Author : Premesha Saha

Published on Nov 09, 2023 Updated 0 Hours ago

सदस्य देशों के अलग-अलग रुख़ के चलते इज़रायल-हमास मसले पर एक समूह के तौर पर बयान जारी करने में आसियान को वक़्त लग गया.

आसियान के लिए दोबारा मुश्किलें खड़ी कर रहा है हमास-इज़रायल संघर्ष

फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास और इज़रायल के बीच बढ़ते टकराव ने दक्षिण पूर्व एशिया के ज़्यादातर देशों को आधिकारिक बयान जारी करने के लिए प्रेरित किया है. इन देशों ने हिंसा का रास्ता अपनाए जाने की आलोचना की है. इस संघर्ष में बेगुनाह लोगों की जान गई है, जिनमें दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के 20 से भी ज़्यादा नागरिक शामिल हैं. वैसे तो आसियान के ज़्यादातर देशों ने आधिकारिक बयान जारी कर दिए, लेकिन एक समूह के तौर पर आसियान द्वारा मौजूदा संकट में अपना रुख़ प्रदर्शित करने में थोड़ी देर हुई.

आसियान के ज़्यादातर देशों ने आधिकारिक बयान जारी कर दिए, लेकिन एक समूह के तौर पर आसियान द्वारा मौजूदा संकट में अपना रुख़ प्रदर्शित करने में थोड़ी देर हुई.

आसियान के सदस्य देशों द्वारा व्यक्तिगत तौर पर जारी बयानों से इज़रायल-फिलिस्तीन मसले पर उनके अलग-अलग रुख़ सामने आए हैं. एक ओर, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम-बहुल देशों (जिनके इज़रायल के साथ कूटनीतिक रिश्ते नहीं हैं) ने बेहद तीखे बयान जारी किए हैं. वहीं दूसरी ओर वियतनाम, फिलीपींस, कंबोडिया, और थाईलैंड जैसे कई देशों ने ऐसे बयान जारी किए जो शांत और तटस्थ रुख़ वाले थे. इसके उलट, इज़रायल के साथ मज़बूत सैन्य रिश्ता रखने वाले इज़रायल ने बयान जारी कर हमास के हमले की निंदा की है.

दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बयान

इज़रायल में अपने 12 नागरिकों के जान गंवाने, 11 के अगवा होने और तक़रीबन 1000 प्रवासी कामगारों के वहां से वापस लौटने की कोशिश के बावजूद थाईलैंड ने इस मसले पर बहुत तटस्थ रुख़ अपनाया. क्षेत्रीय अख़बार द थाई नेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक विदेश मामलों के उप मंत्री जक्कापोंग संगमानी ने कहा है कि “इज़रायल के ख़िलाफ़ हमास की अगुवाई में हुए घातक हमले पर थाईलैंड का रुख़ तटस्थता भरा है, और थाई राजशाही ऐसे समाधान को प्रोत्साहित करती है जो फिलिस्तीन और इज़रायल के सह-अस्तित्व को बढ़ावा देती हो.”

7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इज़रायल पर किए गए हमले के फ़ौरन बाद बयान जारी करने वाले चंद देशों में सिंगापुर शामिल था. सिंगापुर के विदेश मामलों के मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि “सिंगापुर की सरकार गाज़ा से इज़रायल में किए गए रॉकेट और आतंकी हमलों की कड़ी निंदा करती है. इन हमलों के चलते अनेक बेगुनाह नागरिकों की जान गई है और कई लोग घायल हुए हैं. पीड़ितों के परिवारों के प्रति हम संवेदना जताते हैं. हम हिंसा को तत्काल ख़त्म करने की अपील करते हैं और सभी पक्षों से नागरिकों की संरक्षा और सुरक्षा के लिए हर संभव उपाय करने का आग्रह करते हैं.”

फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर की मौजूदा सरकार के तहत फिलीपींस का एक बार फिर अमेरिका (जो इज़रायल का सबसे ताक़तवर सहयोगी है) की ओर झुकाव बढ़ रहा है. ऐसे में फिलीपींस के बयान को पूरी तरह से तटस्थ रुख़ के तौर पर नहीं देखा जा सकता, भले ही उसमें हमास की निंदा ना की गई हो. फिलीपींस के विदेश मंत्रालय के बयान के मुताबिक “फिलीपींस हमलों (ख़ासतौर से नागरिक आबादी के ख़िलाफ़) की निंदा करता है. फिलीपींस बाहरी आक्रमणों की सूरत में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा मान्यता-प्राप्त आत्मरक्षा  के अधिकार को अच्छी तरह समझता है.”

