Published on Aug 09, 2023 Updated 0 Hours ago
डिजिटल सेवाओं का व्यापार और निवेश: सीमा-पार डिजिटल आपूर्ति श्रृंखलाओं को लचीला और समावेशी बनाने के उपाय

टास्क फोर्स 1: मैक्रोइकोनॉमिक्स, ट्रेड, एंड लाइवलिहुड्स: पॉलिसी कोहेरेंस एंड इंटरनेशनल कोऑर्डिनेशन


सार

डिजिटल सेवाओं में हो रहे नवाचार और ऑनलाइन वाणिज्यिक लेनदेनों में बदलाव, पहले से ज़्यादा समावेशी वैश्विक व्यापार और विकास में योगदान दे रहे हैं. हालांकि, इन फ़ायदों को हासिल करने के रास्ते में कई तरह की चुनौतियां जुड़ी हैं. दरअसल, डिजिटल नियामक वातावरणों में बेहतरीन अभ्यासों को लेकर मार्गदर्शन बहुत ही सीमित हैं. दूसरी ओर डिजिटल व्यापार के इर्द-गिर्द बहुपक्षीय शासन व्यवस्थाएं अभी अपने शुरुआती दौर में हैं. अंतरराष्ट्रीय डिजिटल नियामक सहयोग को प्राथमिकता मिलती जा रही है. इसमें वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (GVC) में लचीलापन बनाने से जुड़ी क़वायद शामिल है. ये पॉलिसी ब्रीफ, डिजिटल अर्थव्यवस्था से जुड़ी नीतियों पर प्रमाण के आधार पर विचार करता है, जो व्यापार लचीलेपन को मज़बूत करती है. ये क़वायद सूक्ष्म, लघु और मझौले आकार वाले उद्यमों (MSMEs) की GVC तक पहुंच को भी शामिल करती है. ये पॉलिसी ब्रीफ डिजिटल विनियमन पर पारस्परिक सबक़ों को बढ़ावा देने के लिए G20 कार्रवाइयों की सिफारिश करता है. डिजिटल नियमन के क्षेत्र में बेहतरीन तौर-तरीक़ों के व्यापक क्रियान्वयन से अंतरराष्ट्रीय नियामक कार्रवाइयों की पहले से ज़्यादा इंटर-ऑपरेबिलिटी को सक्षम बनाया जा सकेगा. इससे डिजिटल व्यापार में वृद्धि के और ज़्यादा समावेशी अवसर पैदा हो सकेंगे, जिससे आवश्यक बहुपक्षीय प्रशासन के विकास का रास्ता भी साफ़ हो सकेगा.

1.चुनौती

डिजिटल सेवा नवाचार, औद्योगिक कायाकल्प और वैश्विक आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ विकास और विविधीकरण का एक महत्वपूर्ण चालक है. इसके लाभार्थी संभावित रूप से तमाम अर्थव्यवस्थाओं में और उनके भीतर व्यापक रूप से फैले हुए हैं. इनमें सबसे छोटी और सबसे कम विकसित अर्थव्यवस्थाएं, सबसे कमज़ोर सूक्ष्म उद्यम और सबसे सुदूर बैठे उपभोक्ता और उत्पादक शामिल हैं. हर जगह कारोबारों और उपभोक्ताओं के बीच घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक लेनदेन को ऑनलाइन स्थानांतरित करने का रुझान लगातार तेज़ होता जा रहा है. इसमें वैश्विक रोज़गार और आय के अवसरों में वृद्धि और उनको अधिक समावेशी बनाने की मज़बूत संभावना है.a

बहरहाल, डिजिटल व्यापार के इर्द-गिर्द बहुपक्षीय शासन व्यवस्थाएं अभी अपने शुरुआती दौर में हैं, और डिजिटल नियामक वातावरणों में बेहतरीन अभ्यास अनिश्चित बने हुए हैं. इसका परिणाम G20 के भीतर घरेलू डिजिटल नियामक व्यवस्थाओं का तेज़ विचलन (divergence) है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं. सेवा व्यापार पर प्रतिबंधात्मक क़वायदों में संचयी तौर पर वैश्विक वृद्धि 2021 की तुलना में 2022 में पांच गुना अधिक थी.[i] इस सूची में सीमा पार डेटा हस्तांतरण में बाधाएं शीर्ष पर थीं. डिजिटल नियामक प्रतिबंधों की विविधता में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. ये अपने आप में व्यापार में भारी बाधा बन सकती है.[ii]

प्रतिबंधात्मक क़वायदों का स्तर बढ़ रहा है और डिजिटल व्यापार के लिए विनियामक दृष्टिकोण में तेज़ी से विचलन हो रहे हैं. दोनों का MSME के आंतरिक निवेश के अवसरों तक पहुंच और GVCs के माध्यम से निर्यात बाज़ार की संभावनाओं तक पहुंच पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

भारत सरकार की एक हालिया रिपोर्ट[iii] बताती है कि चुनौतियां वास्तव में वैश्विक हैं, और भारत अपनी डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा पहल के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें हल करने के प्रयास में अग्रणी है. इंटरनेट कनेक्टिविटी में वैश्विक वृद्धि के बावजूद, सीमा पार डिजिटल वाणिज्य कई छोटी कंपनियों और अरबों उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर है. रिपोर्ट बताती है कि जैसे-जैसे भारत की ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) पहल बढ़ती जाएगी, ये सीमा पार व्यापार को बढ़ावा देकर और बाज़ारों में डिजिटल कॉमर्स को तेज़ और लोकतांत्रिक बनाकर वैश्विक स्तर पर डिजिटल कॉमर्स को प्रभावित कर सकती है. रिपोर्ट में सिफ़ारिश की गई है कि ONDC द्वारा भारत की सीमाओं से परे डिजिटल वाणिज्य को बदलने के लिए चार प्रमुख समर्थकारी तत्व मौजूद होने चाहिए. इससे अंतरराष्ट्रीय डिजिटल वाणिज्य को सहारा दिया जा सकेगा. इसमें सीमा पार ई-भुगतान का बेरोकटोक निपटान और वैश्विक सहयोग शामिल हैं.

वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में विश्वास क़ायम करना 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है. अलग-अलग देश, अलग-अलग सार्वजनिक नीति प्राथमिकताओं पर ज़ोर देते हैं. इनको ध्यान में रखते हुए, नियामक व्यवस्था को सरल और कारगर बनाने के साथ-साथ सम्मिलन और इंटर-ऑपरेबिलिटी की दिशा में सहयोग से जुड़ी क़वायद G20 एजेंडे के केंद्र में होनी चाहिए. सुसंगत और ठोस तरीक़े से इस चुनौती के निपटारे में नाकाम रहने के कारण G20 वैश्विक व्यापक अर्थव्यवस्था में सुधार के बेहतरीन अवसर को नज़रअंदाज़ करता आ रहा है. इस वर्ष का G20 शिखर सम्मेलन, भारत को मौजूदा हालात का कायाकल्प करने का अवसर दे रहा है. भारत डिजिटल दुनिया का दिग्गज है और उसके पास डिजिटल वाणिज्य को लोकतांत्रिक बनाने के लिए कारगर दृष्टिकोण उपलब्ध है. ये विषय 2023 में विशेष रूप से प्रासंगिक है, क्योंकि डिजिटल सेवाओं के निर्यात में एशिया की भीतरी हिस्सेदारी अब अन्य क्षेत्रों में वृद्धि को पीछे छोड़ रही है.[iv]

2.G20 की भूमिका

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इकट्ठा हो रहे प्रमाणों से संकेत मिलते हैं कि डिजिटल तौर-तरीक़े अपनाने से सूक्ष्म, लघु और मझौले आकार वाले उद्यमों यानी MSMEs के विकास पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इंटरनेशनल ट्रेड सेंटर (ITC) के कारोबारी सर्वेक्षण[v] बताते हैं कि डिजिटल रूप से सक्षम वित्तीय सेवाएं, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT), परिवहन और रसद, के साथ-साथ व्यापार और पेशेवर सेवाएं ऐसे संयोजनकारी तत्व बन गए हैं, जो आपूर्ति श्रृंखला के तमाम हिस्सों को जोड़ते हैं. ये सारी क़वायदें अब समकालीन आर्थिक रुझानों के केंद्र में हैं. ऐसी ‘आपसी जुड़ावों वाली सेवाएं’ अब डिजिटल नवाचार की अगुवाई कर रही हैं. साथ ही कम आय वाले देशों में किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में उद्योगों के मूल्य-वर्धित उत्पादन और रोज़गार में हो रही पहले से अधिक वृद्धि में योगदान दे रही हैं. उच्च-गुणवत्ता वाली कनेक्टेड सेवाओं तक पहुंच होने पर सभी क्षेत्रों की कंपनियां अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाती हैं. ये समाज को और अधिक समानतापूर्ण बनाती हैं. इससे छोटे कारोबारों को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत होने और डिजिटल तकनीकों को अपनाने का अवसर मिलता है. इससे उन्हें कुशलतापूर्वक उत्पादन करने के साथ-साथ ख़रीदारों, आपूर्तिकर्ताओं और समर्थनकारी संस्थानों के साथ जुड़ने की सुविधा मिलती है.

इंटरनेशनल ट्रेड सेंटर का तर्क है कि सेवाएं अगर कनेक्टेड हों तो वो समावेशी आर्थिक परिवर्तनों को तेज़ गति से आगे बढ़ा सकती हैं. इसके लिए एक नियामक दृष्टिकोण की आवश्यकता है. इस कड़ी में घरेलू मोर्चे पर विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धी कनेक्टेड सेवाओं के लिए स्थितियां बनानी होंगी. साथ ही व्यापार प्रतिबंधों को कम करना होगा ताकि कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन सेवाओं तक पहुंच बना सकें. ITC विनियामक सुधारों का आह्वान करती है. ऐसे सुधार, जो अनुपालन लागत को कम करते हैं, निवेश को प्रोत्साहित करते हैं, और महत्वपूर्ण कनेक्टेड सेवाओं (जो स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं हो सकते हैं) के लिए विदेशी प्रदाताओं तक पहुंच की सुविधा प्रदान करते हैं. इस कड़ी में ये सुनिश्चित करना होगा कि स्थानीय लघु और मझौले उद्यमों (SMEs) के पास उच्च गुणवत्ता वाली सेवाओं तक पहुंच की सुविधा हो, ताकि वो वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में हिस्सा ले सकें!

भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में विश्व स्तर का एक बड़ा खिलाड़ी है. 2023 के G20 अध्यक्ष के रूप में विश्व का नेतृत्व कर रहे हिंदुस्तान के पास इस मुद्दे को उठाने की अहम ज़िम्मेदारी है. मैकिन्से की एक रिपोर्ट[vi] में 2018 में भारत को चीन के बाद दुनिया के सबसे बड़े और सबसे तेज़ी से बढ़ते डिजिटल उपभोक्ता बाज़ार के रूप में दर्ज किया गया था. 2023 में भारत में ब्रॉडबैंड इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 80 करोड़ से अधिक और टेलीफोन ग्राहकों की तादाद 1 अरब से भी ज़्यादा हो गई है.[vii] डिजिटलीकरण के चलते उत्पादकता में अनुमानित सुधारों से 2025 तक 6-6.5 करोड़ नौकरियां पैदा हो सकती हैं, जिनमें से अधिकांश के लिए डिजिटल कौशल की दरकार होगी. वित्तीय लेनदेन में डिजिटल तकनीकों का प्रयोग, भारत को वास्तविक समय में डिजिटल भुगतानों और लेनदेन की सबसे बड़ी संख्या वाले देशों की सूची में शीर्ष पर ला देता है.[viii] 2021 में भारत में ऐसे लेनदेनों की संख्या 49 अरब से भी ज़्यादा रही, जबकि 19 अरब लेनदेनों के साथ चीन दूसरे स्थान पर, भारत से काफ़ी पीछे है.[ix]

डिजिटल नियामक अनुभवों को साझा करने के लिए G20 में एक नया सहभागी मंच तैयार करने के लिहाज़ से भारत अच्छी स्थिति में है. G20 के सदस्य समान चुनौतियों का सामना करते हैं. ये तमाम राष्ट्र नियामक स्थापनाओं में अंतरों से निपटने और नियामक दृष्टिकोणों में भिन्नता को कम करने की रणनीति बनाने में एक-दूसरे से काफ़ी कुछ सीख सकते हैं. ग़ौरतलब है कि ऐसी भिन्नताएं व्यापार, निवेश और वैश्विक आर्थिक विकास को प्रभावित करती हैं. आवश्यक सहकारी पहलों का बड़ा हिस्सा G20 प्रयासों में शामिल है. ये व्यापक बहुपक्षीय सहयोग के लिए रास्ता साफ़ करने वाले ढांचे स्थापित कर सकते हैं.

