Author : Pratnashree Basu

Published on May 17, 2024 Updated 0 Hours ago

ये ऊर्जा संयंत्र न केवल पर्यावरणीय ख़तरा पेश करते हैं, बल्कि सुरक्षा के लिए भी ख़तरा बने हुए हैं.

दक्षिण चीन सागर में चीन के तैरते परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निहितार्थ

साउथ चाइना सी यानी दक्षिण चीन समुद्र के जल में चीन के तैरते परमाणु रिएक्टर संयंत्र को लेकर ख़बरें दोबारा चर्चा में आई हैं, जिसकी वज़ह से इस छोटे क्षेत्र पर सैन्यीकरण के बढ़ने का ख़तरा मंडराने लगा है. इस प्रोजेक्ट को लेकर सबसे पहले 2016 में जानकारी उज़ागर हुई थी. उस वक़्त ये ख़बरें थी कि चीन की सरकारी स्वामित्व वाली बेहद बड़ी ऊर्जा कंपनी, चाइना जनरल न्यूक्लियर (CGN), बीजिंग का पहला तैरता परमाणु ऊर्जा केंद्र जिसे, ACPR50S कहा जाता है, को विकसित कर रही है. यह ऊर्जा केंद्र बोहाई सागर में जहाज़ों के साथ लंगर डालेगा और ऑफशोर यानी अपतटीय तेल अन्वेषण के लिए ऊर्जा आपूर्ति करने के काम आएगा. इसके कुछ ही दिनों बाद इस बात को लेकर भी कयास लगाए जाने लगे और कुछ इधर-उधर की ख़बरों से यह पता चला कि चीन साउथ चाइना सी यानी दक्षिण चीन समुद्र में एक फ्लोटिंग न्यूक्लीयर पावर प्लांट्स यानी तैरते परमाणु ऊर्जा संयंत्रों (FNPPs) का बेड़ा तैयार कर रहा है. इसके बाद के वर्षों में हालांकि इस तरह के FNPP संयंत्रों के विकास और अंतत उनकी तैनाती को लेकर ख़बरें कम ज़्यादा आती रही है. 2023 की एक रिपोर्ट में तो यह सुझाव आया था कि इस योजना को शायद निलंबित कर दिया गया है.

इस प्रोजेक्ट को लेकर सबसे पहले 2016 में जानकारी उज़ागर हुई थी. उस वक़्त ये ख़बरें थी कि चीन की सरकारी स्वामित्व वाली बेहद बड़ी ऊर्जा कंपनी, चाइना जनरल न्यूक्लियर (CGN), बीजिंग का पहला तैरता परमाणु ऊर्जा केंद्र जिसे, ACPR50S कहा जाता है

बहरहाल, साउथ चाइना सी यानी दक्षिण चीन समुद्र में FNPPs की तैनाती महज कुछ वक़्त की बात है और इस बात की संभावना है कि यह अब भी प्राथमिकता बनी हुई है. चीन का तैरता परमाणु ऊर्जा संयंत्र कार्यक्रम दो उद्देश्यों की पूर्ति करता है. पहला उद्देश्य यह है कि यह संयंत्र उसके ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाकर उसके ऊर्जा आधारभूत संरचना को दूर-दराज के क्षेत्रों के साथ अपतटीय संचालन तक विस्तारित करता है. इसका दूसरा लक्ष्य यह है कि यह बीजिंग को यहां के विवादास्पद जल में मौजूद कृत्रिम द्वीप एवं रॉक फॉरमेशन यानी पत्थर की संरचनाओं पर नियंत्रण प्रदान करता है. बीजिंग ने यहां के जल में पहले से ही दोहरे उपयोग की सुविधाओं का निर्माण कर रखा है. FNPPs, चीन की तेल एवं गैस अन्वेषण से जुड़ी गतिविधियों को मदद करते हुए ऐसे क्षेत्र जहां पारंपरिक पावर ग्रिड्स यानी ऊर्जा का जाल नहीं पहुंचा है उन क्षेत्रों को भी ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं. इसमें ऊर्जा आवश्यकता बढ़ने वाले द्वीप क्षेत्र, ऑफशोर ऑयल ड्रिलिंग प्लेटफॉर्म्स और मिलिट्री बेस यानी सैन्य ठिकाने शामिल है. भरोसेमंद ऊर्जा आपूर्ति के चलते एडवांस्ड सर्विलांस और रैपिड रिस्पांस क्षमताएं भी विकसित हो सकेंगी. तैरते परमाणु रिएक्टर्स, चीन के अंडरवॉटर माइनिंग ऑपरेशंस और डीप-सी लॉजिस्टिकल नेवल बेसेस यानी नौसेना ठिकानों को भी ऊर्जा की आपूर्ति कर सकेंगे. 

