Author : Pulkit Athavle

Expert Speak Health Express
Published on Jul 30, 2024 Updated 2 Days ago

नवजात बच्चों के बायोमेट्रिक्स छाया को संग्रहित करने से देश की कमज़ोर आबादी के बच्चों तक स्वास्थ्य सेवाओं की अधिक पहुँच उपलब्ध की जा सकेगी जिससे, पूरी दुनिया के यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज को पाने में सहायता होगी.

नवजात बच्चों की शुरुआती बायोमेट्रिक्स: स्वास्थ्य सेवा में सुधार लाने का औज़ार!

भारत में व्यक्तिगत पहचान के सत्यापन के लिये मूलभूत उपकरण के तौर पर, बायोमेट्रिक्स को आधार प्रणाली का नींव माना जाता है. बायोमेट्रिक्स के कारण ही आधार सिस्टम को सरकार द्वारा दी जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण की दिशा में तेज़ी से एकीकृत किया जा रहा है. इसके बावजूद, बायोमेट्रिक प्रणाली पाँच साल तक की उम्र के शिशुओं को कवर नहीं करती है, क्योंकि एक वक्त में ऐसा माना जाता था कि कम उम्र के बच्चों के बचपन में उंगलियों के निशान का सटीक रूप से पता लगा पाना कठिन था. हालांकि, हाल के दिनों में हुई तकनीकी प्रगति का ये मतलब समझा जा रहा है कि स्वास्थ्य सेवा वितरण क्षेत्र को और प्रोत्साहित करने के लिए, छोटे बच्चों के प्रारम्भिक सालों (1 – 5 वर्ष) के दौरान बायोमेट्रिक्स पर, सक्रिय रूप से विचार किया जाना चाहिए. विशेष रूप से उन वर्गों के लिये जो सबसे ज़्यादा वंचितों की श्रेणी में आते हैं. 

अंगूठे का निशान: पहचान चिह्न 

ऐसा देखा गया है कि कम उम्र यहां कि नवजात बच्चों की उंगलियों के निशान भी, वयस्क होने पर भी काफी हद तक बदलते नहीं हैं. इसके अलावा, सतही तौर पर एपिडर्मिस को होने वाली क्षति भी फिंगर प्रिंट अथवा उंगलियों के निशान के पैटर्न को नहीं बदल सकती है. हालांकि, तीव्र या कठिन शारीरिक श्रम, से (अस्थायी तौर पर) हाथों के इन पैटर्न को खराब कर सकता है, जबकि गहरे शारीरिक श्रम की वजह से जन्म स्थायी निशान, इन्हें बाधित कर सकते हैं. नतीजतन, विकासशील देशों में, जहां  के नागिरकों के पास, सरकारी दस्तावेज़ों और अन्य किसी भी तरह के पहचान के कागज़ातों की कमी है, वहाँ, किये जाने वाले ये पहचान एक स्थिर मार्कर अथवा चिह्न के रूप में काफी फायेदमेंद साबित होते हैं, इसलिए किशोर बच्चों एवं नवजात शिशुओं के उंगलियों के निशान की पहचान करना, शोध का एक प्रमुक विषय है.

ऐसा देखा गया है कि कम उम्र यहां कि नवजात बच्चों की उंगलियों के निशान भी, वयस्क होने पर भी काफी हद तक बदलते नहीं हैं. इसके अलावा, सतही तौर पर एपिडर्मिस को होने वाली क्षति भी फिंगर प्रिंट अथवा उंगलियों के निशान के पैटर्न को नहीं बदल सकती है.

बच्चों के फिंगर प्रिंट्स लेने में दिक्कतें 

फिर भी, व्यवहारिक तौर पर, अपर्याप्त तकनीक़ और बच्चों के बचकाने व्यवहार की वजह से पाँच साल या उसके कम उम्र के बच्चों की उंगलियों के निशान को चिन्हित करना काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है. 

सबसे पहले तो, नवजात बच्चों की उंगलियों के निशान का मूल पैटर्न या नमूना समय के साथ साथ बदलता नहीं है, परंतु इमेजिंग के दृष्टिकोण से, समय के साथ इसमें बड़े बदलावों को देखा जा सकता है. ये जानते हुए कि सभी उंगलियों के निशानों में कटान एवं घाटियां होती है, जिसकी बदौलत एक अनूठे पैटर्न का निर्माण होता है. और जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, इन कटानों के बीच की जगह असमान रूप से बड़ी होती जाती है, जिस वजह से टेक्नोलॉजी के लिए, पूर्व में ही दर्ज नमूनों से उंगलियों के इन नये निशानों या  फिंगर पैटर्न का मिलान कर पाना काफी मुश्किल हो जाता है. जन्म के हफ्ते भर बाद  से ही नवजात शिशुओं की त्वचा छूटने लगती है जिसकी वजह से भी ये काम काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है.  

