Author : Soumya Bhowmick

Published on Aug 12, 2022 Updated 0 Hours ago

हाल में टैक्स में किए गए बदलाव से क्या देश में जारी आर्थिक संकट कम हो पाएगा ?

श्रीलंका में ‘कर कटौती’ ने किस तरह से अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया…!

श्रीलंका में जो आर्थिक उथल-पुथल हुई वो कई तरह के मनमाने राजनीतिक कदमों का नतीजा है जो देश में आज बड़े पैमाने पर आर्थिक संकट में बदल चुका है. चाहे वह साल 2019 में कर में कटौती हो या साल 2021 में जैविक खेती की ओर पूरी तरह रूख़ करना हो – इसके अलावा कोरोना महामारी का दबाव, विदेशी कर्ज़ का बोझ, चीनी वर्चस्व का प्रभाव और मौज़ूदा समय में जारी यूक्रेन-रूस संघर्ष के साथ – इन नीतियों का प्रभाव श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी रहे हैं.

श्रीलंकाई सरकार ने ऐसे समय में टैक्स कटौती की घोषणा की जब राज्य एक नाकाम अर्थव्यवस्था – जो साल 2008 के वित्तीय संकट और 2009 के गृह युद्ध से जुड़ा था- के चलते पहले से ही धन की कमी से जूझ रहा था.

इसमें दो राय नहीं कि कोरोना महामारी ने ग़रीबी और बेरोज़गारी के प्रभाव को कम करने के लिए शुरू किए गए स्वास्थ्य ज़रूरतों में नई लागतों के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर सरकारी ख़र्च को बहुत बढ़ा दिया. ऐसी परिस्थिति में सरकारी विभागों ने इन नए वित्तीय बोझ को सहन करने के लिए वित्त को स्थानांतरित करने का भरसक प्रयास किया और श्रीलंकाई सरकार ने ऐसे समय में टैक्स कटौती की घोषणा की जब राज्य एक नाकाम अर्थव्यवस्था – जो साल 2008 के वित्तीय संकट और 2009 के गृह युद्ध से जुड़ा था- के चलते पहले से ही धन की कमी से जूझ रहा था. साल 2019 के चुनावी वादों को पूरा करने के लिए सरकार ने कोरोना महामारी के दस्तक देने से कुछ महीनों पहले ही कर कटौती को लागू किया था लेकिन इससे देश में करदाताओं की संख्या में भारी कमी देखी गई और साल 2020 और 2022 के बीच उनकी संख्या में लगभग दस लाख की गिरावट आई.

कर प्रणाली में सबसे प्रमुख बदलाव मूल्य वर्धित कर (वैट) को 15 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत किया जाना था. जबकि 2 प्रतिशत के नेशनल बिल्डिंग टैक्स (एनबीटी) को समाप्त कर दिया गया था और बंदरगाहों और हवाई अड्डा विकास कर के साथ दूरसंचार टैरिफ़ पर कर में 2.5 प्रतिशत की कमी कर दी गई थी. ख़त्म किए गए कुछ अन्य करों में आर्थिक सेवा शुल्क, बैंकिंग और वित्तीय संस्थानों पर डेबिट टैक्स, संप्रभु संपत्ति पर वैट, शेयर बाज़ार पर पूंजीगत लाभ कर, पे ऐज यू अर्न (पीएवायई) कर, क्रेडिट सर्विस टैक्स और ब्याज आय पर विदहोल्डिंग टैक्स शामिल हैं.

कोरोना महामारी की बढ़ती लागत के चलते कम कर राजस्व ने बज़टीय घाटे को और बुरी स्थिति में ला खड़ा किया है जो अक्सर बाहरी कर्ज़ से पूरा किया गया है. साल 2019 में बज़ट घाटा जीडीपी के 9.6 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 12.2 प्रतिशत हो गया. सरकार का कर्ज़-जीडीपी अनुपात भी 100 प्रतिशत के निशान को पार कर गया है

घरेलू अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक मुद्दे

कर में कटौती श्रीलंका के लिए इतना नुक़सनादेह क्यों साबित हुआ इसके दो कारण हैं. सबसे पहले, यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था जिसमें पहले से ही बहुत ज़्यादा कर चोरी हो रही थी और जहां सकल घरेलू उत्पाद में प्रत्यक्ष कर का हिस्सा केवल 2 प्रतिशत है. जबकि सरकार का राजस्व-जीडीपी अनुपात 2020 में 9.1 प्रतिशत से घटकर 2021 में 8.7 प्रतिशत हो गया, कर राजस्व-जीडीपी अनुपात भी 11.6 प्रतिशत से घटकर 2021 में 7.7 प्रतिशत कम हो गया. दूसरा, इस क्षेत्र के देशों के बीच श्रीलंका में काफी कम कर-जीडीपी अनुपात है जिसने कटौती को और अधिक समस्याग्रस्त बना दिया.

