Author : Ramanath Jha

Published on Nov 08, 2023 Updated 0 Hours ago

वाहन स्क्रैपेज नीति को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाना चाहिए, ताकि इससे और भी ज़्यादा गतिशीलता मिल सके और इसके परिणाम में नगरपालिका सफाई कर्मियों को सड़कों को साफ रखने में और भी अधिक सक्षम बनाए और सहूलियत प्रदान करे. 

भारतीय शहरों में स्क्रैपयार्डस की बढ़ती ज़रूरत: एक विश्लेषण

स्क्रैपयार्ड शहर अथवा शहर के बाहर स्थित एक ऐसी जगह, जहां टूटे फूटे या फिर सेवामुक्त कर दिए गये गाड़ियों को इकट्ठा करने एवं फिर उन्हें व्यवस्थित तरीके से नष्ट करने के लिए सुनिश्चित किये गये स्थान को कहा जाता है. अलग-अलग देशों में स्क्रैपयार्ड को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे कि रेकिंग यार्ड या फिर कि जंक-यार्ड. इन गाड़ियों के कल पूर्ज़ों को अलग करने की प्रक्रिया के दौरान, उसके दोबारा इस्तेमाल में लिए जा सकने योग्य हिस्सों को निकालकर दोबारा इस्तेमाल में लाए जाने के लिए  ऑटोमोबाइल  सेक्टर में बेच दिया जाता है और बाकी बचे हिस्सों को  जो इस्तेमाल में न आ सकने योग्य होते हैं उन्हें रिसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) के लिए बेच दिया जाता है. 

हाल ही में, भारत सरकार (GOI) ने अपने स्वैच्छिक वाहन बेड़ा आधुनिकीकरण प्रोग्राम (V-VMP) के अंतर्गत एक नवीन व्हीकल स्क्रैपेज नियम प्रस्तुत किया है.

नई स्क्रैपेज नीति 

हाल ही में, भारत सरकार (GOI) ने अपने स्वैच्छिक वाहन बेड़ा आधुनिकीकरण प्रोग्राम (V-VMP) के अंतर्गत एक नवीन व्हीकल स्क्रैपेज नियम प्रस्तुत किया है. इस प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य – बग़ैर मान्य एवं वैध फिटनेस और पंजीकरण वाली 10 मिलियन गाड़ियों को स्क्रैप का सर्टिफिकेट देकर  प्रदूषण को संतुलित करना, सड़क, यात्री और वाहनों की सुरक्षा का बेहतरीकरण, मोटर वाहनों के विक्रय में वृद्धि एवं रोज़गार का सृजन, ईंधन दक्षता में सुधार और वाहन मालिकों के लिए रख-रखाव की लागत में कटौती लाने के अलावा वाहन स्क्रैपेज उद्योग को औपचारिक पहचान देने के साथ ऑटोमोटिव स्टील और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के लिए ज़रूरी कम-लागत वाले कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करना है.  

नई स्क्रैपेज नीति के अनुसार, सभी कमर्शियल गाड़ियों को हर 15 वर्ष के बाद निर्धारित फिटनेस मानकों को पूरा करने में विफल रहने या उत्सर्जन सीमा पूर्व-निर्धारित से अधिक होने की स्थिति में, या फिर उन गाड़ियों के द्वारा किये जा रहे कार्बन उत्सर्जन में 15-20 प्रतिशत तक की कमी न आने देने की सूरत में उन्हें स्क्रैप घोषित कर देना अनिवार्य कर दिया गया है. इस पॉलिसी के तहत पुराने वाहनों को स्क्रैप करने और नए वाहन खरीदने पर, पूर्ण पंजीकरण शुल्क में छूट एवं रोड टैक्स में 15-20 प्रतिशत की छूट का भी प्रावधान है. इस पॉलिसी के अंतर्गत, ऑटो कंपनियों को स्क्रैपिंग के प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए जाने पर 5 प्रतिशत की छूट दिए जाने का भी आह्वान किया गया है. इस नीति में उन गाड़ियों के फिटनेस परीक्षण के लिए दिये जाने वाले शुल्क और पुनः पंजीकरण शुल्क में वृद्धि की बात की गई है जिनकी उम्र 15 साल से ज़्यादा हो गयी है.  इन पॉलिसी में स्वचालित परीक्षण स्टेशनों (ATS) और पंजीकृत वाहनों की स्क्रैपिंग सुविधाओं के रूप में आवश्यक समर्थन, बुनियादी ढांचे की स्थापना को सुविधाजनक बनाने के लिए ज़रूरी कदम की रूपरेखा भी निर्धारित की गई है. (RVSF). कुछ राज्यों ने दिलचस्पी दिखाते हुए, आगे बढ़कर अपनी खुद की राज्यस्तरीय स्क्रैपेज नीति (व्हीएसपी) तैयार की है. उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र सरकार के परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MORTH) के दिशानिर्देशों के आधार पर, एक VSP 2023 योजना का मसौदा तैयार किया है जो किसी आधिकारिक संस्था द्वारा तैयार किए गई नीतियों का अनुपालन अपने यहां लागू करता है.    

