गुजरात आर्थिक मोर्चे पर आगे लेकिन स्वास्थ्य में फिसड्डी
Published on Dec 11, 2017 Updated 0 Hours ago
गुजरात में स्वास्थ्य एवं पोषण परिणामों पर उच्च आर्थिक विकास का प्रभाव मिश्रित रहा है।
गुजरात भारत के एक बड़े औद्योगीकृत राज्यों में रहा है जहां शहरीकरण और आर्थिक वृद्धि की दरें लगातार उच्च बनी रही हैं। नवीनतम आंकडों (2015-16) से प्रदर्शित होता है कि जम्मू एवं कश्मीर के बाद गुजरात भारत के बड़े राज्यों के बीच सबसे तेज गति से बढ़ने वाला राज्य है। पहले कृषि गुजरात में एक बड़ी बाधा मानी जाती थी। आय में इसका योगदान केवल लगभग 15 फीसदी था, 90 के दशक में इसने नकारात्मक वृद्धि प्रदर्शित की, और अभी भी इसने 50 फीसदी से अधिक मजदूरों को रोजगार दे रखा है। बहरहाल, एक बड़े बदलाव के रूप में, 2002-03 से 2013-14 के दौरान गुजरात की कृषि जीडीपी 8 प्रतिशत सालाना की अप्रत्याशित दर से बढ़ी, जो 3.3 प्रतिशत की अखिल भारतीय संख्या के दोगुने से भी अधिक थी और हरित क्रांति के दौरान पंजाब से भी अधिक थी।
देश की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले राज्यों के बीच, गुजरात में प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है। गुजरात देश में सबसे कम बेरोजगारी के स्तर वाला राज्य है-जहां प्रति हजार केवल 9 बेरोजगार हैं जबकि राष्ट्रीय औसत प्रति हजार 50 बेरोजगार का है। गुजरात में निर्धनता ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में राष्ट्रीय औसत से कम है। आर्थिक मोर्चे पर इस शानदार प्रदर्शन ने तब सत्तासीन रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की ताकत में इजाफा किया और एक प्रकार से राष्ट्रीय राजनीति में उनके कैरियर के अभ्युदय में अहम भूमिका निभाई।
आर्थिक विकास का सामाजिक विकास में रूपांतरण
बहरहाल, गुजरात में उच्च आर्थिक विकास का प्रभाव स्वास्थ्य एवं पोषण परिणामों पर मिश्रित रहा है। एक क्षेत्र, जिसमें गुजरात ने औसतन अच्छा प्रदर्शन किया है, वह है सुरक्षित प्रसव जैसाकि निम्नलिखित ग्राफ से प्रदर्शित होता है [i]गुजरात में संस्थागत/सुरक्षित प्रसवों के प्रदर्शन में उछाल का श्रेय अक्सर चिरंजीवी योजना को दिया जाता है जिसे प्रजनन दर घटाने, नवजात मृत्यृ दर एवं मातृत्व मृत्यृ दर अनुपात में कमी लाने के के जरिये जनसंख्या वृद्धि को स्थिर बनाने के उद्देश्य से 2005 में आरंभ किया गया था। बहरहाल, अभी हाल के कुछ अध्ययनों में इस दावे का खंडन किया गया है एवं नोट किया गया है कि हो सकता है कि पहले के अध्ययनों में महिलाओं के स्व-चयन को संस्थागत प्रसव के रूप में संबोधित न किया गया हो, उच्च आर्थिक वृद्धि द्वारा चिन्हित अवधि के दौरान संस्थागत प्रसवों में वृद्धि की अस्पतालों द्वारा गलत रिपोर्टिंग की गई हो।
एक क्षेत्र जहां, गुजरात ने औसत से बेहतर प्रदर्शन किया है, वह है सुरक्षित प्रसवों के अनुपात में सुधार।
