Author : Simran Walia

Published on Dec 09, 2022 Updated 0 Hours ago

हाल ही में जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच संशोधित संयुक्त घोषणा में उनके संबंधों को और बढ़ावा देने की बात कही गई है.

जापान-ऑस्ट्रेलिया कैसे अपने सुरक्षा सहयोग को मज़बूत कर रहे हैं?

आर्थिक और सामरिक हितों की दृष्टि से जापान और ऑस्ट्रेलिया एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं. ये दोनों ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अहम खिलाड़ी भी हैं. लोकतंत्र, कानून के शासन और मानवाधिकारों पर भरोसा करते हुए दोनों ही देश इसे लेकर एक साझा प्रतिबद्धता में विश्वास रखते हैं. अपने सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए ऑस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्रियों ने 22 अक्टूबर को सुरक्षा सहयोग पर एक संशोधित संयुक्त घोषणा (जेडीएससी) पर हस्ताक्षर किए. सुरक्षा सहयोग पर 2007 में की गई संयुक्त घोषणा (जेडीएससी) और जापान-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक साझेदारी पर 2015 में हस्ताक्षरित समझौते के बाद उनके संबंधों को और भी प्रोत्साहन मिला था.

जापान और ऑस्ट्रेलिया का गठजोड़

जापान और ऑस्ट्रेलिया दोनों के ही अमेरिका (यूएस) के साथ मजबूत और नजदीकी गठजोड़ संबंध हैं. इसके अलावा इन दोनों देशों के अन्य देशों जैसे भारत, दक्षिण कोरिया से भी गठबंधन हैं. दोनों दी देशों ने अपनी सुरक्षा साझेदारी बनाई हैं, जिसमें सीमा सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला करने, कानून प्रवर्तन, निरस्त्रीकरण, समुद्री सुरक्षा और मानवीय सहायता संचालन के क्षेत्र शामिल हैं. दोनों के बीच हर साल विदेश और रक्षा मंत्रियों की 2+2 वार्ता आयोजित होती हैं और 2021 की 2+2 वार्ता में, दोनों देशों ने मुक्त, खुले और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि भी की है.

दोनों के बीच हर साल विदेश और रक्षा मंत्रियों की 2+2 वार्ता आयोजित होती हैं और 2021 की 2+2 वार्ता में, दोनों देशों ने मुक्त, खुले और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि भी की है.

हाल ही में सुरक्षा सहयोग को लेकर हुई संयुक्त घोषणा में जापान और ऑस्ट्रेलिया ने अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया है, जिसमें सैन्य, साइबर सुरक्षा और इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्र शामिल हैं. इस बदलाव का मूल कारण चीन का विस्तारवादी दृष्टिकोण और उसकी हठधर्मिता को माना जा रहा है. दोनों देशों के बीच पारस्परिक पहुंच समझौते (आरएए) के संदर्भ में यह घोषणा बनाई गई है, जिस पर जनवरी 2022 में हस्ताक्षर किए गए थे. यह समझौता उनकी सेनाओं के बीच गहरे सहयोग की अनुमति देता है. जापान ने यह भी घोषणा की है कि उसका आत्मरक्षा बल (एसडीएफ) ऑस्ट्रेलियाई सेना के साथ सैन्य अभ्यास में भी हिस्सा लेगा. जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और उनके समकक्ष ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बनीज ने एक-दूसरे के साथ काम करने की प्रतिबद्धता को और मजबूत करने के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक नियम-आधारित व्यवस्था सुनिश्चित करने की बात कही, जहां सभी विवादों को शांतिपूर्वक अंदाज में हल किया जाएगा. दोनों देशों के लिए अपने सामरिक संरेखण और इंटरऑपरेबिलिटी अर्थात पारस्परिकता के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अमेरिका के साथ अपने सहयोग को बढ़ाने का काम करें. दोनों देश एक सुरक्षित और स्थिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए आसियान केंद्रीयता और आसियान दृष्टिकोण का समर्थन करने पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं.

