Published on Nov 07, 2023 Updated 0 Hours ago

भविष्य सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर आधारित माप की पद्धतियों को मिलाने में है जो विश्वसनीय तरीके से और कम लागत में डेटा माप कर मुहैया करा सके. माप और एकीकरण के इन साधनों को विशेष क्षेत्रों के मुताबिक तैयार करने की आवश्यकता हो सकती है 

उभरते बाज़ारों के लिए तकनीक से प्रेरित जलवायु समाधानों को आसान बनाना

1.भारत में जलवायु के लिए सकारात्मक तकनीकों की गुंजाइश

ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. 2021 में भारत में 3.9 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड (GtCO₂e) का उत्सर्जन हुआ जो कि दुनिया में कुल उत्सर्जन का लगभग 7 प्रतिशत है. भारत में होने वाले उत्सर्जन में एक बड़ा योगदान (लगभग 50 प्रतिशत) कोयला जलाने का है जबकि उत्सर्जन का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत कृषि और ज़मीन की जुताई है. वैसे तो जलवायु परिवर्तन पर पूरी दुनिया का ध्यान है लेकिन हमारा मानना है कि भारत जैसी अर्थव्यवस्था के लिए जलवायु से जुड़े समाधान अभी भी शुरुआती दौर में हैं और अगले दशक में इसमें काफी तेज़ी आएगी. एक वेंचर कैपिटल कंपनी के रूप में अंकुर कैपिटल एक दशक से जलवायु में निवेश कर रही है. हमने भारत में असरदार स्थानीय समाधानों को उभरते देखा है और हम ये लगातार मान रहे हैं कि अगले दशक में इनकी मात्रा कई गुना बढ़ जाएगी.

वेंचर कैपिटल कंपनी के रूप में अंकुर कैपिटल एक दशक से जलवायु में निवेश कर रही है. हमने भारत में असरदार स्थानीय समाधानों को उभरते देखा है और हम ये लगातार मान रहे हैं कि अगले दशक में इनकी मात्रा कई गुना बढ़ जाएगी.

2.शुरुआती चरण में कायापलट करने वाले साधनों का निर्माण

2070 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य को हासिल करने के लिए परिवर्तनकारी तकनीकों की ज़रूरत होगी ताकि जलवायु के हिसाब से सकारात्मक बदलाव को प्रभावी ढंग से प्रेरित किया जा सके. जलवायु के मामले में राहत, अनुकूलन, माप और रिपोर्टिंग को आसान बनाने के लिए इन साधनों की आवश्यकता है. यहां हम चार प्रमुख निवेश के अवसर देखते हैं- i) ऐसी जलवायु तकनीकें जो राहत के लिए कार्बन की अधिकता वाली औद्योगिक प्रक्रिया की जगह ले सकें; ii) सप्लाई चेन को कम कार्बन फुटप्रिंट के अनुकूल बनाने के लिए डिजिटल तकनीकें; iii) अकाउंटिंग के उद्देश्य से कार्बन और उससे संबंधित डेटा को कैप्चर करने के लिए टूल; और iv) जलवायु अनुकूलन के लिए डिजिटल तकनीकें एवं समाधान.

