Author : Dhaval Desai

Published on Jun 05, 2020 Updated 4 Days ago

दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी – 55 प्रतिशत- शहरों में रहती है. 2050 तक ये आंकड़ा 68 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है. इस बढ़ोतरी में ज़्यादातर कुछ देशों का ही योगदान रहेगा. एशिया में भारत और चीन, अफ्रीका में नाइजीरिया वैश्विक शहरीकरण की अगुवाई करेंगे.

शहरों की भीड़ भरी आबादी कैसे बना कोविड-19 की महामारी का मुख्य़ कारण?

कोरोना वायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित 10 देश, कुछ अपवादों को छोड़कर, बताते हैं कि किस तरह उनके शहर और शहरी इलाक़ों में बीमारी न सिर्फ़ सबसे ज़्यादा तेज़ी से फैली बल्कि सबसे ज़्यादा मौतें भी हुईं. जैसा कि नीचे के आंकड़ों में बताया गया है सामान्य तौर पर इन सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में सिर्फ़ एक बेहद घने और बड़े शहरी इलाक़े में पूरे देश के कुल मामलों के 32.19 प्रतिशत मामले मिले हैं. कोरोनावायरस से जुड़ी कुल मौतों के मामले में भी इन देशों में सिर्फ़ एक बड़े शहर में 29.53 प्रतिशत मौतें दर्ज की गई हैं.

कोविड19 की वजह से विश्व स्तरीय मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर वाले दुनिया के सबसे अमीर शहरों ने जिस बर्बादी का अनुभव किया है, उससे साफ़ संकेत मिलता है कि भले ही उच्च घनत्व वाले शहरी इलाक़े बड़ी आबादी को रख सकते हैं लेकिन इस तरह के अभूतपूर्व ख़तरे की हालत में वो कमज़ोर और रक्षाहीन हैं. शहरी नियोजकों के दृष्टिकोण के हिसाब से शहरों में आबादी का घनत्व आर्थिक गतिविधि को बढ़ाता है, साथ ही ये भी सुनिश्चित करता है कि दुर्लभ सार्वजनिक संसाधन और सेवाएं एक बड़ी आबादी के लिए इस्तेमाल की जा सके. लेकिन आबादी का घनत्व एक ख़तरनाक बोझ बन गया है, ख़ास तौर पर कोविड19 जैसी महामारी के वक़्त जो इंसानी बस्तियों में बेकाबू होकर फैलती है. विकासशील देशों की मेगासिटी में जहां लोग बेहद तंग और अक्सर गंदी जगह में रहते हैं, यात्रा करते हैं और काम करते हैं, उनके लिए हालात ख़ास तौर पर असुरक्षित हैं. ये हालात सामुदायिक स्तर पर, जिसे संक्रमण का स्टेज 3 (सबसे ज़्यादा फैलना) भी कहा जाता है, महामारी के फैलने के लिए आदर्श माहौल मुहैया कराते हैं.

शहरों का विस्फोटक घनत्व– दुनिया के लिए चिंता

दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी – 55 प्रतिशत– शहरों में रहती है. 2050 तक ये आंकड़ा 68 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है. इस बढ़ोतरी में ज़्यादातर कुछ देशों का ही योगदान रहेगा. एशिया में भारत और चीन, अफ्रीका में नाइजीरिया वैश्विक शहरीकरण की अगुवाई करेंगे. 2018 से 2050 तक ग्रामीण से शहरी बदलाव में ये तीनों देश मिलकर 35 प्रतिशत का योगदान करेंगे. फिलहाल उत्तरी अमेरिका जहां 82 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं, लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देश (81 प्रतिशत) और यूरोप (78 प्रतिशत) दुनिया के शहरी क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा योगदान करते हैं जबकि अफ्रीका में सबसे ज़्यादा ग्रामीण आबादी है. लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में बहुतायत आबादी रहने के बावजूद अफ्रीका में बीमारी के तेज़ी से फैलने का सबसे ज़्यादा ख़तरा है क्योंकि इसके कई देशों में दुनिया की सबसे सघन झुग्गी बस्तियां भी हैं. उदाहरण के तौर पर, सब-सहारा अफ्रीका में झुग्गी में रहने वाली शहरी आबादी (82 प्रतिशत) दुनिया में सबसे ज़्यादा है. निकट भविष्य में कोविड19 की वैक्सीन के संकेत नहीं होने की वजह से इन शहरी इलाक़ों में आने वाले हफ़्ते बहुत अहम रहेंगे.

शहरी घनी आबादी के संदर्भ में भारत की तैयारी और जवाब

भारत सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन लागू कर बीमारी पर नियंत्रण के लिए सख़्त क़दम उठाया है. मुश्किलों के बावजूद मुंबई और दूसरे शहरी इलाक़ों में लोगों का सोशल डिस्टेंसिंग और रोकथाम के दूसरे उपायों का अनुशासन से पालन करना हालात को तेज़ी से ख़राब होने से रोकने का एकमात्र भरोसेमंद तरीक़ा है.

