Author : Mannat Jaspal

Published on Nov 07, 2023 Updated 0 Hours ago
भारत का G20 नेतृत्व: सतत विकास की फाइनेंसिंग के लिए क्षमता निर्माण में बढ़त कैसे बनायें!

भारत की G20 अध्यक्षता ने वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों के लिए जनादेश को कुछ इस तरह से चिन्हित किया है: “सतत विकास की फाइनेंसिंग के लिए इकोसिस्टम का क्षमता निर्माण.ख़ासतौर से उभरती हुई और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सतत परियोजनाओं के लिए वैश्विक पूंजी के बड़े समूह को संग्रहित करने में प्रयासों को आगे बढ़ाना इस क़वायद का लक्ष्य है. सतत वित्त कार्यकारी समूह (SFWG) के तत्वावधान में G20 पहली तकनीकी सहायता कार्य योजना (TAAP) के विकास का प्रस्ताव करता है, जो सलाहकारी, परिचालनात्मक और तकनीकी कार्यक्रमों की एक पूरी श्रृंखला को समेटने वाले क्षमता निर्माण पहलों का इकोसिस्टम तैयार करेगा. TAAP भले ही क्षमता निर्माण प्रदाताओं के लिए कार्रवाई-योग्य सिफ़ारिशों का प्रस्ताव करने में सफल होता है, लेकिन इसमें ना तो कोई वितरण तंत्र शामिल है और ना ही ये इन प्राथमिकताओं और महत्वाकांक्षाओं को ज़मीन पर उतारने के लिए परिणाम-आधारित दृष्टिकोण सामने रखता है. ये लेख भारत की G20 अध्यक्षता के तहत SFWG द्वारा चिन्हित किए गए क्षमता निर्माण के लिए वितरण-उन्मुख ढांचे का प्रस्ताव करता है.


एट्रिब्यूशन: मन्नत जसपाल, भारत का G20 नेतृत्व: सतत विकास की फाइनेंसिंग के लिए क्षमता निर्माण में बढ़त कैसे बनायें,ओआरएफ़ ओकेज़नल पेपर नं. 410, सितंबर 2023, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन.


संदर्भ स्थापना

विकासशील देशों में विकास से जुड़ी चुनौतियों के टिकाऊ समाधानों में रफ़्तार भरने और कार्रवाई के दशक में सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को ज़मीन पर उतारने के लिए विशाल पैमाने पर सार्वजनिक और निजी पूंजी जुटाना महत्वपूर्ण है. 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अनुमान लगाया था कि विकासशील देशों में SDGs के लिए ज़रूरी फ़ाइनेंसिंग का अंतर सालाना 2.5 खरब अमेरिकी डॉलर से 3 खरब अमेरिकी डॉलर के बीच होगा.[i] व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के आकलनों के मुताबिक कोविड-19 महामारी ने इस अंतर में 1 खरब अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी कर दी, और 2020-2025 के लिए SDG फाइनेंसिंग अंतर 17.9 खरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ गया.[ii] फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई ने वित्त के मोर्चे पर इस खाई को और चौड़ा कर दिया, और इन अनगिनत संकटों के चलते एक के बाद एक क्रेडिट संकट खड़ा होने, पूंजी की लागत बढ़ने और विकासशील देशों में ऋण संकट गहराने की आशंका है.[iii] अगर चौड़ी होती वित्तीय दरार पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये सतत विकास में स्थायी विभाजन के रूप में तब्दील हो जाएगी और दीर्घकाल में वित्तीय चुनौतियों को और गंभीर बना देगी.[iv]

अंतरराष्ट्रीय कोषों और निजी स्रोतों से बड़े पैमाने पर पूंजी जुटाना निम्न-और मध्यम-आय वाले देशों के लिए उनकी विकास अनिवार्यताओं से समझौता किए बग़ैर आगे बढ़ने के लिए अहम बन जाएगा.

सतत विकास लक्ष्यों की फाइनेंसिंग के साथ दिक़्क़त ये है कि इसकी ज़्यादातर ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय सरकारों के कंधों पर होती है. वैसे तो उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सतत विकास लक्ष्यों की फाइनेंसिंग के लिए घरेलू राजस्व जुटाना (DRM) सार्वजनिक वित्त से जुड़े प्राधिकरणों की प्राथमिकता है, लेकिन पूंजी और वित्त के अल्प-विकसित बाज़ारों के साथ-साथ टैक्स प्रशासन को ऊंचा उठाने के सीमित अवसरों ने प्रगति में बाधाएं खड़ी की हैं.[v] महामारी और क्रमिक ऋण-स्थिरता विचार सामने आने के बाद से राजकोषीय बजट और भी सीमित हो गए हैं.

अंतरराष्ट्रीय कोषों और निजी स्रोतों से बड़े पैमाने पर पूंजी जुटाना निम्न-और मध्यम-आय वाले देशों के लिए उनकी विकास अनिवार्यताओं से समझौता किए बग़ैर आगे बढ़ने के लिए अहम बन जाएगा. सतत विकास लक्ष्यों का कामयाब क्रियान्वयन ना सिर्फ़ मात्रा पर बल्कि वित्त की गुणवत्ता पर भी निर्भर करेगा. लिहाज़ा, 2030 तक SDG संकेतकों को पूरा करने के लिए सामूहिक कार्रवाई और एक समग्र रुख़ की दरकार होगी. निश्चित रूप से सामाजिक क्षेत्र के लिए उत्प्रेरक पूंजी का प्रावधान प्राथमिकता पर रहा है. इसके तहत मिश्रित वित्तीय प्रणालियों और नवाचार भरे वित्तीय उपकरणों का भरपूर लाभ उठाया जाता है. सतत पूंजी कार्यकारी समूह (SFWG) के तत्वावधान में G20 को इस पूंजी को आकर्षित करने के लिए विकासशील देशों की अवशोषक क्षमता बढ़ाने के तौर-तरीक़ों पर विचार करना चाहिए. अदीस अबाबा कार्य एजेंडे में विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए क्षमता-निर्माण समर्थन बढ़ाने को लेकर इन भावनाओं और क़वायदों को मान्यता देते हुए उनका निपटारा किया गया है. ये वित्तीय प्रवाहों और नीतियों का सतत विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करता है. साथ ही वैश्विक और क्षेत्रीय स्तरों पर क्षमता विकास और ज्ञाना साझा करने की प्रक्रिया में मज़बूती लाने की ज़रूरत को भी रेखांकित करता है, ताकि सतत वित्त तक पहुंच हासिल करते हुए उसका प्रबंधन किया जा सके.[vi]

इस उद्देश्य से, क्षमता की कमी के तहत काम कर रहे विकासशील देशों की सरकारें, अच्छी तरह से फाइनेंस हासिल करने वाले G20 देशों की तुलना में SDGs वित्त के प्रावधान की बाधाओं को समझने के लिए बेहतर स्थिति में हैं. लिहाज़ा, विकासशील देशों को SDGs के लिए निवेश का प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए क्षमता-निर्माण क़वायदों की अगुवाई करनी चाहिए.

लाज़िमी है कि भारत की G20 अध्यक्षता ने सतत विकास के लिए बड़े पैमाने पर पूंजी जुटाने और सुविधा देने के लिए क्षमता निर्माण में मज़बूती लाने के प्रयासों की अगुवाई करने का निर्णय लिया है. सतत वित्त कार्यकारी समूह (SFWG) की पहली बैठक में “सतत विकास की फाइनेंसिंग के लिए इकोसिस्टम के क्षमता निर्माण” को एजेंडे की प्रमुख प्राथमिकता के तौर पर रेखांकित किया गया था; अन्य दो वरीयताओं में “जलवायु वित्त के लिए समय पर और पर्याप्त संसाधनों के संग्रह के लिए प्रणालियां” और “सतत विकास लक्ष्यों के लिए वित्त को सक्षम बनाना” शामिल हैं.[vii] इसके बाद फरवरी 2023 में भारतीय अध्यक्षता द्वारा असम के गुवाहाटी में G20 कार्यशाला की मेज़बानी की गई. इसका मक़सद SFWG एजेंडे को सतत वित्त क्षमता निर्माण सहायता के लिए विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान करने के उद्देश्य के प्रति तमाम जानकारियां मुहैया कराना था. कार्यशाला में सतत निवेश के सामने डेटा-आधारित रुकावटों से पार पाने के लिए तकनीकी सहायता कार्यक्रमों का उपयोग किए जाने के तौर-तरीक़ों की भी पड़ताल की गई. इस दौरान मौजूदा और संभावित क्षमता निर्माण पहलों के तहत सहभागिता के क्षेत्रों पर भी विचार किया गया.[viii]

प्रमुख नतीजा दस्तावेज़ के रूप में SFWG सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों के लिए G20 सतत वित्त तकनीकी सहायता कार्य योजना (TAAP) तैयार करने का प्रस्ताव करता है. क्षमता-निर्माण पहलों का इकोसिस्टम तैयार करने के लक्ष्य से की जाने वाली इस क़वायद में संग्रहण में मदद करने और सतत वित्त का पैमाना बढ़ाने के लिए सलाहकारी, परिचालनात्मक और तकनीकी कार्यक्रमों की एक पूरी श्रृंखला जोड़ी जानी चाहिए; उभरती अर्थव्यवस्थाओं और अल्प-विकसित देशों के संदर्भ में ये ख़ासतौर से अहम है.[ix] TAAP क्षमता निर्माण प्रदाताओं के लिए कार्य-योग्य प्रस्ताव पेश करने के साथ-साथ मौजूदा और भावी वैश्विक पहलों के लिए तालमेल को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है.[x]

इस लेख का उद्देश्य पिछले कुछ वर्षों में G20 SFWG द्वारा जारी तमाम इनपुट पेपर्स और सतत वित्त रिपोर्टों का सार तैयार करना और उनसे आवश्यक तत्वों का संग्रह करना है. इस सिलसिले में सतत विकास के लिए क्षमता निर्माण सहायता के तमाम पहलुओं पर ध्यान दिया गया है. ये पेपर वितरण प्रणाली पर प्रस्तावों की एक पूरी श्रृंखला रेखांकित करेगा ताकि TAAP में अंतर्निहित किए गए सुझावों को ज़मीन पर उतारने में SFWG की सहायता की जा सके.[xi] ये पेपर भारत की G20 अध्यक्षता के तहत SFWG द्वारा क्षमता निर्माण पर किए गए प्रस्तावों पर समूह के तौर पर हासिल हो सकने वाले लक्ष्यों की मज़बूती के लिए परिणाम-उन्मुख ढांचे पर आधारित होगा.