i) जीवाश्म ईंधन पर निर्भर औद्योगिक प्रक्रिया की जगह लेने के लिए जलवायु तकनीकें

कार्बन उत्सर्जन को कम करने का सबसे सीधा और विघटनकारी (डिसरप्टिव) तरीका है मौजूदा औद्योगिक प्रक्रियाओं और तकनीकों की जगह इनोवेटिव हरित तकनीकों का सहारा लेना. इसका एक सबसे सफल और ऊंचाई छूने वाला उदाहरण है इलेक्ट्रिक गाड़ियां (EV) जो कि इंटरनल कम्बशन इंजन (ICE) की जगह ले रही हैं. अनुमानों के मुताबिक EV अपने जीवनकाल  के दौरान जीवाश्म ईंधन से चलने वाली गाड़ियों की तुलना में 50 प्रतिशत से भी कम ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन करेंगी. ये उत्सर्जन और भी कम किया जा सकता है अगर उत्पादन की प्रक्रिया में नवीकरणीय (रिन्यूएबल) ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ा दिया जाए. हमारी पोर्टफोलियो कंपनी (जिसमें अंकुर कैपिटल का हिस्सा है) ऑफग्रिड एनर्जी लैब्स सतत और रिसाइक्लेबल (पुनर्चक्रण योग्य) सामग्रियों का उपयोग करके एक ज़िंक-जेल बैटरी (लीड एसिड और लिथियम आयन- दोनों के विकल्प के रूप में) को विकसित कर रही है. ये कंपनी क्लीन बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम और लो कार्बन मोबिलिटी- दोनों ही क्षेत्रों में योगदान देती है. एशिया और अफ्रीका की अलग-अलग विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में थ्री-व्हीलर गाड़ियों, जिनमें पारंपरिक रूप से टू-स्ट्रोक डीज़ल इंजन का उपयोग होता है और जो बहुत ज़्यादा कार्बन का उत्सर्जन करती हैं, को कम लागत पर सफलतापूर्वक ज़िंक-जेल बैटरियों में तब्दील किया जा सकता है.

एशिया और अफ्रीका की अलग-अलग विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में थ्री-व्हीलर गाड़ियों, जिनमें पारंपरिक रूप से टू-स्ट्रोक डीज़ल इंजन का उपयोग होता है और जो बहुत ज़्यादा कार्बन का उत्सर्जन करती हैं.

विघटनकारी जलवायु सकारात्मक तकनीकें कृषि और खाद्य उत्पादन की प्रणालियों के परिदृश्य को भी बदल रही हैं. दुनिया में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में इनका योगदान करीब 26 प्रतिशत है. कृषि में इस्तेमाल उर्वरक, कीटनाशक और बीज- सभी हरित विकल्पों के पक्ष में तेज़ विघटनकारी इनोवेशन का अनुभव कर रहे हैं. मिसाल के तौर पर, हमारी पोर्टफोलियो कंपनी स्ट्रिंग बायो मीथेन को खाद्य, चारा और खेती की चीज़ों में इस्तेमाल होने वाले प्रोटीन में बदल रही है. कंपनी ने इस मक़सद के लिए एक अनूठा सिंथेटिक बायोलॉजी पर आधारित माइक्रोबियल (सूक्ष्मजीव) प्लैटफॉर्म विकसित किया है. कंपनी की बायोस्टिमुलेंट (बीज, पौधों और मिट्टी में इस्तेमाल होने वाला प्राकृतिक या कृत्रिम पदार्थ) क्लीन राइज़®  धान से मीथेन उत्सर्जन में 60 प्रतिशत तक की कमी करते हुए धान की उपज में 30-40 प्रतिशत का सुधार करती है. वैश्विक स्तर पर मीथेन के उत्सर्जन में धान की खेती 12 प्रतिशत का योगदान करती है. मीथेन एक ग्रीन हाउस गैस है जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 25 गुना ज़्यादा घातक है.

इसके अलावा खाद्य उत्पादन से होने वाले ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में पशुपालन का उपयोग करके तैयार होने वाले मांस के उत्पादन का हिस्सा लगभग 60 प्रतिशत है. लेकिन नए आविष्कार औद्योगिक पशुधन कृषि के पारंपरिक स्वरूप की जगह ले रहे हैं. इसका एक उदाहरण कल्टीवेटेड मांस उद्योग है जहां बड़े लैब फर्मेंटर में पशु कोशिकाओं को विकसित करके मांस का उत्पादन किया जाता है. ये उद्योग असली मांस के पोषक तत्वों के साथ-साथ उसके स्वाद की भी नकल कर सकता है. हमारी पोर्टफोलियो कंपनी मायोवर्क्स माइसीलियम (कवक धागों का एक नेटवर्क) आधारित प्लेटफॉर्म  विकसित कर रही है जो असली मांस की बहुकोशिकीय संरचना (मल्टीसेल्यूलर  आर्किटेक्चर) की नकल करके कल्टीवेटेड मीट प्रोडक्ट को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है. कल्टीवेटेड मीट प्रोडक्ट ग्रीन हाउस गैस में कमी लाते हुए ज़मीन और पानी के उपयोग में 90 प्रतिशत से अधिक कमी ला सकते हैं.

