Author : Shoba Suri

Expert Speak Terra Nova
Published on Jun 06, 2024 Updated 0 Hours ago

वैसे तो हमारी खाद्य प्रणाली को जलवायु अनुकूल बनाना मुश्किल है लेकिन जलवायु परिवर्तन को देखते हुए ये एक ज़रूरी काम है.

जलवायु के अनुकूल भोजन प्रणाली बनाने की आवश्यकता

यह लेख निबंध श्रृंखला ‘ये दुनिया का अंत नहीं है: विश्व पर्यावरण दिवस 2024’ का एक हिस्सा है.


वैश्विक खाद्य प्रणाली का भविष्य पहले के मुकाबले मौजूदा समय में ज़्यादा महत्वपूर्ण है. जलवायु परिवर्तन ने दुनिया भर में खेती और जलीय खाद्य उत्पादन पर काफी असर डाला है. इसकी वजह से मिट्टी की गुणवत्ता, बारिश के पैटर्न, कीट पर नियंत्रण, मौसमी विकास चक्र, ज़मीन को नुकसान और जैव विविधता को हानि में बदलाव हुआ है. जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा के बीच संबंध और ज़्यादा स्पष्ट होता जा रहा है, विशेष रूप से विकासशील देशों में जहां पोषण से जुड़ी कमियां मौजूद हैं और बारिश पर आधारित, खेत पर केंद्रित कृषि हावी है. जलवायु से जुड़ी घटनाओं जैसे कि सूखा, बाढ़ और भीषण गर्मी के बार-बार आने और उनकी तीव्रता को देखते हुए ये महत्वपूर्ण है कि हमारी खाद्य प्रणाली में तुरंत बदलाव लाया जाए ताकि उनके जलवायु अनुकूलन में सुधार किया जा सके. इस सुधार के लिए अनुकूल खाद्य प्रणाली तैयार करने के उद्देश्य से रणनीतियां और पद्धतियां ज़रूरी हैं जिससे कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्थिरता और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित किया जा सके.  

 जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा के बीच संबंध और ज़्यादा स्पष्ट होता जा रहा है, विशेष रूप से विकासशील देशों में जहां पोषण से जुड़ी कमियां मौजूद हैं और बारिश पर आधारित, खेत पर केंद्रित कृषि हावी है.

Transforming Food System under Climate Change

जलवायु परिवर्तन के तहत खाद्य प्रणाली में बदलाव

ऊपर का चित्र जलवायु परिवर्तन के तहत खाद्य प्रणाली में कायापलट के लिए आवश्यक ज़रूरी तत्वों का संकेत देता है. जलवायु अनुकूल खाद्य प्रणाली विकसित करने के लिए सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना एक प्रमुख रणनीति है. इस दृष्टिकोण के तहत फसल चक्र, मिश्रित फसल और फसल की उपज जैसी शैली शामिल हैं जो मिट्टी की सेहत में सुधार करती है और कीट एवं बीमारियों को लेकर असुरक्षा में कमी करती हैं. कृषि पारिस्थितिकी (एग्रो इकोलॉजी) पारिस्थितिक सिद्धांतों को खेती की परंपराओं में शामिल करती है जिससे जैव विविधता और पारिस्थितिकी प्रणाली की सेवाओं को बढ़ावा मिलता है. संरक्षण (कंज़र्वेशन) कृषि लगातार मिट्टी का आवरण (कवर) बरकरार रखने पर ज़ोर देती है जिससे मिट्टी में गड़बड़ी कम होती है और पौधों की प्रजातियों में विविधता आती है. एक अध्ययन के अनुसार संरक्षण कृषि मिट्टी की संरचना को बेहतर करती है, पानी बनाए रखने (वॉटर रिटेंशन) में सुधार लाती है और जलवायु की चरम सीमा के प्रति सामर्थ्य में बढ़ोतरी करती है. ऑर्गेनिक खेती, जो कृत्रिम उत्पादक सामग्रियों से परहेज करती है और प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर ध्यान देती है, भी मिट्टी की उर्वरता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का समर्थन करती है और जलवायु अनुकूलन के लिए इसे एक स्थिर विकल्प बनाती है. 