वियतनाम भी तटस्थ रुख़ अपनाता नज़र आया. वियतनामी विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया, “वियतनाम, हमास और इज़रायल के बीच बढ़ती हिंसा को लेकर बेहद चिंतित है. हम संबंधित पक्षों से संयम बरतने, हालात को पेचीदा बनाने वाली कार्रवाई से बाज़ आने और शांतिपूर्ण तरीक़ों से असहमतियों को सुलझाने के लिए वार्ताएं जल्द बहाल करने का आह्वान करते हैं.” इसी तर्ज पर कंबोडियाई विदेश मंत्रालय के हवाले से कहा गया कि “कंबोडिया इस संघर्ष पर गहरा दुख प्रकट करते हुए सभी प्रकार की हिंसा और आतंकी कार्रवाइयों की निंदा करता है. कंबोडिया तमाम पक्षों से बेहद संयम बरतने और तनाव कम करने के साथ-साथ युद्ध-विराम के रास्ते खोजने का आह्वान करता है.”

मलेशिया और इंडोनेशिया ने बेहत सख़्त बयान जारी किए. दोनों ही देशों के नेताओं ने फिलिस्तीन के पक्ष में कड़ी टिप्पणियां की हैं. इंडोनेशियाई विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया, “इंडोनेशिया, फिलीस्तीन और इज़रायल के बीच संघर्ष तेज़ होने से काफ़ी चिंतित है.

इसके विपरीत मलेशिया और इंडोनेशिया ने बेहत सख़्त बयान जारी किए. दोनों ही देशों के नेताओं ने फिलिस्तीन के पक्ष में कड़ी टिप्पणियां की हैं. इंडोनेशियाई विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया, “इंडोनेशिया, फिलीस्तीन और इज़रायल के बीच संघर्ष तेज़ होने से काफ़ी चिंतित है. आगे और अधिक मानवीय क्षति रोकने के लिए इंडोनेशिया हिंसा को तत्काल ख़त्म करने का अनुरोध करता है.” बयान में आगे कहा गया, “इस संघर्ष की जड़, यानी, इज़रायल द्वारा फिलिस्तीनी भू-क्षेत्रों पर क़ब्ज़े का संयुक्त राष्ट्र द्वारा सहमत मापदंडों से समाधान किया जाना चाहिए.” यहां तक कि इंडोनेशियाई उलेमा काउंसिल के इंडोनेशियाई मौलवियों ने भी सख़्त टिप्पणियां करते हुए हमास के हमले को इज़रायल की ख़ुद की कार्रवाइयों का जवाबी हमला क़रार दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि “इज़रायल ने फिलिस्तीनी लोगों और राष्ट्र की संप्रभुता को व्यवस्थित रूप से तबाह किया है.”

मलेशियाई बयान और टिप्पणियां सख़्त रही हैं, जिसमें “रंगभेद का अभ्यास करने वाली और मानव अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय क़ानून का खुलेआम उल्लंघन करने वाली किसी भी हुकूमत (इज़रायल) से निपटने में पश्चिम के घोर पाखंड” को रेखांकित किया गया है. मलेशियाई बयान में कहा गया कि “इस मसले के मूल कारण को समझा जाना चाहिए. फिलिस्तीनियों को लंबे अर्से से अवैध क़ब्ज़े, नाकेबंदी, तकलीफ़ और अल-अक़्सा मस्जिद के अपमान के साथ-साथ क़ब्ज़े की फ़ितरत वाले इज़रायल के हाथों बेदख़ली की सियासत का सामना करना पड़ा है.” मलेशिया के उप प्रधानमंत्री अहमद ज़ाहिद हमीदी ने तो यहां तक कहा है कि “मिसाल के तौर पर यूक्रेन संकट में पश्चिम ने कीव को अपना समर्थन जताने में बिजली जैसी तेज़ी दिखाई. बदक़िस्मती से जब इसमें फिलिस्तीन की बात आती है तो उसे पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है.” मलेशियाई सांसद भी उन देशों के ख़िलाफ़ टीका-टिप्पणी करने से पीछे नहीं हटे हैं जो इज़रायल के साथ संबंध बढ़ा रहे हैं. उदाहरण के तौर पर PAS सांसद अहमद फधली शारी ने संसद में कहा, “इज़रायल के साथ संबंधों को सामान्य करने का कोई भी प्रयास, चाहे वो कोई भी राष्ट्र हो या भले ही अरब राज्यसत्ता हो, धोख़ेबाज़ी है.” ये टिप्पणी इज़रायल के साथ कूटनीतिक रिश्ते स्थापित करने की कोशिश करने वाले सऊदी अरब पर कटाक्ष है.

अलग-अलग रुख़ क्यों?

इस मसले पर वियतनाम, थाईलैंड, और कंबोडिया जैसे देशों के ‘बेहद तटस्थ’ रुख़ के पीछे एक बड़ा तथ्य है. दरअसल मध्य पूर्व से भौगोलिक दूरी को देखते हुए इन देशों का मानना है कि इस संघर्ष का आम तौर पर दक्षिण पूर्व एशिया और ख़ासतौर से उनकी अपनी अर्थव्यवस्थाओं पर कुछ ख़ास असर नहीं होगा. कुछ विद्वानों ने ये भी कहा है कि ऐसी शांत प्रतिक्रिया के पीछे इन सरकारों की इज़रायल के साथ व्यापार और सुरक्षा रिश्ते बरक़रार रखने की इच्छा हो सकती है. वियतनाम, इज़रायल का तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यात बाज़ार है और दोनों देशों ने इस साल की शुरुआत में मुक्त व्यापार समझौते को भी अंतिम रूप दिया है. जब फिलीपींस की बात आती है, तो अपने सुरक्षा साझेदार अमेरिका के साथ बढ़ते क़रीबी रिश्तों के चलते उसके रुख़ को ‘हल्के-फुल्के तटस्थ’ के रूप में देखा जा सकता है.