जापान और ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा भागीदारी

जापान को अपना सबसे करीबी सुरक्षा भागीदारों में से एक बनाने को लेकर ऑस्ट्रेलिया पूरी तरह प्रतिबद्ध है. यह बात विशेष रूप से दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों में निहित है. आर्थिक सहयोग के संदर्भ में, जापान और ऑस्ट्रेलिया का लक्ष्य आर्थिक सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए उनकी लचीली आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण करना है. इसमें स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियां और गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना भी शामिल रहेगा.  इसके अलावा यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध ने दोनों ही देशों की ऊर्जा आवश्यकताओं को प्रभावित किया हैं. ऐसे में इस क्षेत्र में दोनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना और भी जरूरी हो गया है. जापान और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही 2050 तक नेट-जीरो लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं. ऐसे में महत्वपूर्ण खनिजों एलएनजी और हाइड्रोजन तक जापान की पहुंच के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा को भी बढ़ावा मिलेगा. जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक महत्वपूर्ण खनिज साझेदारी में रेयर अर्थ अर्थात बहुमूल्य पृथ्वी भी शामिल है. यह साझेदारी जापानी निर्माताओं के लिए आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए भी अहम है. इसके अलावा, दोनों देश अपनी साइबर सुरक्षा को भी मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं.

इस संशोधित सुरक्षा घोषणा में जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2+2 वार्ता पर जोर देकर क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर प्रतिबद्धता पर ध्यान दिया गया है. यह बात इस संशोधित समझौते को और भी महत्वपूर्ण बनाती है. 2007 में जिस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, उसमें दोनों देशों के बीच पुख्ता सुरक्षा सहयोग की नींव रखी गई थी. और अब संशोधित घोषणा में भी इस बात पर बल दिया गया है कि पारस्परिक पहुंच समझौते को लागू किया जाए. 2007 में जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा और रक्षा संबंधों के विकास को बढ़ावा देने वाली घोषणा भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके दौरान, जापान को अपनी संवैधानिक बाधाओं के कारण सामूहिक आत्मरक्षा का अधिकार नहीं था. जापान ने इसके अलावा 2015 में शांति और सुरक्षा कानून भी बना लिया, जिसने जापान के अस्तित्व को खतरे में डालने वाली स्थिति में उसके आत्मरक्षा बलों को सैन्य कर्मियों की रक्षा करने और सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति दी थी. ऐसे में एसडीएफ को आपातकाल के समय ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बलों की सहायता करने का अधिकार मिल गया है.

जापान के लिए अपने रक्षा प्रयासों को बढ़ाने पर विचार करने का एयूकेयूएस एक अच्छा उदाहरण है. इसके अलावा वह उसे अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग के माध्यम से मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक को बनाए रखने पर काम करने में भी सहयोग करेगा.

जापान और ऑस्ट्रेलिया का एजेंडा

जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा घोषणा के पीछे जो उल्लेखनीय एजेंडा है, उसमें से एक चीन को लेकर उत्पन्न होने वाला खतरा है. क्योंकि दोनों राष्ट्र एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के साथ-साथ एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने का प्रयास करते हैं. किशिदा और अल्बानीज के बीच बातचीत के बाद जारी संयुक्त बयान में ताइवान स्ट्रेट की स्थिरता की बात भी कही गई है. क्योंकि इस इलाके का इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के भूरणनीतिक दृष्टि से काफी महत्व है. जब से यूक्रेन संकट उपजा है, तब से ही जापान ऊर्जा असुरक्षा का शिकार हैं. और ऑस्ट्रेलिया उसे ऊर्जा की आपूर्ति करता हैं. इतना ही नहीं भविष्य की अपनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर जापान लिक्विफाइड नैचुरल गैस (एलएनजी) भी हासिल करना चाहता है. यह मुद्दा भी जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुई बातचीत में शामिल था.

