Published on Sep 29, 2023 Updated 0 Hours ago

गैबॉन की सत्ता पर सेना का कब्ज़ा: तख्त़ापलट या शाही साज़िश? गैबॉन में सैन्य विद्रोह पूरे अफ्रीका में तख्त़ापलट की बुनियादी वजह को उजागर करता है: चुनावी प्रक्रिया का खत्म होना और सैन्य सत्ता की बढ़ती लोकप्रियता.

गैबॉन की सत्ता पर सेना का कब्ज़ा: तख्त़ापलट या शाही साज़िश?

जिस वक्त पूरे अफ्रीका महाद्वीप में G20 समूह की स्थायी सदस्यता को लेकर खुशी छाई हुई थी, उसी समय एक और अफ्रीकी देश में सत्ता सेना के हवाले हो गई है. इस तरह पश्चिम और मध्य अफ्रीका में तख्त़ापलट की होड़ का विस्तार हुआ है. 30 अगस्त को गैबॉन के निर्वाचित राष्ट्रपति अली बोंगो की सरकार को जनरल न्गुएमा के नेतृत्व में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने गिरा दिया. इसके साथ ही साल 2020 से पश्चिम और मध्य अफ्रीका में बोंगो आठवें नेता बन गए हैं जिन्हें सत्ता से हटाया गया है. 

सैन्य विद्रोह का नतीजा गैबॉन में बोंगो खानदान की 55 साल पुरानी सत्ता के अचानक ख़त्म होने के रूप में निकला. अली बोंगो के पिता उमर बोंगो ने 1967 से लेकर 42 साल तक गैबॉन पर राज किया था. 2009 में उमर बोंगो के निधन के बाद उनके बेटे अली बोंगो, जो अपने पिता की सरकार में रक्षा मंत्री थे, ने राष्ट्रपति का चुनाव जीता. विपक्ष ने उस विवादित चुनाव को सत्ता का खानदानी हस्तांतरण कहते हुए आलोचना की. उस वक़्त देश की आर्थिक राजधानी पोर्ट-जेंटिल में दंगे भी हुए. इसके बाद 2016 में जब अली बोंगो ने फिर से चुनाव जीता तो गैबॉन की राजधानी लिबरेविले में हिंसक प्रदर्शन हुए. 

सैन्य विद्रोह का नतीजा गैबॉन में बोंगो खानदान की 55 साल पुरानी सत्ता के अचानक ख़त्म होने के रूप में निकला. अली बोंगो के पिता उमर बोंगो ने 1967 से लेकर 42 साल तक गैबॉन पर राज किया था.

अपने पिता की तरह अली बोंगो भी फ्रांस के करीबी सहयोगी रहे हैं. पिछले दिनों अपनी सत्ता के तीसरे कार्यकाल का चुनाव उन्होंने 64 प्रतिशत वोट के साथ जीता. विपक्ष के उम्मीदवार अल्बर्ट ओंडो ओसा सिर्फ़ 30.77 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सके जबकि उन्होंने छह विपक्षी पार्टियों का गठबंधन “अल्टरनेंस 2023” तैयार किया था. विंडबना है कि अली बोंगो को सत्ता से उस वक्त हटाया गया जब गैबॉन के इलेक्शन सेंटर (CGE) ने विपक्षी पार्टियों के द्वारा धांधली के आरोपों के बाद भी राष्ट्रपति चुनाव में बोंगो की जीत का एलान किया ही था. 

कैसे हुआ तख्त़ापलट

चुनाव नतीजों के सार्वजनिक होने के कुछ देर बाद 30 अगस्त की सुबह करीब एक दर्जन सैनिक, जिन्होंने खुद को “द कमेटी ऑफ ट्रांज़िशन एंड द रेस्टोरेशन ऑफ इंस्टीट्यूशन (CTRI)” का सदस्य बताया, चुनाव को अवैध घोषित करने और सभी सरकारी संस्थानों को भंग करने का एलान करने के लिए राष्ट्रीय टेलीविज़न पर आए. इस घोषणा के बाद गैबॉन की राजधानी लिबरेविले की सड़कों पर हज़ारों लोग जश्न मनाने के लिए उतर आए. खुशी मनाने वाली इसी तरह की भीड़ पोर्ट-जेंटिल की सड़कों और व्यावसायिक केंद्र पर भी देखी गई. 

