Author : Abhijit Singh

Published on Nov 26, 2018 Updated 0 Hours ago

तटीय तैयारी पहले की तुलना में बेहतर है — लेकिन समग्र तस्वीर उतनी संतोषजनक नहीं है हालांकि अंतर एजेंसी समन्वय की स्थिति में सुधार हुआ है, पर राज्य सरकारें तटीय सुरक्षा की जरूरतों के प्रति उदासीन है, और राज्यों में पुलिस बल अभी भी इस ज़िम्मेदारी को उठाने के अनिच्छुक है।

भारत की तटीय सुरक्षा: एक मूल्यांकन

26/11 की दसवीं सालगिरह भारत की तटीय सुरक्षा तैयार करने की स्थिति की समीक्षा करने का एक उपयुक्त अवसर है। मुंबई पर हुए हमलों के बाद, सरकार ने तटीय सुरक्षा बुनियादी ढांचे और कानून प्रवर्तन में सुधार के लिए ठोस प्रयास किए। तटीय रक्षा तंत्र के एक जबरदस्त ओवरहॉल में तीन-स्तरीय सुरक्षा ग्रिड स्थापित किया गया था जिसके तहत भारतीय नौसेना, तट रक्षक, और समुद्री पुलिस संयुक्त रूप से भारत के निकट-समुद्री क्षेत्र में गश्त करते हैं। भारत की तटरेखा के साथ पुलिस स्टेशनों और राडार स्टेशनों सहित तटीय बुनियादी ढांचे के लिए अधिक फंड आवंटन के साथ मौजूदा तटीय सुरक्षा योजना (मूल रूप से 2005 में स्थापित) को तेज कर दिया गया था। इस प्रयास के तहत राडार स्टेशनों और पहचान प्रणालियों की स्थापना के माध्यम से ‘निगरानी और डोमेन जागरूकता’ को सुधारने के उपायों, और संयुक्त संचालन केंद्रों (जेओसी) के माध्यम से बेहतर समन्वय शामिल है। [1]

एक दशक बाद, तटीय तैयारी पहले की तुलना में बेहतर है, लेकिन समग्र तस्वीर उतनी संतोषजनक नहीं है। हालांकि अंतर एजेंसी समन्वय की स्थिति में सुधार हुआ है, पर राज्य सरकारें तटीय सुरक्षा की जरूरतों के प्रति उदासीन है, और राज्यों में पुलिस बल अभी भी इस ज़िम्मेदारी को उठाने के अनिच्छुक है। [2] पर्यवेक्षकों ने इंगित किया है कि असली समस्या, पुलिस व्यवस्था में मौजूद कमियां हैं। समुद्री पुलिस स्टेशनों की कम संख्या, तटीय निगरानी के लिए गश्ती नौकाओं का पूरा इस्तेमाल न होना, तटों पर बुनियादी ढांचे की अनुपस्थिति, जनशक्ति की कमी और आवंटित राशि जो खर्च नहीं हो पाई, व्यवस्था को प्रभावित करने वाले इस प्रकार के कई ढांचागत मुद्दों को तटीय प्रबंधकों ने अभी तक हल नहीं किया है। [3]


एक दशक बाद, तटीय तैयारी पहले की तुलना में बेहतर है, लेकिन समग्र तस्वीर उतनी संतोषजनक नहीं है।


दुखद बात यह है कि एक शीर्ष तटीय प्राधिकरण स्थापित करने का प्रस्ताव अभी भी आगे नहीं बढ़ पाया है। भारत के नीतिनिर्माता मानते हैं कि तटीय सुरक्षा पर कई एजेंसियां (15 से ज्यादा) काम कर रही हैं और उनमें समन्वय के लिए एक पूर्णकालिक प्रबंधक की जरूरत है।

अधिकारियों का कहना है कि समुद्री और तटीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए राष्ट्रीय समिति, जो वर्तमान में संयुक्त गतिविधियों का समन्वय करती है, सबसे अच्छी कामचलाउ व्यवस्था है। [4] फिर भी, संसद अब तक उस तटीय सुरक्षा बिल को पारित नहीं कर पाई है जो राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (एनएमए) स्थापित करेगा। [5]

चिंताजनक बात यह है कि हाल ही में अवैध गतिविधियों में वृद्धि हुई है। नशीले पदार्थों की तस्करी की घटनाओं में तेजी आई है, इनमें सबसे प्रमुख घटना एमवी हेनरी का अगस्त 2017 में जब्त होना है। [6] नशीले पदार्थों के तस्करी के लिए देश की छिद्रपूर्ण तट रेखा का उपयोग करने के अलावा, नशीली दवाओं के तस्कर तूतीकोरिन जैसे पुराने बंदरगाहों को अवैध व्यापार और तस्करी के केंद्रों में बदल रहे हैं। [7] इस पर जवाबी कार्रवाई के तौर पर केंद्र सरकार ने राज्यों को तटीय सुरक्षा के लिए अधिक राशि आवंटति की है और तटीय पुलिस स्टेशनों के क्षेत्राधिकार को 200 समुद्री मील तक बढ़ा दिया है (भले ही यह कोस्ट गार्ड के अधिकार क्षेत्र के साथ असहज रूप से ओवरलैप हो)। [8]

