खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ विकास, दुनिया की बड़ी चिंताएं हैं, विशेष रूप से हिंद प्रशांत क्षेत्र में. क्योंकि, इस क्षेत्र में बढ़ती आबादी, जलवायु का बदलता परिवर्तन और सामाजिक आर्थिक असमानताएं बहुत अहम चुनौतियां पेश करती हैं. हिंद प्रशांत का क्षेत्र, ज़मीन और समुद्र के एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है. यहां की ख़ूबियां विशाल आबादी, जटिल भू-राजनीति और बहुलता भरे इकोसिस्टम हैं. विविधताओं से भरे इस विशाल भू-क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ विकास सर्वोच्च चिंताएं बनकर उभरे हैं, जिनके पीछे आबादी बढ़ने की तेज़ दर, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानताएं और पर्यावरण की हानि जैसे कई कारणों का मेल है.
ये क्षेत्र दुनिया की आधी से भी ज़्यादा आबादी का घर है, और आने वाले दशकों में ये तादाद और भी बढ़ने की संभावनाएं जताई गई हैं. आबादी में इतनी तेज़ी से बढ़ोतरी, खाने पीने के स्रोतों पर भारी दबाव बनाते हैं. बढ़ता तापमान, बारिश के बदलते तौर-तरीक़े और भयंकर मौसम की लगातार बढ़ रही घटनाएं, खेती बाड़ी के काम में ख़लल डालती हैं और इनसे उपज को भी क्षति पहुंचती है. लंबे समय तक सूखा, तबाही लाने वाली बाढ़ों और चक्रवातों की वजह से फ़सलें बर्बाद हो जाती हैं और अहम मूलभूत ढांचों को नुक़सान पहुंचता है. इससे खाद्य सुरक्षा की चुनौतियां और भी बढ़ जाती हैं. पूरे हिंद प्रशांत में पर्यावरण को लगातार हानि पहुंच रही है. जंगलों की कटाई, जीवों के आवासीय क्षेत्र को नुक़सान, बड़े पैमाने पर मछली पकड़ना और प्रदूषण इसके कारण हैं. ये गतिविधियां इकोसिस्टम की सेहत और जैव विविधता को नुक़सान पहुंचाती हैं, जिससे खाद्य उत्पादन के लिए ज़रूरी स्रोतों और मानवीय जीवन को चलाने वाले स्रोतों की कमी होती जाती है. पानी की क़िल्लत पूरे हिंद प्रशांत क्षेत्र की समस्या बनती जा रही है, जिसका असर खेती और गैर कृषि क्षेत्रों, दोनों को हो रहा है.
पूरे हिंद प्रशांत में पर्यावरण को लगातार हानि पहुंच रही है. जंगलों की कटाई, जीवों के आवासीय क्षेत्र को नुक़सान, बड़े पैमाने पर मछली पकड़ना और प्रदूषण इसके कारण हैं. ये गतिविधियां इकोसिस्टम की सेहत और जैव विविधता को नुक़सान पहुंचाती हैं, जिससे खाद्य उत्पादन के लिए ज़रूरी स्रोतों और मानवीय जीवन को चलाने वाले स्रोतों की कमी होती जाती है.
