Published on Jun 18, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत में महिलाओं की उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय तकनीक के ज़रिए क़र्ज़ देने में लैंगिक बराबरी को बढ़ावा देने की ज़रूरत है.

महिलाओं की उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय तकनीक की शुरुआत हो

पूरे भारत में स्व-रोज़गार या फिर ख़ुद का कारोबार करना, महिलाओं के लिए रोज़गार का सबसे बड़ा ज़रिया है. भारत की दो तिहाई कामकाजी महिलाएं अपना काम चलाने के लिए अपने ही कारोबार पर निर्भर हैं. हालांकि, इस बात से इतर एक हक़ीक़त ये भी है कि भारत में ज़्यादातर महिला कारोबारी असंगठित क्षेत्र में हैं. वो छोटे-मोटे धंधे करती हैं, जिसमें मुट्ठी भर लोग काम करते हैं और उनके ये कारोबार पारंपरिक रूप से धीमे विकास और कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों के होते हैं. महिलाओं के ये उद्योग, पुरुषों की अगुवाई वाली तकनीक पर आधारित स्टार्टअप कंपनियों से बिल्कुल अलग हैं, जो यूनिकॉर्न बनने की कोशिश कर रहे हैं और दुनिया भर के निवेशकों को आकर्षित करते हैं. 

महिलाओं की अगुवाई वाले इन उद्यमों के असंगठित और कुछ ख़ास क्षेत्रों में केंद्रित होने का एक नतीजा ये हुआ है कि उन्हें संगठित क्षेत्र से वित्तीय पूंजी हासिल करने की राह में बहुत दिक़्क़तें आती हैं. असल में संगठित रूप से क़र्ज़ देने वाले संस्थान, किसी के क़र्ज़ लेने की क्षमता का आकलन करने के लिए उसके लोन लेने के इतिहास और उससे जुड़ी जानकारियों पर निर्भर होते हैं, तो इस माध्यम से महिलाओं को क़र्ज़ ले पाने में दिक़्क़त होती है, क्योंकि उनके पास ज़मीन के मालिकाना हक़ नहीं होते और वो नेटवर्किंग करके बैंकिंग क्षेत्र के लोगों से संपर्क बढ़ाने में असमर्थ होती हैं.

पूंजी का अभाव

भारत में महिलाओं की अगुवाई वाले कारोबार के लिए क़रीब 20.5 अरब डॉलर की पूंजी का अभाव है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों में ज़्यादा मुनाफ़ा- 19 फ़ीसद की तुलना में 31 प्रतिशत- होने के बाद भी उनके क़र्ज़ मांगने के ख़ारिज होने का अनुपात कहीं ज़्यादा यानी- पुरुषों के 8 प्रतिशत की तुलना में 19 फ़ीसद है और वो सूक्ष्म, छटे और मध्यम उद्योगों (MSMEs) को सरकारी बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कुल क़र्ज़ का केवल 5 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर पाती हैं.

पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों में ज़्यादा मुनाफ़ा- 19 फ़ीसद की तुलना में 31 प्रतिशत- होने के बाद भी उनके क़र्ज़ मांगने के ख़ारिज होने का अनुपात कहीं ज़्यादा यानी- पुरुषों के 8 प्रतिशत की तुलना में 19 फ़ीसद है और वो सूक्ष्म, छटे और मध्यम उद्योगों (MSMEs) को सरकारी बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कुल क़र्ज़ का केवल 5 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर पाती हैं.

कोविड-19 के दौरान ये वित्तीय फ़ासला और बढ़ गया है, क्योंकि महामारी का असर उसी क्षेत्र के उद्यमों पर ज़्यादा हुआ है, जहां पर महिलाओं की भागीदारी ज़्यादा है. जैसे कि कपड़ा उद्योग, खुदरा व्यापार, खाद्य प्रसंस्करण और मेहमाननवाज़ी के सेक्टर. जुलाई 2020 में हुए एक सर्वे में बताया गया था कि महिलाओं की अगुवाई वाले 88 प्रतिशत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों ने अपनी निजी बचत से कारोबार में पूंजी की ज़रूरत की भरपाई की थी.

