Author : Trisha Ray

Published on Jul 30, 2020 Updated 22 Hours ago

क्या केवल चीन के विरोध के नाम पर दस अलग अलग लोकतांत्रिक देशों को एक मंच पर लाया जा सकता है?

D 10 या छलावा? लोकतांत्रिक देशों के 5G क्लब को एक मक़सद की तलाश

चीन की 5G तकनीक वाली कंपनियों से तमाम देशों के मोह भंग होने का सिलसिला जारी है. चीन की तकनीकी दादागीरी के ख़िलाफ़ वैश्विक विरोध के केंद्र में एक प्रस्ताव है, जिसे ब्रिटेन ने हाल ही दिया है. ब्रिटेन ने कहा है कि दुनिया के दस बड़े लोकतांत्रिक देशों को मिल कर 5G तकनीक वाला समूह या D-10 बनाना चाहिए. ब्रिटेन के मुताबिक़, इस समूह में G7 देशों के साथ साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को भी शामिल किया जाना चाहिए. ऐसा लगता है कि ब्रिटेन के इस प्रस्ताव में अमेरिका भी काफ़ी दिलचस्पी ले रहा है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 1 जून 2020 को ही ये बयान दिया था कि G7 देशों के समूह का दायरा बढ़ाना चाहिए, ताकि इसमे अन्य देशों को भी शामिल किया जा सके.

ये ठोस प्रस्ताव है या हवाई क़िला?

ब्रिटेन ने 5G तकनीक के लिए लोकतांत्रिक देशों के जिस D10 समूह का प्रस्ताव दिया है, उसका मक़सद अब तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं है. कुछ विशेषज्ञों का आकलन ये है कि ये समूह मिलकर 5G तकनीक के बाज़ार में एक नए खिलाड़ी को बढ़ावा देने में पूंजी लगाएंगे. जिससे चीन की कंपनियों का एक विकल्प खड़ा किया जा सके. या फिर ये भी हो सकता है कि ये समूह, 5G तकनीक वाली किसी ऐसी कंपनी को बढ़ावा देगा, जो चीन के बजाय D10 देशों में से किसी एक से ताल्लुक़ रखती हो. लेकिन, कम अवधि के लिए इनमें से किसी भी एक विकल्प को आज़माने से समस्या का समाधान निकलता नहीं दिख रहा है. इस बात की संभावना कम ही है कि 5G तकनीक से लैस कोई नया खिलाड़ी एरिक्सन कंपनी की 24 हज़ार सदस्यों वाली रिसर्च ऐंड डेवेलपमेंट टीम का मुक़ाबला करने की हालत में होगी. चीन की ख्वावे कंपनी की ताक़त तो इससे चार गुना अधिक है. ख्वावे के पास तो 96 हज़ार से ज़्यादा लोगों की रिसर्च ऐंड डेवेलपमेंट टीम है. न ही अमेरिका या दक्षिण कोरिया में काम कर रही 5G तकनीक वाली कंपनियों में भारी निवेश के लिए भारत जैसे देश सहमत होंगे. क्योंकि, भारत जैसे देश उभरती हुई महत्वपूर्ण तकनीकों के मामले में आत्मनिर्भरता पर ज़ोर दे रहे हैं.

D10 देशों में आपस में भी 5G तकनीक के इस्तेमाल को लेकर भारी असमानता है. फिर चाहे वो नियम बनाने की बात हो, या इस तकनीक का इकोसिस्टम. इस समय अमेरिका अपने संचार नेटवर्क से चीन की ख्वावे (Huawei) और ZTE टेलीकॉम कंपनियों को चुन चुनकर बाहर निकाल रहा है. यही काम ऑस्ट्रेलिया और जापान भी कर रहे हैं. ब्रिटेन ने हाल ही में एलान किया है कि 2027 तक वो अपने टेलीकॉम नेटवर्क से चीन की कंपनियों, ख़ासतौर से ख्वावे को बाहर कर देगा. वहीं, फ्रांस ने ख्वावे को अपने 5G के कोर नेटवर्क से ही बाहर किया है. तो, भारत, जर्मनी, इटली, कनाडा और दक्षिण कोरिया ने अमेरिका के दबाव के बावजूद, अपने यहां 5G के ट्रायल में चीन की कंपनियों को शामिल होने की इजाज़त दे दी है. हालांकि, अभी ये देखना बाक़ी है कि इन देशों मे स्पेक्ट्रम के आवंटन में चीन की कंपनियों को मौक़ा मिलता है या नहीं.