दूसरा, वयस्कों के लिए जिस फिंगरप्रिंट पहचान टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसमें आमतौर पर ‘प्लेटेन’ (कांच से बनी एक सतह, जिस पर उंगली को रख कर दबाया जाता है) का उपयोग किया जाता है. कम उम्र बच्चों के लिए ऐसा करना चिंताजनक हो सकता है क्योंकि इन ठोस कांच के तले पर उनकी उंगलियों को दबाने की वजह से उनकी नरम, लचीली त्वचा को चोट पहुंच सकती है, और उनकी हथेलियों पर दिखने वाली आंशिक तौर पर  परिभाषित कटक लिये गये उंगलियों के नमूनों को अस्पष्ट कर सकते हैं

व्यावहारिक तौर पर, किसी भी छोटे बच्चे का इस्तेमाल करने लायक फिंगरप्रिंट स्कैन पाने के लिए जिस दबाव एवं ओरियेंटेशन की ज़रूरत होती है, वो इस प्लेट पर उनकी उंगली को रखवा कर ही मिल सकता है, जो कर पाना फिलहाल काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है.

अंततः व्यावहारिक तौर पर, किसी भी छोटे बच्चे का इस्तेमाल करने लायक फिंगरप्रिंट स्कैन पाने के लिए जिस दबाव एवं ओरियेंटेशन की ज़रूरत होती है, वो इस प्लेट पर उनकी उंगली को रखवा कर ही मिल सकता है, जो कर पाना फिलहाल काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता  है. ऐसा माना जाता है कि, नवजात शिशुओं में, ये दिक्कतें बाल्यावस्था के दौरान उनके प्रारम्भिक ग्रास्प, रिफ्लेक्स की वजह से काफी बढ़ जाती है (जहां उन्हें पहले से संपर्क में रहे वस्तुओं को तुरंत से पकड़ने की आदत होती है) और जो आगे भी प्लैटन में देखे जा सकने वाले पैटर्न अथवा नमूनों को और भी बिगाड़ या विकृत कर देते हैं.  

 

अर्ली चाइल्डहुड फिंगरप्रिंट तकनीक: बाज़ार की राह पर

इसी तरह से, विगत कई सालों से, कई तरह की नई टेक्नोलॉजी की मदद से, ऐसी प्रणाली को तैयार करने की कोशिश जारी है, जो बाल्यावस्था, विशेष कर के पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की उंगलियों के निशान को सटीक तरीके से पकड़ सके. उदाहरण के लिए, छोटे बच्चों के हाथों के फिंगरप्रिंट का नमूना लेने के लिए और अधिक रेज़ोल्यूशन  वाले स्कैनर (वयस्कों के लिए 500 पीपीआई बनाम1000 पीपीआई) का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. चूंकि, वयस्कों की तुलना में शिशुओं के हाथों के निशान काफी छोटे एवं अस्पष्ट होते हैं. इसका उपयोग कभी-कभी उन सॉफ्टवेयर्स के साथ भी किया जाता है, जो प्रिंट की कमी को भी सही कर सकते हैं (जैसे कि धुंधलापन और उंगलियों के गलत सेटिंग).  

प्लैटेन से जुड़ी विकृतियों से निपटने के लिए, वैकल्पिक तौर पर, उभरती हुई टेक्नोलॉजी ने  गैर-संपर्क इमेजिंग के इस्तेमाल की मांग की है जहां फिंगरप्रिंट के निशान को, बग़ैर किसी ठोस तल अथवा सतह के खिलाफ़ दबाए भी ली जा सकेगी. रिसर्च सेटिंग्स में, इन विधियों के ज़रिये ये साफ हुआ है कि वर्तमान की तकनीक की मदद से आरंभिक शिशु अवस्था में भी फिंगरप्रिंट का पता लगाना संभव है. 

प्लैटेन से जुड़ी विकृतियों से निपटने के लिए, वैकल्पिक तौर पर, उभरती हुई टेक्नोलॉजी ने  गैर-संपर्क इमेजिंग के इस्तेमाल की मांग की है जहां फिंगरप्रिंट के निशान को, बग़ैर किसी ठोस तल अथवा सतह के खिलाफ़ दबाए भी ली जा सकेगी.