क्षमता बाधाओं की प्रकृति

विकासशील अर्थव्यवस्थाएं सतत विकास के लिए वैश्विक पूंजी आकर्षित करने में ढेरों चुनौतियों का सामना करती हैं. नियामकों, जारीकर्ताओं और रेटिंग एजेंसियों से लेकर सरकार और वित्तीय संस्थानों तक, इकोसिस्टम में स्टेकहोल्डर्स के पूरे दायरे में अंतर्निहित बाधाएं मौजूद हैं. इन्हीं अड़चनों ने SDGs को साकार करने के लिए पूंजी जुटाने की प्रगति को बाधित कर रखा है. इन चुनौतियों को मोटे तौर पर निम्नलिखित रूप से श्रेणीबद्ध किया जा सकता है:

  1. ज्ञान में अंतराल और कमियां

नीतिगत नियोजन और कारोबारी रणनीतियों में SDG मापकों को बेहतरीन तरीक़े से कैसे एकीकृत किया जाए, इसको लेकर प्राप्तकर्ता देशों में ज्ञान का अभाव है. कंपनियों द्वारा SDG से संबंधित आंकड़ों के संग्रहण, मूल्यांकन, प्रबंधन और जानकारी देने के तौर-तरीक़ों में अंतर मौजूद हैं, जिससे निवेशकों के लिए व्यावहारिकता का आकलन करना और उसके बाद टिकाऊ परियोजनाओं की ओर पूंजी का आवंटन करना कठिन हो जाता है. आंकड़ों की मौजूदगी वाले मामलों में भी या तो डेटा की गुणवत्ता का अभाव होता है या फिर निवेश निर्णय लेने के उद्देश्यों से प्रयोग किए जाने को लेकर वो उतने व्यापक नहीं होते. तमाम न्यायक्षेत्रों में डेटा की उपलब्धता, विश्वसनीयता और तुलनीयता में अंतर सबसे बड़ी चुनौती है.[xii] ऐसी परिस्थितियों में परियोजना तैयारी और पूंजी तैनाती भारी बाधाएं पेश करते हैं. इतना ही नहीं, कुशल उपकरणों की पहचान करने, उपयुक्त रूपरेखाओं का क्रियान्वयन करने और विज्ञान-आधारित प्रासंगिक गणना पद्धतियों और उपकरणों को कार्यान्वित करने के लिए ज़रूरी कौशल समूह का भी ज़बरदस्त अभाव है. ज्ञान का अंतर आपूर्ति पक्ष में भी मौजूद है. ख़ासतौर से विकासशील देशों में वैश्विक और घरेलू निवेशक, दोनों में ही टिकाऊपन के चश्मे से जोख़िमों और अवसरों की पहचान करने की समझ का अभाव होता है. ऐसे हालात ऋणदाताओं और कर्ज़दारों के बीच सूचना विषमता को बढ़ा देते हैं, जिससे बाज़ार की कार्यक्षमताएं बढ़ती हैं और स्थिरता परियोजनाओं का मूल्यांकन कम होता है.[xiii]

  1. उच्च जोख़िम धारणा

ख़ासतौर से निम्न-आय वाले और विकासशील देशों में सतत विकास लक्ष्यों की फाइनेंसिंग में जोख़िम की धारणा एक महत्वपूर्ण सीमा है.[xiv] अधिकांश उभरते देशों में क़रारों में असहमति होने पर पूंजी की सुरक्षा करने के लिए पारदर्शी निवेश नियमों के अभाव को ऊंचे जोख़िम का दर्जा दिया जाता है. टिकाऊ परियोजनाओं में निवेश को विकासशील देशों में प्रतिकूल और जोख़िम भरा माना जाता है, हालांकि यही वो देश हैं जिन्हें पूंजी प्रवाह की सर्वाधिक आवश्यकता होती है. चूंकि, इन इलाक़ों में जलवायु परिवर्तन के भौतिक और संक्रमणकारी जोख़िम ऊंचे होते हैं, इससे सार्वजनिक ऋण के स्तरों के और ज़्यादा बढ़ने और क्रेडिट रेटिंग के बदतर होने का ख़तरा रहता है.[xv] परियोजना के स्तर पर ऐतिहासिक डेटा की कमी और साख की अपर्याप्त सूचना से पैदा होने वाली चिंताओं के साथ-साथ व्यापक अर्थव्यवस्था के नज़रिए से बढ़ती महंगाई, ऊंचे ऋण और उथल-पुथल भरी मुद्राओं के चलते इन भूक्षेत्रों के लिए पूर्वानुमानित जोख़िम-समायोजित रिटर्न कम हो जाते हैं. इन कारकों ने विकासशील और निम्न-आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में टिकाऊ परियोजनाओं के लिए पूंजी के ग़ैर-आनुपातिक और ऊंची लागतों में योगदान दिया है.[xvi] इसके अलावा, जोख़िम की रेटिंग करने वाले मौजूदा मापकों की वजह से ये समस्या और बढ़ जाती है, जिससे ग्लोबल साउथ (अल्प-विकसित और विकासशील दुनिया) के देशों पर बोझ पड़ता है. वास्तविक जोख़िम से परे, पूर्वाग्रह से भरे देश-जोख़िम धारणाओं की वजह से उत्पन्न पूंजी पर अनुचित लागत आती है.[xvii]

  1. नियामक क्षमता का अभाव

टिकाऊ वित्त पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर प्रमुख संस्थानों में अक्सर नियामक क्षमता के स्तर पर अभाव होता है. विकासशील देशों के पास ऐसी स्पष्ट और निरंतरता वाली नीतियां और नियम मौजूद नहीं होते जो टिकाऊ पूंजी आकर्षित करने, दीर्घकालिक रूप से सटीक नीतिगत संकेत भेजने और निवेशकों का भरोसा बढ़ाने को लेकर सक्षमकारी वातावरण तैयार करते हों. एक समान मानकों की कमी, जानकारी देने के जटिल ढांचे, और टिकाऊपन से जुड़े कमज़ोर डेटा प्रबंधन ने विकासशील देशों में टिकाऊ वित्त के आसान रास्ते तैयार करने की दिशा में प्रगति को बाधित कर दिया है. मौजूदा वित्तीय उपकरण, अक्सर अपने समझौता शर्तों में टिकाऊपन के विचार को शामिल नहीं करते हैं. इसके अलावा, सार्वजनिक और निजी स्टेकहोल्डर्स के बीच तालमेल का अभाव बाज़ार विकृति पैदा करने के साथ-साथ पूंजी की कुशल तैनाती में भी अड़ंगा लगा सकता है.[xviii]

  1. कमज़ोर घरेलू पूंजी बाज़ार

दीर्घकालिक निवेशों के लिए ज़्यादा भूख रखने वाले पूंजी बाज़ार विकासशील देशों में अक्सर अल्प-विकसित रह जाते हैं और उनका ज़रूरत से कम इस्तेमाल होता है.[xix] ऐसे परिदृश्य में टिकाऊ परियोजनाओं, ख़ासतौर से लघु और मझौले उद्यमों (SMEs) द्वारा संचालित परियोजनाओं को किफ़ायती और दीर्घकालिक पूंजी तक पहुंच बनाना मुश्किल लगने लगता है. इतना ही नहीं, बैंकिंग प्रणाली से पूंजी बाज़ारों की ओर परिवर्तनकारी रुख़ करना टेढ़ी खीर हो जाता है. अनुपालन की पेचीदा प्रक्रियाओं और कमज़ोर वित्तीय प्रोत्साहनों के चलते ऐसा होता है, जिससे कर्ज़दारों की पूंजी-जुटाने की क्षमता में और रुकावटें आ जाती है.[xx]

दीर्घकालिक निवेशों के लिए ज़्यादा भूख रखने वाले पूंजी बाज़ार विकासशील देशों में अक्सर अल्प-विकसित रह जाते हैं और उनका ज़रूरत से कम इस्तेमाल होता है.

  1. सतत विकास लक्ष्यों की अनदेखी की क़ीमत पर जलवायु की ओर निवेश का झुकाव

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को लेकर हाल की बढ़ती और उचित प्रवृति को देखते हुए सतत निवेश, अक्सर SDGs के जलवायु ओर पर्यावरणीय पहलुओं की ओर झुके रहते हैं, जिससे अन्य लक्ष्यों को निवेश हासिल करने में भारी जद्दोजहद करनी पड़ती है. इन नाज़ुक लक्ष्यों में ग़रीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य, शिक्षा, लैंगिक मसले और जैव-विविधता शामिल हैं. इसके चलते अपरिहार्य रूप से सीमित संसाधनों के लिए मारामारी मच जाती है. इसके अलावा, तकनीकी और संस्थागत पेचीदगियों के चलते ये ग़ैर-जलवायु SDGs, बैंकिंग गतिविधियों के अयोग्य रह जाते हैं और उनके लिए वित्त हासिल करना मुश्किल हो जाता है.[xxi]

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सतत वित्त जुटाने और उसका पैमाना बढ़ाने से जुड़ी इन चुनौतियों की अनेक अध्ययनों और सर्वेक्षणों में पुष्टि की गई है. UNDP की मेज़बानी में स्थायी नेटवर्क के लिए वित्तीय केंद्रों द्वारा तैयार चौथे सालाना स्टेट ऑफ प्ले रिपोर्ट की ऐसी ही एक प्रस्तुति में 2021 में जुटाई गई जानकारियां सामने रखी गईं. इसके तहत ग्लोबल इक्विटी के तक़रीबन एक चौथाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले 29 वैश्विक वित्तीय केंद्रों का सर्वेक्षण किया गया.[xxii] रिपोर्ट में डेटा गुणवत्ता और उपलब्धता (60 प्रतिशत से ज़्यादा) के साथ-साथ क्षमता और योग्यता वाले श्रम बल (52 प्रतिशत) के अभाव को भारी कमज़ोरी के तौर पर पहचाना गया.[xxiii] आगे रिपोर्ट में मानकों, वर्गीकरणों (टेक्सोनॉमीज़) और दिशानिर्देशों (52 प्रतिशत) के विकास में निरंतरता क़ायम करने की अहमियत रेखांकित की गई. साथ ही सतत वित्त एजेंडे के लिए अहम रहने वाले नीतिगत और नियामक जुड़ावों (48 प्रतिशत) में मज़बूती लाने पर भी ज़ोर दिया गया.[xxiv]

