Published on Sep 11, 2023 Updated 0 Hours ago

चीन ने सबसे पहले कॉरिडोर निर्माण की शुरूआत की, लेकिन चालाकी उसकी महात्वाकांक्षाओं पर भारी पड़ गई. अब चार देश और यूरोपियन यूनियन मिलकर नए सिरे से यह बताएंगे कि वैश्विक कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किस प्रकार से किया जाना चाहिए.

हानिकारक ग्लोबलाइज़ेशन के दौर में क्या IMEEC उज्ज्वल भविष्य की राह दिखाता है?

इंडिया, यानी कि भारत के लोग विश्व को कुछ देना चाहते हैं, कुछ हासिल करना चाहते हैं और क़ामयाब होना चाहते हैं. भारत के लोग पूर्व में हुईं ग़लतियों को दुरुस्त करने के लिए दृढ़संकल्पित हैं, साथ ही साथ वे एक उज्ज्वल भविष्य के अभिलाषी भी हैं. भारत के लोग यह सबके सामने या कहा जाए कि चकाचौंध के बीच पूरी दुनिया के सामने करते हैं और दबे-छिपे भी इस तरह की गतिविधियों को अंज़ाम देते हैं. हाल ही में जब भारत के चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम लैंडर को सकुशल पहुंचाने में क़ामयाबी हासिल की, तब हमने इसे स्पष्ट तौर पर देखा. भारत के लोग काफ़ी अर्से से इस मिशन में जुटे थे और इसकी सफलता को लेकर लगातार प्रयास कर रहे थे. चंद्रयान-3 की सफलता भारतीयों की अपनी आकांक्षा को पूरा करने की एक यात्रा थी. वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 मिशन के दौरान लैंडर की क्रैश लैंडिंग के पश्चात भारतीय वैज्ञानिक चैन से नहीं बैठे और उन्होंने मिशन की नाक़ामी की गहनता से पड़ताल की एवं विश्लेषण किया कि आख़िर क्या-क्या ग़लतियां हुई थीं. इस पूरी प्रक्रिया में भारतीय वैज्ञानिकों ने सभी कमियों को दूर किया और फिर अपने कौशल व प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए चंद्रयान-3 मिशन के अंतर्गत विक्रम लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सकुशल उतारा. इस मिशन को टेलीविज़न के माध्यम से पूरे विश्व को लाइव भी दिखाया गया. वास्तविकता में देखा जाए तो जिस स्तर पर भारत ने यह सफलता हासिल की है, वो अभूतपूर्व है, साथ ही यह भी दिखाती है भारत कितनी तेज़ी के साथ उन्नति की ओर बढ़ रहा है, बदल रहा है.

अंतरिक्ष में सफल चंद्रयान-3 मिशन की ही तरह भू-राजनीतिक क्षेत्र में G20 नई दिल्ली लीडर्स समिट भी भारत की एक क़ामयाब कोशिश है. G20 समिट के दौरान पिछले तीन दिनों में भारतीय नेताओं ने जिस प्रकार से सफलता अर्जित की है, वो हैरान करने वाली है.

अंतरिक्ष में सफल चंद्रयान-3 मिशन की ही तरह भू-राजनीतिक क्षेत्र में G20 नई दिल्ली लीडर्स समिट भी भारत की एक क़ामयाब कोशिश है. G20 समिट के दौरान पिछले तीन दिनों में भारतीय नेताओं ने जिस प्रकार से सफलता अर्जित की है, वो हैरान करने वाली है. किसी भी मुद्दे पर एकमत नहीं होने वाले दुनिया के तमाम देशों द्वारा G20 समिट के घोषणापत्र को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया, इतना ही नहीं राष्ट्रीय हितों के लेकर विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बैठकों तक ऐसा लगा कि G20 समिट के दौरान भारत जो कुछ भी चाहता था, उसे उसने हासिल किया है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमान के मुताबिक़ वैश्विक प्रगति में भारत इस साल 15 प्रतिशत का योगदान देगा और आने वाले दशक में सभी के लिए समृद्धि और आर्थिक विकास का मुख्य इंजन बनेगा. ज़ाहिर है कि भारत का न केवल अपने नागरिकों के प्रति फ़र्ज़ है, बल्कि पूरी मानवता के प्रति भी कर्तव्य है.