FNPPs की वज़ह से पारंपरिक ऊर्जा स्रोत और आयात पर निर्भरता कम हो जाती है. यह तैरते संयंत्र मोबाइल यानी गतिशील होते हैं, जिन्हें विभिन्न इलाकों तक नौकाओं या जहाज की सहायता से पहुंचाया जा सकता है. और इस वज़ह से एनर्जी फ्लैक्सिबिलिटी यानी ऊर्जा लचीलापन हासिल किया जा सकता है. ये "बेबी" रिएक्टर्स वर्षों अथवा दशकों तक बगैर रिफ्यूलिंग के काम कर सकते हैं. और इनमें बड़ी मात्रा में ऊर्जा पैदा करने की क्षमता होने के साथ-साथ यह बड़े पैमाने पर समुद्री जल को डिसेलिनेट यानी नमक विरहित करते हुए शुद्ध पानी की आपूर्ति को बढ़ाने में भी सहायक हो सकते हैं. भूमि आधारित परमाणु ऊर्जा संयंत्रों (NPPs) की कुछ सीमाएं पहले से ही तय होती है, क्योंकि इसके लिए बड़ी मात्रा में भूमि, जटिल आधारभूत संरचना और ग्रीड कनेक्टिविटी की ज़रूरत होती है. इसके अलावा ऐसे संयंत्रों को ठंडा रखने के लिए नियमित जलापूर्ति की भी ज़रूरत पड़ती है. इसी वज़ह से फ्लोटिंग NPPs को पॉवर, हीटिंग और जल को नमक विरहित करने का, विशेष कर दूर-दराज़ के तटीय शहर और छोटे द्वीप के मामले में, एक व्‍यावहारिक विकल्प माना गया है.

ACPR50S रिएक्टर की सालाना पॉवर यानी ऊर्जा क्षमता 200 MW की है, जो वर्तमान में उपलब्ध व्यावसायिक परमाणु रिएक्टर्स से बेहद कम है, लेकिन यह अपतटीय तेल एवं गैस अन्वेषण, द्वीप विकास और समुद्री जल को नमक विरहित करने के लिए पर्याप्त है.


फ्लोटिंग रिएक्टर्स को विकसित करने के लिए ज़िम्मेदार टीम ने इससे जुड़े अनुसंधान में लगभग एक दशक लगाया. टीम का सोचना था कि ये अपतटीय रिएक्टर्स सार्वजनिक तौर पर जल्द सर्वमान्य होंगे, क्योंकि इनकी वज़ह से प्रभावित होने वाली भूमि बेहद कम थी. यह भी उम्मीद थी कि ये रिएक्टर्स साउथ चाइना सी यानी दक्षिण चीन समुद्र में दूर-दराज़ के द्वीपों तक न केवल नागरी, बल्कि सैन्य आवश्यकताओं के लिए भी भरोसेमंद ऊर्जा आपूर्ति का साधन साबित होंगे. उदाहरण के लिए ACPR50S को समुद्री पर्यावरण में रहने की बात को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया था. इसके विकास को चीन के नेशनल डेवलपमेंट एंड रिफॉर्म कमीशन ने देश की 13वीं पंचवर्षीय योजना में शामिल करने की हरी झंडी भी दिखाई थी. इस बात को छोटे अपतटीय रिएक्टर्स के विकास में CGN के लिए तकनीकी मील का पत्थर माना गया था. ACPR50S रिएक्टर की सालाना पॉवर यानी ऊर्जा क्षमता 200 MW की है, जो वर्तमान में उपलब्ध व्यावसायिक परमाणु रिएक्टर्स से बेहद कम है, लेकिन यह अपतटीय तेल एवं गैस अन्वेषण, द्वीप विकास और समुद्री जल को नमक विरहित करने के लिए पर्याप्त है. कहा जाता है कि एक और बड़ा फ्लोटिंग प्लांट यानी तैरता संयंत्र भी यंताई, शानदोंग में बन रहा है. इसे एक हथियार ठेकेदार चाइना नेशनल न्यूक्लियर कोऑपरेशन बना रहा है. दो रिएक्टर्स के साथ 250-megawatt आउटपुट वाला यह संयंत्र दुनिया का सबसे शक्तिशाली फ्लोटिंग न्यूक्लियर स्टेशन होगा, जो न केवल औद्योगिक पार्क को बिजली आपूर्ति करेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय जल में भी कार्यरत रहेगा.