निकोरे एसोसिएट्स द्वारा अगस्त 2020 से दिसंबर 2021 के दौरान निकोरे एसोसिएट्स द्वारा किए गए सलाह-मशविरे में पता चला था कि अपने MSMEs चलाने वाली गिनी चुनी महिलाओं को ये जानकारी थी कि उनके सेक्टर को सरकार से मदद मिलती है, और उन्हें इस संकट से उबरने के लिए औपचारिक वित्तीय संगठनों से मामूली मदद ही हासिल हो सकी थी. फिर चाहे वो सूक्ष्म स्तर पर जूट बनाने वाली पश्चिम बंगाल की महिलाएं हों या आंध्र प्रदेश की टेक्सटाइल और फूड प्रॉसेसिंग सेक्टर में काम कर रही महिला उद्यमी. यहां तक कि स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को भी महामारी के दौरान कारोबार चलाने के लिए पूंजी हासिल करने की चुनौती का सामना करना पड़ा और उन्हें निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से सस्ती दरों पर क़र्ज़ हासिल नहीं हो सका.

लिंग पर आधारित ये डिजिटल फ़ासला, महिला उद्यमियों को औपचारिक क्षेत्र या सरकारी मदद वाली व्यवस्था से वित्त हासिल करने से और भी दूर कर देता है. भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मोबाइल फ़ोन रखने की संभावना 15 प्रतिशत कम होती है और पुरुषों की तुलना में मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल तो 33 प्रतिशत कम महिलाएं करती हैं. अगर महिलाओं को आपस में शेयर किए जाने वाले मोबाइल पर ये सुविधा दे भी दी जाती है, तो उनके इस्तेमाल पर पुरुष रिश्तेदार बारीक़ी से नज़र रखते हैं. ऐसे में महिलाओं के लिए उस उपकरण का इस्तेमाल करना सीखना और कारोबार में उसकी मदद ले पाना और मुश्किल हो जाता है.

भारत की महिला उद्यमियों के बीच डिजिटल संसाधनों को अपनाने- ख़ास तौर से डिजिटल उपकरणों, डिजिटल भुगतान, डिजिटल मार्केटिंग और डिजिटल मार्केट में अपने उत्पाद बेच पाने का स्तर बहुत कम है.

भारत की महिला उद्यमियों के बीच डिजिटल संसाधनों को अपनाने- ख़ास तौर से डिजिटल उपकरणों, डिजिटल भुगतान, डिजिटल मार्केटिंग और डिजिटल मार्केट में अपने उत्पाद बेच पाने का स्तर बहुत कम है. महिलाओं के नेतृत्व वाले लगभग 98 फ़ीसद उद्योगों वाले खातों को चलाने के लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है और महज़ दो फ़ीसद महिला उद्यमी इंटरनेट सुविधाओं का इस्तेमाल करती हैं. सलाह मशविरे के दौरान कई महिला कारोबारियों ने बताया कि वो व्हाट्सऐप का इस्तेमाल मनोरंज़न के लिए तो करती हैं, लेकिन उन्होंने इसका कारोबार में इस्तेमाल करने के बारे में कभी नहीं सोचा.

ऐसे मंज़र में जब डिजिटल माध्यमों से क़र्ज़ लेने-देने, ख़ास तौर से छोटे और मध्यम उद्योगों को फिनटेक प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए लोन देने के अवसर, महिलाओं की अगुवाई वाले कारोबार की क़र्ज़ की ज़रूरत पूरी करने का एक बड़ा अवसर मुहैया कराते हैं. मनीटैप, फ्लेक्सीलोन्स, नियोग्रोथ, और स्टेट बैंक के ई-स्मार्ट SME ने ऐसे कई ऑनलाइन मार्केटप्लेस और कारोबारियों के बीच आपस में क़र्ज़ के लेन-देन के मंच विकसित कर लिए हैं, जो छोटे छोटे क़र्ज़ देते हैं. क़र्ज़ देने के ये छोटे छोटे माध्यम आम तौर पर ऐसे MSMEs को भी क़र्ज़ दे रहे हैं, जिनके पास क़र्ज़ लेकर कारोबार चलाने का लंबा इतिहास नहीं है, या फिर उनके बारे में क़र्ज़ के प्रबंधन का कोई लेखा-जोखा भी मौजूद नहीं है. फिर भी उनके कारोबार की मात्रा और विविधता को देखते हुए उन्हें इन माध्यमों से छोटे पैमाने पर क़र्ज़ दिया जा रहा है, जो महिला उद्यमियों के लिए भी अच्छा मौक़ा निकाल सकते हैं.

