Published on Feb 04, 2022 Updated 0 Hours ago

इस साल के बजट में, पर्यावरण और सामाजिक स्थिरता के आधार पर परिवहन के बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. 

आम बजट 2022: परिवहन क्षेत्र के सतत विकास के लिए प्राथमिकताएं

महामारी के बाद देश को आर्थिक रूप से मज़बूत बनने में परिवहन क्षेत्र, आर्थिक गतिविधियों के सूत्रधार के रूप में और सकल घरेलू उत्पाद तथा प्रत्यक्ष रूप से नौकरियां देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इसलिए, इस आगे बढ़ते परिवहन क्षेत्र की भविष्य की प्राथमिकताओं को तय करने के लिए, इस साल के बजट से काफ़ी उम्मीदें हैं.

पारंपरिक रूप से परिवहन के लिए बजट आवंटन लगभग पूरी तरह से सड़क के बुनियादी ढांचे और अन्य मेगा परियोजनाओं, जैसे कि मेट्रो निर्माण पर केंद्रित रहा है. पिछले बजट में, परिवहन से जुड़ी चीज़ों पर नियोजित व्यय, कुल व्यय का सात प्रतिशत था. 

पारंपरिक रूप से परिवहन के लिए बजट आवंटन लगभग पूरी तरह से सड़क के बुनियादी ढांचे और अन्य मेगा परियोजनाओं, जैसे कि मेट्रो निर्माण पर केंद्रित रहा है. पिछले बजट में, परिवहन से जुड़ी चीज़ों पर नियोजित व्यय, कुल व्यय का सात प्रतिशत था. इसमें से बजट व्यय का 73 प्रतिशत, सड़क से जुड़े कार्यों को लेकर था. उस बजट में 57,350 करोड़ रुपए राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को और 60,241 करोड़ रुपए अन्य सड़क कार्यों के लिए आवंटित किए गए थे. अन्य 15,000 करोड़ (9 प्रतिशत) पीएम ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) को आवंटित किए गए थे, जिसका लक्ष्य दूरदराज़ की बस्तियों के लिए सड़क में सुधार करना है. दूसरे प्रमुख आवंटन फेम (FAME) योजना के लिए थे जिसके तहत मेट्रो परियोजनाओं (3 प्रतिशत) और इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना था.

चित्र 1: 2021 के बजट में परिवहन पर व्यय (करोड़ों में)

स्रोत: केंद्रीय बजट, 2021

देश के आर्थिक विकास के लिए, परिवहन के बुनियादी ढांचे में निवेश को एक मज़बूत आधार माना जाता है. हालांकि, यह तय करने के लिए कि परिवहन से संबंधित बुनियादी ढांचे का विस्तार व्यापक पर्यावरणीय और सामाजिक लक्ष्यों के साथ जुड़ा हुआ है, प्राथमिक रूप से चीज़ों को फिर से गठित करना ज़रूरी है. इस साल के बजट में, परिवहन के जिन क्षेत्रों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, उन क्षेत्रों पर नीचे विस्तार से बात की गई है. 

सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता

देश में सड़क दुर्घटनाएं मौत का एक प्रमुख कारण बनी हुई हैं. सड़क दुर्घटनाओं में हर साल 1.5 लाख लोगों की जान जाती है. पूरे विश्व में, सैंकड़ों की अधिक संख्या के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है और सड़क दुर्घटनाओं के मामले भारत में सबसे ऊपर हैं. इन चौंकाने वाले आँकड़ों के बावजूद, सड़क सुरक्षा में सुधार के सरकारी प्रयास अभी भी दूसरे हितों और सरकार को होने वाले लाभ के सामने फीके हैं. पिछले साल का बजट इस बात का एक बेहतर उदाहरण है, जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways, MoRTH) को आवंटित 91,823 करोड़ रुपए में से केवल 0.4 प्रतिशत (379 करोड़ रुपए) सड़क सुरक्षा के लिए आवंटित किए गए थे. इसके उलट, अमेरिकी संघीय सरकार सड़क सुरक्षा पर 2.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करती है, जो कि राजमार्गों पर उसके कुल खर्च का 6 प्रतिशत है.

