Author : Ankita Dutta

Published on Nov 24, 2022 Updated 0 Hours ago

जर्मनी (Germany) एक लंबे अर्से से चीन को “एक साथी, एक प्रतिस्पर्धी और एक व्यवस्थागत प्रतिद्वंदी” के तौर पर देखता रहा है. ऐसे में चांसलर का ताज़ा चीन दौरा कई अहम सवाल खड़े करता है.

German Chancellor Scholz की China यात्रा: मायने और रिश्तों की भावी दशा दिशा?

2022 में जर्मनी-चीन (Germany-China) के बीच राजनयिक रिश्तों की स्थापना के 50 साल पूरे हो रहे हैं. वैसे तो दोनों देशों की भागीदारी लगातार मज़बूत होती गई है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में चीन (China) के प्रति जर्मनी के रुख़ में बदलाव दिखने लगा है. मुख्य रूप से इस परिवर्तन की जड़ अपनी आर्थिक निर्भरताओं को लेकर जर्मनी की चिंताएं, चीन का निरंतर तीखा और आक्रामक रुख़ और रूस के साथ चीन के लगातार बढ़ते रिश्ते हैं. जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ शोल्ज़ (Chancellor Scholz) 3-4 नवंबर 2022 को चीन के दौरे पर थे. शोल्ज़ कोविड-19 महामारी की आमद के बाद चीन का दौरा करने वाले G7 के पहले नेता हैं. साथ ही वो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिवेशन के बाद राष्ट्रपति शी से मुलाक़ात करने वाले पहले पश्चिमी नेता हैं. ग़ौरतलब है कि इसी अधिवेशन में शी को अभूतपूर्व रूप से तीसरा कार्यकाल मिला है. इस लेख में जर्मनी-चीन के रिश्तों के विस्तार और इस दौरे के परिणाम पर नज़र डाला गया है.

रिश्तों की झलक

एक लंबे अर्से तक जर्मनी-चीन के रिश्तों का वाहक, व्यापार के ज़रिए बदलाव लाने की भावना रही है. इसके तहत जर्मनी ने आर्थिक जुड़ाव की नीति पर अमल किया, जिसका मक़सद चीन को लोकतांत्रिक और उदारवादी दायरे में लाने को लेकर प्रभाव डालना था. जर्मनी का विदेश मंत्रालय चीन के साथ अपने रिश्ते को ‘बहुमुखी और गहन’ बताता है. चीन को जर्मनी ‘एक साथी, एक प्रतिस्पर्धी और व्यवस्थागत प्रतिद्वंदी’ के तौर पर परिभाषित करता रहा है. 2019 ईयू-चाइना-ए स्ट्रैटेजिक आउटलुक में भी इसी तरह के विचार मिलते हैं. इसमें चीन की पहचान ऐसे मुल्क के तौर पर की गई है जो “यूरोपीय संघ के लिए सामरिक प्रतिस्पर्धी है, जो बदले में अपने बाज़ार तक पहुंच देने में नाकाम रहता है और व्यापार की समान शर्तें मुहैया नहीं कराता”. इस दस्तावेज़ में चीन को “प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर अगुवाई की तलाश करने वाले और शासन-प्रशासन के वैकल्पिक मॉडलों को बढ़ावा देने वाले व्यवस्थागत प्रतिद्वंदी के तौर पर” देखा गया है.

इस लेख में जर्मनी-चीन के रिश्तों के विस्तार और इस दौरे के परिणाम पर नज़र डाला गया है. 

चीन दुनिया में जर्मनी का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. 2021 में दोनों मुल्कों में 245 अरब यूरो से भी ज़्यादा का सालाना व्यापार हुआ. 1990 में जर्मनी के कुल व्यापार में चीन का हिस्सा महज़ एक फ़ीसदी था, जो 2021 में बढ़कर 9.5 फ़ीसदी हो गया. निवेश की बात करें तो चीन में जर्मनी की ओर से बड़े निवेश फॉक्सवैगन, BMW, मर्सिडीज़-बेंज़ जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और जर्मन रासायनिक उद्योगों के ज़रिए हुआ है. इन कंपनियों ने चीन में अपने निवेश में भारी बढ़ोतरी की है. 2019 में चीन में हुए कुल निवेश में इनका हिस्सा तक़रीबन 29 प्रतिशत हो गया. 2022 के पहले छह महीनों में जर्मनी का निवेश रिकॉर्ड 10 अरब यूरो तक पहुंच गया. साल 2000 (जब निवेश 6.2 अरब यूरो था) के बाद ये अब तक का सर्वोच्च स्तर है. जर्मनी की कंपनियों ने चीन में आगे भी निवेश बढ़ाते रहने का एलान किया है. मिसाल के तौर पर सिमन्स की डिजिटल उद्योग में विस्तार करने की योजना है; BMW ने अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने की बात कही है और BASF चीन में एक नई साइट के निर्माण के लिए 2030 तक 10 अरब यूरो निवेश करने जा रहा है. 2018 से 2021 के बीच इन चारों विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनियों (BASF, BMW, फॉक्सवैगन और मर्सिडीज़-बेंज़) ने चीन में यूरोप से हुए कुल FDI में 34 प्रतिशत का योगदान दिया. दूसरी ओर, जर्मनी में चीनी निवेश 2014 से 2019 के बीच तक़रीबन 40 अरब डॉलर तक पहुंच गया. इस तरह जर्मनी में चीन द्वारा किए गए निवेश के मुक़ाबले चीन में जर्मनी की ओर से किया गया निवेश आगे निकल गया.

