-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
चूंकि भारत पारंपरिक नीतिगत दृष्टिकोण की मदद करने के लिए व्यवहार से जुड़े साधनों को एकीकृत करना जारी रखता है, ऐसे में वो एक समर्थ और प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली तैयार कर सकता है जो लोगों की चुनौतियों का समाधान करती है.
Image Source: Getty
21वीं शताब्दी उन धारणाओं पर तैयार आर्थिक सिद्धांतों से संचालित है जो जो हमेशा वास्तविकता नहीं दिखाते हैं. ऐसी ही एक धारणा है होमो इकोनॉमिक्स या आर्थिक व्यक्ति यानी एक पूरी तरह से तर्कसंगत व्यक्ति जो हमेशा उपयोगिता को अधिकतम करता है. वैसे तो रैशनल चॉइस थ्योरी (तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत) सभी व्यक्ति को होम इकोनॉमिक्स मानती है लेकिन लोग आंशिक रूप से ही तर्कसंगत होते हैं. बिहेवियरल इकोनॉमिक्स (व्यवहार से जुड़ा अर्थशास्त्र), जो कि बिहेवियरल साइंस का एक भाग है, कई विषयों का एक क्षेत्र है जो दूसरे विषयों के अलावा मनोविज्ञान, तंत्रिका विज्ञान (न्यूरोसाइंस), मानवविज्ञान, समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान से सीखता है और मुख्य रूप से निर्णय लेने और आर्थिक व्यवहार पर मनोवैज्ञानिक कारकों के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है.
एक जटिल, तेज़ गति की दुनिया में ह्यूरिस्टिक्स (अंगूठे के नियम) और मानसिक मॉडल (सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव से तैयार), जो पिछली कई शताब्दियों के दौरान विकसित हुए हैं, का उपयोग सहज निर्णय तेज़ी से लेने में सहायता करता है जिससे संज्ञानात्मक बोझ कम हो जाता है. हालांकि इसके साथ ही जानबूझकर सोचने की कमी अक्सर व्यवस्थित रूप से महत्वहीन निर्णयों की ओर ले जाती है. आर्थिक ढांचे में मनोवैज्ञानिक मॉडल को शामिल करके विकास से जुड़ी चुनौतियों का बेहतर ढंग से समाधान किया जा सकता है.
व्यवहार संबंधी कीमती सीख का इस्तेमाल
मनुष्य की सीमाओं को समझते हुए व्यवहार से जुड़े वैज्ञानिक “प्रेरित करने (नज)” का उपयोग करते हैं जिसे नोबेल पुरस्कार विजेता रिचर्ड थेलर पसंद की वास्तुकला (जिस संदर्भ में लोग निर्णय लेते हैं) में मामूली बदलाव के रूप में परिभाषित करते हैं और जो पसंद पर किसी तरह की रोकथाम या आर्थिक प्रोत्साहन में महत्वपूर्ण परिवर्तन के बिना उम्मीद के मुताबिक व्यवहार में बदलाव लाते हैं. शिकागो में तीव्र मोड़ (शार्प टर्न) वाली सड़कों पर सफेद धारियों को धीरे-धीरे एक-दूसरे के नज़दीक पेंट करने से तेज़ रफ्तार का भ्रम पैदा हुआ जिससे दुर्घटनाओं में 36 प्रतिशत की कमी आई. ब्राज़ील ने महिलाओं की शिक्षा को बढ़ाने के लिए मज़बूत महिला किरदारों वाले सोप ओपेरा (धारावाहिकों) का लाभ उठाया जिससे प्रजनन शक्ति में 11 प्रतिशत की कमी आई. जहां पारंपरिक हस्तक्षेप विफल हो जाते हैं, वहां मुश्किल चुनौतियों का समाधान करने के लिए ये उदाहरण छोटे, किफायती बदलावों की क्षमता को दिखाते हैं.
