Author : Sanjay Singh

Published on May 09, 2020 Updated 6 Days ago

कोरोना वायरस के असर के कारण अधिकतर भारतीय कंपनियों के शेयरों में काफी गिरावट आई है. ऐसे में भारतीय कंपनियों का सस्ते में अधिग्रहण हो जाने और इन कंपनियों का नियंत्रण विदेशी हाथ में चले जाने का खतरा पैदा हो गया था. खासकर चीन को इस मामले में एक खतरे के तौर पर देखा जा रहा था.

कोविड-19 और एफडीआई: चीन की विस्तारवादी नीयत और सचेत होता भारत

भारत अपने उद्योगों के संरक्षण और सुरक्षा के प्रति सतर्क है इसी के तहत कोविड-19 महामारी के चलते भारतीय कंपनियों का विदेशी कंपनियों द्वारा किये जा रहे अवसरवादी अधिग्रहण को नियंत्रित और नियमित करने के लिए भारत सरकार ने समग्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों की समीक्षा किया, इसके साथ ही एफडीआई नीति 2017 के पैरा 3.1.1 में समयोचित संशोधन किया. भारत सरकार ने देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नियमों में संशोधन कर भारत की थल सीमा से जुड़े देशों से प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से निवेश के हर प्रस्ताव पर पहले सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया है. जिसपर नई दिल्ली स्थिति चीनी दूतावास द्वारा कड़ी आलोचनात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की गयी, चीन ने अब तक भारत में कुल 8 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है जिससे भारत में रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न हुए है और लाखो नई नौकरियों का सृजन हुआ है. सफाई में चीन नये भी कहा है कि हाल में में किये निवेश के पीछे कोई गलत मकसद नहीं है दूतावास के प्रवक्ता ने कहा कि नए नियम डब्ल्यूटीओ (विश्व व्यापार संगठन) के सिद्धांतों और मुक्त व्यापार के सामान्य चलन के विरुद्ध हैं.

अतिरिक्त बाधाओं को लागू करने वाली नई नीति, G-20 समूह में निवेश के लिए एक स्वतंत्र, निष्पक्ष, गैर-भेदभावपूर्ण और पारदर्शी वातावरण के लिए बनी आम सहमति के खिलाफ भी है. वही विशेषज्ञों जैसे विश्व व्यापार संगठन के पूर्व राजदूत जयंत दास गुप्ता का कहना है कि “डब्ल्यूटीओ में एफडीआई को लेकर ऐसा कोई समझौता हुआ ही नहीं है. इस संगठन के नियम निवेश संबंधी मुद्दों पर लागू नहीं होते. इस लिए भारत अपने उद्योगों के हित में ऐसे निर्णय करने का पूरा अधिकार रखता है. अपने उद्योग को बचाने का कोई निर्णय डब्ल्यूटीओ के दायरे में नहीं आता“. भारत अपने आप ही अपनी एफडीआई नीति उदार करता रहा है. 1991 से आर्थिक उदारीकरण की नीति के तहत विदेशी निवेश की ज़रूरतों और उससे होने वाली नौकरियों के सृजन को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश की सीमा का मानक तय किया गया था.

18 अप्रैल को भारत सरकार के उद्योग और आंतरिक व्यापार प्रोत्साहन विभाग द्वारा प्रेस में दिए बयान के अनुसार ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति में इस बदलाव का मक़सद स्पष्ट है. हम किसी भी विदेशी निवेशक द्वारा कोविड-19 की महामारी का फ़ायदा उठाकर किसी भारतीय कंपनी का अधिग्रहण करने या अपने क़ब्ज़े में लेने के प्रयासों को रोकना चाहते हैं

उदारीकरण की नीतियों के तहत भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए निवेश की प्रक्रिया को सरल और सहज रखने हेतु देश के सुरक्षा से क्षेत्रों से जुड़े उद्योगों के अलावा लगभग अन्य सभी क्षेत्रों से जुड़े उद्योगों को सरकारी रूट से निकालकर ऑटोमैटिक रूट की श्रेणी में सम्मिलित कर दिया गया है. जिन क्षेत्रों में विदेशी निवेश को ऑटोमेटिक रूट की श्रेणी में रखा गया है ऐसे क्षेत्रों में निवेश के लिए सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होती थी. दरअसल अब तक चीनी कंपनियों द्वारा निवेश ऑटोमैटिक रूट से ही हो जाते थे. सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती थी. केवल आरबीआई को सीमित अवधि में सूचित करना पड़ता था. अब नए नियम के अनुसार किसी भी निवेश के प्रस्ताव की समीक्षा के बाद अब भारत सरकार से उन्हें पूर्व अनुमति की आवश्यकता होगी. पहले इस तरह की पाबंदी सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश से होने वाले निवेश पर ही लगी हुई थी. अब ये नियम चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, म्यांमार और अफग़ानिस्तान पर भी लागू होंगे जिनकी सीमा भारत की सीमा से लगती है.