लिहाज़ा, क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों के प्रावधान विकासशील देशों में अंतर्निहित बाधाओं के निपटारे के लिए ज़रूरी है. ये सक्षमकारी वातावरणों को सुविधाजनक बनाकर बड़े पैमाने पर वित्त संग्रहित करते हैं, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय, दोनों स्रोतों से सार्वजनिक और निजी निवेशों के लिए अनुकूल होते हैं. इन कार्यक्रमों को ज्ञान साझा करने औऱ कौशल निर्माण करने के लक्ष्य को सुविधाजनक बनाने में मदद करनी चाहिए. इसके तहत प्रमुख क्षेत्रों और भौगोलिक इलाक़ों में कार्रवाइयों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. इससे जोख़िम की धारणा में कमी लाई जा सकेगी, और इसकी सहवर्ती पूंजी की लागत भी घटाई जा सकेगी. इससे कारोबार की व्यवहार्यता और निवेश के प्रदर्शन में सुधार आएगा. साथ ही उभरती अर्थव्यवस्थाओं में स्थानीय बाज़ारों में मज़बूती आएगी.

TAAP के ज़रिए भारत की G20 अध्यक्षता इस संदर्भ में एक उत्प्रेरक भूमिका निभाने का लक्ष्य रखती है, इस तरह वैश्विक स्तर पर सतत विकास लक्ष्यों को ज़मीन पर उतारने के लिए टिकाऊ वित्त का पैमाने बढ़ाने को लेकर क्षमता निर्माण प्रयासों को वरीयता दिए जाने का लक्ष्य है.

G20 के लिए प्रासंगिकता

2015 में COP21 में दस्तख़त किए गए ऐतिहासिक पेरिस समझौते के बाद 2016 में चीन की G20 अध्यक्षता के दौरान एक हरित वित्त अध्ययन समूह लॉन्च किया गया. हरित वित्त में संस्थागत और बाज़ार रुकावटों की पहचान करना और हरित निवेशों के लिए निजी पूंजी संग्रहण को बढ़ावा देने की प्रणाली तलाशना, इस समूह का लक्ष्य था.[xxv] 2018 में अर्जेंटीना की G20 अध्यक्षता के दौरान इस समूह के कार्यक्षेत्र का विस्तार करते हुए इसमें सतत विकास और निवेश को भी शामिल कर दिया गया, जिसके बाद इस समूह को टिकाऊ वित्त अध्ययन समूह का नया नाम दिया गया.[xxvi] 2021 में इटली की G20 अध्यक्षता के तहत वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों ने अध्ययन समूह को उन्नत किए जाने का समर्थन किया और इसके बाद G20 SFWG का गठन किया गया.[xxvii]

SFWG के जनादेश में सतत निवेशों को उत्प्रेरित करने, टिकाऊपन की जानकारी देने की प्रक्रिया सुधारने और पेरिस समझौते के साथ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के प्रयासों का तालमेल बिठाना के लक्ष्य से एक टिकाऊ वित्त रोडमैप तैयार करने की क़वायद शामिल है.[xxviii] इस खंड में ये लेख हरित और टिकाऊ वित्त का पैमाना बढ़ाने के लिए क्षमता निर्माण प्रयासों में वचनबद्धताओं और प्राथमिकताओं की पड़ताल करता है. 2016 में शुरुआत के बाद से SFWG G20 अध्यक्षताओं द्वारा जारी आधिकारिक विज्ञप्तियों और सिंथेसिस रिपोर्टों के सर्वे के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया गया है.

टेबल 1: क्षमता निर्माण और हरित वित्त संग्रहण में प्राथमिकताएं

G20 की अध्यक्षता,

साल

सूचीबद्ध प्राथमिकताएं
चीन, 2016[xxix]

1.     ज़िम्मेदार निवेश सिद्धातों की स्वैच्छिक स्वीकार्यता को बढ़ावा देना.

ज्ञान साझा करने और क्षमता निर्माण पर ध्यान देते हुए बाज़ार प्रतिभागियों, केंद्रीय बैंकों, वित्त मंत्रियों और नियामकों में सहभागिता को प्रोत्साहित करना.

2. क्षमता निर्माण के लिए लर्निंग नेटवर्क का विस्तार करना.

ज्ञान-आधारित क्षमता निर्माण मंचों, जैसे सतत बैंकिंग नेटवर्क, ज़िम्मेदार बैंकिंग के लिए सिद्धांत, और अन्य अंतरराष्ट्रीय और घरेलू हरित वित्त पहलों के विस्तार के लिए समर्थन जुटाना.

 

3. स्थानीय हरित बॉन्ड बाज़ारों के विकास का समर्थन.

डेटा संग्रहण, ज्ञान साझा करने और क्षमता निर्माण के साथ-साथ पर्यावरणीय और वित्तीय जोख़िमों और अवसरों के आकलन के लिए तंत्र स्थापित करना और पर्यावरणीय प्रामाणिकताओं के लिए स्थानीय हरित बॉन्ड बाज़ारों के विकास को समर्थन देने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों, विकास बैंकों, और विशिष्ट बाज़ार निकायों को प्रोत्साहित करना. इनमें हरित बॉन्ड दिशानिर्देश और प्रकटीकरण की आवश्यकताएं शामिल हैं. स्थानीय मुद्रा हरित बॉन्ड बाज़ार में एंकर निवेशकों और/या जारीकर्ताओं के रूप में काम करके पायलट परियोजनाओं को प्रदर्शित करके ये तंत्र विकास बैंकों की भूमिका को रेखांकित करता है.

जर्मनी, 2017[xxx]

1.     क्षमता निर्माण के लिए शिक्षण नेटवर्कों का विस्तार करें.

राष्ट्रीय स्तर पर सीमित जुड़ाव को स्वीकार करता है और बैंकिंग, बीमा और निवेश के क्षेत्र में अनेक स्टेकहोल्डर्स की भागीदारी के विस्तार को प्रोत्साहित करता है, ताकि विकासशील देशों की हरित वित्त ज़रूरतों को पूरा किया जा सके. ये सूचना प्रवाहों को सुधारने के लिए शिक्षण नेटवर्कों को बढ़ावा देता है, साथ ही इकोसिस्टम में स्टेकहोल्डर्स के विश्लेषणात्मक क्षमताओं को भी बढ़ाता है.

2.     ERA की स्वैच्छिक स्वीकार्यता को प्रोत्साहित करने के लिए विकल्प वित्तीय क्षेत्र में पर्यावरण जोख़िम विश्लेषण (ERA) पर क्षमता निर्माण को प्रोत्साहित करता है, ताकि भारी-भरकम पर्यावरण जोख़िम वाले वित्तीय संस्थानों में जागरूकता बढ़ाई जा सके; पर्यावरणीय डेटा की बेहतर गुणवत्ता और ज़्यादा प्रभावी उपयोग को बढ़ावा देता है; और पर्यावरण और वित्तीय जोख़िम और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध पर्यावरणीय डेटा (PAED) के उपयोग पर ज्ञान साझा करने की क़वायद को सुविधाजनक बनाता है.

अर्जेंटीना, 2018[xxxi]

पूंजी बाज़ारों के लिए स्थायी परिसंपत्तियों के निर्माण को सहारा देने के लिए क्षमता निर्माण

a) सतत निवेश के विश्लेषण के लिए तकनीकी प्रशिक्षण को सुविधाजनक बनाता है, जिसमें निवेशकों और अंडरराइटर्स के लिए कौशल निर्माण शामिल है, ताकि उपयुक्त जोख़िमों और अवसरों के आकलन के साथ-साथ मूल्यांकन मापकों और उपकरणों का उपयोग हो सके. ये पाठ्यक्रम तैयार करने और प्रशिक्षण देने में विश्वविद्यालयों के साथ-साथ शैक्षणिक विभागों और व्यापार संगठनों की भूमिका को भी रेखांकित करता है

b) सतत ऋणों को अंडरराइट करने के साथ-साथ सतत ऋण उत्पादों की निगरानी और ब्याज़ अदायगी करने में संस्थागत निवेशकों की आंतरिक क्षमता का प्रोत्साहन करता है.

c) लंबी-मियाद वाले निवेशकों के लिए सतत ऋण परिसंपत्तियों के पोर्टफोलियो के प्रबंधन में परिसंपत्ति प्रबंधकों के क्षमता निर्माण को बढ़ावा देता है. आगे ये परिसंपत्ति प्रबंधकों द्वारा सतत ज़मानती ऋण दायित्वों (CLO) के विकास को प्रोत्साहित करता है, जो ऋणों को स्पेशल परपस व्हिकल (SPV) में स्थानांतरित कर देते हैं. इस तरह बैलेंस-शीट क्षमता को टिकाऊ निवेशों के लिए जगह बनाने की छूट मिल जाती है.

d) ऋण पूंजी बाज़ार में सतत विकास से जुड़े जोख़िमों और जोख़िम-समायोजित रिटर्न्स पर ज्ञान साझा करने की क़वायद को बढ़ावा देता है, जो टिकाऊ परिणामों की ओर प्रयास करने वाले बॉन्ड जारी किए जाने को सुविधाजनक बनाएंगे.

2. सतत निजी इक्विटी और वेंचर कैपिटल के लिए स्वैच्छिक विकल्प

निजी इक्विटी/वेंचर कैपिटल (PE/VC) द्वारा सतत निवेश के प्रबंधन के लिए मानकों और मापकों को प्रोत्साहित करता है. इस संदर्भ में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संदर्भों का लेखा-जोखा रखा जाता है, और सतत या पर्यावरणीय और सामाजिक मानदंडों के इस्तेमाल में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है. ये जोख़िमों, नतीजों और प्रभाव की माप करने में सहायता करेगा, जिससे निवेशकों को निवेश अवसरों की बेहतर तरीक़े से निगरानी करने और उनकी तुलना करने का अवसर मिल जाएगा.

