Published on May 17, 2022 Updated 0 Hours ago

भले ही दोनों देशों के बीच कुल व्यापार के आंकड़े अभी निचले स्तर पर बने हुए हैं लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि संबंधित वस्तुओं में कुल व्यापारिक कारोबार में ऑस्ट्रेलियाई निर्यात का हिस्सा 2.21 प्रतिशत है, जबकि भारत का हिस्सा 0.92 प्रतिशत ही है

भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार संबंध: एक व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते पर बातचीत

क्या भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार समझौता उनके द्विपक्षीय संबंधों को और बढ़ायेगा?

कुछ अन्य मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को लेकर होने वाली वार्ताओं के विपरीत, भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय व्यापार वार्ता एक दशक से अधिक समय से जारी है. यह साल 2011 में शुरू हुआ था लेकिन विभिन्न मुद्दों पर गतिरोध के कारण 2015 में निलंबित कर दिया गया था, जिसमें ऑस्ट्रेलियाई डेयरी उत्पादों के लिए भारतीय बाज़ार तक पहुंच और भारतीय पेशेवरों के लिए ऑस्ट्रेलियाई वीज़ा व्यवस्था में उदार दृष्टिकोण रखना शामिल है.

जून 2020 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी पर साझा बयान के हिस्से के तौर पर, प्रधानमंत्री मॉरिसन और मोदी ने एक द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) पर फिर से जुड़ने का फैसला किया था. पहले के मुक़ाबले सितंबर 2021 में शुरू हुए एफटीए पर वार्ता के एक नए दौर ने आशा के अनुरूप नतीजे दिए. 

जून 2020 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी पर साझा बयान के हिस्से के तौर पर, प्रधानमंत्री मॉरिसन और मोदी ने एक द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) पर फिर से जुड़ने का फैसला किया था. पहले के मुक़ाबले सितंबर 2021 में शुरू हुए एफटीए पर वार्ता के एक नए दौर ने आशा के अनुरूप नतीजे दिए. परिणामस्वरूप  2 अप्रैल 2022 को एक अंतरिम आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ईसीटीए) पर भारत और ऑस्ट्रेलिया ने हस्ताक्षर किए. दोनों देशों ने साल 2022 के अंत तक एक व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) को समाप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई.

क्या सामरिक हित आर्थिक हित में परिवर्तित हो रहे हैं?

क्वॉड सदस्य होने के अलावा, भारत और ऑस्ट्रेलिया आपसी संबंध को लेकर एक और सामान्य तत्व साझा करते हैं. हाल ही में एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर हुए संघर्ष ने भारत और चीन के बीच संबंधों को बेहद तनावपूर्ण बना दिया था. जबकि जून 2020 के गलवान घाटी में संघर्ष के बाद से भारत की चीन नीति एक बदलाव के दौर से गुज़र रही है और इसी का नतीज़ा है कि भारत एक आर्थिक भागीदार के रूप में चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों के साथ अधिक मज़बूती से जुड़ने की कोशिश कर रहा है. इसे देखते हुए भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने भी एक विकल्प तलाशने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (ग्लोबल सप्लाई चेन) नेटवर्क में बदलाव लाने की पहल शुरू की है. ऑस्ट्रेलिया का भी काफी समय से चीन के साथ टकराव जारी है. हालांकि, चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है लेकिन इन दोनों देशों के बीच कूटनीतिक विवादों के चलते चीन में आधिकारिक तौर पर (और अनौपचारिक रूप से) कुछ ऑस्ट्रेलियाई निर्यातों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगा रखा है, जिसमें कोयला, बीफ़, सीफूड, वाइन और जौ शामिल हैं. यह दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा है क्योंकि यह भारतीय उद्योगों को प्रमुख कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा, जबकि ऑस्ट्रेलिया को भारत के रूप में ज़्यादा भरोसेमंद साझेदार मिल सकेगा.

