Author : Kabir Taneja

Published on Apr 11, 2019 Updated 0 Hours ago

इस्लामिक स्टेट की इलाकाई हार का मतलब यह नहीं है कि एक आतंकी समूह के रूप में ISIS का सफाया हो गया है, न ही इसका मतलब यह है कि सीरिया में गृह युद्ध खत्म हो गया है। यह याद रखना बहुत जरूरी है कि ISIS का उभार सीरिया की लड़ाई का शुरुआत का कारण नहीं था।

इस्लामिक स्टेट का खात्मा, ISIS का नहीं

अंतिम आईएसआईएस-हेल्ड विलेज सीरिया में यूएस-बैकड फोर्सेस के लिए गिर रहा है। स्रोत: Chris McGrath/Getty Images

जब आतंकवादी समूह की पकड़ वाले आखिरी इलाके बघौज़ और उसकी लगभग 3 किमी लंबी सीमा पर कुर्दों के नेतृत्व वाली ISIS विरोधी सेना ने कब्ज़ा कर लिया तो 23 मार्च को यूएस के समर्थन वाली सीरियन डेमोक्रेटिक फ़ोर्स (एसडीएफ) ने आधिकारिक रूप से इस्लामिक स्टेट खलीफाई के खात्मे की घोषणा कर दी।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पहले भी कई बार ट्वीट के माध्यम से जीत के दावे करते रहे हैं, लेकिन इस बार एसडीएफ ने विडियो, तस्वीरें जारी की और ISIS के कब्जे वाली ‘खलीफाई’ के खात्मे की घोषणा कर दी।

एसडीएफ के वक्तव्य में पांच साल की लड़ाई के बाद ‘इस्लामिक स्टेट ऑर्गेनाइजेशन” के तबाह होने का खास तौर से जिक्र किया गया। यह लड़ाई उन्होंने इसलिए लड़ी क्योंकि इसने “मानव जाति के ऊपर सार्वजनिक चुनौती” प्रस्तुत कर दी थी। एसडीएफ ने इस बात का भी खास तौर पर उल्लेख किया कि इस्लामिक स्टेट से लड़ाई में उनके लोगों की संख्या कितनी रही, उन्होंने बताया कि 11,000 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और 21,000 घायल हुए। यूएस के नेतृत्व वाले गठबंधन और ISIS विरोधी रूसी कैम्पेन के साथ होने के बावजूद, कुर्दों को जमीन पर सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा।

ISIS के खिलाफ हवाई हमले द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा ऑपरेशन था। यह विश्व युद्ध की अवधि से भी तीन महीने ज्यादा चला। यूके के एक गैर-लाभ संगठन एयरवार्स के मुताबिक, ISIS के खिलाफ हवाई हमला 1,688 दिनों तक चला और अगस्त 2014 और मार्च 2019 के बीच के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 33,994 हवाई और आर्टिलरी हमले किए गए। इसी अवधि के दौरान फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट और ड्रोन दोनों से 116,000 म्युनिशन और मिसाइल दागी गयीं। इनमें से 80% से भी ज्यादा हमले यूएस द्वारा किए गए। हालांकि, इसमें रूसी एयर फोर्स की भागीदारी की संख्या शामिल नहीं है, जो ISIS के खिलाफ ऑपरेशन में अपनी व्यक्तिगत योग्यता के आधार पर शामिल थी।

बघौज़ की हार एक महत्वपूर्ण पल थी, और ISIS की इलाकाई हार को एक उपलब्धि मान कर कम करके नहीं आंकना चाहिए। ISIS द्वारा एक समय में यूनाइटेड किंगडम के आकार के सीरिया और इराक तक फैले अपनी ‘खिलाफ़त’ के प्रतीक रेत के आखिरी ठिकाने को बचाने के लिए किया जा रहा प्रतिरोध बहुत जबर्दस्त था।

इसके ‘खलीफा’ अबु बकर अल-बगदादी द्वारा इसके आधिकारिक अस्तित्व की घोषणा 29 जून, 2014 को मोसुल में अल नूरी मस्जिद से करने के बाद इस प्रोटो-स्टेट का शासन-काल जमीन पर 4 साल और 8 महीने तक चला। बघौज़ का युद्ध अपने आप में ही देखने लायक था, और इसने ISIS लड़ाकों के मुकाबले की ताकत और अनेक मामलों में, उनके परिवारों की जबर्दस्त क्षमता दोनों को प्रस्तुत किया। इससे बहुत ही गहरे इंडॉक्ट्रिनेशन (मतारोपण) का पता चलता है। पिछले कई सप्ताह में, डेर ज़ोर के चारों और के रेगिस्तान में भाग रहे ISIS लड़ाकों के परिवारों के विडियो चल रहे हैं। साथ में उनके बच्चे भी हैं, वे जोर-शोर से खलीफाई के बचाव की बात कर रहे हैं और कैमरे की तरफ ISIS के समर्थन में नारे लगाते हुए पत्रकारों पर हमला कर रहे हैं। इस दौरान, यह पता लगा है कि 72,000 ISIS के परिवार के सदस्यों ने एसडीएफ के सामने आत्मसमर्पण किया और हजारों लड़ाकों ने खुद ही हथियार रख दिए क्योंकि यह साफ़ हो गया था कि बघोज़ अब जल्दी ही हाथ से जाने वाला है।