सिंगापुर के लिए इज़रायल 1965 से एक भरोसेमंद रक्षा साझेदार रहा है, जब ये द्वीप राज्य मलय संघ से अलग हुआ था. इस कालखंड में इज़रायली सैन्य सलाहकारों ने सिंगापुर सशस्त्र बलों की सहायता की थी और तब से दोनों देशों ने ठोस साझेदारी बना ली है. दोनों ही देशों के रक्षा संबंध आगे बढ़ रहे हैं. सतह से सतह पर मार करने वाले ब्लू स्पीयर मिसाइलों के संयुक्त विकास और उत्पादन से ये बात स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है. हालांकि इसी समय सिंगापुर के नेताओं को चिंता है कि द्वीप राज्य में मुस्लिम जनसंख्या (भले ही वो अल्पसंख्यक हों) को देखते हुए सिंगापुर का रुख़ धार्मिक दरार पैदा कर सकता है, जिससे आगे चलकर द्वीप राष्ट्र की शांति और अमन-चैन प्रभावित हो सकता है. यही वजह है कि सिंगापुर की सरकार ने मौजूदा इज़रायल-हमास संघर्ष पर सार्वजनिक जमावड़ों और बैठकों पर प्रतिबंध लगा दिया हैं. सिंगापुर की सरकार ने फिलिस्तीनी अधिकारियों को पत्र भेज कर बेगुनाह लोगों की जान जाने पर संवेदना जताई है और मानवीय मदद में 3 लाख अमेरिकी डॉलर का दान देने का वादा किया है.

दोनों ही देशों के रक्षा संबंध आगे बढ़ रहे हैं. सतह से सतह पर मार करने वाले ब्लू स्पीयर मिसाइलों के संयुक्त विकास और उत्पादन से ये बात स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है.

मलेशिया और इंडोनेशिया में, मजहब घरेलू राजनीति में बड़ी भूमिका निभाता है; और इलाक़े में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश होने के चलते यहां फिलिस्तीनी मसले पर हमदर्दी रखने वालों की बड़ी तादाद मौजूद है. ये देश इज़रायल को आधिकारिक तौर पर मान्यता भी नहीं देते हैं. इज़रायल और अमेरिका के ख़िलाफ़ दोनों देशों की सड़कों पर अनेक सार्वजनिक प्रदर्शन भी हुए हैं. दोनों सरकारों, ख़ासतौर से इंडोनेशिया के लिए इन जन भावनाओं की अनदेखी करना मुश्किल है. ग़ौरतलब है कि फरवरी 2024 में इंडोनेशिया में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने वाले हैं. मलेशिया और इंडोनेशिया इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) में फिलिस्तीनी मसले के कट्टर समर्थक रहे हैं. इंडोनेशियाई विदेश मंत्री ने कहा है कि “OIC को जल्द से जल्द युद्ध विराम  के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए.” मलेशिया ने फिलिस्तीन की मदद के लिए समर्पित 21 लाख अमेरिकी डॉलर के सरकारी वचन का प्रस्ताव रखा है. इंडोनेशिया ने फिलिस्तीन के लिए क्षमता-निर्माण के अनेक कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने के लिए तमाम समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर किए हैं और गाज़ा को मदद भी मुहैया कराई है.

आसियान की स्थिति

इस मसले पर अपने सदस्य राष्ट्रों के अलग-अलग रुख़ को देखते हुए एक समूह के तौर पर आसियान को बयान जारी करने में कुछ समय लगा. आसियान देशों के विदेश मंत्रियों ने एक साझा बयान में साफ़ किया कि “टकराव के निपटारे का इकलौता व्यवहार्य रास्ता दो-राज्य समाधान के क्रियान्वयन के ज़रिए निकलता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इज़रायल-फिलिस्तीन शांति प्रक्रिया को समर्थन देने का आह्वान किया गया.” दक्षिण पूर्व एशियाई प्रवासियों के हताहतों की संख्या बढ़ने के चलते मंत्रियों ने मानवतावादी गलियारे का निर्माण का भी अनुरोध किया.

दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का भिन्न रुख़ इस तथ्य को दर्शाता है कि इतिहास, मजहब और घरेलू राजनीतिक वातावरण क्षेत्र के विदेश नीति दृष्टिकोण में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. आसियान की ओर से देर से जारी किया गया बयान अपने सदस्यों के बीच मौजूद तमाम मतभेदों के बीच मध्यम मार्ग ढूंढने के निरंतर जारी प्रयासों को भी दर्शाता है. वैश्विक मंच पर की उप-क्षेत्रीय समूह की प्रासंगिकता बरक़रार रखने की उम्मीद में इस क़वायद को अंजाम दिया गया है.

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