Expert Speak Raisina Debates
Published on May 20, 2024 Updated 0 Hours ago

बहिष्कार, विनिवेश और प्रतिबंध (बीडीएस) आंदोलन ज़ोर पकड़ता जा रहा है. क्योंकि अब ज़्यादा से ज़्यादा लोग ग़ज़ा में इज़राइल की ओर से की गई कार्रवाई के ख़िलाफ़ अपना विरोध प्रदर्शित करने के लिए इज़राइली उत्पादों का बॉयकॉट करने लगे हैं.

आर्थिक बहिष्कारों का परीक्षण: इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष का मामला!

वर्तमान में चल रहे इज़राइल-फलस्तीन संघर्ष की पृष्ठभूमि में दुनिया भर में बड़ी मात्रा में लोग इज़राइली सरकार की कार्रवाई का विरोध करने लगे हैं. इन लोगों का विरोध करने का तरीका यह है कि वे इज़राइल में किए गए निवेश या इज़राइल से संबंधित या वहां उत्पादित वस्तुओं का बॉयकॉट करने लगे हैं. इन उत्पादों से बचने का आह्वान 2005 में शुरू हुए बॉयकॉट, डाइवेस्टमेंट एंड सैंक्शंस (BDS) अभियान की अगुवाई में किया गया था. इस अपील को अब दुनिया के अनेक एडवोकेसी ग्रुप्स यानी समर्थन करने वाले समूहों ने अपना लिया है. इसके पहले इस तरह के अभियानों को सफ़लता मिलती रही है, लेकिन ताज़ा अभियान ने कुछ अहम सफ़लता हासिल की है. इसकी वज़ह से इज़राइल में निवेश करने वाली कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. इस अभियान का असर आने वाले वर्षों तक पड़ते रहने की भी संभावना है.

 स्टारबक्स के संस्थापक हॉवर्ड शुल्ज़, जो एक जाने माने इज़राइल समर्थक है, की कंपनी ने अपने नतीज़ो में इस बात को माना है कि उनकी बिक्री घटी है और उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा है. इसी तरह की एक ख़बर मलेशिया से भी आ रही है, जहां प्रसिद्ध फास्ट फुड ब्रांड KFC ने मलेशिया की अपनी लगभग 100 शाखाओं को बंद करने की घोषणा की है.

इसका ताज़ा उदाहरण कॉफी क्षेत्र की एक बड़ी कंपनी स्टारबक्स के तीन महीनों के नतीजों को माना जा सकता है. स्टारबक्स के संस्थापक हॉवर्ड शुल्ज़, जो एक जाने माने इज़राइल समर्थक है, की कंपनी ने अपने नतीज़ो में इस बात को माना है कि उनकी बिक्री घटी है और उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा है. इसी तरह की एक ख़बर मलेशिया से भी आ रही है, जहां प्रसिद्ध फास्ट फुड ब्रांड KFC ने मलेशिया की अपनी लगभग 100 शाखाओं को बंद करने की घोषणा की है. (हालांकि बीडीएस अभियान के तहत KFC के बॉयकॉट की अपील नहीं की गई थी. लेकिन इस कंपनी को अमेरिकी साम्राज्यवाद का प्रतीक माना जाता है). इसी प्रकार मेक्डोनाल्ड ने भी अप्रैल 2024 में इज़राइल में अपने सारे आउटलेट्‌स, अपनी इज़राइली सहयोगी कंपनी अलोन्याल से ख़रीद लिए थे, क्योंकि मिडिल ईस्ट में ग्राहकों ने कंपनी के उत्पादों का बहिष्कार कर दिया था. इसका कारण यह था कि मेक्डोनाल्ड ने इज़राइली सेना को मुफ़्त भोजन मुहैया करवाया था.