लेकिन क़रीब 93 प्रतिशत कामगारों के असंगठित क्षेत्र से जुड़े होने और इनके एक बड़े हिस्से के रोज़ाना की मज़दूरी पर निर्भर होने की वजह से भारत के 130 करोड़ लोग इस तरह के लॉकडाउन के कारण मुश्किल हालात का सामना कर रहे हैं. ख़ास तौर पर तब जब लॉकडाउन लंबे समय तक लागू हो. भारत के कई शहर पहले से रिवर्स माइग्रेशन का सामना कर रहे हैं क्योंकि हज़ारों प्रवासी मज़दूर लॉकडाउन के कारण शहरों में गुज़र-बसर का ज़रिया छिन जाने की वजह से अपने गांवों की तरफ़ लौटना शुरू कर चुके हैं. ऐसे हालात, जहां सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को तोड़ा जाता है, की ख़बरें भारत के क़रीब-क़रीब सभी बड़े शहरों से आ रही हैं. इसकी वजह से संक्रमण के गांवों तक पहुंचने का ख़तरा हो गया है जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा बेहद ख़राब हालात में हैं. आंशिक छूट के बावजूद लॉकडाउन को फिर आगे बढ़ाने पर पूरे देश में व्यापक स्तर पर सामाजिक अशांति और हिंसक प्रदर्शन हो सकते हैं. मुंबई के बांद्रा टर्मिनस और सूरत में जो तस्वीरें दिखीं वो शहरों में आजीविका के किसी साधन के बिना फंसे प्रवासी मज़दूरों के भीतर असंतोष, बढ़ती बेचैनी और ग़ुस्से को दिखाती हैं.

शहरों में अनियंत्रित आबादी का घनत्व फैलने से न सिर्फ़ सार्वजनिक संसाधनों और सेवाओं पर बोझ बढ़ता है बल्कि कोविड19 जैसी महामारी और स्वास्थ्य आपातकाल के समय सार्वजनिक स्वास्थ्य सिस्टम भी बेबस हो जाता है. पहला केस सामने आने के कुछ हफ़्तों के भीतर ही महामारी ने उन वैश्विक शहरों की कमज़ोरी का भी पर्दाफ़ाश कर दिया है जो उच्च स्तरीय मेडिकल और सार्वजनिक स्वास्थ्य सिस्टम की शेखी बघारते हैं. उदाहरण के लिए दो सबसे अमीर और इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में सबसे मज़बूत शहर न्यूयॉर्क और लंदन की सार्वजनिक स्वास्थ्य और मेडिकल सेवा अचानक और तेज़ी से बढ़े मामलों की वजह से बेहद दबाव में आ गई हैं.

दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी के घनत्व वाले देशों में शामिल, तुलनात्मक तौर पर अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं वाले शहर और दुनिया में सबसे कम टेस्टिंग दर के साथ भारत- महामारी के इस स्टेज में- फिलहाल जिस हालत में है वो बीमारी के बड़े असर के मुक़ाबले कुछ भी नहीं है.

लेकिन ये सिर्फ़ बहुत कम टेस्टिंग अनुपात और दूसरे ज़रूरी उपकरणों, जिनमें क्रिटिकल केयर इंफ्रास्ट्रक्चर शामिल है, की कमी ही नहीं है. सरकार और यहां तक कि प्राइवेट सेक्टर भी इन कमियों को पूरा करने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं. अगर मामलों की संख्या अचानक बढ़ती है तो भारत के शहरों के सामने असली चुनौती डॉक्टर और दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों की उपलब्धता होगी.

निष्कर्ष

दुनिया की कोई भी मेगासिटी- आर्थिक शक्ति और सामाजिक ढांचे की संपूर्ण मज़बूती के बावजूद- कोविड19 महामारी के हमले को झेलने में कामयाब नहीं रही. उनकी सघन आबादी या मानवीय पूंजी उनके लिए सबसे बड़ा बोझ साबित हुई. इसलिए महामारी दुनिया के लिए चेतावनी है कि शहरों की आबादी का घनत्व जो गंभीर जोखिम पेश करते हैं, उन पर गौर किया जाए. इसलिए भारत और दूसरे देश अपने शहरी इलाकों के बेकाबू आबादी के घनत्व से निपटने में हर मुमकिन कोशिश करें. शहरी योजना बनाते समय आबादी की बढ़ोतरी और जनसांख्यिकी संबंधी अनुमान को ध्यान में रखना होगा और इसी आधार पर सार्वजनिक सुविधाओं और सेवाओं का इंतज़ाम करना होगा. वो चीन के ‘चेंगशी बिंग’ (जिसका मतलब ‘बड़े शहरों की बीमारी’ है) से निपटने के लिए किए गए उपायों का भी अध्ययन कर सकते हैं जिसकी वजह से चीन के दो सबसे घनी आबादी वाले शहरों- बीजिंग और शंघाई की आबादी कम हुई. काम आसान नहीं है लेकिन ये भी ध्यान रखना चाहिए कि अगली और बेहद ख़तरनाक जैविक त्रासदी ज़्यादा दूर नहीं है. ये बेवकूफाना और वास्तव में ख़तरनाक होगा कि क़ुदरत को संतुलन बैठाने की छूट दी जाए.

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