Author : Apoorva Lalwani

Published on Nov 11, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि data के सीमा पार प्रवाह पर चर्चा करते समय विकासशील देशों की जरूरतों पर भी विचार कर इन पर ध्यान दिया जाए.

Data flow and privacy: G20 अध्यक्ष के रूप में भारत की डेटा प्रवाह और गोपनीयता में भूमिका!

डिजिटल क्षेत्र तेजी से विकिसत हो रहा है. हम अभी भी digital revolution के प्रारंभिक चरण में हैं. ऐसे में हम इस क्रांति से हो रहे परिवर्तन, चुनौतियों से रहित नहीं हैं. अत: उन पर चर्चा करना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है.

G20 के लिए इंडोनेशिया के एजेंडा में शामिल डिजिटल परिवर्तन, तीन मुख्य वर्गों में से एक के रूप में शामिल है. इसे कोविड-19 महामारी से सभी देशों के सामूहिक रूप से उबरने के लिए महत्वपूर्ण माना गया है. अध्यक्षता के साथ ही डिजिटल परिवर्तन (digital transformation) के एजेंडे के तहत डिजिटल डेटा (digital data) और निजता (privacy) के मुद्दे को संबोधित करने की ज़रूरत भी शामिल है. अनेक डिजिटल प्रौद्योगिकियों (digital technology) के विकास की शुरुआत करने वाले उन्नत देशों का समूह, स्वाभाविक रूप से इसका एकतरफा लाभ हासिल करने में सफल हो गया. परिणामस्वरूप,  इन देशों से संबंधित संगठनों या संस्थाओं का ही डिजिटल परिदृश्य पर नियंत्रण बना रहा. अनेक राष्ट्र और कंपनियां डिजिटल क्रांति द्वारा लाए गए अवसरों को भुनाने का प्रयास करने में जुटे हैं, लेकिन उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रित केवल कुछ मुट्ठी भर खिलाड़ी जैसे मेटा, गूगल, एमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट और एप्पल (Meta, Google, Amazon, Microsoft and Apple) ही इस क्षेत्र पर हावी हैं. चूंकि उनके पास भारी मात्रा में डेटा उपलब्ध होता है, अत: उनके और उनके मूल देश के पास काफी शक्ति अर्थात पॉवर होती हैं. ऐसे में जी20, डेटा प्रवाह और सार्वभौमिकता पर चर्चा का अहम मंच बन जाता है.

डेटा के मुक्त प्रवाह के जीडीपी, निर्यात आदि पर होने वाले परिणाम और इसके लाभों पर व्यापक रूप से चर्चा की गई है. लेकिन अब अनेक विकसित और विकासशील देशों में डेटा निजता के मुद्दे को बहुत महत्व दिया जा रहा है. लोगों और सरकारों ने अब अपने द्वारा तैयार किए गए डेटा पर अधिक अधिकार और स्वायत्तता की मांग उठाना शुरू कर दिया है.

डेटा के मुक्त प्रवाह के जीडीपी, निर्यात आदि पर होने वाले परिणाम और इसके लाभों पर व्यापक रूप से चर्चा की गई है. लेकिन अब अनेक विकसित और विकासशील देशों में डेटा निजता के मुद्दे को बहुत महत्व दिया जा रहा है. लोगों और सरकारों ने अब अपने द्वारा तैयार किए गए डेटा पर अधिक अधिकार और स्वायत्तता की मांग उठाना शुरू कर दिया है. इसी कारण, 2021 में हुई जी 20 देशों की डिजिटल मंत्रिस्तरीय बैठक में अनुमोदित डेटा फ्री फ्लो विथ ट्रस्ट (डीएफएफटी) ने ऐसी प्रक्रियाओं को अपनाने का प्रस्ताव दिया है, जो विरोधी हितों को संतुलित करती हैं. डीएफएफटी, डेटा प्रशासन के लिए, विकास पूर्व विनियमन अपनाने को प्रोत्साहित करता है. इसके अलावा वह निम्नलिखित बातों को बढ़ावा देता है: जोख़िम के स्तर के आधार पर डेटा का वर्गीकरण, जो डेटा और डेटा निजता और संप्रभुता के मुक्त प्रवाह से जुड़े विकास और नवाचार में शामिल गतिरोध को इसमें मौजूद जोखिम के स्तर के आधार पर बाधित करेगा; देशों को जवाबदेह डेटा हस्तांतरण और इसके उपयोग के लिए प्यूरीलैटरल एवं मल्टीलैटरल व्यवस्थाओं और इसे नियंत्रित करने वाले कानूनों के सहयोग से अन्य प्रथाओं के लिए नियमों को विकिसत करने के लिए प्रोत्साहित करना; और इसके साथ ही रोजमर्रा की और जटिल आर्थिक समस्याओं को हल करने में डेटा के महत्व को लेकर आगे अनुसंधान को शामिल करना.

हालांकि, भारत ने डीएफएफटी को लेकर ओसाका ट्रैक दौरान हुई चर्चा में हिस्सा नहीं लिया. वह डेटा उपलब्धता को लेकर अपनी आशंकाओं के कारण इसे स्वीकार करने में भी संकोच कर रहा है. उसे आशंका है कि एक बार जब सूचना दूसरे देश में चली जाती है, तो ऐसी जानकारी पर घरेलू नियमों को लागू करते हुए उसका निपटारा नहीं किया जा सकता. अर्थात दूसरे देश गई जानकारी पर उस देश के नियम लागू नहीं किए जा सकते, जहां यह जानकारी एकत्रित की गई है. इसके साथ ही कई गैर-औद्योगिक देशों की तरह, भारत भी अभी अपने सूचना सुरक्षा और वेब आधारित नियम बनाने में ही जुटा हुआ है.