18 अप्रैल को भारत सरकार के उद्योग और आंतरिक व्यापार प्रोत्साहन विभाग द्वारा प्रेस में दिए बयान के अनुसार ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति में इस बदलाव का मक़सद स्पष्ट है. हम किसी भी विदेशी निवेशक द्वारा कोविड-19 की महामारी का फ़ायदा उठाकर किसी भारतीय कंपनी का अधिग्रहण करने या अपने क़ब्ज़े में लेने के प्रयासों को रोकना चाहते हैं. ये कदम अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने का उपाय है. निवेश बाधित करने के लिए नहीं. पहले से सुस्त पड़ी घरेलु अर्थव्यवस्था इस महामारी के समय में देश की आर्थिक गतिविधियों के ठप पड़ने से बेरोज़गारी को बढ़ाने में सहायक साबित हो रही है. ऐसे में रोज़गार सृजन के लिए सरकार को निवेश की अत्यंत आवश्यकता है लेकिन क्या ऐसी परिस्थिति में सरकार देश के रणनीतिक हित तथा उससे जुड़े उद्योगों के संरक्षण तथा सुरक्षा को ताक पर रख विदेशी निवेश को मनमाने तरीके से आने दे दे.

अगर ऐसा हुआ तो ये देश की अर्थव्यवस्था में अवसरवादी निवेश के साथ ही देश के लिए दूरगामी रणनीतिक समस्याओं के कारण बन सकते है और विदेशी निवेश के नाम परदेश के भू-राजनीतिक तथा रणनीतिक हितों के साथ समझौता नहीं किया जा सकता. भविष्य में भी अगर भारत के पड़ोसी देशों द्वारा परोक्ष विदेशी निवेश के कारण किसी भारतीय कंपनी का स्वामित्व बदलता है तो इसके लिए भी भारत सरकार की मंज़ूरी लेनी ज़रूरी होगी. भारत की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति में इस बदलाव के दायरे में आनेवाले अन्य देशों में भारतीय कंपनियों के साथ होने वाले वो लेन देन भी आएंगे, जिनमें चीन की कंपनियां शामिल होंगी.

कोरोना की तबाही से विश्व भर के बाजारों में आई गिरावट को चीन अवसर की तरह भुनाने में लगा है. चीन की इस मंशा को भांपते हुए कई और देशों ने जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, इटली और स्पेन भी एफडीआई के नियमों को सख्त कर दिया है

कोरोना वायरस के असर के कारण अधिकतर भारतीय कंपनियों के शेयरों में काफी गिरावट आई है. ऐसे में भारतीय कंपनियों का सस्ते में अधिग्रहण हो जाने और इन कंपनियों का नियंत्रण विदेशी हाथ में चले जाने का खतरा पैदा हो गया था. खासकर चीन को इस मामले में एक खतरे के तौर पर देखा जा रहा था. जिसतरह चीन की पीपल’स बैंक ऑफ चीन (PBOC) ने भारत की सबसे बड़ी हाउसिंग फ़ाइनेंस कंपनी हाउसिंग डेवलपमेंट फ़ाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (HDFC) में करोड़ों शेयर खरीदकर हाल ही में अपनी हिस्सेदारी 0.8% से बढाकर 1.01% कर ली, वैश्विक अर्थव्यवस्था के उथल-पुथल के दौरान विदेशी निवेश की आड़ में भारतीय कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का यह कदम चीन की विस्तारवादी सोच का जीता जागता उदहारण है. कोरोना की तबाही से विश्व भर के बाजारों में आई गिरावट को चीन अवसर की तरह भुनाने में लगा है. चीन की इस मंशा को भांपते हुए कई और देशों ने जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, इटली और स्पेन भी एफडीआई के नियमों को सख्त कर दिया है. ताकि महामारी के कारण मंदी से जूझ रही उनकी कंपनियों को चीनी कंपनियों द्वारा औने-पौने मूल्यांकन पर अधिकरण किये जाने से रोका जा सके.