जीडीपी (पीपीपी) रैंक चीनी 5 जी विक्रेताओं पर आधिकारिक रुख प्रमुख घरेलू टेल्कोस 5 जी विक्रेताओं
इटली 1 1 परीक्षण में भाग लेने की अनुमति दी टेलिकॉम इटालिया
जर्मनी 5 परीक्षण में भाग लेने की अनुमति दी डॉयचे टेलीकॉम
फ्रांस 10 कोर नेटवर्क से बाहर रखा गया ऑरेंज, एसएफआर, बॉयग्यूस टेलीकॉम, फ्री मोबाइल, एल्टिस
संयुक्त राज्य अमेरिका 2 पूरी तरह प्रतिबंध एटी एंड टी, वेरिज़ोन, टी-मोबाइल, स्प्रिंट सिस्को सिस्टम्स, क्वालकॉम, अल्टियोस्टार
यूनाइटेड किंगडम 9 35% टोपी; कोर नेटवर्क से बाहर रखा गया है वोडाफोन, बीटी, तीन
कनाडा 16 परीक्षण में भाग लेने की अनुमति दी तेरागो, बेल कनाडा, रोजर्स, टेलस
जापान 4 कुल प्रतिबंध राकुटेन, एनटीटी डोकोमो, केडीडीआई और सॉफ्टबैंक कॉर्प
भारत 3 परीक्षण में भाग लेने की अनुमति दी भारती एयरटेल, बीएसएनएल, वोडाफोन आइडिया, रिलायंस जियो रिलायंस जियो (परीक्षण चरण)
ऑस्ट्रेलिया 19 कुल प्रतिबंध टेलस्ट्रा
दक्षिण कोरिया 14 अनुमति है एसके टेलीकॉम, केटी, एलजी UPlus सैमसंग

इस घालमेल में एक और पेचीदगी अमेरिका ने तब पैदा कर दी, जब उसके वाणिज्य मंत्रालय ने इसी साल मई में आदेश दिया कि केवल ख्वावे ही नहीं, बल्कि उसके सप्लायर भी अमेरिका की 5G तकनीक सॉफ्टवेयर और तकनीक से दूर रखे जाएंगे. फिर चाहे वो चीन के हों, अमेरिका के या किसी और देश के हों. अमेरिका की कंपनियां अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को ख्वावे से अलग कर रही हैं. लेकिन, चीन की इस तकनीकी कंपनी के सप्लायर जापान, दक्षिण कोरिया और जर्मनी समेत कई अन्य देशों से भी आते हैं.

ग्लोबल टाइम्स के एक लेख में D10 देशों के समूह के बारे में कहा गया कि, ‘ये शीत युद्ध के दौर का विचार है, जिसका समय समाप्त हो चुका है.’ इस लेख में पश्चिमी देशों पर ये इल्ज़ाम भी लगाया गया कि वो तकनीक के प्रवाह का राजनीतिकरण कर रहे हैं

ऐसे में D10 देशों के संगठन का मक़सद साफ़ न होने का फ़ायदा उठा कर चीन वही नुस्खे आज़मा कर ध्यान बंटाने में जुट गया है, जिसके लिए वो मशहूर है. चीन के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता गाओ फेंग ने कहा कि कोविड-19 की महामारी को देखते हुए, तमाम देशों को 5G तकनीक के क्षेत्र में एकजुटता और सहयोग से काम करना चाहिए. न कि अपनी अपनी सीमाओं को दूसरे देशों के लिए बंद करना चाहिए. वहीं चीन के विशेषज्ञों ने लोकतांत्रिक देशों के समूह को हक़ीक़त से बहुत दूर वाला ख़्वाब क़रार दिया है. ग्लोबल टाइम्स के एक लेख में D10 देशों के समूह के बारे में कहा गया कि, ‘ये शीत युद्ध के दौर का विचार है, जिसका समय समाप्त हो चुका है.’ इस लेख में पश्चिमी देशों पर ये इल्ज़ाम भी लगाया गया कि वो तकनीक के प्रवाह का राजनीतिकरण कर रहे हैं.

एक मक़सद की तलाश

क्या केवल चीन के विरोध के नाम पर दुनिया के दस बिल्कुल अलग तरह के लोकतांत्रिक देशों को एकजुट किया जा सकता है? कोविड-19 को शुरुआत में ही रोक पाने में असफल रहने के कारण चीन की सरकार के बारे में लोगों की राय लगातार नकारात्मक हो रही है. साथ ही चीन द्वारा उन लोगों और संगठनों के ख़िलाफ़ ग़लत जानकारी के अभियान चलाने के कारण भी उसके ख़िलाफ़ मज़बूत माहौल बन रहा है, जिन्होंने कोविड-19 की महामारी के शुरुआती दौर से ही चीन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी शुरू कर दी थी. कोविड-19 के कारण पहले ही दुनिया के तमाम देशों में 5G तकनीक की शुरुआत करने में देरी हो चुकी है. कनाडा ने इसके स्पेक्ट्रम की नीलामी को 2021 तक के लिए टाल दिया है. ऑस्ट्रिया और ब्राज़ील समेत कई अन्य देशों ने भी यही क़दम उठाया है. हालांकि, इसका दूसरा पहलू ये भी है कि कोविड-19 के कारण लगे आर्थिक झटके के कारण तमाम देश व्यापार युद्ध से होने वाली क्षति और प्रतिबंधों का बोझ उठाने के लिए अब कम तैयार हैं. हालांकि, अमेरिका ने अब तक चीन के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों और व्यापार युद्ध वाले क़दम उठाए हैं, ताकि वो चीन की 5G तकनीक देने वाली कंपनियों को अपने यहां आने से रोक सके.