सितंबर 2021 में एयूकेयूएस, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच हुई एक त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी ने चीन के विस्तारवादी व्यवहार के बीच हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मिनीलैटरल सहयोग को मजबूत किया है. एयूकेयूएस का उद्देश्य गहन प्रौद्योगिकी साझाकरण, औद्योगिक आधारों और आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने के साथ तीनों देशों की संयुक्त क्षमताओं और अंतर-क्षमता को बढ़ाना भी है. यूएस और यूके के साथ मिलकर परमाणु हमला करने की क्षमता रखने वाली पनडुब्बी बनाने को लेकर काम करने के ऑस्ट्रेलिया के फैसले से जापान आश्चर्यचकित रह गया था. इस समझौते में ऑस्ट्रेलिया ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने की भी बात की है, जिसकी जापान ने सराहना की है. इतना ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया की परमाणु उर्जित पनडुब्बी साऊथ चाइना सी अर्थात दक्षिण चीन समुद्र में भी पेट्रोलिंग करेंगी, ताकि चीन की हरकतों को ध्यान में रखकर वहां शक्ति संतुलन बनाए रखा जा सके. एयूकेयूएस की वजह से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में यूके की सहभागिता और सक्रियता भी मजबूत होगी, जिससे जापान को भी यूके के साथ अपने रक्षा संबंध मजबूत करने में सहयोग मिलेगा. ऑस्ट्रेलिया अब दुनिया की सातवीं परमाणु पनडुब्बी से लैस शक्ति बनने की संभावना है. जो अंतत: सुरक्षा के साथ-साथ अप्रसार नीति के प्रति जापान के झुकाव को प्रभावित करेगा.

इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया की पनडुब्बी रोधी संघर्ष क्षमता विकसित करने का अर्थ यह है कि अब वह दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशियाई डायनामिक्स अर्थात गतिशीलता में भी शामिल रहेगा. ऐसे में चीन की ओर से पैदा होने वाले खतरे से निपटने में सक्षम होने में जापान की सुरक्षा के लिए यह मनचाही बात साबित हो सकती है. जापान के लिए अपने रक्षा प्रयासों को बढ़ाने पर विचार करने का एयूकेयूएस एक अच्छा उदाहरण है. इसके अलावा वह उसे अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग के माध्यम से मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक को बनाए रखने पर काम करने में भी सहयोग करेगा.

क्वॉड के बढ़ते प्रभाव और ताकत की वजह से इसके सदस्य देशों मसलन, भारत-जापान और जापान-ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा संबंध भी बेहतर हो रहे हैं. जापान और ऑस्ट्रेलिया ऐसे देश हैं, जो कुशल ऊर्जा आपूर्ति को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का अहम हिस्सा मानते हैं. ऐसे में ये दोनों ही ऊर्जा के क्षेत्र में भी अपनी साझेदारी को गहन और मजबूत करते रहेंगे. ऑस्ट्रेलिया भी कोयले और गैस जैसे अपने प्राकृतिक संसाधनों के निर्यात को विविधतापूर्ण बनाने की कोशिश करते हुए चीन पर अपनी निर्भरता को खत्म करने की कोशिश कर रहा है. उसे लगता है कि इस मामले में जापान फायदेमंद विकल्प साबित होगा. जापान और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही इस बात की ओर संकेत करते हैं कि वे अब अपने रक्षा बलों को एक-दूसरे के रणनीतिक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर सहयोग करने की दिशा में बढ़ रहे हैं. वे दोनों ही यूएस के साथ इसी तरह के संबंध बनाने को भी महत्वपूर्ण मानते हैं. जापान जहां, यूएस का सबसे मजबूत संधि सहयोगी है, वहीं यूएस-ऑस्ट्रेलिया संधि की मजबूती भी इंडो-पैसिफिक के साथ-साथ दुनिया की दृष्टि से अहम है. जापान और ऑस्ट्रेलिया, दोनों के लिए ही यूएस के साथ की संधि बनाए रखना जरूरी है, क्योंकि इससे टोकियो-कैनबरा भी और करीब आएंगे और इससे एक नियम आधारित व्यवस्था बनाए रखने में सहायता मिलेगी. प्रभाव को लेकर बढ़ती प्रतियोगिता के बीच जापान और ऑस्ट्रेलिया समेत अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ियों के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक समावेशी सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखना और भी महत्वपूर्ण हो गया है.

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