चित्र 1: बिम्सटेक देशों के लिए कर राजस्व (जीडीपी का प्रतिशत)

स्रोत – The World Bank


शुरुआत में, कर कटौती का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में डिस्पोजेबल आय और मनी सर्कुलेशन को मुक्त करना था और मध्यम और लंबी अवधि में सकारात्मक विकास को बढ़ावा देना था. कम समय में, हालांकि कोरोना महामारी की बढ़ती लागत के चलते कम कर राजस्व ने बज़टीय घाटे को और बुरी स्थिति में ला खड़ा किया है जो अक्सर बाहरी कर्ज़ से पूरा किया गया है. साल 2019 में बज़ट घाटा जीडीपी के 9.6 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 12.2 प्रतिशत हो गया. सरकार का कर्ज़-जीडीपी अनुपात भी 100 प्रतिशत के निशान को पार कर गया है, जो साल 2019 के 86.9 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 105.6 प्रतिशत हो गया है.

यहां यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि इस तरह के राजकोषीय घाटे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में हमेशा से मौज़ूद रहे हैं. औसत राजकोषीय घाटा 2011 से 2020 तक इसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6.2 प्रतिशत रहा है. सरकार इन कमी को घरेलू और विदेशी दोनों स्रोतों से पूरा करेगी, हालांकि ऐसा लगता है कि विदेशी फंड के विकल्प अब पूरी तरह से ख़त्म हो चुके हैं. देश का चालू खाता इसी तरह 2010 से 2019 तक औसत चालू खाता घाटा (सीएडी) के साथ सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.2 प्रतिशत रहा. वर्तमान और राजकोषीय खाते ज़्यादातर 1970 के बाद से एक साथ मिल गए हैं, जो श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था के लिए ‘जुड़वां घाटे की परिकल्पना’ ( ‘twin deficits hypothesis’ )  को बताते हैं. यह एक सबसे बड़ी  आर्थिक समस्या है क्योंकि यह विदेशी ऋणों पर राष्ट्र की निर्भरता का संकेतक है. यहां समस्या यह भी है कि यह कोरोना महामारी जैसे बाहरी झटकों के लिए राष्ट्र को बहुत कमज़ोर कर देता है.

कराधान में बदलाव

जब रानिल विक्रमसिंघे ने मई 2022 में प्रधान मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, तो कैबिनेट ने हिचकोले खाते आर्थिक जहाज को स्थिर करने के लिए कदम उठाया. पीएमओ ने कहा कि लगभग 800 मिलियन एसएलआर (2.22 मिलियन अमेरिकी डॉलर) तक के सार्वजनिक राजस्व नुक़सान के लिए सीधे 2019 और 2020 में की गई कर कटौती ज़िम्मेदार है. कराधान में आमूल चूल बदलाव की घोषणा की गई थी – आंशिक रूप से यह पिछले वर्ष की तुलना में मई 2022 में 39.1 प्रतिशत तक मुद्रास्फीति दर के पहुंचने की वज़ह से लाया गया था. कई करों में बढ़ोतरी की गई थी और व्यक्तिगत करदाताओं को दी गई राहत वापस ले ली गई. वैट को 12 प्रतिशत तक कर दिया गया था, जो अकेले सरकारी राजस्व में एसएलआर 650 बिलियन (यूएस $ 180.56 मिलियन) जोड़ सकता था.
सारणी 1 : मई 2022 में श्रीलंका में टैक्स रिविजन

टैक्स हैड  वर्तमान  पूर्व
आयकर छूट सीमा एसएलआर 1.8 मिलियन (US$ 4,999) एसएलआर 3 मिलियन (US$ 8,332)
वैट 12 प्रतिशत 8 प्रतिशत
कॉर्पोरेट इनकम टैक्स 30 प्रतिशत (अक्टूबर से 12022) 24 प्रतिशत
टेलीकाम लेवी 15 प्रतिशत 11.25 प्रतिशत

स्रोत : Colombo Page

एक अंतरिम बज़ट भी है, जिसे लेकर पूर्व प्रधान मंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि ख़र्च को पूरी तरह कम किया जाएगा, जिसमें धन को दो साल के लिए रिकवरी कार्यक्रम के लिए रूट किया जाना है. अगस्त में संशोधन विधेयक आने के साथ, वित्त मंत्रालय ने अनुमानित व्यय को एसएलआर 3.6 ट्रिलियन (9.996 बिलियन अमेरिकी ड़ॉलर) से एसएलआर 4.6 ट्रिलियन ( 12.775 बिलियन अमेरिकी ड़ॉलर ) में संशोधित किया है. बज़ट में अल्पावधि में अर्थव्यवस्था को स्थिर करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना है. इसने कम आय वाले परिवारों और छोटे और मध्यम क्षेत्र की इकाइयों को बहुत आवश्यक राहत के रूप में एसएलआर 200 बिलियन ( 555 मिलियन अमेरिकी ड़ॉलर ) के प्रोत्साहन आवंटित करने का भी प्रस्ताव किया गया है.

जबकि नई कर की दरें सरकार के लिए ज़रूरी धन ला सकती हैं, ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए अतिरिक्त मदद की आवश्यकता है. इसके साथ ही पर्याप्त व्यय को युक्तिसंगत बनाने की आवश्यकता है, इसमें रोज़गार के मौक़ों को बढ़ाने के साथ-साथ राजस्व में अधिकतम बढ़ोतरी के लक्ष्य को पूरा किया जाना है और अंत में, व्यापक आर्थिक पुनर्गठन को समावेशी प्रगति के साथ बढ़ावा देने की ज़रूरत है क्योंकि अध्ययनों से पता चला है कि कोरोना महामारीका आर्थिक प्रभाव महिलाओं और ग़रीब वर्गों पर ज़्यादा पड़ा है.

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