Published on Mar 29, 2018 Updated 0 Hours ago

अमेरिकन ड्रीम या अमेरिका का सपना कोई सरकारी नीति नहीं है। ये लोगों का अपना जज्बा और विश्वास है जिसने एक अमेरिकी सपने पर बढ़ने की राह बनाई है।

आक्रामक शक्ति के दौर में भी जीत सॉफ़्ट पावर की ही हो रही है

ग्रैंड सेंट्रल स्टेशन, न्यू यॉर्क

सिंगापुर में मेरी पत्रकारिता के दिनों की बात है, सिंगापुर के पूर्व विदेश मंत्री जॉर्ज यो से मेरी मुलाक़ात हुई थी, बातचीत कुछ इस तरह थी, १९वीं सदी में अगर आप दूरदर्शी और अक़लमंद थे तो ब्रिटेन जाने की सोंचते थे क्यूंकि वो ब्रिटेन की सदी थी, औद्योगिक क्रांति की सदी थी, दुसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका में नयी खोज और उद्यामित्ता का दौर रहा। इसलिए बीसवीं सदी में हर बुद्धिमान व्यक्ति से ये उम्मीद की जाती थी की वो अमेरिका जा कर बसेंगे, और फिर मेरे सवाल का सबसे अहम् हिस्सा, मैं ने उनसे पुछा की क्या २१वीं सदी में मुझसे चीन जाने की अपेक्षा रखी जाती।

उन्होंने कहा ये अच्छा सवाल है लेकिन जवाब देने के बजाये जोर्ज यो ने मुझसे पुछा की मैं क्या सोंचता हूँ। मैं ने कहा मुझे नहीं लगता की चीन में बसना कोई विकल्प है, क्यूंकि ग़ैर चीनी भाषियों के लिए वहां कोई ऐसे भविष्य का सपना नहीं जिसे अपना कहा जा सके। कुछ ऐसा नहीं जिसे अमेरिकन ड्रीम के तर्ज़ पर चिनेसे ड्रीम कहा जा सके।

लेकिन अमेरिका में सबके लिए एक अमेरिकन सपना था और आज भी है। कोई भी अमेरिकन हो सकता है। इसे कहते हैं किसी देश का सॉफ्ट पॉवर जिसे हार्वर्ड विद्वान् जोसफ नाई यूँ परिभाषित करते हैं, किसी देश की अपनी संस्कृति के ज़रिये दुसरे देश को प्रभावित करने की जो क्षमता होती है उसे उस देश की नम्र शक्ति या सॉफ्ट पावर कहते हैं, बिना किसी राजनितिक दखल के। फ्लेचर कांफ्रेंस के दौरान मैं ने जोसफ नाई को अमेरिका रूस रिश्तों पर इंटरव्यू किया और उनसे सॉफ्ट पॉवर के बारे में पुछा। नाई ने कहा की इसकी सबसे अच्छी मिसाल है अमेरिकन ड्रीम, हालाँकि McDonalds, MTV, Coca Cola दुनिया भर में विशाल पैमाने पर फैल गए हैं फिर भी दरअसल अमेरिका का सपना ही उसकी असली ताक़त है।

अमेरिकन ड्रीम एक ऐसा फलसफा है, एक आईडिया और विश्वास की हर कोई अपने धर्म, संस्कृति या आस्था के बावजूद अमेरिका आ सकता हैं और अमेरिका की खुशहाली का हिस्सा बन सकता है अगर उनमें ये इच्छा और लगन और मेहनत का जज्बा हो। हो सकता है की बहुतों को लगे की ये ओबामा की २००८ के कैंपेन स्पीच जैसा लग रहा है लेकिन बहुत सारे प्रवासियों को इस अमेरिकी सपने पर अभी भी विश्वास है

अमेरिकन ड्रीम एक ऐसा फलसफा है, एक आईडिया और विश्वास की हर कोई अपने धर्म, संस्कृति या आस्था के बावजूद अमेरिका आ सकता हैं और अमेरिका की खुशहाली का हिस्सा बन सकता है अगर उनमें ये इच्छा और लगन और मेहनत का जज्बा हो।

अमेरिका को प्रवासियों का देश कहा गया है और इस राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार के दौरान बाहर से आकर बसने वालों के खिलाफ राजनीतिक बयानबाज़ी हुई। अमेरिकन ड्रीम के इर्द गिर्द बातचीत जारी है, बहुत सारे लोगों का मानना है की सख्त प्रशासन के दौर में जब इमीग्रेशन के नियमों को और सख्त करने की बात चल रही है तो लगता है की अमेरिकन ड्रीम का फलसफा अपनी आखिरी सांसें ले रहा है। इस बात को अगर ध्यान में रखा जाए की २००८ से अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी सुस्त है, तो इस तर्क में दम लगता है की अमेरिकन ड्रीम का आईडिया कमज़ोर पद रहा है।

