Published on Dec 08, 2022 Updated 0 Hours ago

लंबे-चौड़े घोषणापत्र का इस्तेमाल करके मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में तीनों प्रमुख दलों ने MCD चुनाव के लिए पूरी तैयारी की थी  

दिल्ली का MCD ‘चुनाव’ कैसे बन गई दो पार्टियों के बीच की ‘प्रतिष्ठा’ की लड़ाई!

जिस वक़्त सबकी निगाहें गुजरात के बड़े राजनीतिक मुक़ाबले की ओर थी, जो काफ़ी हद तक ठीक भी है, उस समय उम्मीद की जा रही थी कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव पर लोगों का ध्यान कम जाएगा. लेकिन इसके विपरीत राष्ट्रीय राजधानी के इस मुक़ाबले पर लोगों का काफ़ी ध्यान गया. बड़े-बड़े बैनर, बड़ी संख्या में चुनावी रैलियां, तीनों प्रमुख पार्टियों यानी भारतीय जनता पार्टी (BJP), आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के प्रमुख नेताओं के चुनावी अभियान इस बात के सबूत हैं कि दिल्ली में स्थानीय निकाय के चुनावों में जीत को कितना महत्व दिया गया. दुनिया के बड़े नगर निकायों में से एक MCD 1.1 करोड़ निवासियों के लिए सड़क, स्वच्छता, कूड़ा प्रबंधन और यहां तक कि प्राथमिक विद्यालयों एवं डिस्पेंसरी चलाने का काम सीधे तौर पर देखती है. इसके अलावा देश की राजधानी का नगर निगम होने की वजह से MCD सत्ता के ऐसे केंद्र में काम करती है जहां केंद्र और राज्य की सरकारें एक-दूसरे की विरोधी पार्टियों की हैं.

मार्च 2022 में केंद्र सरकार ने तीनों नगर निगमों को एक करने के लिए दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक को मंज़ूरी दी. विलय की योजना को उस वक़्त तक आधिकारिक नहीं किया गया जब तक कि राज्य चुनाव आयोग ने निगम चुनाव की तारीख़ को 2022 की शुरुआत से अनिश्चित समय के लिए नहीं टाला.

4 दिसंबर को हुए MCD चुनाव को लेकर तनाव उस वक़्त से बढ़ा हुआ था जब MCD चुनाव को उसके तय तारीख़ अप्रैल 2022 से टाला गया था. 2011 से MCD तीन अलग-अलग नगर निगमों के रूप में काम कर रही थी: उत्तरी दिल्ली के लिए उत्तरी दिल्ली नगर निगम (NDMC), दक्षिणी दिल्ली के लिए दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (SDMC) और पूर्वी दिल्ली के लिए पूर्वी दिल्ली नगर निगम (EDMC). लेकिन मार्च 2022 में केंद्र सरकार ने तीनों नगर निगमों को एक करने के लिए दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक को मंज़ूरी दी. विलय की योजना को उस वक़्त तक आधिकारिक नहीं किया गया जब तक कि राज्य चुनाव आयोग ने निगम चुनाव की तारीख़ को 2022 की शुरुआत से अनिश्चित समय के लिए नहीं टाला. विलय के बाद परिसीमन की एक कवायद की गई जिसके तहत MCD में चुनाव के लिए सीटों की संख्या को 272 से घटाकर 250 कर दिया गया. दिल्ली की तीन बड़ी पार्टियों- BJP, AAP और कांग्रेस- के उम्मीदवार समेत 1,349उम्मीदवार MCD के 12 अलग-अलग ज़ोन की 250 सीटों के लिए चुनाव में खड़े हुए.

वादों की भरमार

चूंकि राष्ट्रीय राजधानी हर समय शासन व्यवस्था और पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों में फंसी रहती है, ऐसे में स्थानीय निकाय के चुनाव में एक सामान्य निवासी के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ था. वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली विश्व का सबसे प्रदूषित शहर है. इसकी वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में रुकावट आती है. जल प्रदूषण, जैव विविधता का नुक़सान, नगर निगम का कूड़ा, धूल और ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण से जुड़ी दूसरी प्रमुख चुनौतियां हैं जिनका सामना दिल्ली कर रही है. महिलाओं की सुरक्षा के मामले में भी दिल्ली लगातार निचले पायदान पर है और वो भारत में सबसे असुरक्षित महानगर बनी हुई है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार 2020 के मुक़ाबले 2021 में दिल्ली में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध में 41 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और इस दौरान महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामले 9,782 से बढ़कर 13,892 हो गए.