3. सतत वित्त में डिजिटल टेक्नोलॉजियों का प्रयोग

संभावित अवसरों और सतत वित्त में डिजिटल टेक्नोलॉजियों के प्रयोग पर जोख़िमों के बारे में जागरूकता के प्रसार को प्रोत्साहित करता है.

जापान, 2019[xxxii]

1. नवाचार और टेक्नोलॉजी पर सबक़ साझा करें 

बाज़ारों को उपयुक्त संकेत भेजने में नीति के इस्तेमाल समेत ऊर्जा नवाचार को बढ़ावा देता है, और परिवहन, हीट और उद्योग क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल को आगे बढ़ाने में क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करता है. इसके साथ ही बिजली प्रणाली के मांग-पक्षीय प्रबंधन, ऑफ-ग्रिड समाधानों और ऊर्जा भंडारण टेक्नोलॉजियों में भी इन्हीं क़वायदों को आगे बढ़ाता है. ये ऊर्जा परिवर्तनों को बढ़ावा देने में स्टार्ट अप्स और SMEs तक समर्थन के विस्तार की अहमियत की भी पहचान करता है.

2. सतत विकास लक्ष्यों का कार्यान्वयन

ग़रीबी उन्मूलन, गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे में निवेश, लैंगिक समानता, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, पर्यावरण, ऊर्जा और औद्योगिकीकरण जैसे क्षेत्रों में सतत विकास लक्ष्यों के समय पर क्रियान्वयन की दिशा में प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए ये विकासशील देशों में क्षमता-निर्माण को स्वीकार करता है.

सऊदी अरब, 2020[xxxiii] सऊदी अरब की अध्यक्षता के तहत G20 के विकास कार्यकारी समूह ने सतत विकास रूपरेखा के लिए G20 फाइनेंसिंग को स्वीकार किया. ये निम्न-आय वाले देशों में क्षमता निर्माण को सहारा देने में G20 की ज़िम्मेदारी को चित्रित करता है. ख़ासतौर से उन क्षेत्रों में जहां वो साझा चुनौतियों का सामना करता हैं. इस कड़ी में “टेक्नोलॉजी के स्वैच्छिक हस्तांतरण और डिजिटलाइज़ेशन के साथ-साथ उनकी राष्ट्रीय विकास रणनीतियों के अनुरूप मौजूदा संबंधित पहलों में समर्थन को मज़बूत करते हैं. अनुभवों और ज्ञान साझा करने के साथ-साथ पारस्परिक सहमति वाले संदर्भों को बढ़ावा देते हैं.”
इटली, 2021[xxxiv]

इटली की अध्यक्षता में G20 सतत वित्त (SF) रोडमैप की शुरुआत की गई, जो अपने विषय-वस्तुगत स्तंभों में तकनीकी सहायता की उत्प्रेरक भूमिका पर ज़ोर देता है, ख़ासतौर से फोकस एरिया 2 के भीतर (निरंतर, तुलनीय, और निर्णय लेने के लिए उपयोग सूचना और टिकाऊ जोख़िमों, अवसरों, और प्रभावों) पर ज़ोर देता है. फोकस एरिया 4 (अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थानों, सार्वजनिक वित्त और नीतिगत प्रोत्साहनों के इर्द-गिर्द केंद्रित), और फोकस एरिया 5 (आपस में घालमेल वाले मसलों के इर्द-गिर्द केंद्रित). ये इनमें से हरेक फोकस एरिया में विशिष्ट कार्य बिंदुओं का बखान करता है. इटली की अध्यक्षता के दौरान क्षमता-निर्माण प्रयासों में मज़बूती लाने के मक़सद से ये क़वायद की गई, जिसमें बाद की अध्यक्षताओं में रोडमैप को और आगे ले जाने की अहमियत को रेखांकित किया गया, ताकि टिकाऊ वित्त एजेंडे के प्रति निरंतरता, प्रासंगिकता और दिशा सुनिश्चित की जा सके. ये लघु और मझौले उद्यमों की फाइनेंसिंग पर भी ध्यान केंद्रित करता है; संक्रमण रूपरेखा में सामाजिक विचारों को एकीकृत करता है; पर्यावरण, समाज, सरकार (ESG) के विश्वसनीय डेटा और रेटिंग्स, ख़ुलासे, और देशों के मंचों की अहमियत; और संक्रमण वित्त और प्रक्रियाओं को सहारा देने के लिए क्षमता निर्माण को सहायता देता है.

1. कार्रवाई 9

उभरती अर्थव्यवस्थाओं और SMEs के लिए क्षमता निर्माण प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों (IOs) को प्रोत्साहित  करना, और डिजिटल तकनीकों और समाधानों का लाभ उठाकर सतत विकास रिपोर्टिंग में चुनौतियों और फ़ायदों को साधना. सिफ़ारिश 4 के हिस्से के रूप में ये अंतरराष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों (IFRS) के डेवलपर्स से अन्य अंतरराष्ट्रीय मानक स्थापकों के साथ सहयोग करने को प्रोत्साहित करता है, ताकि SMEs के लिए सतत-रिपोर्टिंग के ज़्यादा विशिष्ट दिशानिर्देश तैयार और जारी किए जा सकें.

2. कार्रवाई 14

उभरती अर्थव्यवस्थाओं और SMEs को क्षमता निर्माण सहायता पहुंचाने में बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDBs) की भूमिका को स्वीकार करता है, ताकि प्रदर्शित परियोजनाओं की सुविधा देते वक़्त न्यायसंगत जलवायु संक्रमण सुनिश्चित की जा सके. इसके अलावा, MDBs को घरेलू क्षमता तैयार करने; वित्तीय प्रणाली को हरित बनाने; वर्गीकरण और प्रकटीकरण आवश्यकताओं समेत वित्तीय नीति और नियामक ढांचे की संरचना बनाने; नीतिगत प्रोत्साहनों का निर्माण करने, उत्पाद नवाचारों, और स्थायी रूप से दोबारा पटरी पर लाने की रणनीतियों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (NDC), पेरिस समझौता लक्ष्यों और 2030 SDG एजेंडे के हिसाब से प्रदर्शन करने में सहायता करनी चाहिए.

3.  कार्रवाई 19

तकनीकी सहायता की पेशकश कर रहे अंतरराष्ट्रीय संगठनों और अन्य इकाइयों को क्षमता निर्माण की ओर अपने प्रयासों में तालमेल बिठाते हुए उनमें सामंजस्य लाना चाहिए. इससे रोडमैप में रेखांकित प्राथमिकताओं के हिसाब से तालमेल हो सकेगा.

इंडोनेशिया, 2022[xxxv]

इंडोनेशियाई अध्यक्षता ने सतत वित्त रोडमैप में कार्य बिंदुओं को आगे बढ़ाते हुए सतत वित्त इकोसिस्टम में स्टेकहोल्डर्स के पूरे दायरे को विशिष्ट सिफ़ारिशें प्रस्तुत कीं. इस सिलसिले में बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDBs), तकनीकी सहायता प्रदाताओं, और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों (IOs) से लेकर देशों के प्राधिकारियों, घरेलू वित्तीय संस्थानों (FIs), प्रासंगिक प्राधिकारों, और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्कों को क्षमता-निर्माण के उन्नत प्रयासों का प्रस्ताव किया गया ताकि सतत विकास लक्ष्य एजेंडे के लिए पूंजी का स्तर ऊंचा उठाया जा सके.

1. सिफ़ारिश 6

MDBs और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों को देशों में ज्ञान साझा करने और तकनीकी सहायता कार्यक्रम मुहैया करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है. ऐसे देश स्वैच्छिक वित्तीय क्षेत्र वचनबद्धताओं को सहारा देने के लक्ष्य के साथ समर्थन देने के लिए अनुरोध करते हैं; तुलनीयता में सुधार, पारदर्शिता, और उपकरणों, मापक टेक्नोलॉजियों और गणना-पद्धतियों तक पहुंच में सुधार लाने; और प्रभावी प्रबंधन के लिए मंच मुहैया कराने में मदद करेंगे. अंतरराष्ट्रीय नेटवर्कों, ग़ैर-सरकारी संगठनों, और थिंक टैंकों को भी इन पहलों में मदद करने के लिए अपने संसाधनों का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है. साथ ही विशिष्ट कार्बन अकाउंटिंग, विज्ञान-आधारित लक्ष्य स्थापना, और परिदृश्य विकास पर निर्भर रहने वाले उपकरणों की स्वीकार्यता और क्रियान्वयन में प्रशिक्षण का विस्तार करने पर भी ज़ोर देते हैं.

2. सिफ़ारिश 12

अधिकारियों, नियामकों, और वित्तीय क्षेत्र के पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण गतिविधियों के साथ-साथ पहले से तैयार तकनीकी सहायता कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करता है, ताकि सतत वित्त नीति संरचना और रोडमैप, नियमन (प्रकटीकरण आवश्यकताओं समेत), सत्यापन सेवाओं, ESG से संबंधित गणना पद्धतियों, नीतिगत प्रोत्साहनों, हरित वित्त उत्पाद नवाचार और विकास को आगे बढ़ाने में समर्थन किया जा सके. इस संदर्भ में विकास और फिनटेक समाधानों के प्रयोगों पर भी ज़ोर दिया गया है. बहुपक्षीय विकास बैंकों, तकनीकी सहायता प्रदाताओं, और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को क्षमता-निर्माण से जुड़े इन कार्यक्रमों की अगुवाई करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. इस सिलसिले में उन्हें स्थानीय वित्तीय संस्थानों से मदद मिलेगी जो विकासशील देशों में अपनी क्षमताओं को आगे बढ़ाएंगे.

