पाकिस्तान में हुई बदहाल आर्थिक स्थिति के कारण पाकिस्तान के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में असंतुलन पैदा हो गया है एवं पाकिस्तान में अर्थव्यवस्था को सुधारने हेतु कोई मित्र देश भी पाकिस्तान की मदद करता नज़र नहीं आ रहा. ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि अब पाकिस्तान के आगामी निर्णय क्या होंगे एवं किन फैसलों की वजह से यह हालात बनें. भारत के पड़ोस में हो रहे इन राजनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक हलचल पर ओआरएफ़ के वीडियो मैगज़ीन “गोलमेज” के ताज़ा एपिसोड में सुशांत सरीन और नग़मा सह़र ने बातचीत की, उसी पर आधारित है यह लेख, जिसका शीर्षक है “पाकिस्तान : सियासी उठापटक और प्रशासनिक गिरावट के बिच आर्थिक बदहाली”
नग़मा – पाकिस्तान के सामने बहुत बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है, विरोध प्रदर्शन होने के साथ-साथ पुराने मित्र देश (चीन एवं सऊदी अरब) भी मदद नहीं कर पा रहे हैं क्या वजह है इन सब के पीछे?
सुशांत सरीन – चीन एवं सऊदी अरब ने जो पहले मदद की थी, अब वो आगे पाकिस्तान की मदद तभी करेगा जब वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यक्रम में शामिल होगा. यूनाईटेड अरब अमीरात ने भी शर्ते लगा दी हैं, वह पाकिस्तान को तभी मदद करेगा जब वह पाकिस्तान की कंपनियों में हिस्सा एवं बोर्ड में यूएई को सीट देगा. तमाम देशों ने भी पाकिस्तान को यही सन्देश दिया है कि पाकिस्तान अपनी आर्थिक स्थिति सुधारे, दूसरों के ऊपर ज्य़ादा निर्भर होना सही नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान पिछले 70 वर्षों से दूसरों के पैसों पर जीता आया है. जैसे- अमेरिका या अन्य देशों से मदद आती थी तब पाकिस्तान उन्नति पर होता था और जब वह मदद रोक दी जाती तब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था नीचे आ जाती. लेकिन पाकिस्तान में जो वर्तमान में संकट है वैसा पहले नहीं देखा गया. जो संकट आया है वो वर्तमान या पूर्व की सरकार द्वारा नहीं बल्कि यह 30-40 वर्षो पहले जो कदम उठाए थे, यह उसका नतीजा है. इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है. पाकिस्तान में 1990 में लगभग सभी औद्यगिक प्लांट को तेल द्वारा चलाने का निर्णय लिया गया और सभी प्लांट को तेल निर्यात करके चलाया गया, तब तेल का मूल्य 13-14 डॉलर था, तब किसी ने यह नहीं सोचा था कि इसका मूल्य 125-140 डॉलर हो जाएगा. अत: जो टैरिफ़ कर लगाया गया था वह गिरते रुपये के साथ-साथ बढ़ता गया, और ऐसे में यह संकट आ गया. जो तेल के भाव बढ़े तब इमरान सरकार ने सब्सिडी देनी शुरू कर दी, जबकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के पास उपलब्ध पैसा नहीं है, ऐसे में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खराब होनी ही थी. दूसरा पक्ष यह है कि सरकार की अर्थव्यवस्था ख़त्म हो गयी है क्योंकि पाकिस्तान का जो इस वर्ष बजट आया है वो दुनिया का पहला ऐसा बजट होगा जिसमें ये कहा गया है कि, यह बजट तो अनुमानित है अत: इसको कोई भी गंभीरता से नहीं लेगा. पाकिस्तान केंद्र सरकार द्वारा बजट का 80 प्रतिशत क़र्ज़ भुगतान में लगा देगा और सुरक्षा का खर्चा वह भी आधे से ज्य़ादा कर्ज़ लेकर पूरा करेगा, अत: इससे सारी सरकार कर्जे में होगी. जो अभी हालिया रिपोर्ट आयी है वो कहती है कि, लगभग 25-26 प्रतिशत खाद्य मुद्रा स्फीति चल रही है. यदि मुद्रा स्फीति को बचाने के लिए पाकिस्तान ब्याज़ के दरों को बढ़ाता है तो बजट का घाटा बढ़ जाएगा और इससे सारे देश का कारोबार क़र्ज़ पर चलेगा और ज्य़ादा कर्ज़ बढ़ जाएगा. नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान की आवाम को समझौता करना पड़ रहा है. अत: वहां के गरीब लोगों को जीवन निर्वाह करने में काफी कठिनाई हो रही है. बिजली और तेल की कीमतों में हुई वृद्धि से भी निम्न वर्ग के लोगों को काफी समस्या हुई है.
