Published on Mar 03, 2021 Updated 0 Hours ago

BIMSTEC ने जिन मुद्दों की पहचान की है उससे यह साफ होता है कि संगठन ने ख़ुद को उन्हीं सुरक्षा चुनौतियों तक सीमित कर रखा है जो नॉन स्टेट केंद्रित हैं. 

बंगाल की खाड़ी में संशय रहित सहयोग का अभाव: BIMSTEC वहां उठ रहे कूटनीतिक तूफान का सामना कैसे करेगा?

बे ऑफ़ बंगाल मल्टी सेक्टोरल टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन या  बिम्सटेक (BIMSTEC) बंगाल की खाड़ी से अलग एक स्थानीय संगठन की तरह पिछले 23 वर्षों से अस्तित्व में है, बावज़ूद इसके इस संगठन ने कभी भी परंपरागत सुरक्षा के मुद्दों – जो मैरिटाइम स्पेस से जुड़ी हैं – उनपर चर्चा नहीं की. यह सात सदस्यीय संगठन – जिनमें खाड़ी के तटीय देश शामिल हैं – 1997 में वज़ूद में आने के बाद से ही अपने दायरे में 14 क्षेत्रों में सहयोग को विस्तार दिया जिसमें विकासशील मुद्दों पर चर्चा करने के साथ क्लाइमेट चेंज, डिजास्टर मैनेज़मेंट, काउंटर टेरेरिज़्म और अंतर्राष्ट्रीय अपराध जैसे मुद्दों पर चर्चा करना शामिल है.

बिम्सेटक ने जिन मुद्दों की पहचान की है उससे यह साफ़ होता है कि संगठन ने ख़ुद को उन्हीं सुरक्षा चुनौतियों तक सीमित कर रखा है जो नॉन स्टेट केंद्रित हैं. यह परिपाटी इसके तहत आने वाले “संप्रभू समानता, सीमा की अखंडता, राजनीतिक स्वतंत्रता, आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और एक दूसरे को फायदा पहुंचाने” के सिद्धांतों पर विशेष ज़ोर देता है. और दूसरा, अपने साझा और तेजी से बढ़ने वाले बुनियादी सिद्धांतों, जो इसके दायरे को विकासशील सहयोग तक ही सीमित करता है. BIMSTEC की ऐसी अवस्था फायदेमंद थी जब तक बंगाल की खाड़ी महज़ एक ‘बैकवाटर’ के रूप में लिया जाता रहा. हालांकि, मौज़ूदा परिस्थितियों में संगठन की निरंतरता के लिए ऐसे अवस्था से बाहर निकलने की ज़रूरत है.

बिम्सेटक ने जिन मुद्दों की पहचान की है उससे यह साफ़ होता है कि संगठन ने ख़ुद को उन्हीं सुरक्षा चुनौतियों तक सीमित कर रखा है जो नॉन स्टेट केंद्रित हैं

हाल के दिनों में बंगाल की खाड़ी (अंडमान सागर को शामिल करते हुए) में  चीन की आक्रामक मौज़ूदगी ने सी लेन्स ऑफ़ कम्युनिकेशन्स (एसएलओसी) के तहत नेविगेशन की स्वतंत्रता को चुनौती दी है. जबकि ये समुद्री रास्ते ऊर्जा के क़ारोबार के लिए बेहद अहम हैं क्योंकि यही स्ट्रेट ऑफ मलक्का में बदल जाते हैं. ऐसे में इस संकरे सामुद्रिक रास्ते और बंगाल की खाड़ी के ज़रिए स्वतंत्र क़ारोबार को बढ़ावा देना कई देशों के लिए ज़रूरी है. इसके अतिरिक्त भारतीय और पैसिफ़िक सागर के बीच होने की वज़ह से यह खाड़ी इंडो पैसिफिक में पैदा होने वाले मौकों और चुनौतियों के बीच बेहद क़रीब है. नेविगेशन की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना खाड़ी में  कार्यशील ज़रूरत बन जाती है जिससे कि सामूहिक एक्शन की  संभावना तलाशी जा सके. उदाहरण के तौर पर भारत द्वारा बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर में आयोजित मिलान मल्टीलैट्रल नैवल एक्सरसाइज़ में साल 1995 में चार देशों की भागीदारी से बढ़कर 2018 में 16 देशों की भागीदारी देखी गई. इतना ही नहीं भारत ने साल 2016 में बंगाल की खाड़ी में इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू को आयोजित किया जिसका मक़सद क़रीब 52 देशों के साथ स्थानीय साझेदारी और विश्वास पैदा करना था.

