दुनिया आपस में जुड़ी पेजीदा समस्याओं का सामना कर रही है. इसमें जलवायु परिवर्तन और घटते संसाधनों से लेकर आर्थिक असमानताएं और भू-राजनीतिक तनाव भी शामिल हैं. ये चुनौतियां, सबके लिए पर्याप्त, सुरक्षित और पोषक खाना उपलब्ध होने की राह में पहाड़ जैसी बाधाएं खड़ी करती हैं. लगभग 92.4 करोड़ लोग (दुनिया की आबादी का 11.7 प्रतिशत) भयंकर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं- महामारी के बाद से ये संख्या 20.7 करोड़ बढ़ गयी है. कई दशकों की प्रगति के बावजूद, दुनिया अभी भी, कम पोषण, मोटापे/ औसत से अधिक वज़न और खाने और सूक्ष्म पोषक तत्वों से जुड़ी पोषण संबंधी कमियों से जूझ रही है. भुखमरी और खाद्य असुरक्षा के ख़िलाफ़ लड़ाई जीतने के लिए लगातार और लक्ष्य आधारित प्रयास करने होंगे, ख़ास तौर से एशिया और अफ्रीका के सहारा क्षेत्र में, जहां भयंकर भुखमरी के शिकार दुनिया के सबसे अधिक लोग रहते हैं. स्वास्थ्य और ग़रीबी घटाने के लिए कम पोषण में कमी लाने के प्रयासों के दूरगामी नतीजे देखने को मिलते हैं.
भुखमरी और खाद्य असुरक्षा के ख़िलाफ़ लड़ाई जीतने के लिए लगातार और लक्ष्य आधारित प्रयास करने होंगे, ख़ास तौर से एशिया और अफ्रीका के सहारा क्षेत्र में, जहां भयंकर भुखमरी के शिकार दुनिया के सबसे अधिक लोग रहते हैं.
टिकाऊ विकास के लक्ष्य (SDG) 2.2 पर ध्यान केंद्रित करते हुए पोषण के छह वैश्विक लक्ष्य तय किए गए थे: ‘सभी तरह के कुपोषण को समाप्त करना’. वर्ल्ड हेल्थ एजेंडा (WHA) के लक्ष्यों को प्राप्त करने की समय सीमा 2030 तक बढ़ा दी गई है, ताकि उसका SDG 2030 के एजेंडे से तालमेल किया जा सके. वयस्कों में मोटापे की बढ़ती समस्या और ग़ैर संक्रामक बीमारियों (NCDs) को देखते हुए, वयस्कों में मोटापे की बीमारी को बढ़ने से रोकने और ग़ैर संक्रामक बीमारियों (NCD) के जोखिम को कम करने के लिए इन्हें 2025 तक 25 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य WHA में रखा गया था.
विश्व पोषण की दिशा में संघर्ष
दुनिया भर में 73.5 करोड़ लोग या फिर कुल आबादी का 9.2 प्रतिशत हिस्सा कम पोषण का शिकार हैं. एशिया (8.5 फ़ीसद), लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों (6.5 प्रतिशत) और ओशानिया (7.0 फ़ीसद) की तुलना में अफ्रीका में भुखमरी की दर सबसे ज़्यादा (लगभग 20 प्रतिशत) है. 2030 तक क़रीब 60 करोड़ लोगों के भयंकर कुपोषण के शिकार रहने की आशंका है, जिससे भुखमरी ख़त्म करने के स्थायी विकास का लक्ष्य प्राप्त करने के रास्ते में आने वाली भयंकर मुश्किल का पता चलता है. यूक्रेन में युद्ध की वजह से 2.3 करोड़ और लोग भी प्रभावित हुए हैं. इसी तरह, लगभग 11.9 करोड़ लोग महामारी और दूसरे संघर्षों की वजह से प्रभावित हुए थे. पूरी दुनिया में औसत या फिर भयंकर खाद्य असुरक्षा में 2019 से 2020 के बीच काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई थी और वो लगातार दूसरे साल भी उसी दर पर रही है. लेकिन, वो महामारी से पूर्व के 25.3 प्रतिशत के स्तर से अभी भी काफ़ी ऊपर है.
वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2023 के मुताबिक़, दुनिया भर में भुखमरी का स्तर औसत है. हालांकि, GHI 27 के साथ अफ्रीका के सहारा क्षेत्र और दक्षिण एशिया में भुखमरी का स्तर बेहद गंभीर है.[1] GHI के मामले में यूरोप और मध्य एशिया सबसे कम यानी 6.1 के स्तर पर हैं, जिसे बहुत कम माना जाता है.