भारतीय बंदरगाहों पर फूल प्रूफ सुरक्षा प्रणलियों को लगाना बाकी है और यहां कई महत्वपूर्ण कमियां है।

कुछ लोगों का मानना है कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकवाद के खतरे पर ज्यादा ध्यान दिया व गैर परंपरागत चुनौतियों जैसे मानव तस्करी, अवैध मछली पकड़नाए जलवायु की वजह से पैदा हुए संकट तथा समुद्री प्रदूषण की ओर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया। लेकिन नौसेना और कोस्ट गार्ड दोनों ने ही इस संबंध में अपनी क्षमता में काफी सुधार किया है ‘सुरक्षाकवच’ जैसे अज्ञियान जिनमें कई एजेंसियां शामिल थीं, से समन्वय बेहतर हुआ है। [9]

सबसे प्रसन्नता की बात यह है कि कोस्ट गार्ड खासे मजबूत हुए हैं। हाल ही में उन्होंने खुलासा किया कि साल 2023 तक उनके पास 190 जहाज और 100 विमान होंगे।

पर भारतीय बंदरगाहों पर फूल प्रूफ सुरक्षा प्रणलियों को लगाना बाकी है और यहां कई महत्वपूर्ण कमियां है। 2016 में एक खुफिया ब्यूरो ऑडिट के अनुसार, भारत में 227 छोटे बंदरगाहों में से 187 में बहुत कम या कोई सुरक्षा नहीं थी। गृह मंत्रालय द्वारा 2011 में प्रमुख बंदरगाहों में से 16 में विकिरण का पता लगाने के उपकरण की स्थापना को मंजूरी मिलने के छह साल बाद, इन बंदरगाहों में से दो को अभी तक उपकरण प्राप्त नहीं हुए हैं। तेल पैदा करने वाले बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को लेकर अपनी विशिष्ट चुनौतियां हैं। जबकि भारत के अधिकांश कच्चे तेल के आयात कुछ निश्चित बंदरगाहों और सिंगल प्वाइंट मूरिंग्स (एसपीएम) के माध्यम से हैं, उनकी सुरक्षा के लिए कोई एकीकृत रणनीति नहीं है। तटरक्षक अधिनियम 1978 का अध्याय III कृत्रिम द्वीपों और अपतटीय टर्मिनलों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी आईसीजी की जिम्मेदारी के दायरे [11] के भीतर रखता है, लेकिन कोस्ट गार्ड अधिकारियों का कहना है कि एसपीएम की रक्षा करने का कार्य तटरेखा से 15 समुद्री मील के दायरे में सीआईएसएफ द्वारा किया जाना चाहिए। उधर सीआईएसएफ का कहना है कि इस जिम्मेदारी को उठाने के लिए उनके पास आवश्यक चीज़ों और प्रशिक्षित कर्मियों की कमी है। [12]

इस बीच, महाराष्ट्र द्वारा प्रस्तावित केंद्रीय सीमा पुलिस बल का प्रस्ताव अभी भी विचाराधीन है। केंद्र सरकार चाहता है कि यह एजेंसी दिल्ली से संचालित हो तथा उसे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की तर्ज पर ही स्थापित किया। लेकिन कई सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि योजना ठीक नहीं है। अपराधों को पंजीकृत करने या जांच करने के लिए कोई अधिकार नहीं होने के कारण, नई एजेंसी, एक दंतहीन शेर की तरहं हो जाएगी। [13]

एक ओर भारतीय एजेंसियां निकट-समुद्र में खतरों से जूझ रही हैं, लेकिन यह कहना उचित होगा कि तटीय परियोजना में शामिल जटिलताओं की तुलना में सुरक्षा योजनाकारों को पहले की तुलना में अब ज्यादा बेहतर समझ है। भारतीय एजेंसियों ने निकटतम इलाकों में सक्रिय सहयोग शुरू कर दिया है और वे मिलजुलकर समान उद्देश्य व दृष्टिकोण लेकर काम कर रही हैं।

