Published on Nov 04, 2023 Updated 0 Hours ago

अगले कुछ दशकों में नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी के लिए बहुत ज़्यादा ज़मीन हासिल करने की ज़रूरत होगी, ख़ास तौर पर सोलर पार्क के लिए. 

सोलर एनर्जी (सौर ऊर्जा) के अलग-अलग इस्तेमाल को बढ़ावा देने की कोशिश!

1.नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत के रूप में सौर ऊर्जा की व्यापक क्षमता

नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए जैसे-जैसे हम मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों, मोबिलिटी एवं ट्रांसपोर्ट, सर्कुलर सिस्टम (जहां कोई सामान कभी बेकार नहीं होता) और मैटेरियल इनोवेशन में जलवायु के अनुकूल पद्धतियों की तरफ बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे ऊर्जा के स्रोतों- जीवाश्म ईंधन से लेकर नवीकरणीय, ख़ास तौर पर सौर ऊर्जा- के हमारे उपयोग में भी हम मूलभूत बदलाव से गुज़र रहे हैं. दिलचस्प बात ये है कि पिछले दशक में सौर ऊर्जा के उत्पादन की लागत में 300 प्रतिशत की गिरावट आई है और 2016 में हमने इस मामले में कोयले की लागत के साथ बराबरी हासिल कर ली. सोलर फोटो वोल्टेक (PV) को अपनाने के समय से नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता 22 प्रतिशत CAGR (चक्रवृद्धि सालाना विकास दर) की दर से बढ़ रही है और आज दुनिया भर में 1 TW (ट्रिलियन वॉट) से ज़्यादा क्षमता के सौर पैनल स्थापित किए जा चुके हैं. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुमान के अनुसार 2040 तक ये क्षमता बढ़कर 7 TW हो जाएगी. इसके अलावा, भारत ने अभी तक कुल मिलाकर 63 GW (गीगा वॉट) सोलर PV को स्थापित करके उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है. इसमें से 14 GW की स्थापना सिर्फ 2022 में की गई. भारत स्वदेशी तकनीक के इस्तेमाल से सौर ऊर्जा की शक्ति वाले ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक गाड़ियों को विकसित करके 120 अरब अमेरिकी डॉलर के सालाना तेल आयात में काफी कटौती कर सकता है. 

सौर ऊर्जा के उत्पादन में सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है सूरज की लगातार गति पर नज़र रखना. इसकी वजह से सोलर पैनल के द्वारा सबसे ज़्यादा उत्पादन की अवधि एक सीमित समय की हो जाती है.

सौर ऊर्जा के उत्पादन में सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है सूरज की लगातार गति पर नज़र रखना. इसकी वजह से सोलर पैनल के द्वारा सबसे ज़्यादा उत्पादन की अवधि एक सीमित समय (दोपहर के करीब) की हो जाती है. इस समस्या को कुछ हद तक मेकेनिकल ट्रैकर्स के ज़रिए हल किया गया है जो मैनुअल ढंग से पैनल को पूरे दिन घुमाकर सूरज के सामने रखते हैं. आज सौर ऊर्जा का उत्पादन केवल इलेक्ट्रिकल प्लांट और शहरी छतों तक ही सीमित है. लेकिन सोलर की क्षमता बहुत ज़्यादा है और सौर ऊर्जा को उपभोक्ताओं के लिए पसंदीदा, दीर्घकालिक और सतत विकल्प बनाने के लिए हमें एक ध्यान केंद्रित करने वाले इनोवेशन की ज़रूरत है जो उत्पादों की एक व्यापक श्रृंखला को सौर ऊर्जा में इस्तेमाल के लिए बदल सकते हैं. उदाहरण के लिए, बालकनी, बाड़, बेंच, इमारतों के अगले हिस्से, खिड़की और ऑटोमोबाइल को सोलर रिफ्लेक्टिव (परावर्तक) सतहों में बदला जा सकता है जो न सिर्फ़ हरित ऊर्जा मुहैया कराते हैं हैं बल्कि आकर्षक यूनिट इकोनॉमिक्स (प्रति यूनिट की दर से निर्धारण) भी. 