संयुक्त कुपोषण पूर्वानुमान 2023 के मुताबिक़, कम शारीरिक विकास की समस्या ने पांच साल से कम उम्र के क़रीब 14.81 करोड़ बच्चों (22.3 प्रतिशत) पर बुरा असर डाला है. 2022 में 4.5 करोड़ (6.8 प्रतिशत) बच्चों की तादाद के साथ, पूर्ण शारीरिक विकास न होने की समस्या भी जस की तस बनी हुई है. 2020 के बाद से अधिक वज़न/ मोटापे की समस्या कम हुई है. 2022 में 3.7 करोड़ (5.6 प्रतिशत) बच्चे मोटापे के शिकार थे (Figure 1)
Figure 1: पांच साल से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग, वेस्टिंग और अधिक वज़न की बीमारी का स्तर
स्टंटिंग (शारीरिक विकास रुक जाने) की दर निश्चित रूप से पिछले 20 वर्षों के दौरान लगातार कम होती रही है. लेकिन, कुछ क्षेत्रों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों के बीच स्टंटिंग की बीमारी का स्तर अभी भी ऊंचा बना हुआ है. इसमें एशिया (76.6 प्रतिशत) और अफ्रीका (63.1 फ़ीसद) में ये दर सबसे अधिक है. अफ्रीका के सहारा क्षेत्र के देशों में स्टंटिंग की दर में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. इसकी वजह ग़रीबी और असमानता, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और बढ़ती खाद्य असुरक्षा को माना जा रहा है. स्टंटिंग से सबसे बुरी तरह प्रभावित इलाक़ा दक्षिण एशिया है, जहां 30.7 प्रतिशत बच्चे शारीरिक विकास रुक जाने के शिकार हैं. ये 22 प्रतिशत के वैश्विक औसत से कहीं ज़्यादा है और इसका मतलब है कि दक्षिण एशिया के हर 10 में से तीन बच्चों का शारीरिक विकास रुक गया है. मोटापे या अधिक वज़न की समस्या का औसत चलन एशिया के उप-क्षेत्रों में सबसे कम यानी 2.5 है. दक्षिण एशिया के उप-क्षेत्र में शारीरिक विकास न होने की समस्या 14.1 प्रतिशत है, जो 6.7 प्रतिशत के वैश्विक औसत से कहीं ज़्यादा है. कुल मिलाकर, दक्षिण एशिया में बच्चों का शारीरिक विकास न होने की ऊंची दर के पीछे खान-पान की विविधता, मां की शिक्षा और परिवार की ग़रीबी का स्तर प्रमुख कारण हैं. इसके अलावा, दक्षिण एशिया और अफ्रीका के सहारा क्षेत्र में स्टंटिंग के पीछे अपर्याप्त कम उम्र का बच्चा, मां का कुपोषण और साफ़-सफ़ाई की ख़राब स्थिति जैसे कारण हैं.
दक्षिण एशिया से मिलने वाले सबूत दिखाते हैं कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों का विकास न होने के पीछे मां का कम शारीरिक भार सूचकांक, मां की कम लंबाई, संपत्ति के मामले में आबादी के बड़े हिस्से का कमज़ोर तबक़े का होना और मां की शिक्षा में कमी जैसे कारण प्रमुख हैं.
दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के 4.5 करोड़ (6.8 फ़ीसद) बच्चे वेस्टेड हैं, यानी जिनका शारीरिक विकास नहीं हो पाया. ये स्थायी विकास के लक्ष्य के 3 प्रतिशत और वैश्विक पोषण के लक्ष्य 5 प्रतिशत से कहीं अधिक है. पांच साल से कम उम्र के बच्चों की वेस्टिंग के मामले में सबसे ज़्यादा 56 प्रतिशत तादाद दक्षिण एशिया (2.51 करोड़) में पायी जाती है. एशिया में वेस्टिंग के शिकार 3.16 करोड़ बच्चों में से लगभग 80 प्रतिशत सिर्फ़ दक्षिण एशिया में रहते हैं. दक्षिण एशिया से मिलने वाले सबूत दिखाते हैं कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों का विकास न होने के पीछे मां का कम शारीरिक भार सूचकांक, मां की कम लंबाई, संपत्ति के मामले में आबादी के बड़े हिस्से का कमज़ोर तबक़े का होना और मां की शिक्षा में कमी जैसे कारण प्रमुख हैं. दि लांसेट ने अनुमान लगाया था कि कोविड-19 महामारी के प्रभाव से बच्चों की वेस्टिंग की समस्या में 14.3 प्रतिशत (67 लाख) की बढ़ोत्तरी हो गई, और इसमें से 58 प्रतिशत बच्चे दक्षिण एशिया में और मोटा-मोटी 22 फ़ीसद बच्चे अफ्रीका के सहारा क्षेत्र के रहने वाले थे.