3.  सिफ़ारिश 19

कार्यक्षमता बढ़ाने और टिकाऊ वित्त परिचालनों की लागत घटाने के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजियों और समाधानों की तैनाती और स्वीकार्यता को प्रोत्साहित करता है. इसमें टिकाऊ गतिविधियों और परिसंपत्तियों की पहचान और लेबलिंग, चरणबद्ध ESG सूचनाओं की निगरानी और प्रकटीकरण, और टिकाऊ परिसंपत्तियों का व्यापार और प्रबंधन शामिल हैं. MDBs, तकनीकी सहायता प्रदाताओं, और प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय संगठनों और नेटवर्कों को इसके लिए क्षमता-निर्माण समर्थन उपलब्ध कराना चाहिए.

2016 से G20 अध्यक्षताओं के तहत सतत वित्त के लिए क्षमता निर्माण को प्रोत्साहित करने और आगे बढ़ाने से जुड़ी क़वायदों में फाइनेंसिंग और बाज़ार व्यवस्थाओं में टिकाऊ विचारों को मुख्य धारा में लाने की अहमियत स्वीकार की गई है. पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक तौर पर सकारात्मक असर हासिल करने के लिए सतत विकास लक्ष्यों की उपलब्धि को सहारा देने के लिए ये प्रयास किए गए हैं. हालांकि, तमाम चुनौतियों ने ख़ासतौर से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में और सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों (MSMEs) के लिए अड़चनें लगा रखी हैं. क्षमता निर्माण प्रयासों के वितरण के साथ-साथ वांछित नतीजे और प्रभाव पैदा करने के लिए ये उपाय किए गए हैं.

सर्वप्रथम, इन कार्यक्रमों की संरचना और क्रियान्वयन को बाहरी एजेंसियों के ऊपर छोड़ दिया गया है. इनमें सबसे उल्लेखनीय तौर पर बहुपक्षीय संस्थान, सार्वजनिक विकास बैंक (PDB), और सिविल सोसाइटी के अन्य संगठन (CSO) शामिल हैं, जिनके संसाधन और क्षमताएं सतत वित्त में क्षमता निर्माण की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिहाज़ से पर्याप्त नहीं हैं. दूसरा, वैसे तो क्षमता निर्माण के कुछ कार्यक्रम पहले से ही परिचालन में है, लेकिन विशिष्ट संदर्भों से मेल खाने वाली सबसे प्रभावपूर्ण सामग्री और वितरण के तौर-तरीक़ों को लेकर सर्वसम्मति का अभाव है. और आख़िरकार, क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों में प्रभावी समन्वय और सहभागिता का अभाव देशों, विषयों और लक्षित जनसंख्या तक उनकी पहुंच को सीमित कर देता है, जिसके नतीजतन ज़मीन पर संभावित रूप से दोहराव भरे प्रयास और बेअसर प्रभाव सामने आते हैं.[xxxvi]

लिहाज़ा, सुई को सही दिशा में मोड़ने के लिए ज़्यादा विशिष्ट और ध्यान-केंद्रित कार्य योजना होना ज़रूरी है. इस सिलसिले में नतीजा देने योग्य तौर-तरीक़ों की ओर उन्मुख रुख़ रखा जाना चाहिए, जो कार्यक्रम की संरचना और ढांचे की रूपरेखा खींचता हो और क्रियान्वयन एजेंसियों को हाथ में लिए गए कार्य पूरा करने की ज़िम्मेदारी सौंपता हो.

प्रस्तावित तकनीकी सहायता कार्य योजना (TAAP)

SFWG के तत्वावधान में पहले G20 टिकाऊ वित्त TAAP के साथ भारत की G20 अध्यक्षता इस चुनौती के निपटारे का प्रयास कर रही है. वांछित नतीजे हासिल करने के लिए ये G20 की मौजूदा और पूर्व अध्यक्षताओं के द्वारा दिए गए सुझावों को ना सिर्फ़ मज़बूत करने, बल्कि ठोस रूप देने का भी लक्ष्य रखती है. TAAP को बहु-वर्षीय दस्तावेज़ के तौर पर पेश किया जाता है. आगामी G20 अध्यक्षताओं, कार्य समूह के सह-अध्यक्षों, और सदस्यों के निर्णयों पर इसकी समय-समय पर समीक्षा की जाएगी. इस कड़ी में सतत वित्त बाज़ार के उभरते परिदृश्य और सतत वित पेशेवरों की ज़रूरतों पर विचार किया जाएगा.[xxxvii]

TAAP पूरे इकोसिस्टम में मौजूद तमाम स्टेकहोल्डर्स के बीच सूचना संग्रहण के लिए दिशानिर्देश मुहैया कराने का काम करता है, ताकि मौजूदा तकनीकी सहायता परिदृश्य को समझा जा सके. इतना ही नहीं अंतरों और अवसरों की पहचान के साथ-साथ बेहतरीन अभ्यासों और सफल अनुभवों को भी सामने लाया जा सके.

TAAP पूरे इकोसिस्टम में मौजूद तमाम स्टेकहोल्डर्स के बीच सूचना संग्रहण के लिए दिशानिर्देश मुहैया कराने का काम करता है, ताकि मौजूदा तकनीकी सहायता परिदृश्य को समझा जा सके. इतना ही नहीं अंतरों और अवसरों की पहचान के साथ-साथ बेहतरीन अभ्यासों और सफल अनुभवों को भी सामने लाया जा सके. हरेक देश की अद्वितीय परिस्थितियों का लेखा-जोखा रखते वक़्त इन तमाम क़वायदों को दोहराया जा सकता है. इसके आगे ये क्षमता निर्माण प्रदाताओं को विशिष्ट सिफ़ारिशें और कार्य बिंदु मुहैया कराने का लक्ष्य रखता है ताकि उन्हें तकनीकी सहायता (TA) कार्यक्रमों की एक पूरी श्रृंखला के साथ पूरक के तौर पर ऊंचा उठाया जा सके. ये कार्यक्रम आसानी से पहुंच में आने वाले, प्रभावी और स्थानीय संदर्भों के अनुकूल होने चाहिए. हालांकि इन गतिविधियों को अमली जामा पहनाने के लिए वित्तीय संसाधनों के संग्रहण का ज़िम्मा क्षमता-निर्माण प्रदाताओं के भरोसे छोड़ दिया गया है.[xxxviii]

G20 SFWG डेलिवरेबल्स 2023 TAAP के लिए निम्नलिखित कार्य बिंदुओं को रेखांकित करता है, जिन्हें तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:[xxxix]

  1. क्षमता-निर्माण सेवाओं के लिए सक्षमकारी वातावरण तैयार करना

सतत वित्त को राष्ट्रीय सतत विकास योजनाओं के साथ जोड़ने में क्षमता-निर्माण प्रयासों का तालमेल बिठाने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए ये खंड सार्वजनिक प्राधिकारों, निजी क्षेत्रों, शोध संस्थानों, ग़ैर-सरकारी संगठनों, और औद्योगिक संघों के बीच सहभागिता का आह्वान करता है. इसके अतिरिक्त ये वित्तीय बाज़ार के हिस्सेदारों से जलवायु परिवर्तन और सतत विकास लक्ष्यों में निवेश के लिए आंतरिक क्षमताओं को बढ़ाने का अनुरोध करता है. ज्ञान के अंतरालों को पाटने और क्षमता रूपरेखों की स्थापना करते वक़्त ये क़वायद करनी ज़रूरी हो जाती है. टिकाऊपन से जुड़े जोख़िमों के बीच राह बनाने में (ख़ासतौर से MSMEs के बीच) ग्राहकों की मदद करने के लिए ये वित्तीय संस्थानों से टिकाऊ वित्तीय उत्पादों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का प्रस्ताव करता है. इसके तहत अंतिम तौर पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों, विकास बैंकों और मंचों द्वारा क्षमता-निर्माण के समन्वित वैश्विक नेटवर्क तैयार करने पर ज़ोर दिया जाता है. इसके ज़रिए क़वायदों का पैमाना बढ़ाया जा सकेगा, ज्ञान साझा किए जा सकेंगे, सामग्रियों का विकास होगा, और ज़रूरतमंद देशों और स्टेकहोल्डर्स के साथ संपर्कों में सुधार आएगा.

  1. क्षमता-निर्माण सेवाएं तैयार करना

ये खंड सार्वजनिक क्षेत्र के प्राधिकारों, सार्वजनिक विकास बैंकों, और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ तकनीकी सहायता प्रदाताओं और ऐसी सहायता हासिल करने वालों की सहभागिता पर ज़ोर देता है. इस तरह क्षमता निर्माण की सेवाओं को स्थानीय सतत वित्त पारिस्थितिकी तंत्रों की अद्वितीय ज़रूरतों के हिसाब से आकार दिया जा सकेगा. इसके अतिरिक्त ये ज़रूरी विषयों को प्राथमिकता दिए जाने को प्रोत्साहित करता है, जिनमें परिवर्तनकारी वित्तीय रूपरेखाओं का क्रियान्वयन, टिकाऊपन जोख़िम आकलन, डेटा संग्रहण और रिपोर्टिंग, और हरित, सामाजिक और सतत (GSS) बॉन्डों (ख़ासतौर से MSMEs पर ध्यान केंद्रित करने वाले) को जारी करना शामिल है. इसके साथ-साथ उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EMDEs) की विशिष्ट आवश्यकताओं पर भी ध्यान रखा जाना चाहिए. ये खंड डिजिटल प्रौद्योगिकियों का भरपूर लाभ उठाने की ज़रूरत को भी रेखांकित करता है. इसके साथ ही सेवा वितरण की गुणवत्ता और पैमाने में सुधार लाने के लए ऑन लाइन मंचों तक पहुंच को व्यापक बनाए जाने पर भी बल दिया गया है.