यूरोपीय संघ ने सुरक्षा का हवाला देते हुए एफडीआई की जांच पड़ताल किए जाने के नियम बनाए. अमेरिका ने चीन से होने वाले निवेश की जांच सख्त कर दी है. माना जा रहा था कि चीन अमेरिका में बड़े पैमाने पर संपत्तियों का अधिग्रहण कर रहा है. ऑस्ट्रेलिया ने भी कोरोनावायरस संकट के बीच रणनीतिक संपत्तियों के सस्ते भाव बिक जाने के खतरे को देखते हुए विदेशी निवेशकों द्वारा किए जाने वाले अधिग्रहण के नियमों को मार्च में सख्त कर दिया. भारत सरकार द्वारा एफडीआई के नियमों में यह बदलाव वस्तुतः चीन के वर्चस्ववादी रवैये पर रोक लगाने के लिए ही किया गया है.

भारत-चीन आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिषद के आकलन के अनुसार, चीन के निवेशकों ने भारतीय स्टार्टअप में करीब चार अरब डॉलर निवेश किये हैं. हाल के वर्षों में ऑटोमैटिक रुट से चीनी निवेश में न केवल तेजी आई बल्कि भारतीय स्टार्ट-अप्स के क्षेत्र में चीन अमेरिका का प्रतिद्वंद्वी बन गया है. उनके निवेश की रफ्तार इतनी तेज है कि एक अरब डॉलर से अधिक मूल्य वाली 23 भारतीय स्टार्ट अप कंपनियों में से 18 के पीछे चीन के निवेशकों, जैसे कि अलीबाबा, टेन सेंट और ऐंट फ़ाइनेंशियल का हाथ है. चीन की प्रौद्योगिकी कंपनियों के कारण उत्पन्न हो रही चुनौतियों को रोकने के लिए कदम उठाने का यही सही समय है.

इससे पहले सेबी ने कस्टोडियंस को निर्देश दिया था कि वे भारतीय शेयर बाजार में चीन से आने वाले निवेश की जानकारी दें. डीपी आईआईटी के आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार महीनों में भारत में होने वाले सबसे ज्यादा निवेश चीन द्वारा किए गए हैं. भारत में मात्र पिछले चार महीनों में चीन द्वारा 2.34 अरब डॉलर (भारतीय करेंसी में 14,846 करोड़ रुपये) का निवेश किया जा चुका है. यह निवेश दिसंबर 2019 से अप्रैल 2020 के दौरान किए गए हैं. इसी अवधि में बांग्लादेश से 48 लाख रुपए, नेपाल से 18.18 करोड़ रुपए, म्यांमार से 35.78 करोड़ रुपए और अफग़ानिस्तान से 16.42 करोड़ रुपए का निवेश आया है. पाकिस्तान और भूटान से इस दौरान कोई निवेश नहीं हुआ है. पिछले कारोबारी साल में अप्रैल से दिसंबर तक की अवधि में भारत कुल 36.77 अरब डॉलर का एफडीआई आया, जो इससे पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा है.

यह संकट का समय है इसमें भारत को अपने उद्योग को बचाने का फैसला करने की जरूरत है. ऐसे में केंद्र सरकार ने समयोचित कदम उठाकर ये जता दिया है कि कोविड-19 की चुनौती से निपटने पर ध्यान देने के साथ ही अपने हितों पर भी उसकी पूरी नजर है. सरकार देश के रणनीतिक हितों से जुड़े क्षेत्रों जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों तथा जम्मू और कश्मीर में होने वाले निवेश पर निगरानी रखने की तैयारी में थी. यह उसी क्रम में सरकार द्वारा बहुत सोच समझकर लिया गया एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है. उन निवेशों तथा निवेशकों को भारत सरकार द्वारा लागू इस अतिरिक्त प्रतिबन्ध से कोई समस्या नहीं उठानी होगी जिनका उद्देश्य पूर्णतया निवेश तक ही सीमित है. ऐसे में समस्या मात्र उन निवेशकों को होगी जो निवेश की आड़ में भारत के रणनीतिक हितों के दायरों में दख़लअंदाज़ी करने का प्रयास करेंगे. क्यूँ की अब प्रत्येक निवेश प्रस्ताव की समीक्षा कर सरकार गुणवत्ता और प्राथमिकता के आधार पर अनुमति प्रदान करेगी.

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