वास्तव में जनवरी 2019 में भी सेना के अधिकारियों के समूह के द्वारा उस वक्त तख्त़ापलट की कोशिश की गई थी जब बोंगो स्ट्रोक के बाद मोरक्को में इलाज करवा रहे थे. उस नाकाम विद्रोह ने स्पष्ट रूप से देश की सेना पर बोंगो के घटते नियंत्रण का संकेत दिया था. जैसा कि तख्त़ापलट के बाद आम तौर पर कहा जाता है, गैबॉन की सेना ने भी कहा कि ‘राष्ट्रपति सुरक्षित हैं’ और उन्हें नज़रबंद किया गया है, लेकिन इलाज के लिए वो विदेश जा सकते हैं. फिर भी राष्ट्रपति ने दुनिया भर में मौजूद गैबॉन के दोस्तों के लिए एक भावुक अपील जारी की ताकि वो उनके और उनके परिवार के समर्थन में “शोर” कर सकें. इसके अलावा सेना ने अपदस्थ राष्ट्रपति के बेटे नूरेद्दीन बोंगो वैलेंटिन और छह दूसरे लोगों को देशद्रोह के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया

जैसा कि तख्त़ापलट के बाद आम तौर पर कहा जाता है, गैबॉन की सेना ने भी कहा कि ‘राष्ट्रपति सुरक्षित हैं’ और उन्हें नज़रबंद किया गया है, लेकिन इलाज के लिए वो विदेश जा सकते हैं.

4 सितंबर को गैबॉन के नए सैन्य शासक जनरल न्गुएमा ने अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. गैबॉन की राजधानी लिबरेविले के प्रेसिडेंशियल पैलेस में शपथ समारोह के दौरान उन्होंने नए चुनावी कानून, एक नई दंड संहिता और एक नए संविधान पर जनमत संग्रह के साथ नागरिक शासन बहाल करने के लिए “स्वतंत्र, पारदर्शी एवं विश्वसनीय चुनाव” का वादा किया. इसके अलावा उन्होंने सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने का भी वादा किया और कहा कि तख्त़ापलट ने वास्तव में चुनाव के बाद किसी खून-खराबे को रोकने में मदद की है. 

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

अफ्रीकन यूनियन ने सैन्य बगावत की निंदा की और गैबॉन की सदस्यता को निलंबित कर दिया. संयुक्त राष्ट्र और फ्रांस समेत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने सत्ता पर सेना के कब्ज़े की आलोचना की और उस पर दबाव डाला कि नागरिक शासन बहाल करने के लिए अपनी योजना के बारे में बताए. मध्य अफ्रीकी देशों के आर्थिक समुदाय (ECCAS) ने भी सैन्य विद्रोह की निंदा की और नागरिक शासन को बहाल करने के लिए बातचीत की अपील की. अभी तक किसी भी देश ने जनरल न्गुएमा को वैध नेता के तौर पर कबूल नहीं किया है

सैन्य बगावत से फ्रांस, जो गैबॉन का पूर्व औपनिवेशिक शासक है, की स्थिति सबसे असमंजस वाली बन गई है. चूंकि फ्रांस ने हमेशा अली बोंगो का समर्थन किया और उनके साथ फ्रांस के संबंध सौहार्दपूर्ण थे, ऐसे में फ्रांस गैबॉन की लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को बहाल करने के मक़सद से सैन्य दख़ल पर वास्तव में विचार कर सकता है. फ्रांस के लगभग 400 सैनिक राजधानी में एक अड्डे समेत ट्रेनिंग और सैन्य सहायता के लिए स्थायी रूप से गैबॉन में तैनात हैं. गैबॉन के साथ फ्रांस के व्यापक आर्थिक संबंध भी हैं. फ्रांस की कम-से-कम 80 कंपनियां, ख़ास तौर पर खनन और तेल उद्योग की, गैबॉन में रजिस्टर्ड हैं. दक्षिण अफ्रीका के बाद गैबॉन दुनिया में मैंगनीज़ का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और गैबॉन के मैंगनीज़ में से 90 प्रतिशत का खनन फ्रांस करता है. फ्रांस की प्रधानमंत्री एलिज़ाबेथ बोर्न ने बयान दिया है कि उनका देश हालात पर करीब से नज़र रखे हुए है

अचानक तख्त़ापलट या शाही साज़िश? 