कई विषयों का एक क्षेत्र है जो दूसरे विषयों के अलावा मनोविज्ञान, तंत्रिका विज्ञान (न्यूरोसाइंस), मानवविज्ञान, समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान से सीखता है और मुख्य रूप से निर्णय लेने और आर्थिक व्यवहार पर मनोवैज्ञानिक कारकों के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है.
हम सभी प्रेरित करने से घिरे हुए हैं चाहे वो जानबूझकर हो या अनजाने में. प्रेरित करने का लाभ उठाकर समाज के फायदे के लिए नीतियों को बेहतर बनाया जा सकता है. दुनिया भर में सरकारों, व्यवसायों, गैर-सरकारी संगठनों, अनुसंधान केंद्रों और बहुपक्षीय संगठनों में 600 से ज़्यादा व्यवहार से जुड़ी अंतर्दृष्टि या “नज” इकाइयों की स्थापना की गई है जो नीतिगत विकास में उनके बढ़ते महत्व को दिखाती है.
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप
स्वास्थ्य देखभाल में सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दे अक्सर चिकित्सा के बजाय व्यवहार से जुड़े होते हैं जैसे कि प्रिवेंटिव केयर का अपर्याप्त होना और तंबाकू सेवन जैसे अधिक जोखिम वाले बर्ताव में शामिल होना. इसे “हाइपरबोलिक डिस्काउंटिंग” से समझाया गया है जो ह्यूरिस्टिक है और जिसके अनुसार जब पसंद और परिणाम समय से विभाजित होते हैं तो भविष्य की उपयोगिता में बदलाव की तुलना में वर्तमान उपयोगिता में बदलाव को ज़्यादा महत्व दिया जाता है. व्यवहार पर केंद्रित विशेष नीतियां मौजूदा चुनौतियों के लिए एक नए नुस्खे के रूप में काम कर सकती हैं जिससे स्वास्थ्य से जुड़े नतीजे बेहतर हो सकते हैं.
2019 में नीति आयोग ने व्यवहार संबंधी अंतर्दृष्टि इकाई (बिहेवियरल इनसाइट यूनिट या BIU) की स्थापना की जिसका लक्ष्य साक्ष्य आधारित समाधानों के उपयोग के माध्यम से प्रतिकूल व्यवहार का मुकाबला करना है, विशेष रूप से कम संसाधन वाले माहौल में. इसके अलावा, ज़मीनी स्तर पर अनुसंधान करने और व्यवहारिक रूप से तैयार हस्तक्षेपों की परीक्षा के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश में राज्य BIU की स्थापना की गई. वर्तमान में विकास से जुड़े साझेदारों की मदद से भारत में आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए व्यवहार संबंधी अंतर्दृष्टि लागू की जा रही है.
वैसे तो भारत ने आपूर्ति पक्ष (यानी स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा) में महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की है लेकिन मांग पक्ष (यानी उपभोक्ता) से व्यवहार संबंधी बाधाएं दिक्कत पैदा करती हैं. उदाहरण के लिए, सरकार की तरफ से मुफ्त आयरन-फोलिक एसिड टैबलेट के प्रावधान के बावजूद उनका इस्तेमाल करने वाले कम हैं. इसका कारण गलत धारणाओं और अविश्वास का मानसिक मॉडल है. मध्य प्रदेश में गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन टैबलेट खाने के उद्देश्य से प्रोत्साहित करने के लिए स्क्रैच करने वाले कैलेंडर का उपयोग किया गया जिसमें एक स्वस्थ बच्चा दिखता है. मां बनने वाली महिलाओं को एक किट भी प्रदान की गई जिसमें उन पर मानसिक बोझ कम करने के लिए आवश्यक चीज़ें होती थीं.
स्वास्थ्य देखभाल में सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दे अक्सर चिकित्सा के बजाय व्यवहार से जुड़े होते हैं जैसे कि प्रिवेंटिव केयर का अपर्याप्त होना और तंबाकू सेवन जैसे अधिक जोखिम वाले बर्ताव में शामिल होना.
