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बाइडेन ट्रंप की नीतियों की निरंतरता को अपने हिसाब से थोड़ी कम आक्रामकता के साथ बरकरार रखने की कोशिशें कर रहे हैं.
हाल ही में जो बाइडेन प्रशासन की देख–रेख में ब्लू डॉट नेटवर्क (बीडीएन) की एक्ज़ीक्यूटिव कंसल्टेशन ग्रुप की पहली बैठक हुई थी. अमेरिका की कोशिश रही है कि आर्थिक सहयोग औऱ विकास संगठन (ओईसीडी) की ओर से बीडीएन के प्रमाणीकरण ढांचे की रूपरेखा बनाने में मदद मिले. अमेरिका चाहता है कि उसके ‘मुक्त और आज़ाद हिंद–प्रशांत‘ से जुड़े दृष्टिकोण की तुलना चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से जुड़े आक्रामक बर्तावों से हो, ताकि दोनों के रुख़ का अंतर सबके सामने उभरकर आ सके. इसी मकसद से डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने समान–सोच वाले देशों के साथ मिलकर बीडीएन की स्थापना की थी. इसके ज़रिए पारदर्शी और टिकाऊ बुनियादी ढांचे के वित्त पोषण के लिए “वैश्विक तौर पर मान्यता प्राप्त मंज़ूरी प्रक्रिया” का प्रस्ताव किया गया था.
इसी प्रकार बाइडेन के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी हाल ही में यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फ़ाइनेंस कॉरपोरेशन (डीएफ़सी) की पहली बोर्ड मीटिंग की अध्यक्षता की. ये संस्था भी ट्रंप युग में खड़ी की गई थी ताकि ‘मुक्त और आज़ाद हिंद–प्रशांत‘ के विचार को अमल में लाया जा सके. इसके तहत “राज्यसत्ता–निर्देशित निवेश मॉडल के विकल्प के तौर पर निजी निवेश को प्रोत्साहित करने” का उद्देश्य रखा गया है. बाइडेन बहुपक्षवाद के विचार के समर्थक रहे हैं लिहाज़ा उन्होंने ट्रंप युग के इन पहलों को जारी रखा है. बाइडेन प्रशासन में ट्रंप युग के विकास–वित्त से जुड़े तमाम साधनों की “संपूर्ण क्षमता को संगठित करने” के लिए हाल ही में जी-7 देशों के लिए घोषित बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (बी3डब्ल्यू) साझीदारी के तहत ऐसा करने का लक्ष्य रखा गया है.
ट्रंप के शासन काल में “उचित और पारस्परिकता” से भरी व्यापार व्यवस्था पर ज़ोर दिया गया था. बाइडेन प्रशासन ने भी इसी रुख़ को आगे बढ़ाते हुए “चीन के अनुचित और बाज़ार को बिगाड़ने वाली औद्योगिक नीतियों” से जुड़े अपने लक्ष्यों को तर्कसंगत बनाया है. इस प्रयास के मद्देनज़र बाइ़डेन प्रशासन ने अपने “कामगार-केंद्रित व्यापार नीति” का उदाहरण सामने रखा है.
बाइडेन प्रशासन के अधिकारियों ने “सर्वोत्तम चीन नीति ही यथार्थ में सबसे अच्छी एशिया नीति है” के मंत्र को स्वीकार किया है. इस नज़रिए से उन्होंने पूर्ववर्ती प्रशासन द्वारा क्षेत्रवार स्वभाव वाली विदेश नीति के कारकों को अपनाने की निरंतरता बनाए रखी है. दरअसल ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट‘ रुझानों के बावजूद ‘मुक्त और आज़ाद हिंद–प्रशांत‘ के विचार को पहले से ही बढ़ावा मिलता रहा है.
