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Published on May 29, 2024 Updated 0 Hours ago

मध्य पूर्व में WMD मुक्त क्षेत्रों (MEWMDFZ) की स्थापना एक फ़ौरी आवश्यकता है. ये केवल इस क्षेत्र की स्थिरता के लिए बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी ज़रूरी है.

मध्य पूर्व में सामूहिक नरसंहार वाले हथियारों (WMD) से मुक्त क्षेत्र की स्थापना: अभी नहीं तो फिर कब?

मध्य पूर्व में WMD मुक्त क्षेत्र (MEWMDFZ) की स्थापना करना, निरस्त्रीकरण और सामूहिक नरसंहार के हथियारों का प्रसार रोकने से जुड़ी वैश्विक कूटनीति के इच्छित लक्ष्यों में से एक है. लंबे वक़्त से चले रहे संघर्षों की वजह से मध्य पूर्व का उथल-पुथल भरा इतिहास एक दूसरे पर अविश्वास वाला रहा है. इसके अलावा, पहले यहां रासायनिक हथियारों को भी उपयोग किया जा चुका है. ऐसे में आने वाले समय में सामूहिक नरसंहार के हथियारों (WMD) के इस्तेमाल की आशंका चिंताजनक रूप से बहुत अधिक है.

 हाल के दिनों में इस इलाक़े में गाज़ा पर इज़राइल के हमले और इज़राइल पर ईरान के हमले और इज़राइल के पलटवार की गतिविधियों की वजह से मध्य पूर्व में निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने की ज़रूरत और भी बढ़ गई है.

इस संदर्भ में एक अहम मील का पत्थर 1995 में परमाणु हथियारों के अप्रसार (NPT) की समीक्षा और उसे विस्तार देने का सम्मेलन रहा था. इस संधि (NPT) में शामिल पक्षों ने 2020 तक मध्य पूर्व में WMD से मुक्त क्षेत्र स्थापित करने पर सहमति जताई थी. हालांकि, आज की तारीख़ तक इस मामले में कोई ख़ास प्रगति होती नहीं दिखी है, और हाल के दिनों में इस इलाक़े में गाज़ा पर इज़राइल के हमले और इज़राइल पर ईरान के हमले और इज़राइल के पलटवार की गतिविधियों की वजह से मध्य पूर्व में निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने की ज़रूरत और भी बढ़ गई है.

 

WMD की स्थापना 

 

मध्य पूर्व के सियासी समीकरण और सुरक्षा संबंधी चिंताओं में इज़राइल और अरब देशों के बीच लंबे समय से चला रहा टकराव भी शामिल है. इन सबने मध्य पूर्व में WMD से मुक्त क्षेत्र की स्थापना में जटिलताओं को और बढ़ाने का काम किया है. इज़राइल, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसके पास परमाणु हथियार है, ने तो आधिकारिक रूप से इसे कभी स्वीकार किया है और ही इनकार. वो परमाणु अप्रसार संधि में भी नहीं शामिल है.

 

इस क्षेत्र के देशों के बीच बातचीत कराने और WMD मुक्त क्षेत्र की स्थापना के विचार को आगे बढ़ाने में संयुक्त राष्ट्र और दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठन शामिल रहे हैं. हालांकि, भू-राजनीतिक तनावों, सुरक्षा संबंधी चिंताओं और क्षेत्र के व्यापक राजनीतिक मंज़र की वजह से किसी व्यापक समझौते पर सहमत हो पाना मुश्किल साबित हुआ है.

 मध्य पूर्व में सामूहिक नरसंहार के हथियारों से मुक्त क्षेत्र स्थापित करने के लिए कोशिशें तो लगातार की जाती रही हैं. लेकिन, इनका कोई नतीजा नहीं निकला है. 

हालांकि, राजनीतिक उथल पुथल को लेकर मध्य पूर्व में चिंता केवल परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की नहीं है. जैविक हथियार भी फ़िक्र की एक वजह हैं. दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तरह मध्य पूर्व भी जैविक और ज़हरीले हथियारों की संधि (BWC) के तहत तय नियमों और उत्तरदायित्वों का पालन करने के लिए बाध्य है. हालांकि, इज़राइल ने BWC पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. इज़राइल अक्सर इसके पीछे इलाक़े की क्षेत्रीय अस्थिरता और आविष्कारों पर इसके प्रभाव का हवाला देता रहा है. वैसे तो इज़राइल ने जैविक हथियार बनाने में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं और दोहरे इस्तेमाल वाली तकनीकों के इस क्षेत्र में आयात और निर्यात को नियंत्रित करना सुनिश्चित करने के प्रयास किए हैं. लेकिन, मध्य पूर्व की अस्थिरता और अमेरिका द्वारा मिली जुली जानकारी देने की वजह से इज़राइल के इरादों की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है.

