Author : Rumi Aijaz

Published on Nov 02, 2023 Updated 0 Hours ago

अगर भविष्य की आबादी की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना है तो, भारत को गैर-नवीकरणीय संसाधानों पर अपनी निर्भरता को कम करना होगा और हरित ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनना पड़ेगा.

पर्यावरण से जुड़े विषय पर संवाद और भारत की हरित ऊर्जा यात्रा

पृथ्वी की दिनों दिन बिगड़ती स्थिति को लेकर दुनियाभर के पर्यावरणविदों में चिंता स्वाभाविक तौर पर दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.अस्थायी तापमान डेटा के विश्लेषण के आधार पर ये धारणा कायम हुई है, जो 1880 से 2022 की अवधि के दौरान पृथ्वी पर तापमान के 1.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़त का संकेत देता है. वैज्ञानिक समुदाय के अनुसार भविष्य में तापमान में और भी ज्य़ादा बढ़त, सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय परेशानियों की उत्पत्ति का आधार बनेगी. इस लेख में जलवायु परिवर्तन पर बन रही वैश्विक सोच एवं भारत में हरित ऊर्जा संबंधी पहलों का वर्णन करने का प्रयास किया गया है

वैज्ञानिक समुदाय के अनुसार भविष्य में तापमान में और भी ज्य़ादा बढ़त, सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय परेशानियों की उत्पत्ति का आधार बनेगी.

बदलते जलवायु परिवर्तन संबंधी समाचारों में बढ़त देखी जा रही है और वो चर्चा का विषय बन रहा है. दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में अक्सर पड़ रहा सूखा/अकाल, जंगल में आग, बरफ़ का पिघलना, समुद्र/सागर में बढ़ता जलस्तर, बाढ़, और प्रलयंकारी तूफ़ान/साइक्लोन (चक्रवात) आदि जैसे कई समस्याएं लगातार घट रही है. ये सारी घटनाएँ लोगों के जीवन को बहुत ज़्यादा प्रभावित कर रही है.  

उदाहरण के लिये,बंगाल की खाड़ी से सटे सुंदरबन क्षेत्र में लगातार हो रहे जलस्तर में वृद्धि, खारे पानी की क्षेत्र में घुसपैठ, और तटीय कटावों के कारण किसान और मछुवारे समुदाय पलायन को विवश हो रहे है. इस जबरन विस्थापन की वजह ने इस समुदाय को उनकी आजीविका से वंचित करके उन्हें दरिद्रता की ओर धकेल दिया है. ठीक इसी तरह, जुलाईअगस्त 2023 के दौरान, ग्रीस के जंगलों में लगी आग की वजह से हज़ारों लोग मारे गए और काफी घायल हुए. इसके अलावा वहां बनी इमारतों और उनकी बुनियादी ढांचों को भारी क्षति एवं नुकसान पहुंचा. अगस्त 2023 में, उसी तरह से, चीन ने भी भारी बारिश और उसके फलस्वरूप  आये प्रलयंकारी बाढ़ के चलते 10 लाख से भी ज्य़ादा लोगों के जबरन विस्थापन को झेला  है. दुनिया भर  में, अप्रत्याशित रूप से घट रही घटनाओं में दर्ज बढ़त को ध्यान में रखते हुए, भविष्य में जलवायु शरणार्थियों में वृद्धि की काफी संभावना है.     

तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्त के कारण अन्य सामाजिक और आर्थिक चिंताओं में कृषि उत्पादन में हो रही कमी, सामानों की कीमत में लगातार हो रही वृद्धि, बढ़ती गरीबी/ ज्ञात/अज्ञात बीमारियों का फैलाव, जल की कमी, सीमित संसाधनों पर मतभेद एवं संघर्ष, और काम से प्राप्त कम उत्पादकता शामिल है. 

लगातार सामने आ रही जलवायु समस्याओं के पीछे वैज्ञानिक समुदाय ने दो प्रमुख वजह गिनाई है: पहलाज्वालामुखी की गतिविधियों में लगातार हुई बढ़त के साथ, पृथ्वी तक पहुँचने वाली सौर ऊर्जा की तीव्रता में आने वाला परिवर्तन, और दूसरा; मानव समुदायों द्वारा अपनी कई सामाजिक ज़रूरतों के लिए जीवाश्म ईंधन(जैसे कोयला, तेल, और गैस) को जलाना. 

