Author : Samir Saran

Published on Sep 08, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत ने G20 की रूप-रेखा और धार, दोनों को बदल डाला है. जो शिखर सम्मेलन कभी टेक्नोक्रैट्स और नीति निर्माताओं के लिए जाना जाता था, वो अब जनता का त्यौहार बन गया है.

नई दिल्ली में G-20 समिट: भू-मंडलीकरण में ऐसी नई जान डालने की कोशिश जो सबका भला करे!

आज जब दिल्ली में दुनिया भर के नेता जुट रहे हैं, तो ये साफ़ है कि भारत की G20 अध्यक्षता, वैश्विक प्रशासन में ऐतिहासिक बदलाव के लिए याद की जाएगी. 2023 का G20 नारा है- ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ या ‘दुनिया एक परिवार है’. ये भारत द्वारा मौजूदा चिंताओं को परंपराओं से जोड़ने का एक उदाहरण है.

G20 शिखर सम्मेलन जिसका मक़सद, भू-मंडलीकरण में नई जान डालना है, उसमें सुधार करना और भू-मंडलीकरण की हिफ़ाज़त करना है. ऐसे में वसुधैव कुटुम्बकम का सूत्र वाक्य दुनिया भर से आने वाले मेहमानों के बेहतरीन स्वागत से आगे की बात करता है. अगर हम इसे अनुवाद करें, तो मतलब निकलता है- एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य. वसुधैव कुटुम्बकम दुनिया के तमाम देशों की संस्कृतियों के आपस में जुड़ाव की बात करता है, और जैसा कि परिवारों में होता है, ये हमें इस बात की याद भी दिलाता है कि विकास के सफ़र में जो पीछे रह गए हैं, जिनको भू-मंडलीकरण का लाभ नहीं मिल सका है, उन्हें भी इस यात्रा में भागीदार बनाया जाए.

G20 शिखर सम्मेलन जिसका मक़सद, भू-मंडलीकरण में नई जान डालना है, उसमें सुधार करना और भू-मंडलीकरण की हिफ़ाज़त करना है.

भारत G20 के अपने कुशल नेतृत्व में जिन तमाम प्राथमिकताओं को आगे बढ़ा रहा है, उनमें से तीन ऐसी हैं, जो ये साबित करती हैं कि आज किस तरह भारत ने विकासशील देशों की चिंताओं को विश्व मंच के केंद्र में ला खड़ा किया है. पहला सिद्धांत, विश्व अर्थव्यवस्था के लोकतांत्रीकरण और विकेंद्रीकरण का है. ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ को हमें उन मौजूदा भू-आर्थिक उठा-पटकों के संदर्भ में देखना चाहिए, जो हमारे आपस में जुड़े भविष्य के लिए ख़तरा बन गई हैं. जो देश कभी भू-मंडलीकरण के सबसे बड़े समर्थक थे, उन्हीं देशों में आज आक्रामक औद्योगिक नीतियों की वापसी हो रही है.

मेक अमेरिका ग्रेट अगेन

अमेरिका ने महंगाई घटाने का एक क़ानून पारित किया है. इस क़ानून की जो बारीक़ियां है, और इसके जो मक़सद बताए गए हैं, उनको देखते हुए, ये क़ानून स्वदेशी को बढ़ावा देने वाले ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (MAGA) के एजेंडे से अलग है. यूरोपीय संघ कार्बन बॉर्डर टैक्स लगाकर अपने इर्द-गिर्द एक चारदीवारी खड़ी कर रहा है. बाक़ी दुनिया अगर इन कोशिशों को हमदर्दी से भी देखे तो, ये बाहरी बाज़ारों को यूरोपीय सिद्धांतों के मुताबिक़ चलाने की कोशिश लगती है. और, अगर इन क़दमों को शक की नज़र से देखा जाए, तो लगता है कि यूरोपीय संघ आज उन्हीं संरक्षणवादी नीतियों पर चलने लगा है, जिन नीतियों को लेकर वो पहले ग़रीब देशों पर तीखे हमले किया करता था. भू-मंडलीकरण के विशुद्ध सिद्धांतों से दूर जाने के इन क़दमों को दुरुस्त करना विकासशील देशों की सबसे बड़ी प्राथमिकता है, क्योंकि इससे वैसे तो सभी का फ़ायदा होगा. पर, सबसे ज़्यादा भला ग़रीब देशों का ही होगा.

दूसरा सुधार वैश्विक वित्त को सुधारना और दोबारा पटरी पर लाने का है. 2008 के संकट के बाद से वित्तीय भू-मंडलीकरण ठीक तरह से काम नहीं कर रहा है. वित्त का मक़सद, बचत को परियोजनाओं क्षेत्रों और ऐसे इलाक़ों में लगाना है, जहां निवेश करके उनसे सबसे ज़्यादा रिटर्न हासिल हो सके. आज वो कौन सी परियोजनाएं, सेक्टर और इलाक़ें हैं, जहां ये पूंजी लगाई जा सकती है? आज अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी तमाम एजेंसियों का आकलन है कि दुनिया की तीन चौथाई प्रगति, तो उभरती अर्थव्यवस्थाओं से आने वाली है.

G20 शिखर सम्मेलन जिसका मक़सद, भू-मंडलीकरण में नई जान डालना है, उसमें सुधार करना और भू-मंडलीकरण की हिफ़ाज़त करना है.