बढ़ते हुए वैश्वीकरण के दौर में आर्थिक खुशहाली दुनिया के कई हिस्सों में फैली है और हम ये सोचते हैं की क्या अमेरिका अब भी दूर चमकता हुआ वो शहर है जहाँ सब जाना चाहते हैं या फिर वो अमेरिकी सपना पूरे दुनिया में फैल गया है, दूरदराज़ रहने वाले लोग भी अमेरिका की खुशहाली का फायदा उठा पा रहे हैं।

मेरे हिसाब से अमेरिकी सपने को आंकड़ों में मापा नहीं जा सकता, वो एक एहसास है। H1B वीसा लाटरी सिस्टम नौकरीपेशा लोगों के लिए सख्त हैं और ग्रीन कार्ड के लिए कतार भी बढती गयी है, फिर भी दुनिया भर के प्रवासियों के लिए अब भी अमेरिका पहली पसंद बना हुआ है।

अमेरिका में आ कर बसने वाले चाइना के सिचुआन से भी हो सकते, कोरिया के इन्चेओन, भारत के कोइम्बतोर या हवाना के क्यूबा से हो सकते हैं, अपनी अपनी संस्कृति में रचे बसे होने के बावजूद भी वो अमेरिकन हो सकते हैं। लेकिन उनकी अगली पीढ़ी अमेरिका की सोसाइटी में उतनी ही घुल मिल जायेगी जैसे कोई और अमेरिकन, वो वैसे ही NBA और NFL के मैच देखेंगे और जॉर्ज क्लूनी की फिल्में पसंद करेंगे और अमेरिकन एक्सेंट में बात करेंगे। लेकिन इसका ये मतलब नहीं की अमेरिका आप से आपकी अलग पहचान ले लेता है बल्कि वो तमाम अलग-अलग पहचान और संस्कृतियों को ले कर एक ऐसी पहचान बनता है जिसका नाम अमेरिकीपन है जो और कहीं मुमकिन नहीं।

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अमेरिकी सपने को आंकड़ों में मापा नहीं जा सकता, वो एक एहसास है। [NFL मैच का चित्र]

अमेरिका में आ कर बसने वाले चाइना के सिचुआन से भी हो सकते, कोरिया के इन्चेओन, भारत के कोइम्बतोर या हवाना के क्यूबा से हो सकते हैं, अपनी अपनी संस्कृति में रचे बसे होने के बावजूद भी वो अमेरिकन हो सकते हैं।

अमेरिकन होने की यही खासियत है जिसकी वजह से मेरे सवाल पर सिंगापुर के डेलॉयट में काम करने वाले Yo ने कहा की मंदारिनअच्छी तरह बोलने के बावजूद भी मैं कभी चीनी नहीं हो सकता लेकिन अमेरिकन कोई भी हो सकता है।

बहुत कम देश हैं जो USAID जैसे प्रोग्राम की बात कर सकते हैं, अमेरिका ने एक मज़बूत सॉफ्ट पॉवर की रचना की है जो उसकी मिलिट्री ताक़त से कहीं ज्यादा है। इस सॉफ्ट पॉवर का मतलब है वहां मौजूद शिक्षा और काम के मौके, बराबरी के मौके। मशहूर निवेशक वारेन बुफ्फेट ने एक बार कहा था की उनके और उनके साथी चार्ली मंगर के लिए साड़ी अच्छी चीज़ें मुमकिन हुईं क्यूंकि वो सही देश में सही समय पर पैदा हुए। बहुत कम जगह पर कलाकारों, संगीतकारों, उद्योगपतियों की ऐसी कामयाबी देखि गयी है जैसी की अमेरिका में। सिंगापुर के एक मिनिस्टर के साथ इंटरव्यू में एक बार मंत्री जी ने कहा था की सिंगापुर अगला सिलिकॉन वैली बन सकता है लेकिन ये याद रखना ज़रूरी है की सिंगापुर टेक्नोलॉजी का एक बड़ा अड्डा तो है लेकिन सिलिकॉन वैली में गूगल, एप्पल या फेसबुक जैसी कंपनियों के लिए कोई सरकारी प्लान नहीं बनाया गया था। ये सब खुद बखुद खड़ी हुई थी। ये जैविक विकास था। इसी तरह हॉलीवुड, मैडिसन अवेनुए और वाल स्ट्रीट सिर्फ मशहूर जगहों का पता नहीं बल्कि नए आईडिया के स्त्रोत हैं जिन्हों ने दुनिया को बदला।

अमेरिकन ड्रीम या अमेरिका का सपना कोई सरकारी नीति नहीं है। ये लोगों का अपना जज्बा और विश्वास है जिसने एक अमेरिकी सपने पर बढ़ने की राह बनाई है।

सिंगापुर में TEDx लेक्चर के दौरान अर्थशास्त्री डेनी कवा ने कहा था की चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन अमेरिका की कहानी इतनी दिलचस्प है की इसकी जगह लेना मुश्किल है। एक ऐसा देश जिसके जैसा हर दूसरा देश बनना चाहता है। डेनी कवा ने ये भी कहा की अमरीकी नागरिकता के लिए शादियाँ जानी पहचानी कहानी है लेकिन फिलहाल तो वो समय जल्दी आता नज़र नहीं आता जब लोग चीन की नाग्र्रिकता पाने के लिए शादियाँ करेंग।

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