CRISPR (DNA और जीनोम सिक्वेंसिंग टेक्नोलॉजी) के साथ कंप्यूटेशनल दृष्टिकोण हमें अलग ढंग से खाद्य उत्पादन के लिए सक्षम बना रहा है. इसके लिए वो फसल के भीतर वांछनीय गुणों की मौजूदगी को आसान बनाता है ताकि ज़्यादा उपज मिल सके. हमारी एक और पोर्टफोलियो कंपनी टेसोल ने कोल्ड चैन  सप्लाई सिस्टम के टिकाऊ विकल्प के रूप में एक रिसाइक्लेबल फेज़ चेंज मटेरियल  (PCM) विकसित किया है. इस तरह कंपनी 1 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम करने में सफल रही है.

इस तरह की कई विघटनकारी तकनीकों के लिए सबसे रोमांचक बात ये है कि इनका निर्माण भारत में हुआ है और ये व्यापक रूप से वैश्विक बाज़ारों को अपना लक्ष्य बनाती हैं. भारत जैसे विकासशील देशों में कार्बन उत्सर्जन की समस्या से निपटने वाले विघटनकारी साधनों को विकसित करना बड़े पैमाने पर जलवायु राहत की दिशा में महत्वपूर्ण है.

ii) सप्लाई चेन को औपचारिक बनाने और नुकसान कम करने के लिए डिजिटल तकनीकें

दिलचस्प बात ये है कि मैकेंज़ी की एक रिपोर्ट के अनुसार बड़ी कंपनियों के द्वारा कुल कार्बन उत्सर्जन का 80 प्रतिशत हिस्सा कच्चे माल और उनकी सप्लाई चेन से आता है जिसे स्कोप 3 उत्सर्जन के नाम से जाना जाता है. ये सभी उद्योगों जैसे कि कृषि, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैन्युफैक्चरिंग के लिए है. भारत जैसे बंटे हुए बाज़ार में, जहां उत्पादन का वितरण है, हम मानते हैं कि कार्बन फुटप्रिंट के निपटारे और कार्बन से जुड़े फैसलों को आगे बढ़ाने में तकनीक महत्वपूर्ण होगी, ख़ास तौर पर स्कोप 3 उत्सर्जन के केंद्र में आने के साथ. एक शक्तिशाली, डिजिटल रूप से सक्षम, कम कार्बन वाली सप्लाई चेन बर्बादी को कम कर सकती है, उत्पादन की प्रक्रियाओं की निगरानी कर सकती है और लॉजिस्टिक में कमियों का सबसे अनुकूल इस्तेमाल कर सकती है.

भारत जैसे विकासशील देशों में कार्बन उत्सर्जन की समस्या से निपटने वाले विघटनकारी साधनों को विकसित करना बड़े पैमाने पर जलवायु राहत की दिशा में महत्वपूर्ण है.

डिजिटल टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म  ख़रीदारों को टिकाऊ और जलवायु के मामले में सकारात्मक उत्पादों तक सीधी पारदर्शी पहुंच भी मुहैया करा सकते हैं. इसका एक उदाहरण कृषि उद्योग है जहां डिजिटल समाधान का उपयोग उत्पादन की प्रक्रिया की निगरानी, लॉजिस्टिक के अनुकूलन और बर्बादी को सीमित करने में किया जा रहा है. इसके अलावा खाद्य पदार्थों की बर्बादी 8-10 प्रतिशत सालाना ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के साथ जुड़ी है. हमारी पोर्टफोलियो कंपनी कैप्टन फ्रेश एंड वेग्रो ख़राब होने वाले सामानों की मांग एवं आपूर्ति को एक समान करने, खाद्य पदार्थों की बर्बादी 30 प्रतिशत से कम करके एक अंक में करने के लिए डिजिटल तकनीक का लाभ उठा रही है. इसके अलावा बिगहाट जैसी कंपनियां अपने डिजिटल प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल ख़रीदारों को टिकाऊ फसलों के साथ जोड़ने, ग्राहकों को धरती के अनुकूल विकल्प चुनने में सक्षम बनाने के लिए कर रही है.