जहां, किसी प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवर कर्मी की सहायता से-घर एवं अस्पताल दोनों ही जगह-प्रसवों के अनुपात में औसतन उल्लेखनीय बेहतरी दर्ज की गई है, अंतःजिला असमानताएं अभी भी एक बड़ा मुद्वा है जिनका समाधान होना बाकी है। जैसाकि निम्नलिखित मानचित्र प्रदर्शित करता है-डांगों, जहां सुरक्षित प्रसव केवल 53.7 प्रतिशत है, की तुलना में सूरत, नवसारी एवं पोरबंदर जैसे जिलों में बहुत अधिक परिवर्तन है, जहां 95 प्रतिशत से अधिक सुरक्षित प्रसव रिपोर्ट की गई है।
अन्य स्वास्थ्य सफलताएं
पिछले एक दशक के दौरान, गुजरात 20-24 वर्ष की उम्र की महिलाओं, जो शादी की कानूनी उम्र से पहले से विवाहित हो गई थीं, के प्रतिशत को 39 फीसदी से घटा कर 25 फीसदी तक लाने में सफल रहा है। इस अवधि के दौरान, 15-19 वर्ष की उम्र की महिलाओं, जो पहले ही मां बन चुकी थी, या गर्भवती थीं, के प्रतिशत में भी उल्लेखनीय कमी आई और यह 2005-06 के 12.7 फीसदी से कम होकर 2015-16 के दौरान 6.5 फीसदी तक आ गई। पिछले दशक के दौरान नवजात मृत्यु दर एवं पांच वर्ष की उम्र से कम की मृत्यु दर- दोनों में ही कमी आई है- नवजात मृत्यु दर 50 से घट कर 34 पर आ गई जबकि पांच वर्ष की उम्र से कम आयुु के बच्चों की मृत्यु दर 61 से घट कर 43 पर आ गई।
बाहर से आने वाले रोगियों यानी आउटपेशेंट (84.9 फीसदी) और इनपेशेंट (73.8 फीसदी) दोनों के लिए निजी क्षेत्र पर काफी निर्भरता के बावजूद, गुजरात में स्वास्थ्य पर अपनी जेब से खर्च करने करने का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम अर्थात 63.7 प्रतिशत है। औसतन भारत – आउटपेशेंट के लिए 74.5 फीसदी एवं आउटपेशेंट मामलों के लिए 56.6 फीसदी – यानी निजी क्षेत्र पर कम निर्भर करता है, लेकिन अपनी जेब से खर्च करने का प्रतिशत अधिक यानी 74.4 फीसदी है। जैसाकि ब्रूकिंग्स इंडिया द्वारा किए गए विश्लेषण में प्रदर्शित किया गया है, केरल, प.बंगाल, ओडिशा एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्य अपनी जेब से 80 प्रतिशत से अधिक खर्च करते हैं।
विनाशकारी व्यय (आम उपभोग व्यय के 25 प्रतिशत से अधिक का स्वास्थ्य व्यय) की रिपोर्ट करने वाले घरों का प्रतिशत गुजरात में केवल 6.8 फीसदी है, जबकि अखिल भारतीय प्रतिशत लगभग दोगुना है।
निम्न टीकाकरण क्षेत्र
बहरहाल, नवीनतम आंकडों से प्रदर्शित होता है कि टीकाकरण जैसे कुछ कवरेज संकेतक-जोकि गुजरात के लिए लंबे समय से चिंता के क्षेत्र रहे हैं-ने गुजरात में एक बेहद चिंताजनक और बदतर हो रही प्रवृत्ति प्रदर्शित की है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, गुजरात उन कुछ राज्यों में एक था जहां एनएफएचएस -2 (एनएफएचएस -2 के 53 प्रतिशत से एनएफएचएस -3 के 45 फीसदी तक ) के सात वर्ष की अवधि के दौरान पूर्ण टीकाकरण कवरेज में कमी आई। इसके अतिरिक्त, कुछ सुधार के बावजूद, वर्तमान कवरेज स्तर अब 90 के दशक (50 प्रतिशत) के एनएफएचएस -1 के समय के स्तर के ज्यादा करीब है।