हाल ही में, जापानी कॉर्पोरेशन NEC, ब्रिटिश स्टार्टअप (सिम्प्रिंटस) और GAVI ने  संयुक्त रूप से मिलकर एक सिस्टम विकसित किया है जो कि 99 प्रतिशत सटीकता वाली स्वः सूचना से लैस, सॉफ्टवेयर करेक्शन वाली हाई रेसोल्यूशन फिंगरप्रिंट  स्कैनर का इस्तेमाल करती है. सितंबर 2022 में, बांग्लादेश में, (1 – 5 वर्ष के बीच के) 4000 बच्चों का एक ट्रायल किया गया था. ये तथ्य कि, कई बड़े विकास संगठन अब इस प्रकार के परीक्षण के लिये तैयार हो रहे हैं, वो इस बात का एक ठोस संकेत है कि अब यह टेक्नोलॉजी (कीमतों के संभावित रूप से कम होने के साथ) परिपक्व होने की राह पर है, और नीति निर्माताओं को इस पर विचार करना चाहिए.  

बाल आधार और हेल्थकेयर सेवा  

भारतीय परिप्रेक्ष्य में, वर्तमान समय में, बाल आधार (नाबालिगों के लिए आधार) में, पाँच वर्ष की उम्र में, अनिवार्य रूप से उंगलियों के निशानों के पंजीकरण एवं बाद में 15 वर्ष की उम्र के दौरान पुनः उसके अपडेट की आवश्यकता का प्रावधान है. अब वो समय आ गया है जब कि सरकार चाहे तो वर्तमान टेक्नोलॉजी (उदाहरण के लिए GAVI के द्वारा) को लाइसेन्स प्रदान करके या फिर सक्रिय तौर पर भारतीय प्रौद्योगिकी फ़र्मों के साथ संग इन-हाउस साझेदारियों का विकास करके- छः महीने या एक साल से अधिक उम्र वाले बच्चों के लिए बायोमेट्रिक्स के संग्रह के बारे में विचार करना शुरू कर देना चाहिए. ये न केवल आधार बायोमेट्रिक्स योजना को पहचान सत्यापन के काम में उपरी पायदान पर रखेगा, बल्कि स्वास्थ्य सेवा वितरण के लिए भी काफी फायदेमंद साबित होगा.     

वर्तमान में, (कई अन्य देशों की तरह) भारत का स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढांचा बेहद विकेंद्रीकृत है: उपचार अगर किसी अन्य जगह पर किया जाता है तो मरीज़ का स्वास्थ्य सेवा रिकॉर्ड स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है. इसी तरह से, भारत में रह रहे 600 मिलियन आंतरिक प्रवासियों के लिए, जिनमें से ज्य़ादातर गरीब, ग्रामीण पृष्ठभूमि से संबंधित लोग हैं जो किसी शहरी/औद्योगिक/कृषि हब में काम करने के लिए आए हुए हैं, उनके बच्चों से संबंधित तमाम कागज़ी दस्तावेज़, अक्सर ही या तो गुम हो जाते हैं,अधूरे रहते हैं या नष्ट हो जाते हैं. 

इसके अलावा, माता-पिता या देखभाल करने वालों के पास अपने बच्चों की पूर्ण चिकित्सा इतिहास (पिछली जांच पड़ताल, डायग्नोनेसिस, निदान, पर्चे) आदि को विस्तारपूर्वक समझा पाने के लिए ज़रूरी चिकित्सा साक्षरता भी नहीं हो पाती है, जिससे चिकित्सा प्रबंधन में काफी बाधाएं पैदा होती हैं. उदाहरण के लिए, मुंबई/ठाणे में 2022 में आए खसरे के प्रकोप के दौरान, जिसने मुख्य रूप से शहरी गरीब एवं प्रवासी आबादी को प्रभावित किया था, अभिभावकों द्वारा खो दिये गए टीका संबंधी दस्तावेजों की वजह से नगरपालिका अधिकारियों के सामने शून्य/छूटे हुए खुराक वाले बच्चों की पहचान कर पाने में काफी बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी. एक अध्ययन द्वारा ये अनुमान लगाया गया है कि देश में पाँच वर्ष के भीतर आने वाले बच्चों में से अनुमानित तौर पर 75% मामलों में उनके पास टीका कार्ड उपलब्ध नहीं है. 

इनमें से कुछ मुद्दों को, चल रहे U-WIN पोर्टल के क्रमिक रोलआउट के साथ किसी हद तक तो हल किया जा सकता है, जिसका लक्ष्य सभी UIP टीकाकरण के रिकॉर्ड को  सिर्फ़ एक ही प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा करने का है, जो कि किसी आईडी प्रूफ से जुड़ा हुआ हो. उसी तरह से, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) स्वास्थ्य सुविधाओं के मध्य चिकित्सा रिकॉर्ड साझा करने के लिए एक समर्पित ढांचों को तैयार कर रहा है.  