हाल ही में किए गए एक अध्ययन[x] से पता चला कि इंटरनेट बैंडविड्थ में वृद्धि से भारत द्वारा व्यापार की जाने वाली वस्तुओं की कुल मात्रा में बढ़ोतरी हुई है. इस अध्ययन में सिफ़ारिश की गई है कि नीति और नियामक स्थापनाओं को, जबरन डेटा स्थानीयकरण (localisation) के लिए मजबूर करने की बजाए, समग्र रूप से भारत के डिजिटल इकोसिस्टम के विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इस प्रकार यह सुनिश्चित हो सकेगा कि कारोबार जगत को भारत में कामकाज करना सस्ता और कार्यकुशल लगे. हाल ही में किए गए एक अन्य अध्ययन[xi] में पाया गया कि भारतीय MSMEsb द्वारा उत्पादन में डिजिटल सेवाओं का आयात, MSMEs के सकल मूल्य-वर्धित उत्पाद के साथ सकारात्मक रूप से सह-संबद्ध (correlated) हैं. परावर्तन (regression) परिणामों से संकेत मिलते हैं कि इन आयातों का MSME उत्पादकता और रोज़गार पर भी महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. अध्ययन में सीमा पार डिजिटल प्रसारणों की गंभीरता का हवाला दिया गया है. भारत में कारोबार जगत और थिंक-टैंक से जुड़े तमाम किरदार अर्से से इस बात को दोहराते रहे हैं. सीमा पार डिजिटल प्रवाहों के लिए खुलेपन और इस क्षेत्र में वैश्विक नियामक सहयोग को MSME विकास के साथ-साथ सामान्य रूप से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए व्यापक रूप से आवश्यक माना जाता है.

2022 में G20 की अध्यक्षता कर चुके इंडोनेशिया की भी इसमें समान रूप से दिलचस्पी है. वो भी ये सुनिश्चित करना चाहता है कि नीति और नियामक स्थापनाएं, MSME के डिजिटलीकरण और विकास के अनुकूल हों. दरअसल सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम इंडोनेशियाई अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, और डिजिटल सेवाएं MSMEs के विकास को सहारा देने में बुनियादी भूमिका निभाती हैं. इंडोनेशियाई में किए गए अध्ययनों की एक पूरी श्रृंखला[xii] में डिजिटल सेवाओं को अपनाए जाने की क़वायदों को MSMEs के अस्तित्व के लिहाज़ से अहम माना गया है. कोविड-19 महामारी के बाद तमाम औद्योगिक क्षेत्रों को पटरी पर वापस लाने के लिए इसे बेहद उपयोगी समझा गया है. सर्वेक्षण में शामिल 44 प्रतिशत MSMEs महामारी के दौरान ऑनलाइन हो गए. 40 प्रतिशत से अधिक MSMEs अब अपने उत्पाद ऑनलाइन बाज़ारों के ज़रिए बेचते हैं. MSME को लेकर किए गए तमाम सर्वेक्षण, डिजिटल तौर-तरीक़े अपनाने में आ रही निरंतर तेज़ी को दर्शाते हैं. डिजिटल होने से MSME को राजस्व कमाने और लागतों को अनुकूलित करने में मदद मिल रही है. वो अंतरराष्ट्रीय व्यापार के ज़रिए राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर उपभोक्ता आधार का विस्तार कर सकते हैं.

चित्र 1: इंडोनेशिया में MSMEs पर डिजिटलीकरण का प्रभाव

स्रोत: इंडोनेशियन सर्विसेज़ डायलॉग (2021)

डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग करने वाले MSMEs की स्थानीय समुदायों में अधिक भागीदारी होने और अधिक से अधिक स्थानीय लोगों को रोज़गार देने की भी ज़्यादा संभावना है (चित्र 2 देखें). 

चित्र 2: स्थानीय समुदायों पर इंडोनेशियाई MSMEs डिजिटलीकरण का प्रभाव

स्रोत: इंडोनेशियन सर्विसेज़ डायलॉग (2021)

इंडोनेशियन सर्विसेज़ डायलॉग (ISD)[xiii] के एक हालिया अध्ययन में 764 MSMEs का सर्वेक्षण किया गया. इसमें पता चला कि 98 प्रतिशत से ज़्यादा इकाइयां डिजिटल सेवाओं का उपयोग करती हैं और लगभग सभी मोबाइल फोन इस्तेमाल करते हैं. मुख्य कारोबारी प्रक्रियाओं (जैसे सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन सेवाओं) के साथ-साथ मार्केटिंग टूल्स के लिए डिजिटल अपनाने की दर सबसे अधिक है. इनमें ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स, सोशल मीडिया और ऑपरेटिंग सिस्टम्स के साथ-साथ अन्य सहायक सॉफ़्टवेयर शामिल हैं. सर्वेक्षण में शामिल तक़रीबन 60 प्रतिशत MSMEs व्यवसाय संचालन और वस्तुओं या सेवाओं की डिलीवरी के लिए डिजिटल सेवाओं का उपयोग करते हैं, जबकि 50 प्रतिशत इकाइयां, कच्चे माल की ख़रीद के लिए डिजिटल सेवाएं इस्तेमाल कर रही हैं. फ़िलहाल वित्तीय प्रणालियों और मानव संसाधन प्रक्रियाओं के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने वाले MSMEs की संख्या कम है. हालांकि MSMEs में बढ़ोतरी के साथ-साथ इन कारोबारी क्रियाकलापों के लिए डिजिटलीकरण की आवश्यकता बढ़ती चली जाएगी.