पूर्ण टीकाकरण क्षेत्र एनएफएचएस -4 में सुधर कर 50.4 फीसदी तक आ गया है। बहरहाल, गुजरात अभी भी भारतीय राज्यों में सबसे निचले स्तर के करीब है। 2005-06 के दौरान, देश के सभी राज्यों के बीच गुजरात का 12-23 महीनों के आयु वर्ग वाले बच्चों के लिए पूर्ण टीकाकरण क्षेत्र सबसे निचले स्तर पर 10वें स्थान पर था, लेकिन 2015-16 के दौरान देश के सभी 36 राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों के बीच गुजरात सबसे निचले स्तर के 5वें स्थान पर है जैसाकि निम्नलिखित ग्राफ से प्रदर्शित होता है। एक दशक पहले भारत का समग्र प्रदर्शन गुजरात से मामूली खराब था, लेकिन अब गुजरात भारतीय औसत की तुलना में काफी नीचे आ गया है।
पूर्ण टीकाकरण कवरेज एनएफएचएस -4 में सुधर कर 50.4 फीसदी तक आ गया है। बहरहाल, गुजरात अभी भी भारतीय राज्यों में सबसे निचले स्तर के करीब है।
कथित रूप से, गुजरात एवं उत्तर प्रदेश ही ऐसे दो राज्य हैं जहां पिछले दशक के दौरान टीबी की घटनाओं में वास्तव में बढ़ोतरी हुई है और अगर गुजरात में टीकाकरण का स्तर निम्न बना रहा तो राज्य में कई बड़ी बीमारियों की वापसी हो सकती है। निम्न टीकाकरण की समस्या के तत्काल समाधान की आवश्यकता है क्योंकि उच्च रुग्णता का बोझ संभवतः उन आर्थिक लाभों को समाप्त कर सकता है जो राज्य पिछले कई सालों से अर्जित कर रहा है। राज्य स्तर रोगों के बोझ पर आईसीएमआर द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, टीबी वर्तमान में गुजरात में मौत एवं विकलांगता का तीसरा बड़ा कारण है। यह स्थिति 1990 की तुलना में भी अधिक खराब है।
टीकाकरण कवरेज के मामले में जिलों के बीच अंतर इस लिहाज से बेहतर जिलों एवं पिछड़े जिलों के बीच अपेक्षाकृत क्रॉस-लर्निंग अर्थात एक दूसरे से समग्र रूप से सीखने की संभावना की ओर इशारा करते हैं। जैसाकि निम्नलिखित मानचित्र प्रदर्शित करता है, पंचमहल, पाटन, दोहाद, बनासकंठ, सुरेन्द्रनगर एवं खेडा जैसे 40 प्रतिशत से कम टीकाकरण वाले जिले जामनगर, तापी एवं नवसारी जैसे जिलों से सीखते हैं जहां 70 प्रतिशत से अधिक टीकाकरण हो चुका है। यहां यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करने वाले जिलों को भी वैश्विक स्तर या सार्वभौमिक पहुंच हासिल करने के लिए अपने में बेशुमार बेहतरी लाने कर आवश्यकता है।
कुपोषण आर्थिक लाभों के प्रभावों को कुंद बना सकता है
पोषण गुजरात के लिए लंबे समय से समान रूप से चिंता का विषय रहा है। आईसीएमआर के अंकड़ों के अनुसार, कुपोषण एवं आहार-संबंधी जोखिम दो सबसे बड़े जोखिमपूर्ण कारक हैं जिनसे सर्वाधिक मौतें एवं विकलांगता होती हैं। जहां पिछले दशक के दौरान अवरुद्ध एवं कम वजन वाले बच्चों के अनुपात में धीमी प्रगति देखी गई, इधर कमजोर बच्चों का अनुपात बहुत तेजी से बढ़ा है।