  1. परिवर्तनकारी वित्त और अन्य SDGs पर क्षमता निर्माण

ये खंड क्षमता-निर्माण प्रदाताओं से SFWG द्वारा 2022 में शुरू किए गए परिवर्तन वित्त ढांचे के साथ-साथ SDGs से जुड़े व्यापक मसलों को बढ़ावा देने में अपने प्रयासों पर नए सिरे से बल देने का आह्वान करता है. प्रदाताओं को आगे रूपरेखा के तमाम स्तंभों में क्षमता निर्माण और ज्ञान साझा करने की क़वायदों को वरीयता देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इस दायरे में परिवर्तन वित्त गतिविधियों और निवेशों की पहचान करना, रिपोर्टिंग और प्रकटीकरण को बढ़ावा देना, संक्रमण से संबंधित वित्तीय उपकरणों को सहारा देना, प्रोत्साहन नीतियां और समर्थनकारी उपाय तैयार करना, और न्यायोचित संक्रमण विचारों का निपटारा करना शामिल है. इसके अतिरिक्त ये वित्तीय संस्थानों को संक्रमण नियोजन में उनकी क्षमताएं बढ़ाने का सुझाव देता है. इस कड़ी में आगे की ओर उन्मुख डेटा पर ज़ोर देते हुए उनके अपने-अपने संक्रमणकारी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ज़रूरी विश्वसनीय रास्तों को रेखांकित करने वाले क़दमों की भी आवश्यकता बताई गई है.

TAAP के लिए प्रस्तावित वितरण प्रणालियां 

ये खंड SFWG की अगुवाई वाले TAAP के लिए विशिष्ट डेलिवरेबल्स की ओर उन्मुख सिफ़ारिशों का प्रस्ताव करता है. चूंकि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) SDG फाइनेंस सेक्टर हब, G20 SFWG सचिवालय के तौर पर काम करता है, लिहाज़ा इसे इन प्रयासों के साथ तालमेल बिठाने की ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है. इस सिलसिले में तमाम क्षेत्रीय केंद्रों के साथ-साथ कार्यक्रम संबंधी और क्रियान्वयन सहयोगियों से सहायता हासिल की जा सकती है, ताकि विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थों की ठोस संस्थागत ढांचे तैयार करने में मदद की जा सके. ये ढांचे टिकाऊ परियोजनाओं के लिए वैश्विक पूंजी के बड़े संग्रह तक पहुंच को सक्षम बनाते हुए उनका प्रबंधन कर सकते हैं.

  1. क्षमता-निर्माण सलाहकारी केंद्र का गठन

अनेक बहुपक्षीय संस्थानों की मदद से क्षमता निर्माण और तकनीकी सहायता के ढेरों कार्यक्रम फ़िलहाल विश्व स्तर पर परिचालित हैं (बॉक्स 2 देखें). तमाम प्रणालियों के बीच प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करने के लिए एक सर्वव्यापी क्षमता निर्माण सलाहकारी केंद्र इन क़वायदों में तालमेल बिठाते हुए उन्हें ठोस रूप दे सकता है. क्षमता निर्माण के ऐसे ही प्रयासों को समर्थन देने में उनके प्राधिकार और अनुभव को देखते हुए UNDP SDG वित्त क्षेत्र केंद्र, इस सलाहकारी केंद्र का समर्थन करने और उसे स्थान देने के लिहाज़ से बेहतरीन स्थिति में है.

सलाहकारी केंद्र का उद्देश्य देशों की क्षमता निर्माण ज़रूरतों का ख़ाका तैयार करना और उन्हें पूरा करना होना चाहिए. इस सिलसिले में इन आवश्यकताओं को साधने वाले उपयुक्त कार्यक्रमों को सामने रखा जाना चाहिए. मिसाल के तौर पर, भारत एक घरेलू कार्बन व्यापार प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया में है.[xl] कार्बन बाज़ारों में तकनीकी सहायता की भारत की ज़रूरतों की मौजूदा पहलों के साथ तालमेल बिठाने में ये सलाहकारी केंद्र निर्णायक भूमिका निभा सकता था. इन मौजूदा पहलों में विश्व बैंक का कार्बन वित्त और बाज़ार तैयारी के लिए साझेदारी (PMR) कार्यक्रम शामिल हैं. इस तरह से क्षमता निर्माण के विभिन्न प्रयासों के बीच प्रभावी तालमेल सुनिश्चित हो सकेगा और वांछित परिणामों को अधिकतम सीमा तक ले जाया जा सकेगा.

बॉक्स 2: बहुपक्षीय संस्थानों द्वारा क्षमता-निर्माण के मुख्य कार्यक्रम

पुनर्निर्माण और विकास के लिए यूरोपीय बैंक (EBRD) का हरित अर्थव्यवस्था संक्रमण (GET) ढांचा: EBRD का GET फ्रेमवर्क हरित और टिकाऊ अभ्यासों में अर्थव्यवस्थाओं के मार्गदर्शन के लिए समर्पित है. इस रूपरेखा के तहत EBRD अपने परिचालन क्षेत्र के भीतर आने वाले कारोबारों और वित्तीय संस्थानों के लिए क्षमता-निर्माण पहलों का क्रियान्वयन करता है. मिसाल के तौर पर, EBRD ने हरित परियोजनाओं के लिए कोष उपलब्ध कराने की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कज़ाख़स्तान के राष्ट्रीय विकास बैंक को तकनीकी सहायता की पेशकश की है. इनमें नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता पर केंद्रित प्रयास भी शामिल हैं.[41]

ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल्स (GBCs): तमाम देशों में GBCs पर्यावरण-अनुकूल और सतत निर्माण पद्धतियों को आगे बढ़ाने के लक्ष्य से क्षमता-निर्माण पहलों को अंजाम देते हैं. ये कार्यक्रम निर्माण और रियल एस्टेट उद्योगों में काम करने वाले पेशेवरों के हिसाब से तैयार प्रशिक्षण और सर्टिफिकेशन की पेशकश करते हैं. उदाहरण के तौर पर यूएस ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (USGBC) LEED सर्टिफिकेशन कार्यक्रम उपलब्ध कराता है, जिसके ज़रिए वैश्विक स्तर पर टिकाऊ निर्माण अभ्यासों की स्वीकार्यता को आगे बढ़ाया जाता है.[42]

UNDP का हरित वित्त विकास कार्यक्रम (GFDP): GFDP का प्राथमिक उद्देश्य वित्तीय संस्थानों, नियामक निकायों और उद्यमों की क्षमताओं को बढ़ाकर हरित वित्त और टिकाऊ विकास को आगे बढ़ाना है. इस समग्र कार्यक्रम के दायरे में प्रशिक्षण, ज्ञान का आदान-प्रदान और नीतिगत सहायता आते हैं. उल्लेखनीय है कि इसने चीन के बैंकिंग क्षेत्र के भीतर ऋण अभ्यासों में पर्यावरणीय और सामाजिक जोख़िम प्रबंधन के एकीकरण को सुलभ बनाया है.[43]

विश्व बैंक का कार्बन वित्त क्षमता निर्माण कार्यक्रम: विश्व बैंक का कार्बन वित्त क्षमता निर्माण कार्यक्रम कार्बन मूल्य प्रणालियों के गठन और कार्बन वित्त तक पहुंच को सुलभ बनाने के लिए सहायता पहल के तौर पर काम करता है. ये कार्यक्रम सरकारों, उद्यमों और वित्तीय संस्थानों को प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता, दोनों उपलब्ध कराता है. कोलंबिया के मामले में, इसने कार्बन टैक्स के निर्माण और क्रियान्वयन में सरकार की मदद करने में अहम भूमिका निभाई है.[44]

विश्व बैंक की बाज़ार तत्परता के लिए साझेदारी (PMR): PMR एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम है, जिसे कार्बन मूल्यन प्रणालियों के निर्माण और क्रियान्वयन में देशों की मदद करने के हिसाब से तैयार किया गया है. ये कार्यक्रम कार्बन कराधान (टैक्सेशन) के लिए ज़रूरी सुचारू कार्बन बाज़ारों या प्रणालियों की स्थापना के लिए ज़रूरी क्षमताओं और विशेषज्ञता के विकास को सुविधाजनक बनाता है. PMR ने मैक्सिको, थाईलैंड और चिली जैसे देशों का साथ सहभागिता करके ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए बाज़ार-संचालित नीतियों का निर्माण और परीक्षण किया है.[45]

एशियाई विकास बैंक (ADB): जलवायु वित्त के क्षेत्र में सरकारों, उद्यमों और वित्तीय संस्थानों की क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए ADB क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों का आयोजन करता है. इनमें मिसाल के तौर पर प्रशांत क्षेत्र में संचालित कार्यक्रम शामिल है. फिजी में, नवीकरणीय ऊर्जा और लचीलेपन से जुड़ी परियोजनाओं के लिए सरकार की जलवायु वित्त सुरक्षित करने में वहां की सरकार की क्षमता को मज़बूत बनाने के लिए ABD ने सरकार के साथ सहभागिता की है.[46]

  1. राष्ट्रीय सतत वित्त तत्परता कार्यक्रम की संरचना तैयार करना

G20 राष्ट्रीय सतत वित्त तैयारी कार्यक्रम स्थापित करने में देशों की सहायता कर सकता है. पूंजी तक पहुंच बनाने के साथ-साथ राष्ट्रीय और उपराष्ट्रीय, दोनों स्तर पर कायाकल्पकारी सतत वित्त परियोजनाओं की सुपुर्दगी और निगरानी में सरकारों की मदद के लिए ये प्रयास किए जा सकते हैं. ये घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के निवेशकों के लिए एक अहम नीतिगत संकेत के तौर पर काम करेगा, जिससे उन्हें उनके निवेशों के लिए स्पष्ट और प्रतिबद्ध दिशा प्राप्त होगी. प्रासंगिक संबंधित मंत्रालयों के साथ नज़दीकी से काम करते हुए और केंद्रीय बैंकों के साथ सहभागिता में वित्त मंत्रालय को इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में नेतृत्वकारी भूमिका निभाना चाहिए. G20 वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों (FMCBG) की बैठकों में इस मसले के निपटारे को प्राथमिकता के तौर पर लेना चाहिए.

G20 राष्ट्रीय सतत वित्त तैयारी कार्यक्रम स्थापित करने में देशों की सहायता कर सकता है. पूंजी तक पहुंच बनाने के साथ-साथ राष्ट्रीय और उपराष्ट्रीय, दोनों स्तर पर कायाकल्पकारी सतत वित्त परियोजनाओं की सुपुर्दगी और निगरानी में सरकारों की मदद के लिए ये प्रयास किए जा सकते हैं.

