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चूंकि बांग्लादेश ने हसीना सरकार के जाने के बाद अपनी विदेश नीति में बदलाव किया है, ऐसे में भारत के सामने चुनौती बढ़ गई है क्योंकि एक दोस्त संदिग्ध हो गया है और पाकिस्तान वहां पैर जमा रहा है.
Image Source: Getty
बांग्लादेश और भारत कई तरह से जुड़े हुए हैं जो कि दोनों देशों की सरकारों के बीच महज़ द्विपक्षीय संबंध से आगे तक है. दोनों देश अपने एक जैसे इतिहास, संस्कृति, ज़मीन, सीमा पार नदियों और नज़दीकी समुद्री क्षेत्र के माध्यम से मज़बूत बंधन साझा करते हैं. वैसे तो राजनीतिक बदलाव के बाद भी एक-दूसरे पर ये निर्भरता जारी है, फिर भी शासन व्यवस्था में सहायता के ज़रिए आपसी प्रगति के लिए इसका निश्चित तौर पर लाभ उठाया जा सकता है. ये बांग्लादेश में शेख़ हसीना के नेतृत्व वाले अतीत के अवामी लीग प्रशासन के साथ भारतीय सरकार की साझेदारी की एक स्पष्ट विशेषता थी. ये न केवल सहयोग के बढ़ते क्षेत्रों- जिसमें कनेक्टिविटी, सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य में तालमेल तक शामिल है- से पता चलता था बल्कि तीस्ता जल बंटवारा विवाद जैसे पुराने विवादास्पद मुद्दों के बावजूद कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने की उनकी क्षमता से भी दिखता था.
चूंकि आठ महीने पुरानी अनुभवहीन अंतरिम सरकार बांग्लादेश की मौजूदा आर्थिक एवं राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रही है, ऐसे में उसकी विदेश नीति अपने लिए वैधता हासिल करने को लेकर संघर्ष के बीच भारत के बारे में अनिश्चितता दिखाती है.
इस तरह इस साझेदारी के एक दशक के दौरान भारत-बांग्लादेश संबंध में लगभग स्थायी दोस्ती की शुरुआत हुई जिसने भारत के द्वारा अपनी ‘पड़ोसी सर्वप्रथम’ नीति को आगे रखकर ‘एक्ट ईस्ट’ नीति की आकांक्षा के लिए ठोस बुनियाद प्रदान की. लेकिन अगस्त 2024 में बांग्लादेश में हुई जन क्रांति और उसके बाद हसीना के द्वारा भारत में पनाह लेने और बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की स्थापना ने इस साझेदारी को अचानक रोक दिया. चूंकि आठ महीने पुरानी अनुभवहीन अंतरिम सरकार बांग्लादेश की मौजूदा आर्थिक एवं राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रही है, ऐसे में उसकी विदेश नीति अपने लिए वैधता हासिल करने को लेकर संघर्ष के बीच भारत के बारे में अनिश्चितता दिखाती है.
मुख्य सलाहकार यानी प्रधानमंत्री के बराबर की भूमिका के रूप में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार की कानूनी वैधता को लेकर 2011 के संवैधानिक संशोधन अधिनियम की वजह से बार-बार सवाल उठाए गए हैं. 2011 के संशोधन के ज़रिए बांग्लादेश में गैर-दलीय कार्यकारी सरकार की प्रणाली को ख़त्म कर दिया गया था. वैसे तो बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट के हाई कोर्ट डिवीज़न ने पिछले दिनों ‘संविधान के पंद्रहवें संशोधन को आंशिक रूप से रद्द कर दिया था और गैर-दलीय, तटस्थ कार्यकारी सरकार की प्रणाली को बहाल कर दिया था’ जिसकी वजह से यूनुस प्रशासन को कानूनी मान्यता मिल गई लेकिन ये एक बिना चुनी हुई सरकार बनी हुई है, वो भी एक ऐसे देश में जो लोकतंत्र को फिर से ज़िंदा करने के लिए जूझ रहा है. इस तरह मौजूदा सरकार को लोगों के समर्थन का प्राथमिक स्रोत भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन बना हुआ है जिसने हसीना के देश छोड़ने के बाद उसे सत्ता के लिए मनोनीत किया था.