 

वास्तव में, सात अक्टूबर के बाद से ऐसे एप्स उपलब्ध होने लगे हैं जो विभिन्न उत्पादों के बारकोड्‌स को स्कैन करके ग्राहकों को इन उत्पादों को बनाने वाली कंपनी और इज़राइल के बीच संबंधों की जानकारी दे रहे हैं. हालांकि अभी इसका उपयोग करने वालों का प्रतिशत बेहद कम है, लेकिन इस प्रकार के एप्स ने बड़ी संख्या में लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है. उदाहरण के तौर पर नो थैंक्स एप्स को 1 मिलियन बार डाउनलोड किया जा चुका है, जबकि बॉयकॉट एप्स ने इज़राइल से जुड़ी कंपनियों को लगभग 2.5 मिलियन US$ से वंचित करने में सफ़लता हासिल कर ली है. यह तथ्य साफ़ कि इन सारे उत्पादों का अमेरिका से संबंध है. ये उत्पाद दुनिया भर में उपलब्ध होने की वज़ह से मध्य पूर्व तथा दक्षिण एशिया के ग्राहकों के लिए इन उत्पादों का बॉयकॉट करना आसान हो जाता है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगी कि बीडीएस अभियान ने जोर पकड़ लिया है और इसकी सफ़लता से इस तरह के अन्य अभियानों अथवा सक्रियता को प्रोत्साहन ही मिलेगा.

 

बहिष्कारों के इतिहास और सफ़लता को समझना

 

आधुनिक काल में बहिष्कारों ने महत्वपूर्ण असर डाला है. सबसे प्रसिद्ध बहिष्कार आंदोलन 1960-1990 के बीच हुए एंटी अपार्थेड मूवमेंट यानी रंगभेद विरोधी आंदोलन को माना जा सकता है. इसमें दक्षिण अफ्रीकी ग्राहकों को कुछ चुनिंदा कंपनियों के उत्पाद ख़रीदने से पहले उनके लेबल्स की जांच करने को कहा गया था. कुछ विश्लेषकों के अनुसार इस आंदोलन ने लंबी अवधि में कुछ असर डाला. हालांकि इस आंदोलन के अलावा भी सरकार के ख़िलाफ़ चल रही कुछ अन्य गतिविधियों ने भी इसमें सहायता की थी. इसी तरह Nike को भी 1990 के दौर में अनेक एक्टिविस्ट ग्रुप्स के गुस्से का सामना करना पड़ा था, क्योंकि कंपनी बाल श्रमिकों के साथ जुड़ी हुई थी. बाद में कंपनी ने बाल श्रमिकों संबंधी नीति वापस ले ली थी.

 

इन अभियानों का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने इनकी सफ़लताओं के लिए ज़िम्मेदार अनेक कारणों की ओर ध्यान आकर्षित करवाया है. सबसे पहली बात तो यह है कि यदि ग्राहक को किसी उत्पाद का उपयोग करना त्यागना अथवा छोड़ना है तो इसके लिए उसे एक ठोस कारण की ज़रूरत होती है. यह कारण भी ऐसा होना चाहिए जिसका कोई स्पष्ट विकल्प मौजूद हो. जैसे फास्ट फुड चेन मेक्डोनाल्ड, KFC (हालांकि ये सीधे-सीधे इज़राइल से नहीं जुड़े हैं, लेकिन इन्हें ‘अमेरिकी साम्राज्यवाद’ का प्रतीक समझा जाता है) तथा स्टारबक्स को वर्तमान अभियान से सर्वाधिक नुकसान पहुंचा है. विशेषत: मिडिल ईस्ट अथवा मध्य पूर्वी देशों में जहां पहले से ही इन उत्पादों के अनेक विकल्प मौजूद है. यही कारण है कि गूगल, अमेज़न, और ओरेकल सॉफ्टवर्स (इन सभी को बीडीएस अभियान ने बॉयकॉट के लिए चिन्हित किया है, क्योंकि उसका मानना है कि ये तीनों इज़राइल से जुड़ी हैं) पर ज़्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है. इसका कारण यह है कि इन कंपनियों के विकल्प के रूप में कोई अन्य मुख्य सॉफ्टवेयर/प्लेटफॉर्म उपलब्ध नहीं है, जिसका उपयोग किया जा सके.