लेकिन, इस्लामिक स्टेट की इलाकाई हार का मतलब यह नहीं है कि एक आतंकी समूह के रूप में ISIS का सफाया हो गया है, न ही इसका मतलब यह है कि सीरिया में गृह युद्ध खत्म हो गया है। यह याद रखना बहुत जरूरी है कि ISIS का उभार सीरिया की लड़ाई का शुरुआत का कारण नहीं था। इराक के अल कायदा ने अरब स्प्रिंग के दौरान सीरिया में राजनैतिक खालीपन देखा और उसके साथ राष्ट्रपति बशर-अल-असद के शासन का विरोध करने वाले अनेक समूह भी थे। यह देख कर उन्होंने खालीपन में अपना वजूद ज़माने का निर्णय लिया। इराक में अल कायदा ने ही बदलकर वह रूप धारण कर लिया जिसे हम ISIS के रूप में जानते हैं। उन्होंने अपने को असद के खिलाफ अरब स्प्रिंग मूवमेंट में लगा लिया, हजारों लड़ाके अपने में मिला लिए और उत्तरी सीरिया में स्थित रक्का को 2014 में अपनी डी-फेक्टो राजधानी बना लिया। उन्होंने प्रशासनिक इमारतों से सीरियन झंडा हटा कर ISIS का झंडा लगा दिया। ये तस्वीरें दुनिया भर में पहले पेज पर छा गयी, दुनिया भर की प्रमुख राजधानियों में चिंता की लहर दौड़ गयी और ISIS को अभूतपूर्व प्रचार और ब्रांडिंग मिल गयी।

इस्लामिक स्टेट की हार का मतलब ISIS की हार नहीं है, न ही इसका मतलब इराक-सीरिया के रंगमंच पर जमे अन्य इस्लामिक समूहों की हार है। हालांकि, भौगोलिक रूप से हार बहुत खास थी। पूरी दुनिया में ISIS विचारधारा के लिए मुख्य धारा में जगह बनाने का जमीनी वजूद सबसे बड़ा उत्प्रेरक कारक था। इस कारण से अंजाने में अनेक लोग 2013 से 2016 के बीच सीरिया से यात्रा करते हुए इस प्रोटो-स्टेट में शामिल होने के लिए आए। प्रोटो-स्टेट से सहानुभूति रखने वालों ने सहजता से उपलब्ध विडियो, मैगज़ीन, अख़बारों आदि के द्वारा इसको ऑनलाइन मार्केट किया था। इस्लामिक स्टेट न सिर्फ अपनी टेरिटरी में एक सैनिक समूह की तरह सक्रिय था बल्कि गवर्निंग बॉडी की भूमिका भी निभा रहा था। उन्होंने अपनी कर प्रणाली, शरिया कानून लागू किए थे, अपने कब्जे वाले शहरों और कस्बों की सफाई की देखभाल करते थे, सहायता, पुलिस, इस्लामिक कोर्ट वगैरह उपलब्ध कराते थे। इनमें से कुछ गतिविधियों को उन आम लोगों के बीच लोकप्रियता मिलने लगी जो या तो सरकार की उपेक्षा से परेशान थे या इराक के मोसुल जैसा मामला था, जहां सुन्नी अल्पसंख्यकों को ऐसा लगा (हालांकि नासमझी में, जिसका उनको बाद में अहसास हुआ) कि निश्चित रूप से बेरहम शिया इराक के खिलाफ ISIS उनके हितों की रक्षा करेगी। इसके बाद से, ISIS एक विद्रोह के रूप में रही। इसका पहला अवतार अरब स्प्रिंग के दौरान दिखा। इराक और सीरिया के विभिन्न इलाकों में रिपोर्ट होने वाले लगातार हमलों का श्रेय ISIS लेती रही थी। एसडीएफ और यूएस द्वारा जीत घोषित करने के कई दिन पहले, 18 मार्च को जारी किए गए एक ऑडियो मेसेज के मुताबिक ISIS के प्रवक्ता अबू हसन अल-मुजाहिर, जिसे बग्दादी का निकटवर्ती भरोसेमंद माना जाता था और जिसकी कोई तस्वीर भी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, ने न्यूजीलैंड में क्राइस्टचर्च की मस्जिद पर आतंकी हमले का इस्तेमाल ISIS समर्थकों के हौसले में नयी जान फूंकने और उसे बुलंद करने के लिए किया। उसने हतोत्साहित हो चुके ISIS के समर्थन के आधार को फिर से ताकतवर बनाने के लिए बघौज़ से क्राइस्टचर्च तक मुस्लिमों के उत्पीड़न की कहानी गढ़ी।