2.रेनक्यूब का समाधान

रेनक्यूब में हमारा समाधान दो-तरफा है:  

  1. एक स्थिर सौर पैनल संरचना का पालन करने के बदले हम अपनी “मोशन फ्री ऑप्टिकल ट्रैकिंग” (MFOT) टेक्नोलॉजी के ज़रिए अपनी स्मार्ट ग्लास डिज़ाइन में एक ट्रैकिंग क्षमता का निर्माण कर रहे हैं. हमने अपने AI एल्गोरिदम के साथ ये स्मार्ट ग्लास बनाया है और इस समाधान की अनूठी बात ये है कि एक बार जब इसे सोलर पैनल के साथ फिक्स कर दिया जाता है तो ये पूरी तरह स्थिर बना रहता है और ये सोलर सेल में हॉटस्पॉट पैदा किए बिना पूरे साल सूरज की निगरानी कर सकता है. 
  2. हम सूरज की रोशनी वाली किसी भी सतह को एक सौर ऊर्जा पैदा करने वाली इकाई में तब्दील करने की संभावना तलाश रहे हैं और इस तरह हमारा मक़सद कुशल और सतत नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादों का निर्माण करना है. 

कॉमर्शियल और रूफ-टॉप सोलर सेगमेंट के लिए हमारा ग्राहक मूल्य प्रस्ताव (कस्टमर वैल्यू प्रोपोज़िशन) कम पूंजीगत खर्च (कैपेक्स) के साथ पैनल के लिए ट्रैकर जैसे फायदे की संभावना है. उदाहरण के लिए, ट्रैकर के साथ 100 मेगावॉट (MW) की सौर परियोजना में 20 प्रतिशत अतिरिक्त ऊर्जा के फायदे के लिए लगभग 13 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त पूंजीगत खर्च होता है. हालांकि रेनक्यूब की MFOT तकनीक यही फायदा कम रख-रखाव और ओवरहेड लागत के साथ 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अतिरिक्त पूंजीगत खर्च पर प्रदान करती है. 

नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता के मामले में महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें केवल राजस्थान जैसे सूखे, बंजर भू-भाग में बिजली उत्पादन पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे डिस्ट्रीब्यूशन लाइन पर दबाव पड़ेगा और बिजली की बर्बादी एवं ट्रांसमिशन में नुकसान होगा.

दिलचस्प बात ये है कि हमारे पैनल के अनूठे लेआउट की वजह से ये कृषि PV के लिए ज़्यादा उपयुक्त है. इसके कारण ज़मीन का दोहरा इस्तेमाल संभव होता है यानी खेती और सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए. तेलंगाना में हमारे कृषि PV के पायलट प्रोजेक्ट ने दिखाया है कि 95 प्रतिशत ज़मीन पर फसल का उत्पादन हुआ (रबी सत्र के दौरान जो कि नवंबर से अप्रैल के बीच होता है). वहीं पारंपरिक सोलर पैनल के साथ केवल 50 प्रतिशत ज़मीन का उपयोग फसल पैदा करने के लिए किया जा सकता है. इसने किसानों के लिए आमदनी के अतिरिक्त साधन के रूप में सौर ऊर्जा उत्पादन की संभावना की तलाश को खोला है. इसके लिए किसानों को अपनी ज़मीन सोलर डेवलपर्स को लीज़ पर देनी पड़ेगी जो किसानों को पैसे का भुगतान करते हैं (30,000 रुपया प्रति एकड़ प्रति वर्ष). ये आर्थिक गारंटी छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका में बड़ा अंतर ला सकती है.

 

हम मानते हैं कि हमारा इनोवेशन सही समय पर आया है क्योंकि भारत तेज़ी से अलग-अलग राज्यों में अपने सोलर फुटप्रिंट का विस्तार कर रहा है. नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता के मामले में महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें केवल राजस्थान जैसे सूखे, बंजर भू-भाग में बिजली उत्पादन पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे डिस्ट्रीब्यूशन लाइन पर दबाव पड़ेगा और बिजली की बर्बादी एवं ट्रांसमिशन में नुकसान होगा. इसके बदले हम हर राज्य में बंटे हुए तरीके से विश्वसनीय बिजली उपलब्ध कराने पर ध्यान दे सकते हैं. इसे एग्री PV जैसे समाधानों के साथ प्राप्त किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, 2030 तक 450 GW नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें सिक्किम राज्य के आकार के भू-भाग की ज़रूरत होगी. इसी तरह, 2070 तक 5,000 GW के नवीकरणीय ऊर्जा के भारत के नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के संकल्प को हासिल करने के लिए जितने भू-भाग की ज़रूरत होगी वो पश्चिम बंगाल राज्य के बराबर है. हमारा एग्री PV समाधान इन रिन्यूएबल ऊर्जा के लक्ष्यों को हासिल करना आसान बनाएगा. इसके लिए वो ज़मीन के दोहरे इस्तेमाल यानी सौर ऊर्जा उत्पादन और हमारी कृषि अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को पूरा करने को बढ़ावा देगा. हमारा उद्देश्य है कि इसे अलग—अलग क्षेत्रों और सूक्ष्म-जलवायु परिस्थितियों में आर्थिक रूप से व्यावहारिक बनाया जाए. 

