Author : Navdeep Suri

Published on Nov 12, 2021 Updated 13 Days ago

भारत पश्चिमी एशिया के साथ विकसित हो रहे संबंधों का लाभ अरब दुनिया के रास्ते मुंबई से यूरोप तक मल्टी-मॉडल लिंक्स का विस्तार करने के लिए कर सकता है.

भारत-यूरोप व्यापार गलियारा? एक उभरते पश्चिम एशिया क्वॉड का भू-आर्थिक विस्तार!

18 अक्टूबर को भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के विदेश मंत्रियों के बीच हुई वर्चुअल बैठक ने भारत के पश्चिम एशिया के साथ और उसके आगे के ताल्लुकात में एक महत्वपूर्ण नया आयाम जोड़ा है. सबसे पहले तो बैठक का समय बहुत अहम है. यह बैठक ऐसे समय में हुई जब भारतीय विदेश मंत्री डॉ एस.जयशंकर इज़राइल के आधिकारिक दौरे पर थे और फोटोग्राफ्स में उन्हें इज़राइल के वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री येर लापिद (Yair Lapid) के साथ खड़े हुए दिखाया गया था जबकि अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एंटनी ब्लिंकन (Antony Blinken) और यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्लाह बिन जायद अल नाहयान (Sheikh Addullah bin Zayed al Nahyan) इसमें वर्चुअली जुड़े थे. उतना ही अहम यह भी है कि यह बातचीत, 13 अक्टूबर को वॉशिंगटन डीसी में आयोजित यूएस-यूएई-इज़राइल की त्रिपक्षीय बैठक के चंद दिनों बाद हुई थी.

इस फोर-वे मीटिंग का प्रारंभिक अध्ययन यह संकेत देता है कि इसका प्रमुख फोकस उन देशों के बीच आर्थिक और व्यावसायिक रिश्तों को बढ़ावा देना है जो विभिन्न अहम क्षेत्रीय मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण में समाभिरूपता देखते हैं. इसमें ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करने को लेकर विशेष ज़िक्र है, सक्रिय फॉलोअप पर ज़ोर दिया गया है और इस बात की ओर संकेत है कि दुबई एक्सपो के इतर भी चारों मंत्रियों के बीच मुलाकात हो सकती है.

इस फोर-वे मीटिंग का प्रारंभिक अध्ययन यह संकेत देता है कि इसका प्रमुख फोकस उन देशों के बीच आर्थिक और व्यावसायिक रिश्तों को बढ़ावा देना है जो विभिन्न अहम क्षेत्रीय मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण में समाभिरूपता देखते हैं.

लेकिन यह एक अधिक महत्वाकांक्षी आयाम को भी खोलता है. प्रोफेसर माइकल टैनचम (Michael Tanchum) ने हाल ही में भारत-अरबमेड (ArabMed) गलियारे की संभावनाओं के बारे में लिखा है जो क्षेत्र की उभरती भूराजनीति को फायदा पहुंचा सकती है जिससे ग्रीक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट ऑफ परेयस के ज़रिए मुंबई और यूरोपियन मुख्य भू-भाग के बीच मल्टी मॉडल लिंक निर्मित किया जा सकता है.

पहली बार पढ़ने पर, प्रस्तावित भारत-यूएई फूड कॉरिडोर और ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल्स सेक्टर में सहयोग को लेकर उनके कुछ अनुमान बेहद आशावादी नज़र आये. प्रारंभिक ऐलान और मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित उनके द्वारा किये गए बहिर्वेशन से इन क्षेत्रों की ज़मीनी हक़ीक़त काफी भिन्न रही हैं. हालांकि इससे, भारत के साथ यूरोप को जोड़ने वाले संभावित नये व्यापार गलियारे पर उनकी ज़रूरी थीसिस की अहमियत कम नहीं हुई है और यह उपयोगी होगा कि हाल के घटनाक्रमों पर नज़र डाला जाए जो इसे एक वास्तविकता बना सकती है.