व्यापक स्तर पर डिजिटल अपनाने की इन क़वायदों का अहम असर हुआ है. उपभोक्ता आधार, राजस्व, लाभ, संपत्ति, कार्यबलों की संख्या और बेचे गए विविध उत्पादों की संख्या के आधार पर कारोबार के पैमाने में समग्र वृद्धि हुई है. उपभोक्ता आधार में औसतन 31 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, कर्मचारियों की संख्या में प्रति कारोबारी इकाई तीन की वृद्धि हुई, उत्पाद विविधताएं चार हो गईं, जबकि राजस्व और मुनाफ़े में 20 प्रतिशत से अधिक का इज़ाफ़ा हुआ. सर्वेक्षण में शामिल 80 प्रतिशत MSMEs ने व्यावसायिक राजस्व में वृद्धि दर्ज की. 63 प्रतिशत के परिचालन लागत में गिरावट आई और 85 फ़ीसदी इकाइयों ने अपने कारोबारों का विस्तार किया. परिवहन और संचार के क्षेत्रों में डिजिटलीकरण का प्रभाव विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा, जहां 88 प्रतिशत MSMEs ने राजस्व में मुनाफ़े हासिल किए, जबकि 100 प्रतिशत ने अपने व्यवसाय का विस्तार किया. वानिकी (forestry), कृषि और मछली पालन के क्षेत्र में 77 प्रतिशत MSMEs ने लागत में कटौतियां दर्ज कीं. MSME की रसद लागतों में औसत मासिक कटौती ही 16 प्रतिशत थी. इसका मतलब है छोटे कारोबारों के लिए प्रति कारोबारी इकाई औसत लागत में 413 अमेरिकी डॉलर और मध्यम आकार के कारोबारों के लिए 4,206 अमेरिकी डॉलर की अनुमानित मासिक कटौती दर्ज की गई. इंडोनेशियन सर्विसेज़ डायलॉग (ISD) सिफ़ारिश करता है कि नियामक वातावरण को यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि डिजिटल इकोसिस्टम MSME और स्टार्ट-अप की प्रगति के लिए अनुकूल हो! इंडोनेशिया में कारोबारी स्टेकहोल्डर्स, डिजिटल सेवाओं की प्राप्ति और उन तक पहुंच बनाने के लिए प्रवेश के रास्ते की बाधाओं को कम किए जाने की ज़रूरत देखते है. साथ ही वो इस बात को भी रेखांकित करते हैं ई-ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क (भले ही उसे 0 प्रतिशत पर नियत किया गया हो) लगाने से प्रशासनिक और अनुपालन लागतों में बढ़ोतरी हो जाती है. इससे डिजिटल तौर-तरीक़े अपनाने की संभावनाओं में रुकावटें आती हैं.[xiv]

डिजिटल तौर-तरीक़े अपनाए जाने के नतीजतन MSME कारोबार में होने वाले विस्तार से कर राजस्व में भी बढ़ोतरी होती है. इन करों में कॉर्पोरेट आयकर, उपभोग या मूल्य वर्धित कर, और MSMEs द्वारा कामकाज में लगाए गए श्रमिकों की बढ़ी हुई कमाई से हासिल व्यक्तिगत आयकर शामिल हैं. कुछ विशेषज्ञों का विचार है कि ई-ट्रांसमिशन पर शुल्क (tariffs) आयद किए जाने से क़ीमतें बढ़ेंगी और खपत कम होगी. इसके चलते GDP में वृद्धि की रफ़्तार धीमी हो जाएगी और कर राजस्व में सिकुड़न आ जाएगी.[xv]

3.G20 के लिए सिफ़ारिशें

a.सेवा क्षेत्र से जुड़े MSMEs द्वारा डिजिटल तौर-तरीक़े अपनाने को सुविधाजनक बनाने पर ध्यान केंद्रित करें

सेवाओं का क्षेत्र, SME क्षेत्र है, और SMEs ज़्यादातर अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ हैं. अधिकांश विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में परिवारों को औपचारिक श्रमबल में लाने के लिए सूक्ष्म उद्यम बेहद अहम होते हैं. भारत में MSMEs विकास का एक प्रमुख इंजन हैं, जिसके खाते में देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 30 प्रतिशत हिस्सा आता है.[xvi] विनिर्माण क्षेत्र में भारत के कुल मूल्य वर्धित उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा MSMEs के नाम है. 2020-21 में भारत के व्यापारिक निर्यातों में MSMEs की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत थी. कई अध्ययनों ने भारत में MSMEs के विकास में रुकावट डालने वाले कारकों पर ध्यान खींचा है. इनमें नियामक अनुपालन की लागत, टेक्नोलॉजी का लचर इस्तेमाल और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार संपर्कों का अभाव शामिल हैं.[xvii]

G20 के लिए सेवा क्षेत्र को लेकर नियमन के बेहतर तौर-तरीक़ों पर अधिक गहनता से ध्यान केंद्रित करना ज़रूरी है. ख़ासतौर से डिजिटल रूप से सक्षमकारी और कनेक्टेड सेवाओं के साथ-साथ इस क्षेत्र में MSMEs की चौतरफ़ा मौजूदगी के लिए ऐसी क़वायद बहुत आवश्यक है. आम तौर पर G20 की सरकारें वैश्विक बिग टेक के इर्द-गिर्द नियामक चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करती हैं. दूसरी ओर, स्थानीय MSMEs की नीतिगत और नियामक क्षेत्रों में वास्तविक और तात्कालिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. इन दिनों, सेवा व्यवसाय (चाहे उनका आकार कुछ भी हो) पैदाइशी तौर पर डिजिटल और संभावित रूप से वैश्विक हो गए हैं. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार उनसे केवल एक क्लिक की दूरी पर है. डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए नीतिगत और नियामक स्थापनाओं को MSMEs को डिजिटलीकरण और अंतरराष्ट्रीयकरण, दोनों से रोकने की बजाए सक्षम बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. डिजिटल उपकरणों में अनुपालना बोझ को कम करने और समय और लागत दक्षता में सुधार की भरपूर क्षमता है, जो नियामक कार्यकुशलता में सुधार के लिए एक नया दृष्टिकोण उपलब्ध कराती है.                       

b.डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए नियमन के बेहतर तौर-तरीक़े लागू करने को लेकर अंतरराष्ट्रीय अभ्यासों के मुक़ाबले बेंचमार्क तैयार करना. इससे नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा और डिजिटल सेवाओं के व्यापार के साथ-साथ निवेश को सुविधाजनक बनाया जा सकेगा.

डिजिटल सेवाओं से जुड़ा नवाचार, डिजिटल व्यापार पर होने वाले संवादों के केंद्र में है. तकनीक से जुड़ा ये परिदृश्य तेज़ी से उभर रहा है. नियामकों को इसके साथ क़दम से क़दम मिलाने के लिए अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. विनियमन के बेहतर अभ्यासों की एक प्रमुख विशेषता यह सुनिश्चित करना है कि विनियामक सुधार एकाकी या अलग-अलग दायरे (silos) में ना किए जाएं. इस क़वायद को अंजाम देते वक़्त अंतरराष्ट्रीय आयामों पर नज़र रखते हुए और सभी संबंधित सरकारी एजेंसियों को शामिल किया जाना चाहिए. इस प्रक्रिया में हर किरदार के साथ सलाहकारी रूप से संपर्क बनाया जाना चाहिए.

नीति-निर्माताओं को सूचित करने और उनका मार्गदर्शन करने के लिए ठोस उपाय किए जाने निहायत ज़रूरी हैं. निदान करने, सुधार विकल्पों के प्रभाव का आकलन करने, प्रगति पर निगरानी रखने और कार्यान्वित किए गए नीतिगत कार्यों की दक्षता और प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिहाज़ से ये क़वायद आवश्यक है. नियामक संरचना के संदर्भ में विचार करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय आयाम हैं, जिनमें से कुछ अनचाहे परिणाम हैं. 2018 में डिजिटल अर्थव्यवस्था को मापने के लिए G20 टूलकिटc ने डिजिटल कायाकल्प की निगरानी के लिए संकेतकों में अहम ख़ामियों को रेखांकित किया था. टूलकिट के कार्यान्वयन को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उपलब्धियों और निरंतर जारी कमियों पर नज़र रखते हुए G20 को इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए.

