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भारत को जल्द से जल्द एयर लॉन्च्ड क्रूज़ मिसाइल और इन मिसाइलों को दाग सकने की क्षमता वाले प्लेटफॉर्म का विकास करना होगा. चीन की उन्नत और लंबी दूरी की मारक क्षमता का मुक़ाबला करने के लिए ऐसा किया जाना ज़रूरी है.
Image Source: Getty
भारतीय वायुसेना (आईएएफ) मौजूदा दौर में कई चुनौतियों और कमज़ोरियों का सामना कर रही है, लेकिन उनमें से दो ऐसी हैं जिनकी लगभग पूरी तरह से अनदेखी की गई हैं. पहली, एक एयर लॉन्च्ड क्रूज़ मिसाइल (एएलसीएम) और दूसरी, एक बमवर्षक विमान जो इसे ले जा सके. वर्तमान में वायुसेना के सामने उपस्थित ये दोहरी चुनौतियां हैं. ये कमज़ोरी उस वक्त और भी स्पष्ट दिखती है, जब हम इसकी तुलना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स (पीएलएएएफ) की क्षमताओं में हुए विकास के साथ करते हैं. हैरानी की बात ये है कि इस पर ना तो कोई चर्चा हो रही है, ना ही इस बारे में आधिकारिक तौर पर कोई ऐलान हो रहा है कि सरकार एएलसीएम और इसे ले सकने में सक्षम बमवर्षक या लड़ाकू विमान बनाने की दिशा में काम कर रही है. हालांकि एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (एडीई) ने निर्भय मिसाइल को विकसित किया है, लेकिन ये सुपरसोनिक मिसाइल है. इसकी मारक क्षमता 1,000 किलोमीटर है. इस मिसाइल में बहुत नीची उड़ान भरने की क्षमता होती है, फिर चाहे वो ज़मीन हो या समुद्र, इस वजह से ये खुद को रडार से बचा सकती है.
इस मिसाइल में बहुत नीची उड़ान भरने की क्षमता होती है, फिर चाहे वो ज़मीन हो या समुद्र, इस वजह से ये खुद को रडार से बचा सकती है.
2010 की शुरूआत में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने "निर्भय" एयर लॉन्च क्रूज़ मिसाइल (एएलसीएम) कार्यक्रम का विकास शुरू किया. 2013 से 2018 के बीच डीआरडीओ ने इस मिसाइल के चार परीक्षण किए, जिनमें से सिर्फ एक परीक्षण सफल रहा. ये टेस्ट नवंबर 2017 में किया गया था. भारतीय वायुसेना जल्द से जल्द एएलसीएम क्षमता हासिल के लिए उत्सुक था. इसे लेकर योजना ये थी कि व्यापक परीक्षणों के बाद विश्वसनीय साबित होने के बाद निर्भय को विशेष रूप से संशोधित सुखोई-30 लड़ाकू विमान से लॉन्च किया जाएगा. इसे सतह लक्ष्यों (सरफेस टार्गेटिंग) के ख़िलाफ़ स्टैंड-ऑफ रेंज पर एकीकृत भी किया जाना था. 2018 की शुरुआत में तत्कालीन एयर चीफ मार्शल बीएम धनोआ ने वायुसेना से एक वरिष्ठ अधिकारी को निर्भय के एएलसीएम संस्करण के जल्द विकास की निगरानी के लिए नियुक्त किया. डीआरडीओ ने ने भी संशोधनों के बाद 2020 में इसके एक परीक्षण की योजना छोड़ दी. इसमें निर्भय की विमान से छोड़ा जाना था. डीआरडीओ ने 2021 तक इसका परीक्षण लॉन्च करने के लिए वायुसेना के साथ सहमति व्यक्त की. हालांकि उसके बाद से इस प्रोजेक्ट में क्या प्रगति हुई, इसका कोई सबूत नहीं मिला है. कुछ असफल और कई सफल परीक्षणों की श्रृंखला के बाद डीआरडीओ ने अक्टूबर 2020 में निर्भय मिसालइल का परीक्षण किया. इस दौरान भारत और चीन के बीच सीमा संकट की स्थिति थी, जो गलवान घाटी और लेह में चीन की शरारती कार्रवाईयों से पैदा हुई थी. इस मिसाइल परीक्षण की रेंज 1,000 किलोमीटर और गति मैक 0.7 थी, लेकिन ये परीक्षण असफल रहा. हालांकि इसमें डीआरडीओ के गैस टरबाइन रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (जीटीआरई) द्वारा विकसित एक बिल्कुल नए देशी स्मॉल टर्बो फैन इंजन (एसटीईएफ) का इस्तेमाल किया गया था.
