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भारत में लोगों की सेहत को सुधारने के लिए अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर और सामुदायिक स्वास्थ्य एवं आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहन देकर एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है.
भारत के लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी गतिशीलता बहुआयामी है. कई सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण से जुड़े फैक्टर यहां के लोगों के समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं. भारत का स्वास्थ्य परिदृश्य दो-तरफा बीमारी के बोझ से घिरा है. एक तरफ तो दीर्घकालीन संक्रामक बीमारियां मौजूद हैं और दूसरी तरफ तेज़ी से गैर-संक्रामक बीमारियां (NCD) जैसे कि कार्डियोवास्कुलर बीमारियां, डायबिटीज़ और सांस से जुड़ी बीमारियां बढ़ रही हैं. ट्यूबरक्लोसिस, मलेरिया और HIV/एड्स जैसी संक्रामक बीमारियां लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर ख़तरा बनी हुई हैं, ख़ास तौर पर ग़रीबों और ग्रामीण क्षेत्रों में. मां एवं शिशु के मृत्यु दर की अधिकता और बच्चों में कुपोषण के ज़्यादा मामलों के साथ मां और बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े सूचक (इंडिकेटर) खराब स्थिति में बने हुए हैं.
2020 के लिए कैंसर स्टैटिसटिक्स रिपोर्ट संकेत देती है कि भारत के पुरुषों में 1,00,000 में से 94.1 लोगों को जबकि महिलाओं में 1,00,000 में से 103.6 को कैंसर हो सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक 2010-2019 की अवधि के दौरान कैंसर के मामलों में सालाना 1-1.2 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई.
वर्ल्ड हेल्थ स्टैटिसटिक्स 2021 के अनुसार भारत में औसत उम्र 70.8 वर्ष है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 के मुताबिक 2019 से 2021 तक भारत में शिशु मृत्यु दर (IMR) प्रति 1,000 बच्चे पर 35 थी जो कि 2015-16 के आंकड़े से 15 प्रतिशत कम है. खराब IMR पांच साल से कम उम्र के बच्चों में बुनियादी सामाजिक कारकों जैसे कि कुपोषण (35.5 प्रतिशत बच्चों का ठीक ढंग से विकास नहीं) और कमज़ोरी (19 प्रतिशत बच्चों का वज़न लंबाई के अनुसार नहीं) का संकेत देती है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति 2020 के 94वें स्थान (116 देशों में से) से गिरकर 2021 में 101वें पायदान पर पहुंच गई. 2020 के लिए कैंसर स्टैटिसटिक्स रिपोर्ट संकेत देती है कि भारत के पुरुषों में 1,00,000 में से 94.1 लोगों को जबकि महिलाओं में 1,00,000 में से 103.6 को कैंसर हो सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक 2010-2019 की अवधि के दौरान कैंसर के मामलों में सालाना 1-1.2 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई. हालांकि, डायबिटीज़ के मामलों में 2015 से 2019 के बीच कोई बढ़ोतरी नहीं हुई. ऐसा अनुमान है कि 12 प्रतिशत पुरुषों और 11 प्रतिशत महिलाओं को डायबिटीज़ है. अनुमान के मुताबिक हाइपरटेंशन के मामले 2019 के 23 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 30 प्रतिशत हो गये जबकि पुरुषों और महिलाओं में मोटापा के मामले क्रमश: 22.9 प्रतिशत और 24 प्रतिशत हैं.
रेखाचित्र 1: भारत में मृत्यु के कारण
रेखाचित्र 1 से पता चलता है कि 2019 के दशक से पहले की तुलना में भारत में मृत्यु के 10 प्रमुख कारणों में महत्वपूर्ण बदलाव के बावजूद गैर-संक्रामक बीमारियां (NCD) लोगों की मौत का एक प्रमुख हिस्सा बनी हुई हैं. 1990 से 2016 के बीच कुल बीमारियों के बोझ में गैर-संक्रामक बीमारियों का हिस्सा 30 प्रतिशत से बढ़कर 55 प्रतिशत होने और कुल मौतों में गैर-संक्रामक बीमारियों का हिस्सा 37 प्रतिशत से बढ़कर 61 प्रतिशत होने के साथ भारत ने बदलाव (एपिडेमियोलॉजिकल शिफ्ट) का अनुभव किया है. NCD के साथ जुड़े जोखिमों को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘कैंसर, डायबिटीज़, कार्डियोवास्कुलर बीमारियां और स्ट्रोक की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम’ को लागू किया है और देश भर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में जांच के लिए यूनिट की स्थापना की है. इसके अलावा भारत उन देशों में शामिल है जिन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के द्वारा गैर-संक्रामक बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए ग्लोबल एक्शन प्लान 2013-2020 को अपनाया है. इसके तहत 2025 तक NCD के मामलों में 25 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य रखा गया है.
भारत में स्वास्थ्य से जुड़े सामाजिक निर्धारकों पर ध्यान देने के लिए अलग-अलग स्वास्थ्य से जुड़ी पहल और नीतियां हैं. उदाहरण के लिए, स्वच्छ भारत मिशन ने पानी और खाद्य पदार्थों की गंदगी कम करके बच्चों के बीच डायरिया के फैलाव की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
भारत में लोगों की सेहत को समझने के लिए जेंडर, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, जाति और स्वास्थ्य के दूसरे सामाजिक निर्धारकों में मौजूद असमानता का आकलन करना ज़रूरी है. कई सूचकों के बारे में ज़िला स्तर का डेटा केवल 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS)-4 के समय से ही उपलब्ध कराया गया है. NFHS और सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) के भरोसेमंद डेटा की उपलब्धता के बावजूद किशोरियों को लेकर जानकारी की कमी ख़ास तौर पर लैंगिक अंतर (जेंडर गैप) को उजागर करती है. अपने धर्म, जातीयता और दिव्यांगता की वजह से अलग-अलग प्रकार की उपेक्षा की शिकार लड़कियों की शिक्षा से जुड़े डेटा भी गायब हैं.