ये कार्यक्रम राष्ट्रीय, उप-राष्ट्रीय और क्षेत्रवार नीतियों और बजटों में टिकाऊ माप को मुख्य धारा में लाने में सरकारों की मदद कर सकता है. ये स्थानीय नीति-निर्माताओं को नीतियों और नियमनों (एक इंटर-ऑपरेबल वर्गीकरण या टैक्सोनॉमी समेत) की संरचना बनाने और उन्हें लागू करने; अंतरराष्ट्रीय रूप से तालमेल वाली रिपोर्टिंग और प्रकटीकरण रूपरेखाएं तैयार करने; टिकाऊ जोख़िम आकलन उपकरणों, मानकों, और उपकरणों; और डेटा संग्रह और प्रबंधन की ठोस प्रणालियां तैयार करने में मदद कर सकता है.

ये कार्यक्रम एक प्रभावी मिश्रित वित्त नीति को भी सामने रखने पर विचार कर सकता है. इसमें रियायती और ग़ैर-रियायती कोष और मिश्रित वित्त और संसाधनों के अनुकूलतम पुनर्निर्माण में संतुलन सुनिश्चित करने वाली प्रणालियां शामिल रहेंगी.

इसे इन कार्यक्रमों पर अमल करने वाले दूसरे देशों से सिफ़ारिशों और बेहतरीन अभ्यासों को इकट्ठा करने का भी लक्ष्य रखना चाहिए. इस तरह ज्ञान साझा करने, सामने खड़े जोख़िमों को न्यूनतम स्तर तक लाने और सीमा पार के संसाधनों का अनुकूलतम इस्तेमाल सुनिश्चित करने की दिशा में क़दम बढ़ाए जा सकेंगे. कार्यक्रम को बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDBs) और विकास वित्त संस्थानों (DFIs) पर निगरानी रखने की भी ज़िम्मेदारी दी जानी चाहिए. जल्द बाज़ार का निर्माण करने; संक्रमण कालीन परियोजनाओं को जोख़िम-मुक्त बनाने; और निजी पूंजी को एकत्रित करने के प्रयासों की दिशा में इस क़वायद को अंजाम दिया जाना चाहिए.[xlvii] मिसाल के तौर पर यूरोपीय संघ (EU) ने LIFE स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन उप-कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसे ऊर्जा-कुशल, नवीकरणीय ऊर्जा-आधारित, जलवायु-तटस्थ और लोचदार अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने के हिसाब से तैयार किया गया है. इस कार्यक्रम का लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तनों को बढ़ावा देने वाले राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय नीति रूपरेखाओं के विकास में यूरोपीय संघ की मदद करना है. ये तकनीकी और डिजिटल समाधानों को स्वीकारे जाने की क़वायद में तेज़ी लाने पर भी ध्यान केंद्रित करता है, ताकि इन प्रयासों को सहारा दिया जा सके. इससे कार्यबलों के पेशेवराना कौशल को ऊंचा उठाया जा सकेगा, परिवर्तनकारी गतिविधियों के लिए निजी निवेश आकर्षित करने के अवसरों की पड़ताल हो सकेगी, और स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन की ओर यात्रा में नागरिकों को जोड़कर उनका सशक्तिकरण हो सकेगा.[xlviii] दूसरे मामले में, जर्मनी के आर्थिक सहयोग और विकास से जुड़े संघीय मंत्रालय की सहायता से अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए जर्मन एजेंसी ने चिली सरकार के साथ सहभागिता की. इस प्रयास का मक़सद जलवायु वित्त तैयारी कार्यक्रम पर अमल करना था. इसके पीछे नवीकरणीय ऊर्जा के लिए वैधानिक और नियामक ढांचों को आगे बढ़ाने का उद्देश्य था. इसके लिए जलवायु परिवर्तन से जुड़े विचारों को राष्ट्रीय, उप-राष्ट्रीय और क्षेत्रवार नियोजन और नीतियों की मुख्यधारा में शामिल किया गया. इस कार्यक्रम के नतीजतन नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए देश में करोड़ों डॉलर की रकम आकर्षित हुई.[xlix]

  1. राष्ट्रीय परियोजना तैयारी और विकास सुविधा तैयार करना

विकासशील देशों में तकनीकी कोष परियोजनाओं की संरचना और विकास के लिए अक्सर संस्थागत क्षमता का अभाव होता है. इसके साथ ही पेचीदा प्रक्रियागत कोष प्रयोगों पर प्रतिक्रिया जताने की शक्ति की भी कमी होती है.[l] एक विशिष्ट राष्ट्रीय स्तर की परियोजना तैयारी और विकास सुविधा की संरचना बनाने में TAAP को देशों की मदद करनी चाहिए, जो परियोजना तैयारी प्रयोग प्रक्रियाओं में स्थानीय संस्थानों और कारोबारों को मदद पहुंचाने में उपयोगी साबित हो सकता है. इसके आगे TAAP को सांगठनिक ढांचे और नियमनों के संदर्भ में सुविधा की रूपरेखा को चित्रित करना चाहिए, और सुविधा के बुनियादी चार्टर और मुख्य नीतिगत दस्तावेज़ के प्रबंधन की निगरानी करनी चाहिए. इस सुविधा को संबंधित देश के वित्त या आर्थिक मंत्रालय के दायरे के तहत भी आना चाहिए.

मांग पक्ष पर, इस सुविधा को टिकाऊ परियोजनाओं की पहचान और शुरुआती आकलन की क़वायदों को समर्थन देना चाहिए. आगे चलकर ये परियोजना प्रस्तावों के निर्माण में संभावित कर्ज़दारों की मदद कर सकता है. राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार तकनीकी ट्रेनिंग को संस्थागत रूप देने के ज़रिए इसे अंजाम दिया जा सकता है. इसमें वित्तीय, तकनीकी और राजनीतिक स्तर पर व्यवहार्यता-पूर्व अध्ययनों, लागत-लाभ विश्लेषणों, क्षमता-मूल्यांकन उपकरणों, बजटीय रूपरेखाओं और परियोजना वितरण नियोजन को शामिल किया जाना चाहिए.[li] परियोजना स्वामियों की क्षमता को मज़बूत करने के लिए परियोजना क्रियान्वयन के शुरुआती चरण में परियोजना सलाहकारी समर्थन मुहैया कराए जा सकते हैं.

आपूर्ति पक्ष में, इस सुविधा को संभावित दानदाताओं, सहयोगियों और निजी क्षेत्र के साथ विविधतापूर्ण नेटवर्क तैयार करना चाहिए. छांटी गई परियोजनाओं के लिए रियायती संक्रमण वित्त तक पहुंच को आसान बनाने के लिए इस क़वायद को अंजाम दिया जाना चाहिए. सार्वजनिक विकास वित्त में MDBs और अन्य बड़े अंतरराष्ट्रीय किरदारों को इनके परियोजना विश्लेषण को आगे बढ़ाने की सुविधा को समर्थन देने की अगुवाई करनी चाहिए. इसके अलावा तैयारी क्षमता के साथ-साथ ऋणदाताओं और पूंजी के उधारकर्ताओं के बीच मध्यस्थता करने पर भी ज़ोर देना चाहिए. मिसाल के तौर पर फंडिंग प्रस्ताव तैयार करके और वित्तीय, तकनीकी और राजनीतिक व्यवहार्यता में विशेषज्ञता की पेशकश करगे GIZ ने मैक्सिको की मदद करने में अग्रणी भूमिका निभाई है, जिससे उसने अपने राष्ट्रीय उपयुक्त रोकथाम कार्रवाई (NAMA) के लिए 1.4 करोड़ यूरो प्राप्त किए हैं. इस क़वायद का लक्ष्य नई सामाजिक आवासीय परियोजनाओं में ऊर्जा दक्षता को आगे बढ़ाना है.[lii]

इसी प्रकार, UNDP ने परियोजना तैयारी के लिए तकनीकी सहायता की पेशकश करने के लक्ष्य के साथ CIS (स्वतंत्र राष्ट्रों के राष्ट्रमंडल) इलाक़े में एक परियोजना पर अमल किया. इस सिलसिले में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से संभावित फंडिंग को लक्ष्य बनाया गया. इसने प्रोजेक्ट प्रिपरेशन फाउंडेशन गठित करने में भी मदद की, जिसे 2018 से 2023 तक किर्गिस्तान गणराज्य की सरकार के कार्यक्रम में औपचारिक रूप से जोड़ा गया. ये सहायता आर्मेनिया, बेलारुस, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान जैसे देशों में भी सरकारी और निगम इकाइयों तक विस्तारित की गई.[liii]

4.सतत वित्त मानव संसाधन विकास एकेडमी का निर्माण करें.

संक्रमण से जुड़ी परियोजनाओं के लिए वित्त का सतत प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए पूंजी मुहैया कराने और पूंजी चाहने वाले स्टेकहोल्डर्स का कौशल और प्रशिक्षण अहम है. इस सिलसिले में आख़िरकार तमाम सतत विकास लक्ष्यों को दायरे में ले लिया जाएगा. इकोसिस्टम में ज्ञान के अंतराल को पाटने और एक समग्र ढांचा विकसित करने के लिए सभी ज़रूरी प्रयास किए जाने चाहिए. इनमें मानव संसाधन प्रबंधन के लिए क़ानूनी आधार, प्रमाणीकरण, दिशानिर्देश और प्रशिक्षण मॉड्यूल्स शामिल है. तमाम अहम उद्योगों में लोगों के लिए तकनीकी क्षमता तैयार करने के सिलसिले में ऐसी क़वायद बेहद ज़रूरी है.

UNDP SDG वित्तीय क्षेत्र केंद्र को एक टिकाऊ वित्त मानव संसाधन विकास एकेडमी (SF-HRDA) को स्थान देना चाहिए, और देशों में कौशल-विकास की श्रृंखला वाले मंत्रालयों के साथ काम करना चाहिए.