महाराष्ट्र में बच्चों के हाथ मिलाते समय कीटाणुओं के फैलाव को दिखाने के लिए रोशनी का सहारा लिया गया था. इस तरह उनके लिए ये धारणा अधिक महत्वपूर्ण बन गई जिसका नतीजा हाथ साफ करने को लेकर बच्चों के रवैये में सकारात्मक बदलाव के रूप में निकला. कोविड-19 के दौरान गेमिंग एप्लीकेशन लूडो किंग का इस्तेमाल कोविड को लेकर उचित बर्ताव को बढ़ावा देने के रूप में किया गया जिसमें "मास्क मोड" और डिजिटल विज्ञापनों जैसे तत्वों का सहारा लिया गया था. इससे 27.5 प्रतिशत लोगों के लिए मास्क के प्रभावी होने से जुड़े भरोसे में बदलाव लाने में मदद मिली और कोविड को लेकर सुरक्षित व्यवहार में भागीदार बनने के इरादे में बढ़ोतरी हुई. इस तरह के हस्तक्षेप सभी उम्र समूहों और अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक संदर्भों में व्यवहार से जुडी अंतर्दृष्टि के व्यापक रूप से लागू होने को दिखाते हैं जो भारत के संदर्भ में इसके विशाल दायरे को प्रदर्शित करते हैं.
भारत के लिए आगे का रास्ता
भारत में BIU की स्थापना के साथ, जो कि दक्षिण एशिया में पहली BIU भी है, इस पर न केवल मुख्यधारा की भारतीय नीतियों के भीतर साक्ष्य आधारित अंतर्दृष्टि पेश करने बल्कि दुनिया भर में व्यवहार संबंधी विज्ञान के समुदाय में योगदान देने की दोहरी ज़िम्मेदारी आ गई है. कुछ इनोवेटिव उपायों को लागू करने के बावजूद खामियां बनी हुई हैं. इस बारे में कुछ सिफारिशों की चर्चा नीचे की गई है.
व्यवहार से जुड़े हस्तक्षेप वैसे तो किफायती हैं लेकिन ये स्वायत्तता और सहमति के बारे में नैतिक सवाल खड़े करते हैं. नीति बनाने वालों को व्यक्तिगत स्वायत्तता बनाए रखने और पसंद की सुरक्षा के लिए पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए. इसके अलावा, हस्तक्षेप सामाजिक मानदंडों और मूल्यों के अनुरूप होने चाहिए ताकि उनकी स्वीकार्यता को बढ़ाया जा सके और कमज़ोर समूहों को हाशिये पर धकेलने से परहेज़ किया जा सके. ख़राब ढंग से तैयार विकल्प की संरचना के अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं. इसकी वजह से घिसी-पिटी बातों को मज़बूत करने या असमानता बढ़ने का ख़तरा होता है जिससे समावेशिता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता महत्वपूर्ण बन जाती है. स्थिरता एक और चुनौती है. लोगों को प्रेरित करने का काम अक्सर समय के साथ अपना असर खो देता है क्योंकि उनका नयापन ख़त्म हो जाता है. दीर्घकालीन प्रभाव की समीक्षा और हस्तक्षेपों को सुधारने के लिए कठोर निगरानी और मूल्यांकन आवश्यक है. नैतिक रूप-रेखा और चल रहे अनुसंधान प्रभावशीलता और नैतिक ज़िम्मेदारी के बीच संतुलन बनाने में मदद कर सकते हैं.
BIU के द्वारा 2022 के एक मूल्यांकन के अनुसार भारत में केंद्र सरकार के द्वारा प्रायोजित योजनाओं में व्यवहार संबंधी घटकों का समावेशन सीमित बना हुआ है. इसके अलावा, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) की तरफ से किए गए एक अध्ययन, जिसमें 23 देशों की 60 नज यूनिट शामिल थी, में पाया गया कि खामियों का समाधान करने के लिए नियामक प्रक्रिया में व्यवहार संबंधी अंतर्दृष्टि अक्सर बाद में लागू की जाती है. आगे बढ़ें तो नीति लागू करने के शुरुआती चरणों के दौरान एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाकर और व्यवहार संबंधी अंतर्दृष्टि को शामिल करके नीति के असर को कमज़ोर करने वाले पूर्वाग्रहों का बेहतर ढंग से हल निकाला जा सकता है.