निर्भय मिसाइल के समुद्री और भूमि हमले दोनो के संस्करण हैं. वास्तव में ये माना जाता है कि निर्भय के ज़मीनी हमलों में सक्षम संस्करण की सीमित संख्या में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) में तैनात भी किया गया है. इन्हें ज़मीन पर स्थित प्लेटफार्मों से लॉन्च किया जा सकता है. मिसाइल के समुद्री संस्करण को एक सबमरीन लॉन्च क्रूज़ मिसाइल (एसएलसीएम) के रूप में विकसित किया जा रहा है. निर्भय ने कुछ तकनीकी बेंचमार्क जैसे एसटीईएफ भी हासिल किए हैं. इसे 'माणिक' भी कहा जाता है. इसमें रिसर्च सेंटर इमारत (आरसीआई) द्वारा निर्मित एक उन्नत रेडियो फ्रीक्वेंसी (आरएफ) भी लगी है. हालांकि, इस मिसाइल के एयर लॉन्च वर्ज़न को अब तक की सबसे बड़ी नाकामी माना जाता है. भारत की मिसाइल फैमिली में ये सबसे बड़ी कमज़ोरी है. डीआरडीओ और वायुसेना के स्तर पर एएलसीएम के क्षेत्र में तकनीकी मानदंडों को पूरा करने में कोई स्पष्ट प्रगति नहीं दिख रही है, और ना ही ऐसा कोई एयरबोर्न प्लेटफॉर्म है, जहां से इसे डिलीवर यानी दागा जा सके. इसके अलावा, रक्षा मंत्रालय और डीआरडीओ द्वारा संभावित या आने वाले समय में इस संबंध में किए जाने वाले परीक्षणों पर कोई आधिकारिक जानकारी भी नहीं दी गई है. ये कई सवालों को जन्म देता है. क्या निर्भय का एएलसीएम वेरिएंट पर काम करना छोड़ दिया गया है? क्या ये काम प्राथमिकता में नहीं है? निर्भय एएलसीएम में आगे के निवेश को रोकने वाली बाधाएं क्या हैं? अगर कुछ रुकावटें हैं तो क्या वो वित्तीय बाधाएं हैं या तकनीकी हैं या फिर दोनों? ये ऐसे ज़रूरी सवाल हैं जिनके जवाब मिलने चाहिए.
निर्भय एएलसीएम में आगे के निवेश को रोकने वाली बाधाएं क्या हैं? अगर कुछ रुकावटें हैं तो क्या वो वित्तीय बाधाएं हैं या तकनीकी हैं या फिर दोनों? ये ऐसे ज़रूरी सवाल हैं जिनके जवाब मिलने चाहिए.
इस बीच चीन की वायुसेना ने अपने H-6K बमवर्षक विमान पर काम आगे बढ़ाया है. हालांकि इसे रूस के TU-16 'बैजर' बमवर्षक के तरह का ही विमान माना जाता है, लेकिन H-6K को अत्याधुनिक टर्बोफैन इंजन और बेहतर फ्लाइंग डेक से लैस किया गया है. इससे हवा से ही मिसाइल दागी जा सकती हैं. H-6K की एयर लॉन्च क्रूज़ मिसाइल को CJ-10A या CJ-10K कहा जाता है. CJ-10 या KD-20 श्रेणी उन क्रूज़ मिसाइलों का हिस्सा हैं, जो 'हॉन्गहियाओ' क्रूज़ मिसाइल परिवार से संबंधित हैं. इन्हें ज़मीन पर आधारित मिसाइलों के आधार पर ही विकसित किया गया है. H-6K बमवर्षक विमान का एक फायदा ये है कि ये CJ-10A की स्टैंड-ऑफ रेंज को 1,500 किमी से 4,000 किमी तक बढ़ा सकता है. इसका फायदा ये है कि H-6K बमवर्षकों को चीन के ज़मीनी या हवाई क्षेत्र के भीतर सुरक्षित रखकर इसकी मदद से 4,000 किलोमीटर तक मिसाइल दागी जा सकती है. ये भारत की ज़मीन या स्थलीय लक्ष्यों पर हमला करने में सक्षम है. इतना ही नहीं ये भारत पर ना सिर्फ एलएसी के करीब बल्कि भारत की ज़मीन और उसके अंदर तक के कई शहरों को अपने निशाने पर ले सकता है. भारतीय वायुसेना द्वारा H6-K का इंटरसेप्ट करना बहुत मुश्किल होगा. इस आर्टिकल के लेखक ने करीब पांच साल पहले खुद देखा था कि भारतीय वायुसेना के पास चीनी वायुसेना के H6-K बमवर्षकों को इंटरसेप्ट और उनसे टकराने की क्षमता नहीं है.
ये हाइपरसोनिक स्पीड पर संचालन करने में सक्षम है और 3,000 किलोमीटर की रेंज रखता है. इसमें ऐसी तकनीकी क्षमता है, जो इसे बेहतर एयरोडायनेमिक परफॉर्मेंस का एडवांटेज देती है.
