Author : Hari Bansh Jha

Published on Aug 21, 2017 Updated 0 Hours ago

अभी हाल तक, नेपाल ने डोकलाम गतिरोध पर चुप्पी साध रखी थी।

डोकलाम गतिरोध: क्या लम्बे समय तक तटस्थ रह सकता है नेपाल?

नाथु ला का दिशानिर्देश पट्ट (साइनपोस्ट)

डोकलाम क्षेत्र में भूटान-भारत-चीन त्रि-जंक्शन से सटे इलाके में भारत और चीन के सैनिकों के बीच गत 16 जून से लगातार गतिरोध बना हुआ है, जब चीन ने भारतीय सैनिकों पर चीनी क्षेत्र में घुसपैठ करने का आरोप लगाया था। [i] तभी से, दोनों पक्षों में से किसी की भी तरफ से तनाव में कमी लाए जाने का कोई संकेत नहीं है।

चीन का दावा है कि वह डोकलाम क्षेत्र के अपने हिस्से में सड़क का निर्माण कर रहा है, जबकि भूटान सरकार इसे अपने क्षेत्र में घुसपैठ मानती है। चीन का कहना है कि वह डोकलाम क्षेत्र में जो भी कर रहा है, उसका भारत से नहीं, केवल चीन और भूटान से वास्ता है । वह भारत को उसके आक्रामक रुख के लिए दोषी मानता है और उसके सैनिकों पर चीनी क्षेत्र में दाखिल होने का आरोप लगाता है। वह चाहता है कि भारतीय सैनिक अपनी मौजूदा स्थिति से पीछे हट जाएं।

दूसरी ओर, भारत का मानना है कि भूटान द्वारा अपने क्षेत्र में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बारे में चीन के प्रति कूटनीतिक विरोध दर्ज किए जाने के बाद ही उसके सैनिक डोकलाम क्षेत्र में दाखिल हुए हैं। [ii] भारत ने डोकलाम क्षेत्र में अपनी स्थिति का बचाव करते हुए कहा है कि यह कदम भूटान और भारत के बीच 1949 की मैत्री संधि के अनुसार, भूटान की सुरक्षा की हिफाजत करने के लिए उठाया गया है।

भारत, चीन पर दोनों देशों के बीच दिसम्बर 2012 में हुए लिखित समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाता है, जिसमें उन्होंने त्रि-जंक्शन (ट्राइजंक्शन) प्वाइंट की यथास्थिति पर तीसरे पक्ष — जो स्पष्ट तौर पर भूटान है, की सहमति के बिना कोई बदलाव नहीं लाने पर सहमति प्रकट की थी। [iii] उसका मानना है कि भूटान के साथ त्रि-जंक्शन प्वाइंट पर एकतरफा रूप से सड़क निर्माण के जरिये या भूटानी क्षेत्र में नियंत्रण रेखा (एलओसी)के पार किसी अन्य गतिविधि में संलग्न होकर यथास्थिति में बदलाव लाने का चीन के पास कोई आधार नहीं है।

महज 0.8 मिलियन आबादी और मात्र 38,063 वर्ग किलोमीटर भूभाग वाला भूटान अपनी 8000 की मामूली सेना के साथ चीनी सेना की घुसपैठ को नहीं रोक सकता । डोकलाम क्षेत्र में भारत की ताकतवर सेना ने भूटान को रक्षा प्रदान की है और चीनी सेना को रोक कर रखा है।

डोकलाम क्षेत्र में चीन की सेना को आगे बढ़ने से रोकने के लिए भारत ने अपने लगभग 400 सैनिकों को भेजा है, ताकि भूटान की सुरक्षा के साथ ही साथ अपनी सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके। चीन ने भी किसी भी तरह की स्थिति से निपटने के लिए त्रि-जंक्शन प्वाइंट पर अपनी तरफ भारी संख्या में सैनिक और अत्याधुनिक मशीनरी जमा कर रखी है।

डोकलाम क्षेत्र पर अपना अधिकार जताने के लिए, चीन ने न केवल भारत और उसके नेताओं के खिलाफ गैर कूटनीतिक भाषा का इस्तेमाल किया है, बल्कि साथ ही अपने सैनिक पीछे नहीं हटाने की स्थिति में भारत को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दे डाली है। उसने इस संकट के समाधान के लिए ‘सैन्य कार्रवाई’ करने तक की चेतावनी दे दी है। हलकों में तो यहां तक कहा गया है कि चीन डोकलाम क्षेत्र से भारतीय सैनिकों को बाहर निकालने के लिए दो हफ्ते के भीतर छोटे पैमाने पर सैन्य कार्रवाई तक कर सकता है। [iv]