सियासी रिश्तों के संदर्भ में जर्मनी फ़िलहाल चीन के साथ अपने संबंधों की नए सिरे से पड़ताल कर रहा है. वैसे तो आर्थिक भागीदारी इस रिश्ते की बुनियाद है, लेकिन जर्मनी जलवायु परिवर्तन जैसे मसलों पर भी चीन को अपना अहम सहयोगी मानता है. इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षों में चीन के प्रति जर्मनी के नज़रिए में रणनीतिक पुनर्विचार देखा गया है. मोटे तौर पर इसके पीछे अपनी आर्थिक निर्भरताओं को लेकर जर्मनी की चिंता जुड़ी हुई है. इसके अलावा अपने आसपड़ोस और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चीन के आक्रामक तेवर, मानव अधिकारों के मसलों पर चिंताएं और यूक्रेन संकट के बाद रूस के साथ चीन के बढ़ते संबंध भी इसी दायरे में आते हैं.

पुनर्विचार की इस प्रक्रिया को हवा देने वाला एक और अहम कारक अमेरिका-चीन रिश्तों का आपसी समीकरण है. चीन को लेकर अमेरिका के रुख़ में सख़्ती और अमेरिका में “लोकतंत्र बनाम एकाधिकारवाद” से जुड़े विमर्श को अपनाए जाने की क़वायद के साथ जर्मनी खड़ा नहीं है. अब तक चांसलर शोल्ज की सरकार ने एंगेला मर्केल द्वारा तय की गई नीति पर ही अमल किया है. जर्मनी इस टकराव में किसी का भी पक्ष नहीं लेता, क्योंकि एक ओर उसका सबसे महत्वपूर्ण साथी (अमेरिका) है तो दूसरी ओर सबसे अहम आर्थिक भागीदार (चीन). बहरहाल जर्मनी की गठबंधन सरकार चीन को लेकर एक सुस्पष्ट नीतिगत रुख़ तैयार करने में जुटी हुई है. विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक द्वारा जर्मनी की व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के तहत चीन रणनीति तैयार किए जाने की घोषणा से ये बात साफ़ हो जाती है. इसी तरह आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने नई व्यापार नीति का एलान करते हुए ‘चीन के साथ व्यापारिक सौदों में आगे किसी तरह का भोलापन नहीं दिखाने का वादा’ किया है. इसके साथ ही नए सिरे से पड़ताल की नीति के तहत जर्मनी, एशिया (ख़ासतौर से हिंद-प्रशांत क्षेत्र) में अपने राजनयिक संपर्क भी बढ़ा रहा है. हिंद-प्रशांत दिशानिर्देशों को स्वीकार करने के बाद जर्मनी ने यहां के देशों के साथ अपने रिश्ते बढ़ाने के लिए अपना युद्धपोत ‘बेयर्न’ भेज दिया. इससे इस क्षेत्र के साथ जर्मनी के बढ़ते संपर्कों का ख़ुलासा होता है.

चीन दुनिया में जर्मनी का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. 2021 में दोनों मुल्कों में 245 अरब यूरो से भी ज़्यादा का सालाना व्यापार हुआ.

दरअसल जर्मनी अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है. दूसरी ओर जर्मनी में घरेलू जनमत भी चीन को लेकर आलोचनात्मक है. अगस्त 2022 में जारी प्यू रिसर्च के सर्वेक्षण में 71 प्रतिशत लोगों की राय चीन को लेकर प्रतिकूल रही, 2001 में ये आंकड़ा केवल 37 प्रतिशत था. इसी तरह नवंबर की शुरुआत में डॉयचलैंड ट्रेंड सर्वे के मुताबिक 87 प्रतिशत प्रतिभागियों की ये राय थी कि संघ की सरकार को ग़ैर-लोकतांत्रिक देशों से आर्थिक रूप से अलग हो जाना चाहिए. 49 फ़ीसदी लोगों का विचार था कि सरकार को चीन के साथ आर्थिक सहयोग का स्तर घटा लेना चाहिए जबकि 63 फ़ीसदी प्रतिभागियों ने चीन से विश्व की सुरक्षा को ख़तरे का अंदेशा जताया.