सरकार के कई हालिया प्रयासों को अगर हम वित्तीय सेवाओं के उद्योगों की पहल से जोड़कर देखें, तो इससे भारत अन्य देशों की तुलना में काफ़ी बेहतर स्थिति में है कि वो फिनटेक के ज़रिए पूंजी उपलब्धता की लैंगिक असमानता को दूर कर सके. 2014 में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के बैंक खाते होने की संभावना 20 प्रतिशत ज़्यादा होती थी. हालांकि, प्रधानमंत्री जन धन योजना के चलते 2017 में पुरुषों और महिलाओं के बीच बैंक खातों का ये फ़ासला घटकर महज़ 6 प्रतिशत रह गया. महिलाओं द्वारा स्थापित की गई वित्तीय तकनीक कंपनियों के मामले में भारत, दुनिया में चौथी पायदान पर है. भारत की कुल फिनटेक कंपनियों में से लगभग बीस प्रतिशत में महिला CEO या संस्थापक हैं. उल्लेखनीय बात ये है कि डिजिटल संसाधनों तक पहुंच वाले लोगों के बीच, फिनटेक के इस्तेमाल में लैंगिक असमानता, दुनिया भर में भारत में सबसे कम है. भारत में डिजिटल संसाधनों से जुड़ी महिलाएं, पुरुषों की तुलना में वित्तीय तकनीक का अधिक इस्तेमाल करती हैं.

अगर हम क़र्ज़ देने वाले 12 डिजिटल  संस्थानों के लोन बांटने के आंकड़े देखें, तो पता ये चलता है कि इसका पलड़ा युवा पुरुष ग्रेजुएट की ओर झुका हुआ है और लोन लेने वालों में केवल 10 प्रतिशत (मार्च 2022 तक) महिलाएं थीं. इन ऐप्स का इस्तेमाल करने के लिए एक स्तर की अंग्रेज़ी आनी चाहिए और डिजिटल उपकरण के इस्तेमाल में बहुत आसानी होनी चाहिए. मौजूदा लैंगिक असमानता को देखते हुए, ये बातें महिला उद्यमियों की राह में रोड़ा बन जाती हैं. 

इसके बावजूद, अगर हम क़र्ज़ देने वाले 12 डिजिटल  संस्थानों के लोन बांटने के आंकड़े देखें, तो पता ये चलता है कि इसका पलड़ा युवा पुरुष ग्रेजुएट की ओर झुका हुआ है और लोन लेने वालों में केवल 10 प्रतिशत (मार्च 2022 तक) महिलाएं थीं. इन ऐप्स का इस्तेमाल करने के लिए एक स्तर की अंग्रेज़ी आनी चाहिए और डिजिटल उपकरण के इस्तेमाल में बहुत आसानी होनी चाहिए. मौजूदा लैंगिक असमानता को देखते हुए, ये बातें महिला उद्यमियों की राह में रोड़ा बन जाती हैं. इसके अलावा वित्तीय तकनीक वाले क़र्ज़दाताओं के लिए भी महिलाओं की अगुवाई वाले कारोबारों को आकर्षित करना चुनौती भरा होता है, क्योंकि महिलाओं के मालिकाना हक़ वाले लगभग 99 फ़ीसद MSMEs, सूक्ष्म और असंगठित क्षेत्र के हैं और इनमें से लगभग आधे कारोबार ग्रामीण क्षेत्रों में है. इस वजह से उनके बीच डिजिटल प्लेटफॉर्म से क़र्ज़ हासिल करने की जानकारी का भी अभाव रहता है.

क्या किया जाना चाहिए

आगे चलकर अगर महिलाओं की अगुवाई वाले उद्यमों के लिए अगर फिनटेक SME कर्ज़दाताओं के रूप में सामने खड़े अवसरों का लाभ उठाना आसान बनाना है, तो सरकारों और वित्तीय तकनीक के संस्थानों को मिलकर काम करना होगा, तभी जाकर भारत को फिनटेक के मामले में दुनिया भर में लैंगिक समावेशी देशों का अगुवा बनाने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.