‘खलीफाई के बाद’ का ISIS का दौर किसी भी तरह से आसानी से काबू में आने वाला नहीं है। इस बात के साफ़ अनुमान हैं कि अभी भी ISIS के हजारों लड़ाके मौजूद हैं, और सिर्फ अपने को बचाने के लिए इधर-उधर फ़ैल गए हैं। पकड़े गए अनेक ISIS के लड़ाके असमंजस की स्थित में हैं क्योंकि उनके मूल देशों ने उनको लेने से मना कर दिया है, यानी आखिरकार वे छूट जाएंगे। इराक में ट्रायल कोर्ट औपचारिक सुनवाई कर रहे हैं और ISIS लड़ाकों को मृत्युदंड दे रहे हैं जो कई बार सिर्फ कुछ मिनट चलती है। उन ISIS लड़ाकों या सदस्यों के कानूनी निर्णयों का मामला भी अभी निबटा नहीं है जो अपनी इच्छा के खिलाफ अपने को या अपने परिवार को बचाने के लिए समूह में शामिल हो गए। इसका जवाब साफ़ नहीं है, क्योंकि राजनैतिक उठापटक सीरिया में अभी भी पहले की तरह ही जारी है, और इराक में अनिश्चितता के बादल छाए हुए हैं और विभिन्न संगठनों के बीच संघर्ष आज भी संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है।

कुछ अर्थों में इस्लामिक स्टेट ने वैश्विक भू-राजनीति को ही बदल कर रख दिया है। समूह ने हमारी काउंटर-टेररिज्म की समझ को बुनियादी तौर पर पलट कर रख दिया है। यह पहले से ही अध्ययन का बड़ा अनिश्चित और सीमित क्षेत्र है जो ‘सभी तरह के आतंकवाद के लिए एक समाधान’ का नैरेटिव लागू करता है। इस सोच का नेतृत्व ख़ास तौर से यूएस करता है। जो दुनिया की एकमात्र महाशक्ति है। उसके ऊपर अक्सर ये आरोप लगते रहे हैं कि उनकी विदेश नीति की सोच छह महीने की अवधि से आगे नहीं जाती।

ISIS ने अभूतपूर्व चुनौतियां प्रस्तुत की हैं। इसने न सिर्फ एक प्रोटो-स्टेट बना लिया बल्कि इन्टरनेट को हथियारबंद कर दिया, तकनीक का इस्तेमाल किया। जिसने खलीफाई से बहुत दूर बैठे लोगों के खिलाफ सूचना और संचार के अलोकतांत्रिक तरीकों का प्रचार किया और विदेशों जैसे अफ्रीकन सहेल, लीबिया, फिलीपींस आदि में ‘विलायत’, या गार्डियनशिप में मौजूदगी दर्ज़ की। इससे यह एक महत्वपूर्ण ब्रांड बना, जिसकी ब्रांडिंग आतंकी समूहों से लेकर यूरोप के व्यक्ति तक हो गयी, और इसके नाम पर हिंसा की गयी और तुरंत अपने वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया। इस्लामिक स्टेट की लड़ाई शायद अब खत्म हो चुकी है लेकिन ISIS और उसके लम्बे समय से चल रहे युद्ध का पोषण करने वाली विचारधारा से लड़ाई एक लंबा चलने वाला युद्ध है। इसे सिर्फ ताकत और सैन्य शक्ति का इस्तेमाल करके नहीं जीता सकता। सबसे बड़ी चुनौती है ऐसा माहौल बनाना जिसमें ISIS 2.0 उभर न सके। खलीफाई के ऊपर सैन्य जीत का पहले से अनुमान था और आसान थी, लेकिन ISIS को हराने का असली काम तो अब शुरू हुआ है। विश्व समुदाय इस लड़ाई में वैसे ही मदद कर सकता है जैसे एसडीएफ की थी। किसी भी तरह का लम्बे समय तक चलने वाला समाधान उस इलाके के राज्यों, लोगों, नेताओं, कबीलों और माहौल से ही आ सकता है।

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