2020 के गलवान घाटी में संघर्ष के बाद से भारत की चीन नीति एक बदलाव के दौर से गुज़र रही है और इसी का नतीज़ा है कि भारत एक आर्थिक भागीदार के रूप में चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समान विचारधारा वाले देशों के साथ अधिक मज़बूती से जुड़ने की कोशिश कर रहा है.

 दिलचस्प बात यह है कि चीन और ऑस्ट्रेलिया मेगा ट्रेड पैक्ट आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी) का अनुमोदन करते हैं और इस साझेदारी पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. भारत ने नवंबर 2019 में आरसीईपी में शामिल नहीं होने का फैसला किया, और 2020 में ऑस्ट्रेलिया को मालाबार नौसेना अभ्यास में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया लेकिन इसी दौरान, बीजिंग और कैनबरा के बीच संबंधों में दरारें दिखाई देने लगीं. तभी से ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच एक व्यापार समझौते के लिए आम सहमति की दिशा में तेज़ी से काम होने लगे.

द्विपक्षीय व्यापार पर क्या असर होगा?

ईसीटीए पिछले दशक में एक विकसित देश के साथ भारत का पहला द्विपक्षीय व्यापार समझौता है. यह समझौता व्यापार के लिए तकनीकी बाधाओं (टीबीटी) और सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (एसपीएस) प्रतिबंधों जैसे गैर-टैरिफ़ गतिरोधों को दूर करने के लिए सक्रिय उपायों के साथ-साथ दोनों पक्षों के कई चीज़ों पर टैरिफ़ को ख़त्म कर सकता है.

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच दोतरफ़ा व्यापार 2007 में 13.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2020 में 24.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के नवीनतम आंकड़े (अप्रैल 2022 में जारी) भारतीय निर्यात में सालाना आधार पर 104.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी को बताते हैं. ऑस्ट्रेलिया के लिए और भारत में ऑस्ट्रेलियाई आयात में साल-दर–साल 99.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ऐसा लगता है कि अंतरिम समझौते पर हस्ताक्षर ऐसे सही समय पर हुआ है जब दोनों देशों के बीच व्यापार की गति उच्च स्तर पर है. ऑस्ट्रेलिया का लक्ष्य साल 2035 तक भारत को अपने शीर्ष तीन निर्यात बाज़ारों में से एक बनाना है और साथ ही ऑस्ट्रेलियाई निवेश के लिए एशिया में तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार बनाने का है.

चूंकि, भारत किसी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय या मुक्त-व्यापार ब्लॉक का हिस्सा नहीं है इसलिए इन द्विपक्षीय एफटीए को अधिक अहमियत दी गई है. ऐसे में भारत को उम्मीद है कि ऑस्ट्रेलिया का एफटीए ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और कनाडा जैसे विकसित देशों के साथ चल रही अन्य द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा.

दोनों देशों की सरकारों को उम्मीद है कि (समझौते के लागू होने के बाद) माल का व्यापार अगले पांच साल में दोगुना होकर 50 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा. चूंकि, भारत किसी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय या मुक्त-व्यापार ब्लॉक का हिस्सा नहीं है इसलिए इन द्विपक्षीय एफटीए को अधिक अहमियत दी गई है. ऐसे में भारत को उम्मीद है कि ऑस्ट्रेलिया का एफटीए ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और कनाडा जैसे विकसित देशों के साथ चल रही अन्य द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा.

बेहतर विकास दर के बावज़ूद ऑस्ट्रेलिया-भारत व्यापार का आंकड़ा निचले स्तर पर बना हुआ है लेकिन एफटीए के पूरा होने और जल्द कार्यान्वयन से निकट भविष्य में इन देशों के बीच व्यापार की साझेदारी को बढ़ावा मिलने की पूरी संभावना है.

ऐसे कौन से क्षेत्र हैं जिनसे फायदा हो सकता है?

भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि “भारत के विनिर्माण क्षेत्र, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम ऑस्ट्रेलियाई बाज़ार में दिलचस्पी रखते हैं क्योंकि यह समझौता ऑटोमोबाइल, कपड़ा, जूते और चमड़े के उत्पादों, रत्नों और आभूषणों के साथ-साथ खिलौने और प्लास्टिक उत्पादों के लिए भारतीय निर्यात के लिए बड़े मौक़े प्रदान करता है. ”

ईसीटीए ने टैरिफ़ में कटौती के लिए महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता व्यक्त की है. ऑस्ट्रेलिया भारतीय निर्यात के 96.4 प्रतिशत मूल्य (जो टैरिफ़ लाइनों का 98 प्रतिशत है) के लिए ज़ीरो ड्यूटी बाज़ार (शून्य शुल्क बाज़ार) की पहुंच के लिए रास्ता तैयार करेगा. दूसरी ओर भारत, समझौते की शुरुआत के तुरंत बाद ऑस्ट्रेलियाई माल के 85 से अधिक उत्पादों के निर्यात के लिए टैरिफ़ को समाप्त करके ऑस्ट्रेलिया में बाज़ार तक पहुंच के लिए प्रतिबद्ध है. अगले 10 वर्षों में ऑस्ट्रेलियाई उत्पादों तक पहुंच आख़िरकार बढ़कर लगभग 91 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है. 

ऑस्ट्रेलिया भारतीय निर्यात के 96.4 प्रतिशत मूल्य (जो टैरिफ़ लाइनों का 98 प्रतिशत है) के लिए ज़ीरो ड्यूटी बाज़ार (शून्य शुल्क बाज़ार) की पहुंच के लिए रास्ता तैयार करेगा. दूसरी ओर भारत, समझौते की शुरुआत के तुरंत बाद ऑस्ट्रेलियाई माल के 85 से अधिक उत्पादों के निर्यात के लिए टैरिफ़ को समाप्त करके ऑस्ट्रेलिया में बाज़ार तक पहुंच के लिए प्रतिबद्ध है.

कपड़ा, परिधान, कृषि और मछली उत्पाद, चमड़ा, जूते, फ़र्नीचर और खेल के सामान, आभूषण, इंजीनियरिंग सामान, और चयनित फ़ार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों सहित कई श्रम प्रधान भारतीय निर्यात (जिनपर मौज़ूदा समय में 4 से 5 प्रतिशत टैरिफ़ लगते हैं ) शामिल हैं लेकिन इन्हें अगर तुरंत शुल्क मुक्त किया जाता है तो इससे फायदा होने की उम्मीद है. लगभग 113 शेष टैरिफ़ लाइनें – जो भारतीय निर्यात का 3.6 प्रतिशत है – अगले पांच वर्षों में चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त कर दिए जाने की योजना है. इससे भारत ऑस्ट्रेलिया से काफी सस्ती दर पर कोयले का आयात कर सकता है और यह ऑस्ट्रेलिया से भारत के आयात का लगभग 70 प्रतिशत है, जिस पर 2.5 प्रतिशत शुल्क भी लगता है.

कुछ ऑस्ट्रेलियाई कच्चे माल के निर्यात, जैसे ऊन, भेंड़ का मांस, कोयला, एल्यूमिना, धातु अयस्क और महत्वपूर्ण खनिजों पर टैरिफ़ लाइनों को तुरंत ज़ीरो किए जाने की आवश्यकता है. एवोकाडो, प्याज़, चेरी, शेल्ड पिस्ता, मैकाडामिया, काजू इन-शेल, ब्लूबेरी, रास्पबेरी, ब्लैकबेरी और करंट जैसे कृषि उत्पादों के लिए, टैरिफ़ अगले कुछ वर्षों में समाप्त कर दी जाएंगी. भारत में ऑस्ट्रेलियाई शराब पर आयात शुल्क में काफी कमी की जाएगी लेकिन इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जाएगा. भारत ने अपने डेयरी क्षेत्र और छोले, अखरोट, पिस्ता, गेहूं, चावल, बाजरा, सेब, सूरजमुखी तेल जैसी संवेदनशील कृषि वस्तुओं के साथ चीनी के लिए अपनी सुरक्षा शर्तों के साथ ऑस्ट्रेलिया से सफलतापूर्वक बातचीत की है. हालांकि गैर-कृषि सूची से जिन चीज़ों को बाहर किया गया है उसमें चांदी, प्लेटिनम, आभूषण, लौह अयस्क और अधिकांश चिकित्सा उपकरण सहित दूसरे उत्पाद शामिल हैं. 

