9 जून को मेक्सिको ने जेनरेशन इक्वलिटी फोरम (जीईएफ) के सह-अध्यक्ष के रूप में फ्रांस को मशाल सौंपी. जीईएफ का आयोजन 30 जून से 2 जुलाई के बीच पेरिस में हुआ. 25 साल पहले बीजिंग प्लैटफॉर्म फॉर एक्शन में जो वादा किया गया था, कोविड-19 महामारी उन वादों को फिर से दोहराने से नहीं रोक सकी. वास्तव में महामारी ने महिलाओं और लड़कियों के हालात की तरफ़ फिर से देखने की ज़रूरत बताई जो ख़ामोशी से एक के बाद एक लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा और नौकरी गंवाने की मुख्य शिकार बनी हैं.
महामारी के दौरान पीड़ित होने के साथ-साथ महिलाओं ने बार-बार आ रही कोविड-19 की लहर के दौरान असाधारण योगदान दिया है, लेकिन यहां भी उन्होंने ख़ामोशी से काम किया है. महिलाएं न सिर्फ़ डॉक्टर और नर्स के तौर पर महामारी के ख़िलाफ़ अभियान में मोर्चे पर रही हैं बल्कि बेरोज़गार लोगों को उन्होंने खाना भी मुहैया कराया है. साथ ही परिवार के संक्रमित सदस्यों की उन्होंने देखभाल की है, घर में ऑनलाइन क्लास में बच्चों की मदद की है, इत्यादि.
महामारी के दौरान पीड़ित होने के साथ-साथ महिलाओं ने बार-बार आ रही कोविड-19 की लहर के दौरान असाधारण योगदान दिया है, लेकिन यहां भी उन्होंने ख़ामोशी से काम किया है.
इस संदर्भ में जीईएफ के आयोजन का समय इससे बेहतर नहीं हो सकता क्योंकि ये कई हिस्सेदारों का मंच होने के साथ-साथ बुनियादी स्तर का वैश्विक आयोजन है जो मुख्य रूप से हमारी नई पीढ़ी पर केंद्रित है और जिसका सहयोग संयुक्त राष्ट्र भी करता है. ये आयोजन मई में जी7 के मंत्रियों की बैठक के कुछ हफ़्तों के बाद और इटली में अगले अगस्त में महिला अधिकारिता पर जी20 की अंतर्राष्ट्रीय मंत्री स्तर की बैठक से पहले हुआ. जी7 के मंत्रियों की बैठक में सदस्य देशों ने ये वादा किया कि पिछले साल मार्च में जीईएफ की बैठक के दौरान जिन लक्ष्यों की शुरुआत की गई थी, उससे वो जुड़ेंगे.
वास्तव में ये औपचारिक भेंट न सिर्फ़ संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों के भीतर की आवाज़ों की है बल्कि सात सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और जी20 के उभरते बाज़ारों की भी है. ये समस्या न सिर्फ़ मुख्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर महिलाओं को जगह देने की है बल्कि दुनिया भर में फ़ैसला लेने के तरीक़ों को बदलने की भी है. इसमें न सिर्फ़ एक लैंगिक और मानवीय पहलू को लाना चाहिए बल्कि उस पहलू को भी जो समावेशी, प्रभावी, सहानुभूतिपूर्ण, सहज ज्ञान से उत्पन्न हो और इस तरह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और शांति को मज़बूत बनाने के लिए अहम हो.
इसलिए एक महिलावादी विदेश नीति (फेमिनिस्ट फॉरेन पॉलिसी यानी एफएफपी) जीईएफ का एक नतीजा होना चाहिए जैसा कि स्वीडन, कनाडा, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम ने और हाल के दिनों में मेक्सिको ने कर दिखाया है जिसने 1975 में महिलाओं पर विश्व सम्मेलन की मेज़बानी की थी.
बीजिंग से पहले, मेक्सिको की पहल
बीजिंग सम्मेलन से भी 20 साल पहले मेक्सिको की महिलावादी मार्गदर्शकों– रोज़ारियो कैस्टेलानोस, ऐलेना पोनियाटोस्का, मार्टा लमास, ऐलेना उरुटिया और अन्य- ने सकारात्मक कार्रवाई की नींव डाली. इसका नतीजा ये हुआ कि मेक्सिको की संसद में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के देशों में सबसे ज़्यादा महिलाएं हैं. सीनेट के समर्थन से विदेश मामलों के मंत्रालय ने आख़िरकार 2020 में मेक्सिको की महिलावादी विदेश नीति की शुरुआत की.