पाकिस्तान पिछले 70 वर्षों से दूसरों के पैसों पर जीता आया है. जैसे- अमेरिका या अन्य देशों से मदद आती थी तब पाकिस्तान उन्नति पर होता था और जब वह मदद रोक दी जाती तब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था नीचे आ जाती. लेकिन पाकिस्तान में जो वर्तमान में संकट है वैसा पहले नहीं देखा गया.
नग़मा – पाकिस्तान ने ऐसे राजनीतिक निर्णय लिए जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए उचित नहीं थे. जैसे भारत द्वारा कश्मीर से धारा 370 हटाने पर पाकिस्तान ने भारत से व्यापार रोक दिया, इसका आकलन कैसे करेंगे?
सुशांत सरीन – पाकिस्तान वैसे तो अपने आपको कृषि आधारित अर्थव्यवस्था कहता है किन्तु वर्तमान में हालात यह है कि आज पाकिस्तान की आवाम को गेहूं आयात करके उपलब्ध कराया जा रहा है. यदि पाकिस्तान को गेहूं आयात ही करना था तो भारत से वह आसानी से आयात कर सकता था, इससे बेहतर विकल्प क्या हो सकता था. पाकिस्तान चीनी भी आयात कर सकता था एवं वहीं कपास जो लगभग 60% पाकिस्तान के उद्योगों में काम आती है भारत के बजाय चीन के सिझियांग प्रान्त से आयात कर रहा है, सिझियांग प्रान्त पर लगे प्रतिबंध से एक और नयी मुसीबत का सामना कर रहा है. वहीं दूसरी ओर गौर करें तो पाकिस्तान की जो आधारभूत संरचना है वह बहुत ही संकुचित है, क्योंकि पाकिस्तान कभी उससे उबरने की कोशिश ही नहीं करता नज़र आता.
जब अमेरिका और पश्चिमी देशों का रुझान अफ़ग़ानिस्तान में था, तब ज़रूर पाकिस्तान की स्थिति में इज़ाफा होता था किन्तु अब वह भी ख़त्म हो गया. पाकिस्तान की अब कोई सामरिक स्थिति बची नहीं है और जो चीन के कारण स्थिति है वो भी उत्तर-दक्षिण है पूर्व-पश्चिम की स्थिति नहीं है.
पाकिस्तान यह कहता है कि पाकिस्तान की सामरिक स्थिति बहुत सुदृढ़ है और वह दक्षिणी एशिया, मध्य एशिया और पश्चिमी एशिया के मध्य एक सेतु (BRIDGE) है. जबकि दक्षिणी एशिया में तो भारत है और उसको पाकिस्तान पहले ही काट चुका है अब पाकिस्तान एक लटका हुआ सेतु प्रतीत होता है. जब अमेरिका और पश्चिमी देशों का रुझान अफ़ग़ानिस्तान में था, तब ज़रूर पाकिस्तान की स्थिति में इज़ाफा होता था किन्तु अब वह भी ख़त्म हो गया. पाकिस्तान की अब कोई सामरिक स्थिति बची नहीं है और जो चीन के कारण स्थिति है वो भी उत्तर-दक्षिण है पूर्व-पश्चिम की स्थिति नहीं है. पाकिस्तान परमाणु शस्त्र के आधार पर ज़रूर सम्पन्न है बाकि पाकिस्तान के पास ऐसा कुछ खास बचा नहीं. समय रहते पाकिस्तान अब भी अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकता है तो पाकिस्तान के हित में होगा वरना ऐसे ही चलता रहेगा.