इस आंदोलन की शुरुआत बांग्लादेश में ‘मुक्ति युद्ध’ के वंशजों के लिए नौकरी में आरक्षण के ख़िलाफ़ छात्रों के प्रदर्शन से हुई थी. जब सरकार ने छात्रों के प्रदर्शन के ख़िलाफ़ हिंसक कार्रवाई की तो ये आंदोलन सरकार विरोधी बन गया. जैसे-जैसे अवामी लीग सरकार के ख़िलाफ़ हताशा बढ़ती गई, वैसे-वैसे प्रदर्शन पूरे देश में तेज़ी से फैलता गया जिसे राजनीतिक दलों और समूहों ने बढ़ाया. इस तरह अपने पक्ष में हालात का फायदा उठाने के लिए अवामी लीग विरोधी नैरेटिव के ज़रिए लोगों के असंतोष को और बढ़ाया गया. चूंकि भारत पूर्व की हसीना सरकार का करीबी सहयोगी था, जिसने लगातार सत्ता में उसकी वापसी का समर्थन किया, इसलिए अवामी लीग विरोधी भावना ने इस प्रदर्शन को भारत विरोध में बदल दिया.
इस आंदोलन की शुरुआत बांग्लादेश में ‘मुक्ति युद्ध’ के वंशजों के लिए नौकरी में आरक्षण के ख़िलाफ़ छात्रों के प्रदर्शन से हुई थी. जब सरकार ने छात्रों के प्रदर्शन के ख़िलाफ़ हिंसक कार्रवाई की तो ये आंदोलन सरकार विरोधी बन गया.
इसी के अनुसार सत्ता में आने के बाद अंतरिम सरकार लोगों का समर्थन पाने की तलाश में ख़ुद को अवामी लीग की विरासत और संपर्क से दूर कर रही है. इसकी वजह से अंतरिम सरकार ने 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस (बंगबंधु शेख़ मुजीबुर रहमान की हत्या की याद में) को रद्द कर दिया, बांग्लादेश की मुद्रा पर बंगबंधु के चेहरे की जगह छात्रों की क्रांति की तस्वीर लगा दी और बंगबंधु के 32 धानमंडी वाले घर में तोड़फोड़ एवं राष्ट्रीय चित्रों को बिगाड़ने के लिए हसीना के ‘भड़काऊ’ भाषणों को ज़िम्मेदार ठहराया. ये तो महज़ कुछ उदाहरण हैं. अंतरिम सरकार ने अपनी विदेश नीति में भी यही नज़रिया दिखाया जिसकी वजह से भारत-बांग्लादेश संबंधों में भी दूरी आ गई है. भारत से हसीना के लंबित प्रत्यर्पण और बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले की अनेक ख़बरों जैसे कई मुद्दों ने इस अनबन को बढ़ाया है.
वैसे तो यूनूस ने पिछले दिनों भरोसा दिया कि ‘हमारे बुनियादी संबंधों (भारत के साथ) में कोई समस्या नहीं है’ लेकिन उनकी सरकार ने ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के मक़सद से बांग्लादेश में घरेलू अराजकता के लिए बार-बार भारत पर आरोप लगाए हैं. शासन चलाने में अप्रशिक्षित सलाहकारों की परिषद और प्रमुख मंत्री के रूप में छात्र नेताओं के काबिज़ होने के साथ बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में राजनीतिक परिपक्वता की कमी है. ये पिछले साल अक्टूबर में हिलसा मछली की बिक्री को लेकर सलाहकारों में आम राय की कमी को देखकर पूरी तरह से स्पष्ट हो गया.
बांग्लादेश अपने विकास और रहन-सहन के लिए विदेशी पैसे पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. भारत उसका दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) के 15 बड़े स्रोतों में से एक है और 8 अरब अमेरिकी डॉलर के विकास से जुड़े निवेश के साथ एक महत्वपूर्ण विकास भागीदार है.
अवामी लीग की हिलसा कूटनीति को छोड़ते हुए बांग्लादेश के मत्स्यपालन और पशुधन मंत्रालय की सलाहकार फरीदा अख़्तर ने हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहारों में से एक दुर्गा पूजा से पहले भारत को हिलसा मछली की बिक्री पर रोक लगा दी. उन्होंने दलील दी कि स्थानीय लोगों के लिए पर्याप्त हिलसा मछली नहीं है. इस फैसले ने भारत विरोधी भावनाओं का तुष्टीकरण किया लेकिन इसके पीछे राजनीतिक दूरदर्शिता की कमी थी. इसने अप्रत्यक्ष रूप से सीमा पार हिंदुओं के जश्न को प्रभावित किया और इस तरह हिंदू अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने में अंतरिम सरकार की प्रतिबद्धता को लेकर संदेह पैदा किया. इससे अंतरिम सरकार को लेकर भारत की सद्भावना और भी कमज़ोर हुई. घरेलू स्तर पर इस फैसले ने भारत को बिक्री पर रोक से बांग्लादेश में मछली पालन की वैल्यू चेन को आमदनी में होने वाले महत्वपूर्ण नुकसान पर विचार नहीं किया. बाद में इस फैसले को पलट दिया गया और वाणिज्य मंत्रालय के सलाहकार सलेहुद्दीन अहमद ने आने वाली दुर्गा पूजा के अवसर पर विशेष परिस्थितियों को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया और आश्वासन दिया कि भारत के लिए जो मछली आवंटित की गई है वो चांदपुर (बांग्लादेश) में एक दिन में पकड़ी जाने वाली मछली के बराबर है.