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में केंद्र द्वारा वित्त पोषित योजनाएं मुख्य रूप से सूचना, शिक्षा और संचार की रणनीतियों का सहारा लेती हैं जबकि व्यवहार संबंधी तौर-तरीकों के लिए सीमित फंड का आवंटन होता है. एक प्रयोग से पता चला है कि विधवा पेंशन योजना के लिए केवल सूचना प्रदान करने से अधिक आवेदन नहीं होता है और इसके साथ व्यवहार से जुड़े बदलाव के घटकों को शामिल करना सूचना को अभियान में बदलने के लिए महत्वपूर्ण है.
इसके अतिरिक्त कई हस्तक्षेप क्षेत्रीय स्तर तक सीमित हैं जो राज्य और राष्ट्रीय स्तर की नीतियों के लिए विशेष विस्तार की संभावना का संकेत देते हैं. साथ ही, भारत में सांस्कृतिक विविधता पर विचार करते हुए बिहार और यूपी के साथ दूसरे राज्यों में भी BIU की स्थापना की जानी चाहिए. इसके अलावा, सीमित निगरानी और मूल्यांकन का आयोजन किया जा रहा है. अनुभवजन्य रूप से प्रमाणित हस्तक्षेप खामियों की पहचान करने, कम एवं अधिक समय में प्रभाव का आकलन करने और उसके अनुरूप सफलतापूर्वक हस्तक्षेपों का पैमाना बढ़ाने में मदद करते हैं. इसके अलावा, लोगों को प्रेरित करना हमेशा आदर्श नहीं हो सकता है और उनके शुद्ध भलाई के असर का मूल्यांकन करने के लिए विशेषण ज़रूर किया जाना चाहिए.
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में केंद्र द्वारा वित्त पोषित योजनाएं मुख्य रूप से सूचना, शिक्षा और संचार की रणनीतियों का सहारा लेती हैं जबकि व्यवहार संबंधी तौर-तरीकों के लिए सीमित फंड का आवंटन होता है.
स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्र जहां तेज़ी से व्यवहार संबंधी अंतर्दृष्टि का उपयोग कर रहे हैं, वहीं सामाजिक समावेशन एवं श्रम बाज़ार जैसे क्षेत्रों में उनका इस्तेमाल सीमित है जबकि ये दोनों स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारक हैं. इसके अलावा, केवल प्रेरित करने से सभी मुद्दों का समाधान नहीं हो सकता है. “समुदाय आधारित सम्पूर्ण स्वच्छता” नाम की एक पहल, जिसका उद्देश्य भारत और इंडोनेशिया में खुले में शौच मुक्त समुदाय का निर्माण करना था, ने 2007 में “शर्म करो” के रूप में खुले में शौच वाली जगहों पर सार्वजनिक समूह चर्चा का आयोजन किया जिसकी वजह से इंडोनेशिया में खुले में शौच में 7 प्रतिशत की कमी आई जबकि भारत में 11 प्रतिशत. भारत में इसके साथ शौचालय निर्माण के लिए सब्सिडी को जोड़ा गया जिसके कारण इंडोनेशिया की तुलना में भारत में 20 प्रतिशत अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ. इससे पता चलता है कि पर्याप्त संसाधन और बुनियादी ढांचा भी आवश्यक हैं और व्यवहार संबंधी औजारों का उपयोग व्यापक नीतिगत उपायों के विकल्प के बदले सहायता के रूप में किया जाना चाहिए.