G20 लीडर्स डिक्लरेशन

नई दिल्ली G20 लीडर्स डिक्लरेशन और पूरी समिट के दौरान जो भी गतिविधियां हुई हैं, उनमें जो अंतर्निहित तथ्य हैं, वो न सिर्फ़ एक उभरती हुई नई वैश्विक व्यवस्था की कहानी लिखने का काम करेंगे, बल्कि उसे निर्धारित करने का भी काम करेंगे. इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEEC) पर मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिग एक ऐसे मॉडल को सामने लाता है, जो संपर्क के नए गलियारों के ज़रिए आर्थिक प्रगति एवं वृद्धि को ऊर्जा प्रदान करेगा, साथ ही दो महाद्वीपों (एशिया एवं यूरोप) को भी जोड़ेगा. इस इकोनॉमिक कॉरिडोर में जो देश भागीदार हैं, उनमें सऊदी अरब, यूरोपीय संघ (EU), भारत, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), फ्रांस, जर्मनी, इटली और अमेरिका शामिल हैं. उल्लेखनीय है कि IMEEC में शामिल देशों की कुल GDP 47 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर, जो कि पूरे विश्व की कुल GDP की क़रीब-क़रीब आधी है. निसंदेह रूप से यह इकोनॉमिक कॉरिडोर पूरे विश्व के लिए अविश्वसनीय आर्थिक प्रगति के द्वार खोलने वाला सिद्ध होगा.

इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEEC) पर मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिग एक ऐसे मॉडल को सामने लाता है, जो संपर्क के नए गलियारों के ज़रिए आर्थिक प्रगति एवं वृद्धि को ऊर्जा प्रदान करेगा, साथ ही दो महाद्वीपों (एशिया एवं यूरोप) को भी जोड़ेगा.

IMEEC के माध्यम से जहां वैश्विक कनेक्टिविटी की ज़रूरत को स्वीकारा गया है, वहीं नई आपूर्ति श्रृंखलाओं के सृजन की आवश्यकता को भी पहचाना गया है. IMEEC इन वैश्विक ज़रूरतों को दो कॉरिडोर्स के निर्माण के ज़रिए पूरा करने का काम करेगा. इसका जो पूर्वी कॉरिडोर है, वो भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ेगा, जबकि उत्तरी कॉरिडोर अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ेगा. कनेक्टिविटी के इन साधनों में रेलवे संपर्क भी शामिल है, जो कि “वर्तमान समुद्री एवं सड़क परिवहन मार्गों की सहायता के लिए एक विश्वसनीय और किफायती सीमा-पार जहाज से रेल तक का ट्रांज़िट नेटवर्क उपलब्ध कराएगा, ताकि भारत, यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन, इजयाइल और यूरोप के बीच वस्तुओं व सेवाओं को लाने-ले जाने यानी उनके आवागमन की क्षमता हासिल हो सके.” ज़ाहिर है कि अकेले अपने दम पर इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को निर्मित करने के दिन अब लद चुके हैं. इस परियोजना के दौरान रेल नेटवर्क के साथ-साथ, इलेक्ट्रिसिटी केबल्स, डिजिटल नेटवर्क्स और स्वच्छ हाइड्रोजन के लिए पाइपलाइनों के निर्माण में निवेश होगा. यह आर्थिक गलियारा वैश्विक स्तर पर पारस्परिक संबंधों के एक नए मॉडल के साथ ही, वैश्वीकरण के लिहाज़ से एक नए नीतिगत स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है. ज़ाहिर है कि यह न तो कोई वैचारिक तौर पर देशों के एक साथ आने का मामला है और न ही यह सुरक्षा से संबंधित कोई गठजोड़ है. यह विभिन्न देशों के बीच एक ऐसा गठबंधन है, जो वहां रहने वाले हर एक व्यक्ति के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण करने के उद्देश से किया गया है.