फिर भी, फिंगरप्रिन्ट आधारित पहचान सत्यापन के साथ इन प्रणालीयों को और बढ़ाया जाएगा, जो कि खुद से ही इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड (EMR) या दस्तावेज़ आधारित पहचान सत्यापन की तुलना में अकेले ही बच्चों के लिए बेहतर परिणाम प्रदान करती है. उदाहरण के लिए, अभिभावकों को ये पता नहीं होगा कि उनके बच्चों के पास एक U-WIN पहचान पत्र है और हर बार उन्हें किसी अन्य दस्तावेज़ की मदद से पंजीकृत किया जा सकता है. (या फिर दुर्घटनावश या फिर जालसाज़ी द्वारा एक से अधिक बाल आधार बनाए जा सकते हैं), जिसकी वजह से अधूरे एवं अपूर्ण जानकारियों का एक जाल बन जाता है. यह समस्या संभवत: इस सच्चाई की वजह से भी काफी बढ़ जाता है कि विभिन्न दस्तावेजों में व्यक्तियों (खास कर के बच्चों) के नाम की वर्तनी अलग-अलग तरह से लिखी गयी है, और भारतीय संदर्भों में, बार-बार नज़रआने वाला ये एक काफी सामान्य मुद्दा है. बायोमेट्रिक आइडेंटिफिकेशन की मदद से लाभ प्राप्त करने वाले बच्चों के स्वास्थ्य सेवा दस्तावेज़ों का मिलान (उदाहरण के लिए उपचार/टीकाकरण रिकॉर्ड) और भी बेहतर और सटीक तरीके से किया जा सकता है, जिस वजह से उचित रख रखाव का बेहतर प्रावधान किया जा सके.  

इसके अलावा, पहचान के दस्तावेज़ी प्रमाण, कई बार अनजाने में ही समाज के भीतर के कुछ वंचित समूहों को जैसे कि छोड़ दिए गए बच्चों को किनारे कर देती है, वे जो कि बेघर हैं, जिन्हें उनके परिवारों ने छोड़ दिया है या गोद दे दिया है. साथ ही वे भी जो ऐसे परिवारों से संबद्ध रखते हैं जो अस्थायी घरों में रहते हैं और हमेशा चलायमान रहते हैं – जिस वजह से कई बार वे व्यक्ति अपने मेडिकल दस्तावेज़/टीकाकरण के कार्ड आदि खो देते हैं और फिर दोबारा से उनके लिये आधार कार्ड बनाना मुश्किल हो जाता है. 

आगे की राह 

बाल आधार में शामिल (1–5 वर्ष वाले) बच्चों के बायोमेट्रिक्स को कैप्चर करने से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) की प्रक्रिया मज़बूत होगी. ऐसा करने से  कमजोर एवं वंचित आबादी से आने वाले बच्चों को स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने में सहायता मिलेगी, और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले उन अधिकारियों और हेल्थ कार्यकर्ताओं को भी मदद मिलेगी जो शून्य या मिस कर चुके दवाईयों या टीकाकरण के डोज़ वाले बच्चों की गणना करते हैं और उनसे जुड़ी चिकित्सा जानकारियां इकट्ठा करने की कोशिश करते हैं. 

इसके अलावा, पहचान के दस्तावेज़ी प्रमाण, कई बार अनजाने में ही समाज के भीतर के कुछ वंचित समूहों को जैसे कि छोड़ दिए गए बच्चों को किनारे कर देती है, वे जो कि बेघर हैं, जिन्हें उनके परिवारों ने छोड़ दिया है या गोद दे दिया है.

इसके और भी दीर्घकालीन लाभ होंगे, जो सरकारों को उन बाल लाभार्थियों को और बेहतर तरीके से चिन्हित करने में मदद करेगी और उनको लक्ष्य करते हुए लागू किये गये कल्याणकारी योजनाओं को उन तक मुहैया करा पाएगी.  जैसे  कि वर्तमान समय में वयस्कों के लिए किया जा रहा है. इसके अलावा, इससे (0 – 1 वर्ष) के नवजात बच्चों की उंगलियों के निशान भी कैप्चर करने के लक्ष्य की दिशा में ये एक काफी महत्वपूर्ण कदम होगा जो कि सरकार को – सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति योजना के सहवर्ती लाभों के साथ, जन्म पंजीकरण की सटीक तरीके से बेहतर करने और जनसंख्या डेटा बनाए रखने में मदद करेगा.  

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