UNDP SDG वित्तीय क्षेत्र केंद्र को एक टिकाऊ वित्त मानव संसाधन विकास एकेडमी (SF-HRDA) को स्थान देना चाहिए, और देशों में कौशल-विकास की श्रृंखला वाले मंत्रालयों के साथ काम करना चाहिए. इससे संक्रमण वित्त परियोजनाओं के प्रभावी प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की संरचना बनाई जा सकेगी और उनका प्रस्ताव किया जा सकेगा. इस तंत्र के ज़रिए जागरूकता का भी प्रसार होगा और सरकारी एजेंसियों, राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, कारोबारों और उद्यमों की क्षमताओं को आगे बढ़ाया जा सकेगा. ये एकेडमी संक्रमण वित्त पर जागरूकता कार्यक्रमों की शुरुआत के लिए ज़िम्मेदार होगी. इस कड़ी में ज्ञान उत्पादों, जैसे एनालिटिकल और तकनीकी अध्ययनों, पॉलिसी ब्रीफ, सर्वेक्षणों और प्रमुख अहमियत वाले मसलों पर एनालिटिकल पेपर्स शामिल हैं. साथ ही क्षेत्रीय कार्यशालाओं, सेमीनारों, प्रजेंटेशंस और केस स्टडीज़ का भी आयोजन किया जाएगा. इसके अलावा तकनीकी सहायता पोर्टल के माध्यम से प्रशिक्षण मॉड्यूल भी उपलब्ध कराने होंगे. इसे सार्वजनिक-निजी साझेदारियों और सेकेंडमेंट कार्यक्रमों के ज़रिए विदेशी निवेशकों और अंतरराष्ट्रीय विकास वित्त संस्थानों के साथ ज्ञान के हस्तांतरण को भी प्रोत्साहित करना चाहिए.[liv]

निष्कर्ष

प्रस्तावित TAAP को क्षमता निर्माण वितरण प्रणालियों को संस्थागत स्वरूप देने की प्रस्तावित क़वायदों का समर्थन करना चाहिए. इससे देश के स्तर पर क्षमता निर्माण के प्रावधान और तकनीकी सहायता को सहारा दिया जा सकेगा. नाज़ुक टिकाऊ वित्त की पहुंच और प्रावधान को आगे बढ़ाने के लक्ष्य से इन क़वायदों को अंजाम दिया जा सकेगा. इन सिफ़ारिशों को हरेक राज्य की स्थानीय आकांक्षाओं, महत्वाकांक्षाओं और वचनबद्धताओं में संदर्भ के हिसाब से प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए.

TAAP के तहत इन डेलिवरेबल्स के क्रियान्वयन के प्रमुख बुनियादी परिणामों को इस प्रकार सुनिश्चित किया जा सकता है: a) सतत वित्त पर केंद्रित निवेश-योग्य मार्गों का निर्माण; b) निवेशित परियोजनाओं की कारोबारी व्यवहार्यता में सुधार; और c) टिकाऊ परियोजनाओं के निवेश प्रदर्शनों में बढ़ोतरी, जो अनुकूल दरों पर परिणाम-आधारित विशाल पैमाने और लंबे कालखंड वाली फाइनेंसिंग का आगे रास्ता साफ़ करने में और मदद करेगी.


मन्नत जसपाल ओआरएफ़ में एसोसिएट फेलो हैं.


[i] Erica Gerretsen, “With technical assistance, the European Union supports sustainable growth and decent jobs in developing countries”, interview by Private Sector and Development, Private Sector and Development, March 23, 2022.

[ii] UNCTAD, “Ukraine war risks further cuts to development finance,” United Nations Conference on Trade and Development. March 23, 2022.

[iii] UNCTAD, “Ukraine war risks further cuts to development finance

[iv] United Nations, Inter-agency Task Force on Financing for Development. Financing for Sustainable Development Report 2023. New York: United Nations, 2023.

[v] United Nations, Domestic Public Resources: 2023 Financing for Sustainable Development Report, Department of Economic and Social Affairs, 2023.

[vi] United Nations, Addis Ababa Action Agenda of the Third International Conference on Financing for Development, New York, United Nations Department of Economic and Social Affairs, 2015.

[vii] G20 India, G20 Sustainable Finance Working Group, Co-Chairs’ Summary: First G20 Sustainable Finance Working Group (SFWG) Meeting, February 2023, Guwahati, Sustainable Finance Working Group, 2023.

[viii] G20 India, G20 Sustainable Finance Working Group, G20 workshop on capacity building of the ecosystem for scaling-up sustainable finance, February 2023, Guwahati, UNDP, 2023.

[ix] “Co-Chairs’ Summary: First G20 Sustainable Finance Working Group (SFWG) Meeting, February 2023”

[x] G20 Sustainable Finance Working Group, G20 Sustainable Finance Working Group Deliverables, 2023, Sustainable Finance Working Group, 2023.

[xi] “G20 Sustainable Finance Working Group Deliverables, 2023”

[xii]“G20 Sustainable Finance Working Group Deliverables, 2023”

[xiv] Augustine Peter and Arun. S. Nair, “G20-Backed Blended Finance Fund-Of-Funds and Holistic Resource Platform to Help Low-Income and Vulnerable Economies Meet UN SDGs by 2030”, Global Solutions, November 3, 2022.

[xv] Prasad, Ananthakrishnan, Elena Loukoianova, Alan Xiaochen Feng, and William Oman, “Mobilizing Private Climate Financing in Emerging Market and Developing Economies.” IMF Staff Climate Note 2022/007, International Monetary Fund, Washington, DC.

[xvi] Purkayastha Dhruba, “Managing Credit Risk and Improving Access to Finance in Green Energy Projects”, Asian Development Bank Institute, 2018.

[xvii] Nadia Ameli et al., “Higher cost of finance exacerbates a climate investment trap in developing economies,Nat Commun 12, 4046 (2021).

[xviii] International Financial Services Centres Authority, Climate Bonds Initiative, Overseas Development Institute, Institute for Energy Economics and Financial Analysis, Building Capacities to Accelerate Sustainable Finance and Manage Climate and Sustainability Risks, G20 India, 2023.

[xx] “Building Capacities to Accelerate Sustainable Finance and Manage Climate and Sustainability Risks, February 2023”

[xxi] G20 Sustainable Finance Working Group, Presidency and Co-Chairs Note on Agenda Priorities: First G20 Sustainable Finance Working Group (SFWG) Meeting, February 2023, Guwahati, Sustainable Finance Working Group, 2023.

[xxii] Financial Centres for Sustainability, Leading Financial Centres Stepping Up Sustainability Action, February 2023, UNDP, 2023.

[xxiii] “Leading Financial Centres Stepping Up Sustainability Action, February 2023”

[xxiv] “Leading Financial Centres Stepping Up Sustainability Action, February 2023”

[xxv] G20 India 2023, “About Us – Sustainable Finance Working Group,” Sustainable Finance Working Group.

[xxvi] G20 India 2023, “About Us – Sustainable Finance Working Group”

[xxvii] G20 India 2023, “About Us – Sustainable Finance Working Group”

[xxviii] G20 India 2023, “About Us – Sustainable Finance Working Group”

[xxix] G20 Green Finance Study Group, G20 Green Finance Synthesis Report, September 2016, G20 China, 2016.

[xxx] G20 Green Finance Study Group, G20 Green Finance Synthesis Report, July 2017, G20 Germany, 2017.

[xxxi] G20 Green Finance Study Group, G20 Green Finance Synthesis Report, July 2018, G20 Argentina, 2018.

[xxxii] G20 Research Group, G20 Karuizawa Innovation Action Plan on Energy Transitions and Global Environment for Sustainable Growth, Japan, G20 Research Group, 2019.

[xxxiii] G20 Saudi Arabia Presidency, Financing for Sustainable Development Framework, G20 Saudi Arabia, 2020.

[xxxiv] G20 Green Finance Study Group, G20 Sustainable Finance Roadmap, October 2021, G20 Italy, 2021.

[xxxv] G20 Green Finance Study Group, G20 Sustainable Finance Report, June 2022, G20 Indonesia, 2022.

[xxxvi] “G20 Sustainable Finance Working Group Deliverables, 2023”

[xxxvii] “G20 Sustainable Finance Working Group Deliverables, 2023”

[xxxviii] “Presidency and Co-Chairs Note on Agenda Priorities: First G20 Sustainable Finance Working Group (SFWG) Meeting, February 2023”

[xxxix] G20 India 2023, Third G20 Finance Ministers and Central Bank Governors Meeting, Gandhinagar, G20 India 2023.

[xl] Nidhi Singal, “Govt finalises scheme for Indian carbon market, steering committee to be formed”, Business Today, July 3, 2023.

[xli] Green Economy Transition, “What is the EBRD’s Green Economy Transition approach?European Bank for Reconstruction and Development.

[xlii] Advancing Net Zero and World Green Building Council, Advancing Net Zero Status Report 2020, Toronto, World Green Building Council 2020.

[xliii] UN environment programme, “Green Financing”, UN Environment Programme.

[xliv] Carbon Finance Unit, Annual Report 2012, Washington DC, World Bank Group, 2012.

[xlv] Partnership for Market Readiness, “Home”, Partnership for Market Readiness.

[xlvi] Kim, Chul-Ju et al., “Building Development Capacities in Asia and the Pacific: Good Practices and Ways Forward for ADBI’s Capacity Building Programs,ADBI Policy Brief, POLICY BRIEF NO: 2019-2 (2019).

[xlvii] “G20-Backed Blended Finance Fund-Of-Funds and Holistic Resource Platform to Help Low-Income and Vulnerable Economies Meet UN SDGs by 2030”

[xlviii] European Climate, Infrastructure and Environment Executive Agency, “Clean Energy Transition”, European Commission.

[xlix] Martin Stadelman and Angela Falconer, “The Role of Technical Assistance in Mobilizing Climate Finance- Insights from GIZ Programs”, Climate Policy Initiative, 2015.

[l] Green Climate Fund, “Overview of the Project Preparation Facility,” Green Climate Fund.

[li] G20 Development Working Group, Assessment of the Effectiveness of Project Preparation Facilities in Asia, Adam Smith International, 2014.

[lii] “The Role of Technical Assistance in Mobilizing Climate Finance – Insights from GIZ Programs”

[liii] United Nations Kyrgyzstan, “Capacity Building for Financing Sustainable Development in the CIS Region,” United Nations.

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