ऐसा लगता है कि भारत डोकलाम क्षेत्र से किसी भी कीमत पर अपने रुख से पीछे नहीं हट सकता, क्योंकि इसका आशय सिलीगुड़ी क्षेत्र में उसके अपने बेहद संवेदनशील ‘चिकन्स नेक’ क्षेत्र को खतरे में डालना होगा। यही स्थान भारत के समस्त पूर्वोत्तर राज्यों को देश के शेष भागों से जोड़ता है। यह स्थान त्रि-जंक्शन क्षेत्र के काफी समीप है, ऐसे में डोकलाम क्षेत्र की यथास्थिति में आया कोई भी बदलाव भारतीय सुरक्षा को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा।

विश्व की दो विशाल सेनाओं — भारत और चीन की सेनाओं के बीच डोकलाम क्षेत्र में बना गतिरोध पूरे विश्व समुदाय के लिए चिंता का विषय बन चुका है। नेपाल के लिए तो यह और भी ज्यादा चिंता का विषय है, क्योंकि डोकलाम क्षेत्र भारत के सिक्किम राज्य के पार है, जबकि नेपाल की सीमा, सिक्किम से सटी हुई है। इसके अलावा, भूटान की तरह, नेपाल भी भारत और चीन के बीच में स्थित है और उसने भी अपनी 1950 की शांति और मैत्री संधि के माध्यम से भारत के साथ वैसा ही सुरक्षा समझौता कर रखा है, जैसे 1949 के सुरक्षा समझौते के जरिए भूटान और भारत आपस में बंधे हुए हैं।

इतना ही नहीं, नेपाल खुद को बहुत नाजुक हालत में पाता है, क्योंकि दोनों त्रि-जंक्शन प्वाइंट्स उत्तर-पश्चिम में लिपुलेख और उत्तर-पूर्व में झिनसेंग चुली पर भारत और चीन के साथ उसकी सीमा पर, उसी तरह कोई समझौता नहीं हो सका है, जैसे भूटान, भारत और चीन त्रि-जंक्शन प्वाइंट पर नहीं हो सका है। [v] नेपाल और चीन हालांकि 5 अक्टूबर, 1961 की सीमा संधि के माध्यम से अपने लग्भग सभी सीमा मसले सुलझा चुके हैं। [vi] उल्लेखनीय है कि 2015 में भारत और चीन ने लिपुलेख दर्रे के जरिए व्यापार करने के बारे में फैसला लिया था, जिसे नेपाल अपना क्षेत्र मानता है। [vii]

अभी हाल तक, नेपाल ने डोकलाम गतिरोध पर चुप्पी साध रखी थी। लेकिन सोमवार (7 अगस्त)को, उसने इस मामले पर अपना रुख साफ कर दिया। नेपाल के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री कृष्ण बहादुर महरा ने स्पष्ट तौर पर कहा कि नेपाल, डोकलाम मामले पर अपने किसी भी पड़ोसी का साथ नहीं देगा, क्योंकि उसकी अपनी विदेश नीति है। [viii] हालांकि उसने दोनों देशों से इस मामले को कूटनीतिक बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने की अपील की है ।

जहां तक नेपाल की विदेश नीति का प्रश्न है, यह रुख, उसके लिए नया नहीं है। यहां तक कि 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के दौरान भी नेपाल, भारत के साथ सुरक्षा समझौता होने के बावजूद तटस्थ बना रहा था।

भारत और चीन के बीच नेपाल की तटस्थता 1969 में भी जाहिर हुई थी, जब नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री कीर्ति निधि बिस्ता ने राजशाही के दौर में पंचायतीराज व्यवस्था के दौरान भारत द्वारा उसकी उत्तरी सीमा से सैनिक नहीं हटाने पर भूख हड़ताल करने की धमकी दी थी। इस मजबूरी के कारण भारत को अपने सैनिक और सैन्य मिशन को नेपाल से वापस बुलाना पड़ा था।

दरअसल, 1950 में भारत और नेपाल के बीच हुई शांति और मैत्री संधि के अनुसार ही भारत ने, उत्तर से उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने सैनिक नेपाल भेजे थे।

और तो और, 1962 के चीन-भारत युद्ध के दौरान भी भारतीय सैनिक नेपाल के उत्तरी भाग में मौजूद थे। भारत को अपने सैनिक वापस बुलाने के लिए मजबूर करके, नेपाल यह दिखाना चाहता था कि वह अपने पड़ोसियों के साथ तटस्थ और समान दूरी रखने की नीति का पालन करता है।