BRI का जवाब

जो लोग भू-राजनीतिक गतिविधियों पर पैनी नज़र रखते हैं, उनके लिए भारत का आर्थिक कॉरिडोर वाला यह क़दम चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) नाम की महत्वाकांक्षी परियोजना के जवाब की तरह है. चीन का यह प्रोजेक्ट फिलहाल तेज़ी आगे बढ़ रहा है. इस परियोजना के पीछे चीन की मंशा अपनी मेन लैंड को यूरोप से जोड़ने की थी और इसके लिए तमाम महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर अपनी वाणिज्यिक मौज़ूदगी का विस्तार यूरोप तक करने की थी. उल्लेखनीय है कि BRI परियोजना में जो भी बुनियादी ढांचा बनाया जाएगा, उसे चीनी कंपनियों द्वारा बनाया जाएगा और इसके लिए कामगार भी चीन के होंगे. इस प्रोजेक्ट के लिए चीनी बैंकों द्वारा अपने मन मुताबिक़ ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराया जाएगा, साथ ही यह पूरी परियोजना कहीं न कहीं बीजिंग के राजनीतिक और आर्थिक हितों को ही पूरा करेगी. चीन ने श्रीलंका और मोंटेनेग्रो जैसे देशों को झांसे में लेते हुए उन्हें जमकर पैसों का प्रलोभन दिया और अपने रणनीतिक जाल में फंसा लिया, जबकि कई अन्य देशों ने इससे दूरी बना ली. ज़ाहिर है कि जब इन देशों ने चीन की आर्थिक मदद को स्वीकार कर लिया, तो कुछ समय बाद ही इन देशों ने खुद को चीनी ऋण के जाल में फंसा हुआ पाया और नतीज़तन उनकी अर्थव्यवस्थाएं बर्बादी के कगार पर पहुंच गईं. कुछ वर्षों बाद ही चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की ख़ामियां और नुक़सान नज़र आ लगे थे, लेकिन इसका विकल्प मौज़ूद नहीं था. इसी वजह से चीन का कमाई का यह गोरखधंधा फलता-फूलता रहा और उसका दबदबा बढ़ता चला गया.

बीआरआई और IMEEC के बीच जो सबसे बड़ा अंतर है, वो यह है कि BRI के मसौदे को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार द्वारा तैयार किया गया है और इसमें उसी का प्रभुत्व है, जबकि IMEEC में सभी देश बराबर के भागीदार हैं और सामूहिक रूप से मिलकर काम करते हैं.

IMEEC के माध्यम से जिस वैकल्पिक कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने की रूपरेखा तैयार की गई है, वो रणनीतिक लिहाज़ से भी और व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी चीन के BRI का मुक़ाबला करती है. बीआरआई और IMEEC के बीच जो सबसे बड़ा अंतर है, वो यह है कि BRI के मसौदे को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार द्वारा तैयार किया गया है और इसमें उसी का प्रभुत्व है, जबकि IMEEC में सभी देश बराबर के भागीदार हैं और सामूहिक रूप से मिलकर काम करते हैं. हालांकि, अभी IMEEC के बारे में व्यापक तौर पर चर्चा-परिचर्चा किया जाना बाक़ी है, लेकिन फौरी तौर पर ऐसा लगता है कि इसमें शामिल हर देश अपने क्षेत्र में खुद ही इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करेगा. यह निर्माण ऐसा होगा, जिसके तकनीक़ी, डिज़ाइन, वित्तपोषण, क़ानूनी और रेगुलेटरी मापदंड दूसरे देशों के अनुरूप होंगे व उनमें पूरा सामंजस्य होगा. देखा जाए तो अब अमेरिका की भूमिका भी बदल चुकी है. जो अंकल सैम (Uncle Sam) यानी अमेरिका 20वीं सदी में वैश्वीकरण को आकार देने वाली इकलौती सुपर पावर था, लगता है कि उसने भी अब यह मान लिया है कि ख़ास भौगोलिक इलाक़ों में अपनी व्यापक मौज़ूदगी रखने वाले और बेहतर कार्य करने वाले देशों के साथ साझेदारी करना ही आगे बढ़ने का एकमात्र विकल्प है.

निसंदेह रूप से राजनयिकों के मध्य जो भी बातचीत होगी, उसमें इस क़दम को चीनी ख़तरे को कम करने के रूप में बताया जाएगा और यहां तक कि इसे लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं के विकल्प के रूप में भी पेश किया जाएगा.