भारत की ज़िम्मेदारी

अब तक जी 20 के जिन देशों ने इसकी अध्यक्षता की है, उन्होंने दीर्घकालीन डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देने में डेटा के भरोसे और सीमा पार मुक्त प्रवाह को सुगम करने में जो काम किया है उसे वर्तमान अध्यक्ष इंडोनेशिया ने भी माना है. इंडोनेशिया ने भी डेटा के मुक्त प्रवाह और सीमा पार डेटा प्रवाह को सक्षम करने वाली मौजूदा क्षेत्रीय और बहुपक्षीय व्यवस्थाओं सहित मौजूदा नियामक नीतियों के बीच समानताओं, पूरकताओं और समानता के तत्वों को पहचानते हुए पहले हो चुकी चर्चाओं को आगे बढ़ाया है. वर्तमान अध्यक्ष ने दो ठोस कदम उठाए हैं: डेटा गवर्नेंस अर्थात प्रशासन की एक कार्यशाला का आयोजन करना. यह कार्यशाला जो डेटा गवर्नेंस को लेकर बहु-हितधारक संवाद की समझ के विभिन्न स्तरों को सुगम बनाने के उपायों की पहचान पर आधारित होगी; और मानव-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ अंतर-संचालित डिजिटल पहचान ढांचे का विकास करना. जो ऐसी डिजिटल पहचान समाधान की सुविधा प्रदान करेगा जो मानवाधिकारों का सम्मान करने वाले हो. यह मानवाधिकार अर्थात निजता के साथ मनमाने या गैरकानूनी हस्तक्षेप से मुक्त होने का अधिकार है. 

अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डेटा के सीमा पार प्रवाह पर चर्चा करते समय विकासशील देशों की जरूरतों पर भी विचार कर इन पर ध्यान दिया जाए.

अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डेटा के सीमा पार प्रवाह पर चर्चा करते समय विकासशील देशों की जरूरतों पर भी विचार कर इन पर ध्यान दिया जाए. यह समझना बेहद जरूरी है कि भू-राजनीतिक अनिश्चितता के इस युग में, डिजिटल क्षेत्र पर अधिक निर्भरता के कारण, उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाएं दोनों ही समान रूप से साइबर हमलों और अन्य डिजिटल सुरक्षा खतरों की चपेट में हैं. ऐसे में गरीब देशों को खुद की मजबूत साइबर रक्षा प्रणाली से लैस होने में सहायता उपलब्ध करवाया जाना काफी महत्वपूर्ण हो गया है. यह समझना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि केवल स्थानीय रूप से डेटा संग्रहीत करना खर्चीला है, क्योंकि डेटा की उपयोगिता इसके उपयोग में ही निहित है. ऐसे में सीमा पार डेटा का प्रवाह जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए. विकास समर्थक संदर्भ में डीएफएफटी को विकिसत करने और आगे बढ़ाने के लिए पार्टियों के बीच विश्वास में वृद्धि, हैकिंग और साइबर हमलों की घटनाओं में कमी आना आवश्यक है. इसके साथ ही डिजिटल क्षेत्र को नियंत्रित करने वाली बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी बातों को लेकर निरंतर चर्चा भी जरूरी है.

डेटा प्रवाह के लिए मानक और प्रक्रियाएं विकसित करने का मतलब यह है कि हम एक सॉफ्ट इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर रहे हैं, जो हम सभी के लिए लाभदायक साबित होगा.

जी 20 में शामिल विभिन्न देशों के विभिन्न हितों को देखते हुए इन सभी देशों के बीच समझ विकसित करने के लिए डिजिटल क्षेत्र को नियंत्रित करने वाली बातों पर चर्चा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. डेटा प्रवाह के लिए मानक और प्रक्रियाएं विकसित करने का मतलब यह है कि हम एक सॉफ्ट इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर रहे हैं, जो हम सभी के लिए लाभदायक साबित होगा. चूंकि महामारी के बाद वैश्विक आर्थिक स्थिति में सुधार को सक्षम करने में डिजिटल परिवर्तन अहम भूमिका अदा करेगा, अत: व्यवसायों, विभिन्न मंचों और सरकारों के बीच विश्वास का निर्माण करके इसकी क्षमता का पूर्ण दोहन करना महत्वपूर्ण हो गया है. विभिन्न देशों के विनियमन और मानकों को सुसंगत बनाए जाने की आवश्यकता है. ऐसा नियमों को समान बनाने के साथ- साथ, समान अधिकार प्रदान करके ही किया जा सकता है. ऐसा होने पर ही यह डेटा के सुगम प्रवाह को सक्षम करेगा, नवाचार को बढ़ाएगा और सार्थक रोजगार पैदा करेगा. जिससे न केवल प्रतिस्पर्धात्मकता से उपभोक्ता सरप्लस अर्थात अधिशेष बढ़ेगा, बल्कि बढ़े हुए विकल्पों की उपलब्धता से हमें अंतत: महामारी से उबरने में मदद मिलेगी.


इस लेख पर अपने शोध इनपुट के लिए लेखिका तनुश्री शशितल को धन्यवाद देती हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.