हालिया घटनाक्रम

  1. यूएई का इटिहाद रेल (Etihad Rail) ने हाल में 139 किमी नये ट्रैक का काम पूरा किया है जो यूएई को Al-Ghuwaifat पर सऊदी अरब रेलवे (SAR) नेटवर्क से जोड़ता है. यह महत्वाकांक्षी जीसीसी रेल नेटवर्क का हिस्सा है जिस पर काम चल रहा है और उम्मीद है कि 2024 तक इसे चालू कर दिया जाएगा. सऊदी-यूएई सीमा पर Al-Ghuwaifat से Haradh तक की कड़ी इस परियोजना के स्टेज 3 में शामिल की गई है.
  2. दक्षिणपूर्वी सऊदी अरब के Haradh से एक 1392 किमी लंबी सऊदी उत्तर-दक्षिण लाइन अल-खर्ज (Al-Kharj), रियाद, बुरैदाह (Buraidah) से होते हुए सऊदी-जॉर्डन सीमा पर अल-हदीथा (Al-Haditha) तक पहले ही स्थापित है.
  3. दुबई में कॉन्सुल्स जनरल ऑफ इंडिया और इज़राइल ने अक्टूबर 2021 में भारत-इज़राइल-यूएई बिज़नेस मीट की मेज़बानी करने की पहल भी की थी. और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ इंडो-इज़राइल चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स (IFIICC) दुबई में अपने अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय में लॉन्च हुआ है.
  1. अल-हदीथा (Al-Haditha) से इज़राइल के हाइफा स्थित प्रमुख पोर्ट तक एक 300 किमी लंबे विस्तार की ज़रूरत है, जिसमें से 70 किमी सेक्शन इज़राइल-जॉर्डन सीमा के नज़दीक Beit She’an से हाइफा तक पहले से ही क्रियाशील है. बाकि का सेक्शन जॉर्डन से होकर गुज़रेगा, जो उभरते गलियारे का अहम लाभार्थी हो सकता है. जॉर्डन का इज़राइल के साथ कूटनीतिक संबंध है, और इस अंतिम विस्तार को बढ़ाने में अमेरिका की रुचि हो सकती है. यह देखना बाकि है कि क्या यूएई, जिसके सऊदी अरब और जॉर्डन दोनों के साथ नज़दीकी संबंध हैं, इस सेक्शन के लिए ज़रूरी पूंजी उपलब्ध कराने में आगे आयेगा.
  1. चीन ने पहले ही इस परियोजना में अपनी भूमिका बना ली है. चीन के शंघाई अंतरराष्ट्रीय पोर्ट समूह ने 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश हाइफा में बे पोर्ट (Bay Port) कंटेनर टर्मिनल की स्थापना के लिए किया है ताकि कुछ सबसे बड़े जहाजों को हैंडल किया जा सके. उन्होंने अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के हिस्से के रूप में मेडिटेरेनियन पीस रेलवे प्रोजेक्ट के सामने पर्शियन गल्फ की अवधारणा को भी रखा है. इसके साथ ही, मध्य यूरोप और उससे आगे तक सालाना 80,000 कार्गो को ले जाने के लिए चीन सरकार की चाइना ओशन शिपिंग कं. (COSCO) का ग्रीक रेलवे कंपनी परेयस यूरोप एशिया रेल लॉजिस्टिक्ट (PEARL) में 60 प्रतिशत शेयर है.
  1. डीपी वर्ल्ड (DPW), दुबई की वैश्विक लॉजिस्टिक्स कंपनी भी इस गलियारे में अहम प्लेयर हो सकता है. वह विशाल जेबेल अली पोर्ट (Jebel Ali port) और दुबई में फ्री ज़ोन का मालिक है और उसे संचालित करता है. अब्राहम समझौते के दृष्टिगत, उसने हाइफा पोर्ट का आगे विस्तार करने में निवेश के लिए इज़राइली बैंक ल्यूमी (Leumi) के साथ भी मेमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं. यह ध्यान देने वाली बात है कि डीपीडब्ल्यू और चीनी शिपिंग के दिग्गजों के बीच संबंध प्रभावित नहीं हुए हैं. डीपीडब्ल्यू ने Djibouti पोर्ट में डोरालेह (Doraleh) कंटेनर टर्मिनल में 485 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था, लेकिन सरकार ने उसे तब अनौपचारिक रूप से बेदखल कर दिया जब चाइना मर्चेन्ट्स पोर्ट होल्डिंग कं. ने पोर्ट की होल्डिंग कंपनी में 23.5 प्रतिशत की हिस्सेदारी ले ली. DPW अदालत में गई और अब तक उसके पक्ष में सात फैसले हुए हैं जिसमें सबसे हाल ही में जुलाई 2021 में लंदन कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में एक मध्यस्थता अदालत का फैसला भी शामिल है जिसने Djibouti सरकार/ चीनी के कब्ज़े को गैरकानूनी करार दिया है.