हाल ही में, वैज्ञानिकों ने ऐसा दावा किया है कि, पिछले कुछ वर्षों में, जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में सूरज की भूमिका काफी कम हो गई है, 20वीं सदी के मध्य से, जीवाश्म ईंधन और उसके साथ-साथ अन्य पर्यावरणअनुकूलमानव गतिविधियों में हो रही वृद्धि, भी ग्लोबल वॉर्मिंग (जलवायु परिवर्तन)के लिए ज़िम्मेदार है. ये सब परिवहन (मोटर वाहन), उद्योग (पावर प्लांट), संसाधन (सड़क, जल, सैनिटेशन, आवासीय (इमारतों को गरम और ठंडा करने के लिए) और वनों की कटाई की वजह से जलवायु संबंधित हानि और सतह पर बसे जल निकायों के प्रदूषण से पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान से संबंधित है.  

इस संदर्भ में, ये ध्यान दिए जाने योग्य बात है कि ज़्यादातर राष्ट्र अपने देश के विकास कार्यों हेतु, अब कार्बनगहन दृष्टिकोण अपना रहे हैं, जीवाश्म ईंधन की हो रही लगातार इस्तेमाल की वजह से उत्पन्न हो रही ग्रीनहाउस गैस जैसे, कार्बनडाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, और मिथेन आदि वातावरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं. ऐसी स्थिति में, सूरज से प्राप्त होने वाली ऊर्जा या गर्माहट, अंतरिक्ष में समूचे रूप से प्रतिबिंबित नहीं होती है. इसके बजाए, (जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से उत्पन्न होने वाली) गैस और अन्य कण, वायुमंडल में उपलब्ध ज्य़ादातर ऊष्मा, को सोख लेती है, जो पृथ्वी के सभी दिशाओं में फैल जाती   है,और इस वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या उभर रही है.   

जलवायु संकट के प्रमुख कारण

ऊर्जा क्षेत्र, गैस उत्सर्जन का एक प्रमुख स्त्रोत है. इसलिये, ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत (जीवाश्म ईंधन, यूरेनियम) पर निर्भरता को कम किए जाने और साथ ही, पर्यावरण के अनुकूल स्रोतों या फिर हरित ऊर्जा की ओर उसे स्थानांतरित किये जाने पर आम सहमति बनी है. यूनाईटड स्टेट एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के अनुसार, सूरज, बायोमास(पौधों/जानवरों से प्राप्त ऑर्गेनिक तत्व, भूताप (पृथ्वी के भीतर की गर्मी, बायोगैस(मृत जानवर,पौधों के अवशेषों से प्राप्त कार्बनिक पदार्थों के जीवाणु डिकंपोज़िशन से पैदा होने वाली गैस)एवं हल्के प्रभाव वाले छोटे पनबिजली (बहते पानी के प्राकृतिक स्रोत से बिजली पैदा करने वाली)परियोजनाएं, ग्रीन एनर्जी या हरित ऊर्जा का उत्पादन करती है

मानव गतिविधियों के संचालन के लिये, पर्यावरण के अनुकूल तरीकों को अपनाए जाने पर काफी ज़ोर दिया जा रहा है. परिवहन सेक्टर के लिए, की गई सिफारिशों में, सार्वजनिक परिवहनों का इस्तेमाल, साझा परिवहन, इलेक्ट्रिक व्हीकल,और गैर मोटर-चलित वाहन शामिल हैं.

इसके अलावा, मानव गतिविधियों के संचालन के लिये, पर्यावरण के अनुकूल तरीकों को अपनाए जाने पर काफी ज़ोर दिया जा रहा है. परिवहन सेक्टर के लिए, की गई सिफारिशों में, सार्वजनिक परिवहनों का इस्तेमाल, साझा परिवहन, इलेक्ट्रिक व्हीकल,और गैर मोटरचलित वाहन शामिल हैं. आवास/कार्यस्थलों के लिए मुहैया कराये जा रहे विकल्प ज्य़ादातर रिन्यूएबल एनर्जी के स्रोतों जैसे वायु और  सोलर एनर्जी, व ऊर्जा कुशल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की ओर रुख़ कर रहे है. इसके अलावा, खरीदारी एक काफी लोकप्रिय काम है, और इसको ध्यान में रखते हुए, बेवजह रूप से, किसी प्रकार के वस्तु (वस्तुओं) की खरीदारी (जैसे कि कपड़ा आदि) को हतोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि इन वस्तुओं की ज़रूरत से ज़्यादा मांग की वजह से इनके उत्पादन में बढ़त की ज़रूरत पड़ी है जिसके फलस्वरूप, मांग की पूर्ति के लिए होने वाले उत्पादन में भी ऊर्जा का उपयोग होता है. मांसाहारी भोजन(खासकर:लाल मांस)भी एक काफी ज्वलंत मुद्दा है क्योंकि, इसमें भी जानवरों के पालन पोषण के लिए प्राकृतिक संसाधनों (पानी/भूमि)का भारी इस्तेमाल होता है. उत्पादों और संसाधनों में कमी और पुन:उपयोग, उनकी देखरेख/वस्तुओं और संसाधनों(जल/तरल और ठोस अपशिष्ट)की दोबारा रिसाइक्लिंग, को समान महत्व दिया जाता है. बदलते समय के साथ, समाज के तमाम मानव समुदायों इन सभी  विकल्पों के इस्तेमाल को सहजता के साथ स्वीकार किया है इसके प्रमाण हर जगह मौजूद है. 