बेहतर तौर-तरीक़ों को क्रियान्वित करके घरेलू नियामक व्यवस्था को सुसंगत बनाने के प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इनमें समस्याओं का पूर्वानुमान लगाना, स्टेकहोल्डर्स से परामर्श करना और समाधानों पर चर्चा करने जैसे कार्य शामिल हैं. कारोबारों को अपने नियामक दायित्वों में और ज़्यादा पारदर्शिता लानी होगी. G20 को डिजिटल संरचनात्मक सुधार के लिहाज़ से ज़रूरी क्षमता-निर्माण उपकरणों (जैसे नियामक हैंडबुक्स और टूलकिट्स) के विकास और उपयोग से जुड़ी क़वायदों की अगुवाई करनी चाहिए. मिसाल के तौर पर OECD/WTO के एक संयुक्त अध्ययन[xviii] से पता चला है कि सेवाओं के घरेलू नियमन पर WTO रेफरेंस पेपर के सिद्धांतों पर अमल करके G20 के देश सेवाओं की व्यापार लागतों में 150 अरब अमेरिकी डॉलर की बचत हासिल कर सकते हैं.[xix]

c.एक नए G20 नियामक मंच की शुरुआत करके सीमा पार डिजिटल कनेक्टिविटी के लिए अंतरराष्ट्रीय नियामक सहयोग को मज़बूत करना

भले ही नीतिगत उद्देश्य अलग-अलग हों, लेकिन G20 के सदस्यों को समान चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. वो एक-दूसरे की सफलता की कहानियों से बहुत कुछ सीख सकते हैं. इनमें नियामक स्थापनाओं में दरारों की पहचान करना और उन्हें बंद करने की रणनीति बनाना शामिल है. वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में विश्वास पैदा करने और वैश्विक मूल्य श्रृंखलओं में लचीलापन तैयार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले से ज़्यादा नियामक सहभागिता और सहयोग की दरकार है. ऐसे ढांचे स्थापित करने के लिए G20 के कुछ प्रयासों की आवश्यकता है जिनसे बड़ी सहभागिता के लिए रास्ता साफ़ हो सकेगा.

G20 को नियामकों का एक नया मंच तैयार करना चाहिए. ऐसा मंच विशेष रूप से नियामक क़वायदों के लिए उन्मुख होना चाहिए. इससे नियामकों को एक-दूसरे के साथ बार-बार संवाद क़ायम करने में मदद मिलेगी. तमाम देशों के नियामक निकायों को आपस में सीखने-सिखाने और सूचनाओं का आदान-प्रदान करने का अवसर मिलेगा. नया R20, घरेलू नियामक एजेंसियों और मानक-स्थापित करने वाली एजेंसियों के बीच सीमा पार संवाद और सहयोग के महत्व को पहचानने में एक वैश्विक पहल का प्रतिनिधित्व करेगा.d ये अन्य क्षेत्रीय और वैश्विक संस्थानों के लिए एक मॉडल स्थापित करेगा. व्यापारिक साझीदारों की नियामक प्रणालियों में पहले से ज़्यादा इंटर-ऑपरेबिलिटी के साथ डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तनकारी क़वायदों के लिए रास्ते खोजने में इससे मदद मिलेगी. सेवाओं पर नियामक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए विश्व बैंक लंबे अर्से से ‘ज्ञान मंच’ दृष्टिकोण का समर्थन करता आ रहा है.[xx] एशियाई विकास बैंक ने डिजिटल सेवाओं के बारे में ऐसी ही सिफ़ारिशें की हैं.[xxi] इन बहुपक्षीय संस्थानों और अन्य ग़ैर-सरकारी संस्थाओं को इस मंच के साथ जुड़ने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है.

d.डिजिटल व्यापार और आर्थिक सहयोग को लेकर औपचारिक बहुपक्षीय ढांचा तैयार करने के लिए WTO का उपयोग

G20 के कुछ सदस्य, ई-कॉमर्स/डिजिटल व्यापार के लिए नई शासन व्यवस्था विकसित करने को लेकर WTO के प्रयासों को अपनाने में झिझक दिखाते आ रहे हैं. कुछ देश तो ऐसे घटनाक्रमों के प्रति सक्रिय रूप से विरोधी रुख़ पेश करते रहे हैं. दुनिया, 2023 के G20 अध्यक्ष के रूप में भारत की ओर आशा भरी नज़रों से देख रही है और भारत से विश्व व्यापार संगठन में नेतृत्वकारी भूमिका स्वीकारने की उम्मीद लगाई जा रही है.

डिजिटल व्यापार की माप पर UNCTAD ने 2016-17 में एक अभूतपूर्व पायलट सर्वेक्षण किया था. भारत इस सर्वेक्षण के तहत नतीजों को प्रकाशित करने वाला पहला देश था.[xxii] ICT-सक्षम सेवाओं का कुल निर्यात 89 अरब अमेरिकी डॉलर था. इसमें से 63 प्रतिशत कंप्यूटर सेवाएं, 14 प्रतिशत प्रबंधन और प्रशासन सेवाएं, और 11 प्रतिशत इंजीनियरिंग और R&D सेवाएं थीं. UNCTAD का कहना है कि ‘डिजिटल डिलीवरी’ विशेष रूप से ‘छोटे उद्यमों’ के लिए महत्वपूर्ण है. भारतीय ई-कॉमर्स कंपनियां पहले से ही वैश्विक बाज़ारों को लक्षित कर रही थीं. फिल्म, संगीत और ई-पुस्तकों जैसी रचनात्मक और सांस्कृतिक सेवाओं के लिए ऐसी क़वायदों को खासतौर से अंजाम दिया जाता रहा है. भारत के सेवा निर्यातों ने देश की समग्र निर्यात वृद्धि को रफ़्तार दी है. 2021-22 में भारत से सॉफ्टवेयर सेवाओं का निर्यात 17 प्रतिशत से अधिक बढ़कर 157 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. इसमें कंप्यूटर सेवाओं का हिस्सा दो-तिहाई से अधिक था.[xxiii] भारत के सेवा निर्यात में IT-BPO सेवाओं का हिस्सा 60 प्रतिशत से ज़्यादा है.[xxiv]

भारत डिजिटल क्षेत्र का दिग्गज और ग्लोबल साउथ (अल्प-विकसित और विकासशील देशों) का प्रतिनिधि है. इस नाते वो उन मुट्ठीभर अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो डिजिटल वाणिज्यिक नीति निर्माण में बहुपक्षीयवाद की ओर G20 की वापसी का नेतृत्व करने के लिहाज़ से बेहतर स्थिति में है. इसके लिए G20 द्वारा एक वक्तव्य दिए जाने की आवश्यकता होगी. इसमें डिजिटल व्यापार के लिए नियम-निर्माण (rulemaking) के साथ-साथ डिजिटल नियामक सहयोग और अंतरराष्ट्रीय डिजिटल मानकों के विकास पर बहुपक्षीय प्रगति करने को लेकर G20 की बढ़ी हुई प्राथमिकता का संकेत देना होगा.e इसके लिए WTO में दोतरफ़ा दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत पड़ेगी.