 

दूसरे सोशल मीडिया तथा न्यूज़ साइकिल के महत्व पर ज़्यादा दांव भी नहीं लगाया जा सकता कि वे इन बॉयकॉट आंदोलनों को उस भौगोलिक दायरे से बाहर लेकर जाएंगे, जहां इसकी शुरुआत करने वाली घटनाएं हुई थीं. सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स और पब्लिक यूजिंग प्लेटफॉर्म्स जैसे टिकटोक, इंस्टाग्राम और  व्हाट्सएप्स तथा अन्य साधन भी इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष पर चर्चा करने के लिए उपलब्ध हैं. ऐसे में ग्राहकों के लिए विकल्प की ओर देखना आसान हो गया है. इन एप्स के सहयोग की वज़ह से ही यह बात दक्षिणपूर्व एशिया, मध्य पूर्व, पश्चिम समेत अन्य क्षेत्र और सारी दुनिया में पहुंच सकी है. 

 सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स और पब्लिक यूजिंग प्लेटफॉर्म्स जैसे टिकटोक, इंस्टाग्राम और  व्हाट्सएप्स तथा अन्य साधन भी इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष पर चर्चा करने के लिए उपलब्ध हैं. ऐसे में ग्राहकों के लिए विकल्प की ओर देखना आसान हो गया है. इन एप्स के सहयोग की वज़ह से ही यह बात दक्षिणपूर्व एशिया, मध्य पूर्व, पश्चिम समेत अन्य क्षेत्र और सारी दुनिया में पहुंच सकी है. 

तीसरा कारण है कि राजनीतिक आग भी आंदोलन की गति को बनाए रखने में एक अहम भूमिका अदा करती है. यह भी एक तथ्य है कि इज़राइल ने छह महीनें बीत जाने के बाद भी ग़ज़ा के ख़िलाफ़ अपना सैन्य अभियान नहीं रोका है और इसका इस क्षेत्र पर व्यापक भूराजनीतिक परिणाम हो रहा है. इसे देखते हुए दुनिया भर के लोग इस आंदोलन को जिंदा बनाए रखने में सहायता कर रहे है. यही कारण है कि ताज़ा युद्धस्थिति की वज़ह से विश्व में एक्टीविज्म यानी सक्रियतावाद बढ़ा है. इसके अलावा UN के अनेक विशेषज्ञों ने ग़ज़ा के ख़िलाफ़ इज़राइली गतिविधियों को ‘जिनोसाइडल’ यानी ‘नरसंहार’ कहते हुए इस आंदोलन को जारी रखने की ताक़त दी है. 

 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी कार्पोरेट सत्ता का सशक्त बॉयकॉट इसलिए ही काम में नहीं आता कि लोग इस कंपनी के उत्पाद ख़रीदना बंद कर देते है, बल्कि इस बॉयकॉट के कारण कंपनी की प्रतिष्ठा को भी धक्का लगता है. इस वज़ह से इन कंपनियों के निवेशक चिंतित होते है और फिर वे ऐसी कंपनियों से अपना निवेश वापिस ले लेते है. इसके चलते कंपनी के स्टॉक वैल्यूएशन में होने वाली गिरावट के कारण कंपनी को बड़ा नुक़सान उठाना पड़ता है.

