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ऐसे कई क्षेत्र जो अब तक तकनीक से अछूते थे और जिन के लिए यह माना जाता कि लोगों की मौजूदगी या इंसानी दख़ल के बिना इन क्षेत्रों में काम पूरा होना संभव नहीं है, अब तकनीक की मदद से ऑनलाइन पहुंच गए हैं.
कोविड-19 की महामारी और इस से पैदा हुए संकट ने दुनिया भर में तकनीक के इस्तेमाल में एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाई है. ऐसे कई क्षेत्र जो अब तक तकनीक से अछूते थे और जिन के लिए यह माना जाता कि लोगों की मौजूदगी या इंसानी दख़ल के बिना इन क्षेत्रों में काम पूरा होना संभव नहीं है, अब तकनीक की मदद से ऑनलाइन पहुंच गए हैं. उदाहरण के लिए ऐसे समय में जब भौतिक रूप से अदालतों की कार्रवाई संभव नहीं थी, तब क़ानूनी और अदालती कार्रवाई को ऑनलाइन स्थानांतरित किया गया और न्यायाधीशों द्वारा अदालत की सुनवाई के लिए खुद को ऑनलाइन माध्यमों के अनुरूप ढालने की सफल कोशिशें की गईं. दिलचस्प बात यह है कि ऐसे कई ऐसे क्षेत्र महामारी के बाद के दिनों एक हाइब्रिड रूप यानी ऑनलाइन और भौतिक जीवन की विशेषताओं को अपनाते रहेंगे. उदाहरण के लिए सरकार क़ानूनी मामलों के तेज़ी से निपटारे व समाधान को सुनिश्चित करने के लिए ई-कोर्ट प्रणाली को लागू करने की योजना बना रही है. इसी तरह, पढ़ाई-लिखाई व सीखने के मिश्रित मॉडल के ज़रिए इस बात को सुनिश्चित किया जा सकेगा कि शिक्षा व ज्ञान सभी के लिए सुलभ हो और समाज के वर्ग को लेकर समावेशी भी रहे.
दुनिया भर में सरकारें तकनीक व प्रौद्योगिकी की दुनिया में मौजूद अवसरों और चुनौतियों को समझती हैं, और इसी आधार पर उन्होंने नीतिगत फ़ैसले लिए हैं.
दुनिया भर में सरकारें तकनीक व प्रौद्योगिकी की दुनिया में मौजूद अवसरों और चुनौतियों को समझती हैं, और इसी आधार पर उन्होंने नीतिगत फ़ैसले लिए हैं. यूरोपीय संघ (European Union, EU) ने इस बात को समझा की महामारी ने उच्च गुणवत्ता वाले डेटा, डिजिटल प्रौद्योगिकियों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े एनेलेटिकल उपकरणों की ज़रूरत को बढ़ा दिया है. यही वजह है कि इस ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए इन तकनीकों को यूरोपीय संघ के नीतिगत ढांचों और महामारी के चलते अचानक पैदा हुई ज़रूरतों के केंद्र में रखा गया है. इस गंभीर स्वास्थ्य संकट के लिए यूरोपीय संघ की नीतिगत प्रतिक्रियाएं अब तकनीक को एक अहम हिस्से के रूप में देखती हैं.
भारत सरकार ने भी महामारी के समय में अपने नागरिकों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है और नए तकनीकी समाधानों का इस्तेमाल कर इस दिशा में काम किया है. ऐसे में यह देखने योग्य है कि केंद्रीय बजट 2021 में सामाजिक व आर्थिक संदर्भ में डेटा से संचालित तकनीकों के उपयोग को मज़बूत करने के लिए क्या क़दम उठाए गए हैं.
शुरुआत के तौर पर, सरकार ने इस बात की पहल की है कि महामारी के इस दौर में सामने आ रहे बदलावों, प्रतिक्रियाओं और ज़रूरतों को ले कर तकनीक के फलक पर अन्य क्षेत्रों के साथ साथ तकनीकी व्यवसायों को भी लाभ पहुंचे. स्टार्ट-अप इंडिया एक्शन प्लान (Start-up India Action Plan) को सफल बनाने की सरकार की दृढ़ता को केंद्र में रखते हुए सरकार ने स्टार्ट-अप कंपनियों के लिए ‘टैक्स-हॉलिडे’ की अवधि को बढ़ाने की घोषणा की है. ‘टैक्स-हॉलिडे’ अस्थायी रूप से तय की गई एक ऐसी अवधि है जिस दौरान सरकार कुछ वस्तुओं पर टैक्स को हटा देती है और बजट में की गई घोषणा के मुताबिक स्टार्टअप कंपनियों के लिए इस सुविधा के तहत अपनी पात्रता घोषित करने और उस का फ़ायदा उठाने से संबंधित दावा करने की समय सीमा को एक वर्ष तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया है, यानी 31 मार्च, 2022 तक. इसके अलावा, पूंजीगत निवेश पर छूट को लेकर भी स्टार्ट-अप के लिए समय सीमा को एक वर्ष और बढ़ा दिया गया है. अगले पांच साल तक 50,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ प्रस्तावित राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (National Research Foundation) में राष्ट्रीय-प्राथमिकता के अंतर्गत आने वाले व्यवसायों में डेटा-संचालित व्यवसायों को भी शामिल किया गया है.