सबसे पहले G20 को संयुक्त ऊर्जा और जुड़ाव की गहनता का प्रदर्शन करना चाहिए. ई-कॉमर्स पर WTO वर्क प्रोग्राम से जुड़ी प्रक्रियाओं में निश्चित रूप से ये क़वायद की जानी चाहिए (परिशिष्ट देखें). G20 को WTO सदस्यों (विशेष रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं और MSMEs) में डिजिटल खाइयों को पाटने के लिए संयुक्त समाधान खोजने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इस कड़ी में डिजिटल वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं तक उनकी पहुंच भी शामिल है. इन क़वायदों में ई-ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क पर रोक के फ़ायदों और असुविधाओं की प्रमाण-आधारित चर्चा भी शामिल है. उद्योग समूहों f द्वारा दिए गए सार्वजनिक बयानों की समीक्षा से पता चलता है कि सीमा शुल्कों पर ऐसी रोक के निरंतर विस्तार को तमाम कारोबारों (चाहे वह वैश्विक हो या स्थानीय, बड़ा हो या छोटा) द्वारा व्यापक रूप से एक अच्छे घटनाक्रम के तौर पर देखा जाता है. वो इसे लगातार जारी डिजिटल नवाचार, उत्पादकता वृद्धि और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए एक अच्छी बात समझते हैं. इस मामले पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार सहमति के उच्च स्तर की अनदेखी के ख़तरे हैं. G20 के सभी सदस्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे घरेलू SME और MSME इकाइयों के साथ सक्रियतापूर्ण परामर्श में जुड़े रहें. ऐसी इकाइयों की ई-ट्रांसमिशन के आयात और निर्यात पर निर्भरता तेज़ी से बढ़ती जा रही है.

दूसरा, WTO को डिजिटल युग में ले जाने के लिए इस संगठन के भीतर संभावित रूप से डिजिटल नियम बनाने होंगे. इस क़वायद के लिए G20 से अधिक सक्रिय समर्थन की दरकार है. इसमें ई-कॉमर्स पर JSI के ज़रिए दिया गया समर्थन शामिल है (परिशिष्ट देखें). डिजिटल व्यापार के फलने-फूलने के लिए नियम बनाना बेहद अहम है. इस बात के प्रमाण भी मौजूद है. हाल ही में APEC के एक अध्ययन[xxv] में पाया गया कि विशिष्ट डिजिटल व्यापार प्रावधानों को अपनाने से साल दर साल डिजिटल रूप से ऑर्डर किए गए और डिजिटल रूप से वितरित व्यापार के कुल प्रवाह में 11 प्रतिशत से 44 प्रतिशत के बीच वृद्धि दर्ज की गई. APEC के दो व्यापारिक साझेदारों के बीच लागू हुए हरेक अतिरिक्त डिजिटल व्यापार प्रावधान पर डिजिटल रूप से वितरित सेवाओं के प्रवाह में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई. ये 2000-2018 में लागू होने वाले डिजिटल व्यापार प्रावधानों से उभरकर सामने आता है. इससे 2018 में APEC डिजिटल व्यापार प्रवाह में लगभग 40 अरब अमेरिकी डॉलर या तक़रीबन 3 प्रतिशत की वृद्धि हासिल हुई.

WTO JSI में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागी, ई-कॉमर्स को सुविधाजनक बनाने वाले कई मुद्दों पर एक साथ आए हैं. हालांकि डेटा के प्रवाह को सक्षम करने और बढ़ावा देने के साथ-साथ सीमा पार डेटा प्रवाह, डेटा स्थानीयकरण और सोर्स कोड से जुड़े मसलों का निपटारा करने लिए ज़रूरी सौदों को सिरे चढ़ाने अभी बाक़ी है. इसके लिए उपयुक्त, और संभावित रूप से बहुपक्षीय ‘लैंडिंग ज़ोन’ की खोज में विकल्पों के नए समूहों के विकास की दरकार हो सकती है. संभावित लचीलेपन वाले विकल्प, वैध सार्वजनिक नीति उद्देश्यों के निपटारे में मदद करते हैं या क्षमता निर्माण प्रयासों से जुड़े परिवर्तनकारी मियादों की इजाज़त देते हैं.[xxvi] इस प्रकार के विकल्प, समाधानों के लिए ऐसे लैंडिंग क्षेत्र उपलब्ध कराने में मददगार हो सकते हैं जो सभी को स्वीकार्य हों!

नए व्यापार नियमों के किसी भी परिणामी समूह के लिए संस्थागत स्थापना पर रचनात्मक कार्य किए जाने की भी दरकार होती है. ऐसे में सबसे आसान उपाय यही है कि G20 के सभी सदस्य इसमें हिस्सा लें, जिससे बहुपक्षीय समझौते का रास्ता साफ़ हो सके!. G20 के सभी सदस्यों (जिनमें वो देश भी शामिल हैं जो फ़िलहाल JSI में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हैं) के लिहाज़ से अगला सबसे अच्छा विकल्प है बहुपक्षीय ढांचे में JSI परिणाम के एकीकरण के लिए स्पष्ट समर्थन के संकेत देना. WTO के प्रति G20 के वैश्विक समर्थन के इज़हार से वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में जारी मौजूदा विखंडन को कम करने में काफ़ी मदद मिलेगी.