FNPPs और उसके पर्यावरणीय प्रभाव

हालांकि दक्षिण चीन समुद्र में चीन की ओर से FNPPs की तैनाती के चलते गंभीर पर्यावरणीय एवं सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ेंगी. चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CPP) को अपने भूमि स्थित न्यूक्लीयर प्लांट्‌स से होने वाले रिसाव के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा उसे रेडियोएक्टिव यानी रेडियोधर्मी आइसोटोप ट्रिटियम, अनुमानित स्तर से ज़्यादा होने के लिए भी जांच का सामना करना पड़ा है. सुरक्षा के मामले में भी चीन का रिकॉर्ड संदिग्ध है. इस क्षेत्र में रीफ्स यानी भित्तियों के सैन्यीकरण और टेरिटोरियल यानी क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने वाले दावों, जिन्हें 2016 में अंतर्राष्ट्रीय ट्रायब्यूनल यानी पंचाट ने ख़ारिज़ कर दिया था, को लेकर होने वाली पर्यावरणीय गिरावट के लिए भी उसकी आलोचना होती रही है. विशेषज्ञों का दावा है कि FNPPs पर्यावरण के लिए गंभीर ख़तरा पेश करते हैं. ख़ासकर कमज़ोर समुद्री पर्यावरण में, जहां कठोर मौसम, तोड़-फोड़ अथवा दुर्घटना की स्थिति में मरीन लाइफ यानी समुद्री जीवों और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए ये संयंत्र तबाही का सबब बन सकते हैं. संभावित दुर्घटनाओं की आशंका, ख़ासकर समुद्री इलाके में, को देखते हुए पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के पुख़्ता सुरक्षा इंतजाम किए जाने आवश्यक है.

सुरक्षा प्रबंधन, ख़ासकर अपर्याप्त प्रशिक्षण के अभाव में होने वाले लापरवाही भी गंभीर चिंता का विषय है. चीन के FNPPs पर काम करने वाले अभियंताओं ने अंडरवॉटर डाइवर्स, वेसल्स यानी जहाज तथा हवाई ख़तरों का मुकाबला करने के लिए एक समग्र सुरक्षा प्रणाली की आवश्यकता पर बल दिया है. इस प्रणाली में डिटेक्शन यानी ख़ोज, मॉनिटरिंग यानी निगरानी और निपटान सबसिस्टम्स शामिल होंगे तथा संयंत्रों को भी सुरक्षा जोन्स में बांटा जाएगा. लेकिन फ्लोटिंग न्यूक्लियर प्लांट के लिए फिलहाल कोई विशेष सुरक्षा उपाय तैयार नहीं किए गए है. इस स्थिति में इन्हें खुले समुद्र में संभावित ख़तरों के समक्ष कमज़ोर ही माना गया है. इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए एक डॉक-बेस्ड यानी गोदी-आधारित फ्लोटिंग न्यूक्लीयर प्लांट, ACP100S, को मेनलैंड यानी मुख्य भूभाग के पास लंगर डालकर रखा जाएगा. यह प्लांट बोहाई सागर, जहां चीन की निगरानी ज़्यादा है, में सुरक्षा संसाधनों का बेहतर उपयोग कर फ्लोटिंग न्यूक्लीयर प्लांट्‌स की कमज़ोरियों को कम करेगा. एक बार इसके ऑपरेशनल होने के बाद चीन दक्षिण चीन समुद्र के लिए और भी शक्तिशाली मॉडल विकसित कर सकता है. लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि नियामक इस संशोधित योजना पर विचार कर रहे हैं अथवा नही. तथापि, FNPPs की लोचनीयता को देखते हुए इस मुद्दे पर चर्चा जारी है कि क्या ये प्लांट्स नवीकरणीय ऊर्जा के अन्य स्रोत जैसे सौर एवं पवन ऊर्जा का मुकाबला कर सकते हैं. सरकारी सब्सिडी के बगैर परमाणु ऊर्जा को स्पर्धात्मक नहीं बनाया जा सकता. परमाणु ऊर्जा के साथ वेस्ट मैनेजमेंट यानी अपशिष्ट प्रबंधन और सुरक्षा को लेकर भी चुनौतियां जुड़ी हुई हैं. आधुनिक परमाणु संयंत्रों, जिसमें SMRs शामिल हैं, में मजबूत पैसिव यानी सहनशील सुरक्षा विशेषताएं है और इनकी कार्यशील जीवनावधि अधिक होने की वज़ह से ये स्पर्धात्मक भी होते हैं.

