऑफ वर्क की थीम पर आधारित GPAI के एक वर्किंग ग्रुप ने काम-काज की जगह पर AI के इस्तेमाल को गौर से देखने के लिए कई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं लेकिन इसने ख़ास तौर पर इस मुद्दे का समाधान नहीं किया है. भारत इस मामले में पहल कर सकता है. अपनी विशाल श्रम शक्ति को देखते हुए भारत बाज़ार की तेज़ी से बदलती ज़रूरतों का मुकाबला करने के लिए श्रम कानून से जुड़े नए मानकों को विकसित कर सकता है. व्यापक रूप से नौकरी ख़त्म होने के ख़तरे को देखते हुए भारत को सामाजिक सुरक्षा का जाल विकसित करने की आवश्यकता है ताकि उन लोगों की मदद की जा सके जिनकी नौकरी चली गई है.

ग्लोबल साउथ के द्वारा AI का इस्तेमाल

29 GPAI सदस्यों में से अर्जेंटीना, ब्राज़ील, भारत और सेनेगल- ये चार देश ही ऐसे हैं जिनका संबंध ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) से है. भारत और चीन को छोड़कर GPAI के वर्किंग ग्रुप के साथ-साथ AI गवर्नेंस से जुड़े दूसरे वैश्विक मंचों में भी ग्लोबल साउथ की नुमाइंदगी कम है. भारत को इस दूरी को भरने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि कम विकसित अर्थव्यवस्थाओं को भी इस तकनीकी बदलाव का फायदा मिले. उसे ये भी सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि कम विकसित अर्थव्यवस्थाएं “AI उपनिवेशवाद” का शिकार नहीं बनें. ग्लोबल साउथ से ज़्यादा सदस्यों को शामिल करने की दिलचस्पी जताने और 2022 के टोक्यो समिट के दौरान अर्जेंटीना एवं सेनेगल जैसे नए सदस्यों का स्वागत करने के बावजूद GPAI ने इस दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. दुनिया में आर्थिक रूप से विकसित देश ही मुख्य रूप से ग्लोबल AI गवर्नेंस को तय कर रहे हैं और भारत को ये सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि भविष्य में ऐसी स्थिति न रहे. भारत ने AI के लिए अपनी राष्ट्रीय रणनीति में “सबके लिए AI” के लक्ष्य को शामिल करके अपनी भावनाओं को पहले ही व्यक्त कर दिया है.

गवर्नेंस और AI का जवाबदेह विकास

चैट GPT जैसे सॉफ्टवेयर के आने से AI टेक्नोलॉजी के संभावित उपयोग और इसकी सीमा को लेकर बातचीत को बढ़ावा मिला है. वैसे तो चैट GPT कई फायदे पेश करता है लेकिन ये भी साफ है कि इसके ख़तरे से बचाव के लिए कुछ उपाय करने की आवश्यकता है. चैट GPT जैसे एप्लिकेशन का इस्तेमाल हाल के दिनों में गलत पहचान, डेटा की चोरी और मालवेयर अटैक जैसे कई तरह के साइबर अपराधों को अंजाम देने के लिए किया गया है. अंतरिक्ष और परमाणु प्रौद्योगिकी को लेकर जहां कई तरह के बाध्यकारी समझौते हैं वहीं जब बात साइबर स्पेस और AI की होती है तो ऐसा कोई समझौता नहीं है.

GPAI के प्रमुख के तौर पर भारत के पास मौका है कि वो ऐसे एक समझौते को स्थापित करने का नेतृत्व करे जो इस टेक्नोलॉजी के गलत इस्तेमाल को सीमित करे और इसका सुरक्षित एवं समावेशी विकास सुनिश्चित करे. इस उद्देश्य के लिए भारत को समान विचार वाले साझेदारों जैसे कि अमेरिका, कनाडा और EU के साथ तालमेल करने की आवश्यकता है. भारत ने इस दिशा में एक कदम उठाया था जब उसने GPAI के टोक्यो शिखर सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों से अनुरोध किया कि यूज़र को नुकसान से बचाने और इंटरनेट एवं AI की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डेटा गवर्नेंस पर नियमों एवं गाइडलाइन की एक साझा रूप-रेखा पर मिलकर काम किया जाए.

निष्कर्ष

सॉयल एनेलिसिस जैसे खेती के काम से लेकर बेहतर हेल्थ डायग्नोस्टिक जैसे मेडिकल क्षेत्र में इस्तेमाल और सॉफ्टवेयर के ज़रिए कलाकृतियां बनाने तक AI टेक्नोलॉजी और इनोवेशन में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने के कगार पर है. भारत को इस क्रांति में सबसे आगे रहने और AI तकनीक़ के सुरक्षित एवं न्यायसंगत विकास में सक्रिय भूमिका निभाने को सुनिश्चित करने की ज़रूरत है.


प्रतीक त्रिपाठी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में प्रोबेशनरी रिसर्च असिस्टेंट हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.