अनुकूलन बढ़ाने के लिए एक और महत्वपूर्ण रणनीति है फसलों और पशुधन में विविधता लाना. जलवायु परिवर्तन कीट और बीमारियों के पैटर्न को बदल सकता है, इस तरह एक फसल की खेती को विशेष रूप से कमज़ोर बना सकता है. विविध खेती की प्रणाली, जिसमें अलग-अलग तरह की फसलें और पशुधन की नस्लें शामिल हैं, इन ख़तरों को कम करने में मदद करती है. साक्ष्य से पता चलता है कि फसल विविधीकरण पूरी तरह से फसल की नाकामी के जोख़िम को कम करता है और कुल कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकता है. साथ ही जलवायु अनुकूल फसल की किस्मों और पशुधन की नस्लों को शामिल करना महत्वपूर्ण है. ये किस्में और नस्लें मौसम से जुड़ी चरम घटनाओं जैसे कि गर्मी, सूखा और बाढ़ का सामना करने के लिए बेहतर स्थिति में हैं. सब-सहारन अफ्रीका के एक अध्ययन से उजागर होता है कि अलग-अलग फसलों की खेती की प्रणाली जलवायु की बदलती परिस्थितियों के तहत उत्पादकता बनाए रखने में मदद करती है और इस तरह एक स्थिर खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करती है. 

साक्ष्य से पता चलता है कि फसल विविधीकरण पूरी तरह से फसल की नाकामी के जोख़िम को कम करता है और कुल कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकता है. साथ ही जलवायु अनुकूल फसल की किस्मों और पशुधन की नस्लों को शामिल करना महत्वपूर्ण है

कुशल जल प्रबंधन जलवायु अनुकूलन के लिए महत्वपूर्ण है और ड्रिप इरिगेशन (बूंद से सिंचाई), जिसमें सीधे पौधों की जड़ तक पानी पहुंचता है, जैसी कुशल सिंचाई की पद्धतियों को अपनाने से पानी की बर्बादी कम होती है. इसके अलावा रेनवॉटर हार्वेस्टिंग एक प्रभावी अभ्यास है जो सूखे की अवधि के दौरान उपयोग के लिए बारिश के पानी को इकट्ठा और जमा करती है. 

जलवायु स्मार्ट तकनीकों का इस्तेमाल करना कृषि पद्धतियों के आधुनिकीकरण और सामर्थ्य बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है. सटीक कृषि (प्रिसिज़न एग्रीकल्चर), रिमोट सेंसिंग और डेटा एनेलिटिक्स किसानों को सोच-समझकर फैसला लेने, संसाधनों का इस्तेमाल अच्छी तरह से करने और उत्पादकता बढ़ाने में सक्षम बनाते हैं. मोबाइल एप्लिकेशन और डिजिटल टूल वास्तविक समय में मौसम का पूर्वानुमान, कीट नियंत्रण और सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों की सिफारिश प्रदान करते हैं. इससे किसानों को बदलती परिस्थितियों के अनुसार ढलने में मदद मिलती है. प्रिसिज़न एग्रीकल्चर फसल की सेहत, मिट्टी की स्थिति और मौसम के पैटर्न पर निगरानी के लिए GPS और सेंसर का इस्तेमाल करती है. इससे किसान पानी, उर्वरक और कीटनाशक का उपयोग अधिक कुशलता के साथ करते हैं जिससे बर्बादी कम होती है और उपज बढ़ती है. सैटेलाइट इमेजरी जैसी रिमोट सेंसिंग तकनीकें बड़े क्षेत्रों की निगरानी, परेशानियों के संकेतों की जल्दी पहचान और संभावित नुकसान में कमी लाने में मदद करती हैं. 