कम पोषण और खान-पान की कमी से होने वाली बीमारियों की वजह से कुपोषण भी हिंद प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. आबादी के कुछ तबक़े जहां अपनी कैलोरी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करते हैं, वहीं दूसरे वर्ग के लोग कम पोषण, मोटापे और ग़ैर संक्रामक बीमारियों की बढ़ती समस्या से भी जूझ रहे हैं. हिंद प्रशांत क्षेत्र में भुखमरी की समस्या के बढ़ते प्रसार से निपटने के प्रयास पिछले कुछ वर्षों के दौरान काफ़ी धीमे पड़ गए हैं. 2020 और 2021 में इस इलाक़े के लोगों के बीच कम पोषण 26 प्रतिशत तक बढ़ गया. 2021 में हिंद प्रशांत में जहां 39.6 करोड़ लोग पर्याप्त रूप से खाने के अभाव का शिकार थे, और इनमें से भी सबसे ज़्यादा तादाद (33.1 करोड़) लोग दक्षिण एशिया के थे. खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक़, हिंद प्रशांत क्षेत्र में लगभग 46 करोड़ लोग भयंकर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जबकि 58.6 करोड़ लोग मध्यम दर्जे की खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं. इस क्षेत्र में बच्चों के शारीरिक विकास की कमी की भयंकर समस्या है. आबादी का औसतन 23 प्रतिशत हिस्सा इसका शिकार है, और इनमें से भी 10 देशों में स्टंटिंग (अधूरे शारीरिक विकास) की समस्या ‘बहुत बड़े स्तर पर’ (यानी 30 प्रतिशत से भी अधिक) है. वहीं, आठ देशों में स्टंटिंग ‘काफ़ी अधिक’ (यानी 20 से 30 प्रतिशत) तक है. 2020 में पांच साल से कम उम्र के बच्चों का शारीरिक विकास न होने की दर 9.9 प्रतिशत थी, जो वैश्विक औसत (6.7) फ़ीसद से अधिक थी. इस क्षेत्र में उम्र के हिसाब से ज़्यादा वज़न वाले बच्चों की समस्या वैश्विक औसत (5.7 फ़ीसद) से कम है; हालांकि, साल 2000 से 2020 के बीच में बच्चों के बीच मोटापे की दर 4.2 प्रतिशत से बढ़कर पांच प्रतिशत होती देखी गई. 2019 में हिंद प्रशांत क्षेत्र की 15 से 49 साल उम्र की औरतों के बीच एनीमिया की समस्या 32.9 फ़ीसद थी, जो साल 2000 के स्तर से केवल 1.3 प्रतिशत कम थी. इससे पता चलता है कि पिछले दो दशकों में महिलाओं में ख़ून की कमी दूर करने के प्रयासों का असर बहुत धीमा हो रहा है.
हिंद प्रशांत क्षेत्र में अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक तक असमान पहुंच से इन असमानताओं को और बढ़ावा मिलता है और मानव विकास में बाधा आती है, जबकि ये टिकाऊ विकास का आधार है. आख़िर में, भू-राजनीतिक तनाव, क्षेत्रीय संघर्ष और इस इलाक़े में राजनीतिक अस्थिरता भी टिकाऊ विकास की कोशिशों को पेचीदा बना देते हैं और अतिरिक्त चुनौतियां खड़ी करते हैं.
भारत और खाद्य सुरक्षा एवं टिकाऊ विकास
भारत में कृषि क्षेत्र, अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है, जिससे आबादी के एक बड़े वर्ग को रोज़गार मिलता है. 1960 के दशक में भारत में हरित क्रांति और उसके बाद के कई कृषि सुधारों ने खाने के अनाज उगाने और तरह तरह की फ़सलों की खेती करने की क्षमता में इज़ाफ़ा किया है, जिससे इस क्षेत्र की खाद्य सुरक्षा बढ़ाने में योगदान मिला है. खाद्य सुरक्षा के लिए भारत द्वारा किए गए बहुआयामी प्रयासों में 2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून जैसी पहल भी शामिल हैं, जिसका मक़सद आबादी के कमज़ोर तबक़ों को पर्याप्त रूप से सस्ते दाम पर खाना उपलब्ध कराना है. इसके अतिरिक्त, भारत खेती के टिकाऊ तौर तरीक़ों पर भी ज़ोर देता है, जिसमें ऑर्गेनिक फार्मिंग, और उगाई जाने वाली फ़सलों में विविधता लाना शामिल है, जिससे जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सके. भारत ने क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में भी केंद्रीय भूमिका निभाई है. जैसे कि इंटरनेशनल सोलर एलायंस, जो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के साथ साथ ऊर्जा सुरक्षा की समस्या से निपटने में मदद देता है. इसके अलावा, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के मूलभूत ढांचे के विस्तार पर ज़ोर देकर, इस क्षेत्र पर कुछ ज़्यादा ही क़हर ढा रहे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
खाद्य सुरक्षा के लिए भारत द्वारा किए गए बहुआयामी प्रयासों में 2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून जैसी पहल भी शामिल हैं, जिसका मक़सद आबादी के कमज़ोर तबक़ों को पर्याप्त रूप से सस्ते दाम पर खाना उपलब्ध कराना है.
मेक इन इंडिया अभियान ने भी निर्माण क्षेत्र की क्षमताओं में इज़ाफ़ा किया है, जिससे आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलता है, और इस तरह टिकाऊ विकास में भी योगदान मिलता है. इसके अलावा भारत ने इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) और बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन (BIMSTEC) जैसी पहलों से क्षेत्रीय सहयोग को भी बढ़ावा दे रहा है. ये मंच खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ विकास की चुनौतियों से सामूहिक रूप से निपटने के लिए सदस्य देशो को संवाद, ज्ञान के आदान प्रदान और मिल-जुलकर प्रयास करने के मौक़ों को बढ़ावा देते हैं.