शुरुआत के तौर पर, सरकार ने इस बात की पहल की है कि महामारी के इस दौर में सामने आ रहे बदलावों, प्रतिक्रियाओं और ज़रूरतों को ले कर तकनीक के फलक पर अन्य क्षेत्रों के साथ साथ तकनीकी व्यवसायों को भी लाभ पहुंचे
डेटा-संचालित बाज़ारों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने खास तौर पर, निम्न प्रस्ताव दिए हैं:
जहां एक ओर केंद्रीय बजट 2021 में सरकार ने डिजिटल अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने के अपने संकल्प को दोहराया है, और इस दिशा में अपनी प्रतिबद्धता को ज़ाहिर किया है, वहीं डिजिटल इकॉनमी से पैदा हुए अवसरों का लाभ उठाने और इस की चुनौतियों को दूर करने के लिए अतिरिक्त क़दम उठाए जाने की भी आवश्यकता है.
ऐसा ही एक क़दम, उन व्यवसायों के लिए एक विशेष प्रोत्साहन-आधारित तंत्र (exclusive incentive-based mechanism) तैयार करना हो सकता है, जो उन व्यवसायों को लाभ पहुंचाए जो डेटा-चालित प्रौद्योगिकी (data-driven technology) को अपना रहे हैं. इस से पहले सरकार, साल 2021-22 के लिए, पांच साल के अंतराल में 1.97 लाख करोड़ रुपये का आवंटन कर चुकी है, जो उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन यानी पीएलआई (Production Linked Incentive, PLI) योजना के रूप में इस बात को सुनिश्चित करती है कि भारत का विनिर्माण क्षेत्र वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का एक अभिन्न अंग बने. साथ ही उसके पास उच्चतम तकनीक हो और प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में उतरने की क्षमता हो. इसी तरह के क़दम डिजिटल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भी उठाए जा सकते हैं.
सरकार की योजना उपभोक्ताओं को विकल्प प्रदान करना और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के ज़रिए उपभोक्ताओं को बेहतर विकल्प चुनने में सक्षम बनाना है.
इस संबंध में कुछ अंतरराष्ट्रीय उदाहरण हमारे सामने हैं. यूरोपीय आयोग (European Commission) हरित और डिजिटल तकनीकों तक हस्तांतरण के लिए 1.5 बिलियन यूरो का नेटवर्क बना रहा है. इस पहल के एक हिस्से के रूप में, यूरोपीय डिजिटल इनोवेशन हब (European Digital Innovation Hub) बनाए जाएंगे, जो वन-स्टॉप-शॉप यानी हर तरह के विकल्प एक ही जगह उपलब्ध कराने वाले माध्यम के रूप में काम करेंगे और जहां कंपनियां और सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन नए से नए डिजिटल इनोवेशन तक पहुंच सकते हैं, और उनका परीक्षण कर सकते हैं. इस के अलावा यह डिजिटल इनोवेशन हब, ज़रूरी डिजिटल स्किल प्राप्त करने, वित्तपोषण के संदर्भ में सलाह लेने और अंतत: डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को अपनाने में कंपनियों की मदद करेंगे ताकि यह कंपनियां हरित तकनीकों और डिजिटलीकरण के मिलेजुले लक्ष्य को पा सकें, जो यूरोपीय औद्योगिक नीति का मूल है. ये डिजिटल इनोवेशन हब, डिजिटल यूरोप कार्यक्रम के तहत, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence), हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग यानी एचपीसी ( High Performance Computing, HPC) और साइबर सिक्योरिटी टूल्स (Cybersecurity tools) जैसी तकनीकों को अपनाए जाने में अहम भूमिका निभाएंगे ताकि उद्योगों द्वारा (जिसमें विशिष्ट एसएमई और मिडकैप शामिल हैं) द्वारा इस दिशा में क़दम बढ़ाए जाने को आसान बनाया जा सके. इस के अलावा उद्योगों व सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों द्वारा अपनाई जाने वाली अन्य तकनीकों को लेकर भी यह इकाई सक्रिय होगी और उन्हें प्रोत्साहित करने में एक केंद्रीय भूमिका निभाएगी.
इस दिशा में एक और क़दम डिजिटल बाज़ारों की तकनीकी विशेषताओं को समझना भी हो सकता है, जो एक विशेष डिजिटल बाज़ार को एकाधिकार की तरफ धकेलने की प्रवृत्ति रखता है. एकाधिकार की इस प्रवृत्ति के चलते अंतत: कामगारों के फ़ायदे और उनका कल्याण प्रभावित होता है. सामान्य तौर पर, सरकार इस बात को और उन स्थितियों को समझती है, जो एकाधिकार के चलते सामने आती हैं और बजट में इस बात का संज्ञान लिया गया है. देश भर में वितरण कंपनियां, सुधारों के बावजूद, या तो सरकारी कंपनियों के एकाधिकार क्षेत्र में हैं, या निजी क्षेत्र में हैं. ऐसे में सरकार की योजना उपभोक्ताओं को विकल्प प्रदान करना और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के ज़रिए उपभोक्ताओं को बेहतर विकल्प चुनने में सक्षम बनाना है. सरकार इस ज़रूरत को महसूस करते हुए, इस के लिए एक ढांचागत रूपरेखा बनाने का लक्ष्य रखती है, ताकि उपभोक्ताओं को किसी एक वितरण कंपनी के एकाधिकार के बजाय अपने लिए सही विकल्प चुनने की स्वतंत्रता मिले. सरकार को चाहिए कि वह डिजिटल बाजारों को स्वतंत्र और प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए भी इसी तरह के क़ानूनी और नियामक क़दम उठाए, जैसा कि अन्य प्रमुख डेटा बाज़ारों में किया गया है.
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