सरकारों को चाहिए कि वो पुरुषों और महिलाओं के बीच के डिजिटल फासले को पाटने की पुरज़ोर कोशिश करें. केंद्र सरकार इसके लिए अपनी पूंजी से चलने वाली PMGDISHA योजना का दायरा बढ़ा सकती है और इसमें लैंगिक लक्ष्यों को शामिल किया जा सकता है. राज्यों की सरकारें भी इसकी पूरक योजनाएं बना सकती हैं, जिससे महिलाओं और लड़कियों की डिजिटल साक्षरता को बढ़ाया जा सके. छोटे कारोबारियों के बीच डिजिटल उपाय अपनाने को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था किया जा सकता है. इसके लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत, महिलाओं की अगुवाई वाले स्वयं सहायता समूहों (SHG) को प्रशिक्षण दिया जा सकता है.

पूरे देश में डिजिटल सेवा के भरोसेमंद मूलभूत ढांचे की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए चलाई जा रही सरकारी योजनाएं जैसे कि भारतनेट और पीएम वाणी का दायरा बढ़ाने की ज़रूरत है, जिससे डिजिटल संसाधनों तक पहुंच की राह की मुश्किलें दूर हो सकें. डिजिटल मूलभूत ढांचे के विस्तार और इसे आम लोगों तक पहुंचाने के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की साझेदारी का भी विकल्प चुना जा सकता है. इससे वाई-फाई सेवा की उपलब्धता बढ़ाई जा सकेगी.

सरकारों को चाहिए कि वो पुरुषों और महिलाओं के बीच के डिजिटल फासले को पाटने की पुरज़ोर कोशिश करें. केंद्र सरकार इसके लिए अपनी पूंजी से चलने वाली PMGDISHA योजना का दायरा बढ़ा सकती है और इसमें लैंगिक लक्ष्यों को शामिल किया जा सकता है.

भारत सरकार और गुजरात ने मिलकर गांधीनगर के गिफ्ट सिटी में इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज़ सेंटर (IFSC) के रूप में वित्तीय तकनीक के एक विश्व स्तरीय केंद्र के विकास में मदद दी है. इस केंद्र में निवेश कर रही फिनटेक कंपनियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें मदद भी दी जानी चाहिए कि वो अपने कामकाजी लोगों में महिलाओं की तादाद और बढ़ाएं. फिर ऐसे मॉडल को भविष्य में विकसित किए जाने वाले फिनटेक केंद्रों में भी अपनाया जा सकता है.

दुनिया भर में किए गए अध्ययन बताते हैं कि फिनटेक कंपनियों के लिए महिला ग्राहक, बड़े पैमाने पर और ज़्यादा मुनाफ़ेवाली साबित होती हैं. उनके क़र्ज़ भुगतान की दर ज़्यादा होती है. वो अपने साथ साथ दूसरे ग्राहकों को भी फिनटेक कंपनियों से जोड़ती हैं और एक भरोसेमंद ग्राहक साबित होती हैं. 

भारत की फिनटेक कंपनियों को ये स्वीकार करना होगा कि महिला उद्यमियों में निवेश करने में उनका ही फ़ायदा है. दुनिया भर में किए गए अध्ययन बताते हैं कि फिनटेक कंपनियों के लिए महिला ग्राहक, बड़े पैमाने पर और ज़्यादा मुनाफ़ेवाली साबित होती हैं. उनके क़र्ज़ भुगतान की दर ज़्यादा होती है. वो अपने साथ साथ दूसरे ग्राहकों को भी फिनटेक कंपनियों से जोड़ती हैं और एक भरोसेमंद ग्राहक साबित होती हैं. हालांकि निकोरे एसोसिएट्स द्वारा की गई बातचीत में ये देखने को मिला है कि महिलाओं की अगुवाई वाले कारोबार, ख़ास तौर से डिजिटल संसाधनों का कम उपयोग करने वालों पर क़र्ज़ देने वाली ऑनलाइन कंपनियां विश्वास ही नहीं करती हैं. ऐसी परिस्थिति में फिनटेक कंपनियां कई ऐसे उपाय कर सकती हैं, जिससे वो महिला उद्यमियों को आकर्षित कर सकें. जैसे कि: 