भारत में स्वास्थ्य से जुड़े सामाजिक निर्धारकों पर ध्यान देने के लिए अलग-अलग स्वास्थ्य से जुड़ी पहल और नीतियां हैं. उदाहरण के लिए, स्वच्छ भारत मिशन ने पानी और खाद्य पदार्थों की गंदगी कम करके बच्चों के बीच डायरिया के फैलाव की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. साथ ही इसने महिलाओं की सुरक्षा एवं कल्याण और साफ-सफाई को सुधारने का काम भी किया है. प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का उद्देश्य ग़रीबों और कमज़ोर लोगों (ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग) के बीच स्वास्थ्य देखभाल की लागत को कम करना है. वहीं प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का मक़सद खाना बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन मुहैया कराना है, विशेष रूप से ग़रीबों को. इससे अस्थमा और मृत्य दर को कम करने में मदद मिलेगी. दूसरी पहल जैसे कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (आय में मदद की योजना) खाद्य सुरक्षा सुधारने और छोटे एवं सीमांत किसानों की आजीविका को बेहतर करने में सहायता करती है. सिंचाई की दूसरी योजनाएं और सॉइल हेल्थ कार्ड (खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाने की योजना), फसल बीमा योजना, इत्यादि भी किसानों के लिए मददगार हैं. शिक्षा, बच्चों के विकास और स्वास्थ्य के बीच मज़बूत और पॉज़िटिव संबंध है. सरकार ने बच्चों, ख़ास तौर पर लड़कियों, के लिए भी जन्म के समय से योजनाएं शुरू की हैं जैसे कि एकीकृत बाल विकास योजना (इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट स्कीम) ताकि पढ़ाई, पोषण और स्वास्थ्य से जुड़ा उनका विकास हो सके. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ एक और महत्वपूर्ण पहल है जिसका लक्ष्य गर्भ में पल रहे शिशुओं के लिंग निर्धारण को ख़त्म करके लड़कियों के जीवन को बचाना, उन्हें सुरक्षा मुहैया कराना और सशक्त बनाना है जिसका उनकी सेहत पर सकारात्मक असर हो सकता है.
2020 की नई शिक्षा नीति एक व्यापक स्कूल पाठ्यक्रम पर ध्यान देती है जिसमें पढ़ाई-लिखाई की पद्धति में शारीरिक गतिविधि को जोड़ कर खेल एवं फिटनेस को शामिल किया गया है और प्रोफेशनल एवं खेल-कूद की गतिविधियों में छात्रों के शामिल होने को बढ़ावा देने के लिए ‘बिना बैग’ वाले दिन का इस्तेमाल किया गया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा 1995 में शुरू वैश्विक स्वास्थ्य पहल (ग्लोबल हेल्थ इनिशिएटिव) ने स्वास्थ्य से जुड़े नतीजों में काफी हद तक सुधार करने के लिए स्कूलों में स्वास्थ्य कार्यक्रमों के महत्व को उजागर किया है. भारत में किशोरों की आबादी दुनिया में सबसे ज़्यादा है- 10 से 19 साल की उम्र के बीच 25.3 करोड़- और इस जनसंख्या को सशक्त करने से देश के विकास में योगदान मिलता है. 2014 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के अपने दृष्टिकोण के माध्यम से किशोरों के संपूर्ण विकास को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की. 2020 की नई शिक्षा नीति एक व्यापक स्कूल पाठ्यक्रम पर ध्यान देती है जिसमें पढ़ाई-लिखाई की पद्धति में शारीरिक गतिविधि को जोड़ कर खेल एवं फिटनेस को शामिल किया गया है और प्रोफेशनल एवं खेल-कूद की गतिविधियों में छात्रों के शामिल होने को बढ़ावा देने के लिए ‘बिना बैग’ वाले दिन का इस्तेमाल किया गया है. साथ ही योग, स्वास्थ्य एवं कल्याण, स्पोर्ट्स क्लब, इत्यादि को शामिल किया गया है. बच्चों को पर्याप्त पोषण एवं खाद्य मुहैया कराने के लिए सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में मिड-डे मील योजना या पीएम पोषण के ज़रिये मिड-डे मील परोसा जाता है.
अलग-अलग क्षेत्रों में प्रमुख पहल के माध्यम से नीतिगत मामलों में स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों पर तेज़ी से ध्यान दिया जा रहा है. लेकिन लाइफस्टाइल बदलाव से जुड़ी गैर-संक्रामक बीमारियां और नये रोगाणुओं का फैलाव बढ़ रहा है. स्वास्थ्य समानता में कमी और घटिया स्वास्थ्य शिक्षा एवं जागरूकता के कारण खराब स्वास्थ्य नतीजे निकले हैं और सामाजिक कल्याण में कमी आई है. अलग-अलग स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को बेहतर बनाने के लिए कार्यक्रमों को नीति बनाने और उस पर अमल के चरण में और अधिक केंद्रित होने की आवश्यकता है. स्वास्थ्य प्रणाली को बनाये रखने, अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ाने, समुदाय की हिस्सेदारी एवं आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और स्थानीय राजनीतिक संरचना एवं ज़मीनी स्तर की पहल को मज़बूत बनाने में एक व्यापक दृष्टिकोण मदद करेगा.
शोभा सूरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
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Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...
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