3.आगे बढ़ने की चुनौतियां

रेनक्यूब का इनोवेशन ग्लास की डिज़ाइन में है जिसे हमारे AI सॉफ्टवेयर ने उपलब्ध कराया है. छोटे पैमाने पर हमारे शुरुआती प्रोटोटाइप के विकास के दौरान फ़िरोज़ाबाद, जिसे भारत में ग्लास के केंद्र के रूप में जाना जाता है, में कुटीर उद्योगों के साथ काम करते हुए हमने बाधाओं का सामना किया. कंप्यूटर ऐडेड डिज़ाइन (CAD) से तैयार हमारे डिज़ाइन के बारे में अकुशल श्रमिकों को बताने में हमें काफी अड़चनें आईं. उन्हें विशेष आकार का पालन करने के गंभीर महत्व के बारे में मनाना चुनौतीपूर्ण साबित हुआ, इसकी वजह से कुछ कीमती समय का नुकसान हुआ. हालांकि, आख़िरकार हमने लगातार कोशिशों, अलग-अलग उत्पादन की पद्धतियों और डिज़ाइन में सुधार की खोजबीन के ज़रिए इन रुकावटों पर जीत हासिल की. 

4.प्रमुख किरदारों के लिए सिफारिशें

हम ख़ुद को भाग्यशाली मानते हैं कि आज भारत में एक मददगार स्टार्टअप इकोसिस्टम का वजूद है और जिसे स्टार्टअप इंडिया की पहल, अनगिनत इनक्यूबेशन सेंटर, लैब और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर का समर्थन हासिल है. हालांकि, डीप-टेक स्टार्टअप्स के लिए पेशेंट कैपिटल (दीर्घकालीन पूंजी) की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है जिसे सरकार और निवेशकों- दोनों के द्वारा मुहैया कराया जाना चाहिए. इससे वैसे डीप-टेक हार्डवेयर प्रोडक्ट के बारे में विचार, प्रयोग और उसे विकसित किया जा सकेगा जिनके उत्पादन के लिए ज़्यादा पूंजीगत खर्च की आवश्यकता होती है और व्यावसायीकरण के लिए सोच-विचार और उसे लागू करने के बीच लंबा समय होता है. 

ख़ास तौर पर हम भारत सरकार से अनुरोध करेंगे कि वो एक क्लीनटेक ग्रांट (अनुदान) की संभावना पर विचार करे जो कि पूरी तरह नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसंधान जैसे कि सोलर PV, सोलर थर्मल, टाइडल (ज्वार), ग्रीन हाइड्रोजन और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कुशलता को बढ़ाने की दिशा में केंद्रित हो. बायोटेक्नोलॉजी इग्निशन ग्रांट, जो पिछले दो दशकों में बायोटेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स में उछाल का कारण बना, की तर्ज पर एक क्लीनटेक इग्निशन ग्रांट की स्थापना से हमारे इकोसिस्टम को काफी फायदा हो सकता है. वैसे तो हमारे पास बायोटेक्नोलॉजी, नैनोटेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंटीग्रेटेड सर्किट (IC) डेवलपमेंट और दूसरे इनोवेशन के लिए कई इनक्यूबेशन सेंटर और समर्पित लैब हैं लेकिन तेज़ रफ्तार से प्रोटोटाइप का विस्तार करने के उद्देश्य के लिए सोलर इनोवेशन पर केंद्रित ख़ास इनक्यूबेशन सेंटर की सख्त ज़रूरत है. 

वैसे तो किसानों को अपनी ज़मीन लीज़ पर देने से होने वाली सुनिश्चित आमदनी से फायदा होता है लेकिन डेवलपर अभी भी अतिरिक्त पूंजीगत लागत को खपाने में झिझकते हैं.

अंत में एग्री PV एक उम्मीदों से भरा क्षेत्र है जो एक साथ हमारी खाद्य-ऊर्जा की कड़ी का समाधान करता है. सबसे बड़ी प्राथमिकता के तौर पर हमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग की ज़रूरत है ताकि एग्री PV को लागू करने के लिए नियामक ढांचा बनाया जा सके और इस पहल का समर्थन करने के लिए ज़रूरी नीतियां तैयार की जा सकें. एग्री PV की संरचना को स्थापित करने के लिए एक अतिरिक्त 5-10 प्रतिशत की शुरुआती लागत शामिल होती है. इस पैसे का इस्तेमाल सोलर पैनल को ऊपर उठाने में किया जाएगा ताकि नीचे खेत की मशीनें काम कर सकें. वैसे तो किसानों को अपनी ज़मीन लीज़ पर देने से होने वाली सुनिश्चित आमदनी से फायदा होता है लेकिन डेवलपर अभी भी अतिरिक्त पूंजीगत लागत को खपाने में झिझकते हैं. इस तरह सरकार की तरफ से सही वित्तीय प्रोत्साहन; किसानों और डेवलपर्स के बीच पुल की तरह काम करने वाली एक स्थानीय नोडल एजेंसी की स्थापना; और भूमि कानूनों के नियमितीकरण (रेगुलराइज़ेशन), जो कि अक्सर राज्य के हिसाब से होते हैं, के साथ एग्री PV को बढ़ाकर इन किसानों की आजीविका का कायापलट किया जा सकता है. 