  1. डीपी वर्ल्ड भारत का एंगल भी शामिल करता है क्योंकि वो भारत के पश्चिमी तट के पोर्ट्स मुंद्रा, न्हावा शेवा और कोच्चि में प्रमुख कंटेनर टर्मिनल्स को संचालित करता है. भारत के नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के साथ पार्टनरशिप में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश फंड स्थापित कर, डीपी वर्ल्ड ने एक एकीकृत रसद और आपूर्ति चेन कंपनी के तौर पर उभरने के लिए 2019 से भारत में विभिन्न प्रमुख निवेश किये हैं. इनमें KRIBHCO के रेल संचालन को लेकर कॉन्टिनेंटल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन में प्रमुख हिस्सेदारी और ट्रांसवर्ल्ड फीडर्स का तटीय जहाजरानी संचालन शामिल है. वह मुंबई में अपने न्हावा शेवा टर्मिनल के नज़दीक एक प्रमुख विशेष आर्थिक ज़ोन का निर्माण भी कर रहे हैं जो निर्यात को सुगम बना सकता है.
  2. इज़राइल ने रेल नेटवर्क को लेकर अपने उत्साह के संकेत दिये हैं और सबसे पहले 2017 में भूतपूर्व परिवहन मंत्री Yisrael Katz ने इस पर विचार रखे थे और जुलाई 2020 में अपने अबु धाबी के दौरे में, क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देने और खाड़ी और मेडिटेरेनियन के बीच व्यापार और आर्थिक संबंधों को मज़बूत बनाने के उपाय के रूप में, इसे दोहराया था. इसके बाद, इज़राइल के परिवहन मंत्रालय ने मार्च 2021 में एलान किया था कि रेलवे परियोजना आधिकारिक रूप से नेशनल प्लानिंग कमीशन में आगे बढ़ रही है.
  3. भारत, यूएई और इज़राइल का त्रिपक्षीय संबंध औपचारिक संस्थागत ढांचे के बगैर पहले से ही आकार ले रहा है. Rony Yedidia-Clein, दिल्ली में इज़राइल के डिप्टी चीफ ऑफ मिशन ने 20 अक्टूबर को इस बात का इशारा किया कि दुबई एक्सपो के इतर तीनों विदेश मंत्रियों के बीच एक बैठक जल्द हो सकती है. इस बीच, दुबई में कॉन्सुल्स जनरल ऑफ इंडिया और इज़राइल ने अक्टूबर 2021 में भारत-इज़राइल-यूएई बिज़नेस मीट की मेज़बानी करने की पहल भी की थी. और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ इंडो-इज़राइल चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स (IFIICC) दुबई में अपने अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय में लॉन्च हुआ है. यह खुद को एक अभिनव वैश्विक संगठन बताता है जो विश्वसनीय सतत रणनीतिक साझेदारों को सशक्त करने और ‘भारत, इज़राइल के प्रवासियों और विश्व समुदाय के बीच नवाचार, व्यापार, निवेश, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और गुडविल को प्रोत्साहित करने के मिशन के साथ प्रतिबद्ध है.
  4. ऐसे भी संकेत हैं कि अमेरिका रियाद से तेल अवीव के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ने का अनुरोध कर रहा है, और फलस्तीन के मोर्चे पर मिली कुछ प्रगति ऐसा होने में उत्प्रेरक साबित हो सकता है.