जिन देशों को चीन के तकनीकी साम्राज्यवाद की चिंता है और जिनकी आशंकाएं वाजिब हैं. उन्हें चीन जिस तरह से धमकी दे रहा है, ये अपने आप में इस बात की मिसाल है कि चीन की सरकार अपनी कंपनियों को राजनीतिक संरक्षण दे रही है

इसके साथ साथ, चीन के एक्सपर्ट्स का ये दावा भी ग़लत है कि D10 देशों का संगठन तकनीक के प्रवाह का राजनीतिकरण कर कर रहा है. तेज़ रफ़्तार वाली 5G तकनीक से संचार का प्रवाह भी तेज़ होगा. ये बहुत से देशों के लिए एक ऐसी बुनियाद का काम करेगा जिसकी मदद से वो चौथी औद्योगिक क्रांति की दौड़ में ख़ुद को आगे बनाए रखना चाहेंगे. या कम से कम मुक़ाबले में बने रह सकेंगे. आज तकनीक का प्रवाह देशों की पहचान और संप्रभुता से अटूट रूप से जुड़ चुका है. ऐसे में कई बार तकनीकी कंपनियों को भी तमाम देश अपने मक़सद में साझीदार बना लेते हैं. ताकि तकनीक के इस फ्रेमवर्क की मदद से वो दूसरे देशों पर प्रभुत्व जमा सकें. चीन की सरकार की अपनी गतिविधियां इस बात की मिसाल हैं. जिस तरह से चीन ने 5G तकनीक और इसे लाने वाली कंपनियों का राजनीतिकरण किया है, वो इसका अच्छा उदाहरण है. ख़बर है कि बीजिंग में भारत के राजदूत को तलब करके चीन की सरकार ने उनसे साफ़ साफ कहा था कि वो अपनी सरकार पर इस बात का दबाव बनाएं कि भारत, ख्वावे को 5G तकनीक के ट्रायल में शामिल होने की इजाज़त दे. अगर भारत ऐसा नहीं करेगा, तो चीन भी प्रतिबंधों से पलटवार करेगा. जर्मनी में चीन के राजदूत ने भी ऐसी ही धमकी देते हुए कहा था कि अगर जर्मनी अपने यहां के 5G ट्रायल से ख्वावे को अलग रखेगा तो उसे इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. जिन देशों को चीन के तकनीकी साम्राज्यवाद की चिंता है और जिनकी आशंकाएं वाजिब हैं. उन्हें चीन जिस तरह से धमकी दे रहा है, ये अपने आप में इस बात की मिसाल है कि चीन की सरकार अपनी कंपनियों को राजनीतिक संरक्षण दे रही है. कुल मिलाकर चीन जो दूसरों को संरक्षणवाद के नाम पर कोस रहा है, उसे ख़ुद आईने में देखने की ज़रूरत है.

अब अगर अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर 5G तकनीक के क्षेत्र में सहयोग के लिए अपने साथी और साझेदार लोकतांत्रिक देशों के D10 संगठन के विचार को मज़बूती से आगे बढ़ाते हैं, तो उन्हें चीन की ग़लतियों से सबक़ लेना चाहिए. जिन देशों ने अपने यहां के 5G ट्रायल में चीन की ख्वावे कंपनी को शामिल होने को मंज़ूरी दे दी है, उनके चीन के साथ अपने विवाद हैं. मिसाल के तौर पर कनाडा को ही देखिए. जब से कनाडा ने ख्वावे की मुख्य वित्तीय अधिकारी मेंग वानझोऊ को गिरफ़्तार करके उन्हें अमेरिका को प्रत्यर्पित करने का फ़ैसला किया है. तब से ही चीन लगातार उसके ऊपर कूटनीतिक हमले कर रहा है. इसी तरह, भारत के साथ चीन, वास्तविक नियंत्रण रेखा के इस पार घुसपैठ के मसले पर उलझा हुआ है. और हालांकि, भारत ने अपने यहां के 5G ट्रायल में चीन की कंपनी को इजाज़त दे दी है. लेकिन, इसके साथ साथ भारत ने ये भी कहा है कि वो ख्वावे को नेटवर्क बिछाने की मंज़ूरी देने से पहले अपने जोखिमों का मूल्यांकन करेगा. संभावित साझेदारों से ख़तरों को लेकर आपसी समझ बढ़ाए बग़ैर, किसी मज़बूत गठबंधन की बुनियाद डाल पाना दूर की कौड़ी है.

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