जहां तक चीन के साथ द्विपक्षीय स्तर की नीतियों का सवाल है, तो साफ़ है कि यहां भी बाइडेन ने ट्रंप द्वारा चीनी वस्तुओं पर लगाए गए शुल्कों को वापस नहीं लिया है. बाइडेन प्रशासन चीन से लगातार ‘फेज़ वन‘ समझौते को लेकर अपने वायदे निभाने की मांग करता आ रहा है. इस करार में चीन द्वारा अमेरिकी वस्तुओं और सेवाओं के आयात में कम से कम 200 अरब अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी करने का आश्वासन शामिल है. ट्रंप के शासन काल में “उचित और पारस्परिकता” से भरी व्यापार व्यवस्था पर ज़ोर दिया गया था. बाइडेन प्रशासन ने भी इसी रुख़ को आगे बढ़ाते हुए “चीन के अनुचित और बाज़ार को बिगाड़ने वाली औद्योगिक नीतियों” से जुड़े अपने लक्ष्यों को तर्कसंगत बनाया है. इस प्रयास के मद्देनज़र बाइ़डेन प्रशासन ने अपने “कामगार-केंद्रित व्यापार नीति” का उदाहरण सामने रखा है.
चीन के तकनीकी विकास से जुड़े पहलुओं के मामलों में बाइडेन ने नवंबर 2020 में ट्रंप प्रशासन द्वारा जारी कार्यकारी आदेश (EO 13959) की मूलभूत बातों को ही आधार बनाकर आगे बढ़ने का फ़ैसला किया है. इसमें इस बात को रेखांकित किया गया है कि चीन ने अमेरिकी पूंजी का “अपनी फ़ौज, इंटेलिजेंस और रक्षा से जुड़े अन्य साजोसामानों के विकास और आधुनिकीकरण” के लिए दोहन किया है. बाइडेन के जून 2021 के कार्यकारी आदेश में चीन के रक्षा और टोही तकनीक से जुड़ी 59 कंपनियों में अब आगे अमेरिकी निवेश पर पाबंदियां लगाई गई है. बाइडेन के नेतृत्व में फ़ेडरल कम्युनिकेशंस कमीशन ने हुआवेई और ज़ेडटीई से निपटने के लिए ट्रंप–युग के नियामक क़ानूनों को और आगे बढ़ाया है. इसके तहत चीन की पांच कंपनियों (हुआवेई और ज़ेडटीई समेत) को औपचारिक तौर पर अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा घोषित किया गया है.
बाइडेन ने जून 2021 में ट्रंप के कार्यकाल में टिकटॉक और वीचैट को प्रतिबंधित किए जाने के कार्यकारी आदेश का त्याग करने का फ़ैसला किया. इसके बदले बाइडेन ने वाणिज्य विभाग से अमेरिका के सभी प्रतिद्वंदियों से जुड़े ऐप्लिकेशंस की नए सिरे से समीक्षा शुरू करने को कहा.
इसके साथ ही विदेश मंत्री ब्लिंकन ने शिनजियांग में चीन की कार्रवाइयों को “नरसंहार” ठहराए जाने की नीति में निरंतरता बरकरार रखी है. इस सिलसिले में उन्होंने वीगर कार्यकर्ताओं, वहां से ज़िंदा बचकर निकले लोगों और पीड़ितों के परिवारवालों से मुलाक़ात की है. बाइडेन प्रशासन ने चीन के साथ आर्थिक रिश्तों को आगे बढ़ाने में ट्रंप द्वारा शुरू की गई परंपरा को ही आगे बढ़ाया है. इसके तहत अमेरिका–चीन आर्थिक भागीदारियों को मानव अधिकारों पर चीन के रिकॉर्ड के मुताबिक ही धीरे–धीरे आगे बढ़ाने की बात शामिल है. कई मायनों में चीन के साथ रिश्तों में ये एक नई शुरुआत है. ग़ौरतलब है कि बिल क्लिंटन प्रशासन ने चीन को अमेरिकी की ओर से ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन‘ का दर्ज़ा बरकरार रखने के लिए नागरिक–अधिकारों के मामलों में हर साल होने वाली प्रगति की अनिवार्य रूप से होने वाली समीक्षा के प्रावधान को हटा दिया था.
ट्रंप प्रशासन के 2020 शिनजियांग सप्लाई चेन बिज़नेस एडवाइज़री में बंधुआ मज़दूरी में लिप्त चीनी इकाइयों को सप्लाई चेन से जुड़े लिंक मुहैया कराए जाने को लेकर चेतावनी जारी की गई थी. इसके साथ ही शिनजियांग प्रोडक्शन एंड कंस्ट्रक्शन कॉर्प्स द्वारा तैयार कपास उत्पादों की ज़ब्ती के आदेश भी जारी किए गए थे. बाइडेन प्रशासन ने ट्रंप के कार्यकाल में जारी एडवाइज़री को और ताज़ा रूप दिया है. इस सिलसिले में ‘सरकार की संपूर्ण’ भूमिका के दायरे में अनेक संघीय एजेंसियों को दस्तख़त करने वाले पक्ष के तौर पर शामिल किया गया है. इसके ज़रिए डालियन ओशियन फ़िशिंग कं. लि. और होशाइन सिलिकॉन इंडस्ट्री कं. लि. से होने वाले आयातों पर रोक लगा दी गई. दोनों कंपनियों पर जबरन मज़दूरी करवाने का इल्ज़ाम में अमेरिका ने ये कार्रवाई की.