देश में सड़क दुर्घटनाएं मौत का एक प्रमुख कारण बनी हुई हैं. सड़क दुर्घटनाओं में हर साल 1.5 लाख लोगों की जान जाती है. पूरे विश्व में, सैंकड़ों की अधिक संख्या के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है और सड़क दुर्घटनाओं के मामले भारत में सबसे ऊपर हैं

इस साल, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के लिए बजट आवंटन और भी अधिक होने की उम्मीद है, जो क़रीब 1.5 लाख करोड़ रुपए हो  सकता है. एक बार फिर भारतमाला परियोजना के तहत सड़क नेटवर्क को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाएगा. हालांकि, यह सड़क सुरक्षा को लेकर बजट को बढ़ाने के साथ-साथ इस बात को लेकर एक स्पष्ट संदेश देने का बेहतरीन अवसर भी है कि सड़क सुरक्षा देश के लिए ज़रूरी है. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सड़क नेटवर्क को बढ़ाने की क़ीमत, उन्हें इंसानी जान देकर न चुकानी पड़े. सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन पर सुंदर समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि: “सड़क यातायात दुर्घटनाओं की रोकथाम और उसे कम करने पर उसी तरह ध्यान और उसी तरह के संसाधन दिए जाने चाहिए जो फिलहाल दूसरी प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं के लिए प्रदान किए जा रहे हैं.”

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से सड़क सुरक्षा पर ध्यान दिया जाना प्रभावी सुरक्षा उपायों की पहचान और कार्यान्वयन की दिशा में एक लंबा रास्ता तय कर सकता है. सबसे पहले, सड़क दुर्घटनाओं के लिए एक मज़बूत राष्ट्रव्यापी सूचना संग्रह प्रणाली बनाने की ज़रूरत है, जिसका इस्तेमाल आसानी से ‘ब्लैक स्पॉट’ यानी उन जगहों की पहचान करने के लिए किया जा सकता है जहां सबसे अधिक दुर्घटनाएं होती हैं. इस आधार पर उचित समाधान तैयार करने और मौजूदा हस्तक्षेपों की सफलता को ट्रैक करने के लिए भी इस प्रणाली का इस्तेमाल किया जा सकता है. साल 2019 में वैश्विक स्वास्थ्य अनुमानों से संबंधित एक रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सड़क दुर्घटनाओं पर भारत के आधिकारिक आंकड़ों को ‘अनुपयोगी’ या ‘नीचले दर्जे की गुणवत्ता के कारण अनुपलब्ध’ के रूप में चिन्हित किया है. इसके अलावा, हमें बेहतर सड़क सुरक्षा उपायों को लागू करने की दिशा में अपनी कोशिशों को और तेज़ करना चाहिए. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय अनुसंधान और डेटा विश्लेषण के साथ-साथ रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण परिवहन के बुनियादी ढांचे और ‘ब्लैक स्पॉट’ में सुधार संबंधी परियोजनाओं में प्रत्यक्ष निवेश के लिए, अधिक से अधिक संसाधान जुटाने को ले कर अहम भूमिका निभा सकता है. सड़क सुरक्षा आवंटन का विस्तार करके केंद्र सड़क सुरक्षा से जुड़े अन्य पहलों को लागू करने में उन राज्यों की मदद कर सकता है जिन राज्यों के पास पैसों की कमी है. संपूर्ण विकास की सरकारी कोशिशों के बीच इस मुद्दे को प्राथमिकता देने के लिए एक विशिष्ट वित्त पोषित कार्यक्रम बनाने की ज़रूरत है.

सरकार को अपने वादे पर अमल करना चाहिए और बस खरीद के लिए एक विशेष आवंटन को अलग रखना चाहिए. यह तय करने के लिए एक स्पष्ट राज्य दर राज्य खरीद योजना होनी चाहिए, ताकि हर राज्य आदर्श सेवाओं के स्तर तक पहुंच सके.