तख्त़ापलट करने के कुछ दिनों के बाद ही जनरल न्गुएमा ने गैबॉन में फ्रांस के एम्बेसडर अलेक्सीस लामेक से मुलाकात की और फ्रांस के साथ संबंधों को सुधारने का संकल्प लिया. एक हफ्ते से कम समय में न्गुएमा ने ख़ुद को गैबॉन के अस्थायी राष्ट्रपति के तौर पर बताया, एक नई संसद की स्थापना की और राजनीतिक कैदियों को रिहा किया. जल्दबाज़ी में शपथ ग्रहण संभवत: अपनी वैधता को साबित करने और सत्ता पर अपनी पकड़ को मज़बूत करने की कोशिश थी ताकि संभावित विरोधी उनके नेतृत्व को चुनौती देने से परहेज कर सकें. इसका ये भी मतलब हो सकता है कि पुरानी व्यवस्था अभी भी कायम है.

विडंबना है कि तख्त़ापलट का नेतृत्व करने वाले जनरल न्गुएमा रिश्ते में अपदस्थ राष्ट्रपति के भाई हैं. 48 साल के जनरल न्गुएमा ने अली बोंगो के पिता के बॉडीगार्ड के रूप में काम किया था और सेना की विशेष यूनिट रिपब्लिकन गार्ड की अगुवाई की थी. 

इसमें कोई शक नहीं है कि गैबॉन के लोगों, जो निराश होकर सत्ता में बदलाव चाह रहे थे, को सत्ता में इस बदलाव से उम्मीद की एक किरण दिख रही है. विडंबना है कि तख्त़ापलट का नेतृत्व करने वाले जनरल न्गुएमा रिश्ते में अपदस्थ राष्ट्रपति के भाई हैं. 48 साल के जनरल न्गुएमा ने अली बोंगो के पिता के बॉडीगार्ड के रूप में काम किया था और सेना की विशेष यूनिट रिपब्लिकन गार्ड की अगुवाई की थी. वो बोंगो के नज़दीकी वफादारों के ग्रुप का हिस्सा रहे हैं. यही वजह है कि राष्ट्रपति पद के विपक्षी उम्मीदवार ओसा ने तख्त़ापलट को “महल की साज़िश” के तौर पर बताया. ओसा के मुताबिक सैन्य विद्रोह देश पर बोंगो परिवार की पूरी पकड़ को बरकरार रखने की एक चाल है. इसके अलावा, ये अफवाह भी है कि तख्त़ापलट के पीछे अपदस्थ राष्ट्रपति की बहन पास्कालाइन बोंगो का हाथ है. वास्तव में, बहुत से लोग सोचते हैं कि जनरल न्गुएमा का शासन 55 साल के बोंगो खानदान से कुछ अलग नहीं होगा. इसे पारिवारिक सत्ता में बदलाव की तरह बताया जा रहा है जहां एक भाई को हटाकर दूसरा भाई सत्ता पर काबिज हुआ है. 