बहरहाल कुछ मामलों में बाइडेन ने सारा ध्यान चीन पर टिकाए रखने की ट्रंप युग की नीतियों के रास्ते से ख़ुद को अलग भी किया है. ट्रंप के कार्यकाल में चीन को उसके “प्रभाव और तकनीक पर नियंत्रण” के ज़रिए “एकाधिकारवादी प्रशासनिक मॉडल” का निर्यातक समझा जाता रहा. ट्रंप प्रशासन का मानना था कि ऐसा कर चीन “अपने नागरिकों के साथ–साथ दुनिया के सभी नागरिकों” की आज़ादी को कमज़ोर कर रहा है. जी7 की बैठक के बाद बाइडेन ने तकनीक से जुड़े एकाधिकारवाद की व्याख्या इन व्यापक अर्थों में की: “मैं समझता हूं कि हम एक टकराव भरे हालात का सामना कर रहे हैं. दरअसल ये टकराव अपने आप में चीन के ख़िलाफ़ नहीं है. ये संघर्ष तो एकाधिकारवादयों और दुनिया भर में मौजूद विभिन्न तानाशाही सरकारों के ख़िलाफ़ है.” महज शिगूफ़ों से इतर नीतिगत स्तर पर भी ख़तरों को लेकर इस तरह के कयासों के प्रमाण देखने को मिलता है. बाइडेन ने जून 2021 में ट्रंप के कार्यकाल में टिकटॉक और वीचैट को प्रतिबंधित किए जाने के कार्यकारी आदेश का त्याग करने का फ़ैसला किया. इसके बदले बाइडेन ने वाणिज्य विभाग से अमेरिका के सभी प्रतिद्वंदियों से जुड़े ऐप्लिकेशंस की नए सिरे से समीक्षा शुरू करने को कहा.
हक़ीक़त ये है कि ओबामा प्रशासन चीन के उभार को लेकर क्षेत्रीय स्तर पर और अधिक यथार्थवादी राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाने की प्रवृत्ति को आगे बढ़ाना चाहता था.
इसके साथ–साथ बाइडेन ने ट्रंप प्रशासन द्वारा चीन में “सत्ता परिवर्तन के अंतर्निहित आह्वान” से जुड़ी नीतियों को विराम दे दिया. साफ़ तौर पर बाइडेन प्रशासन के अधिकारी सीधे–सीधे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की लानत–मलानत करने से बचते रहे हैं. ग़ौरतलब है कि ट्रंप प्रशासन के मातहत काम करने वाले अधिकारियों जैसे विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने इस काम में महारत हासिल कर ली थी. उनका ये कथन कि “ये पार्टी है जो चुनौती भड़का रही है, न कि लाखों–करोड़ो चीनी लोग” काफ़ी चर्चित रहा था.
इसकी बजाए बाइडेन प्रशासन ने सीसीपी के अधिकारियों के साथ संवाद शुरू करने की कोशिशें की है. बताया जाता है कि चीन में अपने समकक्ष विदेश मंत्री वांग यी के साथ सीधे तौर पर बिना किसी जुड़ाव के अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने यांग जिएची के साथ बातचीत की है. यांग जिएची सीसीपी के पोलितब्यूरो के सदस्य और विदेशी मामलों से जुड़े आयोग के दफ़्तर के डायरेक्टर हैं. ब्लिंकन ने अमेरिका–चीन संबंधों में पहेली बनकर उभरे विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की. इसी प्रकार ख़बरों के मुताबिक अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने चीनी रक्षा मंत्री वेई फेंग के अलावा जनरल शु किलियांग के साथ भी बातचीत के कई प्रस्ताव भेजे हैं. किलियांग सीसीपी सेंट्रल कमेटी की राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के वाइस चेयरमैन हैं.