यात्रा

चांसलर शोल्ज़ के ताज़ा दौरे ने जर्मनी की चीन नीति की भावी दशादिशा को लेकर गठबंधन सहयोगियों के मतभेद सामने ला दिए. दौरे से पहले हैम्बर्ग बंदरगाह को लेकर गठजोड़ सरकार के भीतर की दरार जगज़ाहिर हो गई. हैम्बर्ग बंदरगाह पर एक टर्मिनल के संचालन में 35 प्रतिशत हिस्सेदारी जुटाने की कॉस्कों की जुगत एक विवादित मसला बन गई. जर्मनी के छह मंत्रालयों ने इस सौदे को ख़ारिज किए जाने की मांग रख दी. दरअसल देश के अहम बुनियादी ढांचे के चीनी प्रभाव में आने की आशंकाओं से ऐसी चिंताएं सामने आईं. हालांकि जर्मनी की कैबिनेट ने निवेश पर 24.9 प्रतिशत की ऊपरी सीमा तय करते हुए इस सौदे को मंज़ूरी दे दी. इस तरह ‘कॉस्को को औपचारिक रूप से कोई अधिकार नहीं मिल सकेगा’. हालांकि विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक और राष्ट्रपति फ़्रैंक-वाल्टर स्टीनमीयर ने इस दौरे की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं.

बहरहाल, 3 नवंबर 2022 को पॉलिटिको में लिखे लेख के ज़रिए चांसलर शोल्ज़ ने अपने दौरे को जायज़ ठहराया. उन्होंने लिखा कि ‘जैसे-जैसे चीन बदल रहा है, चीन के साथ बर्ताव का हमारा तरीक़ा भी बदलना चाहिए.’ उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ‘जर्मनी और यूरोप के लिए चीन, एक अहम कारोबारी और व्यापारिक साझीदार बना हुआ है- और हम इससे जुदा नहीं रहना चाहते.’ वैसे तो जर्मन सरकार ने चीन की ओर से पेश चुनौतियों की तस्दीक़ की है लेकिन चीन को लेकर दमदार नीति तैयार करने के तरीक़ों और ‘एकतरफ़ा निर्भरताओं’ को लेकर मतभेद क़ायम हैं. चांसलर शोल्ज़ ने ये भी माना कि अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में चीन पर जर्मनी की निर्भरता बेहद नाज़ुक बनी हुई है. हालांकि जर्मनी ‘विविधता लाने की चतुराई भरी क़वायद के हक़ में एकतरफ़ा निर्भरताओं के ख़ात्मे’ के मक़सद से आगे बढ़ रहा है. लेख में उन्होंने साफ़ किया कि ‘चीन पर जर्मनी की नीति तभी कामयाब हो सकती है जब वो चीन के प्रति यूरोपीय नीति के साथ ठीक प्रकार से जुड़ी हो.’

चांसलर शोल्ज़ के ताज़ा दौरे ने जर्मनी की चीन नीति की भावी दशादिशा को लेकर गठबंधन सहयोगियों के मतभेद सामने ला दिए. दौरे से पहले हैम्बर्ग बंदरगाह को लेकर गठजोड़ सरकार के भीतर की दरार जगज़ाहिर हो गई.

चांसलर शोल्ज़ की चीन यात्रा के चार प्रमुख परिणाम रहे. इस कड़ी में सबसे पहले राष्ट्रपति शी और चांसलर शोल्ज़ द्वारा जारी साझा बयान है. इसमें ‘परमाणु हथियारों के प्रयोग या इस्तेमाल की धमकी के विरोध के साथ-साथ परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं करने की वक़ालत की गई.’ बयान के मुताबिक ‘परमाणु युद्ध नहीं होने चाहिए और यूरेशिया में परमाणु संकट की रोकथाम की जानी चाहिए.’ ये बयान बेहद अहम है. दरअसल इस तरह पहली बार चीनी नेतृत्व रूस की परमाणु धमकियों के प्रति अपने विरोध का प्रदर्शन कर रहा है. दूसरा परिणाम चीन में विदेशी प्रवासियों के लिए जर्मनी की BioNTech के कोविड-19 वैक्सीन के इस्तेमाल से जुड़ा क़रार है. तीसरा, 132 A320 और 8 A350 समेत 140 एयरबस विमानों की थोक ख़रीद से जुड़े 17 अरब अमेरिकी डॉलर के समझौते पर चीन द्वारा दस्तख़त का एलान है. हालांकि यहां इस बात पर ग़ौर करना ज़रूरी है कि इनमें से कई समझौतों पर चांसलर शोल्ज़ की यात्रा के पहले से ही वार्ता प्रक्रियाओं चलती आ रही थीं. चौथा, दोनों ही पक्ष द्विपक्षीय जलवायु और परिवर्तनकारी संवाद स्थापित करने को तैयार हो गए. इसके अलावा वैश्विक जैव विविधता समझौते को लेकर बुनियादी कामकाज शुरू करने पर भी रज़ामंदी हुई.