प्रासंगिकता पर सवाल?

हालांकि, BIMSTEC के एजेंडे में मैरिटाइम सुरक्षा का नहीं होना इस सवाल को पैदा करता है कि आख़िर कब तक यह संगठन प्रासंगिकता बना रहेगा? विकासशील सहयोग की आकस्मिक या अपरिहार्य ज़रूरतों के अभाव में BIMSTEC का मौज़ूदा एजेंडा सिर्फ़ सदस्य देशों के बीच एक भरोसा पैदा करने वाले मैकेनिज़्म की तरह सक्रिय रहता है, जबकि यह स्थानीय साझेदारी को प्रेरित करता है. यही वज़ह है कि BIMSTEC सदस्य देशों की मौज़ूदा एजेंडा को आगे बढ़ाने को लेकर सदस्यों की प्रतिबद्धता चिंतनीय है. यह आशंका संगठन के पास ज़रूरी स्वायत्तता और  पूंजी की कमी की वज़ह से भी पैदा होती है.

BIMSTEC देशों में सबसे बड़ी नौसेना होने के साथ भारत आज इस स्थिति में है कि नेविगेशन की स्वतंत्रता को लेकर भारत BIMSTEC का नेतृत्व कर सकता है. 

जो भी हो  बिम्सटेक की कुछ हाल की कोशिशों से साफ है कि संगठन बेहतर मैरिटाइम सुरक्षा प्रदान करने को इच्छुक है. इसके प्रमाण साल 2017 और 2020 में डिज़ास्टर मैनेजमेंट एक्सरसाइज़ और साल 2019 में कोस्टल सिक्युरिटी वर्कशॉप हैं. बावज़ूद इसके एसएलओसी के दायरे में नेविगेशन की स्वतंत्रता का मुद्दा अनसुलझा रह गया. इस संबंध में भारत ने सिर्फ मैरिटाइम सुरक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ कर सहयोग का प्रस्ताव दिया है. 2018 में स्थानीय सुरक्षा पर BIMSTEC थिंक टैंक डायलॉग में सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल के तहत भारत ने इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाया था.  BIMSTEC देशों में सबसे बड़ी नौसेना होने के साथ भारत आज इस स्थिति में है कि नेविगेशन की स्वतंत्रता को लेकर भारत BIMSTEC का नेतृत्व कर सकता है. सच में इस क्षेत्र में संपूर्ण सुरक्षा मुहैया कराने के तौर पर यह भारत की आकांक्षा और कई छोटे छोटे देशों की उम्मीद है कि इस क्षेत्र में उन्हें संपूर्ण सुरक्षा प्रदान करने में भारत अपनी भूमिका निभा सकता है.

विकासशील सहयोग की आकस्मिक या अपरिहार्य ज़रूरतों के अभाव में BIMSTEC का मौज़ूदा एजेंडा सिर्फ़ सदस्य देशों के बीच एक भरोसा पैदा करने वाले मैकेनिज़्म की तरह सक्रिय रहता है

जबकि, यह भी एक तथ्य है कि BIMSTEC सदस्य देश आर्थिक रूप से चीन पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं और यही वज़ह है कि ये देश चीन विरोधी रुख़ अख़्तियार करने में पीछे हटते हैं. इसके अलावा यह भी कोई गारंटी नहीं दे सकता कि साउथ चाइना सी में जारी तनाव का विस्तार बंगाल की खाड़ी तक नहीं हो सकता ख़ासकर तब जबकि चीन लगातार इस क्षेत्र में अपनी आक्रामक नीतियों के साथ मौज़ूद है. ऐसे में BIMSTEC जिस दिशा में आगे बढ़ेगा वही संगठन के भविष्य को आगे तय करेगा. इतना ही नहीं इन बातों का असर बंगाल की खाड़ी के भविष्य पर भी उतना ही पड़ने वाला है.

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