वयस्कों और पांच साल से कम उम्र के बच्चों, दोनों में ही मोटापे की समस्या बढ़ रही है. पांच साल से कम उम्र के बच्चों और वयस्कों, दोनों तबक़ों में औसत से अधिक वज़न की समस्या भी बढ़ रही है. दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के क़रीब 3.7 करोड़ बच्चे अधिक वज़न वाले हैं. इनमें से लगभग आधे (1.77 करोड़) एशिया में रहते हैं; दूसरा बड़ा अनुपात अफ्रीका में (1.02 करोड़) रहता है. चलन बताते हैं कि 2012 से 2022 के दशक के दौरान ओशानिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में अधिक वज़न वाले बच्चों की संख्या काफ़ी बढ़ गई. ओशानिया में ये संख्या 93 लाख से बढ़कर 1.39 करोड़ पहुंच गई. वहीं, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में अधिक वज़न वाले बच्चों की संख्या इन दस सालों में 1.24 करोड़ से बढ़कर 1.93 करोड़ पहुंच गई. बच्चों में मोटापे की समस्या को कम करने के मामले में ज़्यादातर क्षेत्र अपने लक्ष्य हासिल करने से बहुत पीछे चल रहे हैं.
वैश्विक पोषण के लक्ष्यों में अकेले मां के दूध पिलाने के मामले में ही दुनिया सही राह पर चलती दिख रही है और 2025 तक बच्चों को सिर्फ़ मां का दूध पिलाने के मामले में कम से कम 50 प्रतिशत दर का लक्ष्य हासिल किए जाने की उम्मीद है (Figure 2). 2021 में दुनिया भर में 47.7 प्रतिशत बच्चों को केवल मां का स्तनपान कराया गया था. इस मामले में दक्षिण एशिया 60.2 प्रतिशत, पूर्वी अफ्रीका 59.1 फ़ीसद और दक्षिणी पूर्वी एशिया 48.3 प्रतिशत की दर के साथ वैश्विक औसत से कहीं ऊपर थे. जन्म के समय बच्चे के कम वज़न और सिर्फ़ स्तनपान के मामले में उत्तरी अमेरिका, ओशानिया और पश्चिमी एशिया के क्षेत्र इस मामले में पटरी से उतरे हुए नज़र आते हैं, जिन्होंने या तो कोई प्रगति नहीं की है या फिर उनकी स्थिति और ख़राब हो रही है. एशिया, लैटिन अमेरिका और ओशानिया के कुछ हिस्सों में बच्चों के बीच मोटापे की समस्या की स्थिति ख़राब होती दिख रही है.
Figure 2: वैश्कि पोषण के लक्ष्यों के मामले में प्रगति
दुनिया भर में पैदा होने वाले लगभग 15 प्रतिशत बच्चों का वज़न जन्म के समय कम (2.5 किलो से कम) होता है. जन्म के समय बच्चों का भार कम होने की समस्या को दूर करने में प्रगति, हाल के दशकों में थम सी गई है. दक्षिण एशिया में 24.4 प्रतिशत, अफ्रीका के सहारा क्षेत्र में 13.9 फ़ीसद और लैटिन अमेरिका में 9.6 प्रतिशत बच्चों का वज़न जन्म के समय कम होता है, यानी इन क्षेत्रों में ये समस्या सबसे अधिक है. 2030 तक जन्म के समय बच्चों के कम वज़न की समस्या को 30 प्रतिथृशत तक कम करने में प्रगति धीमी रही है. कई गर्भधारण, संक्रमण और ग़ैर संक्रामक बीमारियों की वजह से बच्चों का जन्म के वक़्त वज़न कम हो जाता है, और इसके नकारात्मक नतीजे, नवजात बच्चों की मौत, बच्चों की बुद्धि का कम विकास और भविष्य में दिल की बीमारियोां होने के रूप में सामने आते हैं. गर्भवती महिलाओं की जचगी से पहले देख-भाल और प्रेगनेंसी के दौरान सेवाएं, पोषण संबंधी सलाह मशविरा और समय से पूर्व पैदा होने वाले बच्चों की देख-रेख जैसे उपायों से, कम वज़न वाले बच्चों की पैदाइश रोकने और उनका इलाज करने में काफ़ी काम आती है.
बढ़ती जा रही है मोटापे की समस्या
दुनिया के सभी क्षेत्रों में वयस्कों के मोटापे की समस्या लगातार बढ़ रही है और पिछले चार दशकों के दौरान इसमें तीन गुने की बढ़ोत्तरी हो चुकी है. दुनिया भर में एक अरब से ज़्यादा लोग मोटापे के शिकार हैं. इनमें 65 करोड़ वयस्क, 34 करोड़ किशोर, और 3.9 करोड़ बच्चे हैं. ये संख्या लगातार बढ़ रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि 2025 तक दुनिया भर में 16.7 करोड़ लोग- वयस्क और बच्चे- या तो मोटापे के शिकार होंगे या फिर उनका वज़न ज़्यादा होगा. दुनिया भर में मौत की प्रमुख वज़हों में से मोटापा और अधिक वज़न होना, पांचवें स्थान पर है. इससे ग़ैर संक्रामक बीमारियों जैसे कि दिल की बीमारियां, डायबिटीज़ और कुछ तरह के कैंसर होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है.