ऊपर जिन तीन प्रमुख दलों का ज़िक्र किया गया है, उन्होंने शहर के विकास और शासन व्यवस्था से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिए अपने घोषणापत्र में कार्य योजना के बारे में बताया. घोषणापत्र में समानता के एक असाधारण उदाहरण के तहत सभी दलों ने चुनाव जीतने पर तीनों लैंडफिल साइट (“कूड़े का क़ुतुबमीनार”) को साफ़ करने का वादा किया.

MCD चुनाव से पहले AAP के “केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल के पार्षद” अभियान के तहत दिल्ली के निवासियों को 10 गारंटी दी गई. ये गारंटी स्वच्छता, MCD के भीतर भ्रष्टाचार से निपटने, आधारभूत ढांचे एवं नागरिक सुविधाओं को सुधारने और नगर निगम के कर्मचारियों में बदलाव करने एवं उनके लिए नियमित वेतन सुनिश्चित करने को लेकर थी. AAP ने दिल्ली में कूड़े की समस्या का समाधान करने के लिए पांच साल की समय सीमा तय की. साथ ही उसने कूड़े के प्रबंधन की प्रणाली को बेहतर करने, जिसमें वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से सलाह लेना शामिल है, के लिए अपनाए जाने वाले उपायों की रूप-रेखा भी प्रस्तुत की. AAP की चुनावी अपील राज्य की सत्ता में होने और इस वादे में थी कि अगर वो स्थानीय निकाय का चुनाव जीती तो MCD के काम-काज और राज्य सरकार के बीच तनाव को ख़त्म कर देगी.

MCD चुनाव से पहले AAP के “केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल के पार्षद” अभियान के तहत दिल्ली के निवासियों को 10 गारंटी दी गई. ये गारंटी स्वच्छता, MCD के भीतर भ्रष्टाचार से निपटने, आधारभूत ढांचे एवं नागरिक सुविधाओं को सुधारने और नगर निगम के कर्मचारियों में बदलाव करने एवं उनके लिए नियमित वेतन सुनिश्चित करने को लेकर थी.

BJP के अभियान में “वचन पत्र” और “संकल्प पत्र” की रूप-रेखा पेश की गई जिनमें कूड़ा प्रबंधन और MCD के प्रबंधन को संरचनात्मक रूप से सुधारने पर ज़ोर दिया गया था. सबसे असाधारण वादा था झुग्गी में रहने वाले लोगों के लिए मुफ़्त घर. कुछ समय पहले पार्टी ने झुग्गी पुनर्वास योजना के तहत 3,024 फ्लैट आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोगों को सौंपे थे. इसके अलावा BJP ने शुरुआती 100 दिनों में अधिकृत औद्योगिक क्षेत्रों में कारखानों के लिए लाइसेंस से छूट और मोबाइल एप्लीकेशन के ज़रिए ई-गवर्नेंस की सुविधा का वादा किया था.

इस बीच, कांग्रेस ने वायु प्रदूषण को अपना मुख्य मुद्दा बनाया और वादा किया कि वो प्रदूषण में कमी लाएगी. कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र को “मेरी चमकती दिल्ली” का नाम दिया जिसमें वादा किया गया कि MCD के भीतर संरचनात्मक सुधार की शुरुआत की जाएगी, कर्मचारियों को नियमित किया जाएगा एवं खाली पदों पर भर्ती की जाएगी और नगर निगम की आमदनी दोगुनी की जाएगी. इसके अलावा कांग्रेस ने ये वादा भी किया कि नागरिकों की हिस्सेदारी को बेहतर किया जाएगा, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाएगी और शहर के लिए एक मास्टर जलनिकासी की योजना बनाई जाएगी.

सभी तीनों मुख्य दलों ने राजधानी के निवासियों के लिए कुछ प्रमुख मुद्दों- भ्रष्टाचार, यमुना में बाढ़, झुग्गियां, कूड़ा निस्तारण का अधूरा इंतज़ाम और कर्मचारियों को अनियमित वेतन-का समाधान करने का वादा किया. कुछ हद तक उनके घोषणापत्र में समानताएं भी थीं. हालांकि चुनाव के नतीजे काफ़ी हद तक पार्टी की लोकप्रियता और अतीत में वादे पूरे करने की उनकी क्षमता पर आधारित रहे.