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a G20 में शामिल तमाम विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ भारत के अनुभव ने इस चुनौती से निपटने और घरेलू और वैश्विक नीति विकास और नियामक सहयोग, दोनों के लिए संबंधित आवश्यकताओं पर अनेक केस स्टडीज़ मुहैया कराए हैं. इस सिलसिले में हम भारत के ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) की मिसाल ले सकते हैं. ये एक ओपन-सोर्स नेटवर्क है, जिसे देश भर में ख़रीदारों और विक्रेताओं (चाहे वे किसी भी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर रजिस्टर्ड हों) को एक-दूसरे के साथ लेनदेन करने में सक्षम बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है. वस्तुओं और सेवाओं से भरे भारत के विविधतापूर्ण बाज़ार को ऑनलाइन स्थानांतरित करना ही ONDC का दृष्टिकोण है. इससे सभी क्षेत्रों में ख़रीदारों और विक्रेताओं/सेवा प्रदाताओं के लिए डिजिटल वाणिज्य को लोकतांत्रिक स्वरूप दिया जा सकेगा. डिजिटल कॉमर्स को अपनाने में आने वाली चुनौतियों और बाधाओं को दूर करने में मदद करके आर्थिक विकास की अगली लहर को बढ़ावा देना इस पूरी क़वायद का मक़सद है.  इंटर-ऑपरेबिलिटी, अनबंडलिंग और विकेंद्रीकरण की मुख्य विशेषताओं के ज़रिए इन्हें अंजाम दिया जाता है.

b MSME डेटा स्रोतों में OECD इंटर-कंट्री इनपुट-आउटपुट (ICIO) टेबल्स, विश्व बैंक उद्यम सर्वेक्षण, भारत सरकार के MSME गणना डेटासेट्स और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण शामिल हैं.

c  https://www.oecd.org/g20/summits/buenos-aires/G20-Toolkit-for-measuring-digital-economy.pdf

d व्यापक अंतरराष्ट्रीय नियामक संवाद के उम्मीदवारों में क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन शामिल हैं.

e देखें “डिजिटल सेवाओं में सीमा पार व्यापार की इंटर-ऑपरेबिलिटी के लिए अंतरराष्ट्रीय डिजिटल मानक विकास क्यों मायने रखता है,” T20 पॉलिसी ब्रीफ.

f रोक का विस्तार किए जाने के समर्थन में जून 2022 में दुनिया भर के 100 कारोबारी समूहों के हस्ताक्षरों वाला वैश्विक उद्योगों का बयान देखिए. जकार्ता पोस्ट ने एक और उदाहरण की ख़बर दी है.

परिशिष्ट: ई-कॉमर्स पर WTO वर्क प्रोग्राम और ई-कॉमर्स पर WTO JSI

ई-कॉमर्स पर वर्क प्रोग्राम

जैसा कि WTO की आधिकारिक वेबसाइट पर बताया गया है, ई-कॉमर्स पर वर्क प्रोग्राम सितंबर 1998 में WTO जनरल काउंसिल द्वारा स्वीकारा गया था. WTO के चार निकायों को, ई-कॉमर्स और WTO के मौजूदा समझौतों के बीच संबंधों में उलझे मसलों की पड़ताल करने का काम सौंपा गया था. WTO के मौजूदा समझौतों में सेवाओं में व्यापार के लिए परिषद; माल में व्यापार के लिए परिषद; बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलुओं के लिए परिषद; और व्यापार और विकास पर समिति शामिल हैं. जनरल काउंसिल की भूमिका ई-ट्रांसमिशनों पर सीमा शुल्क पर ग़ैर-स्थायी रोक की जांच-पड़ताल करने (1998 में भी अपनाई गई) और आगे की कार्रवाई के लिए सिफारिशें देने की थी. मंत्रियों ने बाद के मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों में वर्क प्रोग्राम की समीक्षा की, किए गए कार्यों का लेखाजोखा तैयार किया और विभिन्न निकायों को काम जारी रखने के निर्देश दिए. मंत्रियों ने नियमित रूप से अगले मंत्रिस्तरीय सम्मेलन तक ई-ट्रांसमिशनों पर सीमा शुल्क आयद नहीं किए जाने के अभ्यास को जारी रखने पर सहमति जताई.

वर्क प्रोग्राम के तहत गतिविधियों की दो अवधियां पहचानी जा सकती हैं. पहली अवधि 1998-2015 की है. प्रस्तावों और परिचर्चाओं की शुरुआती झड़ी के बाद, अपेक्षाकृत शांति का एक लंबा दौर चला. 2015 में नैरोबी में WTO के 10वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC10) के आसपास, दूसरी अवधि में हालात बदल गए. तब से चर्चा में नई जान फूंकी गई और जून 2022 में जिनेवा में WTO MC12 तक इसका विस्तार कर दिया गया, जहां मंत्रियों ने रोक पर चर्चा तेज़ करने पर सहमति जताई. उन्होंने जनरल काउंसिल को “स्थगन के दायरे, परिभाषा और प्रभाव समेत” अन्य मसलों पर समय-समय पर समीक्षा करने के निर्देश दिए. WTO के कुछ सदस्यों ने विचार व्यक्त किया कि ऐसी रोक की अवधि तात्कालिक या अस्थायी होनी थी. उनकी दलील थी कि चूंकि अब इस बारे में पर्याप्त जानकारी है कि ई-कॉमर्स कैसे काम कर रहा है, ऐसे में रोक की इस क़वायद को समाप्त कर दिया जाना चाहिए. उनका तर्क था कि ऐसी रोक, सीमा शुल्क नीति के क्षेत्र में WTO सदस्यों के विवेक को सीमित करता है. साथ ही सदस्यों (ख़ास तौर से विकासशील और अल्प-विकसित सदस्यों) को सीमा शुल्क राजस्व से वंचित करता है. जिनेवा में मंत्रियों ने WTO MC13 (जो फरवरी 2024 में होगी) तक ई-ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क नहीं लगाने के मौजूदा तौर-तरीक़े को बनाए रखने पर सहमति जताई. वे इस बात पर रज़ामंद हुए कि अगर तमाम मंत्री या जनरल काउंसिल इसके विस्तार का निर्णय ना लें, तो ये रोक 31 मार्च 2024 को समाप्त हो जाएगी.

ई-कॉमर्स पर JSI

दिसंबर 2017 में ब्यूनस-आयर्स में आयोजित WTO MC11 के दौरान WTO के 71 सदस्यों के एक समूह ने ई-कॉमर्स पर एक ज्वॉइंट स्टेटमेंट इनिशिएटिव (JSI) की शुरुआत की. इसका मक़सद ई-कॉमर्स के व्यापार-संबंधित पहलुओं पर भविष्य की WTO वार्ताओं की दिशा में खोजपूर्ण कार्य शुरू करना था. 76 प्रतिभागियों के साथ 2019 में वार्ताएं शुरू हुईं. इसमें हिस्सा लेने वाले सदस्यों की संख्या अब 89 हो गई है. वैश्विक व्यापार में इन देशों का हिस्सा 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा है. ये तमाम देश विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों और विकास के अलग-अलग स्तरों का प्रतिनिधित्व करते हैं. समूह ये सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि JSI, उपभोक्ताओं के साथ-साथ कारोबारों के लिए संतुलित, समावेशी और सार्थक बना रहे. भारत और दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर, G20 के ज़्यादातर सदस्य इसमें हिस्सा ले रहे हैं.