*नोट:एनएफएचएस -2 की संख्याएं तीन वर्ष से कम आयु वाले बच्चों के लिए है जबकि शेष पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों के लिए है
आर्थिक रूप से बेहद मजबूत राज्य के रूप में विख्यात गुजरात की रैंकिंग मानक पोषण परिणाम संकेतक पर बहुत निम्न बनी हुई है। जैसाकि निम्नलिखित ग्राफ समूह प्रदर्शित करते हैं, 2015-16 के आंकड़ों से पता चलता है कि सभी राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों के बीच गुजरात की रैंकिंग बच्चों के अवरुद्ध विकास के मामले में 29वीं, बच्चों की निर्बलता के मामले में 34वीं और अल्प वजन के मामले में 32वीं है। इसके लिए तत्काल नीति बनाये जाने की आवश्यकता है क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर कुपोषण विभिन्न माध्यमों से अर्जित आर्थिक विकास के स्थायित्व पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
स्रोत: एनएफएचएस
कुपोषित बच्चों का अनुपात भी गुजरात के भीतर जिलों के बीच उच्च परिवर्तनशीलता को प्रदर्शित करता है। जैसाकि निम्नलिखित मानचित्र समूह प्रदर्शित करते हैं, वलसाड, जूनागढ़, जामनगर, कच्छ, नर्मदा, तापी, पंचमहल एवं डांग जैसे जिले कमजोर बच्चों का बहुत उच्च अनुपात; (>30% ) प्रदर्शित करते हैं। इसी प्रकार, खेडा, भावनगर और साबरकंठ जैसे जिले कमजोर बच्चों का बहुत उच्च अनुपात; (>45% ) प्रदर्शित करते हैं। सुधारात्मक कार्रवाई के लिए उच्च बोझ जिलों तथा अन्य जिलों के भी सबसे निम्न प्रदर्शन करने वाले तालुकों की तत्काल पहचान की जानी चाहिए।
गुजरात एक संक्रांति काल से गुजर रहा है जहां कुपोषण द्वारा प्रस्तुत पारंपरिक चुनौतियों की जगह लेने के बजाये अति-पोषण द्वारा प्रस्तुत सार्वजनिक नीति चुनौतियां भी कुपोषण द्वारा प्रस्तुत सार्वजनिक नीति चुनौतियों के साथ-साथ सामने आ खड़ी हुई हैं। पिछले एक दशक के दौरान गुजरात के पुरुषों और महिलाओं के बीच मोटापा और अधिक वजन के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। जैसाकि ड्रेज एवं सेन ने भारत के सामाजिक क्षेत्र के प्रदर्शन पर अन्यत्र कहीं टिपण्णी की है, स्वास्थ्य एवं पोषण में गुजरात के असंतोषजनक प्रदर्शन की आंशिक वजह गुजरात को ‘अफ्रीका के उप-सहारा समुद्र में कैलिफोर्निया के द्वीपों जैसे अधिक से अधिक दिखने’ वाला राज्य बनाने के असमानता भरे प्रयासों में छुपी है ‘जिससे, औसतन राज्य’ प्रति व्यक्ति आय की सीढ़ी पर तो चढ़ रहा है लेकिन सामाजिक संकेतकों की ढलान पर फिसल रहा है।’
विधानसभा के चुनाव गुजरात की स्वास्थ्य व पोषण स्थिति में सुधार लाने के लिए राजनीतिक नेतृत्व और नागरिकों को कार्यनीतियों तथा रास्तों पर पुनर्विचार करने एवं उन्हें विवेकपूर्ण बनाने का एक अवसर प्रदान करते हैं जो राज्य के आर्थिक प्रदर्शन को बनाये रखने की शीर्ष प्राथमिकता है।
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