कमज़ोर समुदायों को समर्थ बनाना 

खाद्य प्रणालियों में जलवायु अनुकूलन के तहत खेती से जुड़े समुदायों और कमज़ोर लोगों के बीच सामाजिक एवं आर्थिक सामर्थ्य बढ़ाना शामिल है. इसमें जलवायु की सूचना एवं अर्ली वॉर्निंग सिस्टम तक पहुंच मुहैया कराना, बाज़ार तक पहुंच एवं वैल्यू चेन को बेहतर करना और किसानों के लिए सामाजिक सुरक्षा का जाल एवं बीमा योजनाओं को लागू करना शामिल हैं. स्थानीय लोगों को सशक्त बनाना और समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देना जलवायु अनुकूलन के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण तत्व हैं. 

पारंपरिक अनुकूलन की रणनीतियों के अलावा जलवायु अनुकूलन के लिए खाद्य प्रणालियों को बदलने में इनोवेशन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जलवायु अनुकूल फसलों की किस्म, जैव सुदृढ़ीकरण (बायो फोर्टिफिकेशन), सतत कृषि और प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोत जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास बदलते जलवायु में खाद्य सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों के समाधान के लिए अहम हैं. डिजिटल कृषि, ब्लॉकचेन तकनीक और डेटा एनेलिटिक्स में प्रगति भी खाद्य सप्लाई चेन में अनुकूलता एवं पारदर्शिता बेहतर करने में नए अवसर पेश करती है. 

खाद्य प्रणाली में जलवायु अनुकूलता में की गई प्रगति के बावजूद कई चुनौतियां बनी हुई हैं. इनमें वित्त एवं तकनीक तक छोटे किसानों की सीमित पहुंच, भागीदारों के बीच जागरूकता एवं क्षमता की कमी, ज़मीन उपयोग की प्रतिस्पर्धी प्राथमिकताएं और राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर नीतिगत कमियां शामिल हैं.

जलवायु अनुकूलन की दिशा में खाद्य प्रणालियों के परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए प्रभावी नीतिगत एवं शासन व्यवस्था से जुड़े ढांचे ज़रूरी हैं. जलवायु परिवर्तन के विचारों को कृषि नीतियों से एकीकृत करने, सतत भूमि उपयोग की योजना को बढ़ावा देने, सब्सिडी एवं इन्सेंटिव के ज़रिए जलवायु स्मार्ट पद्धतियों को प्रोत्साहन देने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने को अपनाया जा सकता है. सरकारों, सिविल सोसायटी, निजी क्षेत्र और अनुसंधान संस्थानों के बीच तालमेल समग्र एवं समावेशी नीतियों को लागू करने के लिए महत्वपूर्ण हैं. 

खाद्य प्रणाली में जलवायु अनुकूलता में की गई प्रगति के बावजूद कई चुनौतियां बनी हुई हैं. इनमें वित्त एवं तकनीक तक छोटे किसानों की सीमित पहुंच, भागीदारों के बीच जागरूकता एवं क्षमता की कमी, ज़मीन उपयोग की प्रतिस्पर्धी प्राथमिकताएं और राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर नीतिगत कमियां शामिल हैं. हालांकि ये चुनौतियां सतत कृषि एवं खाद्य प्रणाली में इनोवेशन, सहयोग और निवेश के लिए अवसर भी पेश करती हैं.  

वैसे तो हमारी खाद्य प्रणाली को अनुकूल बनाना जटिल है लेकिन जलवायु परिवर्तन को देखते हुए ये एक ज़रूरी काम है. इसके लिए अनुकूलक (एडेप्टिव) कृषि पद्धतियों, तकनीकी इनोवेशन, सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण, जैव विविधता का संरक्षण और प्रभावी गवर्नेंस की आवश्यकता होती है. इन चुनौतियों का समाधान करके और अवसरों का लाभ उठाकर हम अनुकूल खाद्य प्रणाली बना सकते हैं जो खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करेगी, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करेगी और भविष्य की पीढ़ियों के लिए सतत विकास को बढ़ावा देगी.  


शोभा सूरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं. 

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