नीति संबंधी सिफारिश

निगरानी और अंतर-एजेंसी समन्वय

बेहतर जागरूकता के लिए, भारत को बेहतर निगरानी की आवश्यकता है। तटीय राडार श्रृंखलाओं और एआईएस स्टेशनों की स्थापना में तेजी लाने और सूचना तक व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने के अलावा, अधिकारियों को 10 मीटर से अधिक लंबाई वाली बिजली संचालित जहाजों पर एआईएस की अनिवार्यता को सुनिश्चित करना होगा। केंद्र सरकार को कई एजेंसियों (ओवरलैपिंग क्षेत्राधिकारों के साथ) और प्रतिक्रियाओं में देरी से होने वाली बातचीत से उत्पन्न समन्वय की समस्याओं का समाधान करना चाहिए।

तटीय पुलिस की मजबूत भागीदारी

बिना कानूनी शक्तियों के एक तटीय सीमा सुरक्षा बल स्थापित करने के बजाय, अधिकारियों को तटीय पुलिस को मजबूत और बेहतर बनाने के लिए आगे बढ़ना चाहिए ताकि एक स्थानीय सुरक्षा तंत्र तैयार हो सके।

एक विधायी ढांचा

शिपिंग और बंदरगाह, दोनो क्षेत्रों दोनों को कवर करते हुए भारत के समुद्री बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए उचित व्यवसथा व प्रक्रियाएं बनाने हेतु व्यापक कानूनों को लागू किया जाना चाहिए। सरकारी विभागों, पोर्ट ट्रस्ट, राज्य समुद्री बोर्डों, गैर प्रमुख बंदरगाहों और निजी टर्मिनल ऑपरेटरों और अन्य हितधारकों के वैधानिक कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करने की आवश्यकता है, साथ ही बंदरगाह सुरक्षा के न्यूनतम मानकों के वैधानिक अनुपालन को भी स्पष्ट रूप से रेखांकित करना होगा।

कोस्ट गार्ड को मजबूत करना

तटीय सुरक्षा में नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए कोस्ट गार्ड को मजबूत किया जाना चाहिए। कोस्ट गार्ड अधिनियिम से उन अस्पष्टताओं को हटा दिया जाना चाहिए जिससे कि सभी सुरक्षा एजेंसियां उन भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के बारे में स्पष्ट हों जिसके उनसे उम्मीद है।

राष्ट्रीय वाणिज्यिक समुद्री सुरक्षा नीति दस्तावेज

समुद्री सुरक्षा के लिए अपनी रणनीतिक दृष्टि को स्पष्ट करने के लिए सरकार को राष्ट्रीय वाणिज्यिक समुद्री सुरक्षा नीति दस्तावेज जारी करना होगा। इसे बंदरगाह और शिपिंग बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए कुशल, समन्वित और प्रभावी कार्रवाई के लिए व वाणिज्यिक समुद्री सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय रणनीति भी स्पष्ट रूप से बनानी चाहिए। [14]

तटीय विनियमन क्षेत्र के नियमों को सुदृढ़ करें

पर्यावरणविदों के बीच एक आशंका है कि विशेषज्ञों या जनता के विचारों को ध्यान में रखे बिना पर्यटन, झींगा खेती और उद्योग लॉबी समूहों के पक्ष में सीआरजेड कानूनों को कमजोर किया जा रहा है। विनियमन क्षेत्र अधिसूचना 2018 (सीआरजेड-2018) का मसौदा 2018 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) द्वारा “सार्वजनिक हित में” दो बार संशोधित किया गया था, लेकिन यह मछुआरों से परामर्श के बिना किया गया, जो भारत के सबसे बड़े, गैर- उपभोक्ता तटीय हितधारक हैं। [15]


[1] “Initiatives to Strengthen Coastal Security”, The Indian Navy. (accessed on 10 October 2018).

[2] “PAC Highlights Slow Pace Of Upgradation of Coastal Security”, India Today, 14 April 2017. (accessed on 11 October 2018)

[3] Report of the Comptroller and Auditor General of India General (CAG) and Social Sector for the year ended March 2015, Government of Odisha, Report Number 3 of 2016, pp 68-75; “Draft CAG report on coastal security finds Odisha’s marine police stations floundering,” The Indian Express, 20 October 2015. (accessed on 8 October 2018) 

[4] “Reviewing India’s Coastal Security Architecture”, Takshashila Blue Paper, 26 September 2016. (accessed on 7 October 2018)

[5] Kalyan Ray, “Coastal Security Bill Caught in Red Tape,” The Deccan Herald, 25 May 2015. (accessed on 5 October 2018)

[6] Vijaita Singh, “Gujarat drug haul may be tip of the iceberg,” The Hindu, 5 August 2017. (accessed on 8 October 2018)

[7] “Tuticorin’s old harbour turns hub to ferry drugs,” Times of India, 17 August 2016. (accessed on 9 October 2018)

[8] Yatsih Yadav, “Securing India’s maritime border: Government contemplating giving greater powers to states,” FirstPost, 10 August 2018. (accessed on 7 October 2018)

[9] Ibid.

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