ये दिखाता है कि जहां अंतरिम सरकार ने अभी तक भारत को लेकर अपनी नीति नहीं तैयार की है, वहीं बांग्लादेश का राष्ट्रीय हित कुछ और चाहता है. बांग्लादेश अपने विकास और रहन-सहन के लिए विदेशी पैसे पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. भारत उसका दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) के 15 बड़े स्रोतों में से एक है और 8 अरब अमेरिकी डॉलर के विकास से जुड़े निवेश के साथ एक महत्वपूर्ण विकास भागीदार है. लेकिन मौजूदा परिस्थितियों के तहत सीमा बंद होने, कस्टम क्लीयरेंस से जुड़े मुद्दों और सुरक्षा निगरानी में बढ़ोतरी के कारण दोनों देशों के बीच सामानों को ले जाने में बाधा की वजह से व्यापार में कमी आई है. इसके अलावा दोनों देशों के विकास के लिए आवश्यक संपर्क परियोजनाओं को भी रोक दिया गया है और सार्वजनिक परिवहन पिछले साल जून से रुका हुआ है. इससे न केवल वाणिज्यिक झटके लगे हैं बल्कि इसने लोगों के स्तर पर संपर्क को भी प्रभावित किया है. पिछले कुछ महीनों के दौरान इलाज के लिए भारत आने वाले बांग्लादेश के लोगों की संख्या में भी स्पष्ट रूप से कमी आई है.
वर्तमान भारत-बांग्लादेश संबंधों में ‘आपसी संवेदनशीलता’, जो कि एक स्वस्थ द्विपक्षीय संबंधों के लिए ज़रूरी है, की कमी साफ तौर पर दिख रही है. अंतरिम सरकार ने जहां बार-बार भारत पर आरोप लगाया है कि ‘शेख़ हसीना को बोलने’ की अनुमति देकर वो ‘अपने क्षेत्र का इस्तेमाल बांग्लादेश में अस्थिरता पैदा करने’ के लिए कर रहा है वहीं उसने ख़ुद ऐतिहासिक रूप से अपने दुश्मन पाकिस्तान के साथ संबंध बनाने पर ध्यान दिया है.
अवामी लीग के पारंपरिक रवैये से काफी हटकर अपने छोटे से कार्यकाल के दौरान मोहम्मद यूनुस ने द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के उद्देश्य से चर्चा के लिए दो बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ से मुलाक़ात की है. इस बातचीत के अनुसार सीधी विमान सेवा शुरू करने की योजना है और बांग्लादेश ने पाकिस्तानी यात्रियों के लिए वीज़ा की पाबंदियां हटा ली हैं. इसकी प्रतिक्रिया में पाकिस्तान ने बांग्लादेशियों के लिए वीज़ा फीस माफ कर दिया है. इसके अलावा 1971 के बाद पहली बार दुबई के रास्ते कराची बंदरगाह से दो कार्गो जहाज़ चटगांव बंदरगाह पर पहुंचे. ये जहाज़ अपने साथ चीनी और आलू लेकर पहुंचे. ये ऐसे सामान हैं जिसकी आपूर्ति अभी तक भारत के द्वारा की जाती थी. बांग्लादेश ने पाकिस्तानी जहाज़ों को अपने मोंगला बंदरगाह पर रुकने की अनुमति भी दी है जहां एक टर्मिनल भारत का है. हसीना ने चटगांव और मोंगला बंदरगाहों का इस्तेमाल भारत को करने की पेशकश की थी ताकि भारत ज़मीन से घिरे अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र के संपर्क में सुधार कर सके लेकिन मौजूदा परिस्थितियों के तहत उसकी विकास से जुड़ी गतिविधियां रुकी हुई हैं. इसके विपरीत बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच व्यापार में लगभग 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और दोनों देश व्यापार में विविधता लाना चाहते हैं. उन्होंने एक साझा व्यवसाय परिषद स्थापित करने के लिए 13 जनवरी को समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए.