दिसंबर 2022 में प्रतिभागियों ने दस लेखों पर सहमति के साथ एक संगठित पाठ जारी किया. इनमें: पेपरलेस व्यापार; ई-कॉन्ट्रैक्ट्स; ई-सत्यापन और ई-हस्ताक्षर; अनचाहे व्यावसायिक ई-संदेश; ऑनलाइन उपभोक्ता संरक्षण: ओपन सरकारी डेटा; इंटरनेट का खुला उपयोग; पारदर्शिता; साइबर सुरक्षा; और ई-लेनदेन ढांचे शामिल हैं. प्रतिभागियों ने बातचीत को तेज़ करने की प्रतिबद्धता जताई. दिसंबर 2023 तक या ज़्यादा से ज़्यादा फरवरी 2024 में प्रस्तावित WTO MC13 के दौरान इसे पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा गया है. डेटा के प्रवाह को सक्षमकारी बनाने और बढ़ावा देने वाले प्रावधानों की दिशा में आगे काम करने की आवश्यकता जताई गई है. इनमें सीमा पार डेटा प्रवाह, डेटा स्थानीयकरण और सोर्स कोड शामिल हैं. इसमें शामिल प्रतिभागी, ई-ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क पर प्रतिबंध को स्थायी बनाने पर भी चर्चा जारी रख रहे हैं.

अंतिम संस्थागत स्थापना पर भी काम किए जाने की दरकार है, यानी, क्या ऐसा समझौता (अगर या जब भी इसे अंतिम रूप दे दिया जाए) WTO का हिस्सा होगा, इस पहेली को सुलझाना ज़रूरी है. इन वार्ताओं को G20 के अनेक सदस्य, एक ऐसे उपकरण के रूप में देख रहे हैं जो डिजिटल व्यापार और आर्थिक सहयोग के लिए बहुपक्षीय ढांचे का हिस्सा हो सकता है. इसके परिणाम, डिजिटल व्यापार पर पहले वैश्विक नियम हो सकते हैं. इसके तहत कुछ मौजूदा नियमों को बाध्यकारी बनाया जा सकता है और कुछ नए नियमों की शुरुआत भी हो सकती है.

Endnotes

[i] OECD, “Services Trade Restrictiveness Index: Policy Trends up to 2023,” 2023.

[ii] APEC, “Policy Brief on Services and Structural Reform,” December 2022; OECD, “Policy Trends up to 2023.”

[iii] Open Network for Digital Commerce/McKinsey and Company, “Democratising

Digital Commerce in India,” April 2023.

[iv] WTO, “New Data Reveals Regional Variations in Digitally Delivered Services Trade,” April 2023.

[v] International Trade Centre, “SME Competitiveness Outlook: Connected Services, Competitive Businesses,” September 2022.

[vi] Noshir Kaka et al., “Digital India: Technology to Transform a Connected Nation,” McKinsey Global Institute, 2019.

[vii] Telecommunications Regulatory Authority of India, “Press Release No. 31,” March 31, 2023.

[viii] Insider Intelligence, “Real-Time Payment Transactions by Country,” 2023.

[ix] Insider Intelligence, “Real-Time Payment Transactions by Country”

[x] Rajat Kathuria et al., “Economic Implications of Cross-Border Data Flows,” Indian Council for Research on International Economic Relations, 2019.

[xi] Badri Narayanan Gopalakrishnan, “Analyzing the Impact of Cross-Border Digital Transmissions on MSME Sector in India”, Working Paper, 2023.

[xii] Indonesian Services Dialogue, “Digital Adoption and Dependency on Digital Goods and Services in MSME: A Survey of MSME in Java and Bali (Final Report),” 2021/2022.

[xiii] ISD, “A Survey of MSME in Java and Bali”

[xiv] ISD, “A Survey of MSME in Java and Bali”

[xv] OECD, “The Case for the E-Commerce Moratorium,” May 2022; Hosuk Lee-Makiyama and Badri G. Narayanan, “The Economic Losses from Ending the WTO Moratorium on Electronic Transmissions,” ECIPE, August 2019.

[xvi] Gopalakrishnan, “Analyzing the Impact of Cross-Border Digital Transmissions on MSME Sector in India”

[xvii] Subrata Das and K. Das, “Factors Influencing the Information Technology Adoption of

Micro, Small and Medium Enterprises (MSME): An Empirical Study,” International Journal of Engineering Research and Applications 2, no. 3 (2012).

[xviii] OECD/WTO, “Services Domestic Regulation in the WTO: Cutting Red Tape, Slashing Trade

Costs, and Facilitating Services Trade,” November 2021.

[xix] WTO, “Joint Statement Initiative: Reference Paper on Services Domestic Regulation,

INF/SDR/2,” November 2021.

[xx] Bernard Hoekman and Aaditya Mattoo, “Services Trade Liberalization and Regulatory

Reform: Re-Invigorating International Cooperation,” CEPR Discussion Paper No. DP8181, January 2011.

[xxi] ADB, “Unlocking the Potential of Digital Services Trade in Asia”

[xxii] UNCTAD, “India’s Digital Services Exports Hit $83 Million Says News Survey,” 2018.

[xxiii] India Brand Equity Foundation, “Exports: Services,” January 2023.

[xxiv] Government of India, “Economic Survey 2022-2023,” Ministry of Finance, 2023.

[xxv] APEC. “Economic Impact of Adopting Digital Trade Rules: Evidence from APEC Member Economies,” March 2023.

[xxvi] UNCTAD, “What is at Stake for Developing Countries in Trade Negotiations on E-Commerce? The Case of the Joint Statement Initiative,” 2021.

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Authors

Badri Narayanan Gopalakrishnan

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Badri Narayanan Gopalakrishnan Non-Resident Senior Fellow National Council of Applied Economic Research

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Harsha Vardhana Singh

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Harsha Vardhana Singh Councillor Global Trade Observer

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Jane Drake-Brockman

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Visiting Fellow Institute for International Trade University of Adelaide and Founder Australian Services Roundtable Jane Drake-Brockman is a widely published international economics and regional integration ...

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Pascal Kerneis

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Pascal Kerneis Lecturer in European Law University Paris Saclay

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Rajat Kathuria Dean and Professor of Economics Shiv Nadar Institute of Eminence

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