द्विपक्षीय स्तर पर निरंतरता को सही आकार देने का मतलब ये नहीं है कि चीन के साथ दो–दो हाथ करने या प्रतिस्पर्धा करने को लेकर बाइडेन प्रशासन की राजनीतिक इच्छाशक्ति में कोई कमी आई है. इस बात को ख़ासतौर से इस पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए कि अमेरिका में दोनों राजनीतिक दलों में चीन के ख़िलाफ़ आम सहमति बनती दिख रही है. इस आम सहमति को अमेरिकी जनता में बड़े पैमाने पर मौजूद चीन–विरोधी भावनाओं से बल मिलता है. (मोटे तौर पर हर 10 में से 9 अमेरिकी वयस्क (89 प्रतिशत) अब चीन को अपने प्रतिस्पर्धी/दुश्मन के तौर पर देखते हैं).
बाइडेन प्रशासन ने चीन और सीसीपी का पूरी तरह से तिरस्कार करने की नीति पर लगाम लगाई है. दरअसल अमेरिका के नए प्रशासन को ये बात समझ में आई कि इस तरह की नीति का लक्ष्य से बिल्कुल उलटा असर होता है. इससे सीसीपी का पक्ष ही मज़बूत होता है. अमेरिका द्वारा लानत मलानत किए जाने पर सीसीपी उसे और अधिक ताक़त से “पश्चिम की दख़लंदाज़ी” के तौर पर प्रचारित करती है. इतना ही नहीं ये चीन के लिए “विदेशों में अमेरिकी हितों और एशिया में व्यापक शांति और सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने वाले और अधिक महत्वाकांक्षी कार्रवाइयां करने” का उकसावा जैसा साबित होता है.
बराक ओबामा प्रशासन का कामकाज अमेरिका के इसी अनुमान के जीते–जागते उदाहरण के तौर पर सामने आता है. ट्रंप की ही तरह ओबामा प्रशासन ने भी सीधे तौर पर चीन के तिरस्कार की नीति अपनाई थी. उनके प्रशासन ने शुरुआत में ही चीनी टायरों पर शुल्क लगा दिया था. इसके अलावा पहले ही ख़तरा भांपते हुए चीन के साथ सैन्य टकराव की आशंका में अमेरिका के एयर–सी बैटल (एएसबी) से जुड़ी कार्यकारी परिकल्पना को लागू किया गया था. इसके साथ ही ओबामा प्रशासन ने दक्षिण चीन सागर में प्रतिस्पर्धी दावों के निपटारे की ज़रूरतों को अमेरिका के “राष्ट्रीय हित” के तौर पर वर्गीकृत किया था. ओबामा प्रशासन ने ये मांग भी रखी थी कि चीन को इंटरनेट की आज़ादी के दुरुपयोग के लिए “अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं और परिणामों का सामना करना” चाहिए.
यक़ीनन अमेरिका की इन नीतियों की बदौलत चीन दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में अपना दावा पेश करने को लेकर और आक्रामक हो गया है. 2012 में चीन ने दक्षिण चीन सागर में प्रशासनिक इकाइयां बनाने की घोषणा कर दी. अगले साल 2013 में उसने पूर्वी चीन सागर में एक एयर डिफ़ेंस आइडेंटिफ़िकेशन ज़ोन तैयार करने का एलान किया
सरसरी तौर पर देखने पर पता चलता है कि ओबामा प्रशासन द्वारा शुरुआती दौर में चीन का तिरस्कार करने की नीति अपनाने से पहले चीनी कारनामों के ख़िलाफ़ क्षेत्रीय तौर पर जागरूकता कायम करने का प्रयास नहीं किया गया. तत्कालीन प्रशासन की ये नीति न केवल अपरिपक्व थी बल्कि उसका उद्देश्यों के विपरीत प्रभाव सामने आया. इतना ही नहीं ओबामा प्रशासन द्वारा ‘एशिया की धुरी’ से जुड़ी रणनीति बनाने के प्रयास को “आधे–अधूरे मन से” किया गया प्रयास समझा गया. दरअसल इसको अमेरिका–केंद्रित यथास्थिति के बचाव के प्रयासों को आगे बढ़ाने के थोड़े–बहुत प्रयासों के तौर पर देखा गया. हक़ीक़त ये है कि ओबामा प्रशासन चीन के उभार को लेकर क्षेत्रीय स्तर पर और अधिक यथार्थवादी राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाने की प्रवृत्ति को आगे बढ़ाना चाहता थ
अब जबकि बाइडेन भी चीन के साथ सहयोग की नीति (मुख्य रूप से पेरिस समझौते के तहत वचनबद्धताओं को आगे बढ़ाने को लेकर) अपनाना चाहते हैं, तो उनके प्रशासन के सामने भी ओबामा युग में की गई ग़लतियों को दोहराने का ख़तरा मंडरा रहा है.