भारत ऑस्ट्रेलियाई एकल-ब्रांड ख़ुदरा बिक्री फ्रेंचाइजी और इंटरनेट सेवा प्रदान करने वालों को अपने देश में बाज़ार तक पहुंच प्रदान करेगा. इसके साथ ही भारत शिक्षा, व्यापार और वित्तीय

भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार संबंध: एक व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते पर बातचीत

सेवाओं, स्वास्थ्य, पर्यटन और यात्रा सहित प्रमुख ऑस्ट्रेलियाई सेवा क्षेत्रों के लिए किसी भी अन्य भावी कारोबारी साझेदार को दिए जाने वाले सर्वोत्तम सुविधाओं का विस्तार करने के लिए भी प्रतिबद्ध है. इसके साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित (एसटीईएम), और सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) से संबंधित क्षेत्रों में प्रथम श्रेणी ऑनर्स डिग्री के साथ, ऑस्ट्रेलिया भी अब भारतीय छात्रों के लिए अपने देश में ठहरने की अवधि को दो से तीन साल तक बढ़ाने वाला है. इससे युवा भारतीय पेशेवर अब ऑस्ट्रेलिया में कामकाजी छुट्टियों के हकदार हो सकेंगे.

क्या हैं चुनौतियां?

भले ही दोनों देशों के बीच कुल व्यापार के आंकड़े अभी निचले स्तर पर बने हुए हैं लेकिन विश्व बैंक डेटाबेस में साल 2019 के नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि संबंधित वस्तुओं में कुल व्यापारिक कारोबार में ऑस्ट्रेलियाई निर्यात का हिस्सा 2.21 प्रतिशत है जबकि भारत का हिस्सा 0.92 प्रतिशत ही है.

भारतीय मैन्युफ़ैक्चरर्स वस्तुओं के लिए व्यापार की सुलभता को पूरी क्षमता के साथ इस्तेमाल करने में अब तक नाकाम रहे हैं. ऐसे में भारत-ऑस्ट्रेलिया सीईसीए द्वारा भारतीय उत्पादकों को ऑस्ट्रेलियाई कच्चा माल और इनपुट उपलब्ध कराने की संभावना बढ़ जाती है.

और तो और, भारत ज़्यादातर जिन एफटीए समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुका है उसकी भी स्थिति यही है. भारतीय मैन्युफ़ैक्चरर्स वस्तुओं के लिए व्यापार की सुलभता को पूरी क्षमता के साथ इस्तेमाल करने में अब तक नाकाम रहे हैं. ऐसे में भारत-ऑस्ट्रेलिया सीईसीए द्वारा भारतीय उत्पादकों को ऑस्ट्रेलियाई कच्चा माल और इनपुट उपलब्ध कराने की संभावना बढ़ जाती है. हालांकि अंतिम लाभ की सीमा भारतीय उद्योगों द्वारा बनाई गई भविष्य की निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता की स्थिति पर निर्भर करेगी लेकिन इस एफटीए से बाहर आने वाले उन महत्वपूर्ण उत्पादन संबंधी फ़ायदों को उठाने में थोड़ी सी भी चूक भारत के लिए इस समझौते के भविष्य के सकारात्मक फ़ायदे को कम कर देगी.

किसी भी त्रिपक्षीय, लघु सहकारी ढांचे की सफलता के लिए मज़बूत द्विपक्षीय सहयोग की ज़रूरत होती है. यह देखते हुए कि भारत और ऑस्ट्रेलिया कैसे सक्रिय रूप से इन प्रारूपों में संलग्न हैं, जैसा कि क्वॉड, भारत-ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका और जापान-ऑस्ट्रेलिया-भारत त्रिपक्षीय साझेदारों के साथ नज़र आता है, भारत और ऑस्ट्रेलिया के लिए इस आर्थिक समझौते को दोनों के लिए फ़ायदेमंद बनाना ही समय की मांग है.

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