नग़मा – पाकिस्तान की जो वर्तमान स्थिति (आतंकवाद, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा एवं क़र्ज़ जाल) है उसके समाधान के लिए पाकिस्तान को आगे क्या करना चाहिए एवं कैसे फैसले लेने होंगे?
सुशांत सरीन – यदि हम आतंकवाद की बात करे तो यह जानना आवश्यक है कि बदहाल अर्थव्यवस्था आतंकवाद को बढ़ाती है या आतंकवाद बदहाल अर्थव्यवस्था को लेकर आती है. आज हमारे पास ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि बदहाल अर्थव्यवस्था आतंकवाद को बढ़ाती है, बदहाल अर्थव्यवस्था से आंतरिक रूप से कलह हो सकता है आतंकवाद नहीं. अभी हमारे पास ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं है कि आतंकवाद बदहाल अर्थव्यवस्था को बढ़ाता है. यदि हम 1990 की बात करें तो पाकिस्तान जब से आतंकवाद को भारत के लिये बढ़ावा दे रहा है. और भारत व पाकिस्तान दोनों की 1990 से आर्थिक स्थिति देखें तो पाकिस्तान की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ दिखेगी. अत: आतंकवाद एवं आर्थिक बदहाली का कोई लिंक स्पष्ट रूप से नहीं दिखता. वहीं यदि हम चीन की बात करे तो पिछले 8-10 वर्षो से पाकिस्तान के ऊपर सबसे ज्यादा चीन का कर्ज़ है. चीन ने जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का निर्माण शुरू किया वह इतना महंगा है कि उसको चुकाते-चुकाते पाकिस्तान का दिवाला निकल जाएगा. पाकिस्तान चीन से निवेदन कर रहा है की भुगतान में थोड़ी रियायत दी जाए लेकिन चीन इससे इनकार कर रहा है. चीन की तरफ से अब निवेश भी नहीं हो रहा. वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी शर्त रख दी है कि हम जो भुगतान करेंगे उससे चीन का कर्ज़ नही उतारेंगे, वह पाकिस्तान अपने विकास के ऊपर खर्च करें. अब यदि हम आगामी समाधान की बात करे तो जो परेशानी अब उठानी पड़ रही है उससे कहीं ज्य़ादा परेशानी आगे झेलनी होंगी. आगामी हल यही होंगे कि पाकिस्तान को सभी से कर वसूलने होंगे जैसे की पाकिस्तानी सैनिक से अभी तक कोई कर वसूल नहीं किया जाता, बेहतर स्थिति करने के लिए सभी से समान रूप से कर लेना होगा. साथ ही पूंजीपतियों को जो छूट दी गयी थी वो बंद करनी होगी, इससे हो सकता है कि पाकिस्तान में बेरोज़गारी बढ़े और कारखाने भी बंद हो सकते हैं किंतु एक बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए पुराने नियमों को बदलना आवश्यक है. यदि ऐसा नहीं होता है तो पाकिस्तान लीपा-पोती करके 6 माह या 1 वर्ष तक और अपनी अर्थव्यवस्था संभाल सकता है लेकिन इससे अधिक नहीं. पाकिस्तान को अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए ऐसे कड़े कदम उठाने होंगे, जिसमे पाकिस्तान को कर (TAX) एकत्रित करने होंगे, सब्सिडी बंद करनी होगी, कंपनियों को बंद होने देना पड़ेगा, सरकारी कंपनियों को बेचना पड़ेगा. यह आसान बात नहीं है खासकर तब, जब पाकिस्तान में आर्थिक स्थिति की हालत ऐसी नाज़ुक स्थिति में है. इससे आसन राह कोई नहीं है. पाकिस्तान को लंबे समय तक उबारने में ऐसे कदम उठाने होंगे, कुछ समय तक राहत के लिए जरूर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संगठन से मदद ली जा सकती है किंतु वह अल्पकालिक होगी पूर्ण रूप से नहीं.
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