एक राष्ट्रीय बस खरीदी कार्यक्रम की शुरूआत

ऐतिहासिक रूप से, सार्वजनिक परिवहन की आधारभूत संरचना में निवेश, बढ़े हुए शहरीकरण के साथ तालमेल नहीं बना पाई है. हाल ही में, मेट्रो सिस्टम में निवेश बढ़ा है, लेकिन सार्वजनिक बस प्रणाली की ओर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है. गृह और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Home and Urban Affairs, MoHUA) शहर के आकार के आधार पर प्रति 1,00,000 लोगों पर लगभग 30-60 मिलियन सार्वजनिक बसों की बात करता है. हालाँकि, भारत में केवल 2,80,000 बसें ही मौजूदा समय में राज्य परिवहन उपक्रमों (STU) द्वारा संचालित की जाती हैं या स्टेज कैरिज परमिट के तहत चलती हैं, जिसका मतलब है कि प्रति 1,00,000 लोगों पर 20 से भी कम बसें हैं. बस के इस विशाल बेड़े में ज़्यादातर बसें काफी पुरानी है, जिसके कारण समस्या और भी जटिल है. इन बसों में ईंधन की अधिक खपत होती है और इनमें लगे हुए कंप्यूटर किसी काम के नहीं हैं. हाल में, निजी वाहनों के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी और कार्बन उत्सर्जन और भीड़भाड़ में बढ़ोत्तरी का कारण बसों की भारी कमी और उनका सुचारु रुप से काम न करना रहा है.

 

निजी वाहनों में अचानक हुई इस बढ़ोत्तरी के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए, सार्वजनिक बस प्रणाली को एक बड़े स्तर पर प्रोत्साहित किए जाने की ज़रूरत है. समावेशी परिवहन विकास के लिए इस तरह की पहल सबसे ज़रूरी होनी चाहिए, क्योंकि बस का इस्तेमाल करने वाले में सबसे ज़्यादा लोग निम्न वर्ग से आते हैं, जो यात्रा के दूसरे साधनों का खर्च नहीं उठा सकते. हालांकि, एसटीयू पर बहुत अधिक ऋण है. एसटीयू को क़रीब 140 बिलियन रुपए का संयुक्त वार्षिक नुकसान हुआ है. यह नुकसान देशभर में बस के बेड़ों को बढ़ाने या अपनी सेवाओं को बेहतर बनाने की उनकी क्षमता में सबसे बड़ी बाधा है. मुनाफ़े की कमी के कारण निजी कंपनियां भी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में क़दम रखने से कतराती हैं. इस प्रकार, केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित एक राष्ट्रीय बस खरीद कार्यक्रम भारत की बस प्रणाली में सुधार की दिशा में इस लक्ष्य को आगे लेकर जा सकता है. पिछले साल, वित्त मंत्री ने नई बसों की खरीद के लिए, 180 अरब रुपए की योजना की घोषणा की थी, लेकिन वास्तविक बजट में इसके लिए कोई आवंटन नहीं था. इस साल, सरकार को अपने वादे पर अमल करना चाहिए और बस खरीद के लिए एक विशेष आवंटन को अलग रखना चाहिए. यह तय करने के लिए एक स्पष्ट राज्य दर राज्य खरीद योजना होनी चाहिए, ताकि हर राज्य आदर्श सेवाओं के स्तर तक पहुंच सके. इसके साथ ही, इलेक्ट्रिक और प्राकृतिक गैस से चलने वाली बसों जैसी स्वच्छ तकनीकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. हमें एक राष्ट्रीय परिवहन विकास वित्त निगम पर भी विचार करना चाहिए जो धन जुटा सकता है और नकदी की कमी वाले एसटीयू को ऋण दे सके.

देश भर में मल्टी-मोडल हब और लॉजिस्टिक्स पार्क बनाने के लिए, एक स्पष्ट रणनीति बनाने की ज़रूरत है. दूसरा, ट्रैकिंग एरिया को बेहतर बनाने की ज़रूरत.

मल्टी-मोडल माल ढुलाई में सुधार

भारत में संचालन तंत्र स्थापित करने और उसके इस्तेमाल की लागत बहुत अधिक है. लॉजिस्टिक क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14 प्रतिशत है, जो विकसित अर्थव्यवस्थाओं में 7-8 प्रतिशत के साथ किसी भी रूप में बराबरी नहीं कर पाता. लागत का लगभग 90 प्रतिशत परिवहन और इन्वेंट्री प्रबंधन से जुड़ा है. भारत में माल ढुलाई बहुत हद तक ट्रकों पर निर्भर करती है. बेहतरीन रेल प्रणाली होने के बावजूद भी यह सिर्फ 25 प्रतिशत ही माल ढुलाई कर पाते हैं. इसका कार्बन उत्सर्जन और वायु प्रदूषण के पर सबसे ज़्यादा असर पड़ता है.