 

इसी तरह, मध्य पूर्व में रासायनिक हथियारों का मसला भी काफ़ी चिंता का विषय रहा है और इस इलाक़े में इन हथियारों के विस्तार और इस्तेमाल संबंधी चिंताओं को दूर करने के प्रयास किए जाते रहे हैं. जब 2012 में MEWMDFZ की स्थापना के लिए कोई सम्मेलन नहीं हुआ था, तब अमेरिका ने नवंबर 2012 में एक बयान जारी करते हुए इसके लिए मध्य पूर्व के हालात और स्वीकार्य शर्तों को लेकर संबंधित पक्षों के बीच आपसी सहमति की कमी ज़िम्मेदार है. बहुत से जानकारों ने इसका अर्थ ये निकाला था कि इज़राइल अपनी गतिविधियों को लेकर आलोचना के प्रति अनिच्छुक है. एक दशक बाद भी कुछ नहीं बदला है और कई अहम बदलावों और घटनाओं ने वैश्विक चिंता को और बढ़ा दिया है.

 

दिसंबर 2023 में इज़राइल पर इल्ज़ाम लगा था कि उसने हमास पर हमले के दौरान सफेद फास्फोरस का इस्तेमाल किया था. ये पहली बार नहीं है, जब इज़राइल पर इस तरह के इल्ज़ाम लगे हैं. 2008 में भी इज़राइल की मंज़ूरी से ग़ज़ा में चलाए गए सैन्य अभियान के दौरान भी इसी तरह के आरोप लगे थे. वैसे तो इज़राइल ने तब भी सफ़ेद फास्फोरस के इस्तेमाल के आरोपों से इनकार किया था. लेकिन मानव अधिकार संगठनों की ख़बरों में दोहराया गया था कि व्हाइट फास्फोरस के गोलों का इस्तेमाल किया गया था.

 साइबर हमले में चिंता का एक अहम विषय तनाव बढ़ाने के लिए ग़लत जानकारी को बढ़ावा देने की आशंका है. हालांकि, WMD पर नियंत्रण के स्थानीय सुरक्षा संबंधी उपायों से नियंत्रण गंवाना एक बड़ा ख़तरा है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए.

मध्य पूर्व में सामूहिक नरसंहार के हथियारों से मुक्त क्षेत्र स्थापित करने के लिए कोशिशें तो लगातार की जाती रही हैं. लेकिन, इनका कोई नतीजा नहीं निकला है. NPT पर दस्तख़त करने वाले देशों के जानकार अक्सर ज़ोर देकर ये कहते रहे हैं कि परमाणु अप्रसार संधि को लेकर आम सहमति की कमी भी WMD मुक्त क्षेत्र स्थापित करने के प्रयासों की वजह से ही पैदा हुई हैं. वैसे तो कुछ विद्वान और विश्लेषक इससे असहमत हैं. पर, पहले वाली बात लोगों के बीच ज़्यादा मानी जाती है

 

मध्य पूर्व में WMD मुक्त क्षेत्र स्थापित करने को लेकर वार्ताओं को आगे बढ़ाने के कुछ प्रयास जारी रखे जा सकते हैं. इनमें संवाद को बढ़ावा देने और मध्य पूर्व देशों के बीच आपसी भरोसा बढ़ाने के लिए कूटनीतिक पहलें शामिल हैं. इन कोशिशों में संयुक्त राष्ट्र और अरब लीग जैसे संगठन शामिल हो सकते हैं, जो पहले से भी परमाणु सशस्त्रीकरण के ख़िलाफ़ मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं. कूटनीतिक कोशिशों के साथ साथ, मध्य पूर्व के जो देश WMD मुक्त क्षेत्र बनाने का समझौता लागू करने के इच्छुक हैं, उन्हें अंतरराष्ट्रीय सहायता और तकनीकी, वित्तीय राजनीतिक मदद देकर इस क्षेत्र में निरस्त्रीकरण को बढ़ावा दिया जा सकता है. आख़िर में जवाबदेही, पुष्टि करने और निरीक्षण को बढ़ाया जाना चाहिए. इसका मतलब है कि WMD मुक्त क्षेत्र के समझौते का पालन हो रहा है या नहीं, इसकी निगरानी की एक मज़बूत व्यवस्था बनाई जानी चाहिए. इसमें अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA), रासायनिक हथियारों पर प्रतिबंध के संगठन (OPCW) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों और अन्य संबंधित संस्थाओं द्वारा नियमित रूप से निरीक्षण करना शामिल है.

 

संघर्ष के अन्य क्षेत्रों की तरह ही साइबर हमले और साथ साथ सामूहिक नरसंहार के हथियारों का इस्तेमाल, हालात को और बिगाड़ सकता है. अक्टूबर 2023 में हमास पर हमले के दौरान भी पहला क़दम साइबर हमला ही था. आरोप है कि, हाल ही में इज़राइल से जुड़े एक हैकिंग समूह ने ईरान में 70 प्रतिशत गैस स्टेशनों को हैक करके उनके कामकाज में बाधा डाली थी.