संयुक्त राष्ट्र ने  दुनिया के समस्त शीर्ष नेताओं से 2030 तक अपने अपने देशों में उत्सर्जन कम करने का और 2050 तक शुद्ध शून्य यानी शून्य के नजदीक उत्सर्जन तक पहुँचने का आह्वान किया है. इसके अलावा,औद्योगिक देशों को,विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन एवं लचीलापन को और भी सुदृढ़ करने के एवज में जलवायु वित्त के तौर पर 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर राशि मुहैया कराए जाने को कहा है

एक तरफ ज्य़ादातर देशों ने इन प्रस्तावों के समर्थन में अपनी प्रतिबद्धता जताई है, इसके बावजूद, मात्र कुछ देशों ने ही आंशिक रूप से इसका अनुपालन किया है. संयुक्त राष्ट्र के लिए अब भी ये विषय काफी चिंतनीय है, क्योंकि कुछ देश (विशेषत: ग्रेट ब्रिटेन)शुद्ध शून्य के बजाय (उपलब्ध संसाधनों की मदद से) ऊर्जा सुरक्षा को अधिक प्राथमिकता देते हैं, इसलिए उन सब ने अपने जलवायु लक्ष्यों से पीछे हटना शुरू कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल, एंटोनियो  गुटेरेस ने अपनी टिप्पणी में कहा, “बच्चे बारिश में बहे जा रहे हैं, परिवार आग की लपटों से भाग रहे हैं, भीषण गर्मी में श्रमिक धराशाही हो रहे हैं, हवा सांस लेने योग्य नहीं है, और गर्मी भी असहनीय है.”  

कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने में भारत की भूमिका

दुनिया की सबसे ज्य़ादा आबादी वाले देश भारत ने, कई हरित पहल शुरू किए हैं और अपनी उत्सर्जन रैंकिंग को और बेहतर करने की दिशा में कोशिश कर रही है. वर्तमान समय में, वो चीन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के बाद दुनिया का चौथा सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है, और उनका लक्ष्य है वर्ष 2030 तक ग़ैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से 50 प्रतिशत बिजली उत्पाद करना और 2070 तक शुद्ध शून्य के आँकड़े को प्राप्त करना

काफी समय पहले वर्ष 2010 में, राष्ट्रीय सोलर मिशन को लॉन्च किया गया था जिसमें सौर पार्क (बड़े भूमि क्षेत्र पर सौर अवसंरचना विकास), मेगा सौर पावर परियोजनाएं, किसान ऊर्जा सुरक्षा (सोलर सिंचाई पंप स्थापना के लिए दिए जाने वाली कृषि वित्तीय सहायता, रूफ़टॉप सोलर प्रोजेक्ट,और हरित ऊर्जा कॉरीडोर (सोलर पावर द्वारा चार्ज किए जाने वाले अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन लाइन और सबस्टेशन का गठन)जैसी योजनाओं का राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन शामिल था. 2022 के अंत तक, भारत में 63.30 गीगावाट (gw) क्षमता वाले  सोलर पावर की स्थापना की गई और राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों ने इसमें बेहतर प्रगति दिखलाई है

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन एक हालिया (2023) में शुरू किया गया पहल है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 5 मिलियन मेट्रिक टन क्षमता का उत्पादन, हो सकता है.

2022 में, बायोमास से ऊर्जा (जैसे कृषि अपशिष्ठ, लकड़ी, ताड़ के पत्ते, कोको शेल, हस्क, और ठोस अपशिष्ठ)प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम लागू किया गया था. देशभर में 800 से ज्य़ादा बायोमास संयंत्र स्थापित किये गये और यह 10.73 गीगावाट स्थापित क्षमता वाला स्त्रोत बन गया

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन एक हालिया (2023) में शुरू किया गया पहल है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 5 मिलियन मेट्रिक टन क्षमता का उत्पादन, हो सकता है. दूसरे अन्य महत्वपूर्ण पहल जो जारी हैं वो हैं विंड, विंड-सोलर हाइब्रिड  और छोटे पनबिजली परियोजनाओं से ऊर्जा का उत्पादन शामिल है. कुल मिलाकर  ये 46.87 गीगावाट की स्थापित क्षमता के लिए ज़िम्मेदार है.  