ऐसे में भारत के लिए एएलसीएम और एक बमवर्षक विमान हासिल करना और भी ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है. अगर भारत के पास भी ये क्षमता होगी तो इससे चीन को मिला रणनीतिक फायदा कम हो सकता है. एक बमवर्षक प्लेटफॉर्म या भारत के आंतरिक इलाकों से एक लड़ाकू विमान द्वारा वायुसेना के मिली एएलसीएम क्षमता वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के आस-पास चीन के सामरिक ठिकानों को निशाना बनाने में मददगार होगी. इतना ही नहीं इससे भारतीय वायुसेना को तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर), शिनजियांग स्वायत्त क्षेत्र (एक्सएआर), युन्नान, किंगहाई और सिचुआन प्रांतों में भी सामरिक लक्ष्यों पर हमला करने की क्षमता मिल जाएगी. चीन के रणनीतिक लक्ष्यों जैसे संचार, कमांड और कंट्रोल सेंटर, मिसाइल साइलों, एडवांस वॉर्निंग रडार, मोबाइल मिसाइल लॉन्चरों, वायु सेना के अड्डों, एम्युनिशन डिपो, हथियार निर्माण सुविधाओं, ऊर्जा स्टेशनों से लेकर पुलों, रेलवे और सड़कों तक की महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर मिसाइल हमले के लिए भारतीय वायुसेना के पास एएलसीएम क्षमता होनी ज़रूरी है. लंबी दूरी से किए जाने वाले हमले कितने प्रभावी हैं, ये रूस-यूक्रेन युद्ध से स्पष्ट हैं. रूस इस बात से डरा हुआ है कि पश्चिमी देशों से मिले और लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियारों से यूक्रेन उसे काफ़ी नुकसान पहुंचा सकता है. ये हथियार रूस के उन रणनीतिक लक्ष्यों को नुकसान पहुंचाते हैं, जो उसके अंदरूनी इलाके में स्थित हैं. रूस के रक्षा औद्योगिक आधार और अर्थव्यवस्था को ये हथियार बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. वास्तव में, चीन की मौजूदा एएलसीएम क्षमता उसे भारतीय भूभाग में फैले स्थिर और गतिमान ज़मीनी लक्ष्यों को टार्गेट करने के पर्याप्त अवसर देती है. इससे भी ज़्यादा ख़तरनाक चीनी वायुसेना का H6-N का बमवर्षक है. ये H6-K का एक संशोधित संस्करण है, जिसमें 3,500 किमी का कॉम्बेट रेडियस है. इसमें CH-AS-X नामक एयर लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल (एएलबीएम) को लॉन्च करने की क्षमता है. ये हाइपरसोनिक स्पीड पर संचालन करने में सक्षम है और 3,000 किलोमीटर की रेंज रखता है. इसमें ऐसी तकनीकी क्षमता है, जो इसे बेहतर एयरोडायनेमिक परफॉर्मेंस का एडवांटेज देती है. इससे H6-N की रडार क्रॉस सेक्शन (आरसीएस) कम होती है. सेमी-कॉनफॉर्मल फ्यूज़लेज की सुविधा होने से H6-N में एएलसीएम समेत अलग-अलग तरह के हथियार ले जाने की क्षमता है.
भारत ने नवंबर 2024 में 1,500 किलोमीटर की रेंज के साथ एक हाई स्पीड क्रूज़ मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया. इसमें उड़ान के दौरान मार्ग बदलने की क्षमता थी, लेकिन उसके बाद कोई परीक्षण नहीं किया गया है. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय वायुसेना एयर लॉन्च्ड हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है. चीन के CH-AS-X के जैसे एक बैलिस्टिक वर्ज़न में भी उसे कमियां दिख रही हैं, क्योंकि इसके साथ अत्यधिक वजन और कुछ दूसरी समस्याएं हैं. यही वजह है कि डीआरडीओ ने अपनी वर्तमान कोशिशों को ज़मीन आधारित हाइपरसोनिक मिसाइलों तक ही सीमित कर लिया है. हाइपरसोनिक मिसाइलों के बावजूद भारतीय वायु सेना, डीआरडीओ और रक्षा मंत्रालय को ये स्पष्ट करना चाहिए कि क्या सबसोनिक निर्भय एएलसीएम प्रोजेक्ट पर अभी भी काम चल रहा है या नहीं? और अगर इस पर काम हो रहा है तो फिर इसका डिलीवरी प्लेटफॉर्म क्या होने वाला है?
कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.
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Kartik Bommakanti is a Senior Fellow with the Strategic Studies Programme. Kartik specialises in space military issues and his research is primarily centred on the ...
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