हालांकि आशंका ऐसी स्थिति को लेकर है, जिसमें डोकलाम क्षेत्र में तनाव बढ़ने पर नेपाल को दोनों पड़ोसी देशों में से किसी एक का पक्ष लेने के लिए घसीटा जा सकता है? क्या ऐसे में नेपाल अपनी तटस्थता बरकरार रख पाएगा? वर्तमान में, चीन और भारत दोनों ही नेपाल द्वारा दोनों पड़ोसी देशों के बीच अत्यधिक संवेदनशील स्थिति बरकरार रखने की वजह से, इस मामले पर नेपाल का समर्थन पाने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। [ix] काठमांडु में चीनी मिशन के उप प्रमुख पहले ही नेपाल को डोकलाम मामले पर अपने देश के रुख की जानकारी दे चुके हैं और यह बिल्कुल स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत को डोकलाम से अपने सैनिक वापस बुलाने होंगे। इतना ही नहीं, चीन के उप प्रधानमंत्री वेंग येंग 14 अगस्त को अपनी नेपाल यात्रा के दौरान इस मामले पर नेपाल के नेताओं के साथ बातचीत कर सकते हैं। [x] लेकिन भारत द्वारा अभी नेपाल को अपने रुख से अवगत कराया जाना बाकी है। शायद, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 10 अगस्त को होने वाली बिम्सटेक बैठक के मद्देनजर जब नेपाल जाएंगी, तो संभवत: उस समय वह नेपाल के साथ इस मामले पर चर्चा कर सकती हैं।

नेपाल में विदेशी मामलों के जानकार इस गतिरोध को लेकर चिंतित दिखाई देते हैं। वे इस घटनाक्रम को नेपाल के लिए खतरनाक संकेत मान रहे हैं। वैसे तो, वे चाहते हैं कि नेपाल इस मामले पर अपने रुख पर, कायम रहते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे, जो स्पष्ट नहीं है।

मौजूदा स्थिति को देखते हुए, डोकलाम मामले के संबंध में भारत और चीन में से कोई भी नेपाल की भावी कार्रवाई के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं है।

अब तक, ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इस मामले पर-संसद और सड़क, दोनों ही जगहों पर चुप्पी साध रखी है। [xi] हालांकि आम धारणा यही है कि नेपाल को इस मामले पर भूटान का समर्थन करना चाहिए। यदि नेपाल ऐसा करने में नाकाम रहा, तो उसके साथ ऐसी ही स्थिति उत्पन्न होने पर, जब उसे बाहरी ताकतों द्वारा दबाया जा रहा होगा, तो अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी नेपाल के साथ सहानुभूति नहीं रखेगी।

डोकलाम क्षेत्र में यह गतिरोध जितने ज्यादा समय तक कायम रहेगा, उतना ही और जटिल होता जाएगा, क्योंकि दोनों देशों के लिए नियंत्रण रेखा से पीछे हटना और इस प्रकार संकट का समाधान करना मुश्किल होता जाएगा। लेकिन अगर कोई देश इस संकट का समाधान कूटनीतिक तरीके से न करके, सैन्य तरीके से करना चाहेगा, तो यह भयंकर भूल होगी। नेपाल के, भारत और चीन दोनों के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते हैं, लेकिन वह महज मूक दर्शक नहीं बना रह सकता, बल्कि इसकी बजाए उसे क्षेत्र में लम्बे अर्से तक शांति और स्थायित्व कायम करने के लिए, दोनों देशों को डोकलाम क्षेत्र में नियंत्रण रेखा से एक साथ अपने सैनिक पीछे हटाने के लिए राजी करने के वास्ते अपनी सॉफ्ट पॉवर का इस्तेमाल करना चाहिए।


संदर्भ

[i] Jacob, Jayanath, “At the heart of Doklam standoff is China’s attempts to drive wedge into Indo-Bhutan ties,” Hindustan Times, 4 August 2017.

[ii] Ibid.

[iii] Ibid.

[iv] Dasgupta, Saibal, “Chinese daily talks of military operations in Doklam,” The Times of India, 6 August 2017.

[v] Baral, Biswas, “The View from Nepal on Doklam Stand-off,” My Republica, 20 July 2017, in https://thewire.in/159792/doklam-standoff-india-china-nepal/

[vi] Shrestha, Buddhi Narayan, “Border Issues of Nepal – With Special Reference to India,” WordPress.com, 17 January 2010, in https://borderissuesofnepal.wordpress.com/

[vii] Parasar, Sachin, “India wary as China takes up Doklam issue with Nepal,” The Times of India, 6 August 2017.

[viii] Republica, “Nepal won’t align with India or China on Doklam issue,” My Republica, 8 August 2017.

[ix] HT Correspondent, “India, China courting Nepal and border stand-off,” Hindustan Times, 3 Auguest 2017, in http://www.hindustantimes.com/world-news/india-china-courting-nepal-amid-border-standoff/story-s7wIPVWjimuTLK9DXWZpjM.html

[x] Parasar, no. vii.

[xi] Republica, “Nepal should not keep mum over Doklam issue: Lawmaker Gyawali,” My Republica, 24 July 2017, in http://www.myrepublica.com/news/24412/

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