रक्षा सहयोग में भी बढ़ोतरी हुई है. क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता और साझा सैन्य अभ्यासों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं हथियारों के व्यापार के अवसरों पर चर्चा करने के लिए दोनों देशों के वरिष्ठ सेना अधिकारियों ने रावलपिंडी में मुलाक़ात की. 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान ‘दुश्मन’ रही पाकिस्तान की सेना अब दोनों देशों को ‘बंधु देश’ के रूप में परिभाषित करती है. ख़बरों के मुताबिक बांग्लादेश ने पाकिस्तान से JG-17 थंडर लड़ाकू विमान हासिल करने में दिलचस्पी दिखाई है जिसे पाकिस्तान ने चीन के साथ मिलकर विकसित किया था ताकि सैन्य आधुनिकीकरण के उद्देश्य से उसके ‘फोर्सेज़ गोल 2030’ कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जा सके.
वैसे तो इस तरह का घटनाक्रम भारत के लिए चिंताजनक है लेकिन इससे भी ज़्यादा परेशान करने वाली बात है सत्ता परिवर्तन के बाद बांग्लादेश के इतिहास को नया रूप देने का एजेंडा. इतिहास की नई किताबों में मुजीब की कविताओं, भाषणों और लेखों को हटा दिया गया है
वैसे तो इस तरह का घटनाक्रम भारत के लिए चिंताजनक है लेकिन इससे भी ज़्यादा परेशान करने वाली बात है सत्ता परिवर्तन के बाद बांग्लादेश के इतिहास को नया रूप देने का एजेंडा. इतिहास की नई किताबों में मुजीब की कविताओं, भाषणों और लेखों को हटा दिया गया है. इसकी जगह 1971 में सार्वजनिक रूप से बांग्लादेश की पहली स्वतंत्रता की घोषणा करने में पूर्व सेना प्रमुख ज़ियाउर रहमान की भूमिका पर ज़ोर दिया गया है. हसीना की तस्वीरों को हटा दिया गया है जबकि उनकी सरकार को गिराने वाले 2024 के विरोध प्रदर्शनों का महिमामंडन किया गया है. बांग्लादेश को आज़ादी दिलाने वाली घटनाओं को नए सिरे से परिभाषित करके और आज़ाद बांग्लादेश के निर्माता के रूप में मुजीब की विरासत को कम महत्व देकर आने वाली पीढ़ियों के लिए ‘मुक्ति युद्ध’ में भारत की भूमिका को गंभीर रूप से कमज़ोर किया जा रहा है. इस तरह द्विपक्षीय संबंधों के एक बुनियादी स्तंभ को नष्ट किया जा रहा है.
हाल के दिनों में तनाव के बावजूद भारत और बांग्लादेश के बीच काम-काजी द्विपक्षीय संबंध बहाल करना महत्वपूर्ण बना हुआ है. ये एक ऐसा सच है जिसे यूनुस ने पिछले दिनों बीबीसी बांग्ला के साथ इंटरव्यू में स्वीकार किया था. उन्होंने कहा कि दोनों देश ‘ऐतिहासिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से’ जुड़े हुए हैं और उनका संबंध ‘बुनियादी तौर पर मज़बूत’ है. लेकिन उनकी ये समझ एक अधिक यथार्थवादी विदेश नीति से समर्थित होनी चाहिए क्योंकि पाकिस्तान के साथ भले ही बांग्लादेश अपने रिश्ते मज़बूत कर सकता है लेकिन पाकिस्तान भारत की जगह नहीं ले सकता है. बंगाल की खाड़ी से लगी दक्षिणी सीमा को छोड़ दें तो बांग्लादेश हर तरफ भारत से घिरा हुआ है. इसी तरह भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र म्यांमार से लगी एक छोटी सी सीमा को छोड़कर काफी हद तक बांग्लादेश से घिरा हुआ है. ये अनूठा भूगोल आपसी लाभ और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग को महत्वपूर्ण बनाता है. लेकिन इस भौगोलिक वास्तविकता को स्वीकार करना अभी भी एक विकल्प है. जैसा कि भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले दिनों बयान दिया, “बांग्लादेश को ये तय करना चाहिए कि वो भारत के साथ किस तरह के संबंध चाहता है.”
सोहिनी बोस ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...
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