अगले कुछ दशकों में नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी के लिए बहुत ज़्यादा ज़मीन हासिल करने की ज़रूरत होगी, ख़ास तौर पर सोलर पार्क के लिए. इस बदलाव को आसान बनाने के लिए एग्री PV की धारणा एक अच्छे समाधान के तौर पर उभरती है. इसके माध्यम से ज़मीन को एक साथ बिजली उत्पादन और खेती- दोनों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि एग्री PV की सफलता तीन प्रमुख क्षेत्रों- सौर नीति, भूमि नीति और किसान नीति- में सरकार के महत्वपूर्ण समर्थन पर निर्भर करती है. सरकार का समर्थन निम्नलिखित तरीके से मिल सकता है:

  1. एग्री PV से उत्पादित बिजली के लिए फीड-इन टैरिफ में प्राथमिकता (निश्चित, बाज़ार से ज़्यादा टैरिफ) दी जाए. 
  2. एग्री PV सिस्टम को अपनाने को सुगम बनाने के लिए भूमि नीति में संशोधन किया जाए.  
  3. एग्री PV प्रोजेक्ट में भागीदारी करने वाले किसानों को लीज़ की आमदनी समय पर मिलने को सुनिश्चित किया जाए. 

इसके अलावा, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन नुकसान, जिसका अनुमान 10 प्रतिशत के करीब है, में महत्वपूर्ण रूप से कमी लाने के लिए सरकार डिस्ट्रीब्यूटेड रिन्यूएबल एनर्जी जेनरेशन (इस्तेमाल होने वाले क्षेत्र के करीब बिजली का उत्पादन) को बढ़ावा दे सकती है. इसके लिए एक प्रभावी तरीका है उद्योगों को नज़दीक में उपलब्ध खेती की ज़मीन पर सोलर इंस्टॉलेशन का निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करना. 

सौर तकनीक में इनोवेशन को बढ़ावा देने और सौर ऊर्जा के उत्पादन की लागत को कम करने के लिए सरकारी संगठन जैसे कि नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है. MNRE को बायोटेक्नोल़ॉजी और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर में प्रदान किए गए समर्थन की तरह सोलर सेक्टर में डीप-टेक इनोवेशन के लिए पर्याप्त अनुदान, 1 करोड़ से ज़्यादा, मुहैया कराने पर विचार करना चाहिए. रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रख्यात संगठनों जैसे कि अमेरिका की राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा प्रयोगशाला (NREL) और जर्मनी के फ्रॉनहोफर इंस्टीट्यूट फॉर सोलर एनर्जी के साथ सहयोग विकास में और तेज़ी ला सकता है. 

इसके अलावा, सरकारी पहल जैसे कि भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के द्वारा अलग-अलग उद्योगों के बीच सहयोग के कार्यक्रमों ने सफलता दिखाई है. स्टार्टअप्स के साथ तालमेल के लिए उद्योगों को बढ़ावा देने से प्रोटोटाइपिंग में तेज़ी और सोलर सेक्टर में इनोवेटिव समाधान के विकास को प्रोत्साहन मिल सकता है और इससे भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के कुल विकास में योगदान मिलेगा.

5.निष्कर्ष

रेनक्यूब में हम तकनीक मुहैया कराने वाला बनना चाहते हैं जिससे भारत में सौर ऊर्जा को अपनाने में तेज़ी आएगी. एक उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) देश होने की वजह से भारत सौर ऊर्जा के उत्पादों के अलग-अलग उपयोग को बढ़ावा दे सकता है और दुनिया के ऊर्जा रोडमैप में अपना स्थान बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है. कॉप26 (ग्लासगो में आयोजित 26वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन) में नवीकरणीय ऊर्जा के व्यापार के लिए “एक सूरज एक विश्व एक ग्रिड” के दृष्टिकोण का खाका पेश किया गया है और इस संबंध में भारत नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में महाशक्ति बनने के लिए अच्छी स्थिति में है. 


बालाजी लक्ष्मीकांत बंगोलेई रेनक्यूब के फाउंडर और CEO हैं.

लक्ष्मी संथानम रेनक्यूब की को-फाउंडर और COO हैं.

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