निष्कर्ष 

दिसंबर 2021 में जर्मन संसद बुंडेस्टाग में अपनी सरकार की नीतियों का ब्योरा देते हुए चांसलर शोल्ज़ ने चीन के प्रति यथार्थवादी नज़रिए अपनाए जाने की वक़ालत की थी. उनका विचार था कि “हमें वास्तविक अर्थों वाले चीन के साथ अपनी चीन नीति का तालमेल बिठाना चाहिए.” उनका ताज़ा दौरा चीन के साथ बेहद नाज़ुक संतुलन बिठाने की क़वायद की पृष्ठभूमि में हुआ है. इसमें एक ओर चीन के साथ आर्थिक रिश्ते जारी रखने की नीति है तो दूसरी ओर बीजिंग की आक्रामक कूटनीति, ताइवान पर उसके शिगूफ़े और मानव अधिकारों जैसे मसलों पर आलोचनात्मक रुख़ भी शामिल है.

इस दौरे ने जर्मन गठबंधन में चीन नीति की संरचना को लेकर अनिश्चितता के भाव को बेपर्दा कर दिया. एक ओर चांसलर ने बीजिंग के साथ ‘रिश्ते ख़त्म’ करने को नामुमकिन ठहराकर चीन के साथ सहयोग पर ज़ोर दिया, हालांकि उनके गठबंधन के कई नेता चीन के प्रति सख़्त रुख़ अपनाए जाने के हिमायती हैं. 17 अक्टूबर 2022 को फ़ेडरल इंटेलिजेंस सर्विस (BND), द फ़ेडरल ऑफ़िस फ़ॉर द प्रोटेक्शन ऑफ़ द कांस्टिट्यूशन (BfV) और मिलिट्री काउंटरइंटेलिजेंस सर्विस (MAD) के अध्यक्षों के साथ जर्मन संसद की सुनवाई के दौरान भी तीनों सेना प्रमुखों ने ऐसी ही चेतावनी दी. उनके मुताबिक ‘दीर्घकाल में विश्व शक्ति बनने की ओर आगे बढ़ रहे एकाधिकारवादी चीन की ओर से बड़े ख़तरे की आशंका है.’ ये भी कहा गया कि ‘जर्मनी का कारोबार जगत, समाज और सियासत इस संदर्भ में चीन पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा करने लगा है और एक ऐसी शक्ति पर तक़लीफ़देह रूप से बेहद निर्भर हो गया है जो अचानक भविष्य के लिहाज़ से बेहतर दिखाई नहीं दे रहा है.’ इस दौरान ये भी कहा गया कि ‘दीर्घकाल में जर्मनी की सुरक्षा और जर्मन हितों पर बड़ा ख़तरा चीन की ओर से पेश आएगा.’

इस तरह कई निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं. पहला, चीन की ओर से पेश चुनौतियों को स्वीकार करते हुए जर्मनी उसके साथ जुड़ाव क़ायम रखेगा. ये विचारधारा चांसलर के लेख में भी दिखाई दी थी, जिसमें उन्होंने लिखा था, “हम ऐसे सहयोग की तलाश करेंगे जो हमारे पारस्परिक हित में छिपे हैं लेकिन हम विवादों को भी नज़रअंदाज़ नहीं करेंगे.” प्राथमिक रूप से ये इस बात की तस्दीक़ है कि चीनी ताक़त में अभूतपूर्व इज़ाफ़े और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को उसकी ओर से दी जा रही चुनौती को लेकर जर्मनी में चिंताओं का दौर है. हालांकि चीन को अलग-थलग करना कोई विकल्प नहीं है क्योंकि कई वैश्विक मसलों पर वो एक साझीदार बना हुआ है. दूसरा, दोनों देशों के बीच के आर्थिक संबंध आपसी भागीदारी की बुनियाद हैं. बढ़ती महंगाई और गुज़रबसर की बढ़ती लागतों के बीच चीन से ‘अलगाव’ पर ज़ोर देना जर्मनी के लिए अव्यावहारिक होगा. चांसलर शोल्ज़ ने ज़ोर देकर कहा है कि ऐसा मुमकिन नहीं होगा. लिहाज़ा इस दौरे से संदेश साफ़ है- अल्पकाल में चीन के साथ आर्थिक रिश्ते मज़बूत बने रहने के आसार हैं और जर्मनी व्यापारिक और राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों के ज़रिए चीन के साथ संपर्कों पर पुनर्विचार की प्रक्रिया जारी रखेगा.

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