iii) कार्बन उत्सर्जन और उसके असर को मापने के लिए डेटा कलेक्शन और विश्लेषण

हमारा पुराना अकाउंटिंग सिस्टम बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के साथ जुड़ी लागतों का वहन करने के लिए सही तरीके से तैयार नहीं है. जैसे-जैसे हम एक अधिक सतत भविष्य की तरफ बदलाव कर रहे हैं, इसे बदलना होगा. वैश्विक कार्बन अकाउंटिंग बाज़ार की कीमत 12 अरब अमेरिकी डॉलर है और उम्मीद की जा रही है कि ये 2030 तक 65 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच जाएगी. चूंकि रेगुलेटर माप का दायरा और मानक स्थापित कर रहे हैं, ऐसे में ये महत्वपूर्ण है कि संगठनों को ऐसे साधन और समाधान मुहैया कराया जाए जिनसे वो रिपोर्टिंग की ज़रूरतों का पालन कर सकें. वर्तमान में सलाहकार कार्बन क्रेडिट के प्रबंधन और ऑडिट के लिए पारंपरिक संसाधन से भरपूर पद्धतियों पर भरोसा करते हैं. हालांकि, हमारा मानना है कि भविष्य सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर आधारित माप की पद्धतियों को मिलाने में है जो विश्वसनीय तरीके से और कम लागत में डेटा माप कर मुहैया करा सके. माप और एकीकरण के इन साधनों को विशेष क्षेत्रों के मुताबिक तैयार करने की आवश्यकता हो सकती है ताकि उनकी अनूठी ज़रूरतों को पूरा किया जा सके.

हमारे निवेशकर्ताओं में से एक क्रॉपिन इस क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी का एक उदाहरण है. ये कंपनी कृषि उत्पादन फुटप्रिंट को दिखाने, किसानों की मदद करने और संगठनों को पर्यावरण पर उनके असर को समझाने के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल करती है. चूंकि कार्बन डिसक्लोज़र को लागू करने पर रेगुलेशन अधिक व्यापक बन गया है तो हमें उम्मीद है कि माप और एकीकरण के ये साधन रिपोर्टिंग सिस्टम के साथ और ज़्यादा जुड़ जाएंगे. ये एकीकरण पर्यावरण के डेटा की ज़्यादा सटीक और कुशल निगरानी को आसान बनाएगा और इससे संगठन अपने कार्बन फुटप्रिंट को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे और उसका निपटारा कर पाएंगे.

iv) जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और उसके अनुसार ढलने के लिए तकनीकी और वित्तीय समर्थन

वैसे तो ऊपर बताए गए समाधान जलवायु के मामले में राहत के हिसाब से तैयार किए गए हैं लेकिन जलवायु संकट का मुकाबला करने के लिए अनुकूलन और लचीलापन- दोनों निकट भविष्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे. हमारी एक और पोर्टफोलियो कंपनी IBISA नेटवर्क जलवायु नेटवर्क के ख़राब असर जैसे कि सूखा या बहुत अधिक बारिश के ख़िलाफ़ पैरामीटर के मामले में इनोवेटिव बीमा समाधान मुहैया कराने के लिए कृषि वैल्यू चेन में काम कर रही है. वैश्विक खाद्य आपूर्ति में 70 प्रतिशत तक फसल छोटी जोत वाले किसान उपजाते हैं जो कि भारत में कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों में कुल श्रम बल (वर्कफोर्स) में 85 प्रतिशत हैं. जलवायु परिवर्तन की रफ्तार बढ़ने के साथ ज़्यादातर छोटी जोत वाले किसान फसलों को नुकसान पहुंचाने वाली अप्रत्याशित जलवायु परिस्थितियों के हिसाब से असुरक्षित हैं. IBISA मौजूदा बीमा की पेशकश और किसानों की आवश्यकता की तुलना में बीमा की लागत और प्रीमियम का भुगतान करने की क्षमता के बीच बड़े अंतर का समाधान करने के लिए जलवायु से जुड़े डेटा का उपयोग करके बीमा उत्पाद विकसित कर रही है.