एक और चुनौती यह है कि चीन के FNPPs, भूमि आधारित परमाणु संयंत्रों की सिविल लायबिलिटी यानी नागरिक दायित्व को नियंत्रित करने वाली वियना अथवा पेरिस कन्वेंशन के दायरे में नहीं आते.


एक और चुनौती यह है कि चीन के FNPPs, भूमि आधारित परमाणु संयंत्रों की सिविल लायबिलिटी यानी नागरिक दायित्व को नियंत्रित करने वाली वियना अथवा पेरिस कन्वेंशन के दायरे में नहीं आते. इनके लिए एकमात्र प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय समझौता, 1962 में लायबिलिटी ऑफ ऑपरेटर्स ऑफ न्यूक्लियर शिप्स को लेकर हुआ ब्रुसेल्स कन्वेंशन है. लेकिन इस पर अभी अमल नहीं किया गया है. इसके बावजूद यदि चीन के FNPPs पर वियना अथवा पेरिस कन्वेंशन को लागू किया जाए तो भी कुछ मसले अब भी अनसुलझे ही रहेंगे. क्योंकि चीन ने अब तक परमाणु दुर्घटना संबंधी देयता में से किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन यानी सम्मेलन अथवा ख़ासकर क्रॉस-बॉर्डर न्यूक्लीयर दुर्घटनाओं के लिए स्थापित समग्र घरेलू विनियमन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. एक ओर जहां इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) फ्लोटिंग न्यूक्लियर रिएक्टर्स को लेकर सुरक्षा मानक तैयार करने में जुटा हुआ है, वहीं चीन इस प्रक्रिया में अड़ंगा डालकर इसे प्रलंबित कर रहा है. चीन की कोशिश IAEA को प्रभावित करते हुए सुरक्षा मानकों में कमज़ोर विनियमनों को शामिल करने की है.


दक्षिण चीन समुद्र में दावेदार अनेक दक्षिण पूर्वी एशियाई देश भी चीन की ओर से FNPPs की प्रस्तावित तैनाती को अपनी सार्वभौमिकता के लिए सीधी चुनौती के रूप में देखते हैं. इसमें वियतनाम तथा फिलीपींस भी शामिल हैं, जिनका मानना है कि विवादास्पद अपतटीय विशेषताओं के पास चीन की ओर से FNPPs की तैनाती सीधे उनके क्षेत्रीय अधिकारों का हनन होगी. इस स्थिति में FNPPs को इन दोनों देशों के प्राधिकारियों से अनुमति लेनी होगी और पर्यवेक्षण का अधिकार भी देना होगा. विएतनाम का 2008 का लॉ ऑन ॲटोमिक एनर्जी यानी परमाणु ऊर्जा संबंधी कानून विएतनामी जल में आने वाले परमाणु संचालित जहाज़ो के निरीक्षण करने का अधिकार वहां के प्रधानमंत्री को सौंपता है. फिलीपींस में हालांकि इस प्रकार का कोई स्पष्ट विनियमन नहीं है, लेकिन वहां की सरकार अपने समुद्री कानूनों के तहत चीनी NPPs को लेकर अपने अधिकारों का उपयोग करना चाहेगी. इस क्षेत्र के नाजुक पारिस्थितिकी संतुलन, अनसुलझे क्षेत्रीय विवाद और फ्लोटिंग रिएक्टर्स को लेकर स्पष्ट अंतर्राष्ट्रीय विनियमनों के अभाव की वज़ह से पर्यावरणीय सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को लेकर उठने वाली चिंताएं कई गुना बढ़ जाती है. इस स्थिति में FNPPs निश्चित रूप से क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े ख़तरों को बढ़ाते हुए पहले से ही अशांत क्षेत्रीय सुरक्षा गतिविज्ञान को बढ़ावा देने का काम करेंगे. बीजिंग की प्रवृत्ति है कि वह दक्षिण चीन समुद्र में अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून का उल्लंघन करते हुए अपना दबदबा बढ़ाने में जुटा रहता है. समुद्र-आधारित परमाणु संयंत्रों की वज़ह से चीन द्वारा इस इलाके में स्थापित किए गए सैन्यीकृत कृत्रिम द्वीपों पर उसकी पकड़ मजबूत होगी. इसके चलते क्षेत्र की सुरक्षा पर ख़तरा बढ़ेगा और पहले से ही तनावपूर्ण क्षेत्रीय गतिविज्ञान की गति और तेज होगी.


प्रतनश्री बासु, ORF के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में असिस्टेंट फेलो हैं.

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