इसके साथ साथ, विकास के लिए मज़बूत साझेदारियां विकसित करने पर भारत का ज़ोर देना भी काफ़ी काम आ रहा है. विकासशील देशों की अगुवाई में हो रही साझेदारियों में भारत एक विश्वसनीय और अग्रणी आवाज़ के तौर पर भारत ने लगातार विकासशील अर्थव्यवस्थाओं, जैसे कि प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित द्वीपीय देशों की चिंताओं को रेखांकित किया है. इसका एक हालिया उदाहरण विकास का वो 12 सूत्रीय कार्यक्रम है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी के पापुआ न्यू गिनी के दौरे के दौरान, फोरम फॉर इंडिया पैसिफिक आईलैंड्स को-ऑपरेशन शिखर सम्मेलन (FIPIC) के दौरान पेश किया गया था. भारत साफ़ तौर पर खाद्य, स्वास्थ्य और पोषण संबंधी अहम चुनौतियों से निपटने के लिए इन देशों की वित्तीय क्षमताएं बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. प्रशांत क्षेत्र के द्वीपीय देशों (PICs) में विकास की परियोजनाओं के लिए छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों (SMEs) के लिए भारत ने कृषि, सूचना प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े तकनीकी विशेषज्ञ इन देशों में भेजे हैं. इसके अलावा भारत ने प्रशांत क्षेत्र के द्वीपीय देशों की सहायता के लिए वित्तीय मदद के लिए 1.2 करोड़ डॉलर (हर देश के लिए दस लाख डॉलर) की रक़म आवंटित की है, ताकि उच्च प्रभाव वाले विकास को बढ़ावा दिया है. इसके अतिरिक्त हर द्वीपीय देश की ख़ास ज़रूरत और उसके अपने चुनाव के लिए भारत ने इन देशों को रियायती दरों पर क़र्ज़ के लिए 15 करोड़ डॉलर की रक़म भी उपलब्ध कराई है.
इसके साथ साथ भारत, खाद्य असुरक्षा के उचित समाधान तलाशने और टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने के लिए इस क्षेत्र के समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर विकास संबंधी भागीदारी के अलग अलग मॉडलों का भी उपयोग कर सकता है. एक तरह से भारत खाद्यान्न, ईंधन और उर्वरकों की उपलब्धता और इनके लिए पूंजी संबंधी चुनौतियों से निपटने में भी अहम भूमिका निभा सकता है. त्रिपक्षीय साझेदारियां इनमें से एक विकल्प हो सकती हैं. मिसाल के तौर पर हाल ही में भारत और फ्रांस की सामरिक साझेदारी के 25 साल पूरे होने और ‘होराइज़न 2047’ की रूप-रेखा जारी होने के दौरान इंडो-पैसिफिक ट्रायंगुलर को-ऑपरेशन (IPTDC) फंड की स्थापना एक महत्वपूर्ण क़दम है. इस फंड से जलवायु परिवर्तन और स्थायी विकास के लक्ष्यों (SGDs) पर केंद्रित इनोवेशन और हिंद प्रशांत के तीसरे पक्ष के देशों को मदद देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
नीतिगत उपायों, टिकाऊ क़दमों और विकास के लिए साझेदारियों जैसे प्रयासों से भारत, खाद्य असुरक्षा को दूसर करने और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने में काफ़ी प्रगति कर रहा है. इस तरह वो अपनी आबादी और पूरे क्षेत्र की समृद्धि बढ़ाने में योगदान दे रहा है. अपने अनुभव साझा करने और पड़ोसी देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर भारत, सकारात्मक बदलाव के प्रेरक के तौर पर काम कर सकता है, जिससे पूरे हिंद प्रशांत क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ विकास को बढ़ावा मिल सके. इन चुनौतियों से निपटने के लिए असरदार रणनीतियां विकसित करने और उन्हें लागू करने के लिए क्षेत्रीय सहयोग, ज्ञान का आदान प्रदान और इस इलाक़े के देशों के बीच सहयोग बेहद महत्वपूर्ण है.
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