 

राजनीतिक बहिष्कारों का भविष्य

 

विद्वान ब्रेडन किंग ने इस बात पर ध्यान आकर्षित  किया था कि एक प्रभावी अथवा एक अप्रभावी  बॉयकॉट इस बात से तय होता है कि इस बॉयकॉट के पीछे कौन सा संगठन खड़ा है. एक ओर जहां स्थानीय स्तर पर होने वाले जड़ से जुड़े आंदोलन, न्यूज़ साइकिल में बदलाव के साथ ही ख़त्म हो जाते है, वहीं एक संगठित प्रयास से आंदोलन की गति को बनाए रखा जा सकता है. यह गति उसी वक़्त बनी रह सकती है जब मुद्दा सार्वजनिक चर्चाओं का हिस्सा बना रहे. इतना ही नहीं, न्यूज़ हेडलाइन्स एक छोटी सी सफ़लता की जानकारी देते हुए लोगों को इसकी ओर आकर्षित कर सकती है. ऐसा होने की स्थिति में यह हेडलाइन आंदोलनकर्ताओं को बड़ी सफ़लता हासिल करने का बिंदु बन सकती है. 

 

पिछले कुछ सप्ताहों में युनाइटेड किंगडम तथा युनाइटेड स्टेट्‌स के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी अपने ही संस्थानों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने लगे है. विद्यार्थियों का प्रदर्शन संस्थानों की ओर से इज़राइल से संबंधित हथियारों वाले देशों में किए गए निवेश के विरोध में है. इस विरोध प्रदर्शन की पश्चिम के न्यूज़ साइकिल में काफ़ी चर्चा हो रही है. इससे यह साबित होता है कि नागरिक अब भी एक्टीविज्म अथवा प्रोटेस्टस्‌ का सहारा लेकर किसी संघर्ष अथवा उसकी राह को प्रभावित करने की कोशिश करते है. 

 चूंकि कोई भी सरकार ग्राहक को उत्पाद विशेष ख़रीदने पर मजबूर नहीं कर सकती, अत: इस प्रकार के आंदोलन को नियंत्रित करने का कोई तरीका नहीं होता. अत: अनेक तरीके से बीडीएस अभियान का भविष्य तथा उसकी सफ़लता इस बात पर निर्भर करेगी कि कितनी जल्दी ग़ज़ा में चल रही युद्ध स्थिति की तीव्रता कम होती है या फिर इसमें तेज़ी आती है.

यह भी तथ्य साफ़ है कि अधिकांश देश के नागरिक अपनी-अपनी सरकार की ओर से इज़राइल को दिए जा रहे समर्थन के ख़िलाफ़ है. ऐसे में ये नागरिक, ग्राहक के रूप में बहिष्कार का उपयोग करते हुए बड़ी आसानी से किसी भी राजनीतिक मुद्दे पर अपनी नाराज़गी प्रकट कर सकते है. चूंकि कोई भी सरकार ग्राहक को उत्पाद विशेष ख़रीदने पर मजबूर नहीं कर सकती, अत: इस प्रकार के आंदोलन को नियंत्रित करने का कोई तरीका नहीं होता. अत: अनेक तरीके से बीडीएस अभियान का भविष्य तथा उसकी सफ़लता इस बात पर निर्भर करेगी कि कितनी जल्दी ग़ज़ा में चल रही युद्ध स्थिति की तीव्रता कम होती है या फिर इसमें तेज़ी आती है. इस क्षेत्र में भले ही फिलहाल संघर्ष चल रहा हो, लेकिन यह अभियान कम समय के लिए ही सही, लेकिन तेज होगा. फिर भले ही यह कमज़ोर पड़ जाए. इतना ही नहीं, BDS अभियान की कोई भी सफ़लता यह तय कर देगी कि विवादास्पद राजनीतिक गतिविधियों अथवा नीतियों का जवाब देने के लिए बॉयकॉट ही एक महत्वपूर्ण साधन साबित होगा. फिर चाहे यह फ़िलिस्तीन का मुद्दा हो अथवा दुनिया के किसी भी कोने का कोई और मुद्दा. 


मोहम्मद सिनान सियेच, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के नॉन-रेजिडेंट एसोसिएट फेलो हैं.

 

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