फसलों के अलावा IBISA पशुधन के नुकसान के लिए भी बीमा उत्पाद विकसित कर रही है. कंपनी ने एक इनोवेटिव हीट इंडेक्स आधारित बीमा उत्पाद विकसित किया है जो गर्मी में मवेशियों के दूध देने की क्षमता में कमी के नुकसान से बचाएगी. ये सैटेलाइट आधारित सिस्टम का इस्तेमाल तापमान से जुड़े पैरामीटर को मापने में करती है और अगर तापमान पहले से निर्धारित सीमा के पार जाता है तो पैसे का भुगतान करती है. इसी तरह, एक और पोर्टफोलियो कंपनी पियाट्रिका बायोसिस्टम्स खेतों से जीनोमिक और फेनोटाइपिक (किसी सजीव पदार्थ के भौतिक गुण) डेटा का उपयोग करके एक इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म  विकसित कर रही है ताकि जलवायु-प्रतिरोधी बीज की वैरायटी  के विकास को तेज़ किया जा सके. कंपनी नई बीज के विकास की समय सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक कम कर सकती है.

कार्बन क्रेडिट के ज़रिए मुआवज़े की व्यवस्था एक तरीका है लेकिन हमारा ये भी मानना है कि अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और आमदनी को बढ़ाने के लिए किसानों के पास साधन होने की आवश्यकता है.

III. प्रमुख भागीदारों के लिए सिफारिशें

भारत एक अनूठा देश है जो विघटनकारी विकास और बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के असर के बीच तालमेल बिठा रहा है. विकास टिकाऊ और हरित हो सकता है लेकिन ये संभव करने के लिए हमें इकोसिस्टम के सभी भागीदारों की हिस्सेदारी की आवश्यकता होगी. उदाहरण के लिए, हमें सरकार की तरफ से अनुकूल नीतियां बनाकर, R&D फंडिंग एवं अनुदान के रूप में इनोवेशन का समर्थन करके और ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए सख्त नियमों को लागू करके हरित समाधानों की तरफ बदलाव के लिए प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है. इसके अलावा, उद्योगों को जलवायु सकारात्मक अवसरों का लाभ उठाने, सक्रिय रूप से हरित समाधानों को अपनाने और तकनीक के ट्रांसफर एवं उसको बढ़ाने के लिए स्टार्टअप्स के साथ काम करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए. अंत में, स्टार्टअप्स को भारत के हिसाब से ख़ास जलवायु समाधानों को विकसित करने के लिए बढ़ावा देना चाहिए जिसे दूसरे उभरते बाज़ारों में भी दोहराया जा सकता है.

IV.निष्कर्ष

अंकुर कैपिटल में हम जलवायु तकनीक पर अपनी शुरुआत के समय से निवेश कर रहे हैं. भारत जैसा बाज़ार ख़ास है- हमें धरती और लोगों के बीच संतुलन बैठाना है. इसकी वजह से ये और भी ज़रूरी हो जाता है कि इस ऊर्जा बदलाव को आसान बनाने के लिए असरदार तकनीकी साधन हों. हम किसी छोटी जोत वाले किसान को ये नहीं कह सकते हैं कि वो जलवायु लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपनी उपज और आमदनी को कम करें . इसके बदले हमें आमदनी और धरती के बीच संतुलन स्थापित करने का रास्ता तलाशने की आवश्यकता है. वैसे तो कार्बन क्रेडिट के ज़रिए मुआवज़े की व्यवस्था एक तरीका है लेकिन हमारा ये भी मानना है कि अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और आमदनी को बढ़ाने के लिए किसानों के पास साधन होने की आवश्यकता है. हमें भरोसा है कि दीर्घकालीन वैल्यू तैयार करने के लिए जलवायु के मामले में भविष्य के अवसरों को संपूर्ण, लोगों के हिसाब से सकारात्मक, सटीक और पारदर्शी होना चाहिए. जो धरती के लिए अच्छा है, वो हमारे लिए भी निवेश के हिसाब से अच्छा मौका है.


रीमा सुब्रमण्यम अंकुर कैपिटल की को-फाउंडर और मैनेजिंग पार्टनर हैं.

सूरज नायर अंकुर कैपिटल की इन्वेस्टमेंट टीम का हिस्सा  हैं.

अंकुर कैपिटल एक शुरुआती चरण की वेंचर कैपिटल कंपनी है जो कि डिजिटल और डीप साइंस टेक्नोलॉजी कंपनियों में निवेश करती है. 2014 में स्थापित अंकुर कैपिटल पूरे भारत के उपेक्षित बाज़ारों में अवसरों को उजागर और खोलने का काम करती है.

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