कोविड-19 महामारी और रूस- यूक्रेन के युद्ध ने मिलकर दूसरे विश्व युद्ध के बाद खाने-पीने की सबसे बड़ी तबाही मचाई है और लगभग 1.7 अरब लोग ग़रीबी और भुखमरी में जी रहे हैं. ये आंकड़ा अब तक का उच्चतम है. आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा पड़ने, खाना बर्बाद हुआ क्योंकि मांग कम हो गई थी और जिन किसानों के पास अपनी उपज के भंडारण की समुचित व्यवस्था नहीं थी, उनकी फ़सल बिकी ही नहीं. जिन देशों में खाद्य असुरक्षा अधिक आम है, उन पर आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा का सबसे बुरा असर देखा गया. महामारी से निपटने के लिए आवाजाही में पाबंदियों और श्रमिक केंद्रों को बंद किए जाने का, उन खाद्य पदार्थों के उत्पादन के चक्र पर ज़्यादा असर पड़ा, जो अप्रवासी मज़दूरों से चलते हैं. युद्ध ने रूस और यूक्रेन में खेती के उत्पादन में खलल डाल दिया है, जिससे उपज कम हो गई है और ग्रामीण समुदायों को विस्थापित होना पड़ा है. रूस-यूक्रेन युद्ध के भू-राजनीतिक प्रभाव पूरी दुनिया के बाज़ारों में देखने को मिल रहे हैं. इसकी वजह से खाने पीने की प्रमुख वस्तुओं की उपलब्धता और उनकी क़ीमतों पर गहरा असर पड़ा है.
एक लचीली खाद्य व्यवस्था निर्मित करने के लिए, ज़रूरी है कि लोगों की अभी की ज़रूरतें पूरी करने के साथ साथ भविष्य में पैदा होने वाले संकटों से निपटने के लिए भी सामरिक क़दमों को मज़बूती दी जाए.
Figure 3 से पता चलता है कि रूस और यूक्रेन, मक्के, गेहूं और जौ के बड़े उत्पादक देश हैं, और 2016 से 2020 के दौरान इन दोनों मिलकर दुनिया का 27 फ़ीसद मक्का, 23 प्रतिशत गेहूं और 15 प्रतिशत जौ का निर्यात किया था. यहां तक कि विश्व खाद्य कार्यक्रम, अपने 50 प्रतिशत अनाज को रूस और यूक्रेन से ही ख़रीदा है, उसको भी वैश्विक खाद्य संकट से निपटने के अपने हालिया प्रयासों में लागत में ज़बरदस्त उछाल की चुनौती झेलनी पड़ रही है. अर्थव्यस्था में गिरावट ने पहले से चली आ रही असमानताओं को बढ़ा दिया है और खाने की उपलब्धता पर भी असर डाला है.
Figure 3: 2016 से 2020 के बीच वैश्विक निर्यात में रूस और यूक्रेन की हिस्सेदारी
निष्कर्ष
ग़रीबी के पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले दुष्चक्र को ख़त्म करने और सभी तरह के कुपोषण के उन्मूलन के लिए नीति निर्माताओं को अपने प्रयास और तेज़ करने होंगे. गहरे प्रभाव वाले पोषण विशेष के इलाज को सभी निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में लागू करने से अंदाज़ा लगाया गया है कि स्टंटिंग को 40 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है और इससे 417 अरब डॉलर के आर्थिक लाभ प्राप्त होने की संभावना है. स्टंटिंग को कम करने में निवेश किए गए हर एक डॉलर के बदले में 11 डॉलर का आर्थिक लाभ होगा. कृषि और स्वास्थ्य के क्षेत्रों से इतर, अन्य संगठनों और सेक्टरों को भी इन कोशिशों में शामिल करना होगा. कुपोषण से निपटने के लिए ‘फूड सिस्टम’ वाला नज़रिया अपनाना होगा, जिसके तहत ऐसी व्यापक नीतियां लागू करनी होोंगी, जो आपूर्ति और मांग दोनों का ख़याल रखें. एक लचीली खाद्य व्यवस्था निर्मित करने के लिए, ज़रूरी है कि लोगों की अभी की ज़रूरतें पूरी करने के साथ साथ भविष्य में पैदा होने वाले संकटों से निपटने के लिए भी सामरिक क़दमों को मज़बूती दी जाए.
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