  1.  कम ब्याज दरें महिला उद्यमियों के बीच क़र्ज़ को बढ़ावा देने के लिए ख़ास प्रोत्साहन वाली योजनाएं शुरू की जा सकती हैं. इसमें अन्नपूर्णा फाइनेंस द्वारा महिला उद्यमियों को कम ब्याज दर पर समूह में क़र्ज देने, अन्य शर्तों के बग़ैर क़र्ज़ देने और फ्लेक्सीलोनलेंडिंगकार्ट द्वारा फुर्ती से क़र्ज़ देने जैसी मिसालें शामिल हैं.
  2.  जोखिम के मूल्यांकन की वैकल्पिक व्यवस्थाएं, जैसे कि महिला उद्यमियों के क़र्ज़ लेने की क्षमता का आकलन करने के लिए प्रॉक्सी डेटा और सूचकांक का इस्तेमाल करना. कालेइडोफिन और आएफिनांस जैसी फिनटेक कंपनियां पहले ही ये काम कर रही हैं. महिलाओं की अगुवाई वाली फिनटेक कंपनी टाला ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करती है, जिससे हर ग्राहक के फोन से 10 हज़ार डेटा प्वाइंट इकट्ठे किए जाते हैं. इनमें वित्तीय लेन देन से लेकर जीपीएस के ज़रिए आवाजाही का हिसाब रखना शामिल है. इससे हर व्यक्ति के लिए ख़ास क्रेडिट स्कोर तैयार किया जाता है.
  3.  क़र्ज़ देने की अर्ज़ी देने में मदद करना जहां पर महिला उद्यमी ये समझ सकें कि आख़िर वो अपने क़र्ज़ लेने की अर्ज़ी को कैसे बेहतर बना सकती हैं. जैसे कि सिर्फ़ महिलाओं वाली फिनटेक कंपनी महिला मनी द्वारा स्थापित किया गया डिजिटल समुदाय. इसके तहत वो अपने समुदाय के लोगों के लिए वित्तीय विशेषज्ञों से बातचीत के ख़ास सत्र आयोजित करके सीखने का मौक़ा देती है.
  4.  लैंगिक रूप से अलग अलग डेटा इकट्ठा करना और पुरुषों व महिलाओं की अलग अलग ज़रूरतों को समझकर, ख़ास तौर से महिला उद्यमियों के लिए उत्पाद तैयार करना.
  5.  ख़ास सेक्टर के लिए क़र्ज़ के उत्पाद तैयार करना. कंपनियों को चाहिए कि वो SME सेक्टर के लिए एक ही तरह के क़र्ज़ ऑफ़र करने के बजाय उन्हें अलग अलग वर्गों में बांटकर उनकी ज़रूरतों के हिसाब से क़र्ज़ की व्यवस्था करनी चाहिए. ऐसे उत्पाद तैयार करने चाहिए जो ख़ास तौर से महिलाओं की अगुवाई वाले उद्यमों के लिए हों. मिसाल के तौर पर आयफाइनेंस, इंडस्ट्री क्लस्टर एनैबलमेंट का तरीक़ा अपनाता है जिससे किसी ख़ास सेक्टर के भीतर के हालात और उसकी ज़रूरतों का पता चलता है. इससे कंपनी को अपने क़र्ज़ लेने वाले ग्राहकों के बारे में भी जानकारी मिलती है.

फिनटेक उद्योग में ज़बरदस्त तरक़्क़ी होने वाली है और अन्य उद्योगों से इतर, इसके लैंगिक रूप से समावेशी होने की संभावना ज़्यादा है. राजनीतिक इच्छाशक्ति और कॉरपोरेट द्वारा ज़रूरी क़दम उठाने से फिनटेक कंपनियों द्वारा दिए जाने वाले क़र्ज़ में इज़ाफ़ा किया जा सकता है. फिर इसे महिला उदयमियों के लिए भी उपयोगी बनाया जा सकता है.

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Authors

Areen Deshmukh

Areen Deshmukh

Areen Deshmukh is a Research Associate at Nikore Associates. She holds an undergraduate degree in Economics from Lady Shri Ram College for Women University of ...

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Mitali Nikore

Mitali Nikore

Mitali Nikore is an experienced infrastructure and industrial development economist and founder of Nikore Associates a youth-led policy design and economics think tank

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