प्रतिष्ठा की लड़ाई

वैसे तो BJP दिल्ली की सत्ता में 1998 से ही नहीं है (जब स्वर्गीय सुषमा स्वराज 52 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बनी थीं) लेकिन MCD में पिछले दो दशकों के दौरान ज़्यादातर समयउसका दबदबा रहा है. BJP ने पिछले तीन चुनावों के दौरान लगातार ज़्यादातर सीटें जीती हैं: 2007 और 2012 में जब कांग्रेस की शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं; और 2017 में जब AAP के अरविंद केजरीवाल दिल्ली सरकार के प्रमुख थे. केजरीवाल के मुख्यमंत्री रहते अगर BJP चौथी बार एमसीडी चुनाव जीत जाती तो राष्ट्रीय राजधानी में उसका राजनीतिक महत्व बढ़ता. संक्षेप में कहें तो MCD में अपना वर्चस्व बनाए रखने और नगर निगम छीनने की AAP की भरपूर कोशिशों को मात देने के मामले में BJP के लिए ये प्रतिष्ठा की लड़ाई थी. इसकी झलक BJP के द्वारा बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान शुरू करने में दिखाई दी जिसके तहत दिल्ली के मतदाताओं तक पहुंचने के लिए केंद्रीय मंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा, सात राज्यों के मुख्यमंत्री और लगभग 40 स्टार प्रचारकों को शामिल किया गया था. संक्षेप में कहें तोBJP ने जहां गुजरात चुनाव के लिए अपने सभी संसाधनों को लगा दिया था वहीं राजधानी के स्थानीय निकाय पर अपनी पकड़ बरकरार रखने के लिए भी उसने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी.

MCD का चुनाव BJP के मुक़ाबले सत्ताधारी AAP और उसके मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण था. इस नई पार्टी ने 2015 से विधानसभा चुनावों में पूरी तरह दबदबा कायम किया है. उस वक़्त AAP ने दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 67 पर जीत हासिल की थी लेकिन वो BJP से MCD की सत्ता छीनने में कामयाब नहीं हो सकी थी. BJP को हटाने के लिए बड़ा अभियान शुरू करने के बाद भी AAP 2017 के MCD चुनाव में 272 में से सिर्फ़ 49 सीट ही जीत पाई थी. दिल्ली के लोगों के लिए कई ऐसी सेवाएं हैं जो MCD और दिल्ली सरकार- दोनों ही देती हैं (अक्सर वो एक-दूसरे की नक़ल करती हैं). ऐसे में MCD के काम-काज के ऊपर नियंत्रण नहीं होने की वजह से दिल्ली में शासन व्यवस्था में कायापलट का अपना महत्वाकांक्षी एजेंडा चलाने में AAP अभी तक लाचार रही है. वास्तव में AAP के घोषणापत्र में कई जगह इस बात के लिए दुख जताया गया है कि MCD के काम-काज के ऊपर उसका नियंत्रण नहीं है. AAP ने राजधानी के मतदाताओं से भावनात्मक अपील की कि वो शासन व्यवस्था में इस असंगति को दुरुस्त करें ताकि दिल्ली के लोग कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर जिन दिक़्क़तों का सामना कर रहे हैं, उनमें स्पष्ट बदलाव आ सके. संक्षेप में कहें तो MCD चुनाव में AAP का प्रमुख ज़ोर इस बात पर था कि दिल्ली में नागरिक सुविधाओं के मामले में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए उसे राज्य और स्थानीय निकाय- दोनों स्तरों पर व्यवस्था चलाने की ज़िम्मेदारी मिलनी चाहिए. इस मामले में AAP ने BJP के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी प्रतिकूल परिस्थितियों को भुनाने की कोशिश की. ऐसे में हैरत की बात नहीं है कि AAP ने BJP से MCD छीनने के लिए हर लोकप्रिय वादा किया. इसका सबसे साफ़ प्रमाण है चुनाव प्रचार के आख़िरी चरण में केजरीवाल के द्वारा रेज़ीडेंट् वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) से किया गया वादा. केजरीवाल ने कहा कि अगर AAP जीतती है तो RWA को ‘मिनी-पार्षद’ का दर्जा दिया जाएगा. संक्षेप में कहें तो सत्ताधारी BJP और AAP ने राष्ट्रीय राजधानी में प्रतिष्ठा की इस लड़ाई को जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हालांकि नतीजों से स्पष्ट है कि AAP के वादों पर लोगों ने ज़्यादा भरोसा किया.


फरहीन नहवी ORF में रिसर्च इंटर्न हैं

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