आपूर्ति पक्ष के दायरे का विस्तार चिकित्सक के व्यवहार तक भी है जिसका पता एक अध्ययन से चलता है जो मरीज़ों की सुरक्षा और देखभाल की गुणवत्ता में सुधार का संकेत देता है. भारत में एक महत्वपूर्ण मुद्दा ये है कि सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मचारी अक्सर ख़ुद को कम आंका गया महसूस करते हैं. रिसर्च से पता चलता है कि सामाजिक संकेतों के माध्यम से मान्यता मनोबल और प्रदर्शन को बढ़ा सकती है, सामाजिक संपर्क को मज़बूत कर सकती है और सामाजिक स्वीकृति की भावना उत्पन्न करती है.
2010 में इंस्टीट्यूट पब्लिक डी सोंडेज डी सेक्टियोर (IPSOS) के एक सर्वे में पता चला कि भारत समेत कम धनी देशों में लोगों के बीच प्रेरित करने की स्वीकार्यता अधिक है; हालांकि धूम्रपान जैसे कुछ बर्तावों पर पूरी तरह से रोक के लिए समर्थन भी अधिक है. लोगों के लिए स्वीकार्यता के स्तर और उसके बाद के अनुभव को पूरी तरह से समझ कर नीति बनाने वाले इस तरह की पहल की कीमत का बेहतर ढंग से आकलन कर सकते हैं.
संस्थानों के माध्यम से दुरुपयोग के द्वारा कल्याण पर प्रेरित करने के काम के प्रतिकूल असर को रोकने के लिए कानून और दिशा-निर्देश की रूप-रेखा लाभकारी हो सकती है जैसा कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने किया है जिसके तहत बार-बार लेन-देन के लिए प्रमाणीकरण की आवश्यकता होती है और ऑटोमेटिक भुगतान नवीनीकरण की डिफ़ॉल्ट सेटिंग को लक्षित किया जाता है. ये यथास्थिति पूर्वाग्रह पर आधारित है जिसके अनुसार लोग डिफॉल्ट विकल्प को चुनते हैं.
इसके अलावा दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों से सीखकर भारत इसी तरह की नीतियों को लागू करने पर विचार कर सकता है. उदाहरण के लिए, अंगदान के मामले में भारत मांग और दाताओं के बीच बड़े अंतर का सामना करता है. स्पेन और अमेरिका जैसे देशों, जो कि अंगदान में बढ़ोतरी के लिए व्यवहार संबंधी औज़ारों का सफलतापूर्वक उपयोग कर रहे हैं, से सीखकर भारत ऐसी चुनौतियों का मुकाबला कर सकता है. इसके अलावा, डोनेट लाइफ अमेरिका के सहयोग से एपल के द्वारा अंगदान को बढ़ावा, जिसके कारण अमेरिका में अंगदान के लिए रजिस्ट्रेशन में 60 लाख से ज़्यादा की बढ़ोतरी हुई, ने सार्वजनिक-निजी साझेदारी की क्षमता को दिखाया. वैश्विक तालमेल के ज़रिए जानकारी और सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को साझा करने को सुविधाजनक बनाया जा सकता है जो रिसर्च को और उन्नत बनाता है.
निष्कर्ष ये है कि समझ से जुड़े पूर्वाग्रह गहराई से व्याप्त हैं लेकिन संदर्भ-विशिष्ट व्यवहार केंद्रित नीतियों के माध्यम से उनका समाधान किया जा सकता है. आगे बढ़ें तो जैसे-जैसे भारत पारंपरिक नीतिगत दृष्टिकोणों की सहायता के लिए व्यवहार संबंधी औज़ारों को एकीकृत कर रहा है, वैसे-वैसे वो एक समर्थ, न्यायसंगत और प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का निर्माण कर सकता है जो न केवल होम इकोनॉमिक्स बल्कि लोगों के लिए चुनौतियों का समाधान करती है.
निमिषा चड्ढा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Nimisha Chadha is a Research Assistant with ORF’s Centre for New Economic Diplomacy. She was previously an Associate at PATH (2023) and has a MSc ...
Read More +