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अनिश्चितता को देखते हुए बांग्लादेश की राजनीति के बारे में भविष्यवाणी करना जल्दबाज़ी होगी ख़ासतौर से उनकी रिहाई के बाद.
बांग्लादेश की राजनीति में बड़े बदलाव के तहत विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की अध्यक्ष और दो बार की प्रधानमंत्री बेगम ख़ालिदा ज़िया को 25 मार्च को जेल से रिहा कर दिया गया. बेगम ज़िया क़रीब दो साल से ज़्यादा समय के बाद जेल से बाहर आई हैं. वो पांच साल क़ैद की सज़ा काट रही हैं. बेगम ज़िया को उनके पति और पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल ज़ियाउर रहमान के नाम पर बने चैरिटेबल संगठन में वित्तीय हेराफेरी के मामले में सज़ा मिलने के बाद जेल भेजा गया था. बेगम ज़िया को मानवीय आधार पर 6 महीने के लिए जेल से रिहा करने का फ़ैसला कोविड-19 महामारी फैलने के बाद लिया गया. बेगम ज़िया 74 साल की है और उन्हें डायबिटीज़ और अर्थराइटिस जैसी बीमारियां हैं. उनकी सेहत को देखते हुए अवामी लीग सरकार किसी तरह का जोखिम लेना नहीं चाहती थी. इस फ़ैसले से प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की तारीफ़ हो रही है और बांग्लादेश के लोग सरकार के क़दम का समर्थन कर रहे हैं. इस घटनाक्रम से उम्मीद बढ़ी है कि बांग्लादेश में आमने-सामने संघर्ष की राजनीति में बदलाव आएगा.
बेगम ज़िया ढाका के अपने घर में रहेंगी और उनका इलाज बांग्लादेश के डॉक्टर करेंगे. कोविड-19 महामारी के समय उन्हें अपने घर की सीमा में रहना होगा और अलग-अलग देशों की तरफ़ से वायरस के फैलाव को रोकने के लिए लगाई गई यात्रा पाबंदी की वजह से वो विदेश नहीं जा सकेंगी
लंबे वक़्त से BNP विदेश में बेगम ज़िया के इलाज के लिए उनकी रिहाई की मांग कर रही थी. इससे पहले उनकी ज़मानत के लिए अदालत में अर्ज़ी दाखिल की गई थी लेकिन उसे ख़ारिज कर दिया गया. पार्टी ने सरकार से उनकी रिहाई की अपील भी की थी. लेकिन इन कोशिशों का कोई नतीजा नहीं निकला. ये गौर करने वाली बात है कि उनकी रिहाई शर्तों के साथ हुई है और वो देश से बाहर नहीं जा सकती हैं. बेगम ज़िया ढाका के अपने घर में रहेंगी और उनका इलाज बांग्लादेश के डॉक्टर करेंगे. कोविड-19 महामारी के समय उन्हें अपने घर की सीमा में रहना होगा और अलग-अलग देशों की तरफ़ से वायरस के फैलाव को रोकने के लिए लगाई गई यात्रा पाबंदी की वजह से वो विदेश नहीं जा सकेंगी.
अनिश्चितता को देखते हुए बांग्लादेश की राजनीति के बारे में भविष्यवाणी करना जल्दबाज़ी होगी ख़ासतौर से उनकी रिहाई के बाद. साफ़तौर पर संसद में अवामी लीग के पूर्ण बहुमत और सरकार के साढ़े तीन साल के बाक़ी कार्यकाल को देखते हुए अवामी लीग सरकार की स्थिरता पर कोई ख़तरा नहीं है. सड़कों पर प्रदर्शन जिसके लिए बांग्लादेश के राजनीतिक दल मशहूर हैं, का डर जताया गया है लेकिन महामारी के ख़तरे को देखते हुए इसकी आशंका नहीं है. बाक़ी दुनिया की तरह बांग्लादेश भी कोविड-19 महामारी से प्रभावित है और क़रीब पांच लोगों की पहले ही मौत हो चुकी है. सरकार ने सख़्त ऐहतियाती क़दम उठाए हैं और सामाजिक दूरी और लोगों से घरों में रहने पर ज़ोर दिया जा रहा है. लोगों को भी बीमारी के ख़तरे के बारे में पता है और वो इन क़दमों को गंभीरता से ले रहे हैं. ऐसे में BNP की तरफ़ से कोई बड़ी पहल उसकी विश्वसनीयता को कमज़ोर करेगी और पार्टी ने इन पहलुओं पर ज़रूर विचार किया होगा.
1991 में बांग्लादेश में लोकतंत्र की फिर से स्थापना के बाद BNP दो बार सत्ता में (1991 से लेकर 1996 और 2001 से 2006) रही है. BNP सत्ताधारी अवामी लीग की मुख्य प्रतिद्वंदी है और दोनों पार्टियां के संबंध हमेशा ख़राब रहे हैं. दोनों पार्टियों के बीच प्रतिद्वंदिता की वजह से उनके समर्थकों के बीच अक्सर हिंसक भिड़ंत होती है जिसका असर क़ानून-व्यवस्था पर पड़ता है और इसका नतीजा राजनीतिक अस्थिरता के रूप में सामने आता है. 2006 के संसदीय चुनाव से पहले भिड़ंत की वजह से अराजकता फैल गई और चुनाव को रद्द करना पड़ा. उस वक़्त के क़ानून के तहत चुनाव पर नज़र रखने के लिए जिस कार्यवाहक सरकार की नियुक्ति की गई उसने इस्तीफ़ा दे दिया जिसकी वजह से संवैधानिक संकट खड़ा हो गया. हालात पर काबू पाने के लिए आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी.
लेकिन पिछले कुछ समय से देश में सड़कों पर प्रदर्शन काफ़ी हद तक कम हो गए हैं. बांग्लादेश की राजनीतिक संस्कृति में बदलाव को लेकर किसी नतीजे पर पहुंचना फिलहाल जल्दबाज़ी होगी. BNP की ताक़त में कमज़ोरी के कुछ संभावित कारणों में शामिल हैं-
तारिक़ रहमान स्वास्थ्य संबंधी वजहों से पिछले एक दशक से ज़्यादा समय से लंदन में रह रहे हैं. बेगम ज़िया की रिहाई उनकी पार्टी के लिए उम्मीद की किरण बनकर आई है.
BNP के लिए आगे ये इम्तिहान है कि क्या वो राजनीति से ऊपर उठकर इंसानियत के सामने सबसे बड़े ख़तरे कोविड-19 के ख़तरे को कम करने में अपने देशवासियों के साथ खड़ी रहती है या नहीं
BNP के लिए आगे ये इम्तिहान है कि क्या वो राजनीति से ऊपर उठकर इंसानियत के सामने सबसे बड़े ख़तरे कोविड-19 के ख़तरे को कम करने में अपने देशवासियों के साथ खड़ी रहती है या नहीं.
बांग्लादेश की राजनीतिक संग्राम में उतरीं बेगमों के तौर पर मशहूर ख़ालिदा ज़िया और शेख़ हसीना इंसानियत की जिस संकट का सामना कर रही है, उसमें वो साथ काम कर इस नाम को ग़लत साबित कर सकती हैं.
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Joyeeta Bhattacharjee (1975 2021) was Senior Fellow with ORF. She specialised in Indias neighbourhood policy the eastern arch: Bangladeshs domestic politics and foreign policy: border ...
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