लैटिन अमेरिका और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में महिलावादी विदेश नीति अपनाने वाले पहले देश के तौर पर मेक्सिको द्वारा उठाए गए क़दम को दूसरे मुख्य लोकतांत्रिक देशों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए. वास्तव में परंपरागत नीतियों- राजनीति या दूसरे सीधे जवाब- की तुलना में एक लैंगिक दृष्टिकोण भी समान रूप से व्यावहारिक हो सकता है. ये लैंगिक दृष्टिकोण निचले स्तर, अलग-अलग, बहुपक्षीय, ज़्यादा एकीकृत और ज़्यादा लोकतांत्रिक रवैये को स्वीकार सकता है.
ये समस्या न सिर्फ़ मुख्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर महिलाओं को जगह देने की है बल्कि दुनिया भर में फ़ैसला लेने के तरीक़ों को बदलने की भी है.
इसमें कोई अचरच की बात नहीं है कि मेक्सिको सिटी में जीईएफ की चर्चा बेहतर कल बनाने के अलावा टिकाऊ, ज़्यादा न्यायसंगत, समृद्ध और समावेशी परिप्रेक्ष्य को फिर से शुरू करने पर ख़त्म हुई ताकि लैंगिक समानता के संकट, जो महामारी की वजह से और गंभीर हुआ है, से निपटा जा सके.
राजनैतिक सहभागिता और शांत दुनिया
अकादमिक शोध का निष्कर्ष है कि ज़्यादा लोगों को शामिल करने और महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक हिस्सेदारी से एक समृद्ध और अधिक शांत दुनिया बन सकती है. इसलिए पेरिस में जीईएफ ने ग्लोबल एक्सेलरेशन प्लान फॉर जेंडर के समर्थन में अगले पांच वर्षों के लिए एक व्यापक अभियान शुरू किया है.
इस उद्देश्य के लिए छह कार्य योजना की शुरुआत की गई है: लैंगिक आधारित हिंसा; आर्थिक न्याय और अधिकार; निर्णय लेने की स्वायत्तता, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकार; जलवायु न्याय के लिए महिलावादी कार्रवाई; लैंगिक समानता के लिए तकनीक और इनोवेशन; और महिलावादी अभियान और नेतृत्व. इन्हें मौजूदा नियमों और परंपराओं में सुधार के लिए औज़ार बनना चाहिए. साथ ही मानवाधिकार पर ध्यान देकर लैंगिक और असमानता जैसी कमियों को ख़त्म करना चाहिए.
कोई भी देश, चाहे वो विकसित हो या विकासशील, अभी तक मेक्सिको या बीजिंग में तय लक्ष्य तक नहीं पहुंच सका है.
कोविड के बाद के युग की कल्पना आर्थिक बहाली के क़दमों के साथ-साथ लैंगिक समावेशन के लिए निश्चयपूर्वक सामाजिक कार्यक्रमों के बिना नहीं की जा सकती क्योंकि बेघर या बेरोज़गार, मूल निवासी या ग्रामीण समुदाय, प्रवासी या शरणार्थी या दूसरे भेदभाव के शिकार लोगों में महिलाएं और लड़कियां सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई हैं. यही वजह है कि मेक्सिको ने इन सभी समूहों को शामिल करने का फ़ैसला लिया है. इनके साथ-साथ लैंगिक दृष्टिकोण में एलजीबीटी+ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर) व्यक्तियों को भी शामिल किया गया है.
कोई भी देश, चाहे वो विकसित हो या विकासशील, अभी तक मेक्सिको या बीजिंग में तय लक्ष्य तक नहीं पहुंच सका है. संयुक्त राष्ट्र का 2030 का एजेंडा, जिसको सभी देशों ने 2015 में अपनाया, सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए लैंगिक समानता और अधिकारिता के लिए एक स्पष्ट रास्ता खींचता है (एसडीजी5). जीईएफ की कार्य योजना पूरी तरह सरकार और समाज के गठबंधन से आगे बढ़कर गरिमा, अवसर और महिलाओं एवं लड़कियों के अधिकार के पक्ष में इस महत्वपूर्ण यात्रा को लेकर हमें आगे की कार्रवाई और बदलाव की इजाज़त देगी.
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