आगे की राह

इसमें शायद ही कोई संदेह है कि पश्चिम एशिया में भूराजनीति का परिदृश्य तेज़ी से बदल रहा है, अगर भारत के साथ यूरोप को जोड़ने वाले मल्टी-मॉडल गलियारा वास्तविकता बन रहा है तो विकट चुनौतियों को दूर करना ही होगा. राजनीतिक स्तर पर, सऊदी अरब को इज़राइल जाने वाली शिपमेंट्स को अपने उत्तर-दक्षिण रेलवे से गुज़रने की अनुमति देने पर हामी भरनी होगी.  मार्च 2018 में  एक छोटा लेकिन प्रतिकात्मक कदम उठाया गया था, जब एयर इंडिया के दिल्ली-तेल अवीव के अधिष्ठापन उड़ान को सऊदी अरब के ऊपर से उड़ने की अनुमति दी गई थी. इसके बाद काफी कुछ हुआ है जिसमें अब्राहम समझौता और इज़राइल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री नेतन्याहू का सऊदी अरब का अनुमानित गुप्त दौरा शामिल है. ऐसे भी संकेत हैं कि अमेरिका रियाद से तेल अवीव के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ने का अनुरोध कर रहा है, और फलस्तीन के मोर्चे पर मिली कुछ प्रगति ऐसा होने में उत्प्रेरक साबित हो सकता है. जॉर्डन प्रस्तावित रेलवे गलियारे पर टिप्पणी करने में हिचकिचा रहा है लेकिन एक बार जॉर्डन के सेक्शन में फंडिंग को लेकर ज़्यादा स्पष्टता आने पर वो एक व्यावहारिक रुख अपना सकता है. और मिस्र को इस आश्वासन की ज़रूरत होगी कि स्वेज नहर के राजस्व पर इसका बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा.

माइकल टैनचम (Michael Tanchum) ने यह हिसाब लगाया है कि मल्टी-मॉडल लिंक के ज़रिए भारत-अरबमेड कॉरिडोर मुंबई से परेयस के बीच शिपिंग का समय वर्तमान के 17 दिनों से घटाकर 10 दिन करेगा. यह अपने आप में एक आकर्षक प्रस्ताव है, लेकिन इस तरह की प्रकृति की परियोजना की आर्थिक क्षमता काफी हद तक माल परिमाण पर निर्भर होगी. यहीं पर भारत की चतुर विदेश नीति इस क्षेत्र में चलती है और उसकी उभरती व्यापार नीति एक अहम भूमिका निभा सकती है. सालों तक अपने पैर घसीटने के बाद, भारत ने अब यूएई, इज़राइल और यूरोपियन यूनियन के साथ अपने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) बातचीत को फास्ट ट्रैक पर रख दिया है. वर्तमान वर्ष में भारत का विदेश व्यापार 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर के पार हो जाएगा और ईयू हमारे सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक बना हुआ है. फिलहाल विश्व की बड़ी कंपनियों को भारत में निर्माण को लेकर आकर्षित करने के लिए, चीन पर निर्भरता कम कर और भारत के अपने परफॉर्मेन्स लिंक्ड इंसेक्टिव्स (PLIs) कार्यक्रम को जोड़ते हुए कुछ निर्माता संयंत्रों को भारत में लाकर लचीली आपूर्ति चेन बनाने का काम किया जा रहा है, जो इन ट्रेंड्स को मज़बूत गतिशक्ति देगा.

भारत के पास इस परियोजना को लेकर दीर्घकालिक, रणनीतिक नज़रिया अपनाने का मौका है. IRCON जैसी कंपनियां इस धारणा के साथ सऊदी अरब और जॉर्डन में परियोजना के अधूरे कार्य का हिस्सा बनने के लिए उग्रता के साथ बोली लगा सकती है कि फंडिंग स्थानीय या अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से की जाएगी.

भारत के पास इस परियोजना को लेकर दीर्घकालिक, रणनीतिक नज़रिया अपनाने का मौका है. IRCON जैसी कंपनियां इस धारणा के साथ सऊदी अरब और जॉर्डन में परियोजना के अधूरे कार्य का हिस्सा बनने के लिए उग्रता के साथ बोली लगा सकती है कि फंडिंग स्थानीय या अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से की जाएगी. स्थापित शिपिंग रूट्स की तुलना में प्रस्तावित भारत-अरबमेड गलियारे की क्षमता, प्रभाव और व्यापार संभावनाओं को जांचने के लिए अगले कुछ महीनों तक इसका विस्तार से अध्ययन करना एक शुरुआती बिंदु हो सकता है, और पश्चिम एशिया और यूरोप में आपूर्ति चेन के भीतर ज़्यादा प्रभावशाली तरीके से जुड़ने के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष फायदों को मापने का एक प्रयास.

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