ऐसे में देखा जाए तो IMEEC एक ऐसा सटीक जवाब था, जिसे सही समय का इंतज़ार था. हालांकि, चीन ने बहुत पहले इस तरह के कॉरिडोर की अहमियत को पहचान लिया था और काफ़ी पहले उस पर काम भी शुरू कर दिया था, लेकिन अफसोस की बात यह है कि उसने बीआरआई को अमली जामा पहनाने में तमाम बड़ी ग़लतियां कीं. अपनी बीआरआई परियोजना को लेकर शी जिनपिंग बेहद ज़ल्दबाज़ी में थे और इसके निर्माण के दौरान उन्होंने विभिन्न देशों की टेरेटरी, उनकी संप्रभुता और स्थिरता की ज़्यादा परवाह नहीं की. इस प्रकार से IMEEC में शामिल देशों को अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अनुभव से सीखने की ज़रूरत है. कहने का मतलब यह है कि इन देशों को चीन के BRI के बारे में विस्तार से पता करने की आवश्यकता है, ख़ासकर उन ख़ामियों के बारे में पता लगाने की ज़रूरत है, जिनकी वजह से BRI की प्रगति पर असर पड़ा है. अर्थात IMEEC को लेकर एक ऐसा खाका बनाने की ज़रुरत है, जो कि न सिर्फ़ इस सदी के मुताबिक़ हो, बल्कि आज के दौर की राजनीति के भी अनुरूप हो. स्पष्ट है कि इस समय पहली आवश्यकता है कि वैश्विक साझेदारियों को दक्षिणपंथियों एवं कट्टरपंथियों की विचारधारा से बचाया जाए, साथ ही साथ ऐसी साझेदारियों को लेकर इस तरह का प्रस्ताव तैयार किया जाए जो सर्वजन हिताय की भावना के अनुरूप हो.

निष्कर्ष

ज़ाहिर है कि इस पूरे क्षेत्र में 7 अरब लोगों की अभिलाषा और आकांक्षा को पूरा करने में जो भी अड़चनें हैं, उन्हें IMEEC द्वारा दूर किया जा सकता है. इससे भी आगे, विश्व के दूसरे भौगोलिक क्षेत्रों में भी इसी तरह की बहुपक्षीय साझेदारियां होने की उम्मीद है. इंडिया, मिडिल ईस्ट एंड अफ्रीका ट्रेड एंड कनेक्टिविटी कॉरिडोर को बनाने में भी कोई ख़ास परेशानी नहीं है. इसी प्रकार से अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका तक कनेक्टिविटी पुलों का निर्माण भी आज के नए दौर के ऐसे प्रोजेक्ट्स साबित होंगे, जो इन भौगोलिक क्षेत्रों के खाद्यान्न और ईंधन को पूरे विश्व तक पहुंचाने का सुगम मार्ग उपलब्ध कराएंगे. जबकि शी जिनपिंग ने 21वीं सदी की भू-राजनीतिक मेज पर शतरंज की अपनी बिसात को बिछा दिया है, ऐसे में दूसरे देश भी एक खिलाड़ी के तौर पर अपने मोहरों को बेहतर ढंग से आगे बढ़ा सकते हैं, यानी अपनी चालों को चल सकते हैं. लेकिन ऐसा करने के लिए देशों को कोशिश भी करनी होगी और प्रतिबद्धता भी जतानी होगी, साथ ही अमेरिका एवं यूरोपियन यूनियन को निष्क्रियता एवं स्वार्थ, अर्थात केवल अपने बारे में ही चिंता करने की सोच से उबरना होगा.

निसंदेह रूप से राजनयिकों के मध्य जो भी बातचीत होगी, उसमें इस क़दम को चीनी ख़तरे को कम करने के रूप में बताया जाएगा और यहां तक कि इसे लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं के विकल्प के रूप में भी पेश किया जाएगा. लेकिन हमारे लिए, यानी लेखकों के लिए यह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके नेतृत्व वाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतर्गत दिनोंदिन धूर्त और मक्कार होती जा रही चीनी सरकार के साथ संलग्नता एवं निर्भरता को कम करने की दिशा में पहला क़दम है. वास्तविकता में IMEEC चीन को एक जबाव है.


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