हालांकि, अंतरराष्ट्रीय पूंजी अभी भी पश्चिमी देशों के हितों को साधने में ही जुटी हुई है. संपत्ति का निर्माण अब प्रगति के निर्माण से कट गया है. अगर कोई वित्तीय क्षेत्र, पूरी दुनिया की तरक़्क़ी में मदद देने के बजाय, केवल एक ख़ास भौगोलिक इलाक़े के समाज के भीतर ही संपत्ति के वितरण पर ध्यान केंद्रित करता है, तो फिर वो इस मक़सद के लायक़ ही नहीं है. भारत और उसके बाद वाले देशों की अध्यक्षता में G20, विकास और मूलभूत ढांचे के लिए पूंजी जुटाने की व्यवस्था को इस तरह दुरुस्त करने की कोशिश करेगा, जिससे पूंजी उन जगहों पर पहुंच सके, जहां इससे विकास को सबसे ज़्यादा रफ़्तार दी जा सके. इससे हम सबका- पूरी दुनिया का भला होगा.

तीसरा और सबसे अहम भारत ने G20 के स्वरूप और उसके मिज़ाज को बदल डाला है. एक दौर में G20 के शिखर सम्मेलन केवल टेक्नोक्रैट्स और नीति निर्माताओं के लिए हुआ करते थे. लेकिन, आज ये सम्मेलन जनता का जश्न बन गया है. जनता के G20 का एक मक़सद है: उन मुद्दों पर रौशनी डालना, जिनसे अरबों लोग प्रभावित होते हैं, और जिनकी ये टेक्नोक्रैट और नीति निर्माता बरसों से अनदेखी करते आए हैं. खान-पान, स्वास्थ्य, नौकरियों, जलवायु परिवर्तन से तालमेल बिठाने जैसे फौरी मसलों पर बातचीत ने करोड़ों भारतीयों और भारत से दूर आबाद अरबों अन्य लोगों को वैश्विक प्रशासन की परिचर्चाओं का हिस्सा बना दिया है. इस शिखर सम्मेलन के बाद से G20 की अध्यक्षता करने वाला हर देश इन नज़रियों, क्षेत्रों और समुदायों के मुद्दों को अपने एजेंडे में शामिल करेगा. G20 में भारत का गर्वोक्ति भरा योगदान विविधता लाना रहा है, जो वैश्विक प्रशासन के ढांचे को हिलाकर रख देगा.

इससे पहले G20 सम्मेलनों को कार्यक्रम स्थल के बाहर होने वाले विरोध प्रदर्शनों के लिए जाना जाता था, जो वैश्विक प्रशासन के विचार के विरोध में ही हुआ करते थे. विरोध की गुंजाइश तो हमेशा बनी रहती है. एक जीवंत लोकतंत्र के तौर पर भारत ये बात किसी अन्य देश से ज़्यादा बेहतर ढंग से समझता है. लेकिन, ऐसे विरोध प्रदर्शनों का एक ही जवाब है कि एक ऐसा व्यापक समूह बनाया जाए, जो इस विरोध के ख़िलाफ़ तर्क दे सके. जनता का G20 बिल्कुल सही तरीक़े से इस सच को स्वीकार करता है कि वैश्विक प्रशासन को लोकतांत्रिक बनाकर और भू-मंडलीकरण को सुधारने से एक बड़े समूह में उत्साह भरा जा सकता है, और इस तरह पहले के G20 सम्मेलनों के दौरान विरोध प्रदर्शन करने वालों की चिंताएं दूर की जा सकती हैं. G20 के आयोजनों का जिस तरह विपक्ष के शासन वाले राज्यों और हाशिए पर पड़े तबक़ों ने गर्मजोशी से स्वागत किया, वो इस बात का संकेत देता है कि इस उम्मीद में न तो कोई राजनीति है और न ही पक्षपात. भारत ने वैश्विक प्रशासन की कमज़ोरियां दूर करने का एक व्यापक, गहरा और अधिक विस्तार वाला तरीक़ा ढूंढ निकाला है.

भारत की G20 अध्यक्षता ने ग्लोबल साउथ की इस परिभाषा को एक नया रूप दिया है. अब ये एक ऐसा समूह बन गया है, जो हरित विकास, तकनीक पर आधारित तरक़्क़ी, महिलाओं के नेतृत्व में प्रगति और समावेशी विकास चाहता है.

भारत का नेतृत्व

G20 में भारत के नेतृत्व में वैश्विक प्रशासन के रुख़ में विकासशील देशों की दिशा में आया ये ऐतिहासिक मोड़, दशकों की अनदेखी को दूर करने लगा है. अब विकासशील देश या ग्लोबल साउथ कोई गाली नहीं रह गया है. भारत की G20 अध्यक्षता ने ग्लोबल साउथ की इस परिभाषा को एक नया रूप दिया है. अब ये एक ऐसा समूह बन गया है, जो हरित विकास, तकनीक पर आधारित तरक़्क़ी, महिलाओं के नेतृत्व में प्रगति और समावेशी विकास चाहता है. हो सकता है कि अमीर देशों से मिलने वाली स्कॉलरशिप, विकासशील देशों और उनकी आकांक्षाओं को ख़ारिज करने वाली रही हो. लेकिन, आज ग्लोबल साउथ को ऐसे समूह के तौर पर स्वीकार किया जा रहा है, जो सिर्फ़ भीख नहीं चाहता है. भारत के विद्वानों का जीवंत समुदाय, भारत की शानदार कूटनीति और निश्चित रूप से यहां की गर्मजोशी भरी मेज़बानी ने हमारी असली पहचान फिर से हासिल कर ली है. पहली बार, विकासशील देश एक हरित, डिजिटल और समानता भरे विकास की राह तलाशने वाले बने हैं. भारत की अध्यक्षता और जनता के G20 की यही विकास वाली विरासत है.

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