31 दिसम्बर 2022 तक, भारत में विभिन्न गैरजीवाश्म ईंधन स्रोतों  से कुल 167.75 गीगावाट क्षमता की स्थापना की गई. इसके साथ ही,78.75 गीगावाट क्षमता वाली परियोजना प्रगति में है और 32.60 गीगावाट क्षमता वाले प्रोजेक्ट पर अभी नीलामी शेष है. काम के पूरा हो जाने पर कुल 280 गीगावाट तक की स्थापित क्षमता उपलब्ध हो चुकी होंगी. इन स्त्रोतों द्वारा स्थापित क्षमता पर जो आंकड़े मौजूद हैं उनसे यह पता चलता है कि, वर्तमान में, पवन, जैवऊर्जा, और छोटे पनबिजली क्षेत्र से भी काफी पहले से, सौर ऊर्जा क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक है

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने साल 2023-24 के दौरान, भारत के हरित ऊर्जा एनर्जी क्षेत्र के विकास कार्यों के लिए कुल 102.22 बिलियन की राशि का आवंटन किया था. बायोएनर्जी, हाइड्रोजन, और पनबिजली परियोजनाओं की तुलना में, सोलर और वायु एनर्जी परियोजनाओं को सबसे ज्य़ादा पैसों का आवंटन किया गया है. कुछ राशि मानव संसाधन विकास और अनुसंधान और विकास के लिए भी रखी गई है. 

स्मार्ट सिटी मिशन के तहत चंद हरित परियोजनाओं को भी लागू किया गया है. कोयम्बटूर और सलेम में विद्युत ज़रूरतों की मांग की पूर्ति के लिए सोलर रूफ़टॉप ढांचों को स्थापित किया गया है. उत्पादन के ज़रिये हासिल हरित बिजली ने नागरिकों को किफ़ायती बिजली सप्लाई करवानी में काफी मदद की है और साथ ही आपूर्तिकर्ता एजेंसियों को भी पारंपरिक थर्मल ऊर्जा और धन की बचत के उपाय दिये हैं. उसी तरह से, चंडीगढ़ वॉटरवर्क स्थित पानी में तैरती सौर संयत्र से तैयार बिजली, शहर की मांग को पूरा करने और बिजली की कीमत को कम करने में अपना योगदान दे रही है. वहीं दूसरी ओर, इंदौर ने भी अलग किए गए कचरे  का उपचार करने के लिए एक बायोसीएनजी संयंत्र की स्थापना की है. इसमें तैयार होने वाले बायोगैस का इस्तेमाल शहरी परिवहन बसों को चलाने के लिए किया जाता है. इसके अलावा, भारत के विभिन्न हिस्सों में घरेलू और संस्थागत स्तरों पर हो रहे हरित ऊर्जा उत्पादन (विशेषत: सौर ऊर्जा) के कई उदाहरण मौजूद हैं. 

हरित ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भारत की प्रगति से संबंधित कुछ आंकड़ों को आधार बनाया गया है. साल 2022 के अंत में, सरकार ने 168 गीगावाट की स्थापित क्षमता या फिर रिन्यूएबल स्रोतों  के ज़रिए उत्पादन किये गये 40 प्रतिशत ऊर्जा को स्वीकार किया. परंतु जीवाश्म ईंधन अब भी समूची ऊर्जा की खपत का मुख्य हिस्सा है और देश की पूरी  क्षमता का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा इसी से आता है. देश में प्रतिवर्ष, लगभग 85 प्रतिशत तेल और 45 प्रतिशत गैस का आयात किया जाता है. शहरीकरण, परिवहनीय ढांचों का विस्तार और औद्योगिक उत्पादनों से उत्पन्न होती ऊर्जा की मांग, को पूरा करना भी एक बड़ी चुनौती है. भविष्य की आबादी की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, भारत को गैरनवीकरणीय संसाधनों पर अपनी निर्भरता को कम करना होगा और हरित ऊर्जा के उत्पादन क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनना होगा. इस नज़रिये और अप्रोच को सफल बनाने के लिये हमें हितधारकों के सहयोग, हरित उर्जा से संबंधित पहल का बेहतर कार्यान्वयन, हरित परिसंपत्तियों का बेहतर रखरखाव, लोगों को किफ़ायती और कुशल विकल्प प्रदान कराया जाना और आमजनों की आदत और नज़रिये में बदलाव लाने की ज़रूरत होगी.

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