मौजूदा बजट, लॉजिस्टिक क्षेत्र से लागत और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में संसाधनों के बीच तालमेल बिठाने का एक बड़ा अवसर देता है. सबसे पहले, सड़क और रेल के बीच मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी में सुधार करने की ज़रूरत है. सरकार को ‘गति शक्ति योजना’ के तहत नियोजित 100 लाख करोड़ रुपए के निवेश को जुटाने और उसके सही इस्तेमाल के लिए रोडमैप तैयार करने की ज़रूरत होगी. इस योजना को लेकर उद्योग जगत में खासा उत्साह है. बजट इस रोडमैप को ज़मीनी स्तर पर लाने का एक असवर देता है. बुनियादी ढांचे के संदर्भ में, देश भर में मल्टी-मोडल हब और लॉजिस्टिक्स पार्क बनाने के लिए, एक स्पष्ट रणनीति बनाने की ज़रूरत है. दूसरा, ट्रैकिंग एरिया को बेहतर बनाने की ज़रूरत. स्क्रैपेज नीति यानी पुराने वाहनों को इस्तेमाल से बाहर करने की योजना के क्रियान्वयन में तेज़ी लाना और पुराने ट्रकों को स्क्रैप करने के लिए प्रोत्साहित करना एक ज़रूरी क़दम होगा. लॉजिस्टिक ऑपरेटरों के लिए, एक प्रोत्साहन योजना की भी ज़रूरत है जो कम उत्सर्जन वाले ऑपरेटरों को सम्मानित करेगी. कंटेनर की उपलब्धता में सुधार भी ज़रूरी होगा, ट्रांसपोर्ट कंटेनरों पर मौजूदा 18 फीसदी जीएसटी दर में कमी स्वागत योग्य कदम होगा. अंत में, अत्यधिक खंडित लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में बेहतर माल ढुलाई के लिए तकनीकी समाधानों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है.

 

स्वदेशी इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण में तेज़ी लाने के लिए करों को युक्तिसंगत बनाना

ई-मोबिलिटी की ओर बढ़ने और उसे बढ़ावा देने में तत्काल रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के लिए निर्माण मूल्य श्रृंखला को स्वदेशी बनाना है शामिल है. यह योजना मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) और घटक आपूर्तिकर्ताओं को बिक्री से जुड़े प्रोत्साहन प्रदान करेगी. लगभग 115 आवेदनों के साथ इस योजना को पहले ही उद्योग से अच्छी प्रतिक्रिया मिल चुकी है. हालांकि, अगर स्वदेशी घटक मैन्युफैक्चरिंग को बड़ा बढ़ावा देना है, तो ऑटो घटकों पर टैक्स को फिर से समायोजित करने की ज़रूरत है. जबकि ईवी पर जीएसटी को घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया है, महत्वपूर्ण ईवी घटकों पर जीएसटी अभी भी ऊंचे स्तर पर टैक्स लगाया गया है। विशेष रूप से, इलेक्ट्रिक मोटर्स, कन्वर्टर्स और लिथियम-आयन बैटरी जैसे घटकों पर 18 प्रतिशत कर लगता है. इस दर को कम करने से ओईएम के लिए लागत में कमी आएगी और ईवीएस के लिए खरीद मूल्य में कमी आएगी, जिससे इसे आसानी से अपनाया जा सकता है. साथ ही, ईवी घटकों पर सीमा शुल्क में वृद्धि को, एक सीमा तक ही बढ़ाया जाना चाहिए. इस समय इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि अधिकतर घटकों में अभी भी स्वदेशी चीज़ों की कमी है. यह न केवल ओईएम के लिए लागत को कम करेगा, बल्कि स्थानीय ईवी बाजार में प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ाएगा जिससे नवाचार और लागत प्रभावी निर्माण बढ़ेगी. हालांकि, स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देने और विदेशी निर्माताओं को भारत के अंदर और अधिक प्लांट लगाने करने के लिए, प्रोत्साहित करने के लिए पूरी तरह से निर्मित और नॉक डाउन ईकाइयों पर सीमा शुल्क बढ़ाया जाना चाहिए.

अगर स्वदेशी घटक मैन्युफैक्चरिंग को बड़ा बढ़ावा देना है, तो ऑटो घटकों पर टैक्स को फिर से समायोजित करने की ज़रूरत है. 

कुल मिलाकर इस साल के बजट में प्राथमिकताओं को फिर से तय करना, एक मज़बूत परिवहन क्षेत्र बनाने की दिशा में बेहतरीन कदम साबित होगा जिससे पर्यावरण और सामाजिक स्थिरता को प्राथमिकता मिलेगी.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.