 

अगर साइबर हमला एक औज़ार बना रहता है, तो इससे ज़मीनी स्तर पर तनाव बढ़ सकता है और बिजली ग्रिड, टेलीफोन व्यवस्था, परिवहन व्यवस्था और मेडिकल रिकॉर्ड जैसे अहम मूलभूत ढांचों को साइबर हमलों का निशाना बनाया जा सकता है. साइबर हमले में चिंता का एक अहम विषय तनाव बढ़ाने के लिए ग़लत जानकारी को बढ़ावा देने की आशंका है. हालांकि, WMD पर नियंत्रण के स्थानीय सुरक्षा संबंधी उपायों से नियंत्रण गंवाना एक बड़ा ख़तरा है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए.

 

वैसे तो ज़ोर शर्तों के पालन पर है. लेकिन, WMD से मुक्त क्षेत्र की स्थापना मुश्किल बनी रहेगी. इज़राइल के अघोषित परमाणु हथियार कार्यक्रम को इस क्षेत्र के कई देश ख़तरा मानते हैं. वहीं ईरान का परमाणु कार्यक्रम भी चिंता का विषय है. ऐसे परिणामों से बचने के लिए एक ऐसा तरीक़ा अपनाना होगा, जिसमें इस इलाक़े के सभी देश अप्रसार के प्रयासों का पालन करें. अगर सभी देश शर्तों का पालन नहीं करते, तो उनके दुश्मन, अपनी सुरक्षा के लिए सशस्त्रीकरण के रास्ते पर चल पड़ेंगे.

 अगर आविष्कार, सुरक्षा और दवाओं में इस्तेमाल को बहानेबाज़ी के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो उचित अधिकारी ये सुनिश्चित करें कि हस्ताक्षर करने वाले देश से किसी परमाणु, रासायनिक या जैविक तत्व को हटाने की ज़रूरत पड़े बिना उनका दोहरा इस्तेमाल होने से रोका जा सके.

हमने परमाणु हथियारों के अप्रसार को लेकर कुछ क्षेत्रीय संधियों को कारगर होते देखा है. रारोटोंगा की संधि परमाणु हथियारों के परीक्षण और रेडियोएक्टिव तत्वों को समुद्र में फेंकने पर रोक लगाती है. कोरिया में परमाणु निरस्त्रीकरण के समझौते में यूरेनियम संवर्धन और प्लूटोनियम को अलग करने की कोशिशें रोकने के लिए विशेष प्रतिबंधों का प्रावधान है. पेलिंडाबा की संधि परमाणु केंद्रों पर हमले पर प्रतिबंध लगाती है. इसी तरह का समझौता 1988 में भारत और पाकिस्तान के बीच भी हुआ था. मध्य एशियाई संधि में सदस्य देशों के क्षेत्रों में पहले की परमाणु गतिविधियों से पर्यावरण को हुए नुक़सान की भरपाई की ज़रूरतों को रेखांकित किया गया है. इस संधि में कुछ अतिरिक्त शर्तों के पालन की व्यवस्था भी है.

 

निष्कर्ष 

 

जैसा कि इन समझौतों में देखा गया है, पुष्टिकरण की मज़बूत व्यवस्थाएं स्थापित करने और क्षेत्रीय देशों द्वारा उनका अनुपालन सुनिश्चित करने के साथ साथ हम अन्य मुक्त क्षेत्रों से सबक़ लेते हुए उनमें इस इलाक़े के हालात के मुताबिक़ बदलाव करके लागू कर सकते हैं, जिनमें ये स्वीकार किया जाता है कि हर क्षेत्र की अपनी विशेषताएं और चिंताएं होती हैं. WMD से मुक्त क्षेत्र के समझौतों को मध्य पूर्व की सुरक्षा संबंधी चुनौतियों की विशेष परिस्थितियों से निपटने के लिए ढालना होगा. ये सुनिश्चित कने की ज़रूरत होगी कि वैसे तो क्षेत्र में सभी देश वैश्विक जवाबदेही का पालन करते हैं. लेकिन, अगर आविष्कार, सुरक्षा और दवाओं में इस्तेमाल को बहानेबाज़ी के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो उचित अधिकारी ये सुनिश्चित करें कि हस्ताक्षर करने वाले देश से किसी परमाणु, रासायनिक या जैविक तत्व को हटाने की ज़रूरत पड़े बिना उनका दोहरा इस्तेमाल होने से रोका जा सके.

 

मध्य पूर्व में सामूहिक नरसंहार के हथियारों से मुक्त क्षेत्र की स्थापना एक फ़ौरी ज़रूरत है, जो केवल इस क्षेत्र की स्थिरता के लिए, बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है. परमाणु हथियारों से लेकर रासायनिक और जैविक हथियारों तक मानव जीवन और अंतरराष्ट्रीय शांति को होने वाले नुक़सान के ख़तरे इतने भयावह हैं, जिन्हें देखते हुए मध्य पूर्व को होने वाला नुक़सान कम करने की कोशिशों और समाधानों को लागू करने में देर नहीं की जानी चाहिए.

 

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