गैबॉन में विद्रोह के बाद के हालात 

तेल भंडार के मामले में 35वें नंबर का देश गैबॉन तेल निर्यात देशों के संगठन OPEC का सदस्य है. प्रति व्यक्ति आय के मामले में ये अफ्रीका के अमीर देशों में से एक है. फिर भी, विश्व बैंक के 2020 के सर्वे के मुताबिक यहां की 24 लाख की जनसंख्या में से एक-तिहाई से ज़्यादा लोग ग़रीबी में गुज़र-बसर करते हैं और 15 से 24 साल की उम्र के नौजवानों में से 40 प्रतिशत बेरोज़गार हैं. बोंगो के शासन में फ्रीडम हाउस इंडेक्स (दुनिया में लोगों की स्वतंत्रता का सूचक) में गैबॉन की स्थिति बेहद ख़राब थी, उसे 100 में से सिर्फ 20 स्कोर मिला. इसका मुख्य कारण देश की सेना पर राष्ट्रपति बोंगो का नियंत्रण था. विडंबना है कि आज ख़ुद बोंगो का भविष्य अनिश्चित है और उसी सेना ने बोंगो को सत्ता से बाहर कर दिया. वैसे तो सेना ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का वादा किया है लेकिन इसके लिए उन्होंने कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की है. बाद में जनरल न्गुएमा ने एक अर्थसास्त्री रेमंड नडोंग सीमा को “अंतरिम प्रधानमंत्री” के रूप में नियुक्त किया है. सीमा ने दो साल के भीतर चुनाव कराने का वादा किया है. 

गैबॉन में सैन्य विद्रोह पूरे अफ्रीका में तख्त़ापलट की बुनियादी वजह को भी उजागर करता है: चुनावी प्रक्रिया का खत्म होना और सैन्य सत्ता की बढ़ती लोकप्रियता.

इस बगावत के साथ गैबॉन उन बदनाम अफ्रीकी देशों के समूह में शामिल हो गया है जहां सेना का सत्ता पर कब्ज़ा हो गया है जैसे कि माली, गिनी, बुर्किना फासो और नाइजर. इन सभी अफ्रीकी देशों में पिछले तीन वर्षों के भीतर तख्त़ापलट हुआ है. बोंगो का राजनीतिक पतन फ्रेंच भाषा बोलने वाले अफ्रीकी देशों में तख्त़ापलट के एक ख़ास पैटर्न के बारे में दिखाता है. इसके विपरीत रूस इस क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए काफ़ी कोशिश कर रहा है और अपने असर को बढ़ाने के लिए वो इसे मौके के रूप में समझकर गैबॉन की सैन्य सरकार का समर्थन कर सकता है. 

निष्कर्ष 

अफ्रीका का ये क्षेत्र एक दशक पहले भी तख्त़ापलट वाले इलाके के तौर पर कुख्यात था लेकिन धीरे-धीरे ये अपनी ख़राब छवि से पीछा छुड़ा रहा था. मगर लगातार असुरक्षा और भ्रष्टाचार का नतीजा एक ऐसे रुझान के रूप में निकला है जो अफ्रीका और उससे परे ख़तरे की घंटी है. लोकतांत्रिक सरकारों में भरोसे को कमज़ोर करने वाले इस्लामिक उग्रवाद से लड़ना नाइजर और साहेल क्षेत्र के अन्य देशों के लिए प्राथमिकता है. वैसे तो गैबॉन अटलांटिक तट के किनारे और अधिक दक्षिण में स्थित है लेकिन वहां ये मुश्किल नहीं है. एक असुरक्षित क्षेत्र में सैन्य विद्रोह का होना लोकतंत्र से पहले की स्थिति में लौटने का एक और मज़बूत संकेत होगा.  

क्षेत्र के कई दूसरे स्थापित नेताओं, जिनका लोकतांत्रिक जनमत उन्हें सत्ता में रखने के लिए अपने सशस्त्र बलों या विदेशी भाड़े के लड़ाकों पर निर्भरता से कम हो, ने गैबॉन में तख्त़ापलट के बाद घटनाओं पर नज़दीक से नज़र रखी होगी. गैबॉन में सैन्य विद्रोह पूरे अफ्रीका में तख्त़ापलट की बुनियादी वजह को भी उजागर करता है: चुनावी प्रक्रिया का खत्म होना और सैन्य सत्ता की बढ़ती लोकप्रियता. इस बीच गैबॉन के लोगों के लिए ये लोकतंत्र की तरफ पहला कदम है और वो एक ऐसे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद कर रहे होंगे जिसमें सत्ता पर काबिज पुराने लोग अपना नियंत्रण छोड़ दें.


समीर भट्टाचार्य विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं.

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