आगे चलकर इन सीमित प्रयासों में भी कटौती कर दी गई. अमेरिका ने वैश्विक प्रशासन से जुड़े मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन और ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर चीन के साथ सहयोग करने का बड़ा इरादा ज़ाहिर किया. इससे चीन को लेकर ओबामा प्रशासन का ऊहापोह भरा रुख़ सामने आया. ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका ने घोषित तौर पर कई लक्ष्य तय कर रखे थे. अमेरिका के ताज़ा बर्ताव से दक्षिण चीन सागर को सैनिक अड्डा बनाने के प्रयासों के ख़िलाफ़ अमेरिकी वचनबद्धता का उल्लंघन होता नज़र आया. इसके अलावा इनमें एएसबी को नई परिकल्पना के हिसाब से नए सिरे से तैयार करना भी शामिल था. एएसबी को ज्वाइंट कॉन्सेप्ट फ़ॉर एक्सेस एंड मैनूवर इन ग्लोबल कॉमन्स (जेएएम–जीसी) के तौर पर ढालने की बात थी. इसमें फ़ारस की खाड़ी को भी शामिल किया गया था. इसके साथ ही एशिया की धुरी से जुड़ी नीति के अगले चरण के उद्देश्यों के तौर पर “एशिया–प्रशांत क्षेत्र के पुनर्संतुलन” को आगे कर “व्यापक आधार वाली सैनिक उपस्थिति” वाले लक्ष्य का त्याग करना भी इसमें शामिल था.
यहां एक बात ग़ौर करने लायक है. ट्रंप किसी भी तरह के बहुपक्षवाद के विरोधी थे. इस नाते चीन का पूर्ण तिरस्कार करने की नीति को आगे बढ़ाने के लिए उनके पास पर्याप्त कारण मौजूद थे. वहीं दूसरी ओर ओबामा के साथ ऐसी बात नहीं थी. लिहाज़ा चीन से दो–दो हाथ करते–करते ओबामा को कई बार अपनी दूसरे सिद्धांतों की वजह से चीन की मुख़ालफ़त वाली नीतियों से पीछे हटना पड़ा था. कुल मिलाकर चीन के ख़िलाफ़ नीतियों के मामले में ट्रंप का हश्र वैसा नहीं हुआ जैसा ओबामा का हुआ था. बहरहाल, अब जबकि बाइडेन भी चीन के साथ सहयोग की नीति (मुख्य रूप से पेरिस समझौते के तहत वचनबद्धताओं को आगे बढ़ाने को लेकर) अपनाना चाहते हैं, तो उनके प्रशासन के सामने भी ओबामा युग में की गई ग़लतियों को दोहराने का ख़तरा मंडरा रहा है. ओबामा ने इलाक़े के विकास को लेकर ज़रूरी नज़रिए की वक़ालत करने की अहमियत को कम करके आंकने की ग़लती की थी.
बाइडेन ट्रंप की नीतियों की निरंतरता को अपने हिसाब से थोड़ी कम आक्रामकता के साथ बरकरार रखने की कोशिशें कर रहे हैं. उनकी नीतियों में चीन के तिरस्कार में कमी लाने की झलक मिलती है. हालांकि बीडीएन–ओईसीडी और बी3डब्लू भागीदारियों के ज़रिए ‘मुक्त और आज़ाद हिंद–प्रशांत’ के दृष्टिकोण के अंतरराष्ट्रीयकरण के प्रयासों से इस बात की झलक मिलती है कि उन्होंने ओबामा द्वारा की गई नादानियों की पहचान कर ली है.
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Kashish Parpiani is Senior Manager (Chairman’s Office), Reliance Industries Limited (RIL). He is a former Fellow, ORF, Mumbai. ...
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