सड़कों पर लोगों द्वारा अपने वाहनों की पार्किंग किये जाने की वजह से सड़कों की जगह का अनावश्यक खपत हो रहा है. जिसके कारण यातायात बेवजह बाधित हो रही है, क्योंकि सड़क का केवल एक हिस्सा ही यात्रा के लिए मुक्त होता है.

ऐसा अनुमान है कि इस नीति को पूरी तरह से लागू किये जाने पर गाड़ियों की स्क्रैपिंग संख्या में काफी बढ़ोत्तरी देखी जायेगी. क्योंकि भारतीय सड़कों में 15 साल से अधिक समय से चल रहे पुराने भारी और मध्यम वज़न के कमर्शियल वाहनों की संख्या कम  से कम  1.7 मिलियन  और 20 सालों से चल रहे  हल्के ऑटोमोबाईल वाहनों की संख्या  5.1 मिलियन  है.  इस योजना के अमलीकरण के दौरान वाहनों की स्क्रैपिंग में भारी वृद्धि देखे जाने की आशा है. और ये भी तय है कि अगर वाहन स्क्रैपिंग की समस्या को गम्भीरतपूर्वक संबोधित नहीं किया गया तो इन आंकड़ों में भारी वृद्धि देखा जाना तय है. जैसा कि उपर बताया गया है कि  भारत सरकार की नीति स्पष्ट तौर पर सड़कों पर ऐसे वाहनों की संख्या बढ़ाने की है जिनकी मदद से रोज़गार के पूल का विस्तार हो पायेगा. 

जिस बात का ज़िक्र भारत सरकार की नीति में कहीं भी नहीं किया गया है वो ये है कि शहरों में बड़े पैमाने पर कमर्शियल और निजी वाहन को चलाने करने की उनकी मंशा है. ये बड़े शहर ही होंगे जिन्हें वाहनों की इस बढ़ती संख्या को सुचारू और निर्विघ्न रूप से चलने देने के लिए रास्ता देना होगा. चूंकि, शहर की सड़कों पर और जगह मुहैया कराए जाने के तमाम प्रयास, बढ़ते वाहनों के वेग के साथ तालमेल रख पाने में असमर्थ होंगे, इस वजह से, भारतीय महानगरों और उनके शहरों में यातायात की भीड़ बदतर होती जाएगी. ये पहले ही प्रतिकूल परिणामों में परिवर्तित होती जा रही है. 

सड़कों पर लोगों द्वारा अपने वाहनों की पार्किंग किये जाने की वजह से सड़कों की जगह का अनावश्यक  खपत हो रहा है. जिसके कारण यातायात बेवजह बाधित हो रही है, क्योंकि सड़क का केवल एक हिस्सा ही यात्रा के लिए मुक्त होता है. आश्चर्यजनक रूप से, इस बारे में कम बातें की गईं हैं. ये सच्चाई है कि 15 साल पुराने हो चुके, और कबाड़ में नष्ट किए जाने योग्य वाहन भी शहर के स्थानों पर काफी हद तक कब्ज़ा कर रखते हैं. वर्तमान समय में, ऐसे पुराने वाहन सड़कों पर, फ्लाइओवरों के नीचे, अथवा पार्किंग स्थलों पर, बिना देखभाल के लापरवाही पूर्वक पड़े मिलते है, क्योंकि भारतीय शहरों में वाहन स्क्रैपयार्ड के लिए ज़रूरत से काफी कम जगह उपलब्ध कराई गई है, जहां इन कबाड़ बन चुके वाहनों को इकट्ठा करके नष्ट किया जा सके. इस स्थिति को और भी बदतर बनाने की वजह ये है कि कई शहरों में, कई गैरकानूनी और अनौपचारिक समूह से संबंधित लोग, इस व्यवसाय से किसी ना किसी रूप में जुड़े होते हैं, वे लोग इस व्यवसाय के संचालन के लिए सड़कों के एक हिस्से का इस्तेमाल अतिक्रमण करके करते हैं जिससे आम लोगों की आवाजाही और गाड़ियों के लिये सड़कों की कमी पैदा होती है. इस तरह की सभी हरकतें शहरों की गतिशीलता को रोकती है, और उनमें अव्यवस्था को जन्म देती है.  

संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में कुल 7,927 स्क्रैपयार्ड है. वहीं दूसरी तरफ, भारत में रोड और ट्रांसपोर्ट और हाईवे मंत्रालय ने देश के विभिन्न राज्यों से कुल 100 से भी कम RVSF को सूचिबद्ध किया है.

भारत सरकार (GOI) की ऑटोमोबाईल समर्थक नीति के तहत, बढ़ते वाहनों के प्रवाह को रोक पाना संभवतः शहरों के बूते की बात नहीं है. हालांकि, वे अगर चाहे तो ‘ऑन-स्ट्रीट पार्किंग और वैध पार्किंग के लिए लागू शर्तों को और भी सख्त़ बना सकते हैं, जिसके तहत पार्किंग को ‘ऑफ-स्ट्रीट पार्किंग में सम्मिलित किया जा सकता है. शहरों में उदार माध्यम समेत, आवासीय और कमर्शियल विकास के भीतर पार्किंग के विस्तार की अनुमति भी दी जा सकती है. इसके अलावा, कार खरीदारों के लिए कार खरीदने के पहले पार्किंग के लिए उपलब्ध जगह का प्रमाण प्रस्तुत करना आवश्यक किया जा सकता है. हालांकि, इसकी संभावना काफी कम है, क्योंकि वाहनों के संबंध में कठोर नियमों की भूख, किसी भी शहर या राज्य स्तर की मन:स्थिति या किसी भी इच्छा में नहीं है. एक और कदम जो कई शहर पहले ही उठा रहे हैं, वो है,  हर प्रकार के आवासीय और कमर्शियल निर्माणों के तहत बड़े पार्किंग स्थल का निर्माण करना, जिस वजह से शहर की गतिशीलता में बग़ैर कोई बाधा उत्पन्न किए पार्किंग की जा सके.  

बताए गए संभावित कदमों के बावजूद, कबाड़ वाहनों को एकत्रित करने में लिप्त व्यवसायियों को शहर की सड़कों के किनारे के हिस्सों को अतिक्रमित करने देने के पीछे कोई वैध वजह नहीं है. उन्हें निश्चित तौर पर वाहन स्क्रैपयार्ड चले जाना चाहिए. हालांकि, ये भी सच है कि शहर स्वयं स्क्रैपयार्ड के लिए शहर के भीतर, भूमि उपयोग योजना के अंतर्गत, पर्याप्त जगह दे पाने में विफल रहे हैं, लेकिन इस विशाल वाहन स्क्रैप उद्योग में हाथ आज़माने को लेकर निजी व्यवसायी काफी उत्सुक होते दिखते हैं, परंतु उनके लिए सबसे कठिन और दुष्कर साबित हो रहा है वाहन स्क्रैप उद्योग के लिए ज़रूरी भूमि का उपलब्ध होना. भारतीय शहरों में इस अहम् एवं महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को नजरअंदाज़ या उपेक्षा का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में कुल 7,927 स्क्रैपयार्ड है. वहीं दूसरी तरफ, भारत में रोड और ट्रांसपोर्ट और हाईवे मंत्रालय ने देश के विभिन्न राज्यों से कुल 100 से भी कम RVSF को सूचिबद्ध किया है.   

बहुत बेहतर होगा कि भारत में शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी), इस समस्या का आंशिक अथवा समाधान का एक भाग प्रदान करें. अपने मास्टर प्लान या फिर विकास योजना के तहत वो और अधिक मात्रा में स्क्रैपयार्ड मुहैया कराएं. यूएलबी को मोटर व्हीकल एक्ट के तहत संबंधित अधिकारों से लैस होना पड़ेगा, ताकि वे छोड़े गये वाहनों को सड़कों और खुली जगह से हटा पायें और सड़कों पर इस तरह के अनाधिकृत रूप से डंप किये गये वाहनों के मालिकों पर जुर्माना लगा पायें.   

एक बार जब भूमि उपलब्ध हो जाए तो फिर, आरवीएसएफ़ (RVSF) के लिए साइट का विकास किया जाना चाहिए. हालांकि,  इलेक्ट्रिक  वाहन, उचित बुनियादी ढांचे, उपयुक्त मशीनरी, और उपकरणों के लिए, उपयुक्त प्रौद्योगिकी की खरीद काफी महत्वपूर्ण है. इन क्षेत्रों में जहां निरंतर रचनात्मकता एवं शोध की ज़रूरत है, वहीं इनको निजी क्षेत्रों के भरोसे ही छोड़ दिया जाना बेहतर होगा. टाटा मोटर्स ने वाहन स्क्रैपयार्ड में निवेश करने के इच्छुक ऐसे सभी डीलरों को तकनीकी जानकारी और विशेषज्ञता प्रदान करने के प्रति अपनी दिलचस्पी दिखलाई है. इस क्षेत्र के बाकी अन्य खिलाड़ी के भी, वाहन स्क्रैपिंग के व्यवसाय में संभावित अवसर को देखते हुए, शीघ्र ही इस उद्योग में शामिल होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. 

निष्कर्ष

यूएलबी को एक ऐसे आदर्श बिजनेस मॉडल पर काम करना चाहिए, जिसके अंतर्गत, वो खुद इस व्यवसाय से बाहर रहते हुए, वाहन स्क्रैपयार्ड में निवेश के इच्छुक किसी निजी पक्ष को, उनके (यूएलबी) द्वारा दिये गये अथवा आवंटित ज़मीन पर स्वतंत्र तौर पर ये व्यवसाय को चलाने की अनुमति प्रदान करे. अगर यूएलबी चाहे तो आवंटित की जाने वाली भूमि का एक आदर्श वार्षिक किराया तय करके, नीलामी प्रक्रिया द्वारा, उसे इस व्यवसाय हेतु इच्छुक पक्ष के साथ अनुबंध कर सकता है. इस अनुबंध के तहत, आवंटित किए जाने वाली भूमि के लिए देय किराये में प्रति वर्ष एक निश्चित आंशिक वृद्धि के प्रावधान का भी दस्तावेज़ में उल्लेख किया जाना चाहिए. हालांकि, उस आवंटित किए जाने वाले भूमि पर किए जाने वाले विकास निर्माण, और उसमें तकनीकी उपकरणों पर चयनित उम्मीदवार द्वारा ही निवेश किए जाने के बाद, वे इस स्क्रैपयार्ड का संचालन कर सकते हैं. उन्हें भूमि के किराये के अलावे, उस जगह के लिए प्रॉपर्टी टैक्स, बिजली बिल, और अन्य तरह के दिये जाने वाले नगरपालिका शुल्क आदि भी खुद ही वहन करने पड़ेंगे. 

अगर यूएलबी चाहे तो आवंटित की जाने वाली भूमि का एक आदर्श वार्षिक किराया तय करके, नीलामी प्रक्रिया द्वारा, उसे इस व्यवसाय हेतु इच्छुक पक्ष के साथ अनुबंध कर सकता है.

ज़ाहिर तौर पर, किए जाने वाले निवेश और मुनाफ़े को सुनिश्चित करने तक के लिए, निजी क्षेत्र के निवेशक /व्यवसायी आवंटित किए जाने वाली भूमि को एक निश्चित अवधि तक के लिए लीज़ पर दिए जाने की मांग करेंगे. इस आवंटन के ज़रिए यूएलबी की प्राथमिकता ये सुनिश्चित करने की होगी कि इस प्रक्रिया में, न तो स्क्रैपयार्ड एवं जंक वाहनों के भंडारण के लिए सड़क किनारे के क्षेत्रों का उपयोग किया जाए, और न ही सड़क किनारे कोई भी किसी प्रकार की स्क्रैप व्यवसाय में अनैतिक तौर पर शामिल हो सके. ऐसा होने की स्थिति में, सड़क का काफी प्रतिशत हिस्सा, जिनका इस्तेमाल इस जंक वाहनों के भंडारण के लिए हो रहा है वो खाली हो जाएगा, जिसके फलस्वरूप सड़कों के चौड़ीकरण में काफी सहूलियत होगी. इससे शहर के मध्य वाहनों की गतिशीलता में काफी मदद होगी, और शहरी सौंदर्यीकरण को प्रोत्साहन मिलने के साथ साथ, नगर पालिका के सफाईकर्मियों को बेहतर ढंग से सफाई करने में सहूलियत प्रदान होगी. इसलिए ये पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि शहरी सौन्दर्य एवं सुविधा को ध्यान में रखते हुए वाहन स्क्रैपेज नियम को